Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का - Page 3 - SexBaba
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Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का

वहाँ कुछ देर खड़ा रहने के पश्चात मैं अपने कमरे में चला गया. मैने बत्ती बंद की और चादर लेकर बेड पर सोने की कोशिश मैं करवटें बदलने लगा. मेरी आँखो मैं नींद का कोई नामोनिशान नही था मगर मैं जागना भी नही चाहता था. 


उस वक़्त रात काफ़ी गुज़र चुकी होगी जब मैने दरवाजे पर हल्की सी दस्तक सुनी. पहले पहल तो मैने ध्यान नही दिया, मुझे लगा मेरा वहम था मगर तीसरी बार दस्तक होने पर मुझे जबाब देना पड़ा. मुझे नही मालूम था अगर मुझे कमरे में अंधेरा ही रहने देना चाहिए या बेड के साथ लगे साइड लंप को जला देना चाहिए. मैं उठ गया और उसे बोला, "हां माँ, आ जाओ"

उसने धीरे से दरवाजा खोला और धीरे से फुसफसाई " अभी तक जाग रहे हो?" 


"हां माँ, मैं जाग रहा हूँ. अंदर आ जाओ" मुझे लगा उन हालातों में लाइट्स बंद रखना मुनासिब नही था. इसीलिए मैने बेड की साइड स्टॅंड की लाइट जला दी. 


वो एक गाउन पहने थी जो उसे सर से पाँव तक ढके हुए था---ऐसा उसने आज पहली बार किया था. मैं चाह कर भी खुद को वश में ना रख सका और गाउन का बारीकी से मुयाना करने लगा मगर मेरे हाथ निराशा लगी. उसने जानबूझ कर वो गाउन पहना था जिसने उसका पूरा बदन ढक दिया था और मुझे उसके चेहरे के सिवा कुछ भी नज़र नही आ रहा था. मैं आश्चर्याचकित था कि आख़िर उसको ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी. शायद मेरे लिए उसमे एक गेहन इशारा, एक ज़ोरदार संदेश छिपा हुया था. 


उसने मेरी कंप्यूटर वाली कुर्सी ली और उस पर थोड़े वक़्त के लिए बैठ गयी. उसकी नज़रें उसके पाँवो पर जमी हुई थी, वो उन अल्फाज़ों को ढूँढने का प्रयास कर रही थी जिनसे वो अपनी बात की शुरूआर् कर सकती. मैं चुपचाप उसे देखे जा रहा था, इस विचार से ख़ौफज़दा कि वो मुझे यही बताने आई थी कि हमें सब कुछ बंद करना पड़ेगा.

वो खामोशी आसेहनीय थी.

अंततः, बहुत लंबे समय बाद, उसने खांस कर अपना गला सॉफ किया और बोली: "क्या तुम मुझसे नाराज़ हो?"

मैं, असल में उसके सवाल से थोड़ा हैरत में पड़ गया था और मैने उसे जल्दी से जबाव दिया कि मैं उससे नाराज़ नही था. मगर जवाब देने से पहले मैं सोचने के लिए एक पल रुका. मैं असमंजस में था कि वो यह क्यों सोच रही है कि मैं उससे नाराज़ हूँ जबके मैं इस सारे घटनाक्रम के समय यही सोच सोच कर परेशान था कि वो मुझसे नाराज़ होगी. आख़िरकार वो मेरा लंड था जो उसके जिस्म पर चुभा था, जिसने मेरी उन कामुक भावनाओ को उजागर कर दिया था जो उसके लिए मेरे मन में थी. और इस पर भी वो मुझसे पूछ रही थी कि कहीं मैं उससे नाराज़ तो नही था जैसे उसने मेरे साथ कुछ बुरा कुछ ग़लत किया था.


आख़िरकार मैं बोला : "नाराज़? नही माँ मैं तुमसे बिल्कुल भी नाराज़ नही हूँ" इसके साथ ही मैने यह भी जोड़ दिया "भला मैं तुमसे नाराज़ क्यों होयुंगा?"


"मुझे लगा, मुझे लगा शायद .........." उसने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. मैं उसकी परेशानी की वजह समझ गया था. उसके मन मैं ज़रूर कुछ और भी था और मैं जानना चाहता था कि वो क्या था.


"शायद क्या माँ?" मैने उसे उकसाया.

वो कुछ पल सोचती रही और फिर एक गहरी साँस लेकर तपाक से बोली: "मुझे लगा.......जो कुछ हमारे बीच कुछ समय पहले हुआ तुम उसको लेकर मुझसे नाराज़ होगे" 

"मगर मैं नाराज़ क्यों होउंगा?" मैं अभी भी असमंजस में था. जहाँ तक मैं जानता था उसमे हम दोनो की रज़ामंदी शामिल थी.



"मुझे लगा शायद मैं हद से कुछ ज़यादा ही आगे बढ़ गयी थी जब हम ने गुडनाइट कहा था"

मैने उसके अंदर गहराई में झाँकने की कोशिश की. वो सिरफ़ अपने बर्ताव के बारे में सोच रही थी. उसे खुद से कुछ ग़लत हो जाने का भय सता रहा था. मुझे लगा वो मेरे लंड की अपने बदन पर चुभन के बारे में सोच भी नही रही थी, ना ही इस बात के बारे में कि मैने भी उसे उतनी ही तम्माना से चूमा था जितनी तमन्ना से उसने मुझे. वो सिर्फ़ अपने चूमने के बारे में सोच रही थी, जैसे ये सब पूरी तरह से एकतरफ़ा था, जैसे हमारे प्रेम संबंध में सिर्फ़ वोही हिस्सा ले रही थी.


"क्या मतलब कि तुम हद से आगे बढ़ गयी थी" मैने जानबूझकर अंजान बनते हुए पूछा. मेरे लिए यह बात बहुत राहत देने वाली थी कि वो खुद को कसूरवार ठहरा रही थी और मुझ पर कोई दोष नही मढ़ रही थी. मुझे लगा स्थिती मेरे नियनतरण में है क्योंकि वो रक्षात्मक मुद्रा में थी जबके मुझे अब डरने की कोई ज़रूरत नही थी जैसा मैं पहले सोचे बैठा था. 


वो दूबिधा में थी. मुझे अच्छी तरह से मालूम था वो किस बारे में बात कर रही है मगर मैं उसके मुख से सुनना चाहता था कि उसका इशारा किस ओर है. 


वो कुछ देर तक अपने जवाब के बारे में सोचती रही. अचानक से वो बहुत पस्त ब थकि हुई नज़र आने लगी. वो उस कुर्सी पर चुपचाप बैठी अपने पावं को देखे जा रही थी और उसके हाथ दोनो बगलों से कुर्सी को कस कर पकड़े हुए थे.


खामोशी के वो कुछ पल कुछ घंटो के बराबर थे, उसने अपना चेहरा उपर उठाया और मेरी ओर देखा; “क्या यह संभव है कि तुम वाकाई में नही जानते मैं किस बारे में बात कर रही हूँ?!”

“क्या यह संभव है कि तुम वाकाई में नही जानते मैं किस बारे मैं बात कर रही हूँ?!”


मैने उसे देखा और वो मुझे देख रही थी. उसकी आँखे में बहुत गंभीरता थी. बल्कि मुझे उसकी आँखो मैं एक अंजना डर भी नज़र आया. उसे डर था कि वो उस बात को बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रही है, जबके मैं इस बात से अंजान था कि हमारे बीच क्या चल रहा है. दूसरे लफ़्ज़ों में कहिए तो, वो उस मुद्दे को तूल दे रही थी जिसे छेड़ने की उसे कोई आवश्यकता नही थी. मैं देख सकता था कि उसे अपनी सांसो पर काबू रखने में दिक्कत हो रही थी.


मैं उस सवाल का जवाब नही देना चाहता था. मगर अब जब उसने सवाल पूछा था तो मुझे जवाब देना ही था. “मैं जानता हूँ तुम किस बारे में बात कर रही हो.” मैने बिना कुछ और जोड़े बात को वहीं तक सीमित रखा.


वो चुपचाप बैठी थी, बॅस सोचती जा रही थी. उसके माथे की गहरी शिकन बता रही थी कि वो कितनी गहराई से सोच रही थी. वो किसी विचार को जाँच रही थी मगर उसे कह नही पा रही थी. वो उसे कहने के सही लफ़्ज़ों को ढूँढने की कोशिश कर रही थी. आख़िरकार, उसने एक गहरी साँस ली ताकि अपने दिल की धड़कनो को काबू कर सके और चेहरे पर अपार गंभीरता लिए मुझे पूछा: “तो बताओ मैं किस बारे में बात कर रही थी?”
 
उसने सीधे सीधे मुझे मौका दिया था कि मैं सब कुछ खुले में ले आता. अब वक़्त आ गया था कि जो भी हमारे बीच चल रहा था उस पर खुल कर बात की जाए क्योंकि उसने बहुत सॉफ सॉफ पूछा था कि हमारे बीच चल क्या रहा था. 


मुझे कुछ समय लगा एक उपयुक्त ज्वाब सोचने के लिए, और जब मैने अपना जवाब सोच लिया तो उसकी आँखो में आँखे डाल कर देखा और कहा: “बात पूरी तरह से सॉफ है कि हम दोनो मैं से कोई भी पहल नही करना चाहता.” 


मैने देखा उसके चेहरे पर एक रंग आ रहा था और दूसरा जा रहा था और फिर वो कुछ नॉर्मल हो गयी. हालाँकि मैने बहुत सॉफ सॉफ इशारा कर दिया था कि क्या चल रहा है, वो प्रत्यक्ष बात पूरी सॉफ और सीधे लफ़्ज़ों में सुनना चाहती थी ना कि अनिश्चित लफ़्ज़ों में कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ. उसकी प्रतिक्रिया स्पष्ट और मेरी उम्मीद के मुताबिक ही थी: “क्या मतलब तुम्हारा? किस बात के लिए पहल?” 


मैं बेहिचक सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों में बयान कर सकता था मगर हमारे बीच जो चल रहा था उसके साथ एक ऐसा गहरा कलंक जुड़ा हुआ था, वो इतना शरमशार कर देने वाला था कि उस पल भी जब सब कुछ खुले में आ चुका था हम उसे स्वीकार करने से कतरा रहे थे. इतना ही नही कि हम मे से कोई भी पहला कदम नही उठाना चाहता था बल्कि हममे से कोई भी यह भी स्वीकार नही करना चाहता था कि किसी बात के लिए पहल करने की ज़रूरत थी. 


कमरे मे छाई गंभीरता की प्रबलता अविश्वसनीय थी. वो अपनी उखड़ी सांसो पर काबू पाने के लिए अपने मुख से साँस ले रही थी. मेरे दिल की धड़कने भी बेकाबू हो रही थी जब मैं जवाब के लिए उपयुक्त लफ़्ज़ों का चुनाब कर रहा था. मेरी नसों में खून इतनी तेज़ी से दौड़ रहा था कि मेरे सारे विचार भटक रहे थे. मैं जानता था वो समय एकदम उपयुक्त था, मैं जानता था कि हम दोनो हर बात से पूरी तरह अवगत थे, मैं जानता था कि हममें से किसी एक को मर्यादा की उस लक्षमण रेखा को पार करना था, मगर यह करना कैसे था, यह एक समस्या थी. 


उसके सवाल का जवाब देने की वजाय मैने उसके सामने अपना एक विचार रखा: “तुम जानती हो माँ जब हम दोनो इस बारे में बात नही करते थे तो सब कुछ कितना आसान था, कोई भी परेशानी नही थी”


उसने राहत की लंबी सांस ली और उसके चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी. मैने महसूस किया कि उसकी वो मुस्कराहट उन सब मुश्कुराहट से ज़यादा प्यारी थी जितनी मैने आज तक किसी भी औरत के चेहरे पर देखी थी. अपना बदन ढीला छोड़ते हुए उसने मुझे ज्वाब दिया : “हूँ, तुम्हारी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ. 


मैने उसके सुंदर मुखड़े और तराशे हुए होंठो को देखा. वो बहुत मोहक लग रही थी हालाँकि उसका बदन पूरी तरह से ढँका हुआ था. एक बात तो पक्की थी कि हमारे बीच बरफ की वो दीवार पिघल चुकी थी. हमारे बीच जो कुछ चल रहा था उस पर अप्रत्याशिस रूप से हम दोनो सहमत थे और हम दोनो जानते थे कि हम अपरिचित और वर्जित क्षेत्र में दाखिल हो चुके हैं.


मैं बहुत ही उत्तेजित था. मेरा लंड इतना आकड़ा हुया था कि मुझे दर्द महसूस हो रहा था. मैं उसे अपनी बाहों में भर लेना चाहता था और उसके जिस्म को अपने जिस्म के साथ दबा हुआ महसूस करना चाहता था. मैं उसके मम्मो को अपनी छाती पर रगड़ते महसूस करना चाहता था. मैं अपने हाथों से उसकी पीठ सहलाना चाहता था, उसकी गान्ड मसलना चाहता था. मैं उसके होंठो में होंठ डाल कर खुले दिल से चूमना चाहता था और चाहता था कि वो भी मुझे उतनी ही हसरत से खुल कर चूमे. 


हम वहाँ चुपचाप बैठे थे, मेरी नज़र उस पर जमी हुई थी और उसकी नज़र फर्श पर जमी हुई थी. मेरा कितना मन था कि मैं जान सकता उसके दिमाग़ में उस वक़्त क्या चल रहा था. वो अपने विचारों और भावनाओ में ध्यांमग्न जान पड़ती थी जैसे मैं अपने विचारों में था. वो बीच बीच में गहरी साँसे ले रही थी ताकि खुद को शांत कर सके. मुझे नही मालूम था अब हमे क्या करना चाहिए. 


आख़िरकार कुछ समय पश्चात, जो कि अनंतकाल लग रहा था वो धीरे से फुसफसाई: “क्या यह संभव है”

वो इतने धीरे से फुसफसाई थी कि मैं उसके लफ़्ज़ों को ठीक से सुन भी नही पाया था. मैं कुछ नही बोला.मैं उस सवाल का जबाब नही देना चाहता था. 


फिर से एक चुप्पी छा गयी जब वो मेरे जबाव का इंतेज़ार कर रही थी. जब मैने कोई जबाव नही दिया तो उसने मेरी ओर नज़र उठाकर देखा और इस बार अधीरता से पूछा: “क्या हमारे बीच यह संभव है” 


मैं बहुत उत्तेजित होता जा रहा था, मेरी नसों में दौड़ता खून उबलने लगा था क्योंकि मेरा मन उस समय बहुत सारी संभावनाओ के बारे में सोच रहा था. उसने लगभग सब कुछ सॉफ सॉफ कह दिया था और अपनी भावनाओं और हसरातों को खुले रूप से जाहिर कर दिया था. अब मेरी तरफ से संयत वार्ताव उसके साथ अन्याय होता. मैने उसकी आँखो में झाँका और अपनी नज़र बनाए रखी. अपने लफ़्ज़ों में जितनी हसरत मैं भर सकता था, भर कर मैने कहा: “तुम्हे कैसे बताऊ माँ, मेरा तो रोम रोम इसके संभव होने के लिए मनोकामना करता है

हम दोनो फिर से चुप हो गये थे. उसकी घोसना और मेरी स्वीकारोक्ति की भयावहता हम दोनो को ज़हरीले नाग की तरह डस रही थी. हम यकायक बहुत गंभीर हो गये थे. सब कुछ खुल कर सामने आ चुका था और हम एक दूसरे से क्या चाहते थे इसका संकेत सॉफ सॉफ था मगर हम फिर भी चुप चाप बैठे थे, दोनो नही जानते थे आगे क्या करना चाहिए.
 
खामोशी इतनी गहरी थी कि आख़िरकार जब उसने मेरी ओर देखा तो मैं उसके जिस्म की हिलडुल को भी सुन सकता था. उसके चेहरे पर वो अजीब भाव देख सकता था, डर और कामना, उम्मीद और आतंक का मिला जुला रूप था वो. उसने हमारी दूबिधा को लफ़्ज़ों में बयान कर दिया; “अब?.......अब क्या?” वो बोली.


हूँ, मैं भी यही सोचे जा रहा था: अब क्या? अब इसके आगे बढ़ने की हमारी क्या संभावना थी? सामान्यतः हमारा आगे बढ़ने वाला रास्ता स्पष्ट था मगर हमारे बीच कुछ भी सामने नही था. सबसे पहले हम नामुमकिन के मुमकिन होने के इच्छुक थे और अब जब वो नामुमकिन मुमकिन बन गया था, हम यकीन नही कर पा रहे थे कि यह वास्तविक है, सच है. हम समझ नही पा रहे थे कि हम अपने भाग्य का फ़ायदा कैसे उठाएँ, क्योंकि हमारे आगे बढ़ने के लिए कोई निर्धारित योजना नही थी. 


अंत में मैने पहला कदम उठाने का फ़ैसला किया. एक गहरी साँस लेकर, मैने अपनी चादर हटाई और धृड निस्चय के साथ बेड की उस तरफ को बढ़ा जिसके नज़दीक उसकी कुर्सी थी. वो संभवत मेरा इंतेज़ार कर रही थी, मैं बेड के किनारे पर चला गया और अपने हाथ उसकी ओर बढ़ा दिए. यह मेरा उसके “अब क्या?” का जवाब था.


वो पहले तो हिचकिचाई, मेरे कदम का जबाव देने के लिए वो अपनी हिम्मत जुटा रही थी. धीरे धीरे उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और मेरे हाथों में दे दिए. 


वो हमारा पहला वास्तविक स्पर्श था जब मैने उसे हसरत से छुआ था, हसरत जो उसके लिए थी और उसके जिस्म के लिए थी. उसने इसे स्वीकार कर किया था बल्कि परस्पर मेरी हसरत का जबाव उसने अपने स्पर्श से दिया था. उसके हाथ बहुत नाज़ुक महसूस हो रहे थे. बहुत नरम, खूबसूरत हाथ थे माँ के और मेरे लंबे हाथों में पूरी तरह से समा गये थे.


हमारा स्पर्श रोमांचक था ऐसा कहना कम ना होगा, ऐसे लग रहा था जैसे एक के जिस्म से विधुत की तरंगे निकल कर दूसरे के जिस्म में समा रही थी. यह स्पर्श रोमांचकता से उत्तेजना से बढ़कर था, यह एक स्पर्श मॅटर नही था, उससे कहीं अधिक था. हम ने उंगलियों के संपर्क मॅटर से एक दूसरे से अपने दिल की हज़ारों बातें को साझा किया था. हमारे हाथों का यह स्पर्श पिछली बार के उस स्पर्श से कहीं अधिक आत्मीय था जब उसने कॉरिडोर में मेरे हाथ थामे और दबाए थे. मैने अपनी उँगुलियों को उसकी हथेलियों पर रगड़ा. वो अपनी जगह पर स्थिर खड़ी रहने का प्रयास कर रही थी क्योंकि उसका जिस्म हल्के हल्के झटके खा रहा था.


मैं उसकी उंगलियाँ उसकी हथेलियों की बॅक को अपने अंगूठो से सहला रहा था. वो गहरी साँसे ले रही थी और मैं उसके जिस्म को हल्के से काँपते महसूस कर सकता था. उसके खामोश समर्पण से उत्साहित होकर मैने बेड से उतरने और उसके सामने खड़े होने का फ़ैसला किया. मैं अभी भी उसके हाथ थामे हुए था, सो मेरे बेड से उठने के समय उसके हाथ भी थोड़ा सा उपर को उठे जिस कारण उसका बदन भी थोड़ा उपर को उठा. उसने इशारा समझा और वो भी उठ कर खड़ी हो गयी. अब हम एक दूसरे के सामने खड़े थे; हाथों में हाथ थामे हम एक दूसरे की गहरी सांसो को सुन रहे थे. 


वो पहले आगे बढ़ी, वो मेरे पास आ गयी और उसने अपना चेहरा मेरी और बढ़ाया. मैने अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुकाया और वो मुझे चूमने के लिए थोड़ा सा और आगे बढ़ी. मैने उसके हाथ छोड़ दिए और उसे अपनी बाहों में भर लिया. हमारे होंठ आपस में परस्पर जुड़ गये, हमारे अंदर कामुकता का जुनून लावे की तरह फूट पड़ने को बेकरार हो उठा.


हम एक दूसरे को थामे चूम रहे थे. कभी नर्मी से, कभी मजबूती से, कभी आवेश से, कभी जोश से. हम ने इस पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास किया था कि जब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम स्वाभिवीक था. हमने पूरी कठोरता से और गहराई से एकदुसरे को चूमा. हमारे होंठ एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे और हमारी जिभें आपस में लड़ रही थी. बल्कि हमने एक दूसरे की जिव्हा को भी बारी बारी से अपने मुख मन भर कर चूसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया.

उसके होंठ बहुत नाज़ुक थे मगर उनमे कितनी कामुकता भरी पड़ी थी. उसके चुंबन बहुत नरम थे मगर कितने आनन्ददाइ थे. उसकी जिव्हा बहुत मीठी थी मगर कितनी मादक थी.




वो लम्हे अद्भुत थे और हमारा चुंबन बहुत लंबा चला था. हमने उन सभी व्यर्थ गुज़रे पलों की कमी दूर कर दी थी जब हमारे होंठ इतने नज़दीक होते थे और हम सूखे होंठो के चुंबन से कहीं अधिक करने के इच्छुक होते थे. मुझे यकीन नही हो पा रहा था हमारे चुंबन कितने आनंदमयी थे, उसके होंठ कितने स्वादिष्ट थे, और उसने अपना चेहरा कितने जोश से मेरे चेहरे पे दबाया हुआ था.
 
जब हमने अपनी भावुकता, अपनी व्याग्रता, अपने जोश को पूर्णतया एक दूसरे को जता दिया तो मैने खुद को उससे अलग किया और उसे देखने लगा. अब मैं उसे एक नारी की तरह देख सकता था ना कि एक माँ की तरह. वो उस समय मुझे असचर्यजनक रूप से सुंदर लग रही थी और मैने उसे बताया भी कि वो कितनी खूबसूरत है, कितनी मनमोहक है, कितनी आकर्षक है.


फिर मैं धीरे से उसके कान में फुसफसाया "माँ! मैं तुम्हे नंगी देखना चाहता हूँ"

एक बार फिर से वो जवाब देने में हिचकिचा रही थी. मैने उसके गाउन की डोरियाँ पकड़ी और उन्हे धीरे से खींचा. गाँठ खुलते ही उसने अपने आप को मुझसे थोड़ा सा दूर हटा लिया. वो मुझसे बाजू भर की दूरी पर थी और उसके गाउन की डोरियाँ खुल रही थी. एक बार डोरियाँ पूरी खुल गयी तो उसने उन्हे वैसे ही लटकते रहने दिया. वो अपनी बाहें लटकाए मेरे सामने बड़े ही कामोत्तेजित ढंग से खड़ी थी. उसका गाउन सामने से हल्का सा खुल गया था. 


तब मैने जो देखा........उसे देखकर मैं विस्मित हो उठा. मुझे उम्मीद थी उसने गाउन के अंदर पूरे कपड़े पहने होंगे, मगर जब मैने अपने काँपते हाथ आगे बढ़ाए और उसके गाउन को थोड़ा सा और खोला, जैसे मैं किसी तोहफे को खोल रहा था, तब मैने जाना कि उसने अंदर कुछ भी नही पहना था. 

वो उस गाउन के अंदर पूर्णतया नग्न थी. उसने वास्तव में मेरे कमरे में आने के लिए कपड़े उतारे थे, इस बात के उलट के उसे कपड़े पहनने चाहिए थे. यह विचार अपने आप में बड़ा ही कामुक था कि वो मेरे कमरे में पूरी तरह तैयार होकर एक ही संभावना के तहत आई थी, और यह ठीक वैसे ही हो भी रहा था जैसी उसने ज़रूर उम्मीद की होगी- या योजना बनाई होगी- कि यह हो.


सबसे पहले मेरी नज़र उसके सपाट पेट पर गयी. मेरी साँस रुकने लगी जब उसका पेट और उसके नीचे का हिस्सा मेरी नज़र के सामने खुल गया. पेट के नीचे मुझे उसकी जाँघो के जोड़ पे बिल्कुल छोटे छोटे से बालों का एक त्रिकोना आकर दिखाई दिया उसके बाद उसकी जांघे और उसकी टाँगे पूरी तरह से मेरी नज़र के सामने थी. इसके बाद मैने उसके गाउन के उपर के हिस्से को खोलना शुरू किया और उसके मम्मे धीरे धीरे मेरी प्यासी नज़रों के सामने नुमाया हो गये. 


वो अतुलनीय थे. मैं जानता था माँ के मम्मे बहुत मोटे हैं, मगर जब वो मेरे सामने अपना रूप विखेरते पूरी शानो शौकत में गर्व से तन कर खड़े थे, तो मैं उनकी सुंदरता देख आश्चर्यचकित हो उठा. वो भव्य थे, मादकता से लबरेज. मैं एकदम से बैसब्रा हो उठा और तेज़ी से हाथ बढ़ा कर उन्हे पकड़ लिया. मैने अपनी हथेलियाँ उसके मम्मों के इर्द गिर्द जमा दी. उसके निपल्स मेरे हाथों के बिल्कुल बीचो बीच थे. मैने उनकी कोमलता महसूस करने के लिए उन्हे धीरे से दबाया. उसके निपल एकदम आकड़े थे. उसके मम्मे विपुल और तने हुए थे. 


मेरे मम्मे दबाते ही उसने एक दबी सी सिसकी भरी जिसने मेरे कानो में शहद घोल दिया. उसे मेरे स्पर्श में आनंद मिल रहा था और मुझे उसे स्पर्श करने में आनंद मिल रहा था. जल्द ही मेरे हाथ उसके पूरे मम्मों पर फिरने लगे.


मैने ध्यान ही नही दिया कब उसने अपना गाउन अपने कंधो से सरका दिया और उसे फर्श पर गिरने दिया. वो मेरे सामने खड़ी थी, पूरी नग्न, कितनी मोहक, कितनी चित्ताकर्षक और अविश्वशनीय तौर से मादक लग एही थी. मैने उसे फिर से अपनी बाहों में भर लिया और उसे जल्दी जल्दी और कठोरता से चूमने लगा. मैं उसके मम्मों को अपनी छाती पर रगड़ते महसूस कर रहा था और मेरे हाथ उसकी पीठ से लेकर उसकी गान्ड तक सहला रहे थे. जैसे ही मेरे हाथ उसके नग्न नितंबो पर पहुँचे तो उसके साथ साथ मेरे बदन को भी झटका लगा मैं तुरंत उन्हे सहलाने लग गया. 


मैं उसे चूम रहा था, उसके मम्मो पर अपनी छाती रगड़ रहा था, उसके नितंबो को भींच रहा था, सहला रहा था, और नितंबो की दरार में अपनी उंगलियाँ फिरा रहा था. मेरे हाथ उसकी पीठ पर घूम रहे थे, उसके कुल्हों पर, उसकी बगलों पर, उसके कंधो पर, उसकी गर्दन पर, उसके चेहरे पर, उसके बालों में, और फिर अंत में वापस उसके मम्मों पर. मैं फ़ैसला नही कर पा रहा था कि मुझे उसे चूमना चाहिए, दुलारना,-पुचकारना चाहिए या सहलाना चाहिए. मैं सब कुछ एक साथ करने की कोशिश कर रहा था, इसलिए बहुत जल्दी मेरी साँस फूलने लगी.


मैं वापस होश में आया जब मैने माँ को मेरी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ते देखा और फिर वो उसे मेरे बदन से उतारने की कोशिश करने लगी. मेरी माँ मेरे कपड़े उतार रही थी. वो मुझे पूरा नग्न करना चाहती थी ताक़ि अपनी त्वचा से मेरी त्वचा के स्पर्श के एहसास को महसूस कर सके. माँ के इस कार्य में इतनी मादकता भरी थी कि मेरी उत्तेजना और भी बढ़ गयी, मेरा लंड पहले से भी ज़्यादा कड़ा हो गया था.


जब वो मेरी टी-शर्ट को मेरे सर से निकाल रही थी तो मैं थोड़ा सा पीछे हॅट गया. जैसे ही टी-शर्ट गले से निकली मैं वापस उससे चिपक गया और इस बार उसके नग्न मम्मे मेरी नंगी छाती पर दब गये थे. हमारा त्वचा से त्वचा का वो स्पर्श अकथनीय था. मैने अपनी पूरी जिंदगी में इतना अच्छा कभी महसूस नही किया था जितना अब कर रहा था जब मेरी माँ के मम्मे मेरी छाती पर दबे हुए थे, मेरे हाथ उसके नितंबो को थामे हुए उसे थोड़ा सा उपर उठाए हुए थे और मेरे होंठ उसके होंठो को लगभग चबा रहे थे.


आख़िरकार माँ ने मेरे जनून पर विराम लगाया. उसने मुझे चूमना बंद कर दिया, मुझे उसको सहलाने से रोक दिया, और मेरे कंधे पर सर रखकर मुझसे सट गयी. मैं उसे उसी तरह अपनी बाहों में थामे खड़ा रहा और अपनी धड़कनो पर काबू पाने की कोशिश करने लगा. हम कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे को बाहों में लिए खड़े थे और उन सुखद लम्हो का आनंद ले रहे थे.


अंत-तेह, काफ़ी समय बाद, मैने खुद को उससे थोड़ा सा दूर हटाया. मैं उसे इतने कस कर खुद से चिपटाये हुए था कि उसके मम्मे मेरी छाती में इस तरह धँस गये थे कि मुझे उन्हे झटके से अलग करना पड़ा. मैं, माँ और बेड के बीचोबीच खड़ा था. एकतरफ को हाथ कर मैने माँ को बेड पर चढ़ने का इशारा किया. 


इसके बाद उसने जो किया वो सबसे बढ़कर कामुक चीज़ होगी जो मैने अपनी पूरी ज़िंदगी में देखी होगी. वो मेरे बेड की ओर बढ़ी और मैं उसकी नंगी काया को निहारने लगा. उसने बेड पर झुकते हुए सबसे पहले अपने हाथ उस पर रखे. उसके मम्मे उसकी छाती से नीचे की ओर लटक रहे थे और उसकी पीठ और गान्ड एक बहुत ही मनमोहक सी कर्व बना रही थी. फिर उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और अपना दाहिना घुटना उठाकर बेड पर रख दिया जबकि बाईं टाँग पीछे को फैलाकर, उसने अपना जिस्म अत्यंत भड़कायु, मादक, कामुक और अत्यधिक उत्तेजित मुद्रा में ताना. मैने विस्मय से उसकी नग्न देह को निहारा और मेरे लंड ने उसकी उस मुद्रा की प्रतिक्रिया में एक जोरदार झटका खाया. उसने अपना बाया घुटना उठाकर उसे भी बेड पर रख दिया. अब उसकी मुद्रा बदलकर एक चौपाए की तरह हो गयी थी, वो अब अपने हाथों और घुटनो के बल बेड पर बैठी थी, 

उसकी गान्ड हवा मे उभरकर छत की ओर उठी हुई थी, उसकी पीठ एक बेहद सुंदर सी कर्व बना रही थी, और उसके मम्मे मेरे दिल की धड़कनो के साथ हिलडुल रहे थे. वो घुटनो के बल कुछ कदम आगे बढ़ाकर मेरे तकिये के नज़दीक चली गयी. फिर उसने अपने जिस्म का अग्रभाग उपर उठाया और दो तीन सेकेंड के लिए घुटनो पर बैठ गयी. फिर, वो जल्दी से मेरे तकिये पर सर रखकर मेरे बेड पर पीठ के बल लेट गयी और मुझे देखने लगी. उसके चेहरे की भाव भंगिमाएँ और उसकी आँखे जैसे पुकार पुकार कर कह रही थी ' आओ, मेरे उपर चढ़ जाओ और मुझे चोद डालो'

वो मेरी ओर देख रही थी और उसकी आँखे उसका चेहरा जैसे कह रहा था ‘आओ और मुझे चोद डालो’
 
मैं यकायक जैसे नींद से जागा. मैने फुर्ती से अपना पयज़ामा और शॉर्ट्स उतार फैंके और बेड पर चढ़कर उसके पास चला गया. उसके जिस्म में जल्द से जल्द समा जाने की उस जबरदस्त कामना से मेरा लंड पत्थर की तरह कठोर हो चुका था. उसे पाने की हसरत में मेरा जिस्म बुखार की तरह तपने लगा था. मैं उस वक़्त इतना कामोत्तेजित था कि उसके साथ सहवास करने की ख्वाहिश ने मेरे दिमाग़ को कुन्द कर दिया था. मैं उसके अंदर समा जाने के सिवा और कुछ भी सोच नही पा रहा था जैसे मेरी जिंदगी इस बात पर निर्भर करती थी कि मैं कितनी तेज़ी से उसके अंदर दाखिल हो सकता हूँ.


मैं बेड पर उसकी बगल में चला गया और उसके मम्मों को मसलने लगा. उसकी बगल में जाते ही मैने उसके होंठो को अपने होंठो में भर लिया और उन्हे चूमने और चूसने लगा और फिर मैं उसके उपर चढ़ने लगा, मैने अपने होंठ उसके होंठो पर पूरी तरह चिपकाए रखे. उसके उपर चढ़ कर मैने खुद को उसकी टाँगो के बीच में व्यवस्थित किया तो मेरा लंड उसके पेट पर चुभ रहा था. उसने अपनी टाँगे थोड़ी सी खोल दी ताकि मैं उनके बीच अपने घुटने रखकर उसके उपर लेट सकूँ.


मैं उसके बदन पर लेटे लेटे आगे पीछे होने लगा, उसके मम्मो पर अपनी छाती रगड़ने लगा, मैं बिना चुंबन तोड़े अपना लंड सीधा उपरी की ओर करना चाहता था. एक बार मेरा लंड उसकी कमर पर सीधा हो गया तो मैं अपना जिस्म नीचे को खिसकाने लगा. धीरे धीरे मैं अपना जिस्म तब तक नीचे को खिसकाता रहा जब तक मैने अपना लंड उसकी चूत के छोटे छोटे बालों में फिसलता महसूस नही किया, और नीचे जहाँ उसकी चूत थी. जल्द ही मैने महसूस किया कि मेरा लंड उसकी चूत को चूम रहा है. 


मैं बेसूध होता जा रहा था. मैं अपनी माँ को चोदने के लिए इतना बेताब हो चुका था कि अब बिना एक पल की भी देरी किए मैं उसके अंदर समा जाना चाहता था. मैं उसके मुख पर मुख चिपकाए, उसे चूमते, चाटते, चुस्त हुए आगे पीछे होने लगा इस कोशिश में कि मुझे उसका छेद मिल जाए. शायद उसको भी एहसास हो गया था कि मेरा इरादा क्या है, इसीलिए उसने अपने घुटने उपर को उठाए, अपनी टाँगे खोलकर अपने पेडू को उपर को मेरे लंड की ओर धकेला. 


जब मैं उसे भूखो की तरह चूमे, चूसे जा रहा था, जब मेरा जिस्म इतनी उत्कंठा से उसका छेद ढूँढ रहा था, उसने अपना हाथ हमारे बीच नीचे करके मेरा लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और मुझे अपनी अपनी चूत का रास्ता दिखाया. जैसे ही मैने अपना लंड उसकी चूत के होंठो के बीच पाया, जैसे ही मैने अपने लंड के सिरे पर उसकी चूत के गीलेपान को महसूस किया, मैने अपना लंड उसकी चूत पर दबा दिया. 


मैं उस समय इतना उत्तेजित हो चुका था कि कुछ भी सुन नही पा रहा था. मेरे कान गूँज रहे थे. मैं इतना कामोत्तेजित था कि उसे अपनी पूरी ताक़त से चोदना चाहता था. उसने ज़रूर मेरी अधिरता को महसूस किया होगा जैसे मुझे यकीन है उसने ज़रूर मेरी उत्तेजना की चरम सीमा को महसूस किया था. उसने मुझे अपने अंदर लेने के लिए खुद को हिल डुल कर व्यवस्थित किया. मैने महसूस किया वो मुझे अपने होंठो के बीच सही जगह दिखा रही थी. उसने मेरा लंड अपनी चूत के होंठो पर रगड़ा और फिर उसे थोड़ा उपर नीचे किया, अंत मैं मैने महसूस किया मेरे लंड की टोपी एकदम उसकी चूत के छेद के उपर थी. फिर उसने अपने नितंब उपर को और उँचे किए और उसके घुटने उसके मम्मो से सट गये. उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर रखे और तोड़ा सा द्वब देकर मुझे घुसने का इशारा किया. 


मैने घुसाया. मैं इतनी ताक़त से घुसाना चाहता था जितनी ताक़त से मैं घुसा सकता था मगर इसके उलट मैने आराम से घुसाना सुरू किया. उसके अंदर समा जाने की अपनी ज़बरदस्त इच्छा और उसमे धीरे धीरे समाने का वो फरक अविस्वसनीय था. बल्कि एक बार मैने अपने लंड को वापस पीछे को खींचा ताकि एकदम सही तरीके से डाल सकूँ, मैं माँ की चूत में पहली बार लंड घुसने को एक यादगार बना देना चाहता था. 


मैने उसकी चूत को खुलते हुए महसूस किया. वो बहुत गीली थी इसलिए घुसने में कोई खास ज़ोर नही लगाना पड़ा. मैं अपने लंड को उसकी चूत में समाते महसूस कर रहा था. मैं महसूस कर रहा था किस तेरह मेरा लंड उसकी चूत में जगह बनाते आगे बढ़ रहा था. मैने अपने लंड का सिरा उसकी चूत में समाते महसूस किया. वो एकदम स्थिर थी और उसके हाथों का मेरी पीठ पर दवाब मुझे तेज़ी से अंदर घुसा देने के लिए मज़बूर कर रहा था.


मैं उसके अंदर समा चुका था. मैने अपनी पूरी जिंदगी मैं ऐसा आनंद ऐसा लुत्फ़ कभी महसूस नही किया जितना तब कर रहा था जब मेरा लंड उसकी चूत में पूरी तेरह समा चुका था. मैने उसे इतना अंदर धकेला जितना मैं धकेल सकता था और फिर मैं उसके उपर लेट गया और उसे इस बेकरारी से चूमने लगा जैसे मैं कल का सूरज नही देखने वाला था.


मैं अपनी माँ को चूमे रहा था जब मैं अपनी माँ को चोद रहा था. मैं उसके मम्मे अपनी छाती पर महसूस कर रहा था और उसकी जांघे अपने कुल्हो पर. मैं उसकी जिव्हा अपने मुख में महसूस कर रहा था और उसकी आइडियाँ अपने नितंबो पर. मैं उसके जिस्म के अंग अंग को महसूस कर रहा था, बाहर से भी और अंदर से भी. मैं उस सनसनी को बयान नही कर सकता जो मेरे लंड से मेरे दिमाग़ और मेरे पावं के बीच दौड़ रही थी.


हम बहुत बहुत देर तक ऐसे ही चूमते रहे जबके मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. कयि बार मैं उसे अंदर बाहर करता मगर ज़्यादातर मैं उसे उसके अंदर घुसाए बिना कुछ किए पड़ा रहा जबके मेरा मुख उसके मुख पर अपना कमाल दिखा रहा था. मैने उसके होंठ चूमे, उसके गाल चूमे, उसकी आँखे, उसकी भवें, उसका माथा, उसकी तोड़ी, उसकी गर्दन और उसके कान की लौ को चाटा और अपने मुँह में भरकर चूसा. मैने उसके मम्मे चूसने की भी कोशिश की मगर उसके गुलाबी निपल चूस्ते हुए मैं अपना लंड उसकी चूत के अंदर नही रख पा रहा था.









आधी रात के उस वक़्त जब मुझे उसकी चूत में लंड घुसाए ना जाने कितना वक़्त गुज़ार चुका था मैने ध्यान दिया हम उस व्याग्रता से चूमना बंद कर चुके थे जिस व्याग्रता से अब वो मुझे मेरा लंड उसकी चूत मैं अंदर बाहर करने के लिए उकसा रही थी. मैने धीरे धीरे अंदर बाहर करना शुरू किया, मेरी पीठ पर उसके हाथ मुझे उसकी चूत में पंप करते रहने को उकसा रहे थे. अंत-तहा उसके हाथ मुझे और भी तेज़ी से धक्के मारने को उकसाने लगे, अब मैं उसे चूम नही रहा था बस उसे चोद रहा था. मैं अपने कूल्हे आगे पीछे करते हुए, अपना लंड उसकी चूत में तेज़ी से ज़ोर लगा कर अंदर बाहर कर रहा था. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे कैंची की तरह कस कर इस बात को पक्का कर दिया कि मेरा लंड उसकी चूत के अंदर घुसा रहे और फिसल कर बाहर ना निकल जाए. उसके मम्मे मेरे धक्कों की रफ़्तार के साथ ठुमके लगा रहे थे और उसके चेहरे पर वो जबरदस्त भाव थे जिन्हे ना मैं सिर्फ़ देख सकता था बल्कि महसूस भी कर सकता था. वो हमारी कामक्रीड़ा की मधुरता को महसूस कर रही थी और उसका जिस्म बड़े अच्छे से प्रतिक्रिया मे ताल से ताल मिला कर जबाव दे रहा था.


इसी तरह प्रेमरस में भीगे उन लम्हो में एक समय ऐसा भी आया जब उसके जिस्म में तनाव आने लगा और मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. अपने लंड के उसकी चूत में अंदर बाहर होने की प्रतिक्रिया स्वरूप मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. असलियत में उसे चोदने के समय उसकी प्रतिक्रिया के लिए मैं तैयार नही था जब उसका बदन वास्तव में हिचकोले खाने लगा. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे और भी ज़ोर से कस दी और उपर की ओर इतने ज़ोर से धक्के मारने लगी जितने ज़ोर से मैं नीचे को नही मार पा रहा था. उसके धक्के इतने तेज़ इतने ज़ोरदार थे कि मैं आख़िरकार स्थिर हो गया जबकि वो नीचे से अपनी गान्ड उछाल उछाल कर मेरे लंड को पूरी ताक़त से अपनी चूत में पंप कर रही थी. उसकी कराह अजीबो ग़रीब थीं. वो सिसक रही थी मगर उसकी सिसकियाँ उसके गले से रुंध रुंध कर बाहर आ रही थी. 


आख़िरकार मेरे खुद को स्थिर रखने के प्रयास के काफ़ी समय बाद यह हुआ. उसने कुछ समय तक बहुत ज़ोरदार धक्के लगाए. तब उसने अपनी पूरी ताक़त से खुद को उपर और मुझ पे दबा दिया और स्थिर हो गयी. फिर वो दाएँ बाएँ छटपताती हुई चीखने लगी. वो अपने होश हवास गँवा कर चीख रही थी. वो इतने ज़ोर से सखलित हो रही थी कि उसने लगभग मुझे अपने उपर से हटा ही दिया था


आख़िरकार उसका जिस्म नरम पड़ गया और मैने उसे फिर से चोदना चालू कर दिया. इस बार धीरे धीरे और एक सी रफ़्तार से. मैं अपने जिस्म में होने वाली सनसनाहट को अच्छे से महसूस कर सकता था. मैं भी अपना स्खलन नज़दीक आता महसूस कर रहा था और मैं उस चुदाई को ज़्यादा से ज़्यादा खींचना चाहता था जब वो एकदम नरम पड़ गयी थी. मुझे उसे इस तरह चोदने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था क्योंकि अब में अपनी सनसनाहट पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता था और उसकी चूत में अपना पूरा लंड पेलते हुए उसकी चूत से ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा ले सकता था. 


मैने अपने अंडकोषों में हल्का सा करेंट दौड़ते महसूस किया और मुझे मालूम चल गया कि अब कुछ ही पल बचे हैं. मैं और भी तेज़ी से लंड चूत में पेलने लगा क्योंकि अब वो मज़ेदार सनसनाहट का एहसास बढ़ गया था. मेरी रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी, पूरी श्रष्टी का आनंद मैं अपने लंड के सिरे पर महसूस कर रहा था और अंत में मेरी हालत एसी थी कि मैं खुद को उसके जिस्म में समाहित कर देना चाहता था.


मैं इतने ज़ोर से स्खलित होने लगा कि मेरा जिस्म बेसूध सा हो गया. वो एक जबरदस्त स्खलन था और मैं बहुत जोश से उसके अंदर छूटने लगा. पहले मेरे लंड ने थोड़े से झटके खाएँ और फिर बहुत दबाव से मेरे वीर्य की फुहारे लंड से छूटने लगी. मुझे पक्का विश्वास है उसने भी मेरे वीर्य की चोट अपनी चूत के अंदर महसूस की होगी. एक के बाद एक वीर्य की फुहारें निकलती रही. मैं लंबे समय तक छूटता रहा. मैने खुद को पूरी ताक़त से उससे चिपटाये रखा जब तक वीर्यपतन रुक ना गया. आख़िरकार मैं उसके उपर ढह गया.


मैं थक कर चूर हो चुका था और वो मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी. कितना सुखदायी था जब माँ मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी और मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. आख़िरकार मेरा लंड नरम पड़ कर इतना सिकुड गया कि अब मैं उसे उसकी चूत के अंदर घुसाए नही रख सकता था. वो फिसल कर बाहर आ गया. वो मेरे लिए भी संकेत था, मैं उसके उपर से फिसल कर उसकी बगल मे लेट गया. 


उसने मेरी ओर करवट ले ली और मुझे देखने लगी जबकि मैं अपनी सांसो पर काबू पाने का प्रयास कर रहा था. . आख़िरकार, जब मैं खुद पर नियंत्रण पाने में सफल हो गया, वो मुस्कराई, मेरे होंठो पर एक नरम सा चुंबन अंकित कर उसने पूछा: “तो, कैसा था? कैसा लगा तुम्हे?”


“मेरे पास शब्द नही हैं माँ कि तुम्हे बता सकूँ ये कितना अदुभूत था! कितना ज़बरदस्त! एकदम अनोखा एहसास था!”


"हूँ, सच में बहुत जबरदस्त था" वो बहुत खुश जान पड़ती थी. "मैने अपनी पूरी जिंदगी में इतना अच्छा कभी महसूस नही किया जितना अब कर रही हूँ" 


वो उस मिलन हमारे मिलन के कयि मौकों में से पहला मौका था. हम ने बार बार दिल खोल कर एक दूसरे को प्यार किया. हम एक दूसरे के एहसासो को, एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझे और हम एक दूसरे के प्रति अपनी गहरी इच्छाओं को अपनी ख्वाहिशों को कामनाओं को भी बखूबी जान चुके थे और एक दूसरे को जता भी चुके थे. मेरे पिताजी के आने के बाद भी हम अपनी रात्रि दिनचर्या बनाए रखने में सफल रहे बल्कि हम ने इसका विस्तार कर इसे अपनी सुबह की दिनचर्या भी बना लिया जब मेरे पिताजी के ऑफीस के लिए निकलने के बाद वो मेरे कमरे में आ जाती और हम तब तक प्यार करते जब तक मेरे कॉलेज जाने का समय ना हो जाता. यह हक़ीक़त कि हमारा प्यार हमारा रिश्ता वर्जित है, हमारे मिलन को हमारे प्रेम संबंध को आज भी इतना आनंदमयी इतना तीब्र बना देता है जितना यह तब था जब कुछ महीनो पहले हमने इसकी शुरुआत की थी





समाप्त
 
मुझे भी अपनी मां को चोदना है
केसे चोदु उसे
 
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आम तौर पर हमारे रात्रि चुंबन के सर मेरे होंठो पर चुंबन देती थी मगर उस दिन वो उस जेगह होना था जहाँ कॉरिडर से वो अपने रूम में चली जाती और मैं अपने रूम में जो के मेरे बेडरूम के सामने होना था. हम दोनो मेरे बेडरूम के दरवाजे के आगे एक दूसरे को सुभरात्रि बोलने के लिए रुक गये. अब हमे वो चुंबन हम दोनो के एक दूसरे के सामने खड़े होकर करना था जिसमे कि उसे अपना चेहरा उपर को उठाना था जबके मुझे अपना चेहरा नीचे को झुकाना था.

उस चुंबन की आत्मीयता और गहराई पहले चुंबनो के मुक़ाबले खुद ब खुद बढ़ गयी थी, रात के अंधेरे की सरसराहट उसे रहास्यपूर्ण बना रही थी. हम इतने करीब थे कि मैं उसके मम्मो को अपनी छाती के नज़दीक महसूस कर सकता था, यह पहली वार था जब हम ऐसे इतने करीब थे. मुझे नही मालूम कि उसके मामए वाकाई मुझे छू रहे थे या नही मगर वो मेरी पसलियों के बहुत करीब थे, बहुत बहुत करीब! उसके माममे हैं ही इतने बड़े बड़े!

हम दोनो ने उस दिन काफ़ी वाक़त एकसाथ गुज़ारा था, खूब मज़ा किया था, एक दूसरे के साथ का बहुत आनंद मिला था. मन में आनंद की तरंगे फूट रही थी और जो अतम्ग्लानि मैने पिछले गीले चुंबनो को लेकर महसूस की थी वो पूरी तेरह से गायब हो चुकी थी. महॉल की रोमांचिकता में तब और भी इज़ाफा हो गया जब उसने अपना हाथ (असावधानी से) मेरे बाएँ बाजू पर सहारे के लिए रख दिया.

जब उसने उपर तक पहुँचने के लिए खुद को उपर की ओर उठाया तो मैने निश्चित तौर पे उसके भारी मम्मो को अपनी छाती से रगड़ते महसूस किया. मैने खुद को एकदम से उत्तेजित होते महसूस किया और फिर ना जाने कैसे, खुद बा खुद मेरी जीब बाहर निकली और मेरे होंठो को पूरा गीला कर दिया जब वो उसके होंठो को लगभग छूने वेल थे. वो मुझे इतने अंधेरे में होंठ गीले करते नही देख पाई होगी.

जैसे ही हमारे होंठ एक दूसरे से छुए, प्रतिकिरिया में खुद बा खुद उसका दूसरा हाथ मेरे दूसरे बाजू पर चला गया और इसे संकेत मान मेरे होंठो ने खुद बा खुद उसके होंठो पर हल्का सा दबाब बढ़ा दिया.

यह एक छोटा सा चुंबन था मगर लंबे समय तक अपना असर छोड़ने वाला था.

उसके होंठ भी नम थे. उसने उन्हे नम किया था जैसे मैने अपने होंठ नम किए थे. क्योंकि मैं उसके उपर झुका हुआ था, इसलिए जब हमारे होंठ आपस में मिले और उन्होने एक दूसरे पर हल्का सा दवाब डाला तो दोनो की नमी के कारण उसका उपर का होंठ मेरे होंठो की गहराई में फिसल गया जबकि मेरा नीचे वाला होंठ उसके होंठो की गहराई में फिसल गया. और सहजता से दोनो ने एक दूसरे के होंठो को अपने होंठो में समेटे रखा. मैने उसका मुखरस चखा और वो बहुत ही मीठा था. मुझे यकीन था उसने भी मेरा मुख रस चखा था. 

जैसे ही उसको एहसास हुआ के हमारा शुभरात्रि का वो हल्का सा चुंबन एक असली चुंबन में तब्दील हो चुका है तो वो एकदम परेशान हो उठी. उसके हाथों ने मुझे धीरे से दूर किया और उसने अपना मुख मेरे मुख से दूर हटा लिया. हमारा चुंबन थोड़ा हड़बड़ी में ख़तम हुया, वो धीरे से गुडनाइट बुदबुदाई और जल्दी जल्दी अपने रूम को निकल गयी.

मैं कम से कम वहाँ दस मिनिट खड़ा रहा होऊँगा फिर थोड़ा होश आने पर खुद को घसीटता अपने बेडरूम में गया और जाकर अपने बेड पर लेट गया.

मेरे लिए यह स्वाभाविक ही था कि मैं अगले दिन कुछ बुरा महसूस करते हुए जागता. हम ने एक दूसरे को ऐसे चूमा था जैसा हमारे रिश्ते में बिल्कुल भी स्विकार्य नही था और फिर यह बात कि वो लगभग वहाँ से भागते हुए गयी थी, से साबित होता था कि हम ने कुछ ग़लत किया था. मुझे समझ नही आ रहा था कि हम एक दूसरे का सामना कैसे करेंगे

हम इसे एक बुरा हादसा मान कर भूल सकते थे और अपनी ज़िंदगी की ओर लौट सकते थे, मगर असलियत में यह कोई हादशा नही था. हम ने इसे स्वैच्छा से किया था इसमे कोई शक नही था.

1. मैने वास्तव में अपनी सग़ी माँ को चूमा था और वो जानती थी कि मैने उसे जिस तरह चूमा था वैसे मैं उसे चूम नही सकता था. यह बात कि वो लगभग वहाँ से भागती हुई गयी थी, साबित करती थी कि मेरा उसे चूमना ग़लत था और वो खुद यह जानती थी कि यह ग़लत है इसलिए उसने इस पर वहीं विराम लगा दिया इससे पहले के हम इस रास्ते पर और आगे बढ़ते.

मगर हम ने इस समस्या से निजात पाने का आसान तरीका चुना. हम ने ऐसे दिखावा किया जैसे कुछ हुआ ही नही था. वैसे भी ऐसा कुछ कैसे घट सकता था? वो मेरी माँ थी और मैं उसका बेटा. कुछ ग़लत नही घट सकता था. जो भी पछतावा था जा शरम थी वो सिर्फ़ हमारी चंचलता और शरारत की वेजह से थी. 

मुझे जल्द ही समझ में आ गया के इंसानी दिमाग़ की यही फ़ितरत होती है कि वो किसी ग़लती की वेजह से होने वाली आत्मग्लानी को यही कह कर टाल देता है कि ग़लती की वेजह अवशयन्भावि थी. हम ने एक सुखद, आत्मीयता से भरपूर शाम बिताई थी इसलिए यह स्वाभाविक ही था हम एक दूसरे को खुद के इतने नज़दीक महसूस कर रहे थे कि वो चुंबन स्वाभाविक ही था. इसके इलावा इतना गहरा अंधेरा था कि हमे कुछ दिखाई भी तो नही दे रहा था. 

जब एक बार पछतावे की भावना दिल से निकल गयी और उस 'शरारत' को न्यायोचित ठहरा दिया गया तो मेरे लिए माँ को नयी रोशनी में देखना बहुत मुश्किल नही रह गया था. मैं वाकाई में माँ को एक नयी रोशनी में देख रहा था. मैं उसे ऐसे रूप में देख रहा था जिसकी ओर पहले कभी मेरा ध्यान ही नही गया था.

मैने ध्यान दिया कि वो नये और आधुनिक कपड़ों की तुलना में पुराने कपड़ों में कहीं ज़्यादा अच्छी लगती है. वो नयी और महँगी स्कर्ट्स की तुलना में अपनी पुरानी फीकी पड़ चुकी जीन्स में कहीं ज़यादा अच्छी दिखती थी. वो ब्लाउस के मुक़ाबले टी-शर्ट में ज़्यादा सुंदर लगती थी. उसके बाल चोटी में बँधे ज़्यादा अच्छे लगते थे ना कि जब वो हेर सलून से कोई स्टाइल बनवा कर आती थे. यहाँ जिस खास बिंदु की ओर मैं इशारा करना चाहता हूँ वो यह है कि वो मुझे वास्तव में बहुत सुंदर नज़र आने लगी थी-----एक सुंदर नारी की तरह.
 
क्या आप इस कहानी को मां के शब्दों में भी लिख सकते है क्या ???
 
Prakash yadav said:
क्या आप इस कहानी को मां के शब्दों में भी लिख सकते है क्या ???
[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]उसने अपना हाथ हमारे बीच नीचे करके मेरा लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और मुझे अपनी अपनी चूत का रास्ता दिखाया. जैसे ही मैने अपना लंड उसकी चूत के होंठो के बीच पाया, जैसे ही मैने अपने लंड के सिरे पर उसकी चूत के गीलेपान को महसूस किया, मैने अपना लंड उसकी चूत पर दबा दिया[/font]

[font=tahoma, arial, helvetica, sans-serif]Aah bahut mast chudai ka varnan Kiye ho dost Maja aa gaya :heart: :heart: :heart: :heart: :heart: [/font]
 
:heart: Ahh Kash Mai maa ki chut se bete ke Lund ka Pani chus sakta ohh gazab kichudai hui hai
 
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