Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) - Page 3 - SexBaba
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Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )

-“तुम्हारी बात अपनी जगह सही है लेकिन आमतौर पर लड़कियां उससे दूर ही भागती थीं। वह थोड़ा खर दिमाग और हाथ धोकर लड़कियों के पीछे पड़ जाने वाला आदमी था। जैसा कि मीना बवेजा के मामले में हुआ।”

-“क्या हुआ?”

-“कुछ खास नहीं। उसकी वजह से मनोहर एक लफड़े में पड़ गया था।”

-“क्या मीना के पीछे भी वह बुरी तरह पड़ गया था?”

-“हाँ। लेकिन अब इन बातों से कोई फायदा नहीं है। मनोहर मर चुका है अब किसी औरत को परेशान नहीं कर पाएगा। हालांकि इसके पीछे किसी का अहित करने कि उसकी नीयत कभी नहीं रही। बुनियादी तौर पर वह अच्छा आदमी था। ट्रक ड्राइवर के तौर पर भी उसका रिकार्ड एकदम बड़िया और बेदाग रहा है।”

-“मीना कि वजह से वह जिस लफड़े में पड़ा वो क्या था?”

अधेड़ ने बेचैनी से पहलू बदला।

-“दरअसल औरतों के मामले में वह थोड़ा क्रेक था- खासतौर पर मीना के मामले में तो था ही। पिछले साल मीना ने उसे थोड़ी लिफ्ट दी और दो-तीन बार उससे बातें कर लीं। मनोहर पर इस हद तक दीवानगी का भूत सवार हो गया कि हर वक्त उसके आसपास मंडराने लगा। रात में उसके फ्लैट की खिड़कियों में झांकने जैसी हरकतें शुरू कर दी। हालांकि इसके पीछे मीना का कोई अहित करने का मकसद उसका कभी नहीं रहा। मगर अपनी हरकतों की वजह से पुलिस द्वारा पकड़ा गया।”

-“किसने पकड़ा था उसे।”

-“इन्सपैक्टर चौधरी ने। तगड़ी डांट फटकार लगाने के साथ-साथ दो-चार हाथ भी जड़ दिए और उससे कहा किसी डाक्टर के पास जाकर अपने दिमाग का इलाज कराए।”

-“इस लड़की लीना के बारे में तुमने इन्सपैक्टर को भी बताया था?”

-“नहीं। उसे तो मैं घड़ी देखकर टाइम तक कभी नहीं बताऊंगा।”

-“क्यों? वह तुम्हें पसंद नहीं है?”

-“बिल्कुल नहीं। वह अपने अलावा हर किसी को बेवकूफ समझता है। बूढ़ा बवेजा भी उसे खास पसंद नहीं करता लेकिन दामाद होने की वजह से बस बर्दाश्त करता रहता है।”

-“बवेजा की कितनी बेटियाँ है?”

-“दो। बड़ी बेटी रंजना ब्रजेश्वर चौधरी को ब्याही है। पुलिस में भर्ती होने से पहले कुछ महीने चौधरी ने इसी ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम किया था। तभी रंजना उसके संपर्क में आई और उसे दिल दे बैठी। तब बूढ़े ने इस पर बड़ी हाय-तौबा मचाई थी। दोनों ने उसकी मर्जी के खिलाफ शादी कर ली फिर धीरे-धीरे आपस में सुलह हो गई।”

-“बवेजा रहता कहाँ है?”

-“अधेड़ ने पता बता दिया।”

राज उससे विदा लेकर कार में सवार हो गया।
 
आगे-पीछे लंबे-चौड़े लान से घिरी बवेजा की कोठी पुरानी लेकिन काफी बड़ी थी। पिछले लान में झाड़ झंखाड़ों के बीच कई कारों और ट्रकों की बाडियाँ पड़ी जंग खा रही थी।

सामने वाले लान की हालत अपेक्षाकृत बेहतर थी। ड्राइव वे के दोनों ओर यूक्लिप्टिस के ऊँचे पेड़ों की कतारें थीं।

राज कार से उतर कर प्रवेश द्वार पर पहुंचा।

तभी एक-एक करके तीन फायरों की आवाज सुनाई दी।

राज ने दरवाजा खोलने की कोशिश की तो उसे लॉक्ड पाया।

तीन गोलियां और चलीं। कोठी के अंदर कहीं संभवतया बेसमेंट में। उन्हीं के बीच ठक-ठक की आवाज प्रवेश द्वार की ओर आती सुनाई दी। फिर एक स्त्री स्वर उभरा।

-“कौन कौशल?”

राज ने जवाब नहीं दिया।

बाहर वरांडे में रोशनी हुई फिर भारी दरवाजा खोला गया। ऊँचे कद की भारी वक्षों वाली पैंतीसेक वर्षीया उस युवती की आँखों में अजीब सी चमक थी।

-“ओह, आयम सॉरी। आई वाज एक्सपैकटिंग माई हसबैंड।”

-“मिसेज चौधरी?” राज ने पूछा।

प्रत्यक्षत: उसकी खोजपूर्ण आँखें राज के चेहरे पर जमी थीं लेकिन वह उससे परे अंधेरे में कहीं देखती प्रतीत हुई किसी ऐसे शख्स को जिससे डरती थी या प्यार करती थी।

-“यस। हैव वी मैट बिफोर?”

-“मैं आपके पति से मिला था।” राज बोला- “गोलियाँ कौन चला रहा है?”

-“पापा। जब भी वह परेशान होते हैं बेसमेंट में जाकर टारगेट को शूट करने लगते हैं।”

-“उनकी परेशानी की वजह आपसे नहीं पूछूँगा। मैं उनसे ही बात करना चाहता हूँ उनके खोए ट्रक के बारे में।” अपना नाम और पेशा बताकर राज ने पूछा- “मैं अंदर आ सकता हूँ?”

-“मुझे तो कोई एतराज नहीं है। लेकिन घर की हालत ठीक नहीं है। मुझे अपना घर भी संभालना होता है इसलिए यहाँ ज्यादा ध्यान नहीं दे सकती। मैंने बहुत कोशिश की है पापा किसी औरत को रख लें मगर वह औरत को घर में घुसने भी नहीं देना चाहते।”

वह दरवाजे से अलग हट गई।

उसकी बगल से गुजरते राज ने गौर से देखा। अगर वह अपने रख-रखाव की ओर ध्यान देती तो यकीनन खूबसूरत नजर आनी थी। लेकिन चेहरा मेकअप विहीन था। छोटी लड़कियों की तरह कटे बाल दोनों ओर गालों पर बिखरे थे। ढीली और लटकी सी नजर आती पोशाक से उसके शरीर का स्पष्ट आभास मिल रहा था।
 
-“पापा। आप से कोई मिलने आए है।”

-“कौन है?” भरी आवाज में पूछा गया फिर फायर की आवाज गूंजी।

-“प्रेस रिपोर्टर।”

-“उससे कहो थोड़ा इंतजार करे।”

फर्श के नीचे पाँच और गोलियाँ चलाई गई। उनकी गूँज की कंपन राज ने अपने पैरों के तले महसूस की।

बेसमेंट की सीढ़ियों से ऊपर आती रोशनी में बुत बनी खड़ी युवती के शरीर में गोलियों की आवाज सुनकर हर बार ऐसी हरकत हुई थी मानों वो किसी हारर फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक की गूंज थी जिसका असर उसके दिमाग से शुरू होकर फैलता जा रहा था।

सीढ़ियों पर भारी पदचाप उभरी।

युवती पीछे हट गई।

ऊपर पहुँचे लंबे-चौड़े आदमी ने हिकारत से युवती को देखा।

-“मैं जानता हूँ, रंजना। तुम्हें गोलियों की आवाज पसंद नहीं है। तुम चाहो तो अपने कानों में रुई ठूँस सकती हो।”

-“मैंने कुछ नहीं कहा, पापा। मिस्टर राज कुमार आपसे मिलने आए हैं।”

उस आदमी की चमड़ी में झुर्रियाँ पड़ी थीं। कंधे झुके हुए थे मगर सुर्ख आँखें दबी कुचली वासना से सुलगती सी प्रतीत हो रही थीं।

-“कहिए?” वह बोला- “मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ।” लेकिन उसके लहजे से जाहिर था किसी के लिए कुछ भी करने की कोई इच्छा उसकी नहीं था।

राज ने बताया वह इत्तफाक से इस मामले में फँस गया था और अब फँसा ही रहना चाहता था ताकि इस मामले की तह तक पहुँचकर असलियत को सामने ला सके।

-“यह तुम्हारी अपनी मर्जी है।” बवेजा ने कहा- “मैं इसमें क्या कर सकता हूँ?”

-“मुझे आपका सहयोग चाहिए।”

-“तुम जानते हो, मेरा दामाद पुलिस इन्सपैक्टर है। इस मामले की छानबीन वही कर रहा हैं।”

-“जी हाँ।”

-“तो फिर तुम्हें किसलिए सहयोग दूँ? यह पुलिस का काम है। वे कर रहे हैं।”

-“पुलिस वाले चौबीसों घंटे इसी केस पर काम नहीं कर सकते। उनके ऊपर और भी बहुत सी जिम्मेदारियाँ हैं।”

-“और तुम खुद को उनसे ज्यादा काबिल समझते हो।”

-“तजुर्बेकार और हौसलामंद भी।”

-“मुझे बेवजह सरदर्दी मोल लेने का कोई शौक नहीं है। मेरा अपना कोई नुकसान अभी तक नहीं हुआ है। ट्रक और उस पर लदा माल दोनों इंश्योर्ड थे। अगर ट्रक नहीं मिला तो मैं बीमा कंपनी से क्लेम करके उसकी कीमत वसूल कर लूँगा।”

-“लेकिन आपकी साख का क्या होगा? जो लोग आपकी कंपनी से माल भेजते हैं उन पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। आपकी कंपनी बदनाम हो सकती है।”
 
बवेजा ने चाँदी जैसे बालों वाला अपना सर हिलाया।

-“ओह, समझा। तुम सैनी से मिल चुके हो।”

-“उसका इससे ताल्लुक क्या है?”

-“ट्रक में भरा माल उसका ही था।”

-“क्या माल था?”

-“विस्की की बोतलें।”

-“यानि उस ट्रक लोड विस्की का मालिक वही है?”

-“एक मायने में।”

-“कैसे?”

-“डिस्ट्रीब्युटर्स ने माल उसी के पास भेजा था।”

-“लेकिन माल उस तक नहीं पहुँचा। इस सूरत में वो नुकसान किसको भरना पड़ेगा?”

-“मुझे।”

-“लेकिन आपने तो कहा है माल इंश्योर्ड था।”

-“सिर्फ अस्सी परसैंट। बीस परसैंट मुझे अपनी जेब से भरना होगा।”

-“अंदाजन कितनी रकम बनेगी?”

-“तीन लाख चालीस हजार।”

-“मैं आपकी यह रकम बचा सकता हूँ।”

-“कैसे?”

-“मुझे जानकारी देकर।”

-“माल वापस दिलाकर।”

-“बदले में मुझे क्या करना होगा?”

-“मेरे साथ सहयोग।”

-“कैसे?”

-“इस सबसे तुम्हें क्या फायदा होगा?”

-“कुछ नहीं। मैं खुराफाती आदमी हूँ। ऐसे झमेलों में पड़ना और उनसे निकलना मेरा शौक और धंधा दोनों हैं?”
-“मुझे कुछ खर्चा तो नहीं करना होगा?”

-“बिल्कुल नहीं। अलबत्ता जरूरत पड़ने पर आपको यह जरूर कहना होगा कि इस मामले में आप मेरी मदद ले रहे हैं।”

बूढ़ा बवेजा धूर्ततापूर्वक मुस्कराया।

-“मुझे मंजूर है। आओ।”

-“राज उसके साथ लिविंग रूम में पहुँचा। वहाँ मौजूद फर्नीचर समेत हरएक चीज पर जमी धूल की परत से जाहिर था हफ्तों से झाड़ पोंछ नहीं की गई थी। दीवार पर टंगी दोनाली बंदूक ही एक ऐसी चीज थी जिसे साफ कहा जा सकता था।

वह दीवान पर बैठ गया।

-“आप बड़े ही होशियार बिजनेसमैन हैं।” राज कुर्सी पर बैठता हुआ बोला- “पैसा खर्चना नहीं चाहते।
हालांकि आपका ड्राइवर मारा गया, ट्रक गायब है और बेटी का भी पता नहीं चल रहा है।”

-“कौन सी बेटी की बात कर रहे हो?”
 
-“मीना की। वह गायब है।”

-“तुम पागल हो। वह सैनी के मोटल में काम करती है।”

-“अब नहीं कर रही। मिसेज सैनी के मुताबिक वह पिछले शुक्रवार से गायब है। हफ्ते भर से उसकी शक्ल भी उन्होने नहीं देखी।”

-“ये बातें मुझे क्यों नहीं बताई जातीं?” वह कुपित स्वर में चिल्लाया- “रंजना! कहाँ मर गई तुम?”
वह एप्रन पहने दरवाजे में प्रगट हुई।

-“क्या बात है, पापा? मैं किचिन में सफाई कर रही थी।” अपने पिता को देखती हुई यूँ हिचकिचाती सी अंदर आई मानों किसी दरिंदे की मांद में आ गई थी- “घर की हालत कबाड़ख़ाने जैसी हो रही है।”

-“घर की हालत को गोली मारो। यह बताओ तुम्हारी बहन कहां भाग गई? वह फिर किसी मुसीबत में फँस गई है?”
-“मीना मुसीबत में?”

-“यही तो मैं तुमसे पूछ रहा हूँ। मुझसे ज्यादा वह तुमसे मिलती है। शहर में हर कोई मेरे मुक़ाबले में उससे ज्यादा मिलता है मेरे अलावा बाकी सबको उसकी खबर रहती है।”

-“अगर आपको उसकी खबर नहीं रहती या वह आपसे नहीं मिलती तो इसमें आपका ही कसूर है। मैं सिर्फ इतना जानती हूँ किसी मुसीबत में वह नहीं है।”

-“तुम हाल में उसे मिली थीं?”

-“इस हफ्ते तो नहीं।”

-“फिर कब मिली थी।?”

-“पिछले हफ्ते।”

-“किस रोज?”

-“बुधवार को हमने लंच साथ ही लिया था।”

-“उसने नौकरी छोडने के बारे में कुछ कहा था?”

-“नहीं। क्या उसने नौकरी छोड़ दी?”

-“ऐसा ही लगता है।”

बवेजा उठकर कोने में रखे टेलीफोन उपकरण के पास पहुँचा और एक नंबर डायल किया।
रंजना ने व्याकुलतापूर्वक राज को देखा।

-“क्या मीना के साथ कुछ हो गया है?”

-“अभी ऐसा कोई नतीजा निकाल बैठना ठीक नहीं है। आपके पास मीना की कोई हाल में खींची गई फोटो है?”

-“मेरे घर में तो है। यहाँ है या नहीं मुझे नहीं पता। जाकर देखती हूँ।”

वह यूँ कमरे से निकली मानों वहाँ उसका दम घुट रहा था। बवेजा रिसीवर रखकर असहाय भाव से हाथ फैलाए राज की ओर पलटा।

-“उसके फ्लैट से कोई जवाब नहीं मिल रहा। या तो वहाँ कोई नहीं है या फिर फोन खराब है। क्या सैनी को भी पता नहीं मीना कहाँ है?”

-“उसका कहना है, नहीं।”

-“तुम समझते हो। वह झूठ बोल रहा है?”

-“उसकी पत्नि तो यही समझती है।”

-“अब बरसों बाद उसकी आँखें खुली है। वह आदमी हमेशा उसे बेवकूफ बनाता रहा है।”

-“मुझे नहीं मालूम। वैसे यह सैनी है क्या चीज?”
 
-“मेरी राय में तो फ्रॉड है। दसेक साल पहले शहर में आया था। एयर फोर्स में पब्लिक रिलेशन्स ऑफिसर जैसा कुछ हुआ करता था। उन दिनों जवान था। उसकी यूनिफार्म की वजह से बहुत सी लड़कियाँ उसकी ओर खिंच गई थीं। मीना भी उन्हीं में से एक थी।” अचानक वह यूँ खामोश हो गया मानों उसे लगा की बहुत ज्यादा बोल गया था। फिर जल्दी से बोला- “जिस लड़की से उसने शादी की वह रिटायर्ड जज चन्द्रकांत सक्सेना की बेटी थी। जज का परिवार शहर के सबसे इज्जतदार परिवारों में से था। लेकिन सैनी ने उसकी इकलौती लड़की को फँसाकर अपने इशारों पर नचाना शुरू कर दिया। शादी के एक साल बाद ही उसने जज का फार्म बेच दिया और रीयल एस्टेट के धंधे में लग गया। फिर उसमें मोटा नुकसान उठाने के बाद शराब का थोक व्यापारी बन गया फिर मोटल का बिजनेस शुरू कर दिया। वो भी अब जल्दी ही बंद होने वाला है। असलियत यह है बिजनेस की कोई समझ उसे नहीं है। जब उसने शुरुआत की थी मैंने कह दिया था छह-सात साल से ज्यादा नहीं टिक पाएगा। लेकिन वह नौ साल टिक गया।”

-“उसकी माली हालत अब कैसी है?”

-“सुना है, काफी खराब है।”

-“ऐसे आदमी द्वारा करीब बीस लाख की शराब का आर्डर दिया जाना अपने आपमें बहुत बड़ी बात है।”

-“बेशक है।”

-“डिस्ट्रीब्यूटर्स ने उसे इतना माल सप्लाई कैसे करा दिया?”

-“उसके रसूखों की वजह से। खैर, मुझे कोई मतलब इससे नहीं है। मेरा काम माल ढोना है।”

-“सैनी के लिए माल ढोने का काम आप ही करते है?”

-“हाँ।”

-“क्या वह जानता था आपका कौन सा ड्राइवर उसका माल लाएगा?”

-“मेरे ख्याल से तो जानता था। क्योंकि मनोहर हमारा सबसे कुशल और भरोसेमंद ड्राइवर था। इतनी कीमत के माल को सिर्फ वही पूरी हिफाजत के साथ ला सकता था।” बवेजा ने उसे घूरा- “तुम कहना क्या चाहते हो? क्या तुम समझते हो उसने खुद ही अपनी विस्की को हाईजैक करा लिया?”

-“इस संभावना से इंकार तो नहीं किया जा सकता।”

-“अगर ऐसा हुआ तो मैं उस हरामजादे की तिक्का बोटी कर दूँगा।”

-“इतनी जल्दी ताव खाने की जरूरत नहीं है।”

-“मैं यकीनी तौर पर जानना चाहता हूँ।”

-“और तथ्य इकट्ठा करने के बाद बता दूँगा।” राज ने कहा- “अब मैं आपकी बेटी मीना के बारे में कुछ जानना चाहता हूँ।”

-“क्या?”
-“वह पहले भी कभी मुसीबत में पड़ी है?”

-“हाँ। लेकिन कोई सीरियस बात नहीं थी।” वबेजा सफाई देता हुआ सा बोला- “मीना की माँ उसके बचपन में ही मर गई थी। मैंने और रंजना ने उसकी परवरिश में कोई कमी बाकी नहीं छोड़ी। लेकिन हर वक्त उस पर निगाह हम नहीं रख सकते थे। ज्यादा पाबंदियाँ भी हमने उस पर नहीं लगाईं। जब वह दसवीं क्लास में थी आजाद ख्याल और तेज रफ्तार से ज़िंदगी जीने में यकीन रखने वाले कुछेक लड़के लड़कियों के साथ घर से भाग गई थी। फिर जब उसने कमाना शुरू किया तो कमाई से ज्यादा खर्च करने लगी। मुझे कई बार उसके उधार चुकाने पड़े।”

-“सैनी के लिए कब से काम कर रही है?”

-“तीन-चार साल से। मीना ने उसकी सेक्रेटरी के तौर पर शुरूआत की थी। फिर सैनी ने उसे मैनेजमेंट का कोर्स कराया ताकि वह मोटल की पूरी ज़िम्मेदारी संभाल सके। मैं चाहता था वह घर पर ही रहकर मेरे धंधे में हाथ बटाए- एकाउंट्स वगैरा संभालने में मदद करे मगर मीना को यह पसंद नहीं था। वह अपनी ज़िंदगी को अपने ही ढंग से जीना चाहती थी।”

-“वह कैसे अपनी ज़िंदगी गुजारती है?”

-“यह मुझसे मत पूछो।” बवेजा गहरी सांस लेकर बोला- “मीना सोलह साल की उम्र में ही घर छोड़ गई थी। तब से मेरे साथ उसकी मुलाकत तभी होती है जब उसे किसी चीज की जरूरत होती है।” संक्षिप्त मौन के पश्चात बोला- “मीना ने कभी मेरी परवाह नहीं की। दोनों बहनों में से किसी ने भी नहीं की। महीने में एक बार रंजना मुझसे मिलने चली आती है। शायद उसके पति ने उसे ऐसा कह रखा है ताकि मेरे मरने के बाद वह मेरा बिजनेस जायदाद वगैरा हासिल कर सके। लेकिन इसके लिए उस हरामजादे को लंबा इंतजार करना होगा।” उसका स्वर ऊँचा हो गया- “मैं आसानी से मरने वाला नहीं हूँ। पूरे सौ साल जिऊंगा।”

-“कांग्रेचुलेशन्स।”

-“तुम इसे मजाक समझ रहे हो?”

-“जी नहीं।”

-“भले ही तुम इसे मजाक समझो लेकिन असलियत यह है मेरे परिवार में पिछली तीन पुश्तों से कोई भी सौ साल से कम नहीं जिया। मैं भी सौ साल ही जीने का इरादा रखता हूँ।” अचानक वह फिर मीना का जिक्र ले आया- “क्या मीना का इस मामले से कोई संबंध है?”

-“हो सकता है।”

-“कैसे?”

-“वह सैनी से जुड़ी है और मैंने सुना है मनोहर से भी उसका गहरा रिश्ता था।”

-“तुमने गलत सुना है। यह ठीक है मनोहर उसके पीछे पड़ा हुआ था लेकिन मीना आँख उठा कर भी उसकी ओर नहीं देखती थी। वह मनोहर से डरती थी। पिछली गर्मियों में एक रात वह यहाँ आई। उसे ऐसी कोई चीज चाहिए थी...।”

अचानक बवेजा खामोश हो गया।
 
-“तुमने गलत सुना है। यह ठीक है मनोहर उसके पीछे पड़ा हुआ था लेकिन मीना आँख उठा कर भी उसकी ओर नहीं देखती थी। वह मनोहर से डरती थी। पिछली गर्मियों में एक रात वह यहाँ आई। उसे ऐसी कोई चीज चाहिए थी...।”

अचानक बवेजा खामोश हो गया।

-“कैसी चीज चाहिए थी?” राज ने टोका।

-“जिससे अपनी हिफाजत कर सके। मनोहर उसे परेशान कर रहा था। उसकी बेहूदा हरकतों ने मीना का बाहर निकलना दूभर कर दिया था। मैंने कहा मनोहर को नौकरी से निकालकर शहर से बाहर करा दूँगा। लेकिन किसी की रोजी रोटी पर लात मारने वाली बात मीना को पसंद नहीं आई। वह बहुत ही नरमदिल लड़की है, किसी का अहित नहीं चाहती। इसलिए मैंने उसे वही चीज दे दी जो वह माँग रही थीं।”

-“गन”

-“हाँ। चौंतीस कैलीबर की मेरी पुरानी रिवाल्वर थी। लेकिन अगर तुम समझते हो कि मीना ने उस रिवाल्वर से मनोहर को शूट किया था, तो गलत समझ रहे हो। मीना को गन सिर्फ इसलिए चाहिए थी, ताकि वह मनोहर से खुद को बचा सके। इससे ज्यादा अहमियत उसके लिए मनोहर की नहीं थी।”

-“लेकिन सैनी की है?”

बवेजा ने सर झुका लिया।

-“यह मैं नहीं जानता।”

-“क्या सैनी और मीना साथ-साथ रहते रहे हैं?”

-“ऐसा ही लगता है।” बवेजा के स्वर में कड़वाहट थी- “पिछले साल मैंने सुना था उसके फ्लैट का किराया सैनी ही दे रहा था।”

-“किसकी बातें कर रहे हो?” दरवाजे से आ पहुँची रंजना ने पूछा।

बवेजा ने कनखियों से उसे देखा।

-“सैनी की। मीना और सैनी की।”

रंजना तेजी से अंदर आई।

-“यह झूठ है। इस तरह का झूठ बोलते हुए आपको खुद पर शर्म आनी चाहिए। इस शहर के लोग किसी के बारे में कुछ भी कह सकते हैं। कहते रहते हैं।”

-“मुझे भी शर्म आती है लेकिन अपने आप पर नहीं। मैं इसमें कर ही क्या सकता था। मीना को रोक सकने का कोई तरीका मेरे पास नहीं था।”

-“यह सब बकवास है।” रंजना तीव्र स्वर में बोली- “किसी शादीशुदा आदमी से रिश्ता कायम करने वाली लड़की मीना नहीं है।”

-“यह सिर्फ तुम कहती हो।” बवेजा बोला- “मैंने कुछ और ही सुना है।”

-“अपनी गंदी जुबान को बंद रखो।” रंजना गुर्राई- “आपकी तमाम हरकतों के बावजूद मीना एक अच्छी लड़की है। मैं जानती हूँ, उसे खराब करने की कोशिश खुद आपने शुरू की थी...।”

बवेजा की गर्दन की नसें तन गईं। चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा।

-“तुम अपनी जबान पर काबू रखो।”

दोनों नफरत से एक-दूसरे को घूर रहे थे।

बवेजा किसी भी क्षण हाथ उठाने के लिए तैयार था। सहमी खड़ी रंजना ने अपनी एक बांह अपने बचाव के लिए उठा रखी थी। उसके ऊपर उठे हाथ में एक फोटो थी।

बवेजा ने फोटो उससे छीन लिया।

-“यह तुम्हें कहाँ मिली?”

-“आपकी ड्रेसिंग टेबल में रखा था।”

-“तुम मेरे कमरे से दूर ही रहा करो।”

-“आइंदा ध्यान रखूंगी। मुझे भी उसकी बदबू पसंद नहीं है।” बवेजा फोटो को गौर से देखने लगा।

-“मुझे भी दिखाइए।” राज ने कहा।

उसने बेमन से फोटो दे दी।

फोटो में समुद्रतट पर एक लड़की चट्टान पर बैठी हंस रही थी- टूपीस बिकनी पहने। उसने अपनी लंबी सुडौल टाँगे यूँ पकड़ी हुई थीं मानों उनसे बेहद प्यार था। उसके नैन-नक्श रंजना से मिलते थे। इस फर्क के साथ की वह रंजना से ज्यादा खूबसूरत थी। लेकिन उस युवती से जरा भी वह नहीं मिलती थी जिसे राज ने सैनी के साथ देखा था।

-“यह मीना की फोटो है?”

-“हाँ।” रंजना ने जवाब दिया।

-“उसकी उम्र कितनी है?”

-“मुझसे सात साल छोटी है और मैं....वह पच्चीस की है।”

-“फोटो हाल की ही है?”

-“कौशल ने पिछली गर्मियों में बीच पर खींची थी।” कहकर रंजना ने सर्द निगाहों से अपने पिता को घूरा- “मैं नहीं जानती थी आपके पास भी इसका एक प्रिंट है।”
 
-“ऐसी बहुत बातें हैं जो तुम नहीं जानती।”

-“अच्छा।”

-“बवेजा कोने में एक डेस्क के पास जाकर पाइप भरने लगा।

बाहर एक कार के इंजिन की आवाज सुनाई दी।

रंजना फौरन खिड़की के पास जा खड़ी हुई।

-“कौशल आ रहा है।”

लेकिन कार की हैडलाइट्स की रोशनी सीढ़ी पर पड़ती रही फिर मोड़ पर जाकर गायब हो गई।

-“यह कौशल नहीं कोई और था।” रंजना ने कहा। फिर अपने पिता से पूछा- “आपने बताया था न कि वह मुझे लेने आएगा?”

-“अगर उसे वक्त मिला। आज रात वह बहुत बिजी है।”

-“ठीक है। मैं टैक्सी से चली जाऊँगी। काफी देर हो गई है।”

-“अगर मुझे टेलीफोन के पास रहना नहीं होता तो मैंने तुम्हें छोड़ देना था। तुम भाड़ा खर्चने से बच जातीं। खैर, तुम मेरी पुरानी एम्बेसेडर ले जा सकती हो।”

-“मैं आपको ड्रॉप कर दूँगा, मिसेज चौधरी।” राज ने कहा।

–“हाँ, राज के साथ ही चली जाओ, रंजना। यह तो जा ही रहा है। मेरा पैट्रोल भी क्यों फूँकती हो।”

रंजना ने असहाय भाव से सहमति दे दी।

बवेजा पैट्रोल बचाकर खुश हो गया।

-“गुड नाइट पापा।”

-“गुड नाइट।”

किसी बूढ़े थके बैल की तरह बवेजा उसी कोने में खड़ा रहा।
******
 
राज रंजना के निर्देशानुसार फीएट ड्राइव कर रहा था। दोनों खामोश थे।

-“यह ठीक नहीं हुआ।” सहसा रंजना ने कहा।

–“क्या?”

-“मैं पापा से मिलने आई थी लेकिन हमेशा की तरह आज भी झगड़ा ही हुआ। हर बार कोई न कोई बात सामने आ जाती है। आज रात मीना की बात आ गई।”

-“वह काफी मुश्किल किस्म का आदमी है।”

-“हाँ, खासतौर पर हमारे साथ। मीना की तो उससे बिल्कुल नहीं बनती। और इसके लिए उस बेचारी को दोष नहीं दिया जा सकता। उसके पास तगड़ी वजह थी....।” अचानक वह चुप हो गई फिर विषय बदलकर बोली- “हम शहर के दूसरे सिरे पर रहते हैं। यहाँ से काफी दूर हैं।”

-“मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे भी मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता था।”

-“मेरी बहन के बारे में?”

-“हाँ।”

-“क्या?”

-“क्या वह पहले भी कभी इस तरह हफ्ते भर के लिए कहीं गई थी?”

-“दो तीन बार। लेकिन मुझे बताए बगैर नहीं।”

-“आप दोनों एक-दूसरी के बहुत ज्यादा करीब हैं।”

-“हम हमेशा रही हैं। उन बहनों की तरह हम नहीं हैं जो हर वक्त आपस में लड़ती रहती हैं। हालांकि वह मुझसे ज्यादा खूबसूरत है.....।”

-“मैं नहीं मानता।”

-“फिर भी यह असलियत नहीं बदल सकती कि मीना बहुत ज्यादा खूबसूरत है और मैं नहीं हूँ। लेकिन इससे कभी कोई खास फर्क नहीं पड़ा। वह ज्यादा जवान है और उससे मुकाबला करने की जरूरत मुझे कभी नहीं पड़ी। मैंने उसे बचपन से जवानी तक पहुँचते देखा है। बहन से ज्यादा एक आंटी की तरह उसकी परवरिश में मदद की है। मम्मी उसे पैदा करने के बाद ही चल बसी थी। तब से वह मेरी ही जिम्मेदारी रही है।”

-“क्या उसे संभालना मुश्किल था?”

-“बिल्कुल नहीं। इस मामले में मेरे पापा की बातों पर यकीन मत करना। मीना के प्रति उसके मन में पूर्वाग्रह है। मीना के खिलाफ जो भी वह सुनता है उस पर आँख मीचकर यकीन कर लेता है। मीना और मिस्टर सैनी के बारे में जो बेहूदा बकवास उसने की थी वो महज अफवाह है। कोई सच्चाई उसमें नहीं है।”

-“आपको पूरा यकीन है?”

-“बिल्कुल। अगर यह सच होता तो मुझे भी पता चल जाना था। सच्चाई सिर्फ इतनी है मीना मिस्टर सैनी के लिए काम करती थी।”

मेन रोड के चौराहे पर लाल बत्ती पाकर राज ने प्रतिक्षारत अन्य वाहनों की कतार के पीछे फीएट रोक दी।

-“इसी सड़क पर सीधे चलना।” रंजना ने कहा- “जब मुड़ना होगा मैं बता दूँगी।”

लाइट ग्रीन हो गई।

-“आपकी बहन का फ्लैट कहाँ है?” राज ने कार आगे बढ़ाते हुए पूछा।

-“यहाँ से पास ही है। गिरिजा स्ट्रीट 6, रोज एवेन्यु।”

-“बाद में मैं वहाँ जा सकता हूँ। आपके पास फ्लैट की चाबी तो नहीं होगी?”

-“नहीं, मेरे पास नहीं है। आपको चाबी किसलिए चाहिए?”

-“मैं फ्लैट की हालत और मीना की चीजें देखना चाहता हूँ। उससे कुछ पता चल सकता है वह कहाँ गई और क्यों गई?”

-“आई सी। वहाँ का केअर टेकर आपको फ्लैट दिखा सकता है।”

-“आपको तो इसमें कोई एतराज नहीं है?”

-“बिल्कुल नहीं।” रंजना ने कुछेक सेकंड खामोश रहने के बाद पूछा-“आपके विचार से मीना कहाँ गई हो सकती है?”

-“मैं खुद आप से पूछने वाला था। मुझे कोई आइडिया नहीं है बशर्ते कि मीना और सैनी के बारे में आपकी राय गलत नहीं है।”

-“मेरी राय गलत नहीं हो सकती है।” वह दो टूक स्वर में बोली “आप बार-बार इसी बात को क्यों उठा रहे हैं?”

-“जब कोई औरत इस ढंग से गायब हो जाती है तो सबसे पहले उन्हीं लोगों को चैक किया जाता है जो उससे जुड़े होते हैं- खासतौर पर आदमी। उसकी ज़िंदगी में आए आदमियों के बारे में बताइए।”

-“मीना दर्जनो आदमियों के साथ घूमती फिरती थी।” वह तीव्र स्वर में बोली- “उन सबका हिसाब मैं नहीं रखती।”
 
राज ने उसके लहजे में ईर्ष्या का पुट स्पष्ट नोट किया।

–“क्या वह उनमें से किसी के साथ भाग गई हो सकती है?”

-“आपका मतलब है शादी करने के इरादे से?”

-“हाँ।”

-“मुझे नहीं लगता। किसी भी आदमी पर इस हद तक भरोसा करने वाली लड़की वह नहीं है।”

-“अजीब बात है।”

-“आपको सिर्फ इसलिए अजीब लगती है क्योंकि आप मेरी बहन को नहीं जानते। मीना बेहद आजाद ख्यालात रखने वाली उन लड़कियों में से है जो ज़िंदगी भर शादी न करने का पक्का फैसला कर चुकी होती हैं।”

-“आपके पिता ने बताया था वह सोलह साल की उम्र में घर छोड़ गई थी। इसका मतलब है करीब दस साल से वह अकेली ही रह रही है।”

-“नहीं। यह सही है करीब दस साल पहले मीना उसे छोडकर चली आई थी साब....उन दोनों के बीच कुछ फसाद हुआ। कौशल और मैंने तब उसे उसकी पढ़ाई खत्म होने तक अपने पास रखा था। फिर उसे जॉब मिल गया और वह अकेली रहने लगी। हमने तब भी उसे अपने साथ रखने की कोशिश की थी लेकिन जैसा कि मैंने बताया वह बहुत ही आजाद ख्याल है।”

-“आपके पिता के साथ उसका क्या फसाद हुआ था? आपने ऐसा कुछ कहा था कि मीना को खराब करने की शुरुआत उसी ने की थी।”

-“मुझे मजबूरन कहना पड़ा। उसने मीना के साथ बड़ी ही कमीनी हरकत की थी। अब यह मत पूछना हरकत क्या थी।” भावावेश के कारण उसका गला रुँध गया-“इस शहर के ज़्यादातर आदमी औरतों के मामले में बिल्कुल जंगली हैं। लड़कियों के पलने बढ़ने के लिए यह जगह नर्क से कम नहीं है। एकदम जंगलियों के बीच रहने जैसी जगह है।”

-“इतने बुरे हालात है?”

-“हाँ।” अचानक वह चिल्लाई- “मुझे इस शहर से नफरत है। मैं जानती हूँ यह कहना खौफनाक है लेकिन मैं अक्सर भगवान से प्रार्थना करती हूँ एक इतना भयंकर तूफान या भूचाल आए कि सारा शहर नष्ट हो जाए।”

-“क्योंकि तुम्हारी बहन के साथ तुम्हारे पिता का फसाद हुआ था?”

-“मैं अपनी बहन या बाप के बारे में नहीं सोच रही हूँ।”

राज ने उस पर निगाह डाली। एकदम सीधी तनी बैठी वह शून्य में ताकती सी नजर आ रही थी।

कुछ देर बाद तनिक झुककर उसने राज की बांह पर हाथ रख दिया।
-“यहाँ से बायीं ओर लेना। आयम सॉरी....दरअसल अपने बाप से मिलकर मैं बहुत ज्यादा परेशान हो जाती हूँ।”

पहाड़ी घुमावदार सड़क पर कार नीचे जाने लगी।

बढ़िया रिहाइशी इलाका था। जहां लोग अपनी गुजिश्ता ज़िंदगी की मामूली शुरुआत को भूलकर सिर्फ आने वाले सुनहरी वक्त की ओर ही देखते थे। अधिकांश कोठियाँ नई और आधुनिक थीं। वहाँ रहने वालों की संपन्नता की प्रतीक।

रंजना के निर्देशानुसार ड्राइव करते राज ने अंत में जिस कोठी के समुख कार रोकी वो अंधेरे में डूबी खड़ी थी।
रंजना चुपचाप बैठी सामने देख रही थी।

-“आप यहाँ रहती हैं?” राज ने टोका।

-“हाँ। मैं यहाँ रहती हूँ। वह पीड़ित स्वर में बोली- “लेकिन अंदर जाने से डर लगता है।”

-“डर? किससे?”

-“लोग किससे डरते हैं?”

-“आमतौर पर मौत से।”

-“लेकिन मुझे अंधेरे से डर लगता है। डाक्टरी भाषा में इसे निक्टोफ़ोबिया कहते हैं लेकिन नाम जान लेने से डर के अहसास में फर्क नहीं पड़ता।”

-“अगर आप चाहें तो मैं आपके साथ अंदर चल सकता हूँ।”

-“मैं यही चाहती हूँ।”

दोनों कार से उतरे।

रंजना उसकी बाँह थामें चल दी। बाँह यूँ थामी हुई थी मानों किसी आदमी का सहारा लेने में संकोच हो रहा था। लेकिन दरवाजे में उसका वक्षस्थल और कूल्हा राज से टकरा गए।

राज के हाथ अपने हाथों में पकड़कर रंजना ने उसे अंधेरे प्रवेश हाल में खींच लिया।

-“अब मुझे छोड़ना मत।”

-“छोड़ना पड़ेगा।”

मुझे अकेली मत छोड़ना प्लीज। बहुत डर लग रहा है। देखो मेरा दिल कितनी जोर से धड़क रहा है।”

उसने राज का हाथ अपनी छाती पर रखकर इतनी जोर से दबाया कि उसकी उँगलियाँ दोनों वक्षों के बीच गड़ गईं। उसका दिल सचमुच जोर-जोर से धड़क रहा था। इसकी वजह डर था या कुछ और वह नहीं समझ सका।

-“देखा तुमने?” राज के कान के पास मुँह करके वह फुसफुसाई- “कितना डर लग रहा है। मुझे कितनी ही रातें यहाँ अकेले गुजारनी पड़ती है।”
 
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