Hindi Antarvasna - चुदासी - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

desiaks

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Aug 28, 2015
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Chudasi (चुदासी


* * * * * * * * * *पात्र (किरदार) परिचय

01. नीरव- निशा का पति,

02. निशा- घर का नाम निशु, नीरव की पत्नी, असाधारण रूप की मालकिन, कहानी की नायिका।

03. करण- बस में निशा का हमसफर,
05. रामू- उम्र 35 साल, बिल्डिंग का रात का चौकीदार, 4-5 घर में झाडू बरतन भी करता है।

06. शंकर- उम्र 25 साल, टिफिन वाला भइया

07. अब्दुल- निशा के माता-पिता का पड़ोसी,

08. अनिल- निशा के जीजू, मीना का पति।

09. मीना निशा की बड़ी बहन, अनिल की बीवी।

10. रीता निशा की दोस्त क्लासमेट,

11. माधो- बिल्डिंग नया चौकीदार

12. चन्दा- माधो की बीवी

13. महेश- बिल्डिंग का सेक्रेटरी, मशहूर आदमी

14. जावेद (विकास)- निशा को कालेज में फंसाने की कोशिश करने वाला लड़का।

टिप्पड़ी- लेखक ने बीच-बीच कहान को मिटा दिया है, इसलिये कुछ अटपटा लगेगा। यदि ऐसी कहानी पसंद नहीं हो तो ना पढ़े।
 
कहानी की नायिका निशा की जबानी
थोड़ा धीरे उम्म... उंगली सीधी रख के करो उम्म... चूसो ना आहह...” नीरव (मेरे पति) अपनी उंगली मेरी योनि में अंदर-बाहर कर रहे थे, मैं चरम सीमा पर थी। मैं असीम सुख में खोई हुई नीरव का हाथ पकड़कर उसे उंगली हिलाने में मदद करते हुये लंबी-लंबी सांसें लेते हुये पानी छोड़ रही हैं। नीरव समझ जाता है कि मैं झड़ चुकी हूँ।
तो वो मेरे होंठों पे किस करके साइड हो जाता है।

मेरे नार्मल होते ही नीरव पूछता है- “मजा आया?”

मैं 'हाँ' कहती हूँ।

नीरव- “हमारी शादी के 6 साल बाद भी तुम नई नवेली दुल्हन की तरह धीरे-धीरे करने को क्यों कहती हो? और ये उंगली थी इससे इतना डर?” नीरव हँसते हुये कहता है।

मैं नीरव की बात का जवाब टालकर सिर्फ मुश्कुराते हुये कहती हैं- “तुमको करना है?”

नीरव- “हाँ, यार तुम तो जानती हो की वो मेरे लिए नींद की गोली है..” कहते हुये नीरव अपना पायजामा घुटनों तक नीचे कर देता है।

मैं नीरव की तरफ होकर उसकी टी-शर्ट गले तक कर देती हूँ। मैं नीरव का लिंग पकड़कर सहलाने लगती हूँ।

नीरव- “किस करो...” नीरव कहता है।

मैं नीरव का लिंग हिलाते हुये उसके होंठों पर मेरे होंठ रख देती हूँ।

नीरव अपने एक हाथ की बाहों में मुझे जकड़ लेता है और फुसफुसाता है- “जोर से हिलाओ निशु...”

मैं जोरों से हिलाने लगती हूँ।
नीरव मेरे होंठों को जोरों से चूसने लगता है। वो जीभ निकालकर मेरे होंठों के बीच दबाता है। मैं मेरा मुँह भींच लेती हूँ। नीरव मुझे बाहों के घेरे से मुक्त करके कहता है- “निशु मेरी गर्दन को चूमो...”

मैं नीरव की गर्दन से टी-शर्ट नीचे करके उसके गले को चूमती हुई जोरों से लिंग हिलाने लगती हूँ।

नीरव जोरों से सांसें लेने लगता है। मैं मेरी हिलाने की गति और बढ़ाती हूँ और नीरव झड़ जाता है। उसके लिंग में से निकली हुई वीर्य की कुछ बूंदें मेरे हाथों पर पड़ती हैं, और कुछ नीरव के पेट पर पड़ती हैं। नीरव को किस करके मैं बेडरूम से बाहर आती हूँ, वाश-बेसिन में हाथ धोती हूँ और गार्गल करके बाथरूम में जाकर मैं वापस बेडरूम में आती हूँ। तब तक तो नीरव के खर्राटों की आवाजें चालू हो गई होती हैं। मैं मन ही मन मुश्कुराती हूँ।
की नींद की गोली लेते ही नींद आ गई और फिर मैं भी नींद की आगोश में समा जाती हूँ।
 

मैं निशा, एक साधारण घर की असाधारण रूप की मालकिन। शादी से पहले मेरे रूप के चर्चे हमारी समझ में इतने थे की हर कुँवारा लड़का सिर्फ मुझसे ही शादी करना चाहता था।

नीरव हमारे शहर का सबसे ज्यादा समृद्ध और नामचीन फेमिली का था और साथ में सबसे खूबसूरत लड़का, हर कुंवारी लड़की की ख्वाहश था नीरव। जब हम दोनों की शादी हुई तब न जाने कितने लड़के और लड़कियों का दिल टूटा।
)

इतनी हशीन जोड़ी होने के बावजूद हमारी शादी के बाद मेरे सास-ससुर को मुझ पर हमेशा अविस्वास ही रहा। उनको हमेशा लगता था की मैं उनके पैसे मेरे माँ-बापू को भेजती हैं। उन्होंने हम दोनों को दूसरा फ्लैट दिला। दिया, जहां मैं और नीरव अलग रहते हैं।

ज्यादातर घर की चीजें वो ही भेजते हैं, बाकी के खर्चे के लिए हर महीने फिक्स अमाउंट दे देते हैं। बिजनेस तो हमारा जाइंट ही है। मेरे ससुर, जेठ और नीरव तीनों साथ ही काम करते हैं। मेरे सास-ससुर के ऐसे रवैए के । बावजूद मैं बहुत खुश हूँ। मेरी लाइफ से, पूरी संतुष्ट हूँ, क्योंकी नीरव मुझे बहुत प्यार करता है, हमेशा मेरा पूरा ख्याल रखता है।

सुबह 5:45 बजे बेल बजी। डींग-डोंग, डींग-डोंग...

मैंने उठाकर जल्दी-जल्दी नाइटी पे गाउन पहन लिया। मैं हमेशा रात को नाइटी पहनती हैं, जो स्लीवलेश और घुटनों तक की ही है। गाउन पहनकर बर्तन लेकर मैंने दरवाजा खोला। दूध वाले गोपाल चाचा थे, लगभग 55 साल के होंगे। जो बरसों से मेरे ससुराल में दूध देने आते हैं।

गोपाल चाचा- “कितना दूं?”

मैं- “एक लिटर..."

गोपाल चाचा- “छोटे साहब बिजनेस टूर पे नहीं गये क्या?” चाचा ने पूछा।

मैं- “नहीं, इसलिए तो पूरा ले रही हूँ..” मैंने जवाब दिया।

चाचा ने दूध दिया तो मैं दरवाजा बंद करके फिर से थोड़ी देर के लिए सो गई। 11:30 बजे मैं खाना बना रही। थी, टिफिन वाला कभी भी आ सकता था। बहुत ही जल्दी थी। तभी मोबाइल बज उठा, देखा तो मेरी मम्मी का फोन था, मैं बात करते-करते टिफिन भरने लगी।

मम्मी- “कैसी हो बेटा?”

मैं- “ठीक हूँ, तुम और पापा कैसे हो?"
 
मम्मी- “मैं तो अच्छी भली हूँ, पर तेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं रहती...”
मैं- “थोड़ा खयाल रखिए पापा का..” तभी बेल बजी। मैंने मम्मी को कहा- “मैं बाद में फोन करूंगी...” कहकर फोन काट दिया।

टिफिन लेकर दरवाजा खोला, टिफिन वाले, शंकर भैया थे। शंकर उ.प्र. का भैया है। लगभग 25 साल का होगा पर देखने में 15-16 साल का हो ऐसा लगता है, सिंगल बाडी का छोटे क़द का है। वो हमारे दोनों घर से टिफिन ले जाता है। मैंने टिफिन उसके हाथ में दिया तो मुझे ऐसा लगा की टिफिन लेते वक़्त शंकर ने जानबूझ कर मेरे हाथों को छूने की कोशिश की। मैंने सोचा शायद मेरा वहम होगा।

मैं दरवाजा बंद करके खाना खाने बैठ गई। दोपहर को एक बजे मैं टीवी देख रही थी तभी रामू आया। रामू हमारी बिल्डिंग का रात का चौकीदार है और दिन में 4-5 घर में झाडू बरतन करता है। पहले ये काम उसकी बीवी करती थी, पर दो साल पहले वो भाग गई, तबसे रामू करता है। बेचारी क्या करती रामू पूरा दिन मरता रहता था। रामू की उमर तो 35 साल की होगी, पर दिखने 45 साल का लगता है। कद्दावर शरीर, काला और डरावना चेहरा, पूरा दिन मुँह में तंबाकू उसकी उमर बढ़ा देते हैं। रामू बर्तन धो रहा था, तभी मेरी नींद लग गई।
टीवी देखते-देखते मेरी आँखें भारी हो गई और मैं सो गई।

मैं दिन में घर पे पूरा दिन गाउन ही पहनती हैं। कहीं जाना होता है तो ही साड़ी या ड्रेस पहनती हूँ। अचानक ही मुझे ऐसा लगा की कोई मेरे पैर को सहला रहा है, मेरे पैर पर साँप या विच्छू चढ़ गया है ऐसा मुझे महसूस हुवा तो मैं डर जाती हूँ और चीखते हुये जाग जाती हूँ।

रामू- “क्या हुवा मेडम?” रामू हाथ में पोंछा लेकर खड़ा है और पूछता है।

मेरा पूरा बदन पशीने से तरबतर हो गया था- “कुछ नहीं ऐसे ही...” मैं जवाब देती हूँ पर मन ही मन सोचती हूँ। की आज के बाद अकेली रामू की हाजरी में नहीं सोऊँगी।

3:00 बजे मैंने मम्मी को फोन लगाया, और कहा- “वो टिफिन वाला आ गया था ना इसलिए...”

मम्मी- “कोई बात नहीं बेटा..”

मैं- “पापा की तबीयत का खयाल रखना...”

मम्मी- “खयाल तो रखते हैं बेटा, पर हाथ तंग होने की वजह से दवाई बराबर नहीं होती...”

मैं- “दीदी मिली थी?”

मम्मी- “दस दिन पहले मिली थी बेटा, पर बहुत थक गई है। मालूम नहीं बेटा तेरी शादी में क्या हुवा था तब से तेरे जीजू घर पे नहीं आते, ना तो मनीषा (मेरी दीदी) को आने देते हैं। भगवान जाने क्या हुवा तेरे जीजू को? उसके पहले तो बहुत ध्यान रखते थे हमारा...”

मैं- “छोड़ो ना मम्मी पुरानी बातें, चलो मैं रखती हूँ..” कहकर मैंने फोन काट दिया। फोन रखकर मैं अतीत की यादों में खो गई।
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मुझे मेरी शादी का दिन याद आ गया। उस वक़्त याद आ गया जब जीजू मुझे अकेली देखकर रूम में आ गये थे। जीजू और दीदी की भी जोड़ी कोई कम नहीं थी, जितनी दीदी खूबसूरत हैं उतने ही जीजू भी खूबसूरत। दोनों रति और कामदेव की जोड़ी लगते हैं। जीजू ने मुझे बाहों में जकड़ लिया और पलंग पे धकेलकर मुझ पर चढ़ बैठे।

मैं छटपटाते हुये बोली- “ये क्या कर रहे हैं?”

जीजू मस्ती में बोले- “रात को तो तेरी सील खुलने ही वाली है, तो मैं दिन में खोल दें तो क्या हर्ज है?”

मैंने जीजू को कभी ऐसी बात करते नहीं देखा था। मैं चिल्लाई- “जीजू छोड़ो...”

जीजू और मस्ती में बोले- “दोनों बहनें एक ही आदमी से सील खुलवावोगी तो अच्छा रहेगा...” कहकर जीजू ने ऊपर से मेरे उरोजों को मसला और मेरे होंठों को चूसने लगे।

मुझमें भी थोड़ा जोश आ गया, दिलो-दिमाग में मस्ती छाने लगी। पर तुरंत दीदी का खयाल आते ही जोश और मस्ती हवा हो गई, और जीजू को धक्का देकर चिल्लाई- “जाओ यहां से, नहीं तो सब को इकट्ठा करूंगी. जीजू हो इसलिए नहीं...”

जीजू- “नहीं तो क्या करती? तेरे पे कब से मेरी नजर है, आज तो तुझे चोदकर ही रहूँगा..." जीजू भी तैश में आ गये थे। जीजू ने फिर से मुझे बाहों में लेने की कोशिश की।

मेरा हाथ उठ गया, और मैंने जीजू के गालों पर थप्पड़ दे दिया।

जीजू बहुत गुस्सा हो गये- “जब तू सामने से आकर कहेगी और गिड़गिड़ाएगी ना की चोदो जीजू चोदो... तब चोदूंगा और तब तक ना मैं इस घर में आऊँगा ना मनीषा को आने दूंगा...” इतना कहकर जीजू तुरन्त बाहर निकलकर दीदी को लेकर घर छोड़कर चले गये।

उस दिन से आज तक जीजू ना तो खुद घर पे आए, ना दीदी को आने दिया। और मैंने भी आज तक ये बात किसी को नहीं बताई।

शाम को रसोई में नींबू की जरूरत पड़ी, जो घर में नहीं था। मैं मेरे ही फ्लोर पर रहनेवाले मिस्टर आंड मिसेज़ गुप्ता के घर पे गई। उनकी उमर होगी तकरीबन 60 साल के ऊपर की, क्योंकी अंकल (मिस्टर गुप्ता) बैंक से रिटायर हो चुके हैं। उनका बेटा अमेरिका में है। यहां वो दोनों अकेले रहते हैं। अंकल का कद छोटा और तोंद ज्यादा बाहर निकली हुई है। पर आंटी ने अभी तक अपना फिगर बनाए रखा है। मुझे हमेशा लगता है की अंकल की नजर हमेशा मुझे घूरती ही रहती है, और मुझसे बात करने का कोई चान्स वो छोड़ते नहीं हैं।

मेरे अंदर जाते ही अंकल ने पूछा- “बहुत दिनों बाद दिखाई दी, कहां रहती हो पूरा दिन?”

मैं- “पूरा दिन काम रहता है, समय ही नहीं मिलता...”

अंकल- “आया करो, हमारा दिल भी लग जाएगा.”

मैं- “वो आंटी नहीं है क्या? नींबू चाहिए थे...”
 

अंकल- “अरे है ना... सुनयना ये निशा नींबू लेने आई है, वह छोटा-छोटा नींबू दे दो। बेटे तूने ऐश्वर्या का गाना तो देखा है ना?"

मैं- “देखा है ना अंकल, बहुत अच्छा डान्स किया है...”

अंकल- “तुझे आता है डान्स? तू भी तो दिखने में ऐश्वर्या से कहां कम है। तुझे तो आना ही चाहिए...”

तभी आंटी बाहर आई और अंकल को बोली- “आप भी क्या? क्यों परेशान कर रहे हैं बच्ची को?”

फिर मुझसे कहा- “बैठो बेटा, मैं देती हूँ। और हाँ दाल ढोकला बनाया है, नीरव को बहुत पसंद है। मैं देती हूँ, वो भी ले जाना...” कहकर आंटी अंदर चली गई।

मैं अंकल के सामने वाले सोफे पर जा बैठी, अंकल ने मेरे सामने मुश्कुराते हुये हथेली को गोल किया और फिर दूसरे हाथ की उंगली अंदर-बाहर करने लगे। मेरी समझ में कुछ नहीं आया तो मैं ध्यान से देखने लगी, और ये मेरी गलती थी। अंकल एकदम से खड़े हुये, चैन खोली और लिंग बाहर निकालकर मेरे सामने हिलाने लगे।

मैं खड़ी होकर किचन में आंटी के पास चली गई, आंटी ने दाल ढोकला डिश में ले लिए थे। मैं वहां से लेकर निकली।

तब अंकल ने पीछे से आवाज दी- “अच्छा नहीं लगा क्या?”

मैं धीरे से बोली- “हरामी बूढ़े...” कहकर मैं घर में घुस गई।

रात को नीरव मेरी योनि में उंगली अंदर-बाहर करते-करते मेरे उरोजों को चूस रहा था, पर मेरा ध्यान आज के दिन पर ही था। आज का पूरा दिन हर रोज से अलग गया। लगता था पूरा दिन कुछ उल्टा सीधा ही हुवा था। मैं नीरव को अंकल के बारे में बताना चाहती थी, पर बता नहीं सकी। और मम्मी ने भी, मैं कई बार मम्मी से दीदी के बारे में पूछती हूँ तो वो कभी भी जीजू को याद नहीं करती थी। मैं सोचने लगी क्या दीदी जानती होंगी की जीजू मुझसे संभोग करना चाहते हैं? क्या दीदी ये करने देंगी?

“अयाया...” मेरे मुँह से सिसकारी फूटते ही में झड़ गई।

नीरव मेरे बालों को सहलाते हुये मेरे गालों को चुंबन करके बोला- “मुझे कर दो निशु.."
 
मैंने नीरव का पायजामा नीचे किया, और लिंग हाथ में लिया। नीरव का लिंग हाथ में लेते ही मेरी आँखों के सामने अंकल का लिंग लहरा उठा। मुझे अपने आप पे शर्म आ गई। थोड़ी ही देर में नीरव भी झड़ गया।

दूसरे दिन दोपहर को अंकल की आवाज सुनाई दी- “मुझे दो घंटे लगेंगे और खाना खाकर आऊँगा...”

मैं समझ गई की अंकल कहीं जा रहे हैं, तो मैं थोड़ी देर बाद आंटी के पास गई। सुबह ही मैंने मन ही मन सोच लिया था की नीरव को बताऊँ या ना बताऊँ, पर आंटी को तो बताऊँगी ही। आंटी कहेंगी तो दूसरी बार अंकल ऐसी गलती नहीं करेंगे। आंटी सोफे पर ही बैठी थी, मैंने धीरे से सारी बातें बता दीं। मेरी बात सुनकर आंटी गहरी सोच में पड़ गई। मुझे लगा की अभी आंटी अंकल को बहुत बुरा भला सुनाएंगी। पर मेरी सोच से विपरीत हुवा।

आंटी ने कहा- “बेटा उसमें अंकल की नहीं मेरी गलती है...”

आंटी क्या बोली मेरी समझ में कुछ नहीं आया। मैंने उत्तेजित होकर पूछा- “आपकी कैसे?”

आंटी- “बेटा, तुझे याद है मैंने तुझे बताया था की 10 साल पहले केयूर (उनका बेटा) का आक्सीडेंट हुवा था..”

मैं- “हाँ आंटी याद है, केयूर भाई बाइक लेकर ट्रक के साथ टकरा गये थे...” मैंने जवाब तो दिया पर सोच में पड़ गई की ये दोनों बातों के बीच क्या संबध हो सकता है?

आंटी- “उस वक़्त केयूर 20 दिन तक कोमा में रहा था। डाक्टरों ने भी ना बोल दिया था की ये लड़का नहीं बचेगा। तभी मैंने मन में सोच लिया की केयूर बच जाएगा तो मैं ब्रह्मचर्य का पालन आजीवन करूंगी। केयूर तो। बच गया पर... ...” आंटी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

पर मैं समझ गई की वो कहना क्या चाहती हैं- “ओह्ह...” मैं क्या बोलँ वो मुझे समझ में नहीं आया तो मैं इतना बोलकर रुक गई।

आंटी- “तेरे अंकल तब से सेक्स के लिए तड़प रहे हैं। 6 साल पहले एक कामवाली आती थी, उसको बाहों में ले लिया था तो बहुत बड़ा हंगामा हुवा था। उसके बाद मैंने सोचा कि अब सुधर गये हैं, पर तेरे साथ अच्छा नहीं किया। आज आने दो घर पे उन्हें खूब बोलती हैं.”

न जाने मुझे अंकल पे कहां से दया आ गई- “छोड़िए आंटी। अंकल को कुछ मत कहना। आइन्दा मैं मेरा ख्याल रसुँगी...”

शाम को पापा का फोन आया- “चाचा का देहांत हो गया है, दीदी तो यहीं हैं पर तेरे जीजू उसे आने नहीं देंगे तो तुम समय निकालकर आ जाओ.."

पापा, चाचा और दीदी तीनों अहमदाबाद में रहते हैं और मैं राजकोट। रात को नीरव मुझे बस में बिठाकर गया। बस स्लीपर कोच थी, दीवाली की वजह से भीड़ थी। मैं कंबल ओढ़कर सो गई, पर मुझे बस में कभी नींद नहीं आती। नीरव की याद आ रही थी। नीरव साथ होता तो इबल की सीट ले लेते और नींद की गोली का मजा लेते। सुबह चाचा का लड़का सुधीर, मुझे स्टेशन पे लेने आया था, मुझे उसके घर जाना था। मम्मी पापा भी वहीं थे।

दोपहर को मम्मी ने कहा- “हमारे अपार्टमेंट के ज्यादातर फ्लैट मुस्लिमों ने ले लिए हैं, सिर्फ 3 फ्लैट में हिंदू रहते हैं। लोग तो अच्छे हैं पर दिल नहीं मानता उन लोगों के साथ रहने को और हम बेच भी नहीं सकते क्योंकी वो लोग पानी के भाव माँग रहे हैं और वहां से जितने पैसे आणंगे उससे कहीं और नहीं ले सकेंगे..."
 
मम्मी की बात सुनकर बहुत दुख हुवा। कितनी प्राब्लम है मम्मी और पापा की जिंदगी में, पैसे की, रहने की, दीदी की और मेरे ससुराल वालों की, सब तरफ से प्राब्लम। मेरे सास ससुर उन्हें कभी बुलाते भी नहीं है, एक बार घर पे आए थे तो अपमान करके निकाल दिया था। मेरी आँखें नम हो गईं। शाम को सुधीर मुझे बस में छोड़ने आया, स्लीपर में टिकेट न मिलने की वजह से उसने 2बाइ2 में टिकेट ले ली थी। बस में मेरी सीट खिड़की साइड की थी। मेरी बगल की सीट में एक 20-22 साल का स्मार्ट लड़का था। बस चलते ही मैंने बैग में से कंबल निकालकर लपेट लिया।

थकान की वजह से आँखें भारी हो रही थीं, फिर भी नींद नहीं आ रही थी। बस शहर में से बाहर निकली तो लाइट बंद हो गई। थोड़ी देर बाद मुझे लगा की वो लड़का मेरे कंबल में हाथ डालने की कोशिश कर रहा है। मैं सोच में पड़ गई की उसे ठंड लग रही होगी या? पहले तो सोचा की उसके हाथ को काट लँ, फिर सोचा की देखते हैं कि क्या करता है? ज्यादा कुछ करेगा तो थप्पड़ दे देंगी। कंबल के अंदर हाथ डालकर उसने पहले तो मेरे उरोजों को सहलाया, फिर पेट सहलाया। उसके हाथ बहुत ही कोमल थे, जैसे किसी लड़की के हों। वो नीचे झुका, और मेरी साड़ी को उठाकर ऊपर करने लगा।

मैंने सोचा इतना बहुत हो गया मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।

लड़का- “तुम जाग रही हो?” वो पूछा।

मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

लड़का- “मेरा नाम करण है, तुम्हारा क्या है?” उसने फिर पूछा।

मैं- “निशा...” मैंने मेरा नाम उसे क्यों बताया वो मेरी समझ में नहीं आया। मैंने अभी तक उसके हाथ को छोड़ा नहीं था।

करण- “तुम बहुत खूबसूरत हो..." इतना बोलकर करण मुझसे जितना हो सकता था उतना नजदीक आ गया, और कहा- “मैंने आज तक चूत को नहीं छू, तुमने लण्ड को छू है?”

मैंने साड़ी पहनी थी उसके बावजूद वो मुझे कुँवारी लड़की समझ रहा था। मुझे वो कुँवारी समझता है ये बात मुझे अच्छी लगी। मैंने सोचा चलो उसे थोड़ा बेवफूक बनाते हैं, थोड़ा खेल खेलते हैं, कुछ करने जाएगा तो बता देंगी की मैं शादीशुदा हूँ।

करण- “तू शर्माती बहुत है। बता ना तूने लण्ड को छू है की नहीं?” करण अधीरता से बोला।
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मैं उसके मुँह के बहुत करीब मेरा मुँह करके बोली- “नहीं छू..” मैं उसके चेहरे के भाव देखना चाहती थी।
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करण- “वाह... तू भी मेरी तरह कोरी है..” करण बोला उसके मुँह से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी। करण ने पूछा- “तेरी फिगर क्या है?”

मैं- “क्या?" मैं सोच में पड़ गई की ये लड़के की हिम्मत तो देखो, आज तक नीरव ने कभी मेरी फिगर नहीं पूछी, और लण्ड, चूत ऐसे गंदे शब्दों का इश्तेमाल तो कभी नहीं किया।

करण फिर बोला- “समझती नहीं क्या? चूची की साइज पूछ रहा हूँ?”

मैंने कहा- “34 इंच”

करण- “कप?” उसने फिर सवाल किया।

कितना जानता है ये लड़का औरतों के बारे में? मैंने जवाब दिया- “सी”

वो सवाल पे सवाल किये जा रहा था और मुझे भी मजा आ रहा था।
करण- “कमर और गाण्ड की भी साइज बता दे...”

मैंने भी बिंदास होकर जवाब दिया- “26" इंच और 34 इंच” मैंने भी सोच लिया था की ऐसे नींद नहीं आने वाली तो थोड़ी बात ही कर लेते हैं। कुछ भी करने की कोशिश करेगा तो मार देंगी।

करण- “तेरा कोई बायफ्रेंड है?” करण का एक और नया सवाल।

मैं- “नहीं है...” मैं भी उसे अच्छा लगे ऐसे जवाब दे रही थी।

करण- “लण्ड देखा तो होगा ना?”
 
करण- “लण्ड देखा तो होगा ना?”

मुझे उसका ये सवाल अजीब लगा। मैंने कहा- “छू नहीं तो देखा कहां से होगा? नहीं देखा...”

करण- “चोदना समझती है क्या?” वो पूछा।

मैंने पूछा- “क्यों ऐसे क्यों बात कर रहे हो?”

करण- “ब्लू-फिल्म में या नेट पर भी नहीं देखा क्या?” वो पूछा।

मैं- “हाँ, वहां तो देखा है। मैं रियल में समझी थी..” मैंने सफाई दी।

शादी के एक साल बाद 3-4 बार नीरव ब्लूफिल्म की डी.वी.डी. लाया था पर मुझे बहुत गंदा लगता था, इसलिए लाना बंद कर दिया।

करण- “मुझे ठंड लग रही है अंदर आ जाऊँ?” इतना बोलकर करण ने कंबल खींचा और उसने भी लपेट लिया। फिर उसने कहा- “मेरा लण्ड भी ब्लू-फिल्मों जितना बड़ा है...”

मैंने सोचा ये लड़का फेंकता है। नीरव का लण्ड तो जो फिल्मों में है उससे आधा है, और वो अंकल का भी छोटा ही था। फिल्मों में तो कोई ट्रिक से बड़ा दिखाते हैं ऐसा मैंने सुना है।

मुझे सोच में देखकर करण बोला- “छूना है तुझे, बहुत गरम है?”

मुझे अब उससे डर लगने लगा था, मैंने “ना” कहा।

करण- “क्यों शर्माती है? तुम लड़कियां नाटक बहुत करती हो। चल कोई बात नहीं मुझे तो तेरी चूत को छूना

उसकी बात सुनकर मैं और टेंशन में आ गई- “नहीं प्लीज़..” मैंने कहा।

करण- “क्या नहीं? छूना नहीं या छूने देना नहीं? क्या है ये चल एक काम करते हैं, कोई एक ही चीज करते हैं। बोल क्या करना है? छूना है या छूने देना है?”

मैं- “कुछ नहीं करना..” मैं डरते हुये बोली।

करण- “अरे यार, इतना हशीन मोका मिला है मजा ले ले। तू भी हशीन और मैं नौजवान और मैं कहां तुझे चुदवाने को कह रहा हूँ..” वो मस्ती में बोला।

मेरा दिमाग सन्न हो गया था। उसे कैसे समझाऊँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा था- “मैं तुझे पहचानती भी नहीं हूँ...” मैंने सोचे बिना बहाना निकाला।

करण- “वो अच्छा है ना, पहचान वाला हो तो किसी को बता देगा ऐसा डर रहता है, जबकी हम तो बस से उतरते ही कभी मिलेंगे भी नहीं...” कहकर वो मुझे समझाने लगा, फिर पूछा- “निशा मेरी जान बोल ना क्या इरादा है?”
 
मुझे मेरी गलती का अहसास हो चुका था। अब किसी भी तरीके से उससे पीछा छुड़ाना था। आगे-पीछे की सीट वालों को हमारी बातें सुनाई नहीं दे रही थीं। और हम कब से कुछ बातें कर रहे हैं ये अहसास उनको हो गया था। अब अगर मैं करण को कुछ करने जाऊँगी तो लोग मुझे ही गलत समझेंगे।

करण- “बोल ना जान...” करण ने फिर से पूछा।

मैं- “मैं छूना चाहती हूँ..” मैं बोली। मैंने सोचा एक सेकेंड के लिए उसके लिंग को छूकर मैं हाथ हटा लूंगी।

करण- “ओके...” कहकर करण ने मेरा हाथ पकड़ा और मेरे हाथ में अपना लिंग पकड़ा दिया।

मैं- “तू नंगा था?” मेरे मुँह से निकल गया।

करण- “हाँ, कंबल में आते ही मैंने पैंट घुटने तक निकाल दी थी..” उसने मेरे उरोजों को छेड़ते हुये कहा।

मैं- “तुम बिल्कुल पागल हो, मरवा दोगे मुझे और यहां क्यों हाथ लगा रहे हो?” मैंने उरोजों पे इशारा करके पूछा। उसका लिंग अभी भी मेरे हाथ में ही था।

करण- “वो यार, मैं तेरी साइज चेक कर रहा था की कहीं तुम झूठ तो नहीं बोल रही?” उसने हँसते हुये कहा।

उसकी बात से मुझे हँसी आ गई। मैंने पूछा- “तो क्या लगा?”

करण- "तुमने बताया वही है। पर अब कमर और गाण्ड चेक करनी है...” उसने कहा। उसकी हर बात निराली थी।

मैं- “छीः छीः गंदे...” मैंने भी मजाक में कहा।

करण- “तुम मेरा लण्ड चूसना चाहोगी?” उसने पूछा।

तब मैंने उसका लिंग छोड़ दिया। जब हम ब्लू-फिल्में देखते थे। मुझे तो बहुत गंदा लगता था पर नीरव ने ज्यादा दबाव दिया इसलिए नीरव के बहुत कहने पर एक बार मैंने नीरव का लिंग मुँह में लिया था, पर मुँह में लेते ही वो मेरे मुँह में झड़ गया और मुझे उल्टी हो गई थी। तब से उसने मुझे कभी ब्लो-जोब के लिए नहीं कहा।

करण- “नहीं चूसना तो मत चूस ना... पर अभी इसको क्यों छोड़ दिया? चल हिलाकर पानी निकाल दे..” वो थोड़ा चिढ़ते हुये बोला।

मैं- “पर हमारी बात तो सिर्फ छूने की ही हुई थी ना?” मैंने डरते हुये कहा।

करण- "तो मैं भी कहां तुझे चूत में या मुँह में लेने को कह रहा हूँ?” वो थोड़ा जोर से बोला।

मैं डर गई कि कोई सुन ना ले। मैंने उसका लिंग पकड़ा और सहलाने लगी। मैं अब थोड़ा नार्मल होकर उसका लिंग हिलाने लगी थी।

तब करण पूछा- “निशा मेरा लण्ड कैसा लगा?”

मैंने अभी तक डर और शर्म की वजह से उसके लिंग पर ध्यान ही नहीं दिया था, और मुझे इंटरेस्ट भी तो नहीं था। उसके कहने पर मेरा ध्यान वहां गया। एक बात तो थी की उसने जो कहा था वो सच था, उसका लिंग सच में बहुत बड़ा था।

करण- "तू बहुत डर रही है...” करण बोला।

मैं- “नहीं, नहीं, मैं कहां डर रही हूँ...” मैं बोल पड़ी।

करण शरारत से बोला- “तू डरती नहीं है तो फिर लगता है की तुझे कुछ आता ही नहीं, मुझे सिखाना पड़ेगा...”

मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

करण- “चल एक काम कर, तू हाथ को लण्ड के आगे के भाग में ले जा...” उसने कहा।

मैंने वही करा जो उसने कहा।
करण- “उसको सुपाड़ा बोलते हैं। आगे उंगली से छूकर देख वहां छेद होगा, वहां से पेशाब और वीर्य निकलता है...” वो जैसे कोई बड़ा सेक्स-गुरू हो, उस अदा से बोला।
 
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