Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 38 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा


“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” हम सिसक उठे। वह समझ गया कि अब हमारा दर्द कम हो गया।

वह बड़े प्यार से हमें चूमता हुआ बोला, “ओह मेरी जान, अब ठीक लग रहा है ना?”

“हां, हां, अब ठठठठठीक हहहहैऐऐऐ।” हम शरमा के उसकी छाती पर सिर रख दिए।

“अय हय मेरी प्यारी रानी, ऐसे शरमाओगी तो हम मर ही जाएंगे।” वह मुझे चूमते हुए बोला। अब धीरे धीरे हमें ऊपर उठाने लगा, उसका लंड हमारे गांड़ से बाहर निकल रहा था। वह हमारे लिए एकदम नया अनुभव था। बड़ा अच्छा लग रहा था। अभी उसका लंड पूरा बाहर निकला भी नहीं था कि भचाक से फिर बैठा दिया अपने लंड पर।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह,” हम चीख पड़े फिर दर्द से। इस बार थोड़ा कम था दर्द। “दर्द हो रहा है आह।”

“बोला न, चिल्ला मत हरामजादी कुतिया।” एक झांपड़ और पड़ा मेरे गाल पर।

“मारो मत ना।” हम फिर रोने लगे।

“ओय ओय मेरी रानी। रो मत मेरी जान।” पुचकारते हुए हमसे बोलने लगा।

“तुम मारते हो तो।”

“अच्छा नहीं मारेंगे।” हमें चूमते हुए बोला। “मगर तुम चिल्लाओगी नहीं अब।” उसकी बातों से हमें थोड़ी राहत मिली।

“अच्छा नहीं चिल्लाएंगे।” हम सिसकते हुए बोले। अब धीरे धीरे वह अपना लंड हमारी गांड़ में अंदर बाहर करने लगा। थोड़ी देर में हमें मजा आने लगा। अब दर्द के जगह थोड़ा जलन हो रहा था, लेकिन फिर भी मजा आ रहा था। हम खुद को लड़की के समान समझने लगे अब। धीरे धीरे उसका स्पीड बढ़ने लगा। दनादन कमर चलाने लगा और हमारे गांड़ में गपागप लंड पेलने लगा।

“आह आह आह ओह ओह ओह अम्मा अम्मा, ओह राजा ओह राजा, चोद, चोद।” मह मस्ती में भर के बोलने लगे।

“आह आह अब आया न मजा मेरी रानी। अब देख हम कैसे चोदते हैं तुझे।” इतना कहकर अब हमें कुत्ती की तरह झुका दिया और पीछे से मेरी गांड़ में लंड डालने लगा। मेरी कमर पकड़ कर फिर से किसी कुत्ते की तरह मेरी गांड़ चोदना शुरू किया।

“आह मेरे रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आह, ओह ओह ओह चोद मेरी गांड़, ओह आह अपनी रानी बना ले मेरे रज्ज्ज्जा, चोद हमें चोद।” हम पगला गये थे उस समय। गांड़ उछाल उछाल के लंड खाने लगा। वह मेरा लंड भी पकड़ कर हिलाता जा रहा था। मेरी छाती भी दबाता जा रहा था। हमें बड़ा ही सुख मिल रहा था। करीब पंद्रह बीस मिनट तक चोदने के बाद वह मेरी छाती को जोर से दबा कर हमसे चिपक गया। ऐसा लगा हमारी सांस रुक जाएगी। तभी ऐसा लगा कि मेरी गांड़ में पिचकारी छूटा हो। गरमागरम पानी मेरी गांड़ में फर्र फर्र छूटने लगा।

“आह ओह आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह मेरी रानी्ई्ई्ई्ई्ई, ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी रंडी्ई्ई्ई्ई्ई।” कहते हुए चिपका रहा हमसे। तभी मेरा लंड भी टाईट हो गया और हम कांपने लगे। हमारे ढाई इंच लंड से भी सफेद सफेद गोंद जैसा फचफचा के कुछ निकलने लगा।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह,” ऐसा लगा जैसे हम हवा में उड़ रहे हों। बहुत आनंद आ रहा था। कुछ ही सेकेंड में मेरा बदन ढीला हो गया। उधर हमारे ऊपर से रोहित भी लुढ़क गया।

“बहुत मजा आया मेरी रानी। बहुत मस्त गांड़ है रे तेरा। चोद के दिल खुश हो गया। आज से तू हमारी रानी हो गयी।” वह बहुत खुश था। हम भी जिंदगी में पहली बार इतने खुश हुए।

“हां मेरे राजा। तुम बड़े अच्छे हो। बहुत मजा आया। आज से हम तेरी रानी बन गये। बस तेरी हो गयी, अब तू हमें रंडी बना या कुत्ती बना।” हम उससे लिपट कर चूमने लगे। बड़ा प्यार आ रहा था हमें उस पर। उस दिन पहली बार गांड़ चुदवा कर जो मजा मिला कि हम फिदा हो गये उस पर।

“यह किताब हमें दे दो।” हम बोले।

“ले ले मेरी रानी, ले ले।” कहते हुए उसनें वह किताब हमारे बैग में डाल दिया। उसके बाद हम अपने कपड़े पहन कर उस खंडहर से निकले। चलने में थोड़ी तकलीफ हो रही थी। गांड़ जल रहा था लेकिन फिर भी अच्छा लग रहा था। हमारी जिंदगी बदल गयी थी उस दिन। उस दिन के बाद रोहित हमको रोज उसी खंडहर में ले जा कर चोदता रहता था। धीरे धीरे यह हमारा आदत बन गया। अब बिना गांड़ चुदवाए हमको चैन नहीं मिलता था।

एक दिन रोहित स्कूल नहीं आया तो हमको बहुत खराब लग रहा था। बड़ा बेचैन था। हमको कुछ सूझ नहीं रहा था। फिर हमारी नजर सबसे पीछे बैठने वाले हमारे क्लास के ही रोहित की उमर के ही आस पास का एक लड़के शाहिद पर पड़ी। वह मुसलमान था, रोहित की तरह ही मजबूत लड़का था। वह पांच फुट लंबा काला लड़का था। वह भी हमें छेड़ने में पीछे नहीं रहता था। अंतिम पीरियड में हम भी पीछे चले गये और शाहिद के बगल में बैठ गये।

“क्या बात है चिकने। आज हमारे साथ?” वह मेरे गाल को नोचता हुआ बोला।

“हां, सोचा आज पीछे बैठ के देखें।” हम उसके जांघ पर हाथ रखते हुए बोले। वह हमको देखा और मुस्कुरा उठा।

“अबे, यहां काहे हाथ रख रहा है, यहां रख।” कहकर उसने मेरा हाथ अपने पैंट पर ठीक लंड के ऊपर रख दिया। हमनें भी बेशरम होकर पैंट के ऊपर से ही उसके लंड को पकड़ लिया। उसका लंड टाईट होने लगा। वह मुस्कुरा उठा।

 

“स्कूल के बाद चल मेरे साथ।” वह मेरे कान में बोला। हम समझ गये, हमारा निशाना सही जगह पर लगा है। स्कूल के बाद जैसे ही हम निकले, पीछे पीछे शाहिद भी आ गया।

“अबे, कहां चला? क्लास में तो मेरा लौड़ा पकड़ रहा था? भाग कहां रहा है?” वह पीछे से आ कर हमसे बोला।

“भाग कहां रहे हैं?”

“तो चल कहीं अकेले में। दिखाता हूं अपना लंड।” हम गनगना उठे उसकी बात सुनकर।

“चल तो रहे हैं।”

“कहां?”

“उस खंडहर में।” हम खंडहर दिखाते हुए बोले।

“अबे, तू पहले कभी गया है वहां?”

“हां।”

“किसलिए?”

“उसी लिए, जिसके लिए हम जा रहे हैं अभी।”

“अरे साले, किसके साथ?” वह ताज्जुब से बोला।

“राहुल के साथ।” हम बेधड़क बोले।

“राहुल के साथ? वाह साले। वह तो बड़ा हरामी है, क्या किया तुम लोगों नें वहां?” वह जानने के लिए उतावला हो उठा।

“उसनें हमको एक किताब दिखाया।”

“कैसा किताब?”

“फोटो वाला।”

“अबे कैसा फोटो वाला?”

“मर्द मर्द वाला।”

“साले पहेली न बुझा मादरचोद।”

“नंगा फोटो, ऐसा, लो देखो।” कहते हुए हमने वह किताब निकाल कर उसके हाथ में थमा दिया। उसने झपट कर मेरे हाथ से वह किताब ले लिया। अबतक हम खंडहर तक पहुंच चुके थे। वह किताब खोलने ही वाला था कि हम बोले, “यहां नहीं, यहां नहीं, खंडहर के अंदर चलो, कोई देख लेगा तो बोलेगा, हमलोग स्कूल में यही सब सीखते हैं।” हम उसे खींचते हुए खंडहर में ले आए, उसी जगह पर जहां रोहित और हमारे बीच चोदा चोदी होता था। वहां पहुंचकर हम बैठ गये इतमिनान से और जैसे जैसे वह किताब के अंदर का फोटो देखता गया, उसका लंड खड़ा होता गया। वह अब मुस्कुरा रहा था।

“तो ये सब देखते हो यहां तुमलोग?”

“देखा तो सिर्फ एक बार।” हम बोले।

“फिर? उसके बाद?”

“उसके बाद से हम यह करते हैं।” हम बेशरमी से बोले। हम देख रहे थे कि शाहिद का पैंट आगे से फूल गया था और वह पैंट के ऊपर से ही लंड पर हाथ रख चुका था।

“क्या मतलब?” हैरानी से बोला वह। “करते हो?”

“हां।” हम मुस्कुरा रहे थे।

“तुम कि वह?”

“करता तो रोहित है मेरे साथ।”

“वाह बेट्टा, रोहित तो बड़ा हरामी है? अकेले अकेले तेरे साथ मस्ती किये जा रहा है और हमको पता ही नहीं। चल साले चिकने लंडखोर, हमारा लौड़ा भी खड़ा हो गया। अब तू मेरा लंड भी खाने के लिए तैयार हो जा। आज तक किसी लौंडे का गांड़ नहीं चोदा, आज चोदेंगे।” कहते कहते फटाफट अपने पैंट खोलने लगा। शर्ट नहीं खोला वह। इधर हम भी चुदवाने के लिए पूरे नंगे हो गये। हमारा बदन देखकर वह दंग रह गया।

“शर्ट भी खोल ना।” हम बोले।

“ले बे चिकने खोल दिया।” कहते हुए शर्ट भी उतार बैठा। हम भी उसके नंगे बदन को देख कर सनसना उठे। हमसे उमर में बड़ा, हट्ठा कट्ठा, कला भुजंगा, गजब दिख रहा था। इस उमर में भी एकदम जवान लग रहा था। पूरे बदन पर बाल ही बाल उगा हुआ था। छाती पर, पेट पर, जांघों पर, और लंड के चारों तरफ, बाल ही बाल। उसका लंड तो और ही गजब। लंबा करीब आठ इंच का, मोटा करीब ढाई इंच का। लंड के सामने का सुपाड़ा खुला हुआ था, चमड़ा था ही नहीं वहां। सुपाड़ा गोल, गुलाबी, चमचमा रहा था। एक बार तो डर ही गये हम।

” बाप रे, इत्ता बड़ा्आ्आ्आ्आ्।” मेरा मुंह खुला का खुला रह गया।

“डर गया बे चिकना?”

“हां, मगर….”

“मगर क्या जल्दी बोल हरामी, चोदने के लिए मरा जा रहा हूं मां की चूत।”

“मगर कोशिश करूंगा।” डरते हुए हम बोले।

“तू कोशिश कर हम पूरा ठोकेंगे चिकने गांडू।”

“देख शाहिद, तू हमें चिकना नहीं चिकनी बोल, लड़की समझ ले हमें। अच्छा लगता है। रोहित भी ऐसा ही करता है।” हम शाहिद का लंड हाथ से पकड़ते हुए बोले। वैसे मेरा ढाई इंच का पतला नुनू भी टनक गया था, जिसे देखकर शाहिद मुस्कुरा उठा था। लेकिन मेरी छाती के उभार और बाल रहित चिकना, लड़कियों जैसा बदन और गोल गोल गांड़ देख कर उसके मुंह में पानी आ गया था।

“वाह, बहुत मस्त माल है रे तू तो। एकदम लौंडिया की तरह। लौंडिया भी फेल, तेरे सामने तो, खाली एक चूत बनाना भूल गया भगवान।” वह मुझे बांहों में भर कर बोला।

“हटिए जी, आप भी ना बस।” लड़कियों की तरह शरमाते हुए बोला।

“अय हय, ऐसे शरमाओगी तो मर ही जाएंगे हम।” अब वह हमें चूमने लगा। हम भी उसके नंगे बदन से चिपक गये। उसका आठ इंच का टनटनाया लंड ठीक मेरे नाभी के नीचे चुभ रहा था। उसने ज्यादा समय नहीं गंवाया। मेरी छाती को दबाते हुए बोला, “चल मेरी जान, अब हम शुरू करते हैं।”

“क्या जी?”

 

“और क्या, चुदाई, तेरी मस्त गांड़ की चुदाई।” वह मुझे ले कर उसी घास पर लिटा दिया। चित्त। वह मुझ पर चढ़ बैठा। मेरी टांगों को फैला कर उठा दिया। हम डर रहे थे कि उसका इतना मोटा और लंबा लंड ले सकेंगे कि नहीं, लेकिन अब हमारे लिए और कोई रास्ता भी नहीं था, बचने का। जानते थे कि थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन अगर थोड़ा हिम्मत कर लें तो जरूर ले सकेंगे, यही सोच रहे थे हम। आखिर पहले पहल थोड़ा मुश्किल से ही सही, रोहित का लंड भी तो ले चुके थे हम। अब हमारे दोनों टांगों के बीच आ गया वह और जैसे लड़कियों को चोदा जाता है ठीक वैसे ही हम पर सवार था। अपने लंड पर थूक लगा कर मेरी गांड़ के दरवाजे पर टिका दिया। हमारा दिल बहुत बुरी तरह धड़क रहा था। शाहिद नें हमारे गांड़ के नीचे हाथ रखा और अपनी कमर से एक झटका मारा।

“आह्ह, धीरे, धीरे।” हम डर के मारे बोले। उसके लंड का सुपाड़ा फच से मेरी गांड़ में घुस गया था।

“हुम,”

दर्द नहीं हुआ। बेमतलब का डर रहे थे हम। शाहिद को रास्ता मिल गया था। समझ गया कि हमें दर्द नहीं हुआ, नहीं तो तड़प उठते हम। फिर वह धीरे धीरे अपना लंड मेरी गांड़ में उतारता चला गया।

“ले, आह थोड़ा और ले।” घुसता ही गया, घुसता ही गया। जब थोड़ा ही लंड घुसना बाकी था तब हमारी गांड़ के अंदर, अंतड़ियों में दर्द होने लगा।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, दर्द हो रहा है।” हम दर्द के मारे बोल पड़े।

“बस मेरी जान, थोड़ा ही रह गया। यह भी ले ले।” कहकर एक जोर का धक्का लगा कर पूरा लंड घुसा दिया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ हमारा अंतड़ी फट रहा है आह।” हम दर्द से छटपटाने लगे।

“बस हो गया रानी।” अब वह रुका। हमारा दर्द इस थोड़े समय रुकने से ही गायब हो गया और वह जीत गया, हमें जीत लिया। हम उससे चिपक कर एक बदन हो गये। अब कहां रुकने वाला था वह। हमें चोदने में मगन हो गया।

“आह राजा, ओह राजा, इस्स मेरे प्यारे चोदू, आह।” हमारे आनंदभरे आवाज से खुश होकर भच्च भच्च चोदने लगा।

“हां हां हां मेरी प्यारी रानी। आह हुं हुं हुं हुं।” हमारी छातियों के उभारों को मसल मसल कर चोदता रहा, चूमते हुए चोदता रहा, कमर पकड़ कर चोदता रहा, उछल उछल कर रगड़ रगड़ कर चोदता रहा। बाप रे बाप, पूरे आधे घंटे तक ठोकता रहा। इस बीच, “आ्आ्आ्आ्आ्आ इस्स्स्स,” हमारे लंड का पानी भी निकल गया। करीब आधे घंटे बाद हमें कस के दबाया और लंड से पानी छोड़ने लगा।

“आह्ह्ह्ह स्स्स्स्स्सा्आ्आ्आ्आली्ई्ई्ई् रंड्ड्ड्ड्डी्ई्ई्ई्ई्ई,” हांंफते, डकारते पूरी तरह झाड़ दिया अपने लंड का पानी और तब जा कर छोड़ा। पूरा निचोड़ कर छोड़ा हमें।

“आह रज्ज्ज्जा, बहुत अच्छे हो तुम।” हम उससे लिपट कर बोले।

“हां मेरी प्यारी रंडी, बड़ी प्यारी हो तुम। बड़ा मस्त है तेरा बदन, बड़ा मस्त है तेरी गांड़। दिल खुश हो गया। आज से तू मेरी रानी, मेरी रंडी।”

“हां रज्ज्ज्जा, हम तेरी हो गये आज से, हम तेरी रानी, तेरी रंडी, जो बोलो सब।” बड़ा प्यार आ रहा था हमें उस पर। पागलों की तरह उसके गालों, होठों को चूमने लगे। उसके बाद हम अपने कपड़े पहन कर अपने अपने घर चले गये। तब से यह सिलसिला चलता रहा। रोहित को भी पता चल गया कि शाहिद भी हमारा आशिक है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसे तो हमको चोदने से मतलब था, जब चोदने का मन होता चोद लेता था। बाकी हम और किससे चुदवा रहे हैं उससे उसको कोई मतलब नहीं था। इसी तरह हमें लगता है, हमारे क्लास के सभी लड़के हमें चोद चुके थे। हमारी हालत रंडी की तरह हो गयी। गांड़ मरवाते मरवाते, हमारा पढ़ाई में मन नहीं लगने लगा तो आगे नहीं पढ़ पाया। घरवालों ने देखा कि हमको पढ़ाना पैसा बरबाद करना है, सो पढ़ाई छुड़वा दिया। फिर हमारे बाप नें इस ठीकेदार, हर्षवर्धन दास, जो सिविल इंजीनियर भी है, के पास काम पर लगवा दिया। पढ़ना लिखना जानता था सो सुपरवाइजर बना दिया। हां, यह इंजीनियर भी हमारे स्कूली लड़कों की तरह ठीक पहचाना हमको। हमारा चेहरा और बदन के बनावट पर फिदा हो गया। वह भी हमारे जैसे लौंडों का रसिया है और बीच बीच में जब मर्जी हमारे साथ मस्ती कर लेता है। गांड़ मरवाने का जो आदत हमें उस समय लगा था, इस ठिकादार के साथ रहकर जारी रहा।”

इतना कहकर चुप हुआ। हम सब बड़ी तन्मयता से उसकी कहानी सुन रहे थे। काफी मजेदार था और उत्तेजक भी। मेरे अगल बगल सलीम और बोदरा बैठे थे। उधर कहानी चल रही थी और इन दोनों कमीनों के हाथ मेरी नग्न देह पर रेंग रहे थे। कभी मेरे उरोजोंं को सहला रहे थे तो कभी मेरी योनि। कहानी कामुक थी, इनकी हरकतें भी कम कामुक नहीं थीं।

 

“क्या बात है? फिर शुरू हो गये तुमलोग?” मैंनें इन्हें बनावटी झिड़की दी। उनके लिंग फिर तनतना चुके थे। कहा कुछ नहीं लेकिन मुझे गरम करके ही छोड़ा। उधर कांता और सोमरी का भी यही हाल था। मंगरू, रफीक और बाकी कुली भी उन दोनों के ईर्द गीर्द सिमटे उनके शरीरों से खेल रहे थे। कुल मिला कर माहौल फिर गरम हो चुका था। मैं सोच रही थी कि अब क्या करूं? फिर से पिस जाऊं या आगे की कहानी सुनूं। अंततः मैंने उनके आगे हथियार डाल दिया। “ठीक है, बाबा ठीक है, चोदे बिना मानोगे थोड़ी ना तुमलोग।चलो अब झाड़ ही दो अपनी गरमी।” मेरे कहने की देर थी कि जिसको जो हाथ लगा उसी पर चढ़ दौड़ा और हम महिलाओं और मुंडू को धर के रौंद डाला। जो गरम माहौल बन चुका था, उसमें हम खुद भी पसर जाने को बिल्कुल तैयार हो चुके थे। चुदाई का एक और दौर चला। हम रंडियां भी खुले दिल से चुदीं, उनके मनमाफिक ढंग से चुदीं। यह दौर अगले दो घंटे तक चला। सबकी गरमी उतरने के बाद मैं क्लांत स्वर में बोली, “हो गया?”

“हां हो गया,” हांफते हुए मंगरू बोला। मैंने देखा कि वासना के इस दूसरे दौर का तूफान शांत हो चुका था और सभी लस्त पस्त, अस्त व्यस्त इधर उधर लुढ़क कर अपनी सांसें दुरुस्त कर रहे थे।

“तू तो रुक मां के लौड़े। अभी तो आगे की कहानी सुनते हैं, फिर तेरे और बाकी लोगों के लंड का भी मजा लूंगी।” मैं भी दो कंबख्त औरतखोरों सलीम और बोदरा के बीच सैंडविच की तरह मसली जा कर हांफती, पूरी रंडी की तरह बेशरमी से बोली, “हां तो मुंडू, ये तो हुई तेरे गांडू बनने की कहानी। अब आगे बता, इन हरामियों को कैसे जमा किया एक साथ?”

“हां हां बताओ, बताओ।” सब एक स्वर में बोल उठे।

“ठीक है अब आगे सुनो।” मुंडू, जिसे दो कुलियों नें बुरी तरह रौंदा था, अपने को संयत करते हुए बोला। घड़ी का कांटा बता रहा था तीन बज रहा था इस वक्त। हमारे पास वक्त था अभी।

आगे की कहानी अगली कड़ी में। मुझे अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहें। आप जैसे सुधी पाठकों की प्रतिक्रियाओं का स्वागत है और इसी से मैं खुद की लेखन क्षमता का मूल्यांकन भी करती हूं। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।

 
पिछली कड़ी में आपलोगों नें पढ़ा कि अपने तन की वासनात्मक भूख मिटाने हेतु मैं अपने ही नये भवन के निर्माण में कार्यरत मजदूरों से संसर्ग सुख प्राप्त करने का जोखिम भरा निर्णय ले बैठी थी। उस नवीन, प्रयोगात्मक प्रयास में रोमांचकारी योजना भी बना बैठी। ऊपरवाले की मेहरबानी से सबकुछ वैसा ही होता गया जैसा मेरे मन में था। एक दो को छोड़कर सभी कामगर यथासमय हमारे घर में उपस्थित हुए और स्वच्छंद होकर वासना का नंगा नाच करने लगे। मैं उस सामूहिक कामक्रीड़ा में शामिल होकर रंडियों की तरह अपने तन का रसास्वादन कराती रही। वासना के उस खेल के प्रथम दौर की समाप्ति के पश्चात मुंडू अपने साथी कामगरों के समूह निर्माण के बारे में बताना अरंभ किया।

सर्वप्रथम उसनें बताया कि किस तरह उसके अंदर समलैंगिकता का भाव जागृत हुआ। उसकी शारीरिक बनावट और सौंदर्य से आकर्षित होकर सर्वप्रथम उसके सहपाठी रोहित नें एक दिन अपनी कुटिल चाल में फांसकर एक एकांत खंडहर के अंदर उसे गुदामैथुन के आनंद से परिचित कराया। एक गंदी चित्रों वाली पुस्तक दिखा कर मुंडू की कामेच्छा को जगाया और उसका कौमार्य भंग कर दिया। रोहित तो बदमाश था लेकिन उसकी बदमाशी नें मुंडू के अंदर समलैंगिक संबंध के प्रति आकर्षण का सृजन कर दिया। तत्पश्चात यह आकर्षण, लत में तब्दील हो गया। उसी लत के वशीभूत, उसनें दूसरे सहपाठी शाहिद को अपने आकर्षण पाश में बांध कर उससे भी गुदा मैथुन करवा बैठा। फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा और अपने क्लास के ताकरीबन हर लड़के से करवाता चला गया। इस चक्कर में उसकी पढ़ाई लिखाई का कबाड़ा हो गया, नतीजतन आगे नहीं पढ़ पाया और मजबूरन उसके पिता नें उसे अपने एक परिचित ठेकेदार के यहां काम पर लगवा दिया।

वह ठेकेदार एक आर्किटेक्ट हर्षवर्धन दास था, जिसनें उसके व्यक्तित्व से मोहित हो कर अपने यहां सुपरवाइजर के रुप में रख लिया। मुंडू के अन्य आशिकों की तरह दास बाबू भी उस पर हाथ साफ करते रहे। अब आगे:

“तो मुंडू बाबू, चल अब आगे बता। तूने तो सारे क्लास के लड़कों को बिगाड़ दिया।” मैं बोली।

“हमने कहां बिगाड़ा। सब खुद ही मेरे पीछे पहले से पड़े थे। पहले रोहित नें हमें बिगाड़ा फिर शाहिद तो खुद ही मेरे पीछे कुत्ते की तरह चला आया था।”

“चला आया कि कुतिया की तरह तू खींच लाया।”

“जो हो, आया तो! चोदा तो!”

“और बाकी?”

“बाकी लोगों के बीच बात फैली तो सभी कुत्तों की तरह मेरे पीछे पड़ गये।”

“पूरे क्लास में एक तू ही मिला था उन्हें?”

“नहीं ऐसा बात नहीं है। वे लोग आपस में भी ये सब करने लगे थे।”

“ओह, तो तूने यह बीमारी सबके बीच में फैला दी।” मैं बोली और सभी हंस पड़े।

“अब इसमें हमारी क्या गलती? हमेशा हम तो मिलते नहीं थे। उनको चोदने का चस्का लग गया था तो क्या करते? आपस में ही काम चलाने लगे।”

“वाह, तूने तो पूरे क्लास को गांडुओं का क्लास बना दिया।” सभी फिर ठठाकर हंस पड़े।

“लड़कियों की तरफ किसी लड़के का ध्यान नहीं जाता था क्या?” मैं पूछी।

“जाता था, जाता था, लेकिन लड़के क्या करते। लड़कियों पर बुरी नजर डालना खतरनाक भी तो था। छेड़ो तो फंसो। कुछ ऐसा वैसा बात बोलो तो फंसो। सबसे सुरक्षित हम लड़कों का आपसी संबंध ही था। सो हम लड़के आपस में ही मजे करते थे। हां, शाहिद दो लौंडियों को पटा कर चोद चुका था, असल में वे लड़कियां खुद ही बदमाश थीं। शाहिद नें खुद बताया था, मगर हमें क्या। हमें वह पहले से छेड़ता रहता था दूसरे लड़कों की तरह, लेकिन उस दिन पहली बार उसे पता चला कि हम किस तरह के लड़के हैं। उसके बाद उसे भी मेरा ही चस्का लग गया। उसके बाद बाकी दोस्तों की लाईन लगी सो अलग।”
 

“खैर, यह सब छोड़, अब बता, इन सारे नमूनों को कहां कहां से ढूंढ़ ढूंढ़ कर इकट्ठा किया?” मैं बोली।

“बताता हूं बताता हूं। सलीम और रफीक तो पहले से इंजीनियर साहब के साथ काम करते थे। इनको पता नहीं था कि हम मरदों में रुचि रखते हैं। इसी तरह रेजा सुखमनी और रूपा भी पहले से इनके साथ काम करते थे, असल में ठेकेदार साहब नें इन दोनों को पसंद किया था और चोदने के चक्कर में अपने यहां काम पर रखा था। क्या, सही कह रहे हैं न हम?” सलीम और रफीक की ओर देखते हुए बोला।

“हां हां सही बोल रहे हो। इससे हमको भी फायदा हो गया। बीच बीच में हम भी उनके साथ मस्ती कर लिया करते थे।” सलीम बोला।

“सोमरी बाद में हमारे साथ आई। असल में मंगरू इसको लाया हमारे साथ। मंगरू, बोदरा, खोकोन, बोयो और हीरा को हम लाए।” मुंडू आगे बोलने लगा।

“कैसे?”

“हमारे घर में टॉयलेट नहीं था। हम पास वाले तालाब के किनारे जाते थे। तालाब के एक तरफ ऊंची ऊंची झाड़ियां थीं। उन झाड़ियों के पीछे हम पैखाना करते थे। एक दिन हम वहीं झाड़ियों के पीछे छिप कर पैखाना कर रहे थे उसी समय झाड़ियों के पीछे से हमनें देखा, यह मंगरू तालाब में भैंसों को नहला रहा था। तालाब के आसपास कोई नहीं था। यह एक भैंस के पीछे खड़ा होकर उसकी पीठ रगड़ रहा था। भैंस पानी में आधा डूबा हुआ था। मंगरू भी कमर से ऊपर तक पानी में डूबा हुआ था। मंगरू ऊपर से नंगा था, उसका काला कलूटा बदन चमक रहा था। कमर में एक गमछा बांधा हुआ था शायद, जो कमर से ऊपर उठ कर पानी के ऊपर तैर रहा था। हमनें गौर किया कि भैंस के पीठ को रगड़ते हुए उसका हाथ आगे पीछे हो रहा था और वैसे ही ही इसका कमर भी आगे पीछे हो रहा था। हमें शुरू में समझ नहीं आया कि हाथ से रगड़ते हुए इसका कमर क्यों आगे पीछे हो रहा है। कुछ ही देर में सब समझ में आ गया जब मंगरू भैंस के पीछे चिपक कर उसकी पीठ पर सर रख कर लंबी लंबी सांसें लेने लगा। ओह, तो ये बात है, यह साला असल में पीछे से भैंस को चोद रहा था। इतनी देर में उसका गमछा खुल कर पानी के ऊपर तैरते हुए कुछ दूर तक चला गया था और मंगरू को होश ही नहीं था। देख कर हमें बड़ा मजा आ रहा था, साला और कोई नहीं मिली, भैंस ही मिली थी चोदने को। अब हम अपनी जगह से निकले और तालाब किनारे जा कर गांड़ धोने लगे। मंगरू को आभास हो गया कि तालाब किनारे कोई है। यह हड़बड़ा कर अपना गमछा देखने लगा। गमछा तो पानी में तैरता हुआ किनारे आ चुका था। वह हमारी ओर देखने लगा। शायद शरमा रहा था कि गमछा बिना वह पूरा नंगा था। उसका हाफपैंट, चड्ढी और बनियान तालाब के इसी किनारे था जहां हम थे। हम समझ गये कि नंगा मेरे सामने पानी से निकलने में शरमा रहा था।

“क्या हुआ?” उसे असमंजस में देख कर हम बोले।

“वो मेरा गमछा।” गमछे को दिखा कर शरमाते हुए बोला।

“ले ले आके।” हम बोले।

“नंगे हैं।”

“तो क्या हुआ, यहां कोई औरत नहीं है। आके ले ले।” हम बोले।

“तुम हो ना।”
 

“लड़का हो कर लड़के से शरमाते हो?” हम हंसते हुए बोले। यह झेंपता हुआ धीरे थीरे किनारे आया। जैसे ही उसके कमर का निचला हिस्सा पानी से बाहर आया, हम दंग रह गये उसके लंड को देखकर। सोया हुआ, सिकुड़ा हुआ लंड भी छ: इंच से कम नहीं था और वैसा ही मोटा। हे भगवान, यह सोया हुआ है तो इतना बड़ा, खड़ा होगा तो कितना बड़ा होगा? सोच कर ही हमारे बदन में सुरसुरी होने लगा। मरवाने को मन मचल उठा। बदन तो इसका मस्त था ही। वह अपने गमछे की ओर झपटा और फट से कमर में लपेट लिया। हमें हंसी आ गयी।

“क्या रे, तू भैंसी नहला रहा था की क्या कर रहा था?” हम मुस्कुराते हुए बोले।

“भैंसी ही तो नहला रहा था।” शरमाते हुए यह बोला।

“हम सब समझ रहे हैं क्या कर रहा था।”

“क्या कर रहे थे?”

“बताएं?”

“हां” ढिठाई से बोला वह।

“साले हम नहीं समझ रहे हैं? भैंसी को चोद रहा था ना?” अब क्या बोलता।

“नननननहीं तो। हम तो हम तो हम तो…..” हकलाने लगा।

“हम तो हम तो क्या?”

“भैंसी नहला रहे थे।”

“हाथ से भैंसी नहला रहे थे, और लंड से?” हम उसके लंड की तरफ उंगली दिखा कर बोले। उसका हाथ अनायास ही अपने लंड पर चला गया। शरमा गया वह।

“हें हें हें हें” झेंंपी सी हंसी हंस रहा था वह।

“हंसो मत, चलो दिखाओ अपना लंड, जरा देखें तो कितना बड़ा है?” हम बोले।

“नहीं।” वह बोला।

“साले, ग्वाला (भैंसी के मालिक) को बता देंगे।” हम धमकी देने लगे।

“नहीं, मत बताना।” डर गया मेरी धमकी से।

“तो दिखाओ।”

“यहां नहीं।”

“तो कहां?”

“उधर, झाड़ी के पीछे।”

“चलो।” हम घनी झाड़ियों के बीच चले गये, यह भी अपने कपड़े उठाकर मेरे पीछे पीछे आया। वहां सुनसान था और किसी के द्वारा देखे जाने का डर नहीं था। “चलो, अब गमछा हटाओ।” झिझकते हुए उसनें अपना गमछा हटाया तो हम अकचका गये। इतने पास से देख रहे थे, इसके लंबे चौड़े बदन को और इसके झुलते हुए लंड को। बाप रे बाप, इसका सोया हुआ लंड भी कम खतरनाक नहीं लग रहा था। हम तो ठहरे लंडखोर एक नंबर के, उसके लंड को पकड़ के देखने लगे।

“यह क्या कर रहे हो?” वह बोला।

“पकड़ के देख रहे हैं और क्या।” वास्तव में।

“हमको शरम लग रहा है।”

“साले, भैंस को चोदते समय शरम नहीं लग रहा था?”

“वह तो भैंस है ना?”

“और हम?”

“तुम तो आदमी हो ना।”

“चुप, इतना सुंदर लंड रखकर शरमा रहे हो हमसे? खा जाएंगे क्या?” कहकर उसके लंड को सहलाने लगा। इसे अब अच्छा लग रहा था। शरम धीरे धीरे खतम हो रहा था। उसका लंड भी खड़ा हो रहा था और उसका साईज बढ़ता जा रहा था। कुछ ही देर में इसका लंड पूरा टाईट हो गया। बाप रे, दस इंच के करीब लंबा हो गया और वैसा ही मोटा। करीब ढाई से तीन इंच मोटा।
 

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह,” यह मस्ती में आ गया था। मेरी गांड़ में खुजली होने लगी।

“मेरा गांड़ चोदो।” हम हुकुम देने लगे।

“नहीं।”

“ग्वाला को बता देंगे।”

“नहीं, मत बताना।”

“तो चोदो।” इतना कहकर हम अपने कपड़े खोलने लगे। जब हम पूरे नंगे हो गये तो हमारे बदन को देखकर इसकी आंखें चमकने लगीं। हम समझ गये कि मेरे बदन को देखकर ललचा गया है। “आओ।” हमनें इसको अपना बदन सौंप दिया। यह हमको अपने बांहों में भर लिया।

“बड़ा मस्त बदन है।”

“हां, है तो।” हम इसकी बांहों में मचलते हुए बोले।

“बड़ा मस्त गांड़ है।” हमारी गांड़ सहलाते हुए बोला।

“हां, है तो।”

“छाती लड़कियों जैसा है। चूची जैसा।”

“हां है तो। अब शुरू कर ना।” हम मरवाने के लिए मरे जा रहे थे। थोड़ा डर भी लग रहा था। पहली बार इतना बड़ा लंड से पाला पड़ा था। यह हमारी छाती दबाने लगा, गांड़ दबाने लगा और हम पगलाए जा रहे थे। अब इसने हमें वहीं घास पर उल्टा लिटा कर हम पर चढ़ गया। लंबा चौड़ा गबरू जवान, अपने लंबे मोटे लौड़े के साथ। यह अपना लंड हमारी गांड़ से सटा ही रहा था कि हम बोल उठे, “थूक लगा मादरचोद। हमारी गांड़ का कबाड़ा करना है क्या?” इसने जल्दबाजी में हमारी गांड़ पर थूका, और दुबारा चढ़ गया। हमारा डरना बेकार नहीं था। इसके बाद जब यह अपने लंड पर जोर लगाने लगा तो इसका लंड हमारी गांड़ का दरवाजा जबरदस्ती फैला कर घुसने लगा।

“आह आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह,” दर्द हो रहा था। हमारी गांड़ फटने फटने को होने लगी। हमारी सारी मस्ती हवा हो गयी। हम छूटने की कोशिश करने लगे, लेकिन इसे तो मिल गया था एकदम चिकने टाईट गांड़ का स्वाद। घुसाता चला गया, घुसाता चला गया और हमको लग रहा था जैसे कोई लंबा डंडा जबरदस्ती हमारी गांड़ में ठूंसे जा रहा हो। “आह्ह्ह्ह मांआंआंआंआं।” हमारे मुंह से चीख निकल गयी।

“बंद कर चिल्लाना साले गांडू मादरचोद।” यह डांट रहा था। “साले, गांड़ मरवाने के लिए मर रहा था, अब चोद रहे हैं तो चिल्ला रहा है।” यह हमसे दुगुना ताकतवर जवान था, हमें कस के दबा रखा था, हिल भी नहीं पा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे हमारी अंतड़ी भी फटी जा रही हो। हम तो खुद ही फंसे थे इस मुसीबत में, शिकायत करें तो किससे करें। गांड़ फटी जा रही थी, अंतड़ी फटी जा रही थी, जान निकली जा रही थी, आंख से आंसू बह निकले थे।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, धीरे, ओह्ह्ह्ह्ह्ह धीरे।” हम बेबस थे। अब चुदने से बच नहीं सकते थे।

“धीरे? अब धीरे?” कहते न कहते हमारी कमर पकड़ कर कुत्ते की तरह दनादन ठोकना शुरू कर दिया इस हरामी नें। कुछ देर तो हमारी जान निकलती रही, मगर थोड़ी देर बाद मेरी गांड़ ढीली हो गयी और मजे में लंड लेने लगे। मजा आ रहा था अब। यह तो एकदम कुत्ते की तरह गचागच चोदने में लगा था, लेकिन हम भी अब अपनी गांड़ इसके सामने परोस के मजे से चुदवाए जा रहे थे।

“अच्छा लग रहा है अब।”

 

“तो ले, हुं, हुं, हुं, आ आ आ ले और ले।” बाप रे बाप, इतना स्पीड? गच गच गच गच गच्चाक। पागल हो गया था यह और हम भी पागल। पता नहीं कितना देर चोदा, लेकिन जितना देर चोदा, बहुत मजा दिया। रगड़ के चोदा, दबा दबा के चोदा। फिर फरफरा के जब लंड का रस डालने लगा हमारे गांड़ में, हम तो स्वर्ग पहुंच गये थे। पूरा झड़ने के बाद जब हमको छोड़ा तो हम धपाक से घास पर गिर पड़े।

“बड़ा मजा आया राजा।”

“हमको भी।” हांफता हुआ बोला यह। “इतना टाईट होता है गांड़, हमको पता नहीं था। बहुत अच्छा लगा।”

“हमको भी। क्या नाम है तेरा?” हम पूछे।

“मंगरू।”

“क्या करते हो?”

“कुछ नहीं।”

“काम करोगे?”

“क्या काम?” शशंकित स्वर में बोला यह।

“अरे कुछ भी, जो तुम चाहो। हम घर बनाने का काम करते है। पगार देंगे। वैसे हमको तेरा लंड पसंद आया, इसी लिए बोल रहे हैं।”

“ठीक है। करेंगे काम। हमको भी तेरा गांड़ बहुत पसंद आया।” यह खुश हो कर बोला। पगार का पगार, गांड़ का गांड़।

“वाह रज्ज्ज्जा, ये हुआ न बात। तो कल से ही आ जाओ काम पर। लेकिन याद रखना, जब भी हमको चोदोगे तो औरत समझ के चोदना।”

“ठीक है।”

“सिर्फ ठीक है नहीं, ठीक है रानी बोल, लेकिन सबके सामने नहीं, अकेले में।”

“ठीक है मेरी रानी।”

“हां, अब ठीक है मेरे प्यारे चोदू जी।”

उस दिन के बाद मंगरू हमारे साथ काम करने लगा। इस तरह से हमारे यहां एक और चुदक्कड़ शामिल हो गया। सलीम और रफीक तो पहले से दास बाबू के साथ काम करते थे। दास बाबू नें हमको अपने यहां सुपरवाइजर रखा तो इसलिए कि उनको हम पसंद आ गये थे। वे तो हमारा गांड़ मारते ही थे, सलीम और रफीक भी समझ गये कि हम गांडू हैं। ये तो इससे पहले दास बाबू के पसंद की दो रेजा, रूपा और सुखमनी पर ये लोग हाथ साफ करते थे। हमको लगता है दास बाबू को पता है सब कुछ, लेकिन उससे क्या, उसे तो चोदने से मतलब है। हमको समझ आ गया था कि सलीम और रफीक एक नंबर के औरतखोर हैं, हमें इनसे भी चुदवाने का मन होने लगा। हमको मुश्किल नहीं हुआ। अपने आप हो गया। जहां कहीं हम घर बनाते हैं, वहां गोदाम तो बनता ही है।उसी गोदाम मेंं हमेंं मंगरू या दास बाबू चोद लेते थे। एक दिन मंगरू हमको चोद रहा था तो सलीम देख लिया। पहले यह हमको चोदा फिर रफीक को बताया, यह भी मेरा आशिक बन गया।

फिर फंसा बोयो। उसको हमारे बारे में बताया यही मंगरू। बोयो का दोस्त था हीरा। हीरा भी इसी तरह हमारे ग्रुप में आया। यह पहले दूसरी जगह काम करता था। जब हीरा को मेरे बारे में बोयो से पता चला तो यह वहां का काम धाम छोड़ कर हमारे यहां आ गया। एक नंबर का चुदक्कड़ है हीरा और वैसा ही हरामी। हमारे चक्कर में हीरा आया और हमारा ही आदमी हो गया। यही सोमरी को फंसा कर हमारे यहां काम पर लाया। अब बता साले हीरा, कैैैसे फंसाया सोमरी को?” मुंडू हीरा की ओर देख कर बोला।

हीरा जो सोमरी के बगल में ही बैठा हुआ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को सहला रहा था, बोला, “अब हम का बताएं?” धूर्त हीरा मुस्कुरा रहा था।

“हंस मत हरामी, बता, कैसे फंसाया सोमरी को?” मैं हीरा की ओर आंखें तरेरती हुई बोली।

“बताते हैं, बताते हैं।”
 

“ठीक है बता, लेकिन जल्दी बता। समय जा रहा है। इस मुंडू की कहानी सुनते सुनते समय भी निकल रहा है और…।” मैं अपनी जगह कसमसाते हुए जानबूझ कर रुकी।

“और?” सलीम प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए बोला।

“अब मेरा मुंह मत खुलवा मादरचोद।” मैं कलकलाते हुए बोली।

“बोल ही दो बुरचोदी।”

“तुमलोग हिजड़े हो क्या? कुछ हो नहीं रहा है ऐसी कहानी सुनकर तुमलोगों को?”

“ओह्ह्ह्ह्ह्ह, साली कुत्ती, ऐसा बोल ना लंडखोर।” रफीक, जो मेरी देह से सटकर बैठा था, अब बोला। मैं उन सबके बीच उन्हीं के स्तर की हो गयी थी। बड़े छोटे का भेदभाव खत्म हो चुका था, तभी तो ये लोग इतने खुल्लमखुल्ला, बिंदास, बिना किसी झिझक और शरम के मुझसे ऐसी बात कर रहे थे। मुझे बड़ा आनंद आ रहा था। रफीक नें सिर्फ कहा नहीं बल्कि मेरे उरोजों को मसलना भी आरंभ कर दिया।

“हट साले।” मैं उसकी पकड़ में छटपटाती हुई बोली।

“न न न न, अब क्या हट? देख हमारी चोदनी, हमारे लौड़े भी बमक गये हैंं। चल एक बार और ठोकिए लेते हैं। क्या बोलते हो भाई लोग। हमारी चोदनी चुदना चाहती है रे।” रफीक मुझे अब चूमने लगा था।

“हां हां, ठीक ठीक। चलो एक बार और हो जाए।” सब रफीक के समर्थन में सुर में सुर मिला कर बोल उठे। जिसे जो शिकार मिला, उसी पर झपट पड़े। मुझ पर तो कहर ही टूट पड़ा। सबसे कद्दावर, ताकतवर, विशालतम भीमकाय लिंगवाला मंगरू न जाने कब से मुझ पर दृष्टि जमाए था, सिग्नल मिलते ही चीते की फुर्ति से मुझ पर झपट्टा मारा। इधर इतने निकट के शिकार को छिनते देख कर तड़प उठा रफीक और यही हाल सलीम का भी था। मंगरू मुझे गुड़िया की तरह गोद में उठा कर भागने लगा।

“भागते कहां हो लौड़े के ढक्कन?” सलीम और रफीक उसके पीछे भागे। उधर सोमरी, कांता और मुंडू पर बाकी लोग टूट पड़े।

“ओह भगवान, उधर कहां ले जा रहे हो मुझे?” मैं मंगरू की बांहों में छटपटाती हुई बोली।

“तो किधर ले जाएं रंडी?”

“इधर” मैं अपने बेडरूम की तरफ दिखाते हुए बोली।

मुझे गोद में उठाए मंगरू नें एक लात बेडरूम के दरवाजे पर मारा और सिर्फ उढ़का हुआ दरवाजा भड़ाक से खुला। उसनें बड़ी उतावली और बेदरदी से मुझे बेड पर पटक दिया और चढ़ बैठा मुझ पर।

“रुक बहनचोद, तू अकेले ऐसे नहीं चोद सकता। हम भी चोदेंगे।” रफीक और सलीम भी हमारे पास आ पहुंचे थे।

“नहीं नहीं, ऐसा कैसे?” मैं मंगरू के नीचे दबी बोली।

“एक साथ, बांट के खाएंगे चोदनी को।”

“कैसे?”

“तू उठा के भागा ई बुरचोदी को, तू जीता। बोल तू क्या करना चाहता है?”

“हम इसकी गांड़ मारेंगे। मस्त गांड़ है। बहुत मन था इसकी गांड़ चोदने का।” मंगरू बोला तो मैं सिहर उठी।

“नहीं, नहीं, फाड़ दोगे।” मैं बोली।

“फटेगी तो फटेगी, हम तो चोदेंगे गांड़ ही।” ढिठाई से मंगरू बोला।

“ठीक है तुम गांड़ चोदो, हम बुर में लंड ठोकेंगे।” सलीम बोला।

“और हम?” हम क्या गांड़ मरवाएं?” रफीक चिढ़ कर बोला।

“अबे भोंसड़ी के, तू लंड चुसवा तब तक।” सलीम बोला।

“हां यह सही है।” रफीक सहमत हो गया। अब क्या था, मंगरू नें मुझे तिरछा लिटा कर मेरी बांयी टांग उठा कर पीझे से मुझ पर हमला कर बैठा।

“आह्ह्ह्ह नहींईंईंईंईंईंईन।” मैं चीखी।

“हरामजादी चिल्लाती है? अभी तो घुसा ही नहीं है मेरा लंड।” मंगरु बोला। वह बिना किसी तेल या क्रीम के अपना लिंग मेरी गुदा से सटा कर दबाव बनाने लगा। इधर सलीम भी ठीक इसी वक्त सामने से अपना लिंग मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर टिका कर घुसेड़ने का प्रयत्न करने लगा।

 
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