FreeSexKahani - फागुन के दिन चार - Page 8 - SexBaba
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

[color=rgb(84,]गायब, सफाचट[/color]

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मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।

“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊपर तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।

उसकी एक उंगली ने मेरे गाल पे सहलाया और मैं नीचे तक सिहर गया। और फिर गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर उसने उंगली से मेरी ठुड्डी उठायी और आँख में आँख डालकर बोली- “बहुत मस्त शेव बनाया। एकदम मक्खन…”

मैं सिर्फ मुश्कुरा दिया। हाथ से गाल सहलाते एक उंगली वो मेरी नाक के ठीक नीचे ले गई। मुझे कुछ अजब सी अलग सी फीलिंग हुई। उसने बिना कुछ बोले मेरी गर्दन दीवार पे लगे शीशे की ओर मोड़ दी, और मुश्कुरा दी।

मैं चौंक गया- “हे। ये क्या?”

मेरी मूंछें साफ थी, एकदम चिकनी। वैसे मैं एक पतली सी मूंछ रखता था, लेकिन रखता जरूर था।

“अरे किस करने के लिए ज्यादा जगह। मैंने बोला था ना की तुम्हारी भाभी ने बोला है की चिकनी चमेली, तो…” वो शैतान बोली और उसने झप्प से मेरे होंठों पे एक बड़ी सी किस्सी ले ली।

“अरे वो जो तुमने क्रीम लगाई थी ना…” आँखें नचाकर, मुश्कुराकर वो बोली।

“हाँ। तो मतलब…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

“मतलब सीधा है, बुद्धू…” उसने मेरे गाल पे एक मीठी सी चिकोटी काटी और बोली-

“वो क्रीम चन्दा भाभी अपनी झांटें साफ करने के लिए प्रयोग करती हैं। और कभी-कभी मैं भी कर लेती हूँ। एकाध बाल शायद इसीलिए उसमें रह गया हो…”
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“यानी?” अब मेरे चौंकने की बारी थी।

“अरे यानी कुछ नहीं। वो भी इम्पोर्टेड थी। यार एकदम स्पेशल और बहुत इफेक्टिव। लेकिन तुमने लगा भी तो कित्ता सारा लिया था। थोड़ी सी ही काफी होती है उसकी। मैं तो बस उंगली बराबर लगाती हूँ। लेकिन तुमने तो ढेर सारा लिथड़ लिया था। अब कम से कम पन्दरह दिन तक कोई घास फूस नहीं होगा…”

उसे लगा शायद मैं थोड़ा नाराज हूँ। लेकिन अब तो मुझे उसकी शैतानियों की आदत सी लग गई थी।

मेरे बरमुडा में हाथ डालकर अन्दर भी हाथ फिराते बोली- “अरे यहाँ भी तो एकदम चिकना हो गया है। ‘उसे’ उसने मुट्ठी में ले लिया और आगे-पीछे करते हुए छेड़ा- “हे। गुंजा का नाम लेकर 61-62 किया की नहीं?”

“छोड़ो ना यार…” मेरे जंगबहादुर की हालत खराब होती जा रही थी। वो अब पूरे जोश में आ रहा था।

गुड्डी- “पहले बताओ…” अब उसकी उंगली मेरे सुपाड़े के मुँह पे थी।

“नहीं यार। मैंने बोला ना की अब…” मेरी निगाह घड़ी पे थी, 10:00 बज रहे थे- “उन्ह 12-14 घंटे के बाद। बस अब ये तुम्हारे अन्दर घुस के 61-62 करेगा…”

गुड्डी- “तुम ना…” अब उसकी शर्माने की बारी थी। लेकिन वो कितने देर चुप रहती, बोली-

“असल में कल जब तुम्हें। वो गुंजा से मैं बात करके आ रही थी तो वो बोली की अगर इत्ते गोरे चिकने हैं तो उन्हें सिर्फ पूरा श्रृंगार कराना चाहिए…”

गुड्डी बोली- “बस एक थोड़ी सी कसर है…” तुम्हारी साली गुंजा बोली- “मूंछें हैं तो फिर। कैसे…”

गुड्डी- “मैंने सोच लिया और बोला- “चल उसका भी कुछ इंतजाम कर देंगे…” और वो खिलखिला के हँसने लगी।

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मैं- “तुम दोनों ना। आने दो उसको स्कूल से…”

गुड्डी ने चिढ़ाया भी उकसाया भी, " अरे तेरी साली है, मेरी छोटी बहन, अब देख तो लिया ही है उसने बस घुसा देना, लेकिन पीछे तुम्ही रह जाते हो , मेरी बहन नहीं पीछे रहेगी, देखूंगी, आज इसका जोश, और मेरी बहन के साथ कुछ करोगे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा हाँ कुछ नहीं करोगे तो जरूर बुरा लगेगा, इत्ती मुश्किल से तो बेचारी को एक जीजा मिला है, छोटी बहन का हक पहले होता है " और बरमूडा के ऊपर से ' उसे ' कस के दबा दिया।

और जोड़ा - “ये मत समझना बच्ची है वो, मेरी बहन, अरे यार, यहाँ बच्चे तो सिर्फ तुम हो। जानते हो मेरी क्लास में। …”

अबकी बात काटने का काम मैंने किया। मैंने उसे मक्खन लगाते हुए कहा- “अरी मेरी सोनिये मुझे मालूम है। तू अपने क्लास में सबसे प्यारी है, सबसे सेक्सी है, और सबसे पहले तेरी बिल में सेंध लगने वाली है…”

आँखें नचाते हुए उसने कसकर मेरा कान पकड़कर खींचा और बोली-

“यही तो। पता कुछ नहीं, लेकिन बोलेंगे जरूर। वैसे आधी बात तो सच है। सबसे सेक्सी और सोनी तो मैं हूँ। लेकिन मेरे प्यारे बुद्धूराम, मेरी क्लास की मेरी आधे से ज्यादा सहेलियों की बिल में सेंध लग चुकी है। सिर्फ तीन-चार बची हैं मेरे जैसी, और मेरे पल्ले तो तेरे जैसा बुद्धू पड़ गया है इसलिए। पता है और उनमें से आधे से ज्यादा किससे फँसी हैं?”

“ना…” मुझे बात सुनने से ज्यादा उसके गुलाबी गालों को देखने में मजा आ रहा था। वो इत्ती उत्तेजित लग रही थी।

“अरे यार। अपने कजिन्स से। किसी का चचेरा भाई है तो किसी का ममेरा, फुफेरा, मौसेरा। घर में किसी को शक भी नहीं होता, मौका भी मिल जाता है…”

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अचानक उसकी कजारारी आँखों में एक नई चमक उभरी।

मैं समझ गया कोई शैतानी इसके दिमाग में आई है।

वो मेरे पास सट गई और बोली- “सुन ना। वो जो तेरी कजिन है ना। चलवा दूँ उससे तेरा चक्कर? अरे वही जिसका नाम लेकर कल मम्मी और चंदा भाभी तुम्हें मस्त गालियां सुना रही थी। तो उनकी बात सच करवा दो ना इस होली में। अरे यार इत्ती बुरी भी नहीं है। मस्त है। हाँ थोड़ा छोटा है, ढूँढ़ते रह जाओगे टाईप। लेकिन कुछ मेहनत करोगे तो उसका भी मस्त हो जाएगा। वैसे हम दोनों का भी फायदा है उसमें…” किसी चतुर सुजान की तरह वो बोली।

“क्या?” मुझसे बिना पूछे नहीं रहा गया।

“अरे यार कभी हम लोगों को एक साथ चिपटा-चिपटी करते देख लेगी तो कहीं गाएगी तो नहीं, अगर एक बार तुमसे खुद करवा लेगी तो। वैसे बुरी नहीं है वो…” मुश्कुराकर वो बोली।

मेरी समझ में नहीं आ रहा था की वो मजाक कर रही है या सीरियस है। मैंने बात बदलने की कोशिश की- “ये तुम कर क्या रही हो?”

और अब उल्टे मुझे डाट पड़ गई- “तुम ना। देखो तुम्हारी बातों में आकर मैं भी ना। कित्ता टाइम निकल गया। अब मुझे ही डांट पड़ेगी और समझ में भी नहीं आ रहा है। की। …” और मुझे हड़काते हुए बोली।

“बताओ न…” मैंने पूछने की कोशिश की और अबकी थोड़ा कामयाब हो गया।

“अरे यार वो तुम्हारी भाभी ना। थोड़ी देर में यहाँ दंगल शुरू होगा…”

“दंगल मतलब?” मेरी समझ में नहीं आया।

“अरे यार। तुम बात तो पूरी नहीं करने देते और बीच में। अरे यहाँ कुछ स्नैक्स वैक्स का इंतजाम करना था। दूबे भाभी ने दही बड़े बनाए हैं। अभी उनकी ननद लेकर आ रही होगी। तो मीठे के लिए आज सुबह चन्दा भाभी ने गुझिया गरम-गरम बनायी है, वैसी ही जिसे खाकर कल तुम झूम गए थे। लेकिन होली में गुझिया खाता कौन है, खा-खाकर लोग थक जाते हैं और लोगों को शक भी रहता है की कहीं उसमें। और वैसे तो उन्होंने ठंडाई भी बनायी है लेकिन उसमें भी…”

गुड्डी न, अगर पांच मिनट में दो तीन बार मुझे डांट न ले कस के उसकी बात पूरी नहीं होती थी।

“पड़ी है की नहीं उसमें?” मैंने मुश्कुराकर पूछा।

“अरे एकदम चंदा भाभी बनाए। उन्होंने मुझे कहा है की अगर नहीं चढ़ी तो वो मेरी ऐसी की तैसी कर देंगी आज। लेकिन जल्दी कोई हाथ नहीं लगाएगा ठंडाई में…”

“बात तो तेरी सही है यार। हूँ हूँ…” ऐसा करते हैं सुन- “कल वो नाथा हलवाई के यहाँ से वो गुलाब जामुन लाये थे ना…” मैंने आइडिया दिया।
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“अरे वो। डबल डोज वाली ना स्पेशल। हाँ आइडिया तो तुम्हारा ठीक है। किसी को पता भी नहीं चलेगा…” वो खुश होकर बोली।

“हाँ एक बात और कितना टाइम है सबके आने में?” मैंने पूछा।

“बस दस पंद्रह मिनट…”

“अरे तो ठीक है, दो बोतल बियर कल लाये थे ना…”

“हाँ…” उसकी आँखों में चमक आ गई।

“बस पांच मिनट बाद उसे फ्रिज से निकालकर। मैं सील खोल दूंगा। और बर्फ ड़ाल के…” मैं बोला।

“सील खोलने का बहुत मन करता है तुम्हारा। अब तक कितने की खोल चुके हो?” खी खी करके वो हँसी।

“एक की तो आज खोलने वाला हूँ…” उसके गाल पे चिकोटी काटकर मैं बोला।

“धत्…” और शर्माकर वो टेसू हो गई। उसकी यही अदा जान ले लेती थी, कभी इतना शर्माती थी और कभी इत्ती बोल्ड। वो प्लेट में गुलाब जामुन लगाने लगी।

मैं बीयर की बोतल ले आया। लेकिन मुझे एक आइडिया और आया।

मैंने भाभी के कमरे में कुछ इम्पोर्टेड दारू देखी थी। मैं पीता नहीं था लेकिन अंदाज तो था ही, बैकार्डी जिसमें 80% अल्कोहल थी, वोदका कैनेबिस। जिसमें 80% अल्कोहल के साथ कनेबिस भी होती है और एक बोतल।

स्त्रह ( Stroh) ओरिजिनल औस्ट्रिया की रम जो काफी स्ट्रांग होती है। जो चंदा भाभी की अलमारी में थी वो तो ८० % थी।
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मुझे भी शरारत सूझी।

मैंने दो बोतल लिम्का और स्प्राईट में बैकार्डी और वोदका, और पेप्सी और कोक में वो ८० % वाली आस्ट्रियन रम रम मिला दी और उसको इस तरह बंद कर दिया जैसे सील हों। ये बात मैंने गुड्डी को भी नहीं बतायी।
बैकार्डी व्हाइट रम होती है तो लिम्का के साथ उसकी अच्छी दोस्ती हो जाती है, वोदका भी। लिम्का और स्प्राइट के नाम पर और रमोला तो वैसे भी होली में चलता है लेकिन इस ऑस्ट्रियन रम के साथ उसका असर धमाल करने वाला होता।

7-8 ग्लास लगाकर मैंने उसमें बियर निकाल दी और गुड्डी को बोला की कोई पूछे तो बोल देना की इम्पोर्टेड कोल्ड-ड्रिंक है, मैं लाया हूँ।
वो प्लेटों में लाल, गुलाबी, नीला, रंग गुलाल अबीर रख रही थी, मुश्कुराकर बोली- “ये रंग तुम्हारे लिए नहीं हैं…”
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“मुझे मालूम है मेरे ऊपर तो तुम्हारा रंग चढ़ गया है, अब किसी रंग का कोई असर नहीं होने वाला है…” हँसकर मैंने बोला।

“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्स्से में बोली और एक हाथ में प्लेट से गुलाबी रंग लेकर मेरे गालों पे।

“अच्छा चलो डालो। आज रात को ना बताया तो। पूरी पिचकारी अन्दर कर दूंगा। और पूरा सफेद रंग…” मैं बोला।

“कर देना कौन डरता है? रात की रात को देखी जायेगी अभी तो मैं…” और दूसरे हाथ में प्लेट से लाल रंग लेकर। सीधे मेरे बार्मुडा में।

‘वहां’ रगड़-रगड़कर लगाती हुई बोली-

“बहुत रात की बात करके डरा रहे थे ना। इस पिचकारी को पिचका के रख दूंगी और एक-एक बूँद सफेद रंग निचोड़ लूँगी…” अब उसपे होली का रंग चढ़ गया था।
जो रंग उसने मेरे गाल पे लगाया था वो मैंने उसके गाल पे लगा दिया अपने गाल से उसके गाल को रगड़कर थोड़ी देर में हम लोग उभरे

यार तेरे चक्कर में मेरी ली जाएगी कस के, गुड्डी हड़बड़ाती पता नहीं कहाँ से फोन निकालती बोली,

एक बार आसपास देख के मैंने कस के उसे बाहों में भींच के एक जबरदस्त चुम्मी ले ली, और छेड़ा, मेरे रहते मेरी रूपा सोना को मेरे सिवाय और कौन लेने वाला पैदा हो गया ,

" तेरी, मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,

" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "

गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "
 
[color=rgb(61,]फोन[/color]

[color=rgb(209,]मम्मी,[/color] [color=rgb(0,]छुटकी[/color]

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" तेरी, ...मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,

" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "

गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "

और नंबर लग गय। और फोन गुड्डी ने मेरे हाथ में और उधर से मम्मी की आवाज, लेकिन कुछ वो बोल पातीं, मैंने पूछ लिया,

" मम्मी, पहुँच गयीं ठीक ठाक "

मेरे मम्मी बोलने पे गुड्डी जोर से मुस्करायी और पिछवाड़े कस के चुटकी काट ली, स्पीकर फोन ऑन था,

मम्मी बहुत खुस बोलीं ,

" तोहरे रहते, कौन परेशानी हो सकती है, कानपूर पहुँचने के पहले ही टीटी आगये, सब सामान, और जैसे स्टेशन आया , कम से कम चार पांच आदमी, अरे जो टोपी वोपी लगाए, मास्टर थे, गोड़ भी छुए हमारा, माता जी, माता जी, एक एक सामन उतरा गया आराम से, और वो स्टेशन मास्टर अपने कमरा में बैठाये के पहले चाय पियाये फिर, और छुटकी को अपना नंबर भी नोट कराये की जब लौटना हो या कोई काम हो तो पहले से, तो वो लोग स्टेशन के बाहर ही मिल जाएंगे। एकदम पता नहीं चला, सोच सोच के हम इतने परेशान थे, तोहार महतारी न जानी केकरे आगे टांग फैलाये होइए, केकर मलाई घोंटी होंगी, उनको भी नहीं याद होगा, लेकिन लड़िका बढ़िया निकाली हैं। "

मेरी तारीफ़ सुन के मुझसे ज्यादा गुड्डी खुश होती थी, मैं कनखियों से उसे देख रहा था,

तबतक पीछे से छुटकी की आवाज आयी दी , वीडियो काल, वीडियो काल और गुड्डी ने काल वीडियो पे शिफ्ट कर दी।

मम्मी को देखते ही मेरी हालत खराब, लगता था अभी नहा के निकली थीं, बाल खुले थोड़े भीगे, सफ़ेद देह से चिपका स्लीवलेस ब्लाउज, आर्म पिट साफ़ साफ़ दिख रही थी, गोरी गोरी कांखों में एकदम छोटे छोटे काले काल बाल जैसे रोयें बड़े हो गए, ब्लाउज साइड से भी बहुत खुला था, और ऊपर से भी लो कट, उभारों को कस के दबाये, चिपकाए हुए, औरतों के तीसरी आँख होती है। अंदाज उन्हें हो गया था की मेरी आंखे कहाँ चिपकी है, और आँचल ठीक करने के बहाने ऐसा लहराया, गिराया, की अब दोनों उभार एकदम खुल के, चोली सिर्फ उभारो के बेस तक थी,

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गोरा पेट भी खुला था और गहरी नाभी साफ़ दिख रही थी।

जंगबहादुर एकदम विद्रोह को तैयार, तनतना रहे थे और बची खुची कसर पूरी हो गयी,

छुटकी की आवाज आयी मैं भी, मैं भी, और मम्मी ने हाथ से पकड़ के खींच के उसे भी मोबायल के कैमरे की रेंज में,

उसने एक छोटा सा खूब टाइट टॉप, थोड़ा घिसा हुआ पहन रखा था और कबूतर की दोनों चोंचे साफ़ साफ़ नुकीली दिख रही थीं,
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वैसे तो शायद इतना नहीं लेकिन जो कल चंदा भाभी ने अर्था अर्था कर समझाया था की चौदह की हुयी तो चुदवासी, और पिछले साल होली में उन्होंने हाथ अंदर डाल के मसल के रगड़ रगड़ के गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की कच्ची अमिया में रंग लगाया था, गुलाबो में हाथ लगाया था, दोनों फांक फैला के ऊँगली कर के हाल चाल ली थी, रगड़ने मसलने लायक भी दोनों हो गयी थी और लेने लायक भी। और उसके बाद सुबह सुबह गूंजा की हवा मिठाई की रगड़ाई,

और अब जिस तरह से छुटकी के चूजे टॉप से झांक रहे थे, मूसलचंद को पागल होना ही था,

और सबसे पहले छुटकी ने नोटिस किया, खी खी खी खी, और पहले अपनी नाक के नीचे एक ऊँगली लगा कर आँख के इशारे से मेरी मूंछ के बारे में पुछा, क्या हुआ, फिर गुड्डी से

" दी, क्या हुआ, गायब ?"

और अब मम्मी ने देखा और उन पर जो हंसी का दौरा पड़ा वो रुकने वाला नहीं था, लेकिन खुद को रोका और छुटकी को अपने बाँहों में दबोच के चुप करते हुए कहा,

" अच्छा तो लग रहा है, एकदम नमकीन, गाल चूमने लायक, बल्कि कचकचौवा, काटने लायक कचकचा कर, "

छुटकी क्यों छोड़ती, मुस्करा के बोली, सीधे मुझसे, छेड़ते हुए,

“चिकने।“

वो असल में, वो वाली क्रीम थी, मतलब जो वहां नीचे, वो वाली गलती से, वो वही, " मैं घबड़ाते हुए समझाने की कोशिश कर रहा था ।

छुटकी बदमाश तीखी निगाहों से देख के मुस्करा रही थी, लेकिन मम्मी तो मम्मी, खिलखिला के बोली,

" साफ़ साफ बोलो न झांट साफ़ करने वाली क्रीम, इतना लजात काहें हो, सब लगाते हैं, मैं, छुटकी, और झांट नीचे वाले होंठ के चारो ओर होती है और मूंछ दाढ़ी ऊपर वाले होंठ के, बाल तो बाल। लेकिन ये कम से कम पंद्रह बीस दिन का पक्का हिसाब हो गया, अरे तोहार महतारी आयी थीं , सावन में तोहिं तो छोड़ गया था, मनौती मानी थी तोहरे नौकरी के लिए, तो हम उनसे बोले की अरे झांट वांट अच्छी तरह साफ़ कर लीजिये, ये बनारस क पंडा सब, पहले तो चुसवाते हैं, फिर खुदे चाटते चूसते हैं तब पेलते है। अरे आधी बोतल क्रीम लगी, चुपड़ चुपड़ के अपने भोंसड़ा के चारो ओर, एक झांट नहीं बची।"

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मम्मी बोल तो रही थीं

लेकिन मेरी निगाह छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।

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टॉप थोड़ा पुराना था, इसलिए घिसे होने के साथ टाइट भी, बस आ रहे दोनों उभारों की गोलाई, कड़ापन सब साफ़ साफ़ नजर आ रहा, बस यही सोच रहा था की अगली बार मिलेगी तो बिना दबाये मसले, रगड़े, इन दोनों को छोडूंगा नहीं, और छुटकी भी मेरे निगाह को समझ रही थी। अपने दोनों हाथों को उन चूजों के ठीक नीचे, और वो और उभर के,

ठुमक के बोली छुटकी, " अच्छा तो लग रहा है, दी और अब उसने गुड्डी को सुझाव दे दिया, ऐसे गोरे गोरे चिकने चेहरे पे, होंठों पे डार्क रेड लिपस्टिक बहुत अच्छी लगेगी,

बस, मम्मी को आइडिया मिल गया, वो चालू हो गयीं,

" हाँ छुटकी सही कह रही है एकदम, और साडी ब्लाउज के साथ, अंगिया किसकी, दूबे भाभी की तो बड़ी होगी, उनकी हमारी साइज एक है ३८, हाँ चंदा भाभी वाली एकदम फिट आएगी, ३४ पक्का इन्ही की साइज होगी। नोक वाली। "

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" लेकिन ब्रा के अंदर, " गुड्डी ने अपनी परेशानी बताई,

" मैं बताऊं दी, एकदम मस्त लगेगा, गुब्बारे में रंग भरते ही हैं होली में, बस दो गुब्बारे, और हाँ थोड़ा सा फेविकोल ब्रा की टिप पे अंदर और थोड़ा सा गुब्बारों पे बस ऐसा सही चिपकेगा, थोड़ा हिलेगा डुलेगा, लेकिन बाहर नहीं निकल सकता, और हाँ, पिक्स जरूर भेजिएगा, हर स्टेप की, "

छुटकी ने चहकते हुए हल बता दिया,।

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" एकदम, हम लोगो का जो बहनों वाला ग्रुप हैं न उसमे भी पोस्ट कर दूंगी, सबको मिल जाएगा,

गुड्डी की बहनों वाले ग्रुप में आधे दर्जन से ज्यादा उसकी थीं, दो ये सगी, दो मौसेरी, तीन उसकी ममेरी बहने थीं अलहाबाद में जिसने मैं एक बार मिल भी चुका था, और उसके अलावा भी।

मैं छुटकी की शरारत वाली बाते सुन तो रहा था लेकिन आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,

एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,

२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,

साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,

बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,

और असर सीधे जंगबहादुर पर, फनफनाया, बौराया और ऊपर से जंगबहादुर की मलकिन, गुड्डी, पहले तो बरमूडा के ऊपर से सीधे खुले सुपाड़े पर रगड़ती, सामने एक कच्ची कली के चूजों की नोकें हो और खूंटे के साथ, गुड्डी भी देख रही थी कैसे मैं नयनसुख ले रहा हूँ , बस उसने बरमूडा में हाथ डाल के औजार को पकड़ लिया और लगी मसलने, रगड़ने, बस तम्बू में बम्बू जबरदस्त, और ।

बरमूडा नौ इंच तना,
और अब गुड्डी ने बदमाशी की, मोबाइल मोड़ के सीधे मेरे तने बल्ज पर, और वो भी क्लोज अप में,

पहले मम्मी मुस्करायीं, फिर छुटकी, दोनों की निगाहें वहीँ चिपकी,

बोलीं मम्मी, " तेरी महतारी का भोंसड़ा मरवाऊ,"

छुटकी बड़ी भोली सूरत बना के मम्मी से पूछी, " लेकिन मम्मी किससे इनकी महतारी का, "

मम्मी ने मेरे खड़े खूंटे की ओर इशारा कर के छुटकी से कहा, " देख नहीं रही है, कितना बौराया है, इस से मरवाउंगी, और क्या "

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फिर तोप मेरी ओर मुड़ गयी,

" अरे तोहार महतारी निहाल हो जाएंगी, फिर तोहार मौसी, बुआ, चाची, सब पे चढ़वाएंगी तोहें, "

लेकिन तब तक मंझली की आवाज आयी, " मम्मी छुटकी नाश्ता लग गया है " लेकिन मम्मी ने जाने के पहले अपनी बड़ी बेटी को काम समझा दिया, " आज सांझ रात तक तो पहुँचोगी ही, कल दिन में बात करा देना। " और फोन छुटकी को पकड़ा दिया, और

छुटकी ने फोन थोड़ा सा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एक दम पास से, और मुंह से जीभ बाहर निकला के चिढ़ाया, जबरदस्त मुझे फिर उसका भी फोन बंद हो गया।

इधर चंदा भाभी गुड्डी को आवाज दे रही थीं।
 
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[color=rgb(61,]आ गयी रीत
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[/color]

इधर चंदा भाभी गुड्डी को आवाज दे रही थीं।

चंदा भाभी पूछ रही थीं, " नाश्ता लग गया, दूबे भाभी के यहाँ से दहीबड़ा आया की नहीं, और ये रीत कब तक आएगी।"

गुड्डी ने एक साँस में तीनो बातों का जवाब दे दिया, ' हाँ नाश्ता लग गया है, दहीबड़ा रीत ला रही है और रीत बस आने वाली है।

“हे ये रीत?” मैंने पूछा।

आँखे नचाते हुए गुड्डी ने पूरा इंट्रो दे दिया

“क्यों बिना देखे दिल मचलने लगा। बोला तो था ना की दूबे भाभी की ननद है। हमारे स्कूल में ही पढ़ती थी। पिछले साल इंटर किया था अभी ग्रेजुएशन कर रही हैं। लेकिन खास बात है डांस और गाना दोनों में कोई इनके आस पास नहीं, वेस्टर्न, फ़िल्मी यहाँ तक की भोजपुरी भी, कुछ साल पहले लखनऊ में कम्पटीशन था, सिर्फ इन्ही के चक्कर में हमारा कालेज फर्स्ट आया और स्पोर्ट में भी। और देख के , देखना क्या हालत होती है तेरी। लेकिन ये ध्यान रखना मेरी बड़ी दी,/

तब तक सीढ़ी पे पदचाप सुनाई पड़ी। वो चुप हो गई लेकिन धीरे से बोली- “एकदम हिरोइन लगती है। कालेज में सब कैटरीना कैफ कहते थे…”

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तब तक वो सामने आ गई। वास्तव में कैटरीना ही लग रही थी। पीला खूब टाईट कुरता, सफेद शलवार, गले में दुपट्टा उसके उभारों की छुपाने की नाकमयाब कोशिश करता, और उभार भी जबरदस्त, बड़े भी कड़े भी, और एकदम शेपली, सुरू के पेड़ की तरह लम्बी, खूब गोरी लम्बी-लम्बी टांगें। मैं उसे देखता ही रह गया। और वो भी मुझे।

उसके मुंह से निकला, कैटरिना मत कहना, इक तो उसकी शादी होगयी और दूसरे हर दूसरा लड़का यही कहता है।

किसी तरह थूक गटकते हुए मैंने बोला, " नहीं कहूंगा, अरे आवाज निकल पाएगी तब न कुछ बोलूंगा ।

और किसी तरह मुँह से निकला,

[color=rgb(243,]तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो

तुम को देखें कि तुम से बात करें।[/color]


" दोनों " वो कौन चुप होने वाली थी, फिर हलके से आँख मार के बोली,

' कुछ और करने का मन हो तो वो भी कर सकते ही, मेरी छोटी बहन है बुरा नहीं मानेगी। क्यों गुड्डी। "

उसकी निगाहें मेरा मौका मुआयना कर रही थीं।

मैंने झुक के अपनी ओर देखा। गुंजा का टाप एक तो स्लीवलेश। बस किसी तरह मुझे कवर किये हुए था। मेरी सारी मसल्स साफ-साफ दिख रही थी, जिम टोंड ना भी हों तो उनसे कम नहीं और उसका बर्मुडा मेरे शार्ट से भी छोटा था, इसलिए जाँघों की मसल्स भी। थोड़ी देर पहले ही जिस तरह…मम्मी और छुटकी के कबूतर, उससे सबसे इम्पार्टेंट ‘मसल’ भी साफ-साफ दिख रही थी।

हम दोनों ने एक साथ एक दूसरे को देखा। दोनों की चोरी पकड़ी गई। हम दोनों एक साथ जोर से हँस दिए।

गुड्डी ने बोला- “उफफ्फ। मैंने आप दोनों का परिचय तो करवाया ही नहीं। ये हैं रीत। ये आनंद…”

रीत ने गुड्डी के गाल कस के मींज दिए और छेड़ते हुए बोली, साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहती ' तेरा माल है "

मैंने एक बार फिर उसे देखा। पीछे लग रहा था धुन बज रही है- “मैं चीज बड़ी हूँ मस्त। मैं चीज बड़ी हूँ मस्त…”

“मुझे मालूम है…” एक बार हम दोनों फिर एक साथ बोले।

“अरे आती हुई बहार का, खुशबू का, खिलखिलाती कलियों का, गुनगुनाती धुप का परिचय थोड़ी देना पड़ता है। वो अपना अहसास खुद करा देती हैं…” मैं बोला।

मस्का मस्का, गुड्डी चिल्लाई फिर जोड़ा मस्का लगाने से रीत दी आपको छोड़ेंगी नहीं, रगड़ाई बल्कि डबल होगी।
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“मुझे आप के बारे में सब मालूम है। इसने, इसकी मम्मी ने सब बताया है। लेकिन मैं सोच रही थी की। …” उस कली ने बोला।

“की हम आपके हैं कौन?” मुश्कुराकर मैं बोला।

“इकजैक्टली…” वो हँसकर बोली।

“अरे मैं बताती हूँ ना। ये बिन्नो भाभी के देवर, तो…” गुड्डी बोली।

“चुप मुझे जोड़ने दे? बिन्नो भाभी। यानी तुम्हारी मम्मी की ननद यानि चन्दा भाभी. मेरी भाभी, सबकी ननद। और मैं भी इस सबकी ननद,... तो फिर आप उनके देवर, तो आप मेरे तो देवर हुए…” और कैटरीना ने मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया।

“एकदम सही लेकिन सिर्फ दो बातें गलत…” मैं बोला और बजाय हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाने, मैं गले मिलने के लिए बढ़ा।वो खुद आगे बढ़कर मेरी बाहों में आ गई।

मैंने कसकर उसे भींच लिया। मेरे होंठ उसके कान के पास थे। उसके इयर लोबस को हल्के से होंठों से सहलाते हुए मैंने उसके कान में फुसफुसाया-

“हे भाभी से मैं हाथ नहीं मिलाता, गले मिलता हूँ…”

“मंजूर…” मुश्कुराते हुए वो बोली।

“और दूसरी बात। भाभी मुझे आप नहीं तुम बोलती हैं…” मैं बोला।

“लेकिन मैं तो आप। मेरा मतलब। तुमसे छोटी हूँ…” वो कुनमुनाई।

उसके उरोज अब मेरे सीने के नीचे दब रहे थे, मैंने और कसकर उसे भींचा। उसने छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की। बल्की और उभार के अपने उरोज मेरे सीने में दबा दिए।

“तो चलो हम दोनों एक दूसरे को तुम कहेंगे। ठीक?” मैंने सुझाया।

“ठीक…” वो कुनमुनाई।

मैंने थोड़ी और हिम्मत की। मैं एक हाथ को हम दोनों के बीच उसके, दबे हुए उरोज पे ले गया और बोला- “फागुन में तो भाभी से ऐसे गले मिलते हैं…”

मेरे दोनों पैर उसकी लम्बी टांगों के बीच में थे। मैंने उन्हें थोड़ा फैला दिया, और अपने ‘उसको’ वो भी अब टनटना गया था, सीधे उसके सेंटर पे लगाकर हल्के से दबा दिया। मेरा बदमाश लालची हाथ भी। हल्के से दबाने लगा था। उसके उरोज…”

वो मुश्कुराकर बहुत धीमे से मेरे कान में बोली- “अच्छा जी मैं भी तुम्हारी भाभी हूँ, कोई मजाक नहीं…” और बरमुडा के ऊपर से ‘उसे’ दबा दिया।

वो और तन्ना गया- “हे भाभी डरती हो क्या? काटेगा नहीं। ऊपर से क्यों? फागुन है। तुम मेरी भाभी बनी हो तो…” मैंने उसे और चढ़ाया।

हम दोनों ऐसे चिपके थे की बगल से भी नहीं दिख सकता था की हमारे हाथ क्या कर रहे हैं?

रीत दहीबड़े की प्लेट लायी थी और साथ में बैग में कुछ। गुड्डी उसे ही देख रही थी और बीच-बीच में हम लोगों को। रीत ने उसे हम लोगों को देखते हुए पकड़ लिया और मुझसे बोली-

“हे जरा सून्घों कहीं। कहीं कुछ जलने की, सुलगने की महक आ रही है…”
 
[color=rgb(251,]रीत -भाभी नहीं, ....
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[/color]

हम दोनों ऐसे चिपके थे की बगल से भी नहीं दिख सकता था की हमारे हाथ क्या कर रहे हैं?

रीत दहीबड़े की प्लेट लायी थी और साथ में बैग में कुछ। गुड्डी उसे ही देख रही थी और बीच-बीच में हम लोगों को। रीत ने उसे हम लोगों को देखते हुए पकड़ लिया और मुझसे बोली-

“हे जरा सून्घों कहीं। कहीं कुछ जलने की, सुलगने की महक आ रही है…”

मैंने अबकी गुड्डी को दिखाते हुए रीत के उभार हल्के से दबा दिए और बोला- “शायद। थोड़ा-थोड़ा आ रही है…”

गुड्डी भी वो समझ रही थी की हम लोग क्या कह रहे हैं? वो बोली- “लगे रहो, लगे रहो…” और रीत की ओर मुँह करके बोली-

“हे जो सुलगने वाली चीज होती है ना मैंने पहले ही साफ सूफ कर दी है…”

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तीनों हँस दिए।

“फेविकोल का जोड़ है इत्ती आसानी से नहीं छूटेगा…” रीत बोली।

“अचछा नए-नए देवरजी। अपनी भाभी को सिर्फ पकड़ा पकड़ी ही करियेगा या कुछ खिलाइए, पिलाइएगा भी?”

मैं गुड्डी का मतलब समझ गया। एक बार वो जो ड्रिंक्स मैंने बनाए थे और नत्था का गुलाब जामुन डबल डोज वाला, लेकिन वो चिड़िया इतनी आसानी से चारा घोंटने वाली नहीं थी। हम दोनों अलग हो गए।

वो मुझसे पूछने लगी- “हे आप मेरा मतलब, तुम। अभी…” उसने मुझसे बात की शुरूआत की।

मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उसने रोक दिया, मैं मान गया टिपिकल गुड्डी की दी, एकदम गुड्डी जैसे, पहले पूछेगी, फिर बोलो तो बोलने नहीं देगी, अपनी ही सुनाएगी।

“ना ना वो तो मुझे मालूम है। ये चुहिया हम सबको आपके बारे में बताती रहती है…” गुड्डी की ओर इशारा करके वो बोली।

गुड्डी झेंप गई जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।

“इस चुहिया ने मुझे आप मेरा मतलब है तुम्हारे बारे में ये…” मैं बोला।

गुड्डी जोर से चिल्लाई- “हे ये मेरी दीदी हैं। चुहिया कहें या चाहे जो लेकिन आप…”

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“ओके, बाबा। मैं अपनी बात वापस लेता हूँ…” मैं बोला और फिर कहा- “ गुड्डी ने ये बोला था की। आप मेरा मतलब तुमने इंटर-कोर्स किया है…”

“इंटर-कोर्स। नहीं इंटर का कोर्स…” मुँह बनाकर रीत बोली।

गुड्डी मुश्कुरा रही थी।

“तो क्या तुमने अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया। चचच्च…” मैं बड़े सीरियस अंदाज में बोला।

“कैसे करती। तुम तो अभी तक मिले नहीं थे…”

वो भी उसी तरह मुँह बनाकर बोली।
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मैं समझ गया की ये चीज बड़ी है मस्त मस्त। मैंने मुश्कुराते हुए पूछा- “आगे का क्या प्रोग्राम है?”

“अब तुम्हारे ऐसा देवर मिल गया है। तो हो जाएगा…” खिलखिलाते हुए वो बोली।

“तुम लोग ना। सिंगल ट्रैक माइंड। बिचारे बदनाम लड़के होते हैं। अरे मेरा मतलब था की पढाई का लेकिन तुम्हारे दिमाग में तो…” चिढ़ाते हुए मैंने कहा।

कुछ खीझ से कुछ मजे लेकर मेरा कान पकड़कर वो बोली- “फिलहाल तो आगे का प्रोग्राम तुम्हारी पिटाई करने का है…”

“एकदम-एकदम। मैं भी साथ दूंगी। कहो तो डंडा वंडा ले आऊं?” गुड्डी भी उसका साथ देते बोली।

बिना मेरा कान छोड़े वो बोली- “अरे यार आगे का प्रोग्राम “बी॰काम॰, बैचलर आफ कामर्स…कर रही हूँ , सेकेण्ड ईयर है ” वो मुश्कुराकर बोली। मेरा कान अब फ्री हो गया था।

“ओके। तो आप कामरस में ग्रजुएशन करेंगी? सही है। सही है…” कहकर ऊपर से नीचे तक मैंने उसे देखा। उसके टाईट कुरते में कैद जोबन पे मेरी निगाह टिक गईं-

“सही है। सिर से पैर तक तो तुम कामरस में डूबी हो। हे मुझे भी कुछ पढ़ा देना। कामरस। आम-रस। मैं तो रसिया हूँ रस का…” मेरी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थीं।

वो समझ रही थी की मैं किस आम-रस की बात कर रहा हूँ। वो भी उसी अंदाज में बोली-

“अरे आम-रस चाहिए तो पेड़ पे चढ़ना पड़ता है। आम पकड़ना पड़ता है…”
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“अरे मैं तो चढ़ने के लिए भी तैयार हूँ, और पकड़ने के लिए भी, बस एक बार खाली मुँह लगाने का मौका मिल जाए…” मैंने कहा।

एक जबरदस्त अंगड़ाई ली कैटरीना ने। दोनों कबूतर लगता था छलक के बाहर आ जायेंगे-

“इंतजार। उम्मीद पे दुनियां कायम है क्या पता। मिल ही जाय कभी?” वो जालिम इस अदा से बोली की मेरी जान ही निकल गई।

“हे अपनी भाभी का बात से ही पेट भरोगे…” गुड्डी ने फिर मुझे इशारा किया।

“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।
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“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”

गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।

“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।

हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।

भाभी वाले रिश्ते में मुझे भी कुछ अड़बड़ लग रहा था, लेकिन बोली रीत ही,

" यार, भाभी की तो शादी होनी चाहिए, कुँवारी भाभी में अटपट लगता है, और असली रिश्ता है ये जो चुहिया है जिसे तुम हरदम के लिए चूहेदानी में बंद करना चाहते हो, मेरी छोटी बहन भी है , सहेली भी, इसलिए साली, "
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गुड्डी ने बात काट दी, ' सिर्फ साली नहीं, बड़ी साली, "

" अरे यार रगड़ाई करने से मतलब, ये बेचारा इस अच्छे मौके पे बनारस आया है तो रगड़ाई तो मैं करुँगी, चाहे भौजी के रिश्ते से, चाहे साली के रिश्ते से, " वो बोली,

रगड़ाई तो इनकी गूंजा ने ही सुबह सुबह शुरू कर, मिर्च वाले ब्रेड रोल से, गुड्डी हँसते हुए बोली।

“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।

“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।

“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।
 
[color=rgb(61,]फागुन के दिन चार भाग ९[/color][color=rgb(184,]
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रीत की रीत, [/color][color=rgb(65,]रीत ही जाने
1,11,995
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“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।

“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”

गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।

“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।

हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।

“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।

“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।

“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।

“हे बचना चाहते हो क्या?” आँख नचाकर वो जालिम अदा से बोली।

“ना…” मैंने कबूल किया।

“बचकर रहना कहीं दिल विल। कोई…” वो जानते हुए भी गुड्डी की ओर ,शोख निगाहों से देख कर बोली।

मैं जाकर गुड्डी के पास खड़ा हो गया था। मैंने हाथ उसके कन्धे पे रखकर कहा-

“अब बस यही गनीमत है। अब उसका डर नहीं है। ना कोई ठग सकता है ना कोई चुरा सकता है…।”

मैंने भी बड़े अंदाज से गुड्डी की आँखों में झांकते कहा।

उस सारंग नयनी ने जैसे एक पल के लिए अपनी बड़ी कजरारी आँखें झुका के गुनाह कबूल कर लिया।
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लेकिन रीत ने फिर पूछा- “क्यों क्या हुआ दिल का?”

“अरे वो पहले ही चोरी हो गया…” और अब मेरा हाथ खुलकर गुड्डी के उभारों पे था।

रीत कुछ-कुछ बात समझ रही थी लेकिन उसने छेड़ा- “चोर को सजा क्या मिलेगी?”
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“अभी मुकदमा चल रहा है लेकिन आजीवन कारावास पक्का…” मैं मुश्कुराकर गुड्डी को देखते बोला-

“बस डर यही की मिर्चे वाली ब्रेड रोल…”

मेरी बात काटकर रीत बोली-

“अरे यार। ससुराल में, ये तो तुम्हारी सीधी सालियां थी। ये गनीमत मनाओ की मैं इन दोनों के साथ नहीं थी। लेकिन दहीबड़े के साथ डरने की कोई बात नहीं है। लो मैं खाकर दिखाती हूँ…”

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और उसने एक छोटी सी बाईट लेकर अपनी लम्बी गोरी उंगलियों से मेरे होंठों के पास लगाया।

मेरे मुँह की क्या बिसात मना करता। मैं खा गया।

“नदीदे…” गुड्डी बोली।

“अरे यार। ऐसी सेक्सी भाभी कम साली । फागुन में कुछ दे, जहर भी दे ना तो कबूल…” मैं मुश्कुराकर बोला।

“अरे ऐसे देवर पे तो मैं बारी जाऊँ…” कहकर रीत ने अपने हाथ में लगा दहीबड़े का दही मेरे गाल पे लगा दिया और थोड़ा और प्लेट से लेकर और।

दही बड़े में मिर्च नहीं थी। लेकिन वो सबसे खतरनाक था। दूबे भाभी के दहीबड़े मशहूर थे वहाँ… उनमें टेबल पे जितनी चीजें थी, उनमें से किसी से भी ज्यादा भांग पड़ी थी। गुड्डी को ये बात मालूम थी लेकिन उस दुष्ट ने मुझे बताया नहीं।

गुड्डी बस खड़ी खी-खी कर रही थी।

मैंने रीत को गुलाब जामुन खिलाने की कोशिश की तो उसने मुँह बनाया। लेकिन मैंने समझाया- “दिल्ली से लाया हूँ…” तब वो मानी।
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एक बार में पूरा ही ले लिया लेकिन साथ में मेरी उंगलियां भी काट ली और जब तक मैं सम्हलता। मेरा हाथ मोड़कर शीरा मेरा हाथ का मेरे ही गाल पे लगा दिया।

“चाट के साफ करना पड़ेगा…” मैंने उसे चैलेन्ज दिया।

“एकदम। हर जगह चाट लूँगी, घबड़ाओ मत…” हँसकर वो बोली। रीत की निगाहें टेबल पे कुछ पीने के लिए ढूँढ़ रही थी।

“ठंडाई…” मैंने आफर की।

“ना बाबा ना। चन्दा भाभी की बनायी, एक मिनट में आउट हो जाऊँगी…” फिर उसकी निगाह बियर के ग्लास पे पड़ी- “बियर। पीते हो क्या?”

मैंने मुश्कुराकर कबूल किया- “कभी कभी। अगर तुम्हारा जैसे कोई साथ देने वाला मिल जाय…”

“थोड़ी देर में। लेकिन सबको पिलाना तब मजा आएगा। खास तौर से इसे…” मुड़कर उसने गुड्डी की ओर देखा।

मैं- “एकदम। लेकिन अभी…”

गुड्डी रीत जो बैग साथ लायी थी उसे खोलकर देख रही थी और मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

“हे मैं चलूँ। ये बैग अन्दर देकर आती हूँ। कुछ काम वाम भी होगा। बस पांच मिनट में…” गुड्डी बैग लेकर अन्दर जाते हुए बोली।+++

" आराम से आना, दस मिनट क्या पन्दरह मिनट बीस मिनट, तबतक मैं इस अपने देवर कम छोटे जीजा कम साले का क्लास लेती हूँ, "

" एकदम दी, खूब रगड़के, बहुत बोल रहे थे न बनारस की ठगिनियाँ, अब पता चलेगा, " गुड्डी खिलखिलाते हुए जाते जाते बोली, लेकिन मेरी बात सुन के ठहर गयी,

" हे ये देवर, जीजा तक तो ठीक लेकिन साला किधर से " मैंने रीत से पूछा।

मैं देख ज्यादा रहा था, बोल कम रहा था, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, जिसमे शरारत नाच रही थी, धनुष ऐसी भौंहे, सुतवां नाक, भरे हुए होंठ, और निगाहें ठुड्डी की गड्ढे में जाके डूब जा रही थीं,

" स्साले, स्साले को स्साला नहीं बोलूंगी तो क्या " मुस्कराते हुए रीत मेरे पास आयी और कस के पास आयी और मेरी नाक पकड़ के हिलाके चिढ़ाते हुए बोलने लगी। गुड्डी मुझे देख के मुस्करा रही थी।

" स्साले समझ में नहीं आया न, अच्छे अच्छे बनारस में आके बनारसी बालाओं के आगे समझ खो देते हैं तो तुम क्या चीज हो। ये बताओ की तुम अपनी उस ममेरी बहन एलवल वाली छमक छल्लो को यहाँ बनारस में ला के बैठाने वाले हो न, एकदम ठीक सोच रहे हो, अरे जो चीज वो फ्री में बांटेंगी, उसके पास कोई असेट है तो उसे मॉनिटाइज कर सकती है तो करना चाहिए न, काम वही, अंदर बाहर, रगड़ घिस तो कुछ पैसा हाथ में आ जाए तो क्या बुराई और सबसे अच्छी बात अभी तक उस पे कोई जी एस टी भी नहीं, तो ये बताओ दिन रात सब बनारस वाले उस के ऊपर चढ़ेंगे उतरेंगे, उसकी तलैया में डुबकी मारेंगे, तो तुम क्या लगोगे उन सबके साले न, तो स्साले हम सब भी तो बनारस वाले हैं हम सबके भी तो स्साले, तुम साले ही लगोगे न, स्साले "
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गुड्डी मुझे देख के मुस्कराती रही जैसे कह रही हो देखा, अब समझ में आया किस के पाले पड़े हो, मैंने तुमसे झूठ ही नहीं कहा था की मेरी रीत दी का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, और बैग लेके चंदा भाभी के पास किचेन में।

मैं समझ गया था की बनारसी बालाओं से बहस करना बेकार है, और ये रीत उससे तो बहस के बारे में सोचना ही बेकार है।
 
[color=rgb(61,]लेडी शर्लोक होल्म्स

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" ग्लास में पानी था ? " रीत ने जानकर भी पूछा, मैंने किसी तरह झुंझलाहट रोकी, और हाल बयान किया

" होता तो मैं पी न लेता, मिर्च से मुंह जला जा रहा और गुँजा ने ये स्टाइल से जग उठा के दिया ( अभी भी मुझे गुँजा के टॉप से झांकती हवा मिठाई याद आ रही थी) और सिर्फ दो बूँद पानी "

" पानी प्लेट में था नहीं, कैसरोल में होता तो ब्रैडरोल गीले होते, ग्लास और जग में नहीं तो सिर्फ एक ही चीज बचती है। "

रीत ने एकदम किसी जासूसी किताब में बंद कमरे में लाश मिलने का रहस्य जैसे खोलते हुए बोला। और फिर पूछा, चंदा भाभी को कितना समय लगा पानी देने में?

" एकदम तुरंत, उन्होंने किसी से बात भी नहीं की, बस केतली उठा के ग्लास में पानी " मैंने कबूल किया ।

" तो गलती किस की है तेरी या मेरी दो बहनो की, ऑब्जर्वेशन , ओब्जेर्वेंट होना चाहिए पानी जग और ग्लास में नहीं है, प्लेट और कैसरोल में भी नहीं तो केतली, ऑब्जर्वेशन और एनालिसिस, एलिमेंट्री माय डियर वाट्सन "

वो एकदम लेडी शर्लाक होम्स की तरह बोली और मैं ये सेंटेंस बोलता की उसने एक नया मोर्चा खोल दिया।

" कभी जादू का शो देखा है, मजमे वाले की बात नहीं कर रही , जिसमे टिकट लगता है, स्टेज शो " रीत ने पूछ लिया,

" एकदम कितनी बार " और जबतक मैं गोगिया पाशा, पी सी सरकार जूनियर से लेकर आठ दस नाम गिनवाता रीत ने एक टेढ़ा सवाल कर दिया,
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" जादू देखते थे या जादूगर के साथ की लौंडियों को, जो मटकती चमकती रहती हैं ? "

मैं क्या बोलता, पहली बार रीत से मिला था और ये बात समझ गया था की रीत के आगे बोलती बंद हो जाती है।

" बस उसी का फायदा उठा के जादूगर हाथ की सफाई दिखा देता है और ये बताओ जब तुझे मिर्ची लग रही थी, पानी पानी चिल्ला रहे थे तो किसे देख रहे थे ? "

रीत का सवाल और मैं समझ गया की इससे झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं, वो बोलने के पहले पकड़ लेगी ।

" वो, वो गुंजा को, उसी ने ब्रेड रोल खिलाया था, " मैंने कबूल भी किया और बहाना भी बनाया और पकड़ा भी गया।

" गुंजा को या गुंजा का, "
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कह के वो मुस्करायी, फिर बोली,

" अरे यार तेरा तो जीजा साली का रिश्ता है, और तुम बुद्धू टाइप जीजा हो इसलिए देख देख के ललचाते हो, देखता तो सारा मोहल्ला है, सड़क और गली के लड़के हैं,"

और फिर रीत का टोन बदल गया वो अंग्रेजी में आ गयी।

when you have eliminated the impossible, whatever remains, however improbable, must be the truth.

और तुरंत मेरे दिमाग में शर्लाक होम्स की कहानी गूंजी, साइन आफ फोर,

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लेकिन रीत फिर तुरंत उस बनारसी बालाओं के रूप में वापस आ गयी जो इस धरा पर अवतरित ही होती हैं, मेरी रगड़ाई करने के लिए,

" गुड्डी तुझे सही ही बुद्धू कहती है, तो टेबल पर अगर प्लेट, कैसरोल, ग्लास और जग में पानी नहीं था तो बची केतली न, तो भले ही अजीब लगे, लेकिन देखने में क्या,... और चंदा भाभी ने देखो एक पल में, "

रीत की मुस्कराहट देख के मैंने हार भी मान ली और बात भी बदल दी,

" कई बार बुद्धू होने का फायदा भी हो जाता है, "

" एकदम तेरा तो हो गया न तीन ठगिनिया मिल गयीं, लेकिन फिर रोते क्यों हो ठगिनियों ने लूट लिया, होली है, बनारस है ससुराल है तो लुटवाने तो आये ही हो, क्या बचाने की कोशिश कर रहे हो, हाँ एक बात और ये बोल, दहीबड़ा खाने में तेरी फट क्यों रही थी, ?"

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" वो असल में, सुबह वाली बात, मिर्च, " हकलाते हुए मैंने अपना डर बताया ।

" भोले बुद्धू , मिर्च से भी खतरनाक भी कोई चीज भी तो हो सकती थी उसमे, सोचो, सोचो , " आँख नचाते उस खंजननयनी ने छेड़ा,

और सोच के मेरी रूह काँप गयी, गुझिया ठंडाई से इसलिए मैं दूर था तो कहीं, फिर मैंने ये सोच के तसल्ली दी की डबल डोज वाला गुलबाजामुन मैंने रीत को खिला दिया है, भांग की दो गोलियां बल्कि गोले, बनारस का पेसल गुलाबजामुन।

लेकिन अबकी रीत ने ट्रैक बदल दिया, पूछा उसने

" शाम को मुग़ल सराय किस ट्रेन से पहुंचे, गुड्डी बोल रही थी बहुत उठापटक कर के बड़ौदा से, चलो जानेमन से मिलना है तो थोड़ी उछल कूद तो करनी ही पड़ती है, "

और मैंने अपनी पूरी वीरगाथा ट्रेनगाथा सुना दी, मुग़लसराय तो कालका से, लेकिन बड़ौदा में कोई ट्रेन बनारस के लिए सीधी थी नहीं , तो अगस्त क्रान्ति से मथुरा, फिर दस मिनट बाद ताज एक्सप्रेस मिल गयी, उस से आगरा, और फिर वहां से किसी तरह बस से टूंडला और वहां बस कालका मिल ही गयी, तो कल शाम को आ गया वरना आज सुबह ही आ पाता । "

वो बड़ी देर तक मुस्कराती रही, फिर बोली,

"देवर कम जीजू कम स्साले, फिर तुम दिल्ली कब पहुँच गए नत्था के यहाँ से गुलाब जामुन लेने,"

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और मेरे गुब्बारे की हवा निकालने के बाद जोड़ा

: उस गोदौलिया वाले नत्था के गुलाबजामुन का स्वाद मैं पहचानती हूँ, अच्छे थे, लेकिन मेरे बनाये दहीबड़े में भांग की मात्रा उससे दूनी थी, चलो इस बात पर एक और दहीबड़ा हो जाए, मुंह खोलो, अरे यार इतनी देर में तो तेरी बहना अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों खोल देती, खोल स्साले"

और मैंने मुंह खोल दिया, सुन कौन रहा था, समझने का सवाल ही नहीं था, मैं तो सिर्फ रीत को देख रहा था, उसकी देह की सुंदरता के साथ उसकी सोचने की ताकत को,

दहीबड़ा उसने मेरे मुंह में डाल दिया, दही मेरे गाल पे पोंछ दिया, और बाकी उँगलियों में लगी दही चाटते हुए बोली,

" आब्जर्वेशन आनंद बाबू, आब्जर्व, देखते तो सब है लेकिन आब्जर्व बहुत कम लोग करते हैं "

और मैंने तुरंत आब्जर्व किया जो बहुत चालाक बन कर गुलाब जामुन मैंने रीत को खिलाया था उस की चौगुनी भांग रीत के दो दहीबड़ों से मैं उदरस्थ कर चुका हूँ और बस दस मिनट के अंदर उसका असर,...और रीत की ओर अचरज भरी निगाहों से देखता बोला

" आप, मेरा मतलब तुम तो एकदम लेडी शरलॉक होम्स हो "

" उन्हह अपनी दही लगी उंगलिया जो उसने थोड़ी चाट के साफ़ की थीं लेकिन अभी भी लगी थी, मुझे चाटने के लिए ऑफर कर दी और वो मेरे मुंह में, और वो बोली,

" मगज अस्त्र मैं तो फेलु दा की फैन हूँ। "

" सच्ची, " मैं चीखा।
 
[color=rgb(61,]फेलू दा *

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" आप, मेरा मतलब तुम तो एकदम लेडी शरलॉक होम्स हो "

" उन्हह अपनी दही लगी उंगलिया जो उसने थोड़ी चाट के साफ़ की थीं लेकिन अभी भी लगी थी, मुझे चाटने के लिए ऑफर कर दी और वो मेरे मुंह में, और वो बोली,

" मगज अस्त्र मैं तो फेलु दा की फैन हूँ। "

" सच्ची, " मैं चीखा।

" तुम भी, " वो चीखी।

और हम दोनों ने हाथ नहीं मिलाया, सीधे गले और कस के फिर अलग होने के पहले, पहला सवाल उसी ने पूछा,

" नाम "

"प्रोदेश चंद्र मित्तर, मैंने फेलू दा का असली नाम बता दिया
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अगला सवाल मेरा था , पता

रीत ने मुस्कराते हुए बिना एक मिनट खोये झट्ट से जवाब दे दिया, २१ रजनी सेन रोड और एक थोड़ा टेढ़ा सवाल भी दाग दिया,

पहली बार कहाँ, किस कहानी में, ये सवाल सचमुच में टेढ़ा था मुझे सोचना पड़ा और उस शोख ने १ २ ३ गिनना शुरू कर दिया, और मैंने भी मगज अस्त्र का इस्तेमाल किया और उसके ५ पहुँचने के पहले जवाब दे दिया,

" सन्देश, १९६५ और कहानी थी , फेलुदा गोयेंदागिरि या डेंजर इन दार्जिलिंग,"

और बात फिल्मों की ओर मोड़ के मैंने बोला, पहली फिल्म फेलुदा की,

सवाल ख़तम हुआ भी नहीं था की उस शोख का जवाब आ गया, सोनार केला

और अगली यहीं बनारस की जय बाबा फेलुनाथ,

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मैंने वो जगह भी देखी हैं शूटिंग हुयी थी, चलो ये बता दो तो मान जाउंगी जय बाबा फेलुनाथ में उत्पल दत्त फेलु दा के एक दोस्त पे चाक़ू फेंक के डराता है , उसका नाम"

अब एक एक सीन किसे याद रहता है, मैंने सोचा और सोचा, और याद आ गया, और मैंने झट्ट से जवाब दे दिया,

"जटायु लालमोहन घोषाल और अपनी ओर से एक बात और जोड़ दी उनके बाबा ने लेकिन उनका नाम रखा था, मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी की रीत ने बात पूरी कर दी.

" सर्बोंय गंगोपाध्याय लेकिन वो नाम इस्तेमाल नहीं करते और किताब तो जटायु के नाम से ही बिकती है "
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मैं चकित रह गया, ये एक क्विज में फाइनल राउंड का क्वेशन था, और ये लड़की, सत्यजीत राय की ट्रिविया मेरी क्विजिंग का फेवरिट एरिया था और मैंने उनकी सारी कहानियां पढ़ रखी थीं, फिल्मे देख रखी थीं,

यू पी एस सी के इंटरव्यू में हॉबी में सबसे ऊपर मैंने सत्यजीत रे मूवीज एंड स्टोरीज लिखी थी और चेयरमैन भी एक एक बंगाली भद्रलोक, दो सवाल तो सोनार केला पे ही, ८० % नंबर इंटरव्यू में मिले इसलिए फर्स्ट अटेम्प्ट में ही,

लेकिन मुझे नहीं मालूम था की फेलुदा की कोई शिष्या यहाँ सिगरा, औरंगाबाद बनारस में टकरा जायेगी,
 
[color=rgb(51,]भूतनाथ की मंगल होरी,[/color]

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रीत का ध्यान कहीं और मुड़ गया था- “हे म्यूजिक का इंतजाम है कुछ क्या?”

“है तो नहीं। पर चंदा भाभी के कमरे में मैंने स्पीकर और प्लेयर देखा था। लगा सकते हैं। तुम्हें अच्छा लगता है?” मैंने पूछा।

“बहुत…” वो मुश्कुराकर बोली- “चल उसी से कुछ कर लेंगे…”

“और डांस?” मैंने कुछ और बात आगे बढ़ाई।

“एकदम…” उसका चेहरा खिल गया- “और खास तौर से जब तुम्हारे जैसा साथ में हो। वैसे अपने कालेज में मैं डांसिंग क्वीन थी…मजा आजयेगा, बहुत दिन से डांस नहीं किया किसी के साथ, चल यार गुड्डी तो तुझे जिंदगी भर नचाएगी, आज मैं नचाती हूँ , शुरुआत बड़ी बहन के साथ कर लो, जरा मैं भी तो ठोक बजा के देख लू , मेरी बहन ने कैसा माल पसंद किया है। "
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तब तक मैंने उसका ध्यान टेबल पे रखे कोल्ड ड्रिंक्स की ओर खींचा- “हे स्प्राईट चलेगा?”

रीत ने गौर से बोतल की सील को देखा, वो बंद थी। मुश्कुराकर रीत बोली- “चलेगा…”मैंने एक ग्लास में बर्फ के दो क्यूब डाले और स्प्राईट ढालना शुरू कर दिया।

उसे कोल्ड-ड्रिंक देते हुए मैंने कहा- “स्प्राईट बुझाए प्यास। बाकी सब बकवास…”

“एकदम…” चिल्ड ग्लास उसने अपने गोरे गालों पे सहलाते हुए मेरी ओर ओर देखा,

और एक तगड़ा सिप लेकर मुझे ऑफर किया, और जबतक मैं कुछ सोचता बोलता अपने हाथों में पकडे पकडे ग्लास मेरे होंठों में

रीत को कौन मना कर सकता है, मैंने भी एक बड़ी सी सिप ले ली।

लेकिन तब तक उसे कुछ याद आया, वो बोली, यार वो चंदा भाभी के कमरे का म्यूजिक सिस्टम मेरे हाथ लगे बिना ठीक नहीं होता, उसका प्लग, कनेक्टर, सब इधर उधर, बस दो मिनट में मैं चेक कर लेती हूँ, फिर सच में मजा आ जाएगा आज होली बिफोर होली का

वो चंदा भाभी के कमरे में घुसी लेकिन दरवाजे के पास रुक के वो कमल नयनी बोली,

" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "

और वह अंदर चली गयी और मैं सोचने लगा बल्कि कुछ देर तक तो सोचने की भी हालत में नहीं था, ये लड़की क्या बोल के चली गयी।

मैं सन्न रह गया। बात एकदम सही थी और कितनी आसानी से मुस्कराते हुए ये बोल गयी,

बीता हुआ कल, बल्कि बीता हुआ पल कहाँ बचता है, कुछ आडी तिरछी लकीरों में कुछ भूली बिसरी यादों में जिसे समय पुचारा लेकर हरदम मिटाता रहता है जिससे नयी इबारत लिखी जा सके, और उस बीते हुए पल के भी हर भोक्ता के स्मृतियों के तहखाने में वो अलग अलग तरीके से,

अभी गुड्डी रीत का बैग लेकर चंदा भाभी के पास गयी, बस वो पल गुजर गया, उसका होना, उसका अहसास,

और आनेवाला कल, जिसके बारे में अक्सर मैं, हम सब, वो,

पल भर के लिए मेरा ध्यान नीचे सड़क पर होने वाले होली की हुड़दंग की ओर चला गया, बहुत तेज शोर था, लग रहा था कोई जोगीड़ा गाने वालों की टोली,

[color=rgb(235,]सदा आनंद रहे यही द्वारे, कबीरा सारा रा रा ,[/color]

वो टोली बगल की किसी गली में मुड़ गयी थी,

और अचानक कबीर की याद आ गयी,

[color=rgb(84,]साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी[/color]

[color=rgb(84,]चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास[/color]

[color=rgb(84,]चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।[/color]

और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.

हम अतीत का बोझ लाद कर वर्तमान की कमर तोड़ देते हैं, कभी उसके अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं, कभी उन्ही पलों में जीते रहते हैं और जो पल हमारे साथ है उसे भूल जाते हैं।

जहां छत पर गुड्डी का और चंदा भाभी का घर था वो छत बहुत बड़ी थी और खुली थी, ऊँची मुंडेर से आस पास से दिखती भी नहीं थी, लेकिन अगल बगल के घरों की गलियों की आवाजें तो मुंडेर डाक के आ ही जाती थी। पड़ोस के किसी घर में किसी ने होली के गाने लगा रखे थे और अब छुन्नूलाल मिश्र की होरी आ रही थी,

[color=rgb(184,]खेलें मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी,

भूत पसाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी।
[/color]

[color=rgb(184,]लखि सुंदर फागुनी छटा के मन से रंग गुलाल हटा के,

चिता भस्म भर झोरी, दिगंबर खेलें मसाने में होरी।[/color]


यही बात एकदम यही बात, मृत्यु के बीच जीवन, यही तो बोल के गयी वो, कल नहीं रहा, कल का पता नहीं, लेकिन जो पल पास में है उसका रस लो, यही आनंद है आनंद बाबू। उसे जीना, उसका सुख लेना, उस पल का क्षण का अतीत को, भविष्य को भूल कर,

और यही बनारस का रस है। बनारसी मस्ती है, जीवन के हर पल को जीना, उसके रस के हर बिंदु को निचोड़ लेना,

" हे म्यूजिक सिस्टम मिल भी गया, ठीक भी हो गया, आ जाओ अंदर और स्प्राइट भी ले आना " अंदर से रीत की आवाज आयी
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बगल से होरी की आखिरी लाइने बज रही थीं,

[color=rgb(51,]भूतनाथ की मंगल होरी, देख सिहायें ब्रज की गोरी।

धन धन नाथ अघोरी, दिगंबर मसाने में खेले होरी।[/color]


अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.
 
[color=rgb(51,]फेलू दा और कुछ और बातें[/color]

फेलुदा , या प्रोदोष चंद्र मित्रा [मित्तर] , भारतीय निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे द्वारा निर्मित एक काल्पनिक जासूस , निजी अन्वेषक है । फेलुदा 21 रजनी सेन रोड, बालीगंज , कलकत्ता , पश्चिम बंगाल में रहते हैं । फेलुदा ने पहली बार 1965 में रे और सुभाष मुखोपाध्याय के संपादकीय में संदेश नामक बंगाली बच्चों की पत्रिका में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । उनका पहला साहसिक कार्य फेलुदर गोएन्डागिरी था ।

फेलुदा के साथ अक्सर उनका चचेरा भाई, जो उनके सहायक भी है, तपेश रंजन मित्तर (फेलुदा उसे प्यार से टॉपशे कहते हैं) आता है, जो कहानियों में सुनाने का काम करता है।

छठी कहानी, सोनार केला (द गोल्डन फोर्ट्रेस) से, यह जोड़ी एक लोकप्रिय थ्रिलर लेखक जटायु (लालमोहन गांगुली) से जुड़ गई है।

फेलुदा को कई बार फिल्माया गया है, जिसमें सौमित्र चटर्जी , सब्यसाची चक्रवर्ती , अहमद रुबेल , शशि कपूर , अबीर चटर्जी , परमब्रत चटर्जी , टोटा रॉय चौधरी और इंद्रनील सेनगुप्ता ने किरदार निभाया है । सत्यजीत रे ने दो फेलुदा फिल्में निर्देशित कीं - सोनार केला (1974) और जोई बाबा फेलुनाथ (1978)।

फेलुदा का चरित्र शर्लक होम्स से मिलता जुलता है और तपेश/टॉपशे का चरित्र डॉ. वॉटसन से मिलता जुलता है । [ फेलुदा की कहानियों में, उन्हें शर्लक होम्स के एक बड़े प्रशंसक के रूप में प्रदर्शित किया गया है जिसका उल्लेख उन्होंने कई बार किया है।

मार्शल आर्ट में निपुण एक मजबूत शरीर वाले व्यक्ति होने के बावजूद , फेलुदा ज्यादातर इस पर निर्भर रहते हैं शारीरिक शक्ति या हथियारों का उपयोग करने के बजाय मामलों को हल करने के लिए उनकी शानदार विश्लेषणात्मक क्षमता और अवलोकन कौशल (मजाक में इसे मगजस्त्र या मस्तिष्क-हथियार कहा जाता है) वह मामलों को लेने के बारे में बहुत चयनात्मक हैं और उन मामलों को प्राथमिकता देते हैं जिनमें मस्तिष्क के प्रयास की आवश्यकता होती है।

लेकिन एक बात

फेलू दा का संबंध इस कहानी से और विशेष रूप से रीत से एक अलग ढंग से भी है पर वह अपने आप कहानी के साथ पता चल जाएगा।

मैं मानती हूँ की कहानी अपनी बात खुद कहती है और एक बार पोस्ट होने के बाद हर पाठक उसे अपने ढंग से पढ़ने, समझने के लिए आजाद है, लेकिन आप ऐसे पाठको से कथा शिल्प की बात, जिस तरह से मैंने लिखा वह कहना भी अनुचित नहीं

रीत सेंसुअस, सुन्दर वाक् पटु तो है ही लेकिन इस के इन भागों से उसके आबजर्वेंट होने का भी संकेत मिलता है,

दूसरी बात की एक घटना , ब्रेकफास्ट में ब्रेड रोल में मिर्चे और पानी वाला मामला शुरू में ( और है भी ) दो टीनेजर कन्याओं की छेड़खानी के तौर पर आता है, लेकिन उसी का विशेलषण रीत अपने ढंग से कर के अपने ऑबजर्वेंट होने को भी दिखाती है और आनंद बाबू इम्प्रेस हो जाते है।

लेकिन तीसरी बात है रीत के मन की गहराई जो इस प्रसंग के आखिरी पोस्ट में मिलती है जिसमें रीत की एक बात

'कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "

रीत के मन की गहराई का जीवन के प्रति उसके नजरिये को दिखता है और उसकी पुष्टि के लिए मैंने कबीर के एक पद ' मुर्दों का गाँव " और एक मशहूर होरी का सहारा लिया।

आनंद बाबू का रीत के प्रति दृष्टिकोण जो बना उसमें ये सभी बिंदु समाहित हैं

मैं मानती हूँ की कहानी मल्टी लेयर्ड होनी चाहिए, अलग अलग स्तरों पर मन को, मस्तिष्क को छुए, और चरित्र भी मल्टी डायमेंशनल होने चाहिए, हम लोग जो कहानी लिखते हैं उनकी यह जिम्मेदारी है की भले हम इरोटिका लिख रहे हैं लेकिन हम कथाकारों की एक लम्बी परम्परा की कड़ी है। और कहानी को कुछ कहना चाहिए, अपने पात्रों के जरिये, संवादों के जरिये।

इस कहानी के पाठक अभी कम है लेकिन मैं मानती हूँ कुछ पाठक ही हों जिन्हे कहानी में रूचि हो जिनसे कहानी के बारे में बातचीत की जा सके तो मेहनत वसूल हो जाती है।
 
इस पोस्ट के आखिरी हिस्से में ( भूतनाथ की मंगल होरी ) रीत ने जो ये बात कही

" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "

उसी के संदर्भ में उसी हिस्से में कबीर की कुछ लाइने उद्धृत की गयी हैं,

" और अचानक कबीर की याद आ गयी,

साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी

चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास

चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।

और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.

कबीर का पूरा भजन, " साधो यह मुर्दो का गाँव " जिसकी यह लाइने हैं, यहाँ सूधी पाठको के लिए उद्धृत कर रही हूँ और साथ ही एक वीडियों लिंक भी उस भजन का जो कबीर सीरियल का हिस्सा था

साधो ये मुरदों का गांव!
पीर मरे, पैगम्बर मरि हैं,
मरि हैं ज़िन्दा जोगी,
राजा मरि हैं, परजा मरि हैं,
मरि हैं बैद और रोगी।
साधो ये मुरदों का गांव!

चंदा मरि है, सूरज मरि है,
मरि हैं धरणी आकासा,
चौदह भुवन के चौधरी मरि हैं
इन्हूँ की का आसा।
साधो ये मुरदों का गांव!

नौहूँ मरि हैं, दसहुँ मरि हैं,
मरि हैं सहज अठ्ठासी,
तैंतीस कोटि देवता मरि हैं,
बड़ी काल की बाज़ी।
साधो ये मुरदों का गांव!

नाम अनाम अनंत रहत है,
दूजा तत्व न होइ,
कहे कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो मत कोई।
 
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