desiaks
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तुम्हारी बातें हमारी समझ से बाहर हैं।”
तो मैं कहां कह रहा हूं कि मेरी बात को समझो। तुम जैसे नन्हे नादान जथूरा के साम्राज्य को नहीं जान सकते हैं। जो देखता है, वो ही समझता है। मात्र सुन-सुनकर जथूरा के बारे में नहीं जाना जा सकता। बोलो, जथूरा महान
| लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने एक दूसरे को देखा।
“बोलो। वहां मेरे खाते में इस बात की एंट्री हो जाएगी कि मेरे यहां सब ठीक चल रहा है। मैं ड्यूटी पर हूं।”
“बोल दे सपन।” लक्ष्मण दास ने मुंह बनाकर कहा-“ये हमारा यार बना हुआ है, तभी तो सब बातें बता रहा है।”
“इसने हमें नंगा करके सड़क पर घुमा दिया तो, तब भी कहना पड़ेगा। पहले तू बोल ।”
दोनों एक साथ बोलते हैं—बोलो...” । मोनो जिन्न मुस्कराकर कह उठा।।
“तुम दोनों बहुत अच्छे हो, जो मेरी बात मान जाते हो। चलो, अब मेरे पास आकर मेरी बांहें थाम लो। हमें यहां से रवाना होना है, जहां देवा मिन्नो, नगीना, नील सिंह, परसू, भंवर सिंह और त्रिवेणी मौजूद हैं।”
दोनों उठकर मोमो जिन्न के पास पहुंचे।
मोमो जिन्न ने दोनों बांहें फैला दीं। लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने उसकी एक-एक बांह थाम ली।
हम जा कहां रहे हैं?” सपन चड्ढा बोला।
वहां पहुंचकर देख लेना ।”
“हम कार पर नहीं जा सकते।”
वहां कार नहीं जाती।”
ऐसा कैसे हो सकता है?” लक्ष्मण दास कह उठा।
“वहां पहुंचोगे तो पता चल जाएगा। एक बार फिर बोलो, जथूरा महान है।”
जथूरा महान है।” दोनों फंसे स्वर में कह उठे। अगले ही पल, मोमो जिन्न के साथ-साथ लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा का शरीर भी धुंधला-सा पड़ने लगा। देखते-ही-देखते उनके शरीर जैसे हवा में घुलते गायब होते चले गए।
अब ऐसा लग रहा था जैसे कोई वहां था ही नहीं।
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जगमोहन और सोहनलाल कुएं में फंसे ऊपर देख रहे थे। ऊपर धूप और आसमान नजर आ रहा था, जबकि भीतर अंधेरा था। बहुत कम, बाहर की रोशनी नीचे पहुंच पा रही थी। ऊपर से आती रस्सी अभी तक नीचे लटक रही थी, जिसके साथ बाल्टी बंधी थी। वो अगर खींचते तो पूरी की पूरी रस्सी नीचे गिर जानी थी। उन्हें इंतजार था कि कोई कुएं पर आए और उन्हें बाहर निकाले। सोहनलाल जगमोहन को देखकर बोला।
“हम तो बुरे फंस गए।”
बेवकूफ हैं हम।” जगमोहन ने झल्लाकर कहा।
वो कैसे?” उसके शब्दों पर सोहनलाल मुस्करा पड़ा।
“वो मोना चौधरी नहीं थी, उसका बहरूप था। ये हम जानते थे। हमने उसे देखा तो, सोचने लगे कि उसका पीछा करके, बहुत बड़ा तीर मार रहे हैं जबकि हकीकत ये थी कि वो हमें फंसाने के लिए जानबूझकर हमारे सामने आई थी कि हम उसके पीछे जाएं और वो हमें इस तरह फंसा दे।”
जगमोहन ने कुढ़कर कहा-“जथूरा का कालचक्र सच में बहुत चालाक है।”
“अब तो जो होना था, जो चुका ।”
“मुझे आशंका है कि बंगले में देवराज चौहान, बांके और रुस्तम के साथ भी बुरी घटना पेश आई होगी।”
“ये जरूरी तो नहीं ।”
“जरूरी है। जथूरा का कालचक्र हर उसके लिए है, जो पूर्वजन्म से सम्बंध रखता है।” जगमोहन बोला।
“परंतु वो तो हम लोगों को गायब कर रहा था, अब हमें इस तरह फंसा क्यों दिया।” सोहनलाल ने कहा।
“क्या पता कालचक्र ने हमें क्या सोचकर कुएं में फंसाया है। जरूर इसके पीछे कोई बड़ी चाल है।” जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा-“मैं उस बुढ़िया को पहचान न सका। मैं क्या मेरी जगह कोई भी होता धोखा खा जाता। वो ही पहले मोना चौधरी के रूप में थी, जो बुढ़िया हमें मिली। मैं कुएं की मुंडेर पर हाथ रखे नीचे झांक रहा था कि कितनी आसानी से उसने मेरी दोनों टांगें उठाईं और मुझे नीचे फेंक दिया।”
“तेरे को तो फिर भी उसने इज्जत से फेंका।” सोहनलाल ने मुंह बनाया–“मुझे तो बच्चों की तरह उठाकर नीचे फेंक दिया।
ये तो अच्छा हुआ कि मैं तेरे ऊपर नहीं गिरा। मुझे तो अपने इस हाल पर तरस आ रहा है।”
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
“उधर देवराज चौहान, बांके, रुस्तम हमारा इंतजार कर रहे होंगे। शाम होने वाली है।”
“पता नहीं यहां कितनी देर रहना पड़ेगा। ऊपर कुएं पर कोई गांव वाला अभी तक पानी निकालने आया नहीं।”
तभी जगमोहन को अपने बेहद करीब से, धीमी-सी आवाज सुनाई दी।
“जग्गू।”
जगमोहन की नजर तेजी से कुएं में हर तरफ घूमी। परंतु कोई न दिखा।
“कौन है?" जगमोहन के होंठों से निकला।
“मैं वही हूँ जग्गू, जो तेरे को जथूरा के हादसों का पूर्वाभास करा रहा था।” आवाज पुनः सुनाई दी।
इस बार सोहनलाल ने भी उस आवाज को सुना।
कौन हो तुम?” ।
इस वक्त मैं तुझे अपने बारे में नहीं बता सकता।”
“क्यों?" ।
तुम कालचक्र के भीतरी हिस्से में आ फंसे हो। यहां मैंने अपना नाम बताया तो कालचक्र सुन लेगा।”
“तुम कालचक्र से डरते हो?”
“मैं नहीं जानता कि इसका क्या जवाब दें, परंतु मैं नहीं चाहता कि अभी कालचक्र मेरे बारे में जाने। वैसे तू मुझे अच्छी तरह से जानता है। मेरी आवाज सुनकर तू मुझे पहचान सकता है।” वो धीमी आवाज दोनों को सुनाई दे रही थी।
“तो मैं तुझे पहचान क्यों नहीं रहा?”
“अभी तेरे को पूर्वजन्म की याद नहीं आई। जब भी तेरे मस्तिष्क में पूर्वजन्म की यादें आएंगी, तू मुझे पहचान लेगा ।”
हमें यहां से बाहर निकलो।” जगमोहन ने कहा।
ये मेरे बस में नहीं। मैं सीधे-सीधे कालचक्र से नहीं टकरा सकता।”
तो तुम हमारे लिए क्या कर सकते हो?” ।
मैं तुम पर आने वाली मुसीबतों से तुम्हें बचा सकता हूं।” वो आवाज पुनः सुनाई दी–“तुम दोनों को कालचक्र, अपने भीतर निगलने वाला है। वहां तुम दोनों के लिए ढेरों खतरे सामने आएंगे। कोई भी खतरा तुम लोगों की जिंदगी ले लेगा। तब मेरे से जितनी सहायता हो सकेगी, करूंगा, तुम्हें बचाऊंगा।”
“आखिर हमारी मंजिल क्या है?” ।
“पूर्वजन्म में प्रवेश करना। लेकिन कालचक्र तुम दोनों को अपने भीतर समेट चुका है। तुम दोनों के सामने इतने खतरे आएंगे कि बच न सकोगे, अगर बच गए तो खुद को पूर्वजन्म के प्रवेश द्वार पर खड़े पाओगे। परंतु शायद बच न सकोगे।”
“ओह!” ।
लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूं। भरसक चेष्टा करूंगा कि तुम लोग कालचक्र से बचे रह सको।”
जगमोहन और सोहनलाल के चेहरे पर गम्भीरता के भाव थे।
“तुम मुझे जथूरा के हादसों का पूर्वाभास क्यों कराते रहे, अब तुम मेरी सहायता क्यों कर रहे हो?” । “वक्त आने पर तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब मिल जाएगा जग्गू। अभी इन बातों का जवाब देकर मैं कालचक्र के सामने अपना भेद नहीं खोलना चाहता। इस वक्त तुम लोग बहुत भारी खतरे में हो।” ।
“तुम सामने क्यों नहीं आते?”
नहीं आ सकता। ये ही बहुत बड़ी बात है कि मैं कालचक्र के भीतर पहुंचकर तुमसे बात कर रहा हूं।” ।
“ओह।”
अब मेरी बात ध्यान से सुनो। जल्द हीं तुम लोग कालचक्र के भीतरी हिस्से में पहुंचने वाले हो। ये बात मन से निकाल दो कि तुम लोग इस कुएं से बाहर निकल सकोगे। ये कुआं नहीं, कालचक्र का प्रवेश द्वार है। बाहर गांव वालों को ये कुआं नजर नहीं आता। क्योंकि ये मायावी है। कुछ ही देर में ये कुआं भी गायब हो जाएगा।”
“तुम तो हमारे में डर पैदा कर रहे हो।”
तो मैं कहां कह रहा हूं कि मेरी बात को समझो। तुम जैसे नन्हे नादान जथूरा के साम्राज्य को नहीं जान सकते हैं। जो देखता है, वो ही समझता है। मात्र सुन-सुनकर जथूरा के बारे में नहीं जाना जा सकता। बोलो, जथूरा महान
| लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने एक दूसरे को देखा।
“बोलो। वहां मेरे खाते में इस बात की एंट्री हो जाएगी कि मेरे यहां सब ठीक चल रहा है। मैं ड्यूटी पर हूं।”
“बोल दे सपन।” लक्ष्मण दास ने मुंह बनाकर कहा-“ये हमारा यार बना हुआ है, तभी तो सब बातें बता रहा है।”
“इसने हमें नंगा करके सड़क पर घुमा दिया तो, तब भी कहना पड़ेगा। पहले तू बोल ।”
दोनों एक साथ बोलते हैं—बोलो...” । मोनो जिन्न मुस्कराकर कह उठा।।
“तुम दोनों बहुत अच्छे हो, जो मेरी बात मान जाते हो। चलो, अब मेरे पास आकर मेरी बांहें थाम लो। हमें यहां से रवाना होना है, जहां देवा मिन्नो, नगीना, नील सिंह, परसू, भंवर सिंह और त्रिवेणी मौजूद हैं।”
दोनों उठकर मोमो जिन्न के पास पहुंचे।
मोमो जिन्न ने दोनों बांहें फैला दीं। लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने उसकी एक-एक बांह थाम ली।
हम जा कहां रहे हैं?” सपन चड्ढा बोला।
वहां पहुंचकर देख लेना ।”
“हम कार पर नहीं जा सकते।”
वहां कार नहीं जाती।”
ऐसा कैसे हो सकता है?” लक्ष्मण दास कह उठा।
“वहां पहुंचोगे तो पता चल जाएगा। एक बार फिर बोलो, जथूरा महान है।”
जथूरा महान है।” दोनों फंसे स्वर में कह उठे। अगले ही पल, मोमो जिन्न के साथ-साथ लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा का शरीर भी धुंधला-सा पड़ने लगा। देखते-ही-देखते उनके शरीर जैसे हवा में घुलते गायब होते चले गए।
अब ऐसा लग रहा था जैसे कोई वहां था ही नहीं।
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जगमोहन और सोहनलाल कुएं में फंसे ऊपर देख रहे थे। ऊपर धूप और आसमान नजर आ रहा था, जबकि भीतर अंधेरा था। बहुत कम, बाहर की रोशनी नीचे पहुंच पा रही थी। ऊपर से आती रस्सी अभी तक नीचे लटक रही थी, जिसके साथ बाल्टी बंधी थी। वो अगर खींचते तो पूरी की पूरी रस्सी नीचे गिर जानी थी। उन्हें इंतजार था कि कोई कुएं पर आए और उन्हें बाहर निकाले। सोहनलाल जगमोहन को देखकर बोला।
“हम तो बुरे फंस गए।”
बेवकूफ हैं हम।” जगमोहन ने झल्लाकर कहा।
वो कैसे?” उसके शब्दों पर सोहनलाल मुस्करा पड़ा।
“वो मोना चौधरी नहीं थी, उसका बहरूप था। ये हम जानते थे। हमने उसे देखा तो, सोचने लगे कि उसका पीछा करके, बहुत बड़ा तीर मार रहे हैं जबकि हकीकत ये थी कि वो हमें फंसाने के लिए जानबूझकर हमारे सामने आई थी कि हम उसके पीछे जाएं और वो हमें इस तरह फंसा दे।”
जगमोहन ने कुढ़कर कहा-“जथूरा का कालचक्र सच में बहुत चालाक है।”
“अब तो जो होना था, जो चुका ।”
“मुझे आशंका है कि बंगले में देवराज चौहान, बांके और रुस्तम के साथ भी बुरी घटना पेश आई होगी।”
“ये जरूरी तो नहीं ।”
“जरूरी है। जथूरा का कालचक्र हर उसके लिए है, जो पूर्वजन्म से सम्बंध रखता है।” जगमोहन बोला।
“परंतु वो तो हम लोगों को गायब कर रहा था, अब हमें इस तरह फंसा क्यों दिया।” सोहनलाल ने कहा।
“क्या पता कालचक्र ने हमें क्या सोचकर कुएं में फंसाया है। जरूर इसके पीछे कोई बड़ी चाल है।” जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा-“मैं उस बुढ़िया को पहचान न सका। मैं क्या मेरी जगह कोई भी होता धोखा खा जाता। वो ही पहले मोना चौधरी के रूप में थी, जो बुढ़िया हमें मिली। मैं कुएं की मुंडेर पर हाथ रखे नीचे झांक रहा था कि कितनी आसानी से उसने मेरी दोनों टांगें उठाईं और मुझे नीचे फेंक दिया।”
“तेरे को तो फिर भी उसने इज्जत से फेंका।” सोहनलाल ने मुंह बनाया–“मुझे तो बच्चों की तरह उठाकर नीचे फेंक दिया।
ये तो अच्छा हुआ कि मैं तेरे ऊपर नहीं गिरा। मुझे तो अपने इस हाल पर तरस आ रहा है।”
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
“उधर देवराज चौहान, बांके, रुस्तम हमारा इंतजार कर रहे होंगे। शाम होने वाली है।”
“पता नहीं यहां कितनी देर रहना पड़ेगा। ऊपर कुएं पर कोई गांव वाला अभी तक पानी निकालने आया नहीं।”
तभी जगमोहन को अपने बेहद करीब से, धीमी-सी आवाज सुनाई दी।
“जग्गू।”
जगमोहन की नजर तेजी से कुएं में हर तरफ घूमी। परंतु कोई न दिखा।
“कौन है?" जगमोहन के होंठों से निकला।
“मैं वही हूँ जग्गू, जो तेरे को जथूरा के हादसों का पूर्वाभास करा रहा था।” आवाज पुनः सुनाई दी।
इस बार सोहनलाल ने भी उस आवाज को सुना।
कौन हो तुम?” ।
इस वक्त मैं तुझे अपने बारे में नहीं बता सकता।”
“क्यों?" ।
तुम कालचक्र के भीतरी हिस्से में आ फंसे हो। यहां मैंने अपना नाम बताया तो कालचक्र सुन लेगा।”
“तुम कालचक्र से डरते हो?”
“मैं नहीं जानता कि इसका क्या जवाब दें, परंतु मैं नहीं चाहता कि अभी कालचक्र मेरे बारे में जाने। वैसे तू मुझे अच्छी तरह से जानता है। मेरी आवाज सुनकर तू मुझे पहचान सकता है।” वो धीमी आवाज दोनों को सुनाई दे रही थी।
“तो मैं तुझे पहचान क्यों नहीं रहा?”
“अभी तेरे को पूर्वजन्म की याद नहीं आई। जब भी तेरे मस्तिष्क में पूर्वजन्म की यादें आएंगी, तू मुझे पहचान लेगा ।”
हमें यहां से बाहर निकलो।” जगमोहन ने कहा।
ये मेरे बस में नहीं। मैं सीधे-सीधे कालचक्र से नहीं टकरा सकता।”
तो तुम हमारे लिए क्या कर सकते हो?” ।
मैं तुम पर आने वाली मुसीबतों से तुम्हें बचा सकता हूं।” वो आवाज पुनः सुनाई दी–“तुम दोनों को कालचक्र, अपने भीतर निगलने वाला है। वहां तुम दोनों के लिए ढेरों खतरे सामने आएंगे। कोई भी खतरा तुम लोगों की जिंदगी ले लेगा। तब मेरे से जितनी सहायता हो सकेगी, करूंगा, तुम्हें बचाऊंगा।”
“आखिर हमारी मंजिल क्या है?” ।
“पूर्वजन्म में प्रवेश करना। लेकिन कालचक्र तुम दोनों को अपने भीतर समेट चुका है। तुम दोनों के सामने इतने खतरे आएंगे कि बच न सकोगे, अगर बच गए तो खुद को पूर्वजन्म के प्रवेश द्वार पर खड़े पाओगे। परंतु शायद बच न सकोगे।”
“ओह!” ।
लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूं। भरसक चेष्टा करूंगा कि तुम लोग कालचक्र से बचे रह सको।”
जगमोहन और सोहनलाल के चेहरे पर गम्भीरता के भाव थे।
“तुम मुझे जथूरा के हादसों का पूर्वाभास क्यों कराते रहे, अब तुम मेरी सहायता क्यों कर रहे हो?” । “वक्त आने पर तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब मिल जाएगा जग्गू। अभी इन बातों का जवाब देकर मैं कालचक्र के सामने अपना भेद नहीं खोलना चाहता। इस वक्त तुम लोग बहुत भारी खतरे में हो।” ।
“तुम सामने क्यों नहीं आते?”
नहीं आ सकता। ये ही बहुत बड़ी बात है कि मैं कालचक्र के भीतर पहुंचकर तुमसे बात कर रहा हूं।” ।
“ओह।”
अब मेरी बात ध्यान से सुनो। जल्द हीं तुम लोग कालचक्र के भीतरी हिस्से में पहुंचने वाले हो। ये बात मन से निकाल दो कि तुम लोग इस कुएं से बाहर निकल सकोगे। ये कुआं नहीं, कालचक्र का प्रवेश द्वार है। बाहर गांव वालों को ये कुआं नजर नहीं आता। क्योंकि ये मायावी है। कुछ ही देर में ये कुआं भी गायब हो जाएगा।”
“तुम तो हमारे में डर पैदा कर रहे हो।”