desiaks
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राज ने सतीश को यह नहीं बता रखा था कि उस रात को खंजर से हमला करने वाले का शिंगूरा से कोई सम्बन्ध था। फिर भी सतीश का ख्याल था कि उस हमले की तह में जरूर शिंगूरा का ही हाथ था। उसे इस बात का सन्देह था और राज को विश्वास। \
कई दिन तक न तो कोई नई घटना घटी थी और न ही राज को कोई कदम अपनी तरफ से उठाने के लिए कोई रास्ता ही मिला था। लेकिन एक दिन उसके हाथ अनापेक्षित तौर पर एक सुराग लग ही गया।
राज सुबह दस बजे के करीब डॉक्टर सावंत के यहां जा रहा था। क्योंकि दिन का वक्त था और राज ने रास्ते में से कई चीजें खरीदनी थी, इसलिए कार वो घर ही छोड़ आया था।
फोर्ट एरिया की एक दुकान से कैमरा फिल्म का रोल खरीद कर बाहर निकला तो सामने की तरफ कुछ दूरी पर एक कार आगे आकर रूकी और उसमें से उतरकर शिंगूरा कपड़ों की एक दुकान में चलगी गई।
शिंगूरा को देखकर राज ठिठक गया था। अचानक एक ख्याल राज के जेहन में उभरा कि क्यों न शिंगूरा की पीछा करके देखा जाए कि वो कहां-कहां जाती है और क्या-क्या करती
राज ने डॉक्टर सावंत के यहां जाने का विचार छोड़ दिया और शिंगूरा का पीछा करने के लिए तैयार हो गया। उसने एक खाली टैक्सी रोकी और उसके ड्राईवर को समझा दिया कि उसे क्या करना है। और यह भी कह दिया कि अगर वो अपने मकसद में कामयाब रहा तो ड्राईवर को किराये कि अलावा इनाम भी देगा।
ड्राईवर बम्बई का श्याना था, इसलिए वो फौरन समझ भी गया और वह धूर्तता पूर्ण ढंग से मुस्कराकर सहमत भी हो गया। उसने टैक्सी एक कोने में खड़ी कर ली और स्टेयरिंग पर सिर रख कर बैठ गया। लेकिन उसकी गिद्ध निगाहें शिंगूरा की काली कार पर ही जमी हुई थीं जो राज ने उसे दिखाई थी।
करीब बीस मिनट बार शिंगूरा उस दुकान से बाहर निकली, उसके हाथ में छोटा सा एक पैकेट था। वो धीरे-धीरे बड़ी नजाकत से चलती हुई आकर अपनी कार में बैठ गई।
कार रवाना हुई तो राज का ड्राईवर भी चौंकन्ना हो गया और उसने एक उचित फासला दरम्यान में रखकर शिंगूरा की कार का पीछा करना शुरू कर दिया।
दोनों गाड़ियों आगे पीछे कोई बीस मिनट तक शहर की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रहीं। राज हैरान था कि वो जा कहा रही है?
फिर अचानक प्लाजा होटल के सामने शिंगूरा की गाड़ी रुक गई और शिंगूरा कारे से उतर कर लहराती-बल खाती हुई होअल में दाखिल हो गई।
"वो तो होटल में चली गई....।" टैक्सी ड्राईवर ने भी टैक्सी रोककर पीछे मुड़ते हुए कहा।
"तो हम इंतजार करते हैं।” राज ने कहा, और शिंगूरा की वापसी का इंतजार करने लगा।
लेकिन जब आधे घंटे तक भी शिंगूरा बाहर न आई तो राज ने ड्राईवर से कहा
"मैं गाड़ी में बैठा हूं, तुम जरा जाकर पता लगाने की कोशिश करो कि वो अन्दर क्या कर रही है...।'
राज ने जेब से पचास-पचास के दो नोट निकाले और ड्राईवर की तरफ बढ़ा कर बोला
"होटल के किसी वेटर को बीस-बीस रुपए देकर अपने तीरके से पूछोगे तो सारी कथा कह देगा....।"
"म....मगर साहब..."
"अरे, कुछ अगर-मगर नहीं, डरो मत। मैं बैठा हूं न यहां।" राज ने उसे तसल्ली दी।
ड्राईवर ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे सब समझ गया हो। नोट लेकर टहलता हुआ वो होटल की तरफ बढ़ गया।
पूरा एक घंटा राज को इन्तजार करते हुए गुजर गया, न तो शिंगूरा होटल से निकली, न ही टैक्सी ड्राईवर ही वापिस आया। अकेले बैठे-बैठे गेट पर निगाहों जमाए राज उकता गया।
आखिर राम-राम करके टैक्सी ड्राईवर बाहर निकला और तेज-तेज कदम उठाता आया और टैक्सी की अपनी सीट पर बैठ कर बोला
"मैंन सब मालूम कर लिया है...लेकिन अब वो बाहर आ रही है। इसलिए कथा आराम से कहीं बैठ कर सुनाऊंगा। फिलहाल हमें उसका पीछा जारी रखना होगा।
"ठीक है, अभी पीछा जारी रखो।"
इतने में शिंगूरा होटल के दरवाजे पर प्रकट हुई और अपनी कार में बैठ कर चल पड़ी। एक बार फिर दोनों कारें आगे-पीछे सड़क पर दौड़ने लगीं।
कई दिन तक न तो कोई नई घटना घटी थी और न ही राज को कोई कदम अपनी तरफ से उठाने के लिए कोई रास्ता ही मिला था। लेकिन एक दिन उसके हाथ अनापेक्षित तौर पर एक सुराग लग ही गया।
राज सुबह दस बजे के करीब डॉक्टर सावंत के यहां जा रहा था। क्योंकि दिन का वक्त था और राज ने रास्ते में से कई चीजें खरीदनी थी, इसलिए कार वो घर ही छोड़ आया था।
फोर्ट एरिया की एक दुकान से कैमरा फिल्म का रोल खरीद कर बाहर निकला तो सामने की तरफ कुछ दूरी पर एक कार आगे आकर रूकी और उसमें से उतरकर शिंगूरा कपड़ों की एक दुकान में चलगी गई।
शिंगूरा को देखकर राज ठिठक गया था। अचानक एक ख्याल राज के जेहन में उभरा कि क्यों न शिंगूरा की पीछा करके देखा जाए कि वो कहां-कहां जाती है और क्या-क्या करती
राज ने डॉक्टर सावंत के यहां जाने का विचार छोड़ दिया और शिंगूरा का पीछा करने के लिए तैयार हो गया। उसने एक खाली टैक्सी रोकी और उसके ड्राईवर को समझा दिया कि उसे क्या करना है। और यह भी कह दिया कि अगर वो अपने मकसद में कामयाब रहा तो ड्राईवर को किराये कि अलावा इनाम भी देगा।
ड्राईवर बम्बई का श्याना था, इसलिए वो फौरन समझ भी गया और वह धूर्तता पूर्ण ढंग से मुस्कराकर सहमत भी हो गया। उसने टैक्सी एक कोने में खड़ी कर ली और स्टेयरिंग पर सिर रख कर बैठ गया। लेकिन उसकी गिद्ध निगाहें शिंगूरा की काली कार पर ही जमी हुई थीं जो राज ने उसे दिखाई थी।
करीब बीस मिनट बार शिंगूरा उस दुकान से बाहर निकली, उसके हाथ में छोटा सा एक पैकेट था। वो धीरे-धीरे बड़ी नजाकत से चलती हुई आकर अपनी कार में बैठ गई।
कार रवाना हुई तो राज का ड्राईवर भी चौंकन्ना हो गया और उसने एक उचित फासला दरम्यान में रखकर शिंगूरा की कार का पीछा करना शुरू कर दिया।
दोनों गाड़ियों आगे पीछे कोई बीस मिनट तक शहर की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रहीं। राज हैरान था कि वो जा कहा रही है?
फिर अचानक प्लाजा होटल के सामने शिंगूरा की गाड़ी रुक गई और शिंगूरा कारे से उतर कर लहराती-बल खाती हुई होअल में दाखिल हो गई।
"वो तो होटल में चली गई....।" टैक्सी ड्राईवर ने भी टैक्सी रोककर पीछे मुड़ते हुए कहा।
"तो हम इंतजार करते हैं।” राज ने कहा, और शिंगूरा की वापसी का इंतजार करने लगा।
लेकिन जब आधे घंटे तक भी शिंगूरा बाहर न आई तो राज ने ड्राईवर से कहा
"मैं गाड़ी में बैठा हूं, तुम जरा जाकर पता लगाने की कोशिश करो कि वो अन्दर क्या कर रही है...।'
राज ने जेब से पचास-पचास के दो नोट निकाले और ड्राईवर की तरफ बढ़ा कर बोला
"होटल के किसी वेटर को बीस-बीस रुपए देकर अपने तीरके से पूछोगे तो सारी कथा कह देगा....।"
"म....मगर साहब..."
"अरे, कुछ अगर-मगर नहीं, डरो मत। मैं बैठा हूं न यहां।" राज ने उसे तसल्ली दी।
ड्राईवर ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे सब समझ गया हो। नोट लेकर टहलता हुआ वो होटल की तरफ बढ़ गया।
पूरा एक घंटा राज को इन्तजार करते हुए गुजर गया, न तो शिंगूरा होटल से निकली, न ही टैक्सी ड्राईवर ही वापिस आया। अकेले बैठे-बैठे गेट पर निगाहों जमाए राज उकता गया।
आखिर राम-राम करके टैक्सी ड्राईवर बाहर निकला और तेज-तेज कदम उठाता आया और टैक्सी की अपनी सीट पर बैठ कर बोला
"मैंन सब मालूम कर लिया है...लेकिन अब वो बाहर आ रही है। इसलिए कथा आराम से कहीं बैठ कर सुनाऊंगा। फिलहाल हमें उसका पीछा जारी रखना होगा।
"ठीक है, अभी पीछा जारी रखो।"
इतने में शिंगूरा होटल के दरवाजे पर प्रकट हुई और अपनी कार में बैठ कर चल पड़ी। एक बार फिर दोनों कारें आगे-पीछे सड़क पर दौड़ने लगीं।