Thriller विक्षिप्त हत्यारा - SexBaba
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Thriller विक्षिप्त हत्यारा

hotaks

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विक्षिप्त हत्यारा

Chapter 1
कॉल बैल की आवाज सुनकर सुनील ने फ्लैट का द्वार खोला ।
द्वार पर एक लगभग तीस साल की बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाली और सूरत से ही सम्पन्न दिखाई देने वाली महिला खड़ी थी ।
सुनील को देखकर वह मुस्कराई ।
"फरमाइये ।" - सुनील बोला ।
"मिस्टर सुनील ।" - महिला ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
"मेरा ही नाम है ।" - सुनील बोला ।
"मैं आप ही से मिलने आई हूं, मिस्टर सुनील ।" - वह बोली ।
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर द्वार से एक ओर हटता हुआ बोला - "तशरीफ लाइये ।"
महिला भीतर प्रविष्ट हुई । सुनील के निर्देश पर वह एक सोफे पर बैठ गई ।
सुनील उसके सामने बैठ गया और बोला - "फरमाइये ।"
"मेरी नाम कावेरी है ।" - वह बोली ।
सुनील चुप रहा । वह उसके आगे बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
"आप की सूरत से ऐसा नहीं मालूम होता जैसे आपने मुझे पहचाना हो ।"
"सूरत तो देखी हुई मालूम होती है" - सुनील खेदपूर्ण स्वर से बोला - "लेकिन याद नहीं आ रहा, मैंने आपको कहां देखा है ।"
"यूथ क्लब में ।" - कावेरी बोली - "जब तक मेरे पति जीवित थे, मैं यूथ क्लब में अक्सर आया करती थी ।"
"आपके पति..."
"रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल ।" - कावेरी गर्वपूर्ण स्वर में बोली - "आपने उन का नाम तो सुना ही होगा ?"
"रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल का नाम इस शहर में किसने नहीं सुना होगा !" - सुनील प्रभावित स्वर में बोला ।
रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल राजनगर के बहुत बड़े उद्योगपति थे और नगर के गिने-चुने धनाढ्य लोगों में से एक थे । सुनील उन्हें इसलिये जानता था, क्योंकि वे यूथ क्लब के फाउन्डर मेम्बर थे । यूथ क्लब की स्थापना में उनके सहयोग का बहुत बड़ा हाथ था । लगभग डेढ वर्ष पहले हृदय की गति रुक जाने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी । मृत्यु के समय उनकी आयु पचास साल से ऊपर थी ।
सुनील ने नये सिरे से अपने सामने बैठी महिला को सिर से पांव तक देखा और फिर सम्मानपूर्ण स्वर में बोला - "मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, मिसेज जायसवाल ?"
"मिस्टर सुनील" - कावेरी गम्भीर स्वर में बोली - "सेवा तो आप बहुत कर सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या आप वाकई मेरे लिये कुछ करेंगे ?"
"रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की पत्नी की कोई सेवा अगर मुझ से सम्भव होगी तो भला वह क्यों नहीं करूंगा मैं ?" - सुनील सहृदयतापूर्ण स्वर में बोला ।
"थैंक्यू, मिस्टर सुनील ।" - कावेरी बोली और चुप हो गई ।
सुनील उसके दुबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
"शायद आपको मालूम होगा" - थोड़ी देर बाद कावेरी बोली - "कि मैं रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की दूसरी पत्नी थी और उनकी मृत्यु से केवल तीन साल पहले मैंने उनसे विवाह किया था । अपनी पहली पत्नी से रायबहादुर साहब की एक बिन्दु नाम की लड़की थी जो इस समय लगभग सत्तरह साल की है और, मिस्टर सुनील, बिन्दु ने अर्थात मेरी सौतेली बेटी ने ही एक ऐसी समस्या पैदा कर दी है जिसकी वजह से मुझे आपके पास आना पड़ा है । आप ही मुझे एक ऐसे आदमी दिखाई दिये हैं जो एकाएक उत्पन्न हो गई समस्या में मेरी सहायता कर सकते हैं ।"
"समस्या क्या है ?"
"समस्या बताने से पहले मैं आपको थोड़ी-सी बैकग्राउन्ड बताना चाहती हूं ।" - कावेरी बोली - "मिस्टर सुनील, बिन्दु उन भारतीय लड़कियों में से है जो कुछ हमारे यहां की जलवायु की वजह से और कुछ हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण और किसी भी प्रकार के चिन्ता या परेशानी से मुक्त जीवन का अंग होने की वजह से आनन-फानन जवान हो जाती हैं । जब रायबहादुर साहब से मेरी शादी हुई थी उस समय बिन्दु एक छोटी-सी, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली बच्ची थी, फिर जवानी का ऐसा भारी हल्ला उस पर हुआ कि मेरे देखते-ही-देखते वह नन्ही, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली लड़की तो गायब हो गई और उसके स्थान पर मुझे एक जवानी के बोझ से लदी हुई बेहद उच्छृंखल, बेहद स्वछन्द, बेहद उन्मुक्त और बेहद सुन्दर युवती दिखाई देने लगी । सत्तरह साल की उम्र में ही वह तेईस-चौबीस की मालूम होती है । रायबहादुर के मरने से पहले तक वह बड़े अनुशासन में रहती थी क्योंकि रायबहादुर साहब के प्रभावशाली व्यक्तित्व की वजह से उसकी कोई गलत कदम उठाने की हिम्मत नहीं होती थी लेकिन पिता की मृत्यु के फौरन बाद से ही वह शत-प्रतिशत स्वतन्त्र हो गई है और अब जो उसके जी में आता है, वह करती है ।"
"लेकिन आप... क्या आप उसे... आखिर आप भी तो उसकी मां हैं ?"
"जी हां । सौतेली मां । केवल दुनिया की निगाहों में । खुद उसने कभी मुझे इस रुतबे के काबिल नहीं समझा । जिस दिन मैंने रायबहादुर साहब की जिन्दगी में कदम रखा था, उसी दिन से बिन्दु को मुझ से इस हद तक तब अरुचि हो गई है कि उसने कभी मुझे अपनी मां के रूप में स्वीकार नहीं किया, कभी मुझे मां कहकर नहीं पुकारा ।"
"तो फिर वह क्या कहती है आपको ?"
"पहले तो वह सीधे मुझे नाम लेकर ही पुकारा करती थी लेकिन एक बार रायबहादुर साहब ने उसे मुझे नाम लेकर पुकारते सुन लिया तो उन्होंने उसे बहुत डांटा । उस दिन के बाद उसने मेरा नाम नहीं लिया लेकिन उसने मुझे मां कहकर भी नहीं पुकारा ।"
"तो फिर क्या कहकर पुकारती थी वह आपको ।"
"कुछ भी नहीं । वह मुझे से बात ही नहीं करती थी इसलिये मुझे कुछ कह कर पुकारने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी उसे । कभी मेरा जिक्र आ ही जाता था तो और लोगों की तरह वह भी मुझे मिसेज जायसवाल कह कर पुकारा करती थी । रायबहादुर साहब की मृत्यु के बाद से वह कभी-कभार घर पर आये अपने मित्रों के सामने मुझे ममी कह कर पुकारती है लेकिन इसमें उसका उद्देश्य अपने मित्रों के सामने मेरा मजाक उड़ाना ही होता है ।"
"लेकिन वह ऐसा करती क्यों है ?"
 
"...फिर मैंने पुलिस को फोन कर दिया ।" - सुनील बोला ।
वह पुलिस हैडक्वार्टर में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के कमरे में बैठा था । कमरे में तीन पुलिस अधिकारी और थे और एक स्टेनो था जो सुनील का बयान नोट कर रहा था ।
"बस ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"बस ।"
"कहानी शानदार है । फिर से सुनाओ ।"
"अभी कहानी कितनी बार और सुनानी पड़ेगी मुझे ?"
"गिनती मत गिनो ।" - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला - "सुनाते रहो । तब तक सुनाते रहो न हो जाये कि तुम्हारी कहानी कहानी, नहीं हकीकत है ।"
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर नये सिरे से सारी कहानी सुनानी आरम्भ कर दी । सारी घटना को वह सातवीं बार दोहरा रहा था ।
सुबह के चार बजे प्रभूदयाल ने उसके सामने कुछ टाइप किये कागजात पटके और बोला - "कोई एतराज के काबिल बात न दिखाई दे तो इस पर हस्ताक्षर करो और दफा हो जाओ ।"
सुनील पढने लगा । उसे कहीं एतराज के काबिल बात दिखाई न दी । वह उसका अपना ही बयान था ।
उसने हस्ताक्षर कर दिये ।
"फूटो ।" - प्रभूदयाल कागज सम्भालता हुआ बोला ।
"हैरानी है ।" - सुनील उठता हुआ बोला ।
"किस बात की ?"
"इस बार तुमने मुझे हथकड़ी नहीं पहनाई । मुझे जेल में नहीं डाला । मुझ पर केस नहीं बनाया । बस मेरे बयान पर मुझ से साइन कराए और छोड़ दिया ।"
"बस इसलिये क्योंकि इस बार राजनगर के कई प्रसिद्ध वकील तुम्हारे बचाव के लिये मोर्चा बनाये बाहर खड़े हुए हैं ।" - प्रभूदयाल जलकर बोला - "उन्हें मौका मिलने की देर है और वे मेरी ऐसी-तैसी करके रख देंगे ।"
"तुम किन वकीलों की बात कर रहे हो ?"
"जो तुम्हारा प्रतिनिधित्व करने के लिये बाहर जमघट लगाये खड़े हैं ।"
"यानी कि मैं यहां से पहले भी जा सकता था ?"
"हां ।"
"और तुमने मेरे वकीलों से झूठ बोलकर मुझे यहां फंसाये रखा ?"
"हां ।"
"ऐसी की तैसी तुम्हारी ।"
"गाली दे लो । कोई बात नहीं । लेकिन अगर यह बात तुमने जाकर वकीलों की फौज को बताई या उन्हें मेरे बारे में भड़काया तो बाई गॉड मैं तुम्हारी हड्डी-पसली एक कर दूंगा ।"
"धमकी दे रहे हो ?"
"हां ।"
"बड़े कमीने आदमी हो । अगर मैं मर गया तो ?"
"तो हिन्दुस्तान के पचास करोड़ आदमियों में से एक आदमी कम हो जाएगा ।" - प्रभूदयाल लापरवाही से बोला ।
"लानत है तुम पर ।" - सुनील बोला और भुनभुनाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
पूरन सिंह ने बिन्दु को सुरक्षित घर पहुंचा दिया था । बिन्दु ने मादक नशों का प्रयोग अभी आरम्भ ही किया था । वह अभी उनके सेवन की आदी नहीं बनी थी । कुछ दिन हस्पताल में रहने के बाद वह ठीक हो गई । उस सारी घटना का बिन्दु के जीवन पर बहुत भारी प्रभाव पड़ा । होश में आने के बाद उसने कावेरी के पांव पकड़ लिये और फूट-फूटकर रोई । मां-बेटी में मिलाप हो गया । हस्पताल में आने के बाद बिन्दु एकदम सम्भल गई । उसने अपने हिप्पियों जैसे सारे परिधान और बाकी चीजें सड़क पर फेंक दी । मैड हाउस जैसी जगह की ओर उसने दुबारा झांक कर भी न देखा ।
कावेरी की निगाहों में सुनील ने उसके परिवार पर वह अहसान किया था जिसका बदला वह जन्म-जन्मान्तर तक नहीं चुका सकती थी । उसने सुनील को कुछ धन देना चाहा जिस पर वह बहुत क्रोधित हुआ । मंगत राम ने सुनील को एक चैक पुरस्कार रूप में भिजवाया जो सुनील ने रमाकांत को दे दिया ।
चैक की रकम एक दर्जन रमाकांतों का नगदऊ का लालच शान्त करने के लिये काफी थी ।
समाप्त
 
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चाकू उसके पेट में घुस गया था । उसके शरीर से बाहर केवल चाकू का हैंडल दिखाई दे रहा था ।
उसके कांपते हुए हाथ पेट में घुसे चाकू के हैंडल की ओर बढे । दोनों हाथों से उसने मजबूती से हैंडल थाम लिया और उसे बाहर खींचने की कोशिश करने लगा । फिर हैंडल से उसके हाथ अलग हट गये । शायद चाकू बाहर खींच पाने की शक्ति उसमें नहीं रही थी । उसकी आंखों में मौत का साया तैरने लगा था ।
"राम ! राम !" - उखड़ती हुई सांसों के बीच में उस के मुंह से निकला - "राम ! राम... म !"
पता नहीं वह अन्तिम समय में भगवान को याद कर रहा था या अपने भाई को सहायता के लिये पुकार रहा था ।
राम ललवानी तेजी से अपने भाई की ओर लपका ।
उसी क्षण मुकुल के मुंह से खून का फव्वारा सा फूटा, वह आखिरी बार छटपटाया और फिर शान्त हो गया ।
"मनोहर ! मनोहर !" - राम ललवानी उसकी लाश के समीप बैठा धीरे-धीरे पुकार रहा था ।
मुकुल उर्फ मनोहर मर चुका था ।
राम ललवानी उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया । वह सुनील की ओर घूमा । उसके हाथ में रिवाल्वर थी । उसकी आंखों से खून बरस रहा था ।
उसने अपना रिवाल्वर वाला हाथ ऊंचा किया ।
सुनील ने अपनी दाईं कलाई सीधी की और स्लीव गन के शिकंजे पर जोर डाला ।
जहर से बुझा छोटा सा तीर तेजी से स्लीव गन में निकला और राम ललवानी की जाकर छाती में घुस गया ।
राम ललवानी की रिवाल्वर से फायर हुआ । गोली छत से जाकर टकराई । तीर की वजह से उसका निशाना चूक गया था । दोबारा गोली चलाने का मौका ललवानी को न मिला, रिवाल्वर उसके हाथ से निकली और भड़ाक की आवाज से फर्श पर आ गिरा । राम ललवानी का चेहरा राख की तरह सफेद हो गया । वह तनिक लड़खड़ाया और फिर धड़ाम से अपने भाई की रक्त में डूबी लाश के ऊपर जा गिरा ।
सुनील रिवाल्वर की ओर झपटा ।
उसी क्षण भड़ाक से कमरे का दरवाजा खुला ।
"खबरदार !" - कोई चिल्लाया ।
सुनील ठिठकर कर खड़ा हो गया । उसने घूमकर देखा । दरवाजे पर हाथ में रिवाल्वर लिये पूरन सिंह खड़ा था ।
"ये कैसे मरे ?" - पूरन सिंह ने पूछा । उसके हाथ में रिवाल्वर थी ।
"मुकुल चाकू लेकर मुझ पर झपटा था लेकिन एक कुर्सी से उलझकर गिर पड़ा था और अपने ही चाकू का शिकार हो गया था । राम ललवानी मुझे शूट करना चाहता था लेकिन मैंने उससे पहले उसे अपने हथियार का निशाना बना लिया ।"
"कैसा हथियार ?"
सुनील ने कोट की बांह ऊंची करके पूरन सिंह को स्लीव गन दिखाई और बोला - "इस बांस की नली में से जहर से बुझा तीर निकलता है ।"
पूरन सिंह के नेत्र फैल गये ।
बिन्दु एक शराबी की तरह सुनील की बांहों में झूल रही थी ।
"यह लड़की कौन है ?" - पूरन सिंह ने पूछा ।
"यह रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की लड़की है । मुकुल इसे भगाकर लाया था । उसने इसे कोई मादक पदार्थ खिला दिया है । इस समय इसे अपनी होश नहीं है । मेरे ख्याल से इसे यह भी नहीं मालूम है कि यह कहां है । इस घर में इस लड़की की मौजूदगी यहां मौजूद हर आदमी के लिये समस्या बन सकती है । पूरन सिंह, मेरी बात मानो । इसकी कोठी पर इसकी मां कावेरी को फोन कर दो कि तुम इसे लेकर आ रहे हो । फोन नम्बर मैं बताये देता हूं । इसे चुपचाप कोठी पर छोड़ आओ और यह बात बिल्कुल भूल जाओ कि तुमने कभी इसकी सूरत भी देखी थी । अगर तुम अपनी जुबान बन्द रखोगे तो किसी को यह मालूम नहीं हो सकेगा कि यह कभी यहां आई थी और जब ललवानी भाई दम तोड़ रहे थे तो यह भी यहां मौजूद थी । तुम्हारी इस सेवा के बदले में मैं तुम्हें नकद दो हजार रुपये दिलवाने का वायदा करता हूं ।"
पूरन सिंह सोचने लगा ।
"यह रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की लड़की है ?" - थोड़ी देर बाद पूरन बोला ।
"हां ।" - सुनील बोला ।
"फिर पांच ।"
"क्या पांच ?"
"पांच हजार रुपये ।"
"आल राइट ।"
"रुपये कब मिलेंगे ?"
"जब यह सुरक्षित कोठी पर पहुंच जायेगी ।"
"यह पहुंच गई समझो ।"
"तुम्हें रुपये मिल गये समझो । मैं कावेरी को फोन कर दूंगा ।"
पूरन सिंह ने रिवाल्वर जेब में रख ली और बिन्दु की ओर हाथ बढा दिया ।
सुनील ने बिन्दु का हाथ थमा दिया । बिन्दु चुपचाप पूरन सिंह के साथ हो ली ।
उसी कमरे में टेलीफोन रखा था । सुनील ने पहले कावेरी को और फिर पुलिस हैडक्वार्टर को फोन कर दिया । उसने कोट की जेब में से अपने जूते निकाले और उन्हें पैरों में पहन लिया । लाशों की ओर से पीठ फेरकर वह एक कुर्सी पर बैठ गया और पुलिस के आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
***
 
"मैं एक साल इन्तजार कर सकता हूं और इस बात की स्कीम भी मेरे दिमाग में है कि उस एक साल के अरसे में मैं कावेरी की जुबान कैसे बन्द रखूंगा ।"
"तुम उसे धमकाओगे ?"
मुकुल चुप रहा ।
"और दूसरा काम क्या था ?" - राम ललवानी ने पूछा ।
मुकुल ने उत्तर न दिया । पिछले कुछ क्षणों में जो आत्मविश्वास उसने स्वयं में पैदा किया था, वह दोबारा हवा में उड़ा जा रहा था । उसके होंठ फिर कांपने लगे ।
"दूसरा क्या काम था ?" - राम ललवानी गर्ज पर बोला - "बकते क्यों नहीं हो ?"
मुकुल नहीं बोला ।
"दूसरा काम यह था कि इसने फ्लोरी की हत्या करनी थी ।" - सुनील बोला ।
"तुमने फ्लोरी की हत्या की ?" - ललवानी ने पूछा ।
मुकुल निगाहें चुराने लगा ।
"फ्लोरी की हत्या से यह कैसे इनकार कर सकता है ?" - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - "वहां यह अपना ट्रेड मार्क छोड़कर आया है । फ्लोरी की हजार टुकड़ों में बंटी हुई लाश ही क्या इस बात का सुबूत नहीं कि इसने फ्लोरी की हत्या की है !"
"तुम चुप रहो ।" - राम ललवानी फुंफकार कर बोला । उसने आगे बढकर मुकुल का कालर पकड़ लिया और उसे झिंझोड़ता हुआ बोला - "तुमने उस लड़की की हत्या की है ?"
"राम" - मुकुल कम्पित स्वर में बोला - "राम - उस - लड़की के पास म.. मेरी तस्वीर का नैगेटिव था ।"
राम ललवानी ने उसका कालर छोड़ दिया और उससे अलग हट गया । उसके चेहरे पर क्रोध के स्पष्ट चिन्ह अंकित थे ।
"नैगेटिव की खातिर तुमने उस निर्दोष लड़की को कसाई की तरह काट डाला ।" - सुनील बोला ।
"वह नैगेटिव देती नहीं थी ।" - मुकुल यूं बोला जैसे ख्वाब में बड़बड़ा रहा हो ।
मुकुल ने अपने हाथों में अपना मुंह छुपा लिया और फूट-फूट कर रोने लगा ।
बिन्दु बेखबर रिकार्ड सुन रही थी ।
"मैंने... मैंने" - मुकुल रोता हुआ बोला - "अपने कपड़े उतार दिये और उसके साथ..."
"लेकिन हमेशा की तरह तुमसे कुछ हुआ नहीं ।" - सुनील बोला ।
"मैं पागल हो गया । मैंने चाकू अपने हाथ में ले लिया और उसे उसकी बाईं छाती में घोंप दिया । फिर मैंने उस की जांघ काट डाली । उसकी पिंडलियां उधेड़ डालीं, उसकी छातियों को पहले तरबूजे की तरह काटा और फिर जड़ से काट दिया । और फिर उसके शरीर की ओर देखा । उस समय उस लड़की का शरीर खूबसूरत नहीं लग रहा था इसलिये उत्तेजक भी नहीं था । मैं चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया ।"
कई क्षण फिर खामोशी छा गई । रेडियोग्राम से निकलते संगीत के स्वरों के साथ-साथ मुकुल के धीरे-धीरे सुबकने की आवाज कमरे में गूंज रही थी ।
"रोना बन्द करो ।" - राम ललवानी दहाड़कर बोला ।
मुकुल ने सिर उठाकर राम की ओर देखा । वह स्वयं को नियन्त्रित करने का प्रयत्न करने लगा ।
"जिसको अपनी वीरता का कारनामा सुना रहे थे" - राम ललवानी सुनील की तरफ संकेत करता हुआ बोला - "अब इसका क्या करोगे ?"
मुकुल मुंह से कुछ न बोला । उसने अपने आंसू पोंछे और धीरे से अपनी पतलून की जेब में हाथ डाला । जब उसने हाथ बाहर निकाला तो उसके हाथ में चाकू चमक रहा था । उसने चाकू के हत्थे में लगा बटन दबाया । चाकू का लम्बा फल एकदम हवा में लहरा गया । शायद मुकुल के पास हर समस्या का एक ही हल था ।
वह चाकू वाला हाथ अपने सामने किये धीरे-धीरे आगे बढा ।
सुनील सावधान हो गया ।
राम ललवानी ने कुछ कहने के लिये अपना मुंह खोला लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल दिया ।
एकाएक मुकुल ने सुनील पर छलांग लगा दी । सुनील यूं एक ओर कूदा जैसे क्रिकेट का खिलाड़ी कैच लेने के लिये डाई मारता है । उसका शरीर भड़ाक से नंगे फर्श से टकराया । उस के शरीर की चूलें हिल गईं ।
मुकुल फिर उस पर झपटा ।
सुनील ने करवट बदली और अपनी पूर्ण शक्ति से एक कुर्सी को पांव की ठोकर मारी । कुर्सी एकदम उसकी ओर बढते हुए मुकुल के सामने जाकर गिरी । मुकुल कुर्सी की टांगों में उलझा और फिर कुर्सी के साथ उलझा-उलझा ही धड़ाम से फर्श पर आकर गिरा ।
फिर एकाएक वातावरण में एक हृदयविदारक चीख गूंज उठी । चीख की आवाज का प्रभाव बिन्दु पर भी पड़ा । उसने रेडियोग्राम का स्विच बन्द कर दिया और उठकर खड़ी हो गई । वह विस्फारित नेत्रों से कभी फर्श पर गिरे मुकुल को, कभी राम ललवानी को और कभी सुनील को देख रही थी । उसके नेत्रों की पुतलियां फैली हुई थीं और होंठ मजबूती से भींचे हुए थे । वह अपने स्थान से न हिली । ऐसा लग रहा था जैसे मुकुल की चीख का प्रभाव उस पर हुआ हो लेकिन स्थिति को समझ पाने की क्षमता उसमें न हो ।
मुकुल अपने हाथों और घुटनों के सहारे उठने की कोशिश कर रहा था । चाकू कहीं दिखाई नहीं दे रहा था । उसके चेहरे पर तीव्र वेदना के भाव थे । उसकी आंखें मुंदी जा रही थीं । वह छोटे-छोटे उखड़े-उखड़े सांस ले रहा था । फिर एकाएक उसका शरीर उलटा और पीठ के बल फर्श पर आ गिरा ।
 
राम ललवानी ने फिर जोर का अट्टहास किया और अपने भाई की ओर देखा । तत्काल उसकी हंसी में मानो ब्रेक लग गया ।

मुकुल के चेहरे का रंग उड़ गया था और उसके माथे पर पसीने की बूंद चुहचुहाने लगी थीं । उसके होंठ कांप रहे थे और उसके चेहरे के भावों से ऐसा लगता था जैसे वह अभी रो पड़ेगा ।

"तुम्हें क्या हुआ है ?" - राम ललवानी ने तीव्र स्वर में पूछा ।

मुकुल ने उत्तर नहीं दिया ।

"तुम्हारे भाई की वर्तमान हालत ही यह साबित करने के लिये काफी है कि इसने सोहन लाल ही हत्या की है ।" - सुनील बोला ।

"तुम पागल हो । मुकुल सोहन लाल की हत्या नहीं कर सकता । हम दोनों को सोहन लाल की स्टेटमेंट के बारे में मालूम था । उस स्टेटमेंट की वजह से ही सोहन लाल आज तक जिन्दा था ।"

"इन बातों से इस हकीकत में कोई फर्क नहीं पड़ता कि सोहन लाल की हत्या इसी ने की है ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि मेरे एक ऐक्शन ने इसे मजबूर कर दिया था । मेरे कहने पर फ्लोरी नाम की फोटोग्राफर ने मैड हाउस में मुकुल की तस्वीर खींच ली थी । पन्द्रह मिनट में उसने मुकुल की तस्वीर के दो प्रिंट तैयार कर दिये थे और मुझे मैड हाउस में ही सौंप दिये थे । मुकुल ने पता नहीं मुझे क्या समझा लेकिन यह इस विचार से घबरा गया कि किसी ने इसकी तस्वीर खींची थी । उसने शायद यही समझा कि कोई उसकी पिछली जिन्दगी के बारे में जान गया था और अब उसकी तस्वीर की सहायता से उसका सम्बन्ध उस मनोहर ललवानी से जोड़े जाने की कोशिश की जा रही थी जो पुलिस की निगाहों में पांच साल पहले बान्द्रा पुल पर हुई मुठभेड़ में मारा जा चुका है । मुकुल ने सोहन लाल को मेरे पीछे लगा दिया । सोहन लाल ने अपने साथियों के साथ मेरे फ्लैट तक मेरा पीछा किया और फिर वहां मेरी मरम्मत करके मुझ से मुकुल की तस्वीर छीन ली लेकिन किसी को यह नहीं मालूम था कि फ्लोरी ने मुझे तस्वीर के दो प्रिन्ट दिये थे जिनमें से एक मैं पहले ही तफ्तीश के लिये बम्बई रवाना कर चुका था और जिसके बारे में मेरी निरंतर निगरानी करते रहने के बावजूद सोहन लाल को खबर नहीं हुई थी ।"

दूसरी तस्वीर का जिक्र सुनते ही मुकुल के मुंह से सिसकारी निकल गई ।

"अगले दिन तक मैंने किसी प्रकार सोहन लाल के घर का पता जान लिया । मैं सोहन लाल पर चढ दौड़ा । मैं उसे रिवाल्वर से धमका कर यह जानना चाहता था कि वह किस के लिए काम कर रहा था लेकिन इसकी नौबत ही न आई । मुकुल वहां पहले से ही मौजूद था । वह किवाड़ के पीछे था और मेरी निगाह केवल सामने खड़े सोहन लाल पर थी इसलिये मैं मुकुल को नहीं देख सका था । मुकुल ने मुझे देखा तो यह और भी भयभीत हो गया । इसे आशा नहीं थी कि मैं इतने आसानी से सोहन लाल का पता जान लूंगा और फिर उस चढ दौड़ने की हिम्मत करूंगा । इसी हड़बडाहट में इसके दिमाग में एक स्कीम उभरी और इसने उस पर अमल कर डाला । इसने मेरे सोहन लाल के कमरे में प्रविष्ट होते ही मेरे सिर के पृष्ठ भाग में किसी भारी चीज का प्रहार किया । मैं बेहोश होकर गिर पड़ा । इसने मुझे घसीटकर दूसरे कमरे में डाल दिया । इसने मेरी रिवाल्वर उठाई और सोहन लाल का मुंह बन्द रखने के इरादे से उसे शूट कर‍ दिया ।"

"सोहन लाल को क्यों ? तुम्हें क्यों नहीं जबकि इसे यह मालूम था कि अगर सोहन लाल मर गया तो उसकी स्टेटमेंट अपने आप पुलिस तक पहुंच जायेगी और फिर हम दोनों ही मुसीबत में पड़ जायेंगे ।"

"यह सवाल तुम अपने भाई से ही क्यों नहीं करते ?"

राम ललवानी ने कठोर नेत्रों से मुकुल को देखा ।
"वह... वह उस समय..." - मुकुल हकलाता हुआ बोला - "उस समय स्थिति मुझे ऐसी लगी थी कि अगर सोहन लाल की हत्या हो जाती तो इल्जाम इस आदमी पर ही आता क्योंकि रिवाल्वर इसकी थी और यह उसके फ्लैट पर अच्छी नीयत से नहीं आया था ।"
"गधे !" - राम ललवानी गुर्राकर बोला - "तुम सोहन लाल की स्टेटमेंट को कैसे भूल गये ?"
मुकुल कुछ क्षण कसमसाया और फिर फट पड़ा - "क्यों कि मुझे इस स्टेटमेंट पर कभी विश्वास नहीं हुआ था । मेरी निगाह में वह सोहन लाल की कोरी धमकी थी ताकि हम उसका मुंह बन्द करने के लिये उसको हत्या न कर दें । राम, सोहन लाल हमें बरसों से ब्लैकमेल कर रहा था और मुझे यह बात एक क्षण के लिये भी पसन्द नहीं आई थी । मैं सोहन लाल की जुबान स्थायी रूप से बन्द करना चाहता था । उस दिन मुझे मौका दिखाई दिया और मैंने ऐसा कर दिया ।"
"तुमने मुझे क्यों नहीं बताया ?" - राम ललवानी फुंफकारा ।
"इसलिये क्योंकि तुम फिर मुझे जलील करते । हमेशा की तरह मुझ पर जाहिर करते कि मैं गधा हूं, मुझ में धेले की अक्ल नहीं है, वगैरह ।"
राम ललवानी बेबसी से दांत पीसता हुआ मुकुल की ओर देखता रहा और फिर धीरे से बोला - "कमीने, सोहन लाल की स्टेटमेंट की बात सच्ची थी । तुमने अभी सुनील को कहते सुना है कि उसने स्टेटमेंट की कापी देखी थी ।"
"फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।" - मुकुल नर्वस भाव से बोला - "जब तक स्टेटमेंट पुलिस तक पहुंचेगी और पुलिस उस पर कोई एक्शन लेगी, तब तक मैं यहां से गायब हो चुका होऊंगा ।"
"अभी तक हुए क्यों नहीं ?" - सुनील ने पूछा ।
"क्योंकि मुझे दो काम और करने थे । एक मुझे बिन्दु को अपने साथ ले जाना था" - वह रेडियोग्राम के सामने बैठी बिन्दु की ओर संकेत करता हुआ बोला - "मैं पच्चीस लाख रुपया अपने पीछे छोड़कर नहीं जा सकता था ।"
"लेकिन बिन्दु नाबालिग है । अट्ठारह साल की उम्र से पहले उसे एक धेला नहीं मिल सकता ।"
 
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राम ललवानी सुनील की ओर घूमा और गम्भीर स्वर से बोला - "तुमने यहां आकर खुद अपनी मौत को दावत दी है, मिस्टर । पूरन सिंह अभी तुम्हें शूट कर देगा । उसके बाद मैं पुलिस को फोन कर दूंगा कि मेरे घर में कोई चोर घुस आया है और उसको मेरे नौकर ने शूट कर दिया है ।"

"गुले गुलजार ।" - सुनील मुस्कराकर बोला - "जब तक तुम्हारा छोटा भाई मनोहर ललवानी उर्फ मुकुल इस इमारत में मौजूद है, तब तक तुम ऐसा नहीं कर सकते ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि पुलिस को इसकी तलाश है, अगर पुलिस इसकी मौजूदगी में यहां आई तो इसका पुलन्दा बन्ध जायेगा ।"

"पुलिस को इसकी तलाश क्यों है ?"

"एक वजह हो तो बताऊं । पुलिस को पांच साल पहले बम्बई में हुई तीन हत्याओं की वजह से इसकी तलाश है । मरने वाली तीन लड़कियों में आखिरी तुम्हारी, इसकी और सोहन लाल की साझी माशूक गीगी ओब्रायन थी । राजनगर में उसी ढंग से हुई फ्लोरी नाम की लड़की की ताजी-ताजी हत्या के लिये भी पुलिस इसे तलाश कर रही है और फिर यह इस नाबालिग लड़की को भी तो भगा कर लाया है ।" - सुनील बिन्दु की ओर संकेत करता हुआ बोला ।

"तुम पागल हो । मुकुल का इन हत्याओं से कोई वास्ता नहीं है और बिन्दु अपनी मर्जी से यहां आई है ।" - राम ललवानी बोला ।

"नाबालिग लड़की की अपनी कोई मर्जी नहीं होती । कानून की निगाह में उसे हमेशा बरगलाया ही जाता है । और तुम्हारी जानकारी के लिये मैं आज ही तुम्हारे ससुर से मिला था । गीगी ओब्रायन की हत्या के संदर्भ में उसने मुझे एक बहुत शानदार कहानी सुनाई थी । राम ललवानी, तुम्हारी जानकारी के लिये अब तुम्हारा ससुर सेठ मंगत राम भी जातना है कि गीगी ओब्रायन की हत्या के इल्जाम में सुनीता को खामखाह फंसाकर तुमने उसके साथ कितना बड़ा फ्रॉड किया है !"

"बूढे का शायद दिमाग खराब हो गया है ।"

मुकुल एकाएक बेहद उत्तजित दिखाई देने लगा । उसने राम ललवानी की बांह थामी और कम्पित स्वर में बोला - "राम ! यह आदमी..."

"थोड़ी देर चुप रहो ।" - राम ललवानी कर्कश स्वर में बोला । उसने एक झटके से अपनी बांह छुड़ा ली ।

"यह बात तुम्हें कैसे मालूम है ?" - उसने सुनील से पूछा - "क्या यह बात तुम्हें सोहन लाल ने बताई थी ?"

"सोहन लाल ने मुझे कुछ नहीं बताया था लेकिन वह इस सारी घटना को एक हलफनामे के रूप में अपने वकीलों के पास छोड़ गया था । उसकी हत्या के बाद वकीलों ने वह हलफनामा पुलिस को सौप दिया है । मैंने उसकी कापी देखी है ।"

"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । इतने सालों बाद वह हलफनामा कोई मतलब नहीं रखता है ।"

"बहुत मतलब रखता है । वह हलफनामा चाहे यह जाहिर न कर सके कि हत्या तुम्हारे भाई और सुनीता में से किसने की थी लेकिन यह जाहिर कर ही सकता है कि तुम्हारा भाई अभी तक जिन्दा है ।"

"उसमें क्या होता है ! मनोहर ललवानी का मुकुल से सम्बन्ध जोड़ना इतना आसान नहीं है । मुकुल राजनगर से गायब हो रहा है ।"

"पुलिस तुमसे सवाल करेगी । वह तुम्हारे रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता था ।"

"मुझे इसके बारे में कुछ मालूम नहीं है । हां साहब, मेरे रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता था, लेकिन कल वह बिना मुझे नोटिस दिये नौकरी छोड़कर चला गया । कहां गया ? मुझे मालूम नहीं । उनकी कोई तस्वीर ? नहीं है, साहब । मैं भला किस-किस गिटार बजाने वाले की तस्वीर रख सकता हूं ? और आखिर रखूंगा भी कहां !"

"अपने आपको बहलाने की कोशिश मत करो, प्यारेलाल !" - सुनील बोला ।

राम ललवानी ने जोर का अट्टहास किया ।

सुनील ने बिन्दु की दिशा में देखा । बिन्दु अभी भी बड़ी तन्मयता से रिकार्ड सुन रही थी । कमरे में अन्य लोगों की मौजूदगी से वह बिल्कुल बेखबर थी ।

"कहने का मतलब ये है" - राम ललवानी बोला - "कि सोहन लाल का हत्यारा अब तुम पहले हो और बाकी सब कुछ बाद में । इसलिये..."

"मैंने सोहन लाल की हत्या नहीं की ।" - सुनील ने प्रतिवाद किया ।

"तुमने सोहन लाल की हत्या नहीं की ! हा हा हा ।" - राम ललवानी बोला - "अब तुम यह भी कहोगे कि जब थानेदार ने तुम्हें गिरफ्तार किया था, तब रिवाल्वर हाथ में लिये तुम सोहन लाल की लाश के सामने खड़े थे लेकिन तुमने उसकी हत्या नहीं की । तो फिर सोहन लाल की हत्या किसने की है ?"

"तुम्हारे भाई ने ।" - सुनील मुकुल की ओर उंगली उठाकर धीरे से बोला - "और अगर विश्वास न हो तो इसी से पूछ लो ।"
 
सारा दिन सुनील राम ललवानी की शंकर रोड स्थित कोठी की निगरानी करता रहा ।

उसे वहां मुकुल या बिन्दु के दर्शन नहीं हुए ।

अन्धेरा होने के बाद सुनील ने कोठी के भीतर घुसने का निश्चय कर लिया ।

वह मोड़ काटकर कोठी के पिछवाड़े में पहुंचा । वहां एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था जिसका प्रकाश पिछवाड़े के लॉन का अन्धकार दूर करने के लिये काफी नहीं था । सुनील चारदीवारी फांद कर पिछवाड़े में कूद गया ।

पिछवाड़े के नीचे की मंजिल के कमरों में प्रकाश नहीं था । साइड के एक कमरे की खिड़की में प्रकाश था । सुनील ने उसमें से झांककर भीतर देखा । वह एक किचन थी । भीतर दो नौकर मौजूद थे ।

पहली मंजिल के साइड के एक कमरे में से काफी रोशनी बाहर फूट रही थी । कमरे में से संगीत की आवाज आ रही थी ।

सुनील उस कमरे की खिड़की के नीचे पहुंचा । काफी देर तक वहां कान लगाये खड़ा रहा लेकिन कमरे में से किसी के बोलने की आवाज नहीं आई । केवल विलायती गानों की स्वर लहरियां ही उनके कानों तक पहुंच रही थीं ।

सुनील ने दीवार का निरीक्षण किया ।

पानी का एक पाइप दीवार के साथ-साथ ऊपर की मंजिल की छत पर गया था । वह पाइप ऊपर की मंजिल की खिड़की के सामने से गुजरता था ।

सुनील ने मन-ही-मन फैसला किया । उसने जूते उतारकर पैंट में ठूंसे और चुपचाप पाइप के सहारे ऊपर चढने लगा ।

खिड़की के समीप पहुंकर उसने बड़ी सावधानी से भीतर झांका ।

वह एक विशाल कमरा था । एक कोने में एक रेडियोग्राम था जिसके सामने बिन्दु बैठी थी और बड़ी तन्मयता से रिकार्ड सुन रही थी । रेडियोग्राम से एकदम विपरीत दिशा में दीवार के साथ पड़े सोफे पर राम ललवानी और मुकुल बैठे थे । दोनों धीरे-धीरे बातें कर रहे थे ।

सुनील ने गरदन पीछे खींच ली और फिर सावधानी से पाइप से नीचे उतरने लगा ।

आधा रास्ता तय कर चुकने के बाद उसने दुबारा नीचे झांककर देखा और फिर उसका दिल धड़कने लगा ।
नीचे अन्धकार में एक साया खड़ा था जो सिर उठाकर उसी की ओर देख रहा था ।

सुनील को पाइप पर रुकता देखकर नीचे खड़ा साया धीमे स्वर में बोला - "मेरे हाथ में रिवाल्वर है । चुपचाप नीचे उतर आओ । जरा सी भी शरारत करने की कोशिश की तो शूट कर दूंगा ।"

सुनील पाइप पर नीचे सरकने लगा । साया उससे बहुत दूर था, इसलिये वह उस पर छलांग नहीं लगा सकता था ।

ज्यों ही सुनील के पांव धरती पर पड़े, साया आगे बढा ।

सुनील ने देखा वह एक लगभग पैंतीस साल का, लम्बा चौड़ा, पहलवान-सा आदमी था । उसके हाथ में वाकई रिवाल्वर थमी हुई थी जिसका रुख सुनील की ओर था ।

"आगे बढो ।" - वह बोला ।

सुनील आगे बढा । पहलवान ने उसकी पीठ के पीछे रिवाल्वर सटा दी और उसे टहोकता हुआ आगे बढाता चला गया ।

इमारत के साइड में एक द्वार था जिसके वे भीतर गए । सीढियों के रास्ते वे पहली मंजिल पर पहुंचे । वे एक गलियारे में से गुजरे । पहलवान ने उसे एक दरवाजे के सामने रुकने का संकेत किया ।

सुनील रुक गया ।

पहलवान के संकेत पर उसने दरवाजा खटखटाया ।

"कौन है ?" - भीतर से किसी की कर्कश स्वर सुनाई दिया ।

"पूरन सिंह, बॉस ।" - पहलवान बोला ।

"दरवाजा खुला है ।"

पूरन सिंह के संकेत पर सुनील ने दरवाजे को धक्का दिया । दरवाजा खुल गया और साथ ही संगीत की स्वर लहरियां बाहर फूट पड़ी । सुनील ने देखा, वह वही कमरा था जिसमें उसने थोड़ी देर पहले खिड़की के रास्ते भीतर झांका था ।

पूरन सिंह ने उसकी पसलियों को रिवाल्वर से टहोका । सुनील ने कमरे के भीतर कदम रखा ।
राम ललवानी और मुकुल वह दृश्य देखकर स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह अपने स्थान से उठ खड़े हुए । बिन्दु ने एक बार भी सिर उठाकर देखने की तकलीफ न की कि भीतर कौन आया था । वह पूर्ववत् रेडियोग्राम के सामने बैठी रही ।

"बॉस" - पूरन सिंह राम ललवानी से सम्बोधित हुआ - "यह आदमी पिछवाड़े के पाइप के सहारे चढकर इस कमरे में झांक रहा था ।"

मुकुल की निगाहें सुनील से मिलीं और फिर मुकुल के नेत्र फैल गये ।

"राम" - वह हड़बड़ाये स्वर में बोला - "यह तो वही आदमी है जो..."

"शटअप !" - राम ललवानी मुकुल की बात काटकर अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - "मैं जानता हूं यह कौन है ? आज के अखबार में इसकी तस्वीर छपी है । इसने सोहन लाल की हत्या की थी लेकिन पुलिस इन्स्पेक्टर से कोई यारी होने की वजह से यह अभी तक आजाद घूम रहा है ।"

मुकुल फौरन चुप हो गया ।

"पूरन सिंह, इसकी तलाशी ली ।" - राम ललवानी ने आदेशात्मक स्वर में कहा ।

पूरन सिंह ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।

"रिवाल्वर मुझे दो और इसकी तलाशी लो ।"

पूरन सिंह ने रिवाल्वर राम ललवानी की ओर उछाल दी जिसे उसने बड़ी दक्षता से लपक लिया ।

पूरन सिंह ने उसकी तलाशी ली ।

"इसके पास कुछ नहीं है ।" - थोड़ी देर बाद वह बोला । सुनील की दाईं आस्तीन पर उसका हाथ नहीं पड़ा था, जहां कि उसने स्लीव गन छुपाई हुई थी ।

राम ललवानी ने वापिस रिवाल्वर पूरन सिंह की ओर उछाल दी और बोला - "तुम जाओ ।"

पूरन सिंह रिवाल्वर लेकर कमरे से बाहर निकल गया । जाती बार वह दरवाजा बाहर से बन्द करता गया ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।

अन्त में सुनील ने ही शान्ति भंग की । वह राम ललवानी और मुकुल की ओर देखकर मुस्कुराया और फिर मीठे स्वर से बोला - "हल्लो, ललवानी बन्धुओ ।"

मुकुल एकदम चौंका । वह राम ललवानी की ओर घूमकर बोला - "राम, देखा । यह आदमी बहुत खतरनाक है । यह जानता है कि...."

"शटअप, मैन ।" - राम ललवानी बोला ।

मुकुल फिर कसमसा कर चुप हो गया ।
 
कुछ क्षण बाद वह अपने स्थान से उठा और शीशे की खिड़की के सामने आ खड़ा हुआ ।

बाहर थोड़ी दूर उसे पहियों वाली कुर्सी पर बैठी वही औरत दिखाई दी जिसे वह पहले भी देख चुका था ।
आंखों में उदासी लिये वह अपने सामने फैले समुद्र को दूर तक देख रही थी । उसके चेहरे की खाल लटक गई थी और इतनी सफेद थी जैसे शरीर में से खून की आखिरी बूंद भी निचोड़ ली गई हो । उसके अधपके सूखे बाल हवा में उड़ रहे थे । वह कम-से-कम पैतालीस साल की जिन्दगी से हारी हुई औरत लग रही थी ।
"यह मेरी बेटी सुनीता है ।" - उसे अपने पीछे से सेठ का रुंधा हुआ स्वर सुनाई दिया - "इसकी उम्र सत्ताइस साल है ।"

सुनील ने घूम कर देखा । सेठ मंगत राम पता नहीं कब पीछे आ खड़ा हुआ था । उसकी आंखों में आंसू तैर रहे थे ।

सुनील चुप रहा ।

"सुनीता" - सेठ गहरी सांस लेकर बोला - "अपने पीछे छुट गये उच्छृंखल जीवन का बहुत बड़ा हरजाना चुका रही है और भगवान जाने कब तक चुकाती रहेगी ।"

सुनील चुप रहा ।

"मुकुल" - सेठ एकाएक स्वर बदलकर बोला - "फोर स्टार नाइट क्लब में नहीं है ।"

"आई सी । मैं राम ललवानी की शंकर रोड वाली कोठी पर पता करूंगा ।"

"ठीक है । बेटा, अब मैं तुम्हें रुपये की लालच नहीं दूंगा । रुपये का लालच तुम्हारे पर कोई भारी प्रभाव छोड़ता दिखाई नहीं देता इसलिये मैं इतना ही चाहता हूं कि अगर तुम मुकुल को तलाश कर पाये और तुम्हारी सहायता से मेरी बेटी इस जंजाल से निकल पायी तो मैं सारी जिन्दगी तुम्हारा अहसान नहीं भूलूंगा ।"

सेठ की आंखे फिर डबडबा आई ।

"मैं अपनी ओर से कोई कोशिश नहीं उठा रखूंगा, सेठ जी ।"

सुनील कोठी से बाहर निकला और अपनी मोटरसाइकल पर आ बैठा । मोटरसाइकल उसने राजनगर के भीतर की ओर दौड़ा दी ।

एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से उसने यूथ क्लब फोन किया । दूसरी ओर से रमाकांत की आवाज सुनाई देते ही वह बोला - "रमाकांत, जो काम मैंने तुम्हें बताये थे अब उन्हें करवाने की जरूरत नहीं है ।"

"क्यों ?" - रमाकांत ने पूछा ।

"क्योंकि मुझे पहले ही मालूम हो गया है कि सुनीता सेठ मंगत राम की ही लड़की है और वह अभी जीवित है । सुनीता सेठ मंगत राम के साथ ही रहती है ।"

"तुम्हें कैसे मालूम हो गया है ?"

"मुझे अलादीन का चिराग मिल गया था । चिराग के जिन्न ने मुझे यह बताया था ।"

"अच्छा ! बधाई हो ।" - रमाकांत का व्यग्यपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।

"अब एक काम और कर दो तो मैं शुक्रवार तक तुम्हारा अहसान नहीं भूलूंगा ।"

"क्या ?"

"एक रिवाल्वर दिला दो ।"

"पागल हुए हो !" - रमाकांत फट पड़ा - "मैंने क्या रिवाल्वरों की फसल उगाई है कि जब तुम्हें जरूरत पड़े मैं भुट्टे की तरह रिवाल्वर तोड़कर तुम्हारे हाथ में रख दिया करूं ? जो रिवाल्वर मैने तुम्हे कल दी थी, उसी को तुम इतने बखेड़े में फसा आये हो कि मुझे डर लग रहा है कि कहीं मैं भी गेहूं के साथ घुन की तरह न पिस जाऊं । बाई गॉड, तुम्हारे जैसे यार से तो भगवान ही बचाये ।"

"दिला दो न यार ।" - सुनील विनीत स्वर से बोला ।

"एक शर्त पर रिवाल्वर दे सकता हूं ।"

"क्या ?"

"कि तुम मेरी आंखों के सामने उससे आत्महत्या कर लोगे ।"

"लानत है तुम पर ।" - सुनील बोला और उसने रिसीवर हुक पर टांग दिया ।

वह दुबारा मोटरसाइकल पर सवार हुआ और सीधा बैंक स्ट्रीट पहुंच गया ।

वह अपने फ्लैट में घुसा । बैडरूम की एक अलमारी खोल कर उसने उसमें से एक लगभग नौ इन्च लम्बा बांस का खोखला टुकड़ा निकाला । सूरत में निर्दोष सा लगने वाला वह बांस का टुकड़ा एक स्लीव गन (Sleevs Gun) नामक खतरनाक चीनी हथियार था । स्लीव गन के भीतर का छेद लोहे की गर्म सलाखों की सहायता से इतना हमवार बनाया हुआ था कि वह भीतर से शीशे की तरह मुलायम और चमकदार हो जाता था । नली के भीतर एक तगड़ा स्प्रिंग और एक शिकंजा लगा हुआ होता था । शिकंजे में एक छोटा सा जहर से बुझे हुए लोहे की नोक वाला तीर फंसा होता था । शिकंजे पर हल्का सा दबाव पड़ने पर स्प्रिंग खुल जाता था और तीर तेजी से नली में से बाहर निकल जाता था । स्लीव गन चीन के पुराने कबीलों में प्रयुक्त होने वाला बड़ा पुराना हथियार था । नाम स्लीव गन इसलिये पड़ा था क्योंकि पुराने जमाने में चीनी उसे अपनी लम्बी बांहों वाले चोगे की आस्तीन (स्लीव) में छिपा कर रखा करते थे । कोहनी पर किसी प्रकार का हल्का सा दबाव पड़ने की देर होती थी कि शिंकजा हट टेशंन के जोर से नाल के बीच में रखा तीर तेजी से बाहर निकलता था और सामने खड़े आदमी के शरीर में जा घुसता था ।

सुनील ने अपना कोट उतारा और सलीव गन बड़ी मजबूती से अपनी आस्तीन के साथ बांध लिया । उसने कोट वापिस पहन लिया । स्लीव गन कोट के नीचे एकदम छुप गयी । उसने एक-दो बार अपनी बांह को स्लीव गन की पोजीशन को टैस्ट किया और फिर संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाता हुआ फ्लैट से बाहर निकल आया ।
 
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