Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई - Page 4 - SexBaba
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Maa Sex Kahani चुदासी माँ और गान्डू भाई

माँ आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी। इसलिए मैं कोई भी हड़बड़ी नहीं करना चाहता था। मैं इंतजार कर रहा था की जल्द ही यह फूल खुद-बा-खुद टूट के मेरी गोद में गिरे। उसे विधवा से सुहागन बनाऊँ और उसका सुहाग मैं खुद बनँ।


दूसरे दिन स्टोर जाते समय मैं माँ को ब्यूटी पार्लर पर ले गया। पार्लर की माँ की उमर की अधेड़ मालेकिन मेरे स्टोर की परमानेंट ग्राहक थी, सो मेरा उससे बहुत अच्छा परिचय था। माँ की उमर की होने के बावजूद उसका फिगर, रहन-सहन और बनाव शृंगार बिल्कुल युवतियों जैसा था। उसकी टाइट जीन्स, स्लोगन लिखा टाप, बाबकट बाल, फेशियल से पुता चेहरा सब मुझे बहुत अच्छा लगता था। इस पार्लर में अधिकतर अधेड़ महिलाएं ही। आती थीं, जिनकी चाह उस मालेकिन जैसी बनने की रहती थी। मैंने उस पार्लर की मालेकिन से हाय हेल्लो की, माँ का उसे परिचय दिया और माँ को वहीं छोड़कर मैं अपने स्टोर में चला गया।


रात जब 8:00 बजे के करीब घर पहुँचा तो माँ ने ही दरवाजा खोला। माँ का चेहरा बिल्कुल चमक दमक रहा था। फेशियल, आइब्रो, बालों की कटिंग सब कुछ बहुत सलीके से की गई थी। मैं काफी देर माँ को एकटक देखते रह गया और माँ लज्जाशील नारी की तरह मंद-मंद मुश्कुराते हुए शर्मा रही थी।


विजय- “वाह... आज तो बदले-बदले सरकार नजर आ रहे हैं। माँ तुम्हें तो उस ब्यूटी पार्लर वाली मिसेज कपूर ने एकदम अपने जैसी नौजवान युवती सा बना दिया है। जानती हो वो भी तुम्हारी उमर की एक विधवा है पर क्या अपने आपको मेनटेन रखती है की बस मेरे जैसे नौजवान भी उसे देखकर आहें भरे...”


माँ- “तो उन आहें भरनेवालों में एक तुम भी हो। चलो हाथ मुँह धोकर तैयार हो जाओ, मैं खाना परोसती हूँ.”

फिर मैं थोड़ी ही देर में माँ के साथ डाइनिंग टेबल पर था। रोज की तरह हम माँ बेटों ने साथ-साथ खाना खाया।


मैं खाना खाकर आज अपने रूम में आ गया और बेड पर लेट गया।
 
थोड़ी देर में माँ भी मेरे रूम में आ गई। मुझे लेटा देख उसने पूछा- “अरे विजय बेटा, आज खाना खाते ही लेट गये। क्या बात है, तबीयत तो ठीक है ना? कहीं उस ब्यूटी पार्लर वाली की याद तो नहीं आ रही?"

मैं- “नहीं माँ जब से तुम यहाँ आई हो मुझे और किसी की याद नहीं आती। मेरे लिए तो तुम ही सब कुछ हो..”

राधा- “तुम आजकल बातें बड़ी प्यारी-प्यारी करते हो। कहीं कोई लड़की तो नहीं पटाने लगे?”

विजय- "माँ तुम तो जानती हो की लड़की वड़की में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं..”

राधा- “लेकिन मेरा तो आजकल तुम बहुत ही ध्यान रख रहे हो...” यह कहकर माँ भी मेरे पास मेरे बेड पर बैठ गई और मैं भी बेड पर टाँगें पसारकर बैठ गया।

विजय- “पर माँ तुम कोई लड़की थोड़े ही हो..." ऐसा कहकर मैंने डबलबेड पर बैठी हुई माँ को अपने आगोश में भर लिया और कहा- “और अगर तुम लड़की होती तो जरूर पटाता और यदि नहीं पटती तो जबरदस्ती भगाकर ले जाता..."

माँ- “पर मैं तो कोई लड़की नहीं। मैं तो 46 साल की एक ढलती उमर की पूरी औरत हूँ। मुझे भगा के तू क्या करेगा?" माँ ने मेरी आगोश में ही मेरे सीने पर सिर टिकाते हुए कहा। माँ मेरी ओर देखकर हँस रही थी।

मैंने माँ को आगोश से मुक्त कर दिया और उसके घने बालों पर हाथ फेरने लगा- “माँ मुझे तो शुरू से ही तुम्हारे जैसी बड़ी उमर की औरतें ही अच्छी लगती हैं। स्टोर में एक से एक नौजवान लड़कियां मेरे पर मरती है, पर मैं उनकी तरफ देखता तक नहीं..”

राधा- “तो क्या मेरे जैसी किसी से शादी करेगा? मेरा इतना सजीला नौजवान बेटा है, ऐसे गठीले मर्द को तो एक से एक सुंदर और माडर्न लड़की मिल जाएगी। कहीं कोई चक्कर वाककर चल रहा है तो बता, उसे कल ही तेरी बहू बनाकर ले आती हूँ...”

विजय- “नहीं माँ, ऐसा सोचना भी मत। अभी तो तुम जैसी मन मिलने वाली माँ के रूप में मुझे दोस्त मिली है। अभी तो मेरा पूरा ध्यान इसी बात पर है की तुझे हर प्रकार का सुख दें, तेरी जी भर के सेवा करूँ। मुझे तेरे ही। साथ सिनेमा जाने में, होटेलों में खाने में, पार्को की सैर करने में मजा आता है। फिर अजय जैसा प्यारा भाई मिला है की अपने बड़े भैया की खुशी के लिए कुछ भी करने को हरदम तैयार रहता है। इतने दिन तो मैं शहर में अकेला था, अब इतनी प्यारी माँ और भाई का साथ मिला है तो तू कह रही है की कोई माडर्न लड़की को तेरी बहू बनाकर ले आऊँ। जानती हो ऐसी लड़की आते ही सबसे पहले तेरी और अजय की यहाँ से छुट्टी करेगी। जो घर प्यार का स्वर्ग बना हुआ है उसे नरक बना देगी। मुझे तो तेरे जैसी कोई चाहिए जिसने पति की सेवा में, घर को जोड़े रखने में अपने सारे सुख चैन छोड़ दिए..”

माँ- “तो क्या मिसेज कपूर चाहिए? उसकी तो बड़ी प्रशंसा कर रहे थे। लगता है उसके तो पूरे दीवाने हो। तेरे । जैसे गबरू गठीले जवान को पाकेर तो वो निहाल हो जाएगी। यदि उसे दुबारा शादी नहीं भी करनी है तो तेरे जैसे मस्त जवान की बात आते ही वो शादी के लिए मचल जाएगी। तू कहे तो बात चला के देखें?”
 
विजय- “तूने भी कहाँ से ये शादी वाली बात छेड़ दी। मुझे कोई कपूर वपूर नहीं चाहिए। अभी तो मुझे मेरी। प्यारी-प्यारी माँ चाहिए, जिसके सामने मिसेज कपूर तो एक लौंडिया जैसी है। तो माँ मेरे जैसे को देखकर वो मिसेज कपूर शादी के लिए तैयार हो जाएगी तो फिर तुम्हें भी मेरे जैसा कोई मिल गया तो फौरन पट जाओगी?” यह कहकर मैंने माँ को वापस अपने आगोश में भर लिया।


राधा- “मिलेगा तब सोचूँगी..” माँ ने शरारती हँसी के साथ कहा।

माँ की इस बात पर मैंने उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई और उसकी आँखों में झाँकते कहा- “जी तो करता है की तेरी इस बात पर एक प्यारी सी पप्पी ले लँ...”

राधा- “तू मुझे इतना प्यार करता है और इतनी छोटी सी बात पूछ रहा है। लेनी है तो ले ले पूछ क्या रहा है?" यह कह माँ मेरी आँखों में देखते हुए हँसने लगी।

मैंने माँ का फूला-फूला गाल गप्प से अपने मुँह में भर लिया और कस के एक प्यारी सी पप्पी ले ली।

राधा- “चलो तुझे अपनी माँ की पप्पी मिल गई ना, अब खुश हो ना?”

विजय- “माँ सबके मन की बात बिना कहे ही जान लेती है और माँगते ही मुराद पूरी कर दी। जो मजा माँ की
गोद में है वो भला दूसरी की गोद में कहाँ? माँ तेरी हर बात पे, तेरी हर अदा पे मैं हमेशा खुश हूँ..”

राधा- “मेरा बेटा आजकल पूरे आशिक़ों जैसी बातें करता है। कोई बात नहीं इस उमर में हर कोई ऐसी बातें करता है..." माँ ने कहा। माँ उठ खड़ी हुई और बगल में सटे अपने रूम की ओर चल दी।

मैं भी फ्रेश होकर जिस बेड पर अभी माँ के साथ यह सब चल रहा था उसी बेड पर पड़ गया। बेड पर पड़ा-पड़ा काफी देर माँ के बारे में ही सोचता रहा और ना जाने कब नींद आ गई।

इसके दूसरे दिन मैंने माँ को शाम 5:00 बजे ही स्टोर से फोन करके बता दिया की मैंने शाम शो की दो टिकेट बुक कर ली है और वो 6:00 बजे तक तैयार होकर स्टोर में ही आ जाय। माँ 6:00 बजे स्टोर में पहुँच गई।

आज हमने पुरानी पिक्चर ‘खूबसूरत' देखी। माँ को यह साफ सुथरी पिक्चर बहुत ही अच्छी लगी। आज भी हमने बाहर ही रेस्टोरेंट में खाना खाया और 10:30 बजे घर पहुँच गये।

आज कुछ गर्मी थी सो घर पहुँचकर माँ नहाने के लिए बाथरूम में चली गई। मैं भी अपने रूम में चला गया और शावर लेकर नाइट ड्रेस चेंज कर ली। मैं अपने बेड पर पसर गया और एक मैगजीन को पलटने लगा। मैं मैगजीन में खोया हुआ था की माँ की आवाज से की ‘क्या चल रहा है?' से मेरा ध्यान माँ की तरफ गया। एक बार ध्यान गया की मैं माँ की तरफ देखते ही रह गया। माँ बहुत ही आकर्षक नाइटी में थी। माँ को नाइटी में मैं पहली बार देख रहा था। नाइटी में मेरी मदमस्त माँ 35 साल की भरी पूरी बिल्कुल आधुनिक शहरी महिला लग रही थी।

राधा- “क्या घूर-घूर के देख रहा है? जब बेटा मुझे इस रूप में देखना चाहता है, मेरी छोटी सी छोटी खुशी के लिए मरा जाता है तो मैं क्या मेरे प्यारे बेटे की इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकती। अब देखो ठीक से तुम्हारे लिए मैं पूरी शहरी बन गई..” माँ ने कहा और मेरे पास बेड पर बैठ गई।

विजय- “माँ सच-सच बताना, तमको भी ये सब अच्छा लग रहा है ना?"

माँ- “अच्छा क्यों नहीं लगेगा? तुम्हीं तो कहते रहते हो की अभी तो मैं पूरी जवान हूँ और तेरे जैसा जवान तो यह बात किसी बुढ़िया को भी कह दे तो उसमें जवानी आ जाय। पर आज तूने जो पिक्चर दिखाई, देखकर मजा आ गया...”
 
विजय- “मजा आ गया ना? देखा, अशोक कुमार जैसा बुड्ढा रेखा जैसी जवान लड़की को कैसे अपनी गर्लफ्रेंड बनाता है। माँ तुम भी मेरी गर्लफ्रेंड बन जाओ...”

राधा- “तुम मेरा बायफ्रेंड बन जाओ तो मैं अपने आप तुम्हारी गर्लफ्रेंड हो गई..”

विजय- “यह हुई ना बात। अब मजा आएगा...” यह कहकर मैंने माँ को अपनी बाँहों में जकड़ लिया और उसके
गाल को चूसते हुए पप्पी ले ली।

माँ- “लो हामी भरने की देर थी और तुम शुरू हो गये। मैं तो बस उस रेखा जैसी ही तुम्हारी गर्लफ्रेंड बनूंगी...”


विजय- “पर माँ सोचो कहाँ उसका अशोक कुमार जैसा 70 साल का बुड्ढा बायफ्रेंड और कहाँ तुम्हारा 28 साल का गबरू जवान मस्त बायफ्रेंड। उसके निर्मल आनंद लेने में और मेरे निर्मल आनंद लेने में कुछ तो फर्क होगा ना? पर असली बात है निर्मल आनंद लेना। ऐसा स्वच्छ और निसंकोच आनंद जो दोनों को बराबर मिले..” मेरी बात सुनकर माँ मंद-मंद मुश्कुरा रही थी और मैं माँ के मुश्कुराते होंठों पर अंगुली फेरने लगा।

राधा- “पिक्चर की यह निर्मल आनंद वाली बात तूने अच्छी पकड़ी। तो अब माँ को अपनी गर्लफ्रेंड बनाकर तू उससे निर्मल आनंद लेगा। पर ध्यान रखना मैं पिक्चर जैसे निर्मल आनंद की बात कर रही हूँ..”

विजय- “अब तो तुम मेरी गर्लफ्रेंड बन गई हो तो कल चलें उस पार्क की सैर करने, जहाँ लोग अपनी गर्लफ्रेंड केसाथ निर्मल आनंद लेते हैं...” मैंने माँ की आँखों में देखते शरारत भरे अंदाज में कहा।

माँ- “ना बाबा नहीं लेना मुझे ऐसा निर्मल आनंद? बेशर्म लोग कहीं के छिप-छिपी ही करनी है तो घर में जाकर करे, वहाँ पार्क में सबके सामने। तुम मुझे माडर्न बनाने के चक्कर में धीरे-धीरे पीछे ला रहे हो। पहले तो विधवा से मुझे वापस सुहागन साबित कर दिया। अब सुहागन से गर्ल यानी की कुंवारी लड़की बना दिया। आगे जहाँ से आई वहीं वापस मत भेज देना..."

विजय- “अरे माँ नहीं। तुम चाहोगी तो अब हम यहाँ से वापस आगे की ओर बढ़ने लगेंगे। विधवा से वापस सुहागन बनने में सोच नेगेटिव रहती है, जबकी कुंवारी लड़की जब सुहागन बनती है तो उसकी सोच पाजिटिव होती है...” मैंने माँ को इशारों-इशारों में संकेत दे दिया की मैं तुम्हें अपनी सुहागन बनाना चाहता हूँ।


राधा- “तो इसका मतलब की अब गर्लफ्रेंड का किस्सा खतम और वापस सुहागन माँ चाहिए तुम्हें?”

विजय- “हाँ, अब से तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह सज-धज के रहो, शृंगार करो, मन से सारी नेगेटिव बातें निकाल दो और एक गर्ल की तरह बेबाक बेफिकार जिंदगी जियो और निर्मल आनंद लो..” यह कहकर मैंने माँ के गाल का चुम्मा ले लिया।
 
माँ मेरी और देखकर हँस रही थी। मैं माँ के हँसते होंठ पर एक उंगली रखकर अपने होंठ पर अपनी जीभ फिराने लगा। मैंने अपनी ओर से इशारा दे दिया की मैं तुम्हारे होंठों का रसपान करना चाहता हूँ।

राधा- “तर्क करना तो कोई तुमसे सीखे। पर तुम्हारी बातें है बहुत गहरी। हम उचित-अनुचित, भले-बुरे, पाप-पुण्य इन दुनिया भर के लफड़ों में उलझे पड़े रहते हैं, और जो मन चाहे वो कर नहीं पाते और सोचते ही रह जाते हैं। की दूसरे क्या सोचेंगे? किसी को भी कष्ट पहँचाए बिना जिस भी काम में मन को शांति मिले, आत्मा प्रसन्न हो वही निर्मल आनंद है..” माँ ने एक दार्शनिक की भाँति कहा।

मैं- “हाँ माँ, यही तो मैं तुम्हें कहता रहता हूँ। तुम्हारी और मेरी सोच कितनी मिलती है। जो मैं सोचता हूँ ठीक तुम भी वही सोचती हो। तभी तो तुमसे मेरा इतना मन मिलता है। जब से तुम यहाँ आई हो मुझे सिर्फ तुम्हारी कंपनी में ही मजा आता है। तभी तो स्टोर से सीधा तेरे पास आ जाता हूँ। घर से बाहर भी जितना मजा मुझे। तुम्हारे साथ आ रहा है उतना आज तक नहीं आया...”

हम माँ बेटे इस प्रकार काफी देर बातें करते रहे। फिर रोज की तरह माँ अपने कमरे में सोने के लिए चली गई। मैं बिस्तर पर काफी देर पड़े-पड़े सोचता रहा की माँ मेरी कोई भी चीज का थोड़ा सा भी विरोध नहीं करती है। पर मैं माँ को पूरी तरह खोलना चाहता था की माँ की मस्त जवानी का खुलकर मजा लिया जाय। माँ आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी।

दूसरे दिन मैं रोज वाले समय पर घर आ गया। आज कहीं भी बाहर जाने का प्रोग्राम नहीं बनाया, क्योंकी आज मैं माँ बेटे के बीच की दीवार गिरा देना चाहता था। खाने का काम समाप्त होने पर माँ बाथरूम में नहाने चली गई और मैं काफी देर सोफे पर बैठा सोचने लगा की आज माँ का कौन सा रूप देखने को मिलेगा। कल माँ मुझसे बहुत खुलकर पेश आई थी, तो क्या जितना आतुर मैं हूँ उतनी ही आतुर माँ भी है? फिर मैं भी अपने कमरे में जाकर बाथरूम में घुस गया। अच्छे से शावर लिया और बहुत ही मादक हल्की सी क्रीम अपने बदन पर लगा ली। मैं तैयार होकर बेड पर बैठा फिर माँ के बारे में सोचने लगा। मैं आँखें मूंदे माँ की सोच में डूबा हुआ था की माँ की इस आवाज से मेरी तंद्रा टूटी।

राधा- “लगता है बड़ी बेसब्री से इंतजार हो रहा है...”

मैंने आँखें खोली और जैसे ही माँ की तरफ देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। माँ ने शादी का जोड़ा पहन रखा था, जो शायद उसने अब तक संभाल रखा था। माँ ने सच्ची जरी का लाल घाघरा कमर में काफी नीचे बाँधा हुआ था और उसी का मैचिंग ब्लाउज़ पहन रखा था। इन सबके ऊपर उसने हल्के लाल रंग की झीनी चुनरी ओढ़ रखी थी, जिसे पूँघट के जैसे सिर पे ले रखा था। माथे पर लाल बिंदिया भी लगा रखी थी। गले में हार, हाथों में कंगन, कहने का मतलब माँ पूरी एक नव-व्याहता दुल्हन के रूप में थी। मैं आश्चर्यचकित होकर माँ के इस अनोखे रूप को निहारे जा रहा था।

राधा- “ऐसे क्या देख रहा है? क्या कभी कोई दुल्हन देखी नहीं? वैसे तो बहुत बोलता रहता है की मैं एक । सुहागन के रूप में रहूं, सजू धजू, शृंगार करूँ और जब तेरी इच्छा का मन रखते हुए इस रूप में आ गई तो तेरी सारी बोलती बंद हो गई...”
 
माँ की बात सुनकर मैं माँ के सामने खड़ा हो गया और माँ को जोर से बाँहों में भर लिया। फिर मैं माँ को साथ लेकर बेड पर बैठ गया और मेरी बाँहों में माँ की पीठ अपने सीने पर कस ली। मुझे पक्का विश्वास हो गया की मेरी माँ सज-धज के अपने बेटे से चुदने के लिए आई है, लेकिन यह करने की मुझे जल्दी नहीं थी। यह करने से पहले मैं उसे बिल्कुल खोल लेना चाहता था और पूरी बेशर्म बना देना चाहता था।

मैंने कहा- “लो माँ कल मैंने कहा और आज तुम मेरी सुहागन बनकर आ गई...”

राधा- “तेरी सुहागन? क्या मतलब?” माँ ने मेरी आँखों में आँखें डालकर कहा।

विजय- "मेरा मतलब इस रूप में तुम और तो किसी के सामने जाने से रही, तो केवल मेरी ओर एक्सक्लूसिव्ली मेरी सुहागन हुई की नहीं। बड़ी बात यह है की इस प्रकार सुहागन की तरह-रहने से तुम्हारे मन में विधवा वाली नेगेटिव भावना नहीं रहेगी और जीवन की हर वह खुशी, मौज मस्ती जो तुम पिछले 15 साल से नहीं ले सकी, अब यहाँ बहुत ही एंजाय करते-करते ले सकोगी। जितनी सोच सकारात्मक और खुली हुई होगी जिंदगी जीने का मजा भी उतना ही आता है...” मैंने माँ को इशारों-इशारों में कह दिया की अब सारी लाज शर्म छोड़ दो और अपने सगे बेटे के साथ खुलकर रंगरेलियां मनाओ।

राधा- “यहाँ आने के बाद तुमने तो मेरी पूरी सोच ही बदल दी। गाँव के उस माहौल में में कई बार सोचती थी की कभी मेरे जीवन में भी ऐशो-आराम लिखा है या नहीं?” माँ ने मेरे सीने में मुँह छुपाते हुए कहा।

विजय- “माँ गाँव का वो माहौल अब बहुत पीछे छूट गया। अब मैं तुम्हारे जीवन में खुशियां ही खुशियां भर दूंगा। सबसे बड़ी बात यह है की तुम ऐश करने की, रंगीन जिंदगी जीने की रंगीन और शौकीन तबीयत की औरत हो।। वहीं मैं शुरू से ही बहुत खुले विचारों का हूँ। वैसे मैं हर किसी के साथ कम खुलता हूँ पर जिससे एक बार खुल जाता हूँ उसके साथ अपना सब कुछ खुलकर बॉटता हूँ..."

अब मैंने इस उन्मुक्त बहती गंगा में डुबकी लगाने का फैसला कर लिया। मैंने एक हाथ से माँ की ठुड्डी ऊपर उठा ली और दूसरे हाथ की उंगली माँ के होंठों पर फेरने लगा और साथ ही अपनी जीभ अपने होंठों पर फेरने लगा। माँ ने मेरी ओर देखते हुए मुश्कुराकर आँखें बंद कर ली और मैंने अपना मुँह नीचे करते हुए माँ के यौवन से भरे मदभरे गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मैंने माँ के होंठ अपने होंठ में जकड़ लिए और मस्त होकर अपनी मस्त जवान मम्मी के होंठों का रसपान करने लगा। रसपान करते-करते एक हाथ माँ के दाएं पुष्ट स्तन पर रख दिया और उसे हल्के-हल्के दबाने लगा।

विजय- “मम्मी अब तुम मेरी सुहागन हो। सुहागन का मतलब जिसका सुहाग हो और अब बताओ तुम्हारा सुहाग
कौन हुआ?” मैंने मम्मी की चूचियां कस के दबाते हुए कहा।
 
राधा- “तुम हुए और कौन हुआ और सुहाग होने का पूरा अधिकार जमा तो रहे हो। मन तो सदा से ही तुमको दिया हुआ था। धन की कोई बात ही नहीं, जो मेरा था वो सदा ही तुम्हारा था। जो तन बचा था उसको भी मुझे अपनी सुहागन बनाकर अधिकारी बन गये। इतने से मन नहीं भरा तो और कुछ भी चाहिए क्या?” माँ ने शरारत भरे अंदाज में कहा।

विजय- “अभी तो शुरुआत हुई है। देखती जाओ आज मैं तुझे कैसा निर्मल आनंद देता हूँ। मुझे पता है की पिछले 15 साल से तुम तड़प रही थी। तुम्हारी जवानी और तमन्नाएं सोई पड़ी थीं, लेकिन अब वे पूरी तरह सा जाग गई हैं। तुम्हारी जवानी का कुँवा जो सूख चुका था वापस लबालब भर गया है। अब उस जवानी के कुँवें से मैं । मेरी प्यास खुलकर बुझाऊँगा। समझ रही हो ना मैं किस कुँवें की बात कर रहा हूँ..” अब मैं तो बेशर्मी पर उतार गया पर देखना चाहता था की माँ इस बेशर्मी में कहाँ तक साथ निभाती है?

राधा- “सब समझती हूँ। तुम मेरी दोनों टाँगों के बीच में उभरे हुए टील्ले के बीचो-बीच खुदे कॅवें की बात कर रहे हो। लेकिन ध्यान रखना उस कॅवें के चारों ओर फिसलन भरी खाई भी है, और आजकल वहाँ झाड़ झंखाड़ भी। बहुत उगा हुआ है, कहीं उलझ कर कुँवें में मत गिर जाना। दूसरी बात कुँवा बहुत गहरा है, पानी तक पहुँचना आसान नहीं..."

माँ की यह बात सुनकर एक बार तो मैं हकबका गया की यह तो शेर पर पूरी सवा शेर निकली। पर मन ही मन बहुत खुश था। मैंने सोचा भी नहीं था की सब कुछ इतनी जल्दी इतने मनचाहे ढंग से हो जाएगा। मैं आनंद के सातवें आसमान पर था।

विजय- “ऐसे कॅवें का पानी तो मैं जरूर पियूँगा। चिंता मत करो मेरे पास लंबा मोटा और मजबूत रस्सा है और बड़ा सा टाप भी है, तेरे कॅवें का सारा पानी खींच लेगा। ठीक से समझ रही हो ना?” मैंने कहा।


राधा- “तुम मेरी दोनों टाँगों के बीच वाले कुँवें में अपनी दोनों टाँगों के बीच में लटके मोटे और लंबे रस्से के। आगे अंडे जैसा टोपा बाँधकर उतारोगे और मेरे कुँवें को उस टोपे से ठीक से झकझोर के मेरे कुँवें के रसीले पानी से अपनी प्यास बुझाओगे..." माँ ने नहले पर दहला मारा।।

विजय- “हाय मेरी राधा रानी उसे डंडा नहीं लण्ड बोलो। पूरा 11 इंच लंबा और 4 इंच मोटा है। एकदम सिंगापुरी केले जैसा। एक बार देखोगी तो मस्त हो जाओगी..” यह कहकर मैंने माँ के होंठों को वापस मुँह में ले लिया और माँ के मुँह में अपनी लंबी जुबान डाल दी। यह चुंबन काफी लंबा चला।
 
विजय- “हाय मेरी राधा रानी उसे डंडा नहीं लण्ड बोलो। पूरा 11 इंच लंबा और 4 इंच मोटा है। एकदम सिंगापुरी केले जैसा। एक बार देखोगी तो मस्त हो जाओगी..” यह कहकर मैंने माँ के होंठों को वापस मुँह में ले लिया और माँ के मुँह में अपनी लंबी जुबान डाल दी। यह चुंबन काफी लंबा चला।

राधा- “जिसका 4-5 इंच का होता है उसे नूनी बोलते हैं, जिसका 6-7 इंच का होता है उसे लण्ड बोलते हैं पर तुम्हारा तो 11 इंच लम्बा है तो उसे लण्ड नहीं हलब्बी लौड़ा बोलते हैं। मैं अब उसे झेल पाऊँगी भी या नहीं? 15 साल से अधिक हो गये मेरी चूत में एक तिनका भी नहीं गया है। मेरी चूत एकदम संकरी हो गई है। मेरे राजा मुझे चोदोगे तो कुंवारी लड़की जैसा मजा मिलेगा." माँ पूरी बेशर्मी के साथ हँसकर बोली।

अब मैंने माँ के दोनों पुष्ट चूचे ब्लाउज़ के ऊपर से ही अपने दोनों हाथों में समा लिए और उनका कस के मर्दन करने लगा। मुझे माँ के साथ पूरा बेशर्म होकर इस प्रकार खुली बातें करने में बहुत मजा आ रहा था और उससे भी बढ़कर इस बेतकल्लुफी और बेशर्मी में माँ मुझसे भी बढ़कर साबित हो रही थी। मुझे पूरा भरोसा हो गया की मैं माँ के साथ नये वासनात्मक खेल खुलकर खेल सर्केगा।

विजय- "जैसा मेरा लंबा तगड़ा शरीर है और लौड़ा है, उसे झेलना हल्की फुल्की लड़की के बस की बात नहीं है। इसलिए मेरी लड़कियों में ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं है। मुझे तो मेरे जैसी ही लंबी, तगड़ी, मस्त और बेबाक खेली खाई हुई औरत चाहिए। माँ तुम ठीक मेरा ही प्रतिबिंब हो। बिल्कुल मेरे जैसी गठीली, मजे लेने की शौकीन, खुलकर बात करने वाली हो। किसी नई लड़की को चोद दें तो लेने के देने पड़ जाएंगे। साली की एक बार में ही । फट के भोसड़ा बन जाएगी। मुझे तो ठीक तुम जैसी ही औरत चाहिए थी...” मैंने भी मजे लेते हुए कहा।

राधा- “तू तो मेरी 15 साल से बचा के रखी चूत का भोसड़ा बना देगा। ना बाबा ना.. मुझे तुमसे नहीं चुदवाना..” माँ ने इठलाते हुए कहा।

विजय- “अरे मम्मी जैसा तुम्हारा लंबा चौड़ा शरीर है उसी अनुपात में तुम्हारी चूत भी तो बड़ी होगी? बल्कि चूत नहीं मालपुवे सा फुद्दा है फुद्दा। फिर तुम तो मेरी जान हो। तुम्हारी चूत को मैं बहुत प्यार से लँगा। चिंता मत करो मेरी राधा डार्लिंग, खूब प्यार से तुम्हें मजे ले-लेकर धीरे-धीरे चोदूंगा...” मैंने माँ की जवानी के चटकारे लेते हुए कहा।

राधा- “हाय... ऐसी खुली-खुली बातें मैंने आज से पहले ना तो कभी सुनी और ना ही कभी कही। तुम्हारी सुहागन बनकर मुझे तो मेरे मन की मुराद मिल गई। ऐसी बातें करने में तो काम से भी ज्यादा मजा आता है। ऐसी ही खुली-खुली बातें करते हुए मेरी इस तड़पती जवानी को खुलकर भोगो मेरे राजा..” माँ ने कहा।

विजय- “मैं जानता था की तुम्हें असली खुशी में तुम्हारा सुहाग यानी की तुम्हारा पति, सैंया, साजन, बालम बनकर ही दे सकता था। अब लोगों के सामने तो हम माँ बेटे रहेंगे, और रात में खुलकर रंगरेलियां मनाएंगे। जवानी के नये-नये खेल खेलेंगे। क्यों मेरी रानी तैयार हो ना मेरे से खुलकर मजे लेने के लिए? कहीं कोई डर तो मन में नहीं है ना?” मैंने खुला आमंत्रण दिया।

राधा- “नहीं मेरे राजा मुझे ना तो कोई डर है और ना ही कोई शंका। मैं तुझसे मस्त होकर चुदने के लिए पूरी तैयार हूँ। मेरी चूत गीली होती जा रही है। वो तुम्हारे लण्ड को तरस रही है...”
 
मैं बेड पर से खड़ा हो गया और माँ को भी हाथ पकड़कर मेरे सामने खड़ा कर लिया। माँ को मैंने आगोश में ले लिया। माँ की खड़ी-खड़ी चूचियां मेरे सीने में चुभने लगीं। माँ के तपते होंठों पर मैंने अपने होंठ रख दिए। माँ के अमृत भरे होंठों का रसपान करते-करते मैंने पीछे दोनों हथेलियां माँ के उभरे विशाल नितंबों पर जमा दी। माँ के गुदाज चूतड़ों को मसलते हुए में माँ के पेल्विस को अपने पेल्विस पर दबाने लगा।

विजय- “अब इस सौंदर्य की प्रतिमा को अपने हाथों से धीरे-धीरे निर्वस्त्र करूंगा। तुम्हारे नंगे जिश्म को जी भर
के देदूंगा, तुम्हारे काम अंगों को छुऊँगा, उन्हें प्यार करूँगा..." चुंबन के बाद माँ की ठुड्डी को ऊपर उठाते मैंने। कहा और एक-एक करके पहले माँ के गहने उतार दिए। फिर माँ का ब्लाउज़ खोला और उसके बाद उसके घाघरे का नाड़ा खींच दिया। नाड़ा ढीला होते ही भारी घाघरा नीचे गिर पड़ा। अब माँ उसी माडर्न हल्के गुलाबी रंग की पैंटी और ब्रा में थी जो उस दिन मुझे सप्लायर ने दी थी।

5'10" लम्बे और छरहरे शरीर की मालिका श्रीमती राधा देवी, यानी की मेरी पूज्य माताजी पैंटी और ब्रा में खड़ी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी। विशाल जांघों ओर पीछे उभरे हुए नितंबों से पैंटी पूरी सटी हुई थी। माँ की फूली चूत का उभार स्पष्ट नजर आ रहा था। सीने पर दो बड़े-बड़े कलश बड़े ही तरीके से रखे हुए थे। मैंने ब्रा के ऊपर से माँ के भरे-भरे चूचों को हल्के से सहलाया और ब्रा के स्ट्रैप खोल दिए और ब्रा भी शरीर से अलग कर दी। माँ के उरोज बिल्कुल शेप में थे। गुलाबी चूचुक तने हुए और काफी बड़े-बड़े थे।

विजय- “हाय मम्मी तुम्हारे अंगूर के दाने तो बड़े मस्त हैं..." यह कहकर मैंने मुँह नीचे करके दाएं चुचुक को
अपने मुँह में भर लिया और चूचुक को चुलभुलने लगा।

तभी माँ मेरे सिर के पीछे हाथ रखकर मेरे सिर को अपनी चूची पर दबाने लगी तथा दूसरे हाथ से अपनी चूची मानो मेरे मुँह में ठूसने लगी। मुझे माँ का यह खुलापन और अदा बहुत ही पसंद आई। कुछ देर चूची चूसने के बाद मैं बेड पर बैठ गया और माँ की पैंटी में उंगलियां डालने लगा। मैंने सिर ऊपर उठाते हुए माँ की आँखों में देखा। माँ ने आँखों के इशारे से हामी भर दी। मैंने वैसे ही माँ की आँखों में देखते-देखते पैंटी नीचे सरका दी और माँ की टाँगों से निकालकर सोफे पर उछाल दी। अब माँ मेरे सामने जन्मजात नंगी खड़ी थी।

मैंने माँ के चेहरे से आँखें हटाकर माँ की चूत पर केंद्रित कर दी। मेरी माँ की चूत बहुत ही फूली हुई और घने काले बालों से भरतीं थी। माँ की झाँट के बाल घंघराले और लम्बे थे। माँ ने शायद ही कभी अपनी झांटों की । सफाई की हो। माँ की जांघे बहुत ही चौड़ी और दूधिया रंगत लिए थीं। मैंने माँ की चिकनी मरमरी जाँघों पर हाथ रख दिया और हल्के-हल्के उसपर फिसलाने लगा। तभी माँ ने टाँगें थोड़ी चौड़ी कर दी और मेरी आँखों के सामने माँ की चूत की लाल फाँक कौंध गई।

राधा- “हाय मेरे विजय राजा, तुझे अपनी माँ की चूत कैसी लगी?” माँ ने हँसते हुए पूछा।

विजय- “हाय क्या प्यारी चूत है। जितनी प्यारी यह तेरी चीज है उतने ही प्यार से इसे मेरे सामने पेश करो। इसे पूरी सजा के पूरी छटा के साथ मुझे सौंपो तब मेरी पसंद नापसंद पूछो। खूब बोल-बोलकर पूरी कामातुर होकर मुझे इसे भोगने के लिए कहो मेरी जान...” यह कहकर में बिस्तर पर लेट गया।
 
माँ मेरा मतलब समझ गई और बिस्तर पर आ गई। माँ ने मेरी छाती के दोनों ओर अपने घुटने टेक लिए और घुटनों को जितना फैला सकती थी फैला ली। मैंने भी अपने घुटने मोड़ लिए और पीछे माँ के पीठ टिकने के लिए उनका सपोर्ट बना दिया। माँ ने उनपर अपनी पीठ टिका दी और चूत मेरी ओर आगे सरकाते हुए अपने दोनों । हाथों से जितना चिदोर सकती थी उतनी चिदोर दी। माँ की चूत का लाल छेद पूरा फैला हुआ मुझे आमंत्रण दे रहा था। माँ की चूत से विदेशी सेंट की मीठी खुश्बू आ रही थी।

राधा- “लो मेरे साजन तेरी सेवा में मेरा सबसे खाश और प्राइवेट अंग पेश है, इसे ठीक से अंदर तक देखो। भीतर झाँक के देखो, इसकी ललाई देखो, इसकी चिकनाहट देखो। अपनी रानी की इस सबसे प्यारी डिश का चटखारे लेलेकर स्वाद लो...” माँ ने खनकती और थरथरती आवाज में कहा।

मैं पागल हो उठा। मैंने अपने दोनों होंठ लगभग माँ की खुली चूत के छेद में ठूस दिए। माँ के लसलसे छेद में मैंने 2-3 बार अपने होंठ घुमाए और फिर जीभ निकालकर माँ की चूत की अंदरूनी दीवारों पर फिराने लगा। माँ की चूत का अंदरूनी भाग लसलसा और हल्का नमकीन था।

चूत की नेचुरल खुश्बू विदेशी सेंट से मिली हुई बहुत ही मादक थी। मैं माँ की चूत पर मुँह दबाकर चूत को बेतहाशा चाटे जा रहा था। मेरी जीभ की नोक किसी कड़ी गुठलीनुमा चीज से टकरा रही थी। जब भी मैं उसपर जीभ फिराता माँ के शरीर में कंपन अनुभव होता। तभी माँ ने उठकर ठीक मेरे चेहरे पर आसन जमा लिया और जोर-जोर से मेरे चेहरे पर अपनी चूत दबाने लगी। मैंने माँ के फूले चूतड़ों पर अपनी मुठियां कस ली और माँ की चूत में गहराई तक जीभ घुसाकर मेरी मस्त माँ की चूत का स्वाद लेने लगा।

थोड़ी देर बाद मैं बिस्तर से खड़ा हो गया और एक-एक करके अपने कपड़े खोलने लगा। कुछ ही पल में मैं भी माँ की तरह पूरा जन्मजात नंगा था। माँ बिस्तर पर बैठी थी। मेरा 11 इंच का लण्ड लोहे की रोड की तरह तनकर खड़ा था। बड़ा सा गुलाबी रंग का सुपाड़ा एकदम चिकना था। मैंने एक पैर माँ के बगल में बिस्तर पर रखा और अपना लण्ड हाथ से पकड़कर माँ के चेहरे से टकराने लगा। माँ ने हाथ बढ़ाकर मेरे लण्ड को मुट्ठी में ले लिया, लण्ड के सुपाड़े को माँ अपने होंठों पर फिराने लगी, दूसरे हाथ से मेरे अंडकोषों को मसल रही थी।

राधा- “वाह... क्या शानदार शाही लण्ड है। ऐसे लण्ड पर तो मैं बलि बलि जाऊँ। आज से तो मैं तेरे लण्ड की कनीज हो गई। अब और मत तड़पाओ, इस मस्ताने लण्ड से मेरी प्यासी चूत की प्यास बुझा दो। इस लण्ड को मेरी चूत में पूरा उतार दो मेरे साजन, मेरी योनि का अपने विशाल लण्ड से मंथन करो। अपनी तड़पती माँ की जवानी को खुलकर भौगो। अपने लिंग के रस से मेरी योनि को सींच दो। आओ मेरे प्यारे आओ। मेरे ऊपर आ जाओ और मेरी खुशी-खुशी लो। मैं तुम्हें देने के लिए बहुत आतुर हूँ...” माँ तड़प-तड़प कह रही थी।
 
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