Porn Sex Kahani पापी परिवार - Page 24 - SexBaba
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Porn Sex Kahani पापी परिवार

पापी परिवार--55





नीमा द्वारा कहे शब्द कान में पड़ते ही निकुंज थोड़ा नर्वस हो गया लेकिन तभी उसे अपनी मा की आवाज़ भी सुनाई दी.

कम्मो :- "नीमा !! तू कहीं पागल तो नही हो गयी, वो क्या सोचेगा हमारे बारे में."

"मुझे तो लगा था ऑस्ट्रेलिया रहने से निकुंज ऐसे फॅशन को हम से कहीं ज़्यादा बेहतर समझता होगा, तभी मैने उससे पूछा !! खेर छोड़ो बेटा, कोई बात नही" एक तरह से नीमा निकुंज को लल्लू साबित करते हुए बोली और सुन कर निकुंज का चेहरा गंभीर होने लगा.

"नही आंटी ऐसी कोई बात नही है, ज़रा पास से देखने पर फॅब्रिक का सही अंदाज़ा लगा पाउन्गा" निकुंज उन दोनो के करीब आते हुए बोला.

"आंटी ड्रेस काफ़ी अच्छी और हॉट है" निकुंज ने हाथ की मुट्ठी में कपड़े को मरोड़ते हुए कहा, उसकी आँखें ठीक नीमा की आँखों से जुड़ी हुई थी. वहीं शरम-वश कम्मो की पलकें झुक चुकी थी.

"तो तेरा मतलब !! मैं खरीद लू इसे ?" नीमा ने नॉटी स्माइल देते हुए पुछा.

"अब ये तो आप पर डिपेंड करता है आंटी, अगर आप इसे पहेन-ने में कंफर्ट फील करें तो बेशक खरीद लें" निकुंज भी मुस्कुरा दिया.

"देखा कम्मो !! कहा था ना मैने, निकुंज को हम से बेहतर नालेज है इन सब चीज़ो का और तू खामो-ख़ाँ परेशान हो रही थी" नीमा की बात डमी के पास खड़ी सेल्स-विमन ने सुनी और फॉरन उसे उतार कर बिलिंग काउंटर पर पहुचा दिया.

"तू भी कुच्छ ले ले कम्मो, कुछ अट्रॅक्टिव सा. मैं तो स्नेहा और अपने लिए अंडरगार्मेंट्स भी लेना चाहती हूँ" नीमा ने कम्मो के कंधे को झकझोर कर कहा तो वह किसी सपने से बाहर आई.

"ना ना !! मुझे कुच्छ नही लेना, तू ही कर शॉपिंग" कम्मो हड़बड़ाई.

तीनो जल्द ही लाइनाये सेक्षन में पहुचे, निकुंज को दिखा-दिखा कर नीमा ने काफ़ी बोल्ड स्टफ खरीदा. नेट, कॉटन ब्रा-पॅंटीस का अच्छा ख़ासा कलेक्षन उसके हाथ लग चुका था.

"बेटा !! शायद तेरी मा तेरे साथ होने से कंफर्ट फील नही कर रही, तू बाहर वेट कर तो मैं इसके लिए भी कुच्छ खरीद लू. ये अकेले तो कभी यहाँ आ नही पाएगी" नीमा का इशारा समझ कर निकुंज ने कम्मो की तरफ नज़र डाली, साड़ी के छोर को उंगलियों में घुमाती वह वाकाई बेहद शरमा रही थी.

"जी ज़रूर आंटी" अपनी मा को घूरता निकुंज शॉप से बाहर चला गया लेकिन अब तक की शॉपिंग ने उसे नीमा का दीवाना बना दिया था. उसका मन ना माना और वह शॉप के बाहर लगे ट्रॅन्स्परेंट मिरर से अंदर के हालात देखने लगा.

नीमा के लाख समझाने पर भी कम्मो कुच्छ खरीदने को तैयार ना हुई तो वे दोनो भी बिलिंग करवा कर शॉप से बाहर निकल आए.

"चल कम्मो !! मैं चलती हूँ, और बेटा निकुंज कभी आंटी के ग़रीब-खाने में भी आना" जाते वक़्त भी नीमा ने उसे अपने सीने से चिपका लिया, फिर सुडोल चुचियों का घर्षण और निकुंज गरमाने लगा.

"कम्मो तेरी बहुत तारीफ कर रही थी और तू है भी इसी लायक, खेर अपनी मा का ख़याल रखा कर बेटा. कब तक वह ज़िम्मेदारियों के बंधन में बँधी रहेगी, मुझे देख अपनी लाइफ को फुल एंजाय कर रही हू और वो सिर्फ़ इस लिए क्यों कि मेरे बच्चो का साथ मेरे पास है" नीमा ने निकुंज को बाहों से आज़ाद कर कयि तरह की घुट्टियाँ पिलाई और आगे बढ़ गयी लेकिन अचानक से वह पलटी और निकुंज को अपने पास बुलाया.

निकुंज दौड़ा "जी आंटी"
 
"बेटा !! ये दो अंडरगार्मेंट्स के सेट मैने तेरी मा के लिए खरीदे हैं, वो मुझसे नही ले रही थी तो तू उसे दे देना" नीमा ने कुच्छ इस तरह से ब्रा-पॅंटीस निकुंज के हाथ में थमाई जिससे कम्मो को सिर्फ़ एहसास हुआ मगर नज़र ठीक से पकड़ नही पाई और निकुंज ने बात मानते हुए उन्हे अपनी जेब में ठूंस लिया.

"चल मैं जाती हूँ, बाइ" आँख मारती नीमा माल से बाहर निकल गयी और अब वहाँ सिर्फ़ मा-बेटे बचे थे.

"क्यों बुलाया था नीमा ने तुझे ?" कम्मो के चेहरे पर एक अजीब सी बैचैनि थी, उसे लगा कहीं नीमा ने निकुंज से डाइरेक्ट तो नही कह दिया "तेरी मा तुझसे चुदना चाहती है"

"कुच्छ ख़ास बात नही मोम पर नीमा आंटी काफ़ी ओपन माइंडेड हैं और आप को बहुत मानती हैं" निकुंज ने जवाब दिया.

"वो तेरे हाथ में कुच्छ दे रही थी, मैं देख तो नही पाई लेकिन मुझे ऐसा लगा" कम्मो ने पुछा.

"हां दिया तो है" निकुंज ने लो वाय्स में जवाब दिया "चलो ना मोम बाकी बात कार में कर लेंगे" वह वहाँ ओपन में कम्मो को लाइनाये नही दे सकता था.

"ठीक है चल" कम्मो भी असमंजस स्थिति में पार्किंग की तरफ बढ़ गयी.

"मोम !! आप ने कुच्छ नही खरीदा ?" ड्राइव के दौरान जाने -अंजाने निकुंज के मूँह से कैसे यह बात निकल गयी जिसे सुन कर कम्मो भी घबरा गयी.

"मैं .. मैं .. मुझे नही पसंद बेटा, नीमा ही पहने ऐसे कपड़े" कम्मो की ज़ुबान लड़खड़ाई.

"ऐसी बात नही है मोम, जहाँ तक मेरा मानना है. नीमा आंटी अपनी लाइफ से फुल सॅटिस्फाइड है और वो चाहती हैं !! आप भी आज के फॅशन को समझें और लाइफ खुल कर जिएं" निकुंज ने समझाया.

"वो ठीक है लेकिन उसने तुझे दिया क्या ?" कम्मो ने दोबारा प्रश्न किया.

निकुंज ने कुच्छ गहरी साँसें ली, वैसे अब वो ऐसे हलातो को काफ़ी हद तक फेस करना सीख गया था और अगले ही पल जेब से अंडरगार्मेंट्स निकाल कर उसने अपनी मा के हाथ में थमा दिए.

"ये .. ये क्या है ?" कम्मो को तेज़ झटका लगा, जैसे उसके शरीर में प्राण ही ना बचे हों.


"क्या हुआ मोम ? आंटी कितने प्यार से दे कर गयी हैं और आप फालतू परेशान हो रही हो" निकुंज ने बात करने के हिसाब से कार स्पीड को लिमिट में कर लिया.

"बेटा !! मुझे समझ नही आ रहा मैं इन्हे किस तरह आक्सेप्ट करू, नीमा और मुझ में काफ़ी फ़र्क़ है" कम्मो का शरम से बुरा हाल था.
 
"कैसा फ़र्क़ ?" निकुंज ने पूछा. "उनकी भी फॅमिली है, उनके घर में भी बच्चे हैं. फिर भी देखो कितनी फ्री हैं, लाइफ एंजाय करना कोई बुरी बात तो नही मोम"

"बुरे या अच्छे की कोई बात नही निकुंज. नीमा नॉर्मल नही है, मैने तुझे पुणे जाने के दौरान भी बताया था और फिर मैं इन्हे कैसे पहनु ? कोई देखेगा तो क्या कहेगा ?" कम्मो ने तर्क़ दिए.

"कॉन देखेगा मोम ? और वैसे भी अंडरगार्मेंट्स कपड़ो के अंदर पहने जाते हैं, खाली इन्हे पहेन कर तो कोई भी औरत घर में नही घूमती होगी." निकुंज के इस नटखटी जवाब को सुन कर कम्मो की चूत कुलबुलाने लगी और उसने फॉरन चुप्पी साध ली.

"हां बताया तो था आप ने नीमा आंटी के बारे में लेकिन शायद हमारी बात अधूरी रह गयी थी" निकुंज ने बीते पलो को कुरेदा.

"छोड़ निकुंज !! कुच्छ बातें अधूरी रहें तो ज़्यादा अच्छा रहता है" कम्मो हौले से बुदबुदाई.

"लेकिन क्यों मों ? उस वक़्त तो चर्चा हम बच्चो को ले कर ही हो रही थी और आप बता रही थीं, माता-पिता को अपनी औलाद के खातिर काफ़ी हद तक समझौते करने पड़ते हैं" निकुंज ने टॉपिक आयेज बढ़ाया.

"हां ये सच है, समझौते करने पड़ते हैं मगर नीमा जो कर रही है उसे समझौता नही विवशता कहते हैं. हलातो से हारना कहते हैं" कम्मो ने समझाया, उसकी नज़र लगातार अपने हाथ पर जमी हुई थी जिसमे उसने बेहद एरॉटिक मल्टी-कलर्ड अंडरगार्मेंट्स पकड़े हुए थे.

"हालात से तो आप भी हारी थी मोम और उस रात विवश भी थी" निकुंज के लंड मे आते तनाव ने उसे अश्लीलता के चरम पर पहुचाना शुरू कर दिया.

शुरुवती दौर में वह अपनी मा की तरफ कामोज्जित हुआ, फिर बहेन निक्की और अभी थोड़ी देर पहले आंटी नीमा ने भी सिर्फ़ उसे गरमाया ही था.

"विवशता और स्वेक्षा में भी काफ़ी अंतर है, उस वक़्त मैं मजबूर ज़रूर हुई थी लेकिन ग़लती भी तो मेरी ही थी. तो मैने जो किया उसे क़ुबूल करने में ज़रा भी जीझक नही मुझे" बोलते वक़्त कम्मो के लब थरथरा रहे थे, लग रहा था जैसे वह बुरी तरह नशे में चूर हो.

"वो एहसास तो मैं भी नही भूल सकता मोम, भले ग़लती आप अपनी मान रही हो लेकिन उस वक़्त जो कुच्छ मैने महसूस किया. वो मुझे स्वर्ग के द्वार तक ले गया था" आख़िर-कार निकुंज ने सच बोल दिया.

"तू जानता है निकुंज, उस रात मैं भी बहुत परेशान हुई थी. जो सुख आज तक मैने अपने पति को नही दिया, जिस कार्य को सोच कर ही मुझे घिन आती थी. मगर मैने खुद को तेरे लिए इतना विवश कर दिया कि स्वेक्षा से तेरा लिंग चूस्ति रही" कम्मो की आँखें मूंद गयी और हान्फते हुए उसने सीट पर अपना शीश टिका लिया.

कुच्छ देर का सन्नाटा दोनो को भारी पड़ने लगा था. निकुंज चाहता, उसकी मा बोले और कम्मो चाहती थी, उसका बेटा बोले. मगर दोनो ही चुप थे.

"तो क्या मोम आप ने पहली बार मेरे लिए वो सब किया ?" निकुंज ने फ़ैसला कर लिया कि आज वो घर पहुचने से पहले अपनी मा के अंदर उबल रहे सैलाब को हर तरह से जाँचेगा, परखेगा. क्या पता कम्मो उसे नीमा की विवशता भी बता दे.

ना चाहते हुए भी उसकी बात का जवाब देने के लिए कम्मो को अपनी बंद आँखें खोलनी पड़ी लेकिन सिर्फ़ हां में सर हिलाते हुए वह अपनी स्वीकृति दे पाई.

"यकीन नही होता मोम, आइ मीन फर्स्ट टाइम में इतना सटीक ब्लोवजोब" वह बोला.

"क्या करती मैं, तुझे परेशान कब तक देख पाती और सच कहु तो मुझे भी यकीन नही होता कि मैने ये सब कैसे कर दिया" कम्मो फुसफुसाई.
 
"मोम एक बात पुछु, अगर आप को बुरा ना लगे तो ?" निकुंज को दाव पर दाव खेलना अच्छा लगने लगा था.

"ह्म्‍म्म" कम्मो के जवाब में अब भी शांति थी बस हल्की सी घुटन का आभास हो रहा था.

"माना वह मेरी ट्रीटमेंट का ही एक पार्ट था मगर क्या आप ने भी उसे एंजाय किया था ? " निकुंज के इस सवाल ने जैसे कम्मो के गुदा द्वार में सनसनी मचा दी, उसके चूचक भी ब्लाउस फाड़ कर बाहर निकलने को आम्दा थे.

"बस कर निकुंज, एक मा और उसके बेटे के बीच इस तरह की बातें शोभा नही देती " सवाल के जवाब में कम्मो कहना तो सिर्फ़ हां चाहती थी मगर उसका व्यवहार कहीं मात्रत्व से रंडी-पने में परिवर्तित ना हो जाए, उसने खुद पर काबू किया.

"जो भी हो मोम !! मैं तो उस रात को कभी नही भूल पाउन्गा, वैसे क्या आप मुझे नीमा आंटी की विवशता का कारण बताएँगी ?" निकुंज के प्रश्न जारी रहे.

कम्मो :- "अभी मुझ में इतनी सहेन-शक्ति नही कि मैं तुझे उसके अब-नॉर्मल जीवन का राज़ बता सकु"

"चलिए फिर कभी सही लेकिन मोम आप खुद में बदलाव लाओगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा" कार को घर की पार्किंग में लगाते हुए निकुंज ने कहा.

"बदलाव ?" इस बार कम्मो प्रश्न कर बैठी.

"नीमा आंटी के बच्चे उन्हे सपोर्ट करते हैं, मैं खुद चाहता हू आप भी आज के परिवेश में रहना सीखें" निकुंज ने उन अंडरगार्मेंट्स पर नज़र डालते हुए कहा.

"बहुत बड़ा हो गया है तू, चल मैं कोशिश करूँगी" कम्मो मुस्कुरा उठी.

"थॅंक्स मॉम" निकुंज ने अचानक कम्मो का गाल चूमा और कार से उतर कर घर के अंदर जाने लगा, हैरान कम्मो भी उसके साथ थी.


वहीं शहेर के ही **** होटेल में :-

"मज़ाक ना कर दीदी !! उतार ना अपने कपड़े, देख मैं भी तो नंगा हूँ" लड़के ने बेड पर बैठी अपने बड़ी बहेन से विनती की लेकिन लड़की ने अब तक अपने छोटे भाई के मुताबिक़ कोई काम नही किया था.

"तू मादर्चोद तो बन गया, अब क्या बेहेन्चोद भी बनेगा ?" लड़की ने टॉंट मारा.

"हां बनूंगा !! फिर हम घर से मामा के घर जाने का झूट बोल कर यहाँ होटेल आए हैं. तो अब नाटक छोड़ और नंगी हो जा ना" लड़के ने दोबारा रिक्वेस्ट की.

"मान मेरी बात, ये ग़लत है छोटे" लड़की अपनी बात पर अड़ी रही, हलाकी होटेल में कमरा बुक करने का प्लान खुद उसी का था मगर वह अपने छोटे भाई की प्यास को और भी कहीं ज़्यादा बढ़ाना चाहती थी.

"कोई ग़लत नही दीदी, देख ना कैसे फड़फड़ा रहा है मेरा लॉडा" लड़का अपनी जगह से उठा और लड़की के सुंदर चेहरे पर अपना लंड रगड़ने लगा.

"ह्म्‍म्म" लड़की ने जोरदार अंगड़ाई ली "हटा इसे मेरी आँखों के सामने से" वह चिल्लाई.

"साली छिनाल, पहले मुझे गरम किया फिर इस होटेल में लाई और अब अपनी गान्ड मरा रही है. मैं जा रहा हू यहाँ से" लड़का बेड से नीचे उतरने लगा, उसकी आँखों में अंगार जल रहे थे.

"कहाँ जा रहा है भाई ?" लड़की ने हौले से पुछा.

"घर !! तेरी मा चोदने" लड़के ने गुस्से से जवाब दिया तो लड़की बेड पर लेट कर लॉट-पोट होने लगी.

लड़का थम गया, आशा के विपरीत की उसकी बहेन इस तरह उसका मज़ाक बनाएगी. क्रोध में भर-कर वह पुनः बिस्तर पर चढ़ा और लेटी सग़ी बड़ी बहेन के गले को अपने हाथ की मजबूती से जाकड़ लिया.

"चल अपना मूँह खोल और चूस मेरा लॉडा, बहुत नाटक कर लिया तूने. अब मैं तेरा रेप करने वाला हूँ" लड़की की गर्दन पर ज़रा सा प्रेशर पड़ने से खुद ब खुद उसका का मूँह खुल गया.
 
अब तक हुई अश्लील गर्माहट से लड़के का विशाल लंड पत्थर हो चुका था, लाल आलू बुखारे समान सुपाड़ा रस की गाढ़ी बूँदो से सराबोर, जिसे वह अपनी बहेन के खुल चुके गुलाबी होंठो पर फेरने लगा.


"तू भी मज़ा ले इस रस का, मम्मी तो दीवानी हैं मेरे लंड की और जल्द ही तेरी चूत भी इसके नाम की माला जपा करेगी" अट्टहास करते हुए जबरन लड़के ने आधा लंड किसी भाले की भाँति अपनी बहेन के मूँह में ठूँसा और लड़की घबरा कर अपना गला उसकी गिरफ़्त से छुड़ाने की कोशिश करने लगी.


"ना बहना !! अभी तो सज़ा मिलनी शुरू हुई है, बस तू देखती जा कैसे मैं तेरी चुदास मिटाता हू" एक करारी आह के साथ लड़के ने अपनी बहेन के मूँह में धक्के लगाने शुरू कर दिए, वह पूरी तरह जानवर बनता जा रहा था, जानता था उसकी बहेन पीड़ा से घुट रही है मगर लग रहा था जैसे वह उस पर कोई रहम नही करेगा.


"उउल्ल्लूउउउऊप" लड़की को उबकाइयाँ आने लगी, वजह लड़के का लंड उसके गले को चोट करने लगा था.


"आहह !! कितना टाइट जा रहा है. चूस बहना, किस्मत वाली है जो सगे भाई का लंड तेरे मूँह में है" इतना कह कर लड़के ने धक्के मारना बंद कर दिए, वह अपनी बहेन के मूँह से बाहर बहती उसकी लार और खुद के लंड से निकले रस के मिश्रण को गौर से देखने लगा.


"स्नेहा दीदी !! तू बहुत सुंदर है. मुझे नही पता था, मेरा लंड चूसने से मेरी बहेन को इतनी खुशी मिलेगी कि उसकी आँखें छलक उठेंगी. विक्की से पंगा ले रही थी ना, अब भुगत"


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ये दोनो नीमा के बच्चे हैं, एक रात पानी की प्यास ने स्नेहा को उसके कमरे से बाहर आने पर मजबूर किया. वह कमरे से बाहर निकली ही थी कि हॉल का नज़ारा देख उसकी प्यास गले से नीचे खिसक, उसकी कुँवारी चूत में उठने लगी.


हॉल की सारी लाइट्स ऑन थी और विक्की अपनी मम्मी को सोफे पर कुतिया बना कर चोद रहा था. स्नेहा को लगा कहीं ये सपना तो नही लेकिन उसकी मम्मी और छोटे भाई की सिसकारियों ने उसे हक़ीक़त का अंदाज़ा करवा दिया.


किसी कुँवारी लड़की के लिए चुदाई देखना बड़ी बात है मगर चुदाई उसकी मा और सगे भाई के बीच हो तो क्या कहने, स्नेहा उस रात तब तक झड़ती रही जब तक हॉल की रास-लीला समाप्त नही हो गयी.


देखने से ही पता चल रहा था कि उसकी मा और भाई काफ़ी लंबे अरसे से इस पाप में लिप्त होंगे, और अंत में जिस कामुकता से एक मा ने अपने बेटे का वीर्य चखा, स्नेहा बेहोश होते-होते बची.


रात भर चूत की आशाए जलन और मन में उठ रहे दर्ज़नो सवाल, स्नेहा सिर्फ़ करवटें बदलती रही.


रात बीती नयी सुबह आई मगर वह सो ना सकी, हलाकी उसके दिल ओ दिमाग़ में अपनी मा और भाई के लिए ज़रा भी नाराज़गी नही थी बल्कि रोमांच से उसकी चूत अब तक बहे जा रही थी.


छुट्टियों के दिन थे तो बच्चे और उनकी मा, मन चाहे समय तक नींद पूरी करते, उस दिन भी ठीक वैसा ही हुआ.


दोपहर 11:30 तक स्नेहा अपने बिस्तर पर रही. फिर जब उससे और ना लेटा गया तो वह किसी चोर के समान कमरे से बाहर आई.


किचन से आती हसी मज़ाक की आवाज़ो ने ज़ाहिर किया कि अंदर उसकी मा और भाई विक्की पहले से मौजूद हैं, वह दबे पाव किचन की तरफ बढ़ी और दरवाज़े से अंदर झाँका.


उसकी मा नीचे ज़मीन पर बैठी थी और विक्की खड़ा, मा को अपना लंड चुस्वा रहा था. नीमा की पीठ दरवाज़े की तरफ होने से वह स्नेहा को नही देख पाई लेकिन विक्की की आँखें अपनी बड़ी बहेन पर बाज़ की भाँति जमी रह गयी.


दोनो भाई-बहेन स्टॅच्यू बन चुके थे, ना तो स्नेहा द्वारा कोई हरक़त हुई और ना ही विक्की द्वारा और फिर अचानक से नीमा के मूँह की गर्मी विक्की बर्दाश्त नही कर पाया.
 
"आहह मोम" विक्क की आँखें बंद, बदन धनुषाकार हो गया और नीमा का सर पकड़ कर उसने अपना विशाल लंड, उसके कंठ तक ठेल दिया.


वहीं नीमा भी इस अप्रत्याशित हमले को सह नही पाई और हड़बड़ाहट में विक्की की जांघे नोचने लगी, उसे अचंभा हुआ कि अचानक से विक्की ने अपना पूरा लंड उसके गले में क्यों ठूंस दिया.


जब तक विक्की के टटटे खाली नही हुए उसने अपनी मा को नही छोड़ा और जब वीर्य-पात के पश्चात अपनी आँखें खोली तो देखा "स्नेहा किचन के दरवाज़े पर नही थी"


उसने फॉरन अपनी मा पर इस सच को ज़ाहिर करना चाहा मगर घबराहट में कुच्छ भी कह ना सका.


नीमा की हज़ार समझाशों के बावजूद भी वह अपनी मन-मर्ज़ी से सुबह के वक़्त, उसके मुख-चोदन का आनंद लेने को मचल रहा था और तभी उसने स्नेहा द्वारा पकड़े जाने वाली बात अपनी मा से छुपा ली.


उस दिन विक्की बहुत बेचैन रहा "कहीं स्नेहा भड़क ना उठे" मगर जब सांझ बीत जाने तक स्नेहा चुप रही तो उसका साहस बढ़ने लगा और उसी रात उसने अपनी मा को दोबारा चोदा लेकिन इस बार भी स्नेहा उसके द्वारा, उनकी चुदाई देखती पकड़ी गयी.


"लगता है दीदी की चूत भी जल्द ही चखने मिलेगी" सेक्स के दौरान विक्की ने सोचा और अपनी बड़ी बहेन के सामने जान-बूझ कर, मुस्कुराते हुए, अपनी मा को चोदता रहा. शायद अपने चुदाई कौशल का प्रदर्शन कर रहा था.


स्नेहा ने उस रात अपनी स्कर्ट के अंदर हाथ डाल, विक्की के सामने ही अपनी कुँवारी चूत मसली थी और ये वह संकेत था जो अगले ही दिन, आज वे इस होटेल के बंद कमरे में उस अधूरे महा-पापी कार्य को पूरा करने आए थे.


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"बहुत छुप-छुप कर अपनी मा को चुदते हुए देखने का मन होता है ना दीदी और तेरी चूत भी बहती है. चल आज मैं तेरा लीकेज फुल और; फाइनल ठीक कर देता हूँ" विक्की ने पुरजोर ताक़त से अपना लंड स्नेहा के मूँह में ठेलते हुए कहा और कुछ सेकेंड्स बाद बाहर खीच लिया.


"ओह" स्नेहा जोरो की साँस लेने लगी और विक्की के हाथ की गिरफ़्त ढीली पड़ते ही एक जोरदार मुक्का उसकी पीठ पर जड़ दिया.


"मादरचोद !! जान लेगा क्या मेरी ?" अपनी लार से सना विक्की का लंड हाथ में पकड़ कर स्नेहा उसे इस तरह मरोड़ने लगी जैसे उसे तोड़ ही डालेगी.


"उफफफफ्फ़ दीदी नही" अब तड़पने की बारी विक्की की थी, लेकिन वह ज़्यादा शोर मचाता इससे पहले ही स्नेहा ने अपना चेहरा लंड पर झुकाते हुए वापस उसे चूसना शुरू कर दिया.


"ह्म्‍म्म !! स्ट्रेंज सा टेस्ट है भाई, मगर मज़ा आ रहा है" स्नेहा ने आँख मारते हुए विक्की से कहा "कमिने !! मैं जान-बूझ कर तुझे उकसा रही थी तो क्या तू मुझे जान से ही मार डालता ?"
 
"कैसा फ़र्क़ ?" निकुंज ने पूछा. "उनकी भी फॅमिली है, उनके घर में भी बच्चे हैं. फिर भी देखो कितनी फ्री हैं, लाइफ एंजाय करना कोई बुरी बात तो नही मोम"


"बुरे या अच्छे की कोई बात नही निकुंज. नीमा नॉर्मल नही है, मैने तुझे पुणे जाने के दौरान भी बताया था और फिर मैं इन्हे कैसे पहनु ? कोई देखेगा तो क्या कहेगा ?" कम्मो ने तर्क़ दिए.


"कॉन देखेगा मोम ? और वैसे भी अंडरगार्मेंट्स कपड़ो के अंदर पहने जाते हैं, खाली इन्हे पहेन कर तो कोई भी औरत घर में नही घूमती होगी." निकुंज के इस नटखटी जवाब को सुन कर कम्मो की चूत कुलबुलाने लगी और उसने फॉरन चुप्पी साध ली.


"हां बताया तो था आप ने नीमा आंटी के बारे में लेकिन शायद हमारी बात अधूरी रह गयी थी" निकुंज ने बीते पलो को कुरेदा.


"छोड़ निकुंज !! कुच्छ बातें अधूरी रहें तो ज़्यादा अच्छा रहता है" कम्मो हौले से बुदबुदाई.


"लेकिन क्यों मों ? उस वक़्त तो चर्चा हम बच्चो को ले कर ही हो रही थी और आप बता रही थीं, माता-पिता को अपनी औलाद के खातिर काफ़ी हद तक समझौते करने पड़ते हैं" निकुंज ने टॉपिक आयेज बढ़ाया.


"हां ये सच है, समझौते करने पड़ते हैं मगर नीमा जो कर रही है उसे समझौता नही विवशता कहते हैं. हलातो से हारना कहते हैं" कम्मो ने समझाया, उसकी नज़र लगातार अपने हाथ पर जमी हुई थी जिसमे उसने बेहद एरॉटिक मल्टी-कलर्ड अंडरगार्मेंट्स पकड़े हुए थे.


"हालात से तो आप भी हारी थी मोम और उस रात विवश भी थी" निकुंज के लंड मे आते तनाव ने उसे अश्लीलता के चरम पर पहुचाना शुरू कर दिया.


शुरुवती दौर में वह अपनी मा की तरफ कामोज्जित हुआ, फिर बहेन निक्की और अभी थोड़ी देर पहले आंटी नीमा ने भी सिर्फ़ उसे गरमाया ही था.


"विवशता और स्वेक्षा में भी काफ़ी अंतर है, उस वक़्त मैं मजबूर ज़रूर हुई थी लेकिन ग़लती भी तो मेरी ही थी. तो मैने जो किया उसे क़ुबूल करने में ज़रा भी जीझक नही मुझे" बोलते वक़्त कम्मो के लब थरथरा रहे थे, लग रहा था जैसे वह बुरी तरह नशे में चूर हो.


"वो एहसास तो मैं भी नही भूल सकता मोम, भले ग़लती आप अपनी मान रही हो लेकिन उस वक़्त जो कुच्छ मैने महसूस किया. वो मुझे स्वर्ग के द्वार तक ले गया था" आख़िर-कार निकुंज ने सच बोल दिया.


"तू जानता है निकुंज, उस रात मैं भी बहुत परेशान हुई थी. जो सुख आज तक मैने अपने पति को नही दिया, जिस कार्य को सोच कर ही मुझे घिन आती थी. मगर मैने खुद को तेरे लिए इतना विवश कर दिया कि स्वेक्षा से तेरा लिंग चूस्ति रही" कम्मो की आँखें मूंद गयी और हान्फते हुए उसने सीट पर अपना शीश टिका लिया.


कुच्छ देर का सन्नाटा दोनो को भारी पड़ने लगा था. निकुंज चाहता, उसकी मा बोले और कम्मो चाहती थी, उसका बेटा बोले. मगर दोनो ही चुप थे.
 
"तो क्या मोम आप ने पहली बार मेरे लिए वो सब किया ?" निकुंज ने फ़ैसला कर लिया कि आज वो घर पहुचने से पहले अपनी मा के अंदर उबल रहे सैलाब को हर तरह से जाँचेगा, परखेगा. क्या पता कम्मो उसे नीमा की विवशता भी बता दे.


ना चाहते हुए भी उसकी बात का जवाब देने के लिए कम्मो को अपनी बंद आँखें खोलनी पड़ी लेकिन सिर्फ़ हां में सर हिलाते हुए वह अपनी स्वीकृति दे पाई.


"यकीन नही होता मोम, आइ मीन फर्स्ट टाइम में इतना सटीक ब्लोवजोब" वह बोला.


"क्या करती मैं, तुझे परेशान कब तक देख पाती और सच कहु तो मुझे भी यकीन नही होता कि मैने ये सब कैसे कर दिया" कम्मो फुसफुसाई.


"मोम एक बात पुछु, अगर आप को बुरा ना लगे तो ?" निकुंज को दाव पर दाव खेलना अच्छा लगने लगा था.


"ह्म्‍म्म" कम्मो के जवाब में अब भी शांति थी बस हल्की सी घुटन का आभास हो रहा था.


"माना वह मेरी ट्रीटमेंट का ही एक पार्ट था मगर क्या आप ने भी उसे एंजाय किया था ? " निकुंज के इस सवाल ने जैसे कम्मो के गुदा द्वार में सनसनी मचा दी, उसके चूचक भी ब्लाउस फाड़ कर बाहर निकलने को आम्दा थे.


"बस कर निकुंज, एक मा और उसके बेटे के बीच इस तरह की बातें शोभा नही देती " सवाल के जवाब में कम्मो कहना तो सिर्फ़ हां चाहती थी मगर उसका व्यवहार कहीं मात्रत्व से रंडी-पने में परिवर्तित ना हो जाए, उसने खुद पर काबू किया.


"जो भी हो मोम !! मैं तो उस रात को कभी नही भूल पाउन्गा, वैसे क्या आप मुझे नीमा आंटी की विवशता का कारण बताएँगी ?" निकुंज के प्रश्न जारी रहे.


कम्मो :- "अभी मुझ में इतनी सहेन-शक्ति नही कि मैं तुझे उसके अब-नॉर्मल जीवन का राज़ बता सकु"


"चलिए फिर कभी सही लेकिन मोम आप खुद में बदलाव लाओगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा" कार को घर की पार्किंग में लगाते हुए निकुंज ने कहा.


"बदलाव ?" इस बार कम्मो प्रश्न कर बैठी.


"नीमा आंटी के बच्चे उन्हे सपोर्ट करते हैं, मैं खुद चाहता हू आप भी आज के परिवेश में रहना सीखें" निकुंज ने उन अंडरगार्मेंट्स पर नज़र डालते हुए कहा.


"बहुत बड़ा हो गया है तू, चल मैं कोशिश करूँगी" कम्मो मुस्कुरा उठी.


"थॅंक्स मॉम" निकुंज ने अचानक कम्मो का गाल चूमा और कार से उतर कर घर के अंदर जाने लगा, हैरान कम्मो भी उसके साथ थी.



वहीं शहेर के ही **** होटेल में :-


"मज़ाक ना कर दीदी !! उतार ना अपने कपड़े, देख मैं भी तो नंगा हूँ" लड़के ने बेड पर बैठी अपने बड़ी बहेन से विनती की लेकिन लड़की ने अब तक अपने छोटे भाई के मुताबिक़ कोई काम नही किया था.


"तू मादर्चोद तो बन गया, अब क्या बेहेन्चोद भी बनेगा ?" लड़की ने टॉंट मारा.


"हां बनूंगा !! फिर हम घर से मामा के घर जाने का झूट बोल कर यहाँ होटेल आए हैं. तो अब नाटक छोड़ और नंगी हो जा ना" लड़के ने दोबारा रिक्वेस्ट की.


"मान मेरी बात, ये ग़लत है छोटे" लड़की अपनी बात पर अड़ी रही, हलाकी होटेल में कमरा बुक करने का प्लान खुद उसी का था मगर वह अपने छोटे भाई की प्यास को और भी कहीं ज़्यादा बढ़ाना चाहती थी.


"कोई ग़लत नही दीदी, देख ना कैसे फड़फड़ा रहा है मेरा लॉडा" लड़का अपनी जगह से उठा और लड़की के सुंदर चेहरे पर अपना लंड रगड़ने लगा.


"ह्म्‍म्म" लड़की ने जोरदार अंगड़ाई ली "हटा इसे मेरी आँखों के सामने से" वह चिल्लाई.


"साली छिनाल, पहले मुझे गरम किया फिर इस होटेल में लाई और अब अपनी गान्ड मरा रही है. मैं जा रहा हू यहाँ से" लड़का बेड से नीचे उतरने लगा, उसकी आँखों में अंगार जल रहे थे.
 
"कहाँ जा रहा है भाई ?" लड़की ने हौले से पुछा.


"घर !! तेरी मा चोदने" लड़के ने गुस्से से जवाब दिया तो लड़की बेड पर लेट कर लॉट-पोट होने लगी.


लड़का थम गया, आशा के विपरीत की उसकी बहेन इस तरह उसका मज़ाक बनाएगी. क्रोध में भर-कर वह पुनः बिस्तर पर चढ़ा और लेटी सग़ी बड़ी बहेन के गले को अपने हाथ की मजबूती से जाकड़ लिया.


"चल अपना मूँह खोल और चूस मेरा लॉडा, बहुत नाटक कर लिया तूने. अब मैं तेरा रेप करने वाला हूँ" लड़की की गर्दन पर ज़रा सा प्रेशर पड़ने से खुद ब खुद उसका का मूँह खुल गया.


अब तक हुई अश्लील गर्माहट से लड़के का विशाल लंड पत्थर हो चुका था, लाल आलू बुखारे समान सुपाड़ा रस की गाढ़ी बूँदो से सराबोर, जिसे वह अपनी बहेन के खुल चुके गुलाबी होंठो पर फेरने लगा.


"तू भी मज़ा ले इस रस का, मम्मी तो दीवानी हैं मेरे लंड की और जल्द ही तेरी चूत भी इसके नाम की माला जपा करेगी" अट्टहास करते हुए जबरन लड़के ने आधा लंड किसी भाले की भाँति अपनी बहेन के मूँह में ठूँसा और लड़की घबरा कर अपना गला उसकी गिरफ़्त से छुड़ाने की कोशिश करने लगी.


"ना बहना !! अभी तो सज़ा मिलनी शुरू हुई है, बस तू देखती जा कैसे मैं तेरी चुदास मिटाता हू" एक करारी आह के साथ लड़के ने अपनी बहेन के मूँह में धक्के लगाने शुरू कर दिए, वह पूरी तरह जानवर बनता जा रहा था, जानता था उसकी बहेन पीड़ा से घुट रही है मगर लग रहा था जैसे वह उस पर कोई रहम नही करेगा.


"उउल्ल्लूउउउऊप" लड़की को उबकाइयाँ आने लगी, वजह लड़के का लंड उसके गले को चोट करने लगा था.


"आहह !! कितना टाइट जा रहा है. चूस बहना, किस्मत वाली है जो सगे भाई का लंड तेरे मूँह में है" इतना कह कर लड़के ने धक्के मारना बंद कर दिए, वह अपनी बहेन के मूँह से बाहर बहती उसकी लार और खुद के लंड से निकले रस के मिश्रण को गौर से देखने लगा.


"स्नेहा दीदी !! तू बहुत सुंदर है. मुझे नही पता था, मेरा लंड चूसने से मेरी बहेन को इतनी खुशी मिलेगी कि उसकी आँखें छलक उठेंगी. विक्की से पंगा ले रही थी ना, अब भुगत"


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ये दोनो नीमा के बच्चे हैं, एक रात पानी की प्यास ने स्नेहा को उसके कमरे से बाहर आने पर मजबूर किया. वह कमरे से बाहर निकली ही थी कि हॉल का नज़ारा देख उसकी प्यास गले से नीचे खिसक, उसकी कुँवारी चूत में उठने लगी.


हॉल की सारी लाइट्स ऑन थी और विक्की अपनी मम्मी को सोफे पर कुतिया बना कर चोद रहा था. स्नेहा को लगा कहीं ये सपना तो नही लेकिन उसकी मम्मी और छोटे भाई की सिसकारियों ने उसे हक़ीक़त का अंदाज़ा करवा दिया.


किसी कुँवारी लड़की के लिए चुदाई देखना बड़ी बात है मगर चुदाई उसकी मा और सगे भाई के बीच हो तो क्या कहने, स्नेहा उस रात तब तक झड़ती रही जब तक हॉल की रास-लीला समाप्त नही हो गयी.


देखने से ही पता चल रहा था कि उसकी मा और भाई काफ़ी लंबे अरसे से इस पाप में लिप्त होंगे, और अंत में जिस कामुकता से एक मा ने अपने बेटे का वीर्य चखा, स्नेहा बेहोश होते-होते बची.


रात भर चूत की आशाए जलन और मन में उठ रहे दर्ज़नो सवाल, स्नेहा सिर्फ़ करवटें बदलती रही.


रात बीती नयी सुबह आई मगर वह सो ना सकी, हलाकी उसके दिल ओ दिमाग़ में अपनी मा और भाई के लिए ज़रा भी नाराज़गी नही थी बल्कि रोमांच से उसकी चूत अब तक बहे जा रही थी.


छुट्टियों के दिन थे तो बच्चे और उनकी मा, मन चाहे समय तक नींद पूरी करते, उस दिन भी ठीक वैसा ही हुआ.


दोपहर 11:30 तक स्नेहा अपने बिस्तर पर रही. फिर जब उससे और ना लेटा गया तो वह किसी चोर के समान कमरे से बाहर आई.


किचन से आती हसी मज़ाक की आवाज़ो ने ज़ाहिर किया कि अंदर उसकी मा और भाई विक्की पहले से मौजूद हैं, वह दबे पाव किचन की तरफ बढ़ी और दरवाज़े से अंदर झाँका.


उसकी मा नीचे ज़मीन पर बैठी थी और विक्की खड़ा, मा को अपना लंड चुस्वा रहा था. नीमा की पीठ दरवाज़े की तरफ होने से वह स्नेहा को नही देख पाई लेकिन विक्की की आँखें अपनी बड़ी बहेन पर बाज़ की भाँति जमी रह गयी.


दोनो भाई-बहेन स्टॅच्यू बन चुके थे, ना तो स्नेहा द्वारा कोई हरक़त हुई और ना ही विक्की द्वारा और फिर अचानक से नीमा के मूँह की गर्मी विक्की बर्दाश्त नही कर पाया.




"आहह मोम" विक्क की आँखें बंद, बदन धनुषाकार हो गया और नीमा का सर पकड़ कर उसने अपना विशाल लंड, उसके कंठ तक ठेल दिया.


वहीं नीमा भी इस अप्रत्याशित हमले को सह नही पाई और हड़बड़ाहट में विक्की की जांघे नोचने लगी, उसे अचंभा हुआ कि अचानक से विक्की ने अपना पूरा लंड उसके गले में क्यों ठूंस दिया.


जब तक विक्की के टटटे खाली नही हुए उसने अपनी मा को नही छोड़ा और जब वीर्य-पात के पश्चात अपनी आँखें खोली तो देखा "स्नेहा किचन के दरवाज़े पर नही थी"


उसने फॉरन अपनी मा पर इस सच को ज़ाहिर करना चाहा मगर घबराहट में कुच्छ भी कह ना सका.


नीमा की हज़ार समझाशों के बावजूद भी वह अपनी मन-मर्ज़ी से सुबह के वक़्त, उसके मुख-चोदन का आनंद लेने को मचल रहा था और तभी उसने स्नेहा द्वारा पकड़े जाने वाली बात अपनी मा से छुपा ली.


उस दिन विक्की बहुत बेचैन रहा "कहीं स्नेहा भड़क ना उठे" मगर जब सांझ बीत जाने तक स्नेहा चुप रही तो उसका साहस बढ़ने लगा और उसी रात उसने अपनी मा को दोबारा चोदा लेकिन इस बार भी स्नेहा उसके द्वारा, उनकी चुदाई देखती पकड़ी गयी.


"लगता है दीदी की चूत भी जल्द ही चखने मिलेगी" सेक्स के दौरान विक्की ने सोचा और अपनी बड़ी बहेन के सामने जान-बूझ कर, मुस्कुराते हुए, अपनी मा को चोदता रहा. शायद अपने चुदाई कौशल का प्रदर्शन कर रहा था.


स्नेहा ने उस रात अपनी स्कर्ट के अंदर हाथ डाल, विक्की के सामने ही अपनी कुँवारी चूत मसली थी और ये वह संकेत था जो अगले ही दिन, आज वे इस होटेल के बंद कमरे में उस अधूरे महा-पापी कार्य को पूरा करने आए थे.


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