hotaks444
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भगत सिंग, आज़ाद जैसे देश के वीर सपुतो को आज भी बड़ी श्रद्धा से याद करते हैं देशवासी, वो भी तो पड़े-2 अपनी मौत का इंतजार कर सकते थे लेकिन उन्होने उसका डॅट कर सामना किया और आज पूरा देश उनको याद करता है.
धनंजय- तेरी बड़ी-2 बातें हमारे जैसे छोटे दिमाग़ में घुसने वाली नही हैं, लेकिन मे तेरे साथ हूँ दोस्त ! आँख बंद करके तेरे साथ आग मे भी कूदने को तैयार हूँ. अब जो होगा सो देखा जाएगा.
ऋषभ & जगेश- हम भी… ये जिंदगी अब तेरे हवाले है भाई, जीवन में कभी भी इसकी ज़रूरत पड़े, बस आवाज़ दे देना, सर के बाल हाज़िर हो जाएँगे तेरे साथ मर कटने को.
और हम सबने एक दूसरे के हाथों को एक साथ पकड़ा और एक निश्चय करके अपने-2 बिस्तर पर सोने चले गये.
सुबह डॉट 5 बजे हम चारों जिम में थे, और अपनी-2 चाय्स के हिसाब से एक्सर्साइज़ मे जुट गये, वैसे हम रोज़ कॉलेज अटेंड करने से पहले अपने देसी तरीके से कसरत तो करते ही थे, तो ऐसा कोई खास दिक्कत तो नही, बस जिम के स्पेशल तरीकों से मसल्स थोड़े वेल शेप करने थे.
अभी हमें सिर्फ़ 5 मिनट ही हुए थे एक्सर्साइज़ शुरू किए, कि वो चारों भी आ गये… धनंजय ने उन्हें वेलकम किया,
कपिल- अरुण हम चारो तुम्हारे साथ हैं, और इस लड़ाई में मरते दम तक साथ देंगे.
रोहन – अगर हमारी वजह से समाज में फैली कुछ बुराइयाँ कम हो जाती हैं, तो दिल में एक सुकून तो रहेगा कि कुछ अच्छा काम किया अपने जीवन में.
मोहन- बहुत सोचा रात को, ठीक से सो भी ना सका, अंत में ये निस्चय लिया कि मुझे भी इस नेक काम में भाग लेना चाहिए, यही सोच के साथ तो मे कमिटी का हिस्सा बना था, तो अब पीछे हटने का कोई मतलब नही है… अब जो होगा सो देखा जाएगा.
सागर – मेरे तो बाप डेड भी इस देश की सेवा में रहे, दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे, पिता जी भी फौज में हैं, तो मेरा खून भी सफेद तो नही हो सकता ना? और फिर भाग्यवश, ये एक मौका हाथ आया है कुछ अच्छा करने का तो इसी से शुरुआत करते हैं. क्यों..?
मे- दोस्तो ! इस तरह का जज़्बा हर किसी में नही होता, कुछ खास ही लोग होते हैं, जो दूसरों के काम आते हैं,
अपने लिए तो हर कोई जीता है, औरों के लिए जो जिए उसको सारे जहाँ का प्यार और दुआएँ नसीब होती हैं.
हां एक और बात ! ये हमारे तुम्हारे बस मैं नही है की तुम जो कर रहे हो या करने वाले हो इसमें तुम्हारा कोई अपना सहयोग या सहमति है, ये तो पूर्व निर्धारित था, हमें इस कॉलेज में ही क्यों भेजा और मिलाया, इसमें भी नियती की कोई सुनियोजित चाल है.
करण – शायद तुम सही कह रहे हो अरुण, मैने भी ये अनुभव किया है कि हमारा ये मिलना कोई संयोग नही है..ये अट्रॅक्षन अनायास नही हुआ.
धनंजय- पता नही तुम दोनो क्या ग़ूढ ज्ञान की बातें कर रहे हो, मेरी तो कुछ समझ में नही आरहा…??
मे- अब्बेय साले तू ठहरा ठाकुर आदमी, बाहुबल से सोचता है, अध्यात्मिक बातें तेरी समझ से बाहर हैं.
ऐसी ही बातें करते-2 हम सभी दोस्त एक्सर्साइज़ करते रहे, पसीना बहाते रहे, और तक कर अपने-2 रूम में फ्रेश होने चले गये.
हफ्ते के बाद से ही हमने फाइटिंग की प्रॅक्टीस शुरू कर दी, कुछ बुक्स का सहारा लिया, कुछ मूवीस से टिप लेते रहे,
1 महीने तक हमने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने शरीर को इतना तो चुस्त-दुरुस्त बना लिया था कि नॉर्मल कंडीशन्स में 2-4 के हाथ हम में से कोई आने वाला नही था.
मैने कहा ये अंत नही है, ये प्रॅक्टीस कंटिन्यू रहनी चाहिए…
अब शुरू होना था हमारा मिसन, उसके लिए हमने वो लिस्ट निकाली जो ड्रग यूज़ करने वाले स्टूडेंट्स थे, और बाद में सुधार लिए गये थे.
कुछ सीनियर्स के नामों पर टिक किया, और उनसे बात की. चूँकि कॉलेज से अफीशियल सर्क्युलर था कि हम किसी से भी कुछ भी पुछ-ताछ कर सकते हैं, कोई सवाल या जूनियर-सीनियर का लेवेल नही चलेगा.
दो लड़कों (मोनू और चिंटू) को काम में लाने का सोचा जिन्हें शहर में ड्रग्स कहाँ-2 मिलता है, ये पता था. फिर क्या था, लग गये एक और नेक काम पर….
धनंजय- तेरी बड़ी-2 बातें हमारे जैसे छोटे दिमाग़ में घुसने वाली नही हैं, लेकिन मे तेरे साथ हूँ दोस्त ! आँख बंद करके तेरे साथ आग मे भी कूदने को तैयार हूँ. अब जो होगा सो देखा जाएगा.
ऋषभ & जगेश- हम भी… ये जिंदगी अब तेरे हवाले है भाई, जीवन में कभी भी इसकी ज़रूरत पड़े, बस आवाज़ दे देना, सर के बाल हाज़िर हो जाएँगे तेरे साथ मर कटने को.
और हम सबने एक दूसरे के हाथों को एक साथ पकड़ा और एक निश्चय करके अपने-2 बिस्तर पर सोने चले गये.
सुबह डॉट 5 बजे हम चारों जिम में थे, और अपनी-2 चाय्स के हिसाब से एक्सर्साइज़ मे जुट गये, वैसे हम रोज़ कॉलेज अटेंड करने से पहले अपने देसी तरीके से कसरत तो करते ही थे, तो ऐसा कोई खास दिक्कत तो नही, बस जिम के स्पेशल तरीकों से मसल्स थोड़े वेल शेप करने थे.
अभी हमें सिर्फ़ 5 मिनट ही हुए थे एक्सर्साइज़ शुरू किए, कि वो चारों भी आ गये… धनंजय ने उन्हें वेलकम किया,
कपिल- अरुण हम चारो तुम्हारे साथ हैं, और इस लड़ाई में मरते दम तक साथ देंगे.
रोहन – अगर हमारी वजह से समाज में फैली कुछ बुराइयाँ कम हो जाती हैं, तो दिल में एक सुकून तो रहेगा कि कुछ अच्छा काम किया अपने जीवन में.
मोहन- बहुत सोचा रात को, ठीक से सो भी ना सका, अंत में ये निस्चय लिया कि मुझे भी इस नेक काम में भाग लेना चाहिए, यही सोच के साथ तो मे कमिटी का हिस्सा बना था, तो अब पीछे हटने का कोई मतलब नही है… अब जो होगा सो देखा जाएगा.
सागर – मेरे तो बाप डेड भी इस देश की सेवा में रहे, दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे, पिता जी भी फौज में हैं, तो मेरा खून भी सफेद तो नही हो सकता ना? और फिर भाग्यवश, ये एक मौका हाथ आया है कुछ अच्छा करने का तो इसी से शुरुआत करते हैं. क्यों..?
मे- दोस्तो ! इस तरह का जज़्बा हर किसी में नही होता, कुछ खास ही लोग होते हैं, जो दूसरों के काम आते हैं,
अपने लिए तो हर कोई जीता है, औरों के लिए जो जिए उसको सारे जहाँ का प्यार और दुआएँ नसीब होती हैं.
हां एक और बात ! ये हमारे तुम्हारे बस मैं नही है की तुम जो कर रहे हो या करने वाले हो इसमें तुम्हारा कोई अपना सहयोग या सहमति है, ये तो पूर्व निर्धारित था, हमें इस कॉलेज में ही क्यों भेजा और मिलाया, इसमें भी नियती की कोई सुनियोजित चाल है.
करण – शायद तुम सही कह रहे हो अरुण, मैने भी ये अनुभव किया है कि हमारा ये मिलना कोई संयोग नही है..ये अट्रॅक्षन अनायास नही हुआ.
धनंजय- पता नही तुम दोनो क्या ग़ूढ ज्ञान की बातें कर रहे हो, मेरी तो कुछ समझ में नही आरहा…??
मे- अब्बेय साले तू ठहरा ठाकुर आदमी, बाहुबल से सोचता है, अध्यात्मिक बातें तेरी समझ से बाहर हैं.
ऐसी ही बातें करते-2 हम सभी दोस्त एक्सर्साइज़ करते रहे, पसीना बहाते रहे, और तक कर अपने-2 रूम में फ्रेश होने चले गये.
हफ्ते के बाद से ही हमने फाइटिंग की प्रॅक्टीस शुरू कर दी, कुछ बुक्स का सहारा लिया, कुछ मूवीस से टिप लेते रहे,
1 महीने तक हमने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने शरीर को इतना तो चुस्त-दुरुस्त बना लिया था कि नॉर्मल कंडीशन्स में 2-4 के हाथ हम में से कोई आने वाला नही था.
मैने कहा ये अंत नही है, ये प्रॅक्टीस कंटिन्यू रहनी चाहिए…
अब शुरू होना था हमारा मिसन, उसके लिए हमने वो लिस्ट निकाली जो ड्रग यूज़ करने वाले स्टूडेंट्स थे, और बाद में सुधार लिए गये थे.
कुछ सीनियर्स के नामों पर टिक किया, और उनसे बात की. चूँकि कॉलेज से अफीशियल सर्क्युलर था कि हम किसी से भी कुछ भी पुछ-ताछ कर सकते हैं, कोई सवाल या जूनियर-सीनियर का लेवेल नही चलेगा.
दो लड़कों (मोनू और चिंटू) को काम में लाने का सोचा जिन्हें शहर में ड्रग्स कहाँ-2 मिलता है, ये पता था. फिर क्या था, लग गये एक और नेक काम पर….