- Joined
- Dec 5, 2013
- Messages
- 11,664
[color=rgb(84,]गायब, सफाचट[/color]
मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।
“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊपर तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।
उसकी एक उंगली ने मेरे गाल पे सहलाया और मैं नीचे तक सिहर गया। और फिर गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर उसने उंगली से मेरी ठुड्डी उठायी और आँख में आँख डालकर बोली- “बहुत मस्त शेव बनाया। एकदम मक्खन…”
मैं सिर्फ मुश्कुरा दिया। हाथ से गाल सहलाते एक उंगली वो मेरी नाक के ठीक नीचे ले गई। मुझे कुछ अजब सी अलग सी फीलिंग हुई। उसने बिना कुछ बोले मेरी गर्दन दीवार पे लगे शीशे की ओर मोड़ दी, और मुश्कुरा दी।
मैं चौंक गया- “हे। ये क्या?”
मेरी मूंछें साफ थी, एकदम चिकनी। वैसे मैं एक पतली सी मूंछ रखता था, लेकिन रखता जरूर था।
“अरे किस करने के लिए ज्यादा जगह। मैंने बोला था ना की तुम्हारी भाभी ने बोला है की चिकनी चमेली, तो…” वो शैतान बोली और उसने झप्प से मेरे होंठों पे एक बड़ी सी किस्सी ले ली।
“अरे वो जो तुमने क्रीम लगाई थी ना…” आँखें नचाकर, मुश्कुराकर वो बोली।
“हाँ। तो मतलब…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
“मतलब सीधा है, बुद्धू…” उसने मेरे गाल पे एक मीठी सी चिकोटी काटी और बोली-
“वो क्रीम चन्दा भाभी अपनी झांटें साफ करने के लिए प्रयोग करती हैं। और कभी-कभी मैं भी कर लेती हूँ। एकाध बाल शायद इसीलिए उसमें रह गया हो…”
“यानी?” अब मेरे चौंकने की बारी थी।
“अरे यानी कुछ नहीं। वो भी इम्पोर्टेड थी। यार एकदम स्पेशल और बहुत इफेक्टिव। लेकिन तुमने लगा भी तो कित्ता सारा लिया था। थोड़ी सी ही काफी होती है उसकी। मैं तो बस उंगली बराबर लगाती हूँ। लेकिन तुमने तो ढेर सारा लिथड़ लिया था। अब कम से कम पन्दरह दिन तक कोई घास फूस नहीं होगा…”
उसे लगा शायद मैं थोड़ा नाराज हूँ। लेकिन अब तो मुझे उसकी शैतानियों की आदत सी लग गई थी।
मेरे बरमुडा में हाथ डालकर अन्दर भी हाथ फिराते बोली- “अरे यहाँ भी तो एकदम चिकना हो गया है। ‘उसे’ उसने मुट्ठी में ले लिया और आगे-पीछे करते हुए छेड़ा- “हे। गुंजा का नाम लेकर 61-62 किया की नहीं?”
“छोड़ो ना यार…” मेरे जंगबहादुर की हालत खराब होती जा रही थी। वो अब पूरे जोश में आ रहा था।
गुड्डी- “पहले बताओ…” अब उसकी उंगली मेरे सुपाड़े के मुँह पे थी।
“नहीं यार। मैंने बोला ना की अब…” मेरी निगाह घड़ी पे थी, 10:00 बज रहे थे- “उन्ह 12-14 घंटे के बाद। बस अब ये तुम्हारे अन्दर घुस के 61-62 करेगा…”
गुड्डी- “तुम ना…” अब उसकी शर्माने की बारी थी। लेकिन वो कितने देर चुप रहती, बोली-
“असल में कल जब तुम्हें। वो गुंजा से मैं बात करके आ रही थी तो वो बोली की अगर इत्ते गोरे चिकने हैं तो उन्हें सिर्फ पूरा श्रृंगार कराना चाहिए…”
गुड्डी बोली- “बस एक थोड़ी सी कसर है…” तुम्हारी साली गुंजा बोली- “मूंछें हैं तो फिर। कैसे…”
गुड्डी- “मैंने सोच लिया और बोला- “चल उसका भी कुछ इंतजाम कर देंगे…” और वो खिलखिला के हँसने लगी।
मैं- “तुम दोनों ना। आने दो उसको स्कूल से…”
गुड्डी ने चिढ़ाया भी उकसाया भी, " अरे तेरी साली है, मेरी छोटी बहन, अब देख तो लिया ही है उसने बस घुसा देना, लेकिन पीछे तुम्ही रह जाते हो , मेरी बहन नहीं पीछे रहेगी, देखूंगी, आज इसका जोश, और मेरी बहन के साथ कुछ करोगे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा हाँ कुछ नहीं करोगे तो जरूर बुरा लगेगा, इत्ती मुश्किल से तो बेचारी को एक जीजा मिला है, छोटी बहन का हक पहले होता है " और बरमूडा के ऊपर से ' उसे ' कस के दबा दिया।
और जोड़ा - “ये मत समझना बच्ची है वो, मेरी बहन, अरे यार, यहाँ बच्चे तो सिर्फ तुम हो। जानते हो मेरी क्लास में। …”
अबकी बात काटने का काम मैंने किया। मैंने उसे मक्खन लगाते हुए कहा- “अरी मेरी सोनिये मुझे मालूम है। तू अपने क्लास में सबसे प्यारी है, सबसे सेक्सी है, और सबसे पहले तेरी बिल में सेंध लगने वाली है…”
आँखें नचाते हुए उसने कसकर मेरा कान पकड़कर खींचा और बोली-
“यही तो। पता कुछ नहीं, लेकिन बोलेंगे जरूर। वैसे आधी बात तो सच है। सबसे सेक्सी और सोनी तो मैं हूँ। लेकिन मेरे प्यारे बुद्धूराम, मेरी क्लास की मेरी आधे से ज्यादा सहेलियों की बिल में सेंध लग चुकी है। सिर्फ तीन-चार बची हैं मेरे जैसी, और मेरे पल्ले तो तेरे जैसा बुद्धू पड़ गया है इसलिए। पता है और उनमें से आधे से ज्यादा किससे फँसी हैं?”
“ना…” मुझे बात सुनने से ज्यादा उसके गुलाबी गालों को देखने में मजा आ रहा था। वो इत्ती उत्तेजित लग रही थी।
“अरे यार। अपने कजिन्स से। किसी का चचेरा भाई है तो किसी का ममेरा, फुफेरा, मौसेरा। घर में किसी को शक भी नहीं होता, मौका भी मिल जाता है…”
अचानक उसकी कजारारी आँखों में एक नई चमक उभरी।
मैं समझ गया कोई शैतानी इसके दिमाग में आई है।
वो मेरे पास सट गई और बोली- “सुन ना। वो जो तेरी कजिन है ना। चलवा दूँ उससे तेरा चक्कर? अरे वही जिसका नाम लेकर कल मम्मी और चंदा भाभी तुम्हें मस्त गालियां सुना रही थी। तो उनकी बात सच करवा दो ना इस होली में। अरे यार इत्ती बुरी भी नहीं है। मस्त है। हाँ थोड़ा छोटा है, ढूँढ़ते रह जाओगे टाईप। लेकिन कुछ मेहनत करोगे तो उसका भी मस्त हो जाएगा। वैसे हम दोनों का भी फायदा है उसमें…” किसी चतुर सुजान की तरह वो बोली।
“क्या?” मुझसे बिना पूछे नहीं रहा गया।
“अरे यार कभी हम लोगों को एक साथ चिपटा-चिपटी करते देख लेगी तो कहीं गाएगी तो नहीं, अगर एक बार तुमसे खुद करवा लेगी तो। वैसे बुरी नहीं है वो…” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की वो मजाक कर रही है या सीरियस है। मैंने बात बदलने की कोशिश की- “ये तुम कर क्या रही हो?”
और अब उल्टे मुझे डाट पड़ गई- “तुम ना। देखो तुम्हारी बातों में आकर मैं भी ना। कित्ता टाइम निकल गया। अब मुझे ही डांट पड़ेगी और समझ में भी नहीं आ रहा है। की। …” और मुझे हड़काते हुए बोली।
“बताओ न…” मैंने पूछने की कोशिश की और अबकी थोड़ा कामयाब हो गया।
“अरे यार वो तुम्हारी भाभी ना। थोड़ी देर में यहाँ दंगल शुरू होगा…”
“दंगल मतलब?” मेरी समझ में नहीं आया।
“अरे यार। तुम बात तो पूरी नहीं करने देते और बीच में। अरे यहाँ कुछ स्नैक्स वैक्स का इंतजाम करना था। दूबे भाभी ने दही बड़े बनाए हैं। अभी उनकी ननद लेकर आ रही होगी। तो मीठे के लिए आज सुबह चन्दा भाभी ने गुझिया गरम-गरम बनायी है, वैसी ही जिसे खाकर कल तुम झूम गए थे। लेकिन होली में गुझिया खाता कौन है, खा-खाकर लोग थक जाते हैं और लोगों को शक भी रहता है की कहीं उसमें। और वैसे तो उन्होंने ठंडाई भी बनायी है लेकिन उसमें भी…”
गुड्डी न, अगर पांच मिनट में दो तीन बार मुझे डांट न ले कस के उसकी बात पूरी नहीं होती थी।
“पड़ी है की नहीं उसमें?” मैंने मुश्कुराकर पूछा।
“अरे एकदम चंदा भाभी बनाए। उन्होंने मुझे कहा है की अगर नहीं चढ़ी तो वो मेरी ऐसी की तैसी कर देंगी आज। लेकिन जल्दी कोई हाथ नहीं लगाएगा ठंडाई में…”
“बात तो तेरी सही है यार। हूँ हूँ…” ऐसा करते हैं सुन- “कल वो नाथा हलवाई के यहाँ से वो गुलाब जामुन लाये थे ना…” मैंने आइडिया दिया।
“अरे वो। डबल डोज वाली ना स्पेशल। हाँ आइडिया तो तुम्हारा ठीक है। किसी को पता भी नहीं चलेगा…” वो खुश होकर बोली।
“हाँ एक बात और कितना टाइम है सबके आने में?” मैंने पूछा।
“बस दस पंद्रह मिनट…”
“अरे तो ठीक है, दो बोतल बियर कल लाये थे ना…”
“हाँ…” उसकी आँखों में चमक आ गई।
“बस पांच मिनट बाद उसे फ्रिज से निकालकर। मैं सील खोल दूंगा। और बर्फ ड़ाल के…” मैं बोला।
“सील खोलने का बहुत मन करता है तुम्हारा। अब तक कितने की खोल चुके हो?” खी खी करके वो हँसी।
“एक की तो आज खोलने वाला हूँ…” उसके गाल पे चिकोटी काटकर मैं बोला।
“धत्…” और शर्माकर वो टेसू हो गई। उसकी यही अदा जान ले लेती थी, कभी इतना शर्माती थी और कभी इत्ती बोल्ड। वो प्लेट में गुलाब जामुन लगाने लगी।
मैं बीयर की बोतल ले आया। लेकिन मुझे एक आइडिया और आया।
मैंने भाभी के कमरे में कुछ इम्पोर्टेड दारू देखी थी। मैं पीता नहीं था लेकिन अंदाज तो था ही, बैकार्डी जिसमें 80% अल्कोहल थी, वोदका कैनेबिस। जिसमें 80% अल्कोहल के साथ कनेबिस भी होती है और एक बोतल।
स्त्रह ( Stroh) ओरिजिनल औस्ट्रिया की रम जो काफी स्ट्रांग होती है। जो चंदा भाभी की अलमारी में थी वो तो ८० % थी।
मुझे भी शरारत सूझी।
मैंने दो बोतल लिम्का और स्प्राईट में बैकार्डी और वोदका, और पेप्सी और कोक में वो ८० % वाली आस्ट्रियन रम रम मिला दी और उसको इस तरह बंद कर दिया जैसे सील हों। ये बात मैंने गुड्डी को भी नहीं बतायी।
बैकार्डी व्हाइट रम होती है तो लिम्का के साथ उसकी अच्छी दोस्ती हो जाती है, वोदका भी। लिम्का और स्प्राइट के नाम पर और रमोला तो वैसे भी होली में चलता है लेकिन इस ऑस्ट्रियन रम के साथ उसका असर धमाल करने वाला होता।
7-8 ग्लास लगाकर मैंने उसमें बियर निकाल दी और गुड्डी को बोला की कोई पूछे तो बोल देना की इम्पोर्टेड कोल्ड-ड्रिंक है, मैं लाया हूँ।
वो प्लेटों में लाल, गुलाबी, नीला, रंग गुलाल अबीर रख रही थी, मुश्कुराकर बोली- “ये रंग तुम्हारे लिए नहीं हैं…”
“मुझे मालूम है मेरे ऊपर तो तुम्हारा रंग चढ़ गया है, अब किसी रंग का कोई असर नहीं होने वाला है…” हँसकर मैंने बोला।
“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्स्से में बोली और एक हाथ में प्लेट से गुलाबी रंग लेकर मेरे गालों पे।
“अच्छा चलो डालो। आज रात को ना बताया तो। पूरी पिचकारी अन्दर कर दूंगा। और पूरा सफेद रंग…” मैं बोला।
“कर देना कौन डरता है? रात की रात को देखी जायेगी अभी तो मैं…” और दूसरे हाथ में प्लेट से लाल रंग लेकर। सीधे मेरे बार्मुडा में।
‘वहां’ रगड़-रगड़कर लगाती हुई बोली-
“बहुत रात की बात करके डरा रहे थे ना। इस पिचकारी को पिचका के रख दूंगी और एक-एक बूँद सफेद रंग निचोड़ लूँगी…” अब उसपे होली का रंग चढ़ गया था।
जो रंग उसने मेरे गाल पे लगाया था वो मैंने उसके गाल पे लगा दिया अपने गाल से उसके गाल को रगड़कर थोड़ी देर में हम लोग उभरे
यार तेरे चक्कर में मेरी ली जाएगी कस के, गुड्डी हड़बड़ाती पता नहीं कहाँ से फोन निकालती बोली,
एक बार आसपास देख के मैंने कस के उसे बाहों में भींच के एक जबरदस्त चुम्मी ले ली, और छेड़ा, मेरे रहते मेरी रूपा सोना को मेरे सिवाय और कौन लेने वाला पैदा हो गया ,
" तेरी, मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,
" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "
गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "

मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।
“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊपर तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।
उसकी एक उंगली ने मेरे गाल पे सहलाया और मैं नीचे तक सिहर गया। और फिर गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर उसने उंगली से मेरी ठुड्डी उठायी और आँख में आँख डालकर बोली- “बहुत मस्त शेव बनाया। एकदम मक्खन…”
मैं सिर्फ मुश्कुरा दिया। हाथ से गाल सहलाते एक उंगली वो मेरी नाक के ठीक नीचे ले गई। मुझे कुछ अजब सी अलग सी फीलिंग हुई। उसने बिना कुछ बोले मेरी गर्दन दीवार पे लगे शीशे की ओर मोड़ दी, और मुश्कुरा दी।
मैं चौंक गया- “हे। ये क्या?”
मेरी मूंछें साफ थी, एकदम चिकनी। वैसे मैं एक पतली सी मूंछ रखता था, लेकिन रखता जरूर था।
“अरे किस करने के लिए ज्यादा जगह। मैंने बोला था ना की तुम्हारी भाभी ने बोला है की चिकनी चमेली, तो…” वो शैतान बोली और उसने झप्प से मेरे होंठों पे एक बड़ी सी किस्सी ले ली।
“अरे वो जो तुमने क्रीम लगाई थी ना…” आँखें नचाकर, मुश्कुराकर वो बोली।
“हाँ। तो मतलब…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
“मतलब सीधा है, बुद्धू…” उसने मेरे गाल पे एक मीठी सी चिकोटी काटी और बोली-
“वो क्रीम चन्दा भाभी अपनी झांटें साफ करने के लिए प्रयोग करती हैं। और कभी-कभी मैं भी कर लेती हूँ। एकाध बाल शायद इसीलिए उसमें रह गया हो…”

“यानी?” अब मेरे चौंकने की बारी थी।
“अरे यानी कुछ नहीं। वो भी इम्पोर्टेड थी। यार एकदम स्पेशल और बहुत इफेक्टिव। लेकिन तुमने लगा भी तो कित्ता सारा लिया था। थोड़ी सी ही काफी होती है उसकी। मैं तो बस उंगली बराबर लगाती हूँ। लेकिन तुमने तो ढेर सारा लिथड़ लिया था। अब कम से कम पन्दरह दिन तक कोई घास फूस नहीं होगा…”
उसे लगा शायद मैं थोड़ा नाराज हूँ। लेकिन अब तो मुझे उसकी शैतानियों की आदत सी लग गई थी।
मेरे बरमुडा में हाथ डालकर अन्दर भी हाथ फिराते बोली- “अरे यहाँ भी तो एकदम चिकना हो गया है। ‘उसे’ उसने मुट्ठी में ले लिया और आगे-पीछे करते हुए छेड़ा- “हे। गुंजा का नाम लेकर 61-62 किया की नहीं?”
“छोड़ो ना यार…” मेरे जंगबहादुर की हालत खराब होती जा रही थी। वो अब पूरे जोश में आ रहा था।
गुड्डी- “पहले बताओ…” अब उसकी उंगली मेरे सुपाड़े के मुँह पे थी।
“नहीं यार। मैंने बोला ना की अब…” मेरी निगाह घड़ी पे थी, 10:00 बज रहे थे- “उन्ह 12-14 घंटे के बाद। बस अब ये तुम्हारे अन्दर घुस के 61-62 करेगा…”
गुड्डी- “तुम ना…” अब उसकी शर्माने की बारी थी। लेकिन वो कितने देर चुप रहती, बोली-
“असल में कल जब तुम्हें। वो गुंजा से मैं बात करके आ रही थी तो वो बोली की अगर इत्ते गोरे चिकने हैं तो उन्हें सिर्फ पूरा श्रृंगार कराना चाहिए…”
गुड्डी बोली- “बस एक थोड़ी सी कसर है…” तुम्हारी साली गुंजा बोली- “मूंछें हैं तो फिर। कैसे…”
गुड्डी- “मैंने सोच लिया और बोला- “चल उसका भी कुछ इंतजाम कर देंगे…” और वो खिलखिला के हँसने लगी।

मैं- “तुम दोनों ना। आने दो उसको स्कूल से…”
गुड्डी ने चिढ़ाया भी उकसाया भी, " अरे तेरी साली है, मेरी छोटी बहन, अब देख तो लिया ही है उसने बस घुसा देना, लेकिन पीछे तुम्ही रह जाते हो , मेरी बहन नहीं पीछे रहेगी, देखूंगी, आज इसका जोश, और मेरी बहन के साथ कुछ करोगे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा हाँ कुछ नहीं करोगे तो जरूर बुरा लगेगा, इत्ती मुश्किल से तो बेचारी को एक जीजा मिला है, छोटी बहन का हक पहले होता है " और बरमूडा के ऊपर से ' उसे ' कस के दबा दिया।
और जोड़ा - “ये मत समझना बच्ची है वो, मेरी बहन, अरे यार, यहाँ बच्चे तो सिर्फ तुम हो। जानते हो मेरी क्लास में। …”
अबकी बात काटने का काम मैंने किया। मैंने उसे मक्खन लगाते हुए कहा- “अरी मेरी सोनिये मुझे मालूम है। तू अपने क्लास में सबसे प्यारी है, सबसे सेक्सी है, और सबसे पहले तेरी बिल में सेंध लगने वाली है…”
आँखें नचाते हुए उसने कसकर मेरा कान पकड़कर खींचा और बोली-
“यही तो। पता कुछ नहीं, लेकिन बोलेंगे जरूर। वैसे आधी बात तो सच है। सबसे सेक्सी और सोनी तो मैं हूँ। लेकिन मेरे प्यारे बुद्धूराम, मेरी क्लास की मेरी आधे से ज्यादा सहेलियों की बिल में सेंध लग चुकी है। सिर्फ तीन-चार बची हैं मेरे जैसी, और मेरे पल्ले तो तेरे जैसा बुद्धू पड़ गया है इसलिए। पता है और उनमें से आधे से ज्यादा किससे फँसी हैं?”
“ना…” मुझे बात सुनने से ज्यादा उसके गुलाबी गालों को देखने में मजा आ रहा था। वो इत्ती उत्तेजित लग रही थी।
“अरे यार। अपने कजिन्स से। किसी का चचेरा भाई है तो किसी का ममेरा, फुफेरा, मौसेरा। घर में किसी को शक भी नहीं होता, मौका भी मिल जाता है…”

अचानक उसकी कजारारी आँखों में एक नई चमक उभरी।
मैं समझ गया कोई शैतानी इसके दिमाग में आई है।
वो मेरे पास सट गई और बोली- “सुन ना। वो जो तेरी कजिन है ना। चलवा दूँ उससे तेरा चक्कर? अरे वही जिसका नाम लेकर कल मम्मी और चंदा भाभी तुम्हें मस्त गालियां सुना रही थी। तो उनकी बात सच करवा दो ना इस होली में। अरे यार इत्ती बुरी भी नहीं है। मस्त है। हाँ थोड़ा छोटा है, ढूँढ़ते रह जाओगे टाईप। लेकिन कुछ मेहनत करोगे तो उसका भी मस्त हो जाएगा। वैसे हम दोनों का भी फायदा है उसमें…” किसी चतुर सुजान की तरह वो बोली।
“क्या?” मुझसे बिना पूछे नहीं रहा गया।
“अरे यार कभी हम लोगों को एक साथ चिपटा-चिपटी करते देख लेगी तो कहीं गाएगी तो नहीं, अगर एक बार तुमसे खुद करवा लेगी तो। वैसे बुरी नहीं है वो…” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की वो मजाक कर रही है या सीरियस है। मैंने बात बदलने की कोशिश की- “ये तुम कर क्या रही हो?”
और अब उल्टे मुझे डाट पड़ गई- “तुम ना। देखो तुम्हारी बातों में आकर मैं भी ना। कित्ता टाइम निकल गया। अब मुझे ही डांट पड़ेगी और समझ में भी नहीं आ रहा है। की। …” और मुझे हड़काते हुए बोली।
“बताओ न…” मैंने पूछने की कोशिश की और अबकी थोड़ा कामयाब हो गया।
“अरे यार वो तुम्हारी भाभी ना। थोड़ी देर में यहाँ दंगल शुरू होगा…”
“दंगल मतलब?” मेरी समझ में नहीं आया।
“अरे यार। तुम बात तो पूरी नहीं करने देते और बीच में। अरे यहाँ कुछ स्नैक्स वैक्स का इंतजाम करना था। दूबे भाभी ने दही बड़े बनाए हैं। अभी उनकी ननद लेकर आ रही होगी। तो मीठे के लिए आज सुबह चन्दा भाभी ने गुझिया गरम-गरम बनायी है, वैसी ही जिसे खाकर कल तुम झूम गए थे। लेकिन होली में गुझिया खाता कौन है, खा-खाकर लोग थक जाते हैं और लोगों को शक भी रहता है की कहीं उसमें। और वैसे तो उन्होंने ठंडाई भी बनायी है लेकिन उसमें भी…”
गुड्डी न, अगर पांच मिनट में दो तीन बार मुझे डांट न ले कस के उसकी बात पूरी नहीं होती थी।
“पड़ी है की नहीं उसमें?” मैंने मुश्कुराकर पूछा।
“अरे एकदम चंदा भाभी बनाए। उन्होंने मुझे कहा है की अगर नहीं चढ़ी तो वो मेरी ऐसी की तैसी कर देंगी आज। लेकिन जल्दी कोई हाथ नहीं लगाएगा ठंडाई में…”
“बात तो तेरी सही है यार। हूँ हूँ…” ऐसा करते हैं सुन- “कल वो नाथा हलवाई के यहाँ से वो गुलाब जामुन लाये थे ना…” मैंने आइडिया दिया।

“अरे वो। डबल डोज वाली ना स्पेशल। हाँ आइडिया तो तुम्हारा ठीक है। किसी को पता भी नहीं चलेगा…” वो खुश होकर बोली।
“हाँ एक बात और कितना टाइम है सबके आने में?” मैंने पूछा।
“बस दस पंद्रह मिनट…”
“अरे तो ठीक है, दो बोतल बियर कल लाये थे ना…”
“हाँ…” उसकी आँखों में चमक आ गई।
“बस पांच मिनट बाद उसे फ्रिज से निकालकर। मैं सील खोल दूंगा। और बर्फ ड़ाल के…” मैं बोला।
“सील खोलने का बहुत मन करता है तुम्हारा। अब तक कितने की खोल चुके हो?” खी खी करके वो हँसी।
“एक की तो आज खोलने वाला हूँ…” उसके गाल पे चिकोटी काटकर मैं बोला।
“धत्…” और शर्माकर वो टेसू हो गई। उसकी यही अदा जान ले लेती थी, कभी इतना शर्माती थी और कभी इत्ती बोल्ड। वो प्लेट में गुलाब जामुन लगाने लगी।
मैं बीयर की बोतल ले आया। लेकिन मुझे एक आइडिया और आया।
मैंने भाभी के कमरे में कुछ इम्पोर्टेड दारू देखी थी। मैं पीता नहीं था लेकिन अंदाज तो था ही, बैकार्डी जिसमें 80% अल्कोहल थी, वोदका कैनेबिस। जिसमें 80% अल्कोहल के साथ कनेबिस भी होती है और एक बोतल।
स्त्रह ( Stroh) ओरिजिनल औस्ट्रिया की रम जो काफी स्ट्रांग होती है। जो चंदा भाभी की अलमारी में थी वो तो ८० % थी।

मुझे भी शरारत सूझी।
मैंने दो बोतल लिम्का और स्प्राईट में बैकार्डी और वोदका, और पेप्सी और कोक में वो ८० % वाली आस्ट्रियन रम रम मिला दी और उसको इस तरह बंद कर दिया जैसे सील हों। ये बात मैंने गुड्डी को भी नहीं बतायी।
बैकार्डी व्हाइट रम होती है तो लिम्का के साथ उसकी अच्छी दोस्ती हो जाती है, वोदका भी। लिम्का और स्प्राइट के नाम पर और रमोला तो वैसे भी होली में चलता है लेकिन इस ऑस्ट्रियन रम के साथ उसका असर धमाल करने वाला होता।
7-8 ग्लास लगाकर मैंने उसमें बियर निकाल दी और गुड्डी को बोला की कोई पूछे तो बोल देना की इम्पोर्टेड कोल्ड-ड्रिंक है, मैं लाया हूँ।
वो प्लेटों में लाल, गुलाबी, नीला, रंग गुलाल अबीर रख रही थी, मुश्कुराकर बोली- “ये रंग तुम्हारे लिए नहीं हैं…”

“मुझे मालूम है मेरे ऊपर तो तुम्हारा रंग चढ़ गया है, अब किसी रंग का कोई असर नहीं होने वाला है…” हँसकर मैंने बोला।
“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्स्से में बोली और एक हाथ में प्लेट से गुलाबी रंग लेकर मेरे गालों पे।
“अच्छा चलो डालो। आज रात को ना बताया तो। पूरी पिचकारी अन्दर कर दूंगा। और पूरा सफेद रंग…” मैं बोला।
“कर देना कौन डरता है? रात की रात को देखी जायेगी अभी तो मैं…” और दूसरे हाथ में प्लेट से लाल रंग लेकर। सीधे मेरे बार्मुडा में।
‘वहां’ रगड़-रगड़कर लगाती हुई बोली-
“बहुत रात की बात करके डरा रहे थे ना। इस पिचकारी को पिचका के रख दूंगी और एक-एक बूँद सफेद रंग निचोड़ लूँगी…” अब उसपे होली का रंग चढ़ गया था।
जो रंग उसने मेरे गाल पे लगाया था वो मैंने उसके गाल पे लगा दिया अपने गाल से उसके गाल को रगड़कर थोड़ी देर में हम लोग उभरे
यार तेरे चक्कर में मेरी ली जाएगी कस के, गुड्डी हड़बड़ाती पता नहीं कहाँ से फोन निकालती बोली,
एक बार आसपास देख के मैंने कस के उसे बाहों में भींच के एक जबरदस्त चुम्मी ले ली, और छेड़ा, मेरे रहते मेरी रूपा सोना को मेरे सिवाय और कौन लेने वाला पैदा हो गया ,
" तेरी, मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,
" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "
गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "