desiaks
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' तो आप क्या करना चाहते हैं ? ' इसबार सव - इंस्पैक्टर भी फुसफुसाया था । ' दीराला और सकौती के बीच घना जंगल है । वहां इसे उतार कर कहेंगे कि जा हमने तुझे आजाद किया । यह उत्तरेगा । वहीं गोलियों से छलनी कर देंगे । ये होगी इस हत्यारे की सजा । यह कहानी गढ़ने में हमे कितनी देर लगेगी कि इसने पुलिस गिरफ्त से भागने की कोशिश की और मर गया ।
सन्नाटा हो गया मेरे दिलो - दिमाग पर । तिरपन कांप उठे मेरे ।
यकीन हो गया ---- मेरा एनकाउन्टर होने वाला है । मैं पुलिस की ऐसी कारगुजारियां अखबार में पढ़ा करता था । जी चाहा ----गला फाड़कर चीख पडूं । मुंह से आवाज न निकल सकी । जुबान तालू से जा चिपकी थी । और फिर एक झटके से जीप रुकी । पहले इंस्पैक्टर , उसके बाद पुलिस वाले बाहर कूदे।
जीप मुख्य सड़क से काफी दूर . कच्ची रोड पर खड़ी थी । चारों तरफ घनघोर अंधेरा था । दूर - दूर तक घना जंगल ! बियादान ! सन्नाटा सांय - सांय कर रहा था । झिंगुरों की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं । मुझे हथकड़ियों सहित जीप से उतारा गया । पैरों के नीचे दवे सूखे पत्ते चरमरा उठे।
इंस्पेक्टर साहब ने हथकड़ी खोल दी । कहा - ' तुम्हारी सजा यही है अलारखा यहां से पैदल अपने कालेज जाओ । हमारी तरफ से आजाद हो ।
मै जान चुका था कैसी आजादी मिलने वाली है ? नजर इंस्पैक्टर साहब के कन्धे पर लटके होलेस्टर पर पडी । अंधकार के बावजूद मुझे रिवाल्वर की मुठ साफ नजर आ रही थी । इस एहसास ने मेरे छक्के छुड़ा लिये कि कुछ देर बाद इस रिवाल्वर की गौलिया मेरे जिस्म में धंसी होगी । मैं धड से इंसपेक्टर साहब के कदमों में गिर पड़ा ।
दहशत के मारे दहाड़े मार - मार कर रोता कह उठा ---- ' मुझे मत मारो इंस्पैक्टा साहब , मुझे मत मारो। माँ कसम सत्या मैडम , चन्द्रमोहन और हिमानी की हत्याएं मैंने नहीं की।
' अरे बड़ा पागल है तू ' इंस्पेक्टर साहब ने मुझे बहुत प्यार से ऊपर उठाते हुए कहा ---- ' हम तुझे आजाद कर रहे हैं और तू मरने मारने की बातें करने लगा ! किसने कहा हम तुझे मारने वाले है ? '
' म - मैने सब कुछ सुन लिया है इंस्पैक्टर साहब ! आप ... आप पूछते क्यों नहीं वो लेटर मैंने क्यों लिखा ? "
' बताना चाहता है तो बता दे । वैसे हमें जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।
' वो - बहुत दिन से हिमानी मैडम पर मेरी नीयत खराब थी । ' मौत के खौफ से घिरा मैं सच उगलता चला गया ---- मैं क्या करता ?
वे कपड़े ही ऐसी पहनती थी । हरकतें ही ऐसी करती थीं । मैं ही क्या , कॉलिज का हर लड़का उन पर मरता था । मैं उन्हें पाना चाहता था मगर डरता था ---- कहीं बिदक न जाये । उस अवस्था में बेइज्जती तो होती ही . रेस्ट्रीकेशन भी पक्का था ! अपना उल्लू सीधा करने के लिए एक तरकीब सोची ।
हिमानी मैडम की तरफ से लविन्द्र सर को लव - लेटर लिखा। मुझे पूरा यकीन था वो लेटर लबिन्द्र सर को हिमानी मैडम के कमरे में जरूर ले जायेगा । भले ही दोनों की बातचीत में यह खूल जाये कि लेटर हिमानी मैडम ने नहीं लिखा लेकिन . हिमानी मैडम अगर चालू किस्म की लड़की होगी तो लबिन्द्र सर का खुलकर स्वागत करेंगी ।
मेरा अनुमान था ---- लविन्द्र सर भी खुद को रोक नहीं सकेंगे । मैं कैमरा लिए कमरे की खिड़की पर तैनात था । सोचा था ---- उनके फोटो खींच लूँगा। उनके बेस पर हिमानी मैडम को ब्लैकमेल करूँगा और मेरी वह इच्छा पूरी हो जाएगी जिसके लिए मरा जा रहा था । परन्तु वहां तो दृश्य ही उलटा हो गया ।
सन्नाटा हो गया मेरे दिलो - दिमाग पर । तिरपन कांप उठे मेरे ।
यकीन हो गया ---- मेरा एनकाउन्टर होने वाला है । मैं पुलिस की ऐसी कारगुजारियां अखबार में पढ़ा करता था । जी चाहा ----गला फाड़कर चीख पडूं । मुंह से आवाज न निकल सकी । जुबान तालू से जा चिपकी थी । और फिर एक झटके से जीप रुकी । पहले इंस्पैक्टर , उसके बाद पुलिस वाले बाहर कूदे।
जीप मुख्य सड़क से काफी दूर . कच्ची रोड पर खड़ी थी । चारों तरफ घनघोर अंधेरा था । दूर - दूर तक घना जंगल ! बियादान ! सन्नाटा सांय - सांय कर रहा था । झिंगुरों की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं । मुझे हथकड़ियों सहित जीप से उतारा गया । पैरों के नीचे दवे सूखे पत्ते चरमरा उठे।
इंस्पेक्टर साहब ने हथकड़ी खोल दी । कहा - ' तुम्हारी सजा यही है अलारखा यहां से पैदल अपने कालेज जाओ । हमारी तरफ से आजाद हो ।
मै जान चुका था कैसी आजादी मिलने वाली है ? नजर इंस्पैक्टर साहब के कन्धे पर लटके होलेस्टर पर पडी । अंधकार के बावजूद मुझे रिवाल्वर की मुठ साफ नजर आ रही थी । इस एहसास ने मेरे छक्के छुड़ा लिये कि कुछ देर बाद इस रिवाल्वर की गौलिया मेरे जिस्म में धंसी होगी । मैं धड से इंसपेक्टर साहब के कदमों में गिर पड़ा ।
दहशत के मारे दहाड़े मार - मार कर रोता कह उठा ---- ' मुझे मत मारो इंस्पैक्टा साहब , मुझे मत मारो। माँ कसम सत्या मैडम , चन्द्रमोहन और हिमानी की हत्याएं मैंने नहीं की।
' अरे बड़ा पागल है तू ' इंस्पेक्टर साहब ने मुझे बहुत प्यार से ऊपर उठाते हुए कहा ---- ' हम तुझे आजाद कर रहे हैं और तू मरने मारने की बातें करने लगा ! किसने कहा हम तुझे मारने वाले है ? '
' म - मैने सब कुछ सुन लिया है इंस्पैक्टर साहब ! आप ... आप पूछते क्यों नहीं वो लेटर मैंने क्यों लिखा ? "
' बताना चाहता है तो बता दे । वैसे हमें जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।
' वो - बहुत दिन से हिमानी मैडम पर मेरी नीयत खराब थी । ' मौत के खौफ से घिरा मैं सच उगलता चला गया ---- मैं क्या करता ?
वे कपड़े ही ऐसी पहनती थी । हरकतें ही ऐसी करती थीं । मैं ही क्या , कॉलिज का हर लड़का उन पर मरता था । मैं उन्हें पाना चाहता था मगर डरता था ---- कहीं बिदक न जाये । उस अवस्था में बेइज्जती तो होती ही . रेस्ट्रीकेशन भी पक्का था ! अपना उल्लू सीधा करने के लिए एक तरकीब सोची ।
हिमानी मैडम की तरफ से लविन्द्र सर को लव - लेटर लिखा। मुझे पूरा यकीन था वो लेटर लबिन्द्र सर को हिमानी मैडम के कमरे में जरूर ले जायेगा । भले ही दोनों की बातचीत में यह खूल जाये कि लेटर हिमानी मैडम ने नहीं लिखा लेकिन . हिमानी मैडम अगर चालू किस्म की लड़की होगी तो लबिन्द्र सर का खुलकर स्वागत करेंगी ।
मेरा अनुमान था ---- लविन्द्र सर भी खुद को रोक नहीं सकेंगे । मैं कैमरा लिए कमरे की खिड़की पर तैनात था । सोचा था ---- उनके फोटो खींच लूँगा। उनके बेस पर हिमानी मैडम को ब्लैकमेल करूँगा और मेरी वह इच्छा पूरी हो जाएगी जिसके लिए मरा जा रहा था । परन्तु वहां तो दृश्य ही उलटा हो गया ।