desiaks
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“अरे। अब तुम्हें क्या हुआ?” वह फिर चहकी।
"तू ऐसे मत बोला कर आलोका। मुझे कुछ कुछ होता है।"
“अच्छा। वह फिल्म वाला कुछ-कुछ होता है?"
"हां।"
“तो होने दो न जेंटलमैन । मुझे क्यों बता रहे हो?"
“समझो।” अजय उसे छेड़ने की गर्ज से बोला “तुम मेरे इतना करीब खड़ी हो। ऊपर से आज मेरे घर पर भी कोई नहीं है।”
“वैसे क्या तुम्हारा पूरा खानदान यहा रहता है?"
"नहीं। लेकिन नौकर-चाकर तो रहते ही हैं।"
"तो क्या हुआ?"
“समझो हसीन गुड़िया । अगर मैं अपने कंट्रोल से बाहर हो गया और मैं तुम पर झपट पड़ा तो जानती हो क्या होगा?"
"क्या होगा?” उसने निरी अंजान बनकर पूछा।
“तुम लुट जाओगी। तुम्हारे नारीत्व का सबसे कीमती गहना लुट जाएगा।”
अजय का ख्याल था कि वह जरूर बौखला जाएगी और फिर पता नहीं कैसा रिएक्ट करेगी।
लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ था।
“ओह तो यह बात है।” वह गहरी सांस खींचकर अपनी गरदन को खम देती हुई बोली “तुम मेरा इम्तहान लेना चाहते हो। तुम यह जानना चाहते हो कि फेरों से पहले मुझे तुम्हारा हमबिस्तर होना कबूल होगा या नहीं मैं अपना शरीर तुम्हारे हवाले करूंगी या नहीं?"
जिस बेबाकी से आलोका ने कहा था उसने पलभर के लिए
अजय को हड़बड़ा दिया। लेकिन वह फौरन ही संभल गया।
“ऐसा ही समझ लो।” वह भेदभरी मुस्कराहट के साथ बोला।
एक पल के लिए वह चुलबुली हसीना सोच में नजर आयी, फिर एकाएक उसकी ओर देखकर बोली “तुम बुद्धू हो जेंटलमैन।”
“वह कैसे?"
“मुझसे यह बहुत ही छोटी सी चीज तुमने मांगी है।” वह उसी बेबाकी से बोली “मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है। और अपनी ही चीज को कोई खुद से मांगता है क्या?"
“मानी कि अपना शरीर मुझे सौंपने में तुम्हें कोई ऐतराज नहीं है?” “आज काफी रोमांटिक मूड में मालूम पड़ते हो जेंटलमैन। अगर आजमाने का इरादा है तो मेरा यह मादक शरीर क्या चीज है, मेरी जिंदगी मांगकर देखो। फिर देखना मैं कैसे हंसते-हंसते लुटा दूंगी।"
अजय उसे देखता ही रह गया।
अपलक एकटक।
"हल्लो।” अब आलोका की बारी थी। वह उसे कोहनी से टहोकती हुई बोली “कहां खो गए जेंटलमैन।”
“त...तुम मुझे इतना चाहती हो?” अजय ने जज्बाती होकर पूछा। “चाहत और समुंदर, दोनों की गहराई नापना असंभव है जेंटलमैन।
फिर भी अगर तुम्हारे पास कोई पैमाना हो तो मेरी चाहत की गहराई नापकर दिखा देना। मुझे अपनी चाहत को अल्फाजों में पिरोना नहीं आता। लेकिन जब तुमने जिक्र छेड़ ही दिया है तो बस इतना जान लो, मैं केवल तुम्हारे लिए ही दुनिया में
आयी हूं। हम जियेंगे तो साथ और मरेंगे भी साथ।"
अजय अपने जज्बातों पर काबू न रख सका। वह झपटकर आगे बढ़ा और उसने आलोका को बांहों में भरकर अपनी छाती से भींच लिया।
कितनी ही देर तक आलोका अबोध बच्ची की तरह उसके सीने से लगी खड़ी रही, फिर एकाएक उसे शरारत सूझी।
"तू ऐसे मत बोला कर आलोका। मुझे कुछ कुछ होता है।"
“अच्छा। वह फिल्म वाला कुछ-कुछ होता है?"
"हां।"
“तो होने दो न जेंटलमैन । मुझे क्यों बता रहे हो?"
“समझो।” अजय उसे छेड़ने की गर्ज से बोला “तुम मेरे इतना करीब खड़ी हो। ऊपर से आज मेरे घर पर भी कोई नहीं है।”
“वैसे क्या तुम्हारा पूरा खानदान यहा रहता है?"
"नहीं। लेकिन नौकर-चाकर तो रहते ही हैं।"
"तो क्या हुआ?"
“समझो हसीन गुड़िया । अगर मैं अपने कंट्रोल से बाहर हो गया और मैं तुम पर झपट पड़ा तो जानती हो क्या होगा?"
"क्या होगा?” उसने निरी अंजान बनकर पूछा।
“तुम लुट जाओगी। तुम्हारे नारीत्व का सबसे कीमती गहना लुट जाएगा।”
अजय का ख्याल था कि वह जरूर बौखला जाएगी और फिर पता नहीं कैसा रिएक्ट करेगी।
लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ था।
“ओह तो यह बात है।” वह गहरी सांस खींचकर अपनी गरदन को खम देती हुई बोली “तुम मेरा इम्तहान लेना चाहते हो। तुम यह जानना चाहते हो कि फेरों से पहले मुझे तुम्हारा हमबिस्तर होना कबूल होगा या नहीं मैं अपना शरीर तुम्हारे हवाले करूंगी या नहीं?"
जिस बेबाकी से आलोका ने कहा था उसने पलभर के लिए
अजय को हड़बड़ा दिया। लेकिन वह फौरन ही संभल गया।
“ऐसा ही समझ लो।” वह भेदभरी मुस्कराहट के साथ बोला।
एक पल के लिए वह चुलबुली हसीना सोच में नजर आयी, फिर एकाएक उसकी ओर देखकर बोली “तुम बुद्धू हो जेंटलमैन।”
“वह कैसे?"
“मुझसे यह बहुत ही छोटी सी चीज तुमने मांगी है।” वह उसी बेबाकी से बोली “मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है। और अपनी ही चीज को कोई खुद से मांगता है क्या?"
“मानी कि अपना शरीर मुझे सौंपने में तुम्हें कोई ऐतराज नहीं है?” “आज काफी रोमांटिक मूड में मालूम पड़ते हो जेंटलमैन। अगर आजमाने का इरादा है तो मेरा यह मादक शरीर क्या चीज है, मेरी जिंदगी मांगकर देखो। फिर देखना मैं कैसे हंसते-हंसते लुटा दूंगी।"
अजय उसे देखता ही रह गया।
अपलक एकटक।
"हल्लो।” अब आलोका की बारी थी। वह उसे कोहनी से टहोकती हुई बोली “कहां खो गए जेंटलमैन।”
“त...तुम मुझे इतना चाहती हो?” अजय ने जज्बाती होकर पूछा। “चाहत और समुंदर, दोनों की गहराई नापना असंभव है जेंटलमैन।
फिर भी अगर तुम्हारे पास कोई पैमाना हो तो मेरी चाहत की गहराई नापकर दिखा देना। मुझे अपनी चाहत को अल्फाजों में पिरोना नहीं आता। लेकिन जब तुमने जिक्र छेड़ ही दिया है तो बस इतना जान लो, मैं केवल तुम्हारे लिए ही दुनिया में
आयी हूं। हम जियेंगे तो साथ और मरेंगे भी साथ।"
अजय अपने जज्बातों पर काबू न रख सका। वह झपटकर आगे बढ़ा और उसने आलोका को बांहों में भरकर अपनी छाती से भींच लिया।
कितनी ही देर तक आलोका अबोध बच्ची की तरह उसके सीने से लगी खड़ी रही, फिर एकाएक उसे शरारत सूझी।