Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 5 - SexBaba
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Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

भगत सिंग, आज़ाद जैसे देश के वीर सपुतो को आज भी बड़ी श्रद्धा से याद करते हैं देशवासी, वो भी तो पड़े-2 अपनी मौत का इंतजार कर सकते थे लेकिन उन्होने उसका डॅट कर सामना किया और आज पूरा देश उनको याद करता है.

धनंजय- तेरी बड़ी-2 बातें हमारे जैसे छोटे दिमाग़ में घुसने वाली नही हैं, लेकिन मे तेरे साथ हूँ दोस्त ! आँख बंद करके तेरे साथ आग मे भी कूदने को तैयार हूँ. अब जो होगा सो देखा जाएगा.

ऋषभ & जगेश- हम भी… ये जिंदगी अब तेरे हवाले है भाई, जीवन में कभी भी इसकी ज़रूरत पड़े, बस आवाज़ दे देना, सर के बाल हाज़िर हो जाएँगे तेरे साथ मर कटने को.

और हम सबने एक दूसरे के हाथों को एक साथ पकड़ा और एक निश्चय करके अपने-2 बिस्तर पर सोने चले गये.

सुबह डॉट 5 बजे हम चारों जिम में थे, और अपनी-2 चाय्स के हिसाब से एक्सर्साइज़ मे जुट गये, वैसे हम रोज़ कॉलेज अटेंड करने से पहले अपने देसी तरीके से कसरत तो करते ही थे, तो ऐसा कोई खास दिक्कत तो नही, बस जिम के स्पेशल तरीकों से मसल्स थोड़े वेल शेप करने थे.

अभी हमें सिर्फ़ 5 मिनट ही हुए थे एक्सर्साइज़ शुरू किए, कि वो चारों भी आ गये… धनंजय ने उन्हें वेलकम किया, 

कपिल- अरुण हम चारो तुम्हारे साथ हैं, और इस लड़ाई में मरते दम तक साथ देंगे.

रोहन – अगर हमारी वजह से समाज में फैली कुछ बुराइयाँ कम हो जाती हैं, तो दिल में एक सुकून तो रहेगा कि कुछ अच्छा काम किया अपने जीवन में.

मोहन- बहुत सोचा रात को, ठीक से सो भी ना सका, अंत में ये निस्चय लिया कि मुझे भी इस नेक काम में भाग लेना चाहिए, यही सोच के साथ तो मे कमिटी का हिस्सा बना था, तो अब पीछे हटने का कोई मतलब नही है… अब जो होगा सो देखा जाएगा.

सागर – मेरे तो बाप डेड भी इस देश की सेवा में रहे, दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे, पिता जी भी फौज में हैं, तो मेरा खून भी सफेद तो नही हो सकता ना? और फिर भाग्यवश, ये एक मौका हाथ आया है कुछ अच्छा करने का तो इसी से शुरुआत करते हैं. क्यों..?

मे- दोस्तो ! इस तरह का जज़्बा हर किसी में नही होता, कुछ खास ही लोग होते हैं, जो दूसरों के काम आते हैं, 

अपने लिए तो हर कोई जीता है, औरों के लिए जो जिए उसको सारे जहाँ का प्यार और दुआएँ नसीब होती हैं. 

हां एक और बात ! ये हमारे तुम्हारे बस मैं नही है की तुम जो कर रहे हो या करने वाले हो इसमें तुम्हारा कोई अपना सहयोग या सहमति है, ये तो पूर्व निर्धारित था, हमें इस कॉलेज में ही क्यों भेजा और मिलाया, इसमें भी नियती की कोई सुनियोजित चाल है.

करण – शायद तुम सही कह रहे हो अरुण, मैने भी ये अनुभव किया है कि हमारा ये मिलना कोई संयोग नही है..ये अट्रॅक्षन अनायास नही हुआ.

धनंजय- पता नही तुम दोनो क्या ग़ूढ ज्ञान की बातें कर रहे हो, मेरी तो कुछ समझ में नही आरहा…??

मे- अब्बेय साले तू ठहरा ठाकुर आदमी, बाहुबल से सोचता है, अध्यात्मिक बातें तेरी समझ से बाहर हैं.

ऐसी ही बातें करते-2 हम सभी दोस्त एक्सर्साइज़ करते रहे, पसीना बहाते रहे, और तक कर अपने-2 रूम में फ्रेश होने चले गये.

हफ्ते के बाद से ही हमने फाइटिंग की प्रॅक्टीस शुरू कर दी, कुछ बुक्स का सहारा लिया, कुछ मूवीस से टिप लेते रहे, 

1 महीने तक हमने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने शरीर को इतना तो चुस्त-दुरुस्त बना लिया था कि नॉर्मल कंडीशन्स में 2-4 के हाथ हम में से कोई आने वाला नही था.

मैने कहा ये अंत नही है, ये प्रॅक्टीस कंटिन्यू रहनी चाहिए…

अब शुरू होना था हमारा मिसन, उसके लिए हमने वो लिस्ट निकाली जो ड्रग यूज़ करने वाले स्टूडेंट्स थे, और बाद में सुधार लिए गये थे.

कुछ सीनियर्स के नामों पर टिक किया, और उनसे बात की. चूँकि कॉलेज से अफीशियल सर्क्युलर था कि हम किसी से भी कुछ भी पुछ-ताछ कर सकते हैं, कोई सवाल या जूनियर-सीनियर का लेवेल नही चलेगा.

दो लड़कों (मोनू और चिंटू) को काम में लाने का सोचा जिन्हें शहर में ड्रग्स कहाँ-2 मिलता है, ये पता था. फिर क्या था, लग गये एक और नेक काम पर….
 
शाम को थोड़ा अंधेरा होते ही उन लड़कों को लेकर एक ठिकाने पर पहुँचे जो हमारे कॉलेज से सबसे ज़्यादा दूर था, जिससे किसी को हमारी योजना का गुमान भी ना हो और हमारे मतलब का बंदा भी मिल जाए.

मोनू और चिंटू के साथ, जगेश और रोहन को उस अड्डे पर भेजा और हम थोड़ी दूर आड़ में बाइक्ज़ लेकर खड़े रहे, वहाँ जाके उन्होने उनकी अपनी स्टाइल मे ड्रग डिमॅंड की…

चिंटू- अशरफ भाई, माल है क्या ? 

अशरफ – अरे मोनू- चिंटू बड़े दिनों के बाद दिख रहे हो कहीं चले गये थे क्या…?

मोनू- हां भाई, एग्ज़ॅम के बाद गाँव चले गये थे, फिर कुछ दिन दूसरे अड्डे से काम चलाया, आज इधर पास में ही आए थे सोचा आपसे मुलाकात भी हो जाएगी और कुछ सुत्ते का भी जुगाड़ हो जाएगा… है क्या कुछ ??

अरे तेरे को क्या माँगता है बोल, बहुत कुछ है अपुन के पास.. बोल चरस, हाशिस, कोकीन क्या माँगता है तेरे को.

भाई दो-दो डोज देदो….

अशरफ- ये दोनो चिकने कॉन हैं..?

मोनू- ये नये आए हैं भाई… इनको भी शौक है इसका..

ले ! माल निकाल और फुट ले यहाँ से, आते रहने का क्या ?? एकदम कड़क माल मिलेला है इधर, दूसरे अड्डों के माफिक मिलावट वाला नही रखता अपुन.

वो चारो वहाँ से ड्रग्स लेके लौट लिए, और वहाँ आ गये जहाँ पेड़ों की आड़ में हम तीन बाइक लिए खड़े थे.

ये एक खोली नुमा जगह थी, आगे की तरफ टाइयर पन्चर की दुकान खोल रखी थी और पीछे की साइड में ये सब धंधा चलता था. शहर के दूसरी तरफ था ये अड्डा, वहाँ से कोई 1-2 किमी पर ही दूसरा कॉलेज था, जिसके लड़के यहाँ से ड्रग्स लेते होंगे.

अब साला सोचने की बात थी, कि इतना खुलेआम सब कुछ होता है वो भी कॉलेजस के आस-पास ही, और प्रशासन सोया पड़ा है.?? कुछ तो चक्कर है ? इसकी तो तह तक जाना पड़ेगा, ये सब बातें मेरे मन में चल रही थी

में बाइक पर बैठा ये सोच ही रहा था, कि धनंजय बोला- देख अरुण उधर अड्डे की तरफ, जैसे ही मैने देख तो एक पोलीस जीप उसी खोली नुमा जगह के आगे रुकी, जिसमें से एक सब इनस्पेक्टर और दो कॉन्स्टेबल उतरे और खोली के अंदर चले गये.

मेरा माथा ठनका, मैने अपने दोस्तों से कहा- में साला अभी यही सोच रहा था, और ये तो इतनी जल्दी प्रमाद भी मिल गया.

धनंजय- क्या..? क्या सोच रहा था...तू.?

मे- यही कि इतना सब कुछ खुलेआम होता है गैर क़ानूनी तौर पे और प्रशासन को कोई फिकर ही नही, और ये फिकर करने वाले इतनी जल्दी आ भी गये.. वाउ! 

धनंजय- किस तरह की फिकर..?

मे- तू अभी भी नही समझा..? अरे ये पोलीस की मिली-भगत से हो रहा है सब. और ये अपना आज का कमिशन लेने आए हैं..! पक्का.

म- तो अब क्या प्लान है..?

मे – अब आक्षन लेना है और क्या? चिंटू..! इस बंदे का नाम क्या है, जो यहाँ ड्रग्स बेचता है और उसके साथ और कॉन-2 है अभी, कितने लोग हैं यहाँ..?

चिंटू – इसका नाम अशरफ है, और अभी यहाँ उसके अलावा एक 12-14 साल का लड़का और है, जिसे छोटू के नाम से बुलाते हैं सब लोग.

इतने में अपना हिस्सा लेके वो पोलीस वाले वहाँ से चले गये, अब हमारा आक्षन लेने का समय आ चुका था.
 
मैने चिंटू से उस खोली का खाका लिया, और अपना प्लान समझाया, मे और धनंजय खोली के पीछे से जाके छिप जाएँगे, हमारे साथ मोनू होगा, वो पीछे से अशरफ को आवाज़ देगा.

अशरफ जब पीछे की ओर आएगा तो दूर से ही ये जानने की कोशिश करेगा कि वो फिर से यहाँ क्यों आया है, और पीछे से क्यों?

मोनू उसको बोलेगा, कि माल कम पड़ गया, हम चार लोग थे इसलिए, और कुछ देर पहले पोलीस जीप को खड़ा देखा, इसकी वजह से कोई देख ना ले पीछे से आना पड़ा, समझ गये मोनू भाई.

मोनू ने हां में गर्दन हिलाई..

मैने कहा यार एक बोरी जैसा कुछ होता तो काम बन जाता, मेरे बोलते ही नॅचुरली सबने इधा-उधर नज़र दौड़ाई, थोड़ी दूर पे कबाड़ सा पड़ा था, उसमें एक फटा सा गंदा सा लेकिन काफ़ी लंबा-चौड़ा प्लास्टिक का बोरा सा मिल गया, जो शायद कोई कबाड़ इकट्ठा करने वाला फटा होने की वजह से फेंक गया होगा कचरे के साथ.

मैने उसे देखा और कहा चलेगा, अपना काम चल जाएगा इससे. हम दोनो मोनू को साथ लेके खोली के पिच्छवाड़े जाके छिप गये.

प्लान के मुतविक मोनू ने उसे आवाज़ दी, ठीक सब कुछ वैसे ही हुआ, जो मैने सोचा था. 

जैसे ही अशरफ माल लेके मोनू के पास आया, मे चुप-चाप उसके पीछे से निकल कर उसके मुँह पे एक हाथ से ढक्कन लगा दिया और दूसरे हाथ से उसके कान के पीछे एक केरट मारी और वो मेरे हाथों में झूल गया.

धनंजय बोरे का मुँह खोल.. जल्दी.., अशरफ के बेहोश शरीर को फटाफट उसमें डाला, मुँह बाँध किया और डाल लिया उसे अपनी पीठ पर, जैसे पल्लेदार बोरा ढोते हैं..

लाकर पटका एक बाइक की सीट पर खुद उसे पकड़ के बैठ गया, धनंजय ड्राइविंग सीट पे, बीच में बोरा. फटाफट बाइक स्टार्ट की और चल दिए अपने हॉस्टिल की तरफ.

कपिल के साथ मोनू, और मोहन की बाइक पर चिंटू बैठा था, चूँकि हमारा हॉस्टिल जस्ट ऑपोसिट साइड में था, हमने सिटी के बाहर का रास्ता चुना, जिससे सिटी की स्ट्रीट लाइट मे बोरा देख कर किसी को शक़ ना हो.

हॉस्टिल से 1किमी पहले बाइक्स रोकी और कपिल को अपने पास बुलाया, 

मे- कपिल तुम दोनो बाइक लेके जाओ हॉस्टिल और हम अपने ठिकाने पे चलते हैं, मोनू-चिंटू कुछ पुच्छे तो गोल-मोल जबाब देके समझा देना.

कपिल- कोन्से ठिकाने पे, ..?

मे- वो तुम जगेश और ऋषभ के साथ आना, उन्हें पता है..

और हां मेरे ड्रॉयर में एक टूल बॉक्स है, उसमें से मेटल कटर (कैंची जैसा) है वो, एक टॉर्च और एक बोटेल पानी लेके वहीं आना फटाफट, अब जल्दी जाओ.

वो चारों जब निकल गये, उसके बाद बाइक स्टार्ट की और चल दिए जंगल की ओर, कच्चे उबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए, धीरे-2 हम पहुँच गये अपने गुप्त अड्डे पर.

हमारे हॉस्टिल के पीछे से ही जंगल जैसा शुरू हो जाता है, जिसे में पहले ही डिस्क्राइब कर चुका हूँ, 

उसी जंगल में तकरीबन एक-डेढ़ किमी अंदर जाके कोई बहुत पुरानी इमारत जो अब एकदम जर्जर खंडहर में तब्दील हो चुकी थी, उसकी एक भी दीवार या छत सही सलामत नही बची थी,

एक दिन हम चारों रूम मेट ऐसे ही भटकते हुए, इधर निकल आए थे, उत्सुकतावस हमने उसको थोड़ा बारीकी से चारों ओर अंदर-बाहर सब जगह घूम फिर के देखा, उसके सबसे पिछले हिस्से में कोई बहुत बड़े एरिया मे शायद कोई असेंब्ली ग्राउंड रहा होगा, उसके एक साइड की दीवार से हमें एक होल जैसा दिखाई दिया, जो नीचे ज़मीन की ओर जा रहा था.

हमने जब और वहाँ से पत्थर वग़ैरह हटाए, तो हमारी आखें खुली की खुली रह गयी, ये कोई 5 फीट चौड़ा रास्ता जैसा था, जिसके आगे नीचे को जाती हुई सीडीयाँ नज़र आई. 

“आथतो घुमक्कड़ जिगसा” वाली बात, सीडीयाँ उतरते गये हम चारों, तो कोई 15-20 फीट नीचे जाके हम एक हॉल नुमा कमरे में थे, तमाम धूल, मकड़ी के जालों से अटा पड़ा था वहाँ,

सीडीयों के जस्ट सामने की दीवार में एक और गेट था, जो अब सिर्फ़ पत्थर के फ्रेम में रह चुका था, किवाड़ उसके टूट-टूटकर लटक रहे थे.

जब हम उस गेट में घुसे तो ये एक सुरंग जैसी थी, जो लगभग 10 फीट चौड़ी और कोई इतनी ही उँची होती. जिग्यासा वस हम सुराग के रास्ते चलते गये… करीब 500-600 मीटर चलने के बाद सुरंग ख़तम हुई, उसके दूसरे छोर पर भी एक दरवाजा जैसा ही था जो पत्थरों द्वारा बंद किया गया था.

पत्थरों को हटाने के बाद हम जब बाहर निकले, वाउ !! ये तो कोई पुरानी नदी रही होगी, जो अब सिर्फ़ रास्ता जैसा रह गया था, और चारों ओर घने जंगल थे. 

हमने यही जगह चुनी थी अपने शिकार को रखने के लिए. 

अशरफ को हमने वहीं खंडहर में बाहर ही पटक दिया, और वेट करने लगे अपने दोस्तों का.

धनंजय- इसका क्या करने वाला है तू अरुण ..?

मे- आचार डालेंगे साले का और क्या करेंगे…

धनंजय- मज़ाक नही यार…! बताना क्या करने वाला है तू इसके साथ…?

मे- धन्नु..! तेरे अंदर ये बहुत ग़लत आदत है यार…!

धनंजय- क्या…, 

मे- तू हर बात में यही क्यों बोलता कि अब तू क्या करेगा, तू ये कैसे करेगा..वगैरह-2.. अरे भाई ये मेरा अकेले का काम थोड़ी ना है, जो मे ही करूँगा.

धनंजय – ओह्ह.. सॉरी यार… बता ना अब हम क्या करने वाले हैं इसके साथ..?

मे- ये हमें इस रास्ते पर आगे बढ़ने मे मदद करेगा..

धनंजय- वो कैसे… ??

मे- देखता जा…!
तब तक कपिल के साथ जगेश और ऋषभ भी आ गये, टॉर्च के ज़रिए, हम अशरफ को लेके नीचे हॉल में पहुँचे.

अशरफ अभी तक बेहोश था, हमने उसे एक खंबे के सहारे बिठाया और उसके हाथ खंबे के दोनो ओर से पीछे लाकर आपस में बाँध दिए, टाँगों को आगे लंबा करके आपस में बाँध दिया.
 
बोटेल से पानी लेके उसके मुँह पर मारा, थोड़ी देर में उसे होश आ गया, उसने हाथ पैर हिलाने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नही मिली, फिर उसने हम लोगों को ध्यान से देखा, और बोला- 

कॉन हो तुम लोग ? और मुझे यहाँ क्यों लाए हो..? क्या चाहते हो मुझसे..?

मे- अरे! अरे! अशरफ मियाँ…. सांस तो लो यार !, हमें तुम अपना दोस्त ही समझो, बसरते हमारे कुछ सवाल हैं उनका सही-2 जबाब दो तो.

असरफ़- क्या जानना चाहते हो मुझसे…??

मे- ये जो तुम ड्रग का धंधा करते हो वो कहाँ से आता है ? मेरा मतलब तुम तो पैदा करते नही होगे तो तुम्हारे पास भी तो कहीं से आता ही होगा ना..

अशरफ- क्या करोगे जान कर..? 

मे- हम भी सोच रहे है, यही धंधा करने का.. अच्छी-ख़ासी कमाई होती होगी इसमें क्यों..?

अशरफ- तो इसके लिए मुझे उठाने की क्या ज़रूरत थी..?

मे- हमने सोचा एकांत में बैठ कर शांति से अच्छी बातें हो जाएँगी इसलिए तुम्हें यहाँ ले आए, अब हमारे दिमाग़ मे तो यही तरीका आया सो कर लिया.

अशरफ- तो यहाँ बाँध के क्यों रखा है, दोस्तों के साथ ऐसा वार्तब किया जाता है ?

मे- अरे वो तो बस ऐसे ही, हमने सोचा पता नही तुम हमें देखते ही भड़क ना जाओ, और कुछ उल्टा पुल्टा हो गया तो, बस इसलिए…! वैसे अभी तक बताया नही तुमने कहाँ से माल आता है तुम्हारे पास..

अशरफ – मुझे तुम लोगों की बात का भरोसा नही है, और वैसे भी मे तो यहाँ का बहुत छोटा सा डीलर हूँ, तो बस ऐसे ही इधर-उधर से इंतेजाम हो जाता है.

मे- लेकिन तुमने मोनू को तो बताया था, कि तुम्हारे पास बहुत बड़ा स्टॉक है, जितना चाहिए मिलेगा..!

अशरफ- वो तो बस ऐसे ही ग्राहक बनाने की ट्रिक होती है..

मे- तो इसका मतलब तुम नही बताओगे..! हमने सोचा कि यारी दोस्ती से काम निकल आए तो अच्छा है, लेकिन अब लगता है कि सीधी उंगली से गीयी नही निकलेगा.

अशरफ- क्या करना चाहते हो..? देखो मे तुम लोगों को बताए देता हूँ, आग में हाथ मत डालो,वरना जल जाओगे. तुम लोग पढ़ने लिखने वाले बच्चे लगते हो तो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, इन सब झमेलों में मत पडो वरना….?

मे- वरना क्या..?? वोही तो जानना चाहते हैं कि वरना है कॉन ? और रही बात पढ़ने की तो वो तुम लोग वो करने ही नही दे रहे हो, ड्रग्स की लत जो लगा दी है हम स्टूडेंट्स को.

अशरफ- म.म्म..में कुछ नही जानता, देखो म..मुझे छोड़ दो, मे वादा करता हूँ ये सब धंधे छोड़ दूँगा..अब.

मे- अरे वाह फिर तो बड़ी अच्छी बात है, हम भी तो यही चाहते हैं, तुम भी छोड़ दो और दूसरे लोगों के नाम बता दो तो उनसे भी छुड़वा देते हैं.

अशरफ- में किसी और के बारे में कुछ नही जानता..? 

मे- पक्का ! नही जानते..? धन्नु, वो कटर तो देना ज़रा…! धनंजय ने कटर निकाल के दिया.,. कटर हाथ में लेकर उसको 2-3 बार कैंची की तरह उसकी आँखों के सामने चलाया और मैने उसके पैर की एक उंगली पकड़ ली और उसकी आँखों में देखते हुए कहा…!

अशरफ मियाँ, जानते हो ये क्या है ? इससे लोहे की शीट भी ऐसे कट जाती है जैसे दर्जी कपड़ा काटता है. अब एक सवाल और उसका जबाब ! ना मिलने पर एक उंगली.

अशरफ – त्त..त्तुम्म.. मज़ाक कर रहे हो.., मेरे साथ ऐसा नही कर सकते..!

मे- अब तुम हमें सहयोग नही करोगे तो फिर कुछ तो करना पड़ेगा ना ! अब जल्दी बोलो… कहाँ से मिलता है तुम्हें माल.

अशरफ के दिमाग़ मे पता नही क्या चल रहा था, शायद वो सोच रहा था ये कल के लौन्डे पड़ने लिखने वाले ऐसा कुछ नही कर सकते, खाली-पीली धमकी दे रहे होंगे.. सो चुप रहा, 

मैने फिर उसे पुछा तो उसकी मुन्डी ना मे हिली…! और फिर “खचक”…एक उंगली शाहिद हो गयी उसकी…और उसके गले से एक दिल दहलाने वाली चीख उस तहख़ाने जैसे हॉल में गूज़्ने लगी.

वो फटी आँखों से ही-. मचलते हुए मुझे घूर रहा था…! मे बोला अब बोलो… या दूसरी का नंबर लूँ, और इतना बोलके मैने उसके एक हाथ की उंगली को पकड़ लिया..

अशरफ- बताता हूँ !!! प्लीज़ और कुछ मत करना मुझे.. और वो तोते की तरह शुरू हो गया,

इस शहर का मैं डीलर हकीम लुक्का है, बहुत ही ख़तरनाक है वो, यहाँ के बड़े-बड़े नेताओ से उसके अच्छे संबंध हैं, ऐसा कोई ताना नही है शहर में जहाँ उसके यहाँ से कमिशन ना जाता हो.

मे- गुड, अब ये बताओ, तुम्हारे पास वो पोलीस वाला आया था, उसका क्या नाम है, क्या ओहदा है, कोन्से थाने का है, और कॉन-कॉन हैं उसके साथ.

उसने बताया कि वो हमारे इलाक़े के थाने मे सब इनस्पेक्टर है, उस थाने का इंचार्ज और उसके साथ जो दो कॉन्स्टेबल आए थे वो भी हिस्सेदार हैं.

और कॉन-कॉन डीलर हैं इस शहर में.. मैने अगला सवाल किया, उसने वो भी बता दिया..

उसने उन डीलरों के भी नाम और पते बता दिए, बाइ लक अशरफ हमें ऐसा मोहरा मिल गया था जिसकी सीधे तौर पर हकीम लुक्का से डीलिंग होती थी और छोटे-मोटे डीलर उसके द्वारा ही डील करते थे, शहर में कॉन-कॉन थाना, कॉन्सा पोलीस वाला मिला हुआ था.

सारे डीटेल लेके उसे पानी पिलाया, और उसे वहीं बँधा छोड़ कर हम चलने लगे, तो वो मिमियाते हुए बोला..

देखो जो तुमने पुछा वो सब मैने बता दिया अब तो मुझे छोड़ दो..

मे- छोड़ देंगे प्यारे, हमें कॉन्सा तुम्हारा अचार डालना है? बस कुछ अर्जेंट काम निपटा कर मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद… ओके. डॉन’ट वरी !!

अशरफ को वहीं बँधा छोड़ कर हम हॉस्टिल लौट आए, रूम में जाने से पहले, मैने धनंजय को साथ लिया और बाकी को रूम में भेज दिया, हम दोनों प्रिन्सिपल के घर पहुँचे जो कि कॅंपस में ही था.

रात के करीब 10 बज चुके थे, हमें इतनी रात गये, अपने घर देख कर वो बोले—

क्यों भाई, इतनी रात गये कैसे आना हुआ ? क्या करते फिर रहे हो तुम लोग..?

मे- अब सर ओखली में सर रख ही दिया है, तो मूसल तो झेलने ही पड़ेंगे.

प्रिंसीपल- ठहाका लगाते हुए…. ऐसा क्या हुआ.. बताओ भी..?

मैने उन्हें सारी घटना डीटेल में बताई, तो वो एकदम शॉक हो गये.. और बोले…

प्रिंसीपल- तो फिर अब अगला कदम क्या होगा तुम्हारा.. ??

मे- सर अब आगे आपका काम है, एसपी और उसके उपर के अधिकारियों की इस मामले में पोज़िशन क्या है ये पता लगाना होगा.

प्रिंसीपल- हम.म.. सही कहते हो कहीं उपर के लोग भी मिले हुए ना हों..? क्योंकि जिस तरह से पोलिटिकल लोग मिले हुए हैं, फिर तो कुछ भी हो सकता है..? 

उन्होने तुरंत स्प का पर्सनल फोन लगाया.. थोड़ी देर बेल जाने के बाद एक जानना आवाज़ आई…

हेलो.. कॉन..?, 

प्रिंसीपल—एसपी साब हैं, मे एनईसी का प्रिन्सिपल सिंग बोल रहा हूँ..!
थोड़ी देर शांति रही फिर लाइन पर एसपी की आवाज़ सुनाई दी..

एसपी- हेलो प्रिन्सिपल साब गुड ईव्निंग… कैसे याद किया..?

प्रिंसीपन- एसपी साब, ड्रग्स वाले मामले में आपकी राई जाननी थी..! क्योंकि हमें पता लगा है कि ये हमारे ही कॉलेज तक सीमित नही है, और कॉलेज भी इससे अफेक्टेड हैं, इनफॅक्ट पूरा शहर इस जहर की चपेट है, लेकिन आपके प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही अबतक दिखी नही..!

एसपी- प्रिन्सिपल साब आइ आम रियली वेरी सॉरी, लेकिन आप तो जानते ही हैं, कि में अकेला तो कुछ नही कर सकता, करने वाले तो थानों के इंचार्ज और उनके नीचे का स्टाफ ही होता है, उनसे रिपोर्ट ली थी, लेकिन उसमें कुछ सीरीयस लगा नही, वैसे आपके कॉलेज वाले केस से इस विषय पर कमिशनर साब भी चिंता व्यक्त कर चुके हैं.

प्रिंसीपल- क्या रियली आप और कमिशनर साब इस मुद्दे को सॉल्व करना चाहते हैं ?

एसपी- क्या बात कर रहे हैं सर आप ? क्या आपको हमारी नीयत पर कोई शक है..?

प्रिंसीपल- तो फिर आप कमिशनर साब के साथ हमारा अपायंटमेंट फिक्स करिए, और ये जितना जल्दी हो उतना अच्छा है.

एसपी- ठीक है सर, में आपको जल्दी ही बताता हूँ, शायद अभी..! और लाइन कट गयी.

मे- आपको क्या लगता है सर..?

प्रिंसीपल- एसपी की बातों से तो लगता है, कि उपर के लोग असमर्थ हैं, और बात भी सही लगी उनकी कि करने वाले तो नीचे के ही अधिकारी और उनका स्टाफ है, वो तो उनकी रिपोर्ट पर ही आक्षन ले सकते हैं.
 
हम इस तरह की डिसक्यूसषन कर ही रहे थे कि कोई 15-20 मिनट में ही एसपी का फोन आ गया, हमारी समझ में आ गया कि उन्होने इस मामले को सीरियस्ली लिया है.

फोन उठाते ही एसपी ने बताया कि उनकी बात कमिशनर साब से हो चुकी है, उन्होने भी चिंता जताते हुए मीटिंग का समय दे दिया है, अब हमें कल सुबह 10 बजे उनके ऑफीस पहुँचना है.

हम प्रिन्सिपल साब को गुड नाइट बोलके हॉस्टिल आ गये, मेस में खाना खाया और बिस्तर पे लेट गये, थकान की वजह से जल्दी नींद आ गयी.

सुबह मे और प्रिन्सिपल सर उनकी जीप से कमिशनर ऑफीस पहुँचे, एसपी वहाँ पहले से मौजूद थे.

कमिशनर के सामने प्रिन्सिपल ने मेरा परिचय दिया, मुझे देखकर वो बड़े खुश हुए, और हाथ मिलाया.

बैठो आप लोग, और बताओ क्या सिचुयेशन है..? कमिशनर साब बोले.

प्रिंसीपल- सर ये सब अरुण ही बताए तो ज़्यादा उचित होगा.

कमिशनर ने मेरी ओर देखा और बोलने का इशारा किया..हॅम..

मैने उन्हें सारी डीटेल्स नामों के साथ दी, वो कुछ चिंतित हो गये, कुछ देर शांति छाई रही.. फिर एसपी की तरफ रुख़ करके बोले..

कमिश्नर- एसपी , क्या कहना चाहोगे इस मामले मे, देखो पहले ही हम समाज सेवियों की वजह से प्रेशर में हैं, मीडीया भी पीछे लगा है, अब अगर इस मामले में भी कुछ नही किया, तो जबाब देना मुश्किल हो जाएगा.

एसपी कुछ बोल ही नही पाए, कुछ देर इंतजार करने के मैने कहा- सर मे कुछ कहूँ..?

कमिश्नर- हां-हाँ बोलो क्या कहना चाहते हो..?

मे- सर पोलीस का आप देखो, गुण्डों से हम निपट लेते हैं.

कमिश्नर- इतना आसान नही है यंग मॅन..! वो गुंडे बहुत पवरफुल हैं, उनके पास में पवर, मनी पवर, पॉल्टिकल पवर सब कुछ है.. कर पाओगे उनका मुकाबला..?

हमारे महकमे ने कई बार हकीम लुक्का पर हाथ डालने की कोशिश की है, लेकिन ना तो कोई ठोस सबूत मिला और उपर से पोलिटिकल प्रेशर और झेलना पड़ा सो अलग.

मे- उसका कारण भी आपकी पोलीस ही है सर, जिन लोगों को आपने कार्यवाही के लिए भेजा होगा, वो या तो उससे पहले से ही मिले होंगे या उसने खरीद लिया होगा.
और रही बात पावर की, तो सर हमारे पास सच्चाई की पवर है, देश के लिए कुछ कर गुजरने के जज़्बे की पवर है, आप पोलीस को संभलो, हमारे बीच में ना आए, जहाँ एक बार ये मामला सड़क पे आ गया, नेता भी अपनी साख बचाने के चक्कर में मुँह छिपाके बैठ जाएँगे एक कोने में छिप कर.

कमिश्नर मुँह बाए मेरी तरफ देखने लगे…! कहीं तुम चंद्रशेखर आज़ाद का पूनर जन्म तो नही हो..? वो बोले..तो प्रिन्सिपल और एसपी ठहाका लगाए बिना नही रह सके उनकी बात सुनकर..

मे- मुस्कराते हुए..! नही सर मे उस दिव्यात्मा के पैरों की धूल के बराबर भी नही हूँ, हां एक जज़्बा ज़रूर है कुछ अच्छा करने का.

कमिश्नर- देखो बच्चे, हम तुमसे सहमत हैं, और इसकी इजाज़त भी दे सकते हैं, परंतु ये मामला सड़कों तक ना पहुचे तो हम सबके लिए अच्छा रहेगा.

मे- नही पहुँचेगा सर..! लेकिन उससे पहले जितने करप्ट पुलिस वाले इसमें इन्वॉल्व हैं, उन्हें आपको साइड लाइन करना होगा. 

कमिश्नर- एसपी, शहर के सभी थानों की लिस्ट निकालो, आप खुद कंट्रोल रूम से फोर्स लेकर उनपर दबिश दो, जो नाम अरुण ने बताए हैं उन सभी हरामी पुलसियों के खिलाफ आक्षन लो और सेकेंड लाइन को टेम्पररी चार्ज देदो, बाद में अपडेट कर लेंगे.

एसपी- यस सर, आज शाम 4 बजे तक रिपोर्ट आपके टेबल पर होगी..!

कमिश्नर- गुड.. , तो अरुण अब बोलो तुम्हारा क्या प्लान है..?

मे- सर मेरी रिपोर्ट कल सुबह के न्यूज़ पेपर के ज़रिए आप तक पहुँच जाएगी…!

कमिश्नर- चोन्क्ते हुए…! क्या मतलब..? क्या करने वाले हो..?

मे- अभी सर मे कुछ नही कह सकता.., अपने दोस्तों के साथ प्लान बना के ही कुछ फाइनल करूँगा.. हां इतना कह सकता हूँ, कि हकीम लुक्का कल या तो ईश्वरपूरी पहुँच चुका होगा या मेंटल हॉस्पिटल में.
तीनो अधिकारी गहरी नज़रों से मेरी ओर देखते रह गये, मे अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ… और प्रिन्सिपल से बोला.. चलें सर.

प्रिन्सिपल जैसे नींद से जागे.. आन्ं.. हां चलो, चलते हैं.

मे- रुक कर..! एक मिनट !, एसपी साब एक फेवर करेंगे..? 
वो बोले- हां बोलो..

मे- मुझे 8 उन औथराइज्द गन्स चाहिए ! मिलेंगी..? मे वादा करता हूँ वापस कर दूँगा.. 

वो बोले- नही-2 इसकी कोई ज़रूरत नही है, लेकिन उनका भविष्य में ग़लत इस्तेमाल ना हो…बस.

मे- प्रॉमिस सर..! ग़लत इस्तेमाल ग़लत लोग करते हैं, और विस्वास करिए, हम में से कोई भी ग़लत नही है.

कमिश्नर- हमें तुम पर पूरा भरोसा है माइ बॉय, और फक्र भी. तुम जैसे अगर 5-10% लोग भी इस समाज में हों तो इस तरह की बुराइयाँ पनप ही ना सकें, क्यों प्रिन्सिपल साब में सही कह रहा हूँ ना..

प्रिंसीपल- बिल्कुल सच कहा सर आपने, इस लड़के ने हमारे कॉलेज को बर्बाद होने बचाया ही नही, अपितु नाम रोशन किया है.. पूरा कॅंपस इसका काफ़ी दिनों तक अभारी रहेगा, और शायद ये शहर भी.

एसपी ऑफीस से गन लेके हम निकल पड़े कॅंपस की ओर..

रास्ते में मैने प्रिन्सिपल साब से जीप यूज़ करने की पर्मीशन माँगी, तो उन्होने फ्री ऑफ हॅंड कुछ भी असेट्स उसे करने की अनुमति मुझे देदि.
प्रिन्सिपल साब अपने ऑफीस चले गये, मे अपने क्लास रूम मे चला गया, वहाँ से अपने दोस्तों को पकड़ा, फिर दूसरे चारों को बुलवाया और सभी हॉस्टिल में आ गये.

मे- बी सीरीयस दोस्तो, अब में जो कहने जा रहा हूँ, वो शायद आप लोगों को पसंद ना हो, लेकिन अब पीछे मुड़ने का चान्स नही रहा, अब सिर्फ़ आगे ही बढ़ा जा सकता है.

मुझे पता है कि हम अगर अपनी पूर्ण इक्षा शक्ति का उपयोग करें तो हम 8 जने 20 लोगों के बराबर हैं, और यही कॉन्फिडॅन्स हमें आज दिखाना है, मैने अपने ड्रॉयर से 8 खुकरी (कटार) म्यान के साथ निकाली और सबको 1-1 पकड़ा दी,

फिर 8 मंकी कॅप निकाले वो भी बाँट दिए..

मेरे प्लान के मुताबिक, वैसे तो हमें इन खुक्रियों की शायद ही ज़रूरत पड़े, फिर भी अगर उसे करनी पड़े, तो आप लोग मौके के हिसाब से खुलकर यूज़ कर सकते हो… ध्यान रहे, ज़रूरत पड़े तो.

अब हमें जल्दी से लंच लेके निकलना है, हो सकता है अब हम देर रात या कल सुबह ही लौट पाएँ.

सभी लोग मेरे मुँह की तरफ ही देखे जा रहे थे मानो मे कोई अजूबा हूँ या दूसरे गृह का प्राणी.. 

फिर भी कपिल से रहा नही गया, तो वो बोला- अरुण वैसे तो हम सब वचन बद्ध हैं, तुम्हारे कंधे से कंधा मिलकर चलने के लिए, फिर भी में चाहता हूँ कि जो भी हमें आज के दिन में करना है, उसे एक बार डीटेल डिसक्यूसषन करलें तो कैसा रहे..
 
बिल्कुल ! और ये बात मुझे तुमसे एक्सपेक्टेड थी, ध्यान से सुनो, हमारे पास 4 अड्डों के अड्रेस हैं, उन चारों से हमें मुख्य अपराधी को उठाना है, मुझे नही लगता कि इस काम में हम में से 4 से ज़्यादा लोगों की ज़रूरत पड़े.

थोड़ी सी समय के हिसाब से ट्रिक लगाके काम किया जाए तो दो ग्रूप में, दो-दो के हिसाब से ये काम शांति पूर्वक 5-6 बजे तक निपट सकता है.

पोलीस की हमें परवाह करने की ज़रूरत नही है, लोगों को सिर्फ़ तमाशे से मतलब है, जैसा हम सब जानते हैं पब्लिक के बारे में.

रोहन – पोलीस की परवाह क्यों नही है..?

मे- पोलीस कहीं भी किसी मौके पर हम लोगों को नही मिलेगी, और अगर बाइ चान्स कोई एक-आध मिल भी जाए, तो उसे बोलना एसपी से बात करो.. बस.

आज शाम 4 बजे से पहले-2 सारे करप्ट पुलसीए एसपी ऑफीस में रेमंड पर पहुँच चुके होंगे, ये सब सीक्रेट प्लान है जो शायद शुरू भी हो गया होगा.

सभी एक साथ—क्या…??? क्या बोल रहा है यररर… सच में…?

मे- स्माइल के साथ.. हां.. बिल्कुल सच..!

उन चारों मुख्य बदमाशों को 5 बजे तक हमें अपने गुप्त ठिकाने तक पहुचाना ही होगा किसी भी सूरत में, 

फिर हमने ल्यूक लिया और 4-4 के दो ग्रूप बनाए, ईस्ट ग्रूप-धनंजय, सागर, मोहन, जगेश.

सेकेंड ग्रूप- कपिल, रोहन, ऋषभ और अरुण.

उसके बाद अपने-2 शिकार बाँट कर हम निकल लिए..., 
कॅंपस में दो महिंद्रा जीप थी, दोनो की चाबी ऑफीस से ली, और ग्रूप वाइज़ चल दिए अलग-अलग दिशाओं में…

थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद हमारा आज का पहला मिशन पूरा हो गया, चारों मैं डीलरों को उठा लिया गया, हां हमारे वाले एक अड्डे पर एक चमचा ज़्यादा नौटंकी कर रहा था, अंदर जाने ही नही दे रहा था, तो ऋषभ ने उसे पेल दिया.

पता नही वो मरा या जिंदा रहा होगा, किसको फ़ुर्सत थी देखने की.

दूसरे ग्रूप में जगेश को थोड़ी चोट आ गई थी, बचते-बचाते भी एक गुंडे का चाकू उसके बाए शोल्डर को कट लगा ही गया था.

चारो गुण्डों को लाके अशरफ के साथ ही बाँध दिया गया, अशरफ को थोड़ा चाइ नाश्ता कराना नही भूले थे हम, इंसानियत का इतना तो तक़ाज़ा बनता ही है. और वैसे भी कल से भूखा प्यासा था बेचारा.

वे चारों गुंडे अशरफ को खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे थे.

इन सबको उठाने का हमारा मेन मकसद था, लुक्का को अपाहिज़ बना देना.

सारे भृष्ट पुलसीए, शाम होते-होते एसपी की रेमंड में पहुँच चुके थे..
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इतनी सारी बुरी खबरें सुन-सुन के हकीम लुक्का तिलमिला रहा था, वो सोच भी नही पा रहा था कि अचानक ये हुआ तो कैसे हुआ, और किसके आदेश से हुआ..?

अभी शाम के 8 ही बजे थे, और इस समय लुक्का अपने क्लब ब्लू बर्ड में था, और बुरी तरह भन्नाया हुआ था.

और इसका असर उसके अपने आदमियों को झेलना पड़ रहा था.

क्लब की हॉल नुमा लॉबी में जुए, और ड्रग्स के दौर चल रहे थे, सुंदरियाँ अपने ग्राहकों का मन बहलाने का भरसक प्रयास कर रही थी, 

सारे हॉल में स्मेक, चरस, गांजे की स्मेल फैली हुई थी..

लॉबी क्रॉस करके काउंटर के साइड से होते हुए एक गेट के ज़रिए अंदर जाया जाता था, जहाँ अपने ऑफीस में लुक्का अपने खास सिपहसालारों के साथ बैठा था.

हकीम लुक्का एक 6’3” लंबा, भारी भरकम कद काठी वाला मीडियम कलर का इंसान था, उसके मजबूत शरीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उसमें कितनी ताक़त होगी.

लुक्का के दोनो तरफ दो अर्धनग्न सुंदरियाँ बैठी उसे जाम पिला रही थी, नशे में लुक्का की आँखें दहक्ते अँगारे की तरह लग रही थी.

लुक्का आज खुश नही था और उसकी खुशी को छीनने वाले कॉन हैं ? उसे ये भी नही पता था ? वो तो इस सब के पीछे पोलीस की आज की कार्यवाही को ही मान रहा था.

रात के करीब 11 बज चुके थे ज़्यादा तर ग्राहक या तो जा चुके थे, या वो नशे की अधिकता के कारण अपनी अपनी जगहों पर लुढ़के पड़े थे.

तभी वहाँ 4 नौजवान दाखिल हुए, आवरेज हाइट और कद के इन नौजवानों के चेहरों पर हल्की-हल्की दाढ़ी थी, जो उनकी उम्र से कुछ अधिक लग रही थी.
लेकिन क्लब की धुंधली सी, अधूरी सी रोशनी में पता नही चल रहा था कि उनकी ये दाढ़ी असली है या नकली.

वो चारों सीधे काउंटर पर पहुँचे, और वहाँ जाकर खड़े हो गये, काउंटर के पीछे बैठे शख्स ने उनसे पुछा, बोलिए किससे मिलना है ?

उनमें से एक नौजवान बोला- हमें तुम्हारे बॉस हकीम लुक्का से मिलना है, उसको बोलो राजपुरा से राका आया है, 

वो बंदा अंदर गया, इतने में पीछे से चार और नौजवान लॉबी में अंदर घुसे, घुसते ही उन्होने मेन गेट बंद कर दिया और वहाँ लुढ़के पड़े नशेडियों के बीच में वो भी लुढ़क गये, मानो वो उनमें से ही हों.

अंदर जाकर उस बंदे ने जब लुक्का को बताया, कि कोई राजपुरा का राका नाम का आदमी अपने 3 साथियों के साथ आया है, आपसे मिलना चाहता है…

लुक्का सोच में पड़ गया, वो किसी राका से पहले कभी नही मिला था, फिर ये कॉन है ? फिर कुछ सोचते हुए उन्हें अंदर बुलाने को कहा.

वो बंदा बाहर आया, और उसने उन नौजवानो को अंदर जाने को कहा.

सामने ही एक मास्टर सोफे के उपर लंबा चौड़ा लुक्का किसी बादशाह की तरह बैठा था, उसके पीछे उसके 5 हट्टे-कट्टे ख़ूँख़ार से दिखने वाले गुंडे अपने सीनों पर हाथ बँधे खड़े थे.

बगलों में सोफे पर दो अर्धनग्न लाड़िकयँ उससे चिपकी हुई बैठी थी, लुक्का ने अपने दोनो बाजू, उनकी नंगी कमर मे डाले हुए थे.

जैसे ही वो नौजवान उसके सामने पहुँचे, वो उन चारों की ओर सवालिया नज़रों से देखने लगा.

तुम में से राका कॉन है ? 

एक नौजवान आगे बढ़ा और उसने लुक्का की तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया.
 
लुक्का ने भी बैठे ही बैठे उससे हाथ मिलाया, दोनो के हाथ मिलते ही कस गये, और एक-दूसरे की शारीरिक क्षमता को परखने लगे.

नौजवान का हाथ थोड़ा छोटा था लुक्का के मुक़ाबले, लेकिन शक्ति में कमी नही आने दी उसने.

नौजवान- मिल कर खुशी हुई लुक्का भाई, मेरा नाम राका है, ये मेरे साथी हैं, हम राजपुरा में ड्रग डीलिंग का धंधा चलते है, अच्छी-ख़ासी डिमॅंड है इस चीज़ की वहाँ.

हमने आप का नाम सुना था, और ये भी हमें पता है कि आपकी डीलिंग डाइरेक्ट दुबई से है. ये बात उसने अंदाज़े से ही बोल दी थी.

तीर सही निशाने पे लगा.

लुक्का - सही सुना है तुमने, में इस शहर का बेताज बादशाह हूँ, सारे गैर क़ानूनी काम मेरी देख-रेख में होते हैं. पोलीस मेरी जेब मे रहती है, अब तुम अपने आने का प्रायोजन कहो, बोलो मेरे से क्यों मिलना चाहते थे.

नौजवाना- इफ़ यू डॉन’ट माइंड लुक्का भाई, मे आपसे अकेले में बात करना चाहूँगा.. !

लुक्का - तुम बोल सकते हो, ये मेरे बहुत खास आदमी हैं..

नौजवान – मे आपके आदमियों पर शक़ नही कर रहा हूँ, लेकिन इंसान का ओवर कॉन्फिडॅन्स कभी-2 नुकसानदेह होता है लुक्का भाई, 

मुझे पता है आज दिन भर पोलीस ने शहर में क्या-2 किया है ..? अब इतना सब बिना अंदर की इन्फर्मेशन के तो संभव नही हो सकता ना…!

लुक्का को लगा लड़का कुछ ज़्यादा ही समझदार है, उसे उसकी बात मानने पर मजबूर होना पड़ा.

उसने अपने आदमियों को बाहर जाने का इशारा किया.. ! तो वो उसकी ओर ताज्जुब से देखने लगे…!

लुक्का ने थोड़े नाराज़गी वाले अंदाज में उनकी ओर देखा तो वो बाहर की ओर चल दिए..

उसके पाँचों गुंडे और वो तीनों नौजवान भी बाहर चले गये. उस नौजवान ने फ़ौरन गेट अंदर से लॉक कर दिया, 

लुक्का – गेट क्यों बंद किया..?

नौजवान- दीवारों के भी कान होते है भाई….!

गेट बंद होते ही वो चारों भी जो लुढ़के पड़े थे, लोगों के बीच से उठ खड़े हुए और फिर उन सातों ने मिलकर उन पाँचों गुण्डों को घेरे में ले लिया, अब उन सभी के हाथों में गन्स दिखाई दे रही थी.

गुंडा 1– धोका..! कॉन हो तुम लोग..?

तुम जैसे देश और समाज के दुश्मनो की मौत और फिर धानी---धानी—लगातार 6 फाइयर हुए, और वो पाँचों गुंडे काउंटर पर बैठे गुंडे समेत ईश्वरपूरी को जाने वाली ट्रेन का टिकेट खरीदते हुए दिखाई पड़े..!

इधर जैसे ही फाइरिंग की आवाज़ लुक्का के कानों में पड़ी, वो चोंक पड़ा..!
कों हो तुम.. ? 

अरुण …!! अरुण नाम है मेरा, सुना तो होगा मेसी में तेरे चूमाचो को जैल भिजवाने वाला में ही हूँ.

आज तेरे सारे शहर के अड्डों की वाट लगाने वाला भी में ही हूँ. 
तेरे खरीदे हुए पोलीस के कुत्तों की रेमंड करने वाला भी में ही हूँ.. और अब तेरे गुनाहों की सज़ा देने वाला हूँ, अब अचानक उसके हाथ में गन नज़र आ रही थी.…

लुक्का की तो आँखें फटी की फटी रह गयीं, उसने ख्वाब में भी नही सोचा होगा, कि कोई 19-20 साल का लड़का उसको उसके ही अड्डे पर इस तरह गन पॉइंट पे ले लेगा.

अरुण ने रेवोल्वर की नाल के इशारे से उन लड़कियों को वहाँ से जाने के लिए इशारा किया, वो दोनो कांपति हुई एक कोने मे जाके दुबक गयी.

लुक्का चीखता हुआ अपने आदमियों को आवाज़ देने लगा… जग्गा…असलम… कहाँ मर गये सब के सब, जल्दी आओ..!

सब मार चुके हैं लुक्का…! सर्द लहजे मे कहा अरुण ने…

क्या..? क्या बोला तू..? ये नही हो सकता..?

तूने गोलियों की आवाज़ नही सुनी..? यही नही, तेरे क्लब के बाहर खड़े भडुवे भी अल्लाह मियाँ को प्यारे हो चुके हैं, अब सिर्फ़ तू अकेला बचा है.. 

लुक्का अभी तक सोफे से उठ भी नही पाया था, अरुण थोड़ा सा इधर-उधर देखने लगा तभी लुक्का को मौका मिल गया, और टेबल से एक शराब का खाली ग्लास उठा कर अरुण के गन वाले हाथ पर फेंक मारा.

निशाना सटीक था, नतीजा, गन उसके हाथ से छूट गयी, लुक्का की फुर्ती क़ाबिले तारीफ थी, जैसे ही गन अरुण के हाथ से च्छुटी, लुक्का का जिस्म सोफे से ना सिर्फ़ उच्छला, सीधा अरुण के उपर जंप लगा दी..

अरुण भी सतर्क था, वो अपनी जगह से एक पैर पर घूम गया, नतीजा लुक्का अपनी ही झोंक में सीधा टीवी के केस से जा टकराया..

घूमते ही अरुण ने उसके पिच्छवाड़े पर एक भरपूर किक रसीद कर दी, लुक्का जो अपने को संभालने की कोशिश कर ही रहा था, की फिर धडाम से जा टकराया.

लुक्का समझ चुका था, लड़के से आसानी से पार वो नही पा सकता, उसे अपनी पूरी क्षमता से इसके साथ लड़ना होगा.

अरुण अपनी जगह कमर पर हाथ रखे खड़ा उसके उठने का इंतजार कर रहा था.
जैसे ही लुक्का उठके घुमा, अरुण ने एक फ्लाइयिंग किक उसको मारी, इस बार लुक्का पूरी तरह चोन्कन्ना था, वो अपने जगह से हट गया, और अरुण का शरीर अपनी ही झोंक मे घूमता हुआ सोफे पे गिरा, पीछे से लुक्का ने उसके उपर जंप लगा दी, उसका भारी भरकम शरीर अरुण के उपर गिरा…

दोनो के वजन और झटके को भारी सोफा भी नही झेल पाया और वो पीछे को उलट गया, दोनो दूर तक लुढ़कते चले गये..

दोनो ही फुर्ती से खड़े हो गये, और एक दूसरे को खा जाने वाली नज़रों से घूर्ने लगे… दोनो की आँखों से खून बरस रहा था मानो,…!!!!

लुक्का दाँत पीसते हुए बोला- यहाँ आकर अपनी मौत को दावत दी है तूने लौन्डे… आज तुझे पता चलेगा कि लुक्का से टकराने का अंज़ाम क्या होता है..और वो अरुण के उपर झपटा..

अरुण ने एक कदम साइड में हटके ना केवल अपने को उसके बार से बचाया अपितु, घूम के उसका राइट हॅंड लुक्का के गले से कस गया… और दाँत पीसते हुए अपने बाजू से उसकी गर्दन को कसते हुए गुर्राया.. ..

बहुत खून चूसा है हरामजादे तूने इस शहर के नौजवानों का, आज तुझे पता चलेगा, कि एक सच्चा देश का आम नागरिक भी जब अपनी पर आता है, तो तेरे जैसे समाज के कीड़ों का क्या हाल करता है.. और देखते-2 उसका बाजू लुक्का की गर्दन में और कस गया…!

गला दबने से लुक्का के फरिस्ते कून्च कर गये, उसका चेहरा लाल भभुका हो गया, पूरे शरीर का खून उसके चेहरे पर जमा हो गया, आँखें उबल पड़ने को तैयार थी….

लेकिन वो भी हकीम लुक्का था.. कोई इतनी आसानी से उसपे काबू पा ले ये मुमकिन नही था, ये बादशाहत उसे किसी खैरात में नही मिली, अपने दम पर उसने इसे हासिल किया था, वो अभी भी किसी दाँव चलाने की कोशिश में था..

अचानक लुक्का ने अपने को पीछे को धकेलना शुरू कर दिया, और धकेलते-2 वो उसको उल्टे पड़े सोफे तक ले आया, जैसे ही अरुण के पैर सोफे से टकराए, अपनी पूरी शक्ति जुटा, लुक्का पीछे को उलट गया, नतीजा अरुण उल्टे पड़े सोफे पर धडाम से गिरा और उपर से लुक्का उसके उपर, उसकी पकड़ ढीली पड़ गयी..

लुक्का ने अपने दोनो हाथों से पकड़ के अरुण के हाथों को अपने गर्दन से अलग किया और खड़ा होते ही, अरुण को बिना कोई मौका दिए, झुक कर उसके मजबूत हाथ ने अरुण का गला कस लिया…!

उसका बड़ा सा कठोर हाथ अरुण के गले से कस गया, और अपनी ताक़त के ज़ोर से उसने उसको हवा मे उठा लिया…

अरुण के पैर हवा में झूल रहे थे, अब अरुण को लगने लगा कि वो गया, कुछ भी करने की स्थिति में नही था वो. चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था मुँह खुल चुका था, आँखें और जीभ बाहर को आने लगी थीं.
 
उधर लगभग आधे घंटे से ज़्यादा समय तक दरवाजा नही खुला, तो अरुण के दोस्तों को अब चिंता होने लगी.. और उन्होने दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया.. जब काफ़ी देर तक भी कोई रेस्पॉन्स नही हुआ, तो वो सब मिलकर उसे तोड़ने की कोशिश करने लगे.

लेकिन दरवाजा भी काफ़ी मजबूत था, आसानी से टूटने वाला नही था, वो चोट पे चोट मारते रहे, लेकिन वो टस से मस नही हो पाया..

इधर अरुण को अपनी मौत दिखाई देने लगी, लुक्का के मजबूत हाथ की पकड़ ज़रा भी ढीली नही हो रही थी…. 

इतनी आसान मौत मरने नही आया हूँ में इस धरती पर…, जैसे धमाका सा हुआ हो उसके दिमाग़ में…! अपनी पूरी शक्ति से अपने शरीर को झूले की तरह झूलाया उसने, और अपने सेधे पैर की एक ठोकर लुक्का के जांघों के जोड़े पर दे मारी…!

चोट इतनी पवरफुल और सटीक थी लुक्का के गुप्तँग पर की लगते ही अरुण उसके हाथ से छूट कर धडाम से ज़मीन पर गिरा…!

लुक्का अपने दोनो घुटने पेट से जोड़कर ज़मीन पर लॉट-पॉट होने लगा, दर्द के मारे उसके मुँह से हृदय बिदारक चीख कमरे में गूंजने लगी. वो घायल भैंसे की तरह डकरा रहा था.

अरुण ने कुछ देर अपनी साँसें संयत की और फिर देर ना करते हुए उठा, लुढ़कते हुए लुक्का को सीधा करके उसकी छाती पर पैर रख के खड़ा हो गया.

लुक्का का दर्द के मारे बुरा हाल था, शायद उसके आँड फट गये थे जुते की भरपूर चोट से. 

अरुण ने अपने पेंट की जेब से एक सफेद पाउडर की थैली निकाली और उसे फाड़ कर लुक्का के मुँह मे ठूंस दिया..

ले लुक्का चख अपने ही जहर का स्वाद कैसा होता है… ? हराम जादे खा इसे..! अब क्यों नही ख़ाता मदर्चोद…….?

लुक्का के मुँह में ठूँसा पाउडर धीरे-2 उसके पेट मे भी जा रहा था, उसके मुँह से गुउन्ण—गुउन्ण की आवाज़ें आ रही थी,

एक और थैली अरुण ने अपनी दूसरी जेब निकाली ही थी कि इतने में बाहर की कोशिश काम कर गयी, और दरवाजा धडाम से अंदर की ओर आ गिरा, 

जैसे ही सबने अंदर का नज़ारा देखा, सबकी बान्छे खिल उठी..!

ऋषभ, धनंजय, इस हरामजादे के हाथ पकडो.. अरुण चिल्लाया, 

वो दोनो लुक्का के हाथों के उपर पैर रखके खड़े हो गये, अरुण ने दूसरी थैली भी उसके मुँह में उडेल दी. 

जगेश मूत साले के मुँह मे, जगेश हक्का बक्का.. अरुण को देखने लगा, अरुण अभी भी अपने आपे में नही था..! चिल्लाया..! अब्बेय हिज़ड़ा है क्या साले ? खोल पेंट और मूत इसके मुँह मे, जिससे ये पूरा का पूरा जहर इसके पेट मे चला जाए.

जगेश ने शरमाते सकुचाते हुए अपने पेंट की जिप खोली, लौडे को बाहर निकाला और छोड़ दी मूत की धार लुक्का के मुँह मे…!

लुक्का बेहोश हो चुका था, हिला डुला के देखा, जब उसके शरीर में कोई हलचल नज़र नही आई, तब उसे उसी हालत में छोड़ कर क्लब से बाहर निकल गये वी 8 बिना लेवेल के सच्चे समाज के सेवक………………!

दूसरी सुबह इस शहर के लिए कुछ हंगामे खेज होने वाली थी, लोगो के लिए कुछ खुशियाँ लाने वाली थी..,

शहर से नशे का कारोबार बंद हो चुका था, लोकल न्यूज़ पप्रेर्स इन्ही सब खबरों से भरे पड़े थे, पोलीस ने इस सारे मामले को अपनी एक बड़ी उपलब्धि बताया था…हकीम लुक्का नशे की अधिकता से मर चुका था.

हमें इससे कोई फ़र्क नही पड़ने वाला था, वैसे भी जितना आम लोगों की नज़र ना आयें उतना ही हम लोगों के लिए अच्छा भी था.

कमिश्नर और एसपी स्पेशली प्रिन्सिपल ऑफीस में बैठे, हम लोगों द्वारा मिली कामयाबी की भूरी-भूरी प्रशन्शा कर रहे थे, जिससे मेरे दोस्तों का सीना चौड़ा हो गया. आज उन्हें गुमान हो रहा होगा कि निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य कितना दिली शुकून देता है.

हम सभी दोस्त अपने सफल प्रयास से अति उत्साहित थे, हम लोगों में सेल्फ़ कॉन्फिडॅन्स का लेवेल काफ़ी बढ़ गया था, और ये बात अच्छी तरह घर कर गयी, कि आदमी अगर चाहे तो कुछ भी असंभव नही है.

उस घटना के 5 दिन बाद पोलीस हेड क्वॉर्टर मे एक पोलीस उपलब्धि समारोह आयोजित किया गया, जिसमें राज्य के होम मिनिस्टर से लेके आइजी, डीआइजी, कमिश्नर तक सभी बड़े-2 लोग थे, हमारे प्रिन्सिपल के साथ-2 हम 8 दोस्तों को स्पेशली इन्वाइट किया गया था वो भी स्पेशल पास भेज कर.

हम सभी समारोह मे शामिल हुए, मिनिस्टर, आइजी और डीआईजी ने पोलीस की तारीफ मे कसीदे पढ़े, जिससे हमारे प्रिन्सिपल को थोड़ा दुख हुआ, वो मेरी ओर निराशा भरी नज़रों से देख रहे थे. मैने इशारे से उनको मौन रहने को कहा.

लेकिन कमिश्नर को ये बातें हजम नही हो रही थी, तो जब उनकी बारी आई बोलने की तो वित ऑल रेस्पेक्ट टू सीनियर्स उन्होने कहा—

दोस्तो आप सब के अंदर खुशी देखकर बड़ा अच्छा लगा, कि चलो समाज से एक बड़ी बुराई का अंत देख कर सभी खुश हैं, ये एक छोटी-मोटी कामयाबी नही है, आज शायद ही कोई शहर या देश, इस बुराई की चपेट से मुक्त हो.

ये एक ऐसी बुराई है, जो हमारे समाज को ही खोखला नही करती अपितु हमारे बच्चो का भविष्य बर्बाद कर देती है, जो बच्चे आनेवाले भविष्य मे एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने वाले होते हैं, उन्ही को ये बुराइयाँ ग़लत कामों की ओर धकेल देती हैं.

नतीजा जो स्वस्थ और संपन्न समाज हमें मिलना चाहिए, वो नही मिल पाता.

में मेसी कॉलेज के प्रिन्सिपल मिस्टर. रुस्तम सिंग और उनके 8 स्टूडेंट को स्टेज पर आमंत्रित करता हूँ, कृपया आप लोग स्टेज पर पधारने की कृपा करें.

जब हम सब स्टेज पर पहुँचे, तो फिरसे उन्होने बोलना शुरू किया..

दोस्तो ये बुराई तो निरंतर ना जाने कितने ही गत वर्षों से हमारे बीच थी, लेकिन क्या हम लोग इससे छुटकारा पा सके… ? नही ! बल्कि जानबूझ कर उसे अनदेखा करते रहे और जाने अंजाने हम भी उसमें लिप्त हो गये.

मुझे इस बात को स्वीकार करने में भी कोई शर्म महसूस नही हो रही कि हम में से ही कुछ स्वार्थी पोलीस अधिकारी उनका साथ देते रहे.

तो उस बुराई का अंत अभी संभव कैसे हुआ ? ये कभी सोचा किसी ने..? 
 
बात शुरू होती है, कुछ महीनों पहले से, आप सभी को याद होगा मेसी के कुछ स्टूडेंट ड्रग मामले में पकड़े गये थे, उन्हें पकड़वाने में इन बच्चों का हाथ था. या यूँ कहा जाए क़ि इन्होने ही पकड़ा था, हमने तो सिर्फ़ उन्हें क़ानून के हवाले किया है बस.

कोई और होता तो बात वही ख़तम कर देता,..! अरुण प्लीज़ कम हियर..! मुझे अपने बगल में खड़ा करके, और मेरे कंधे पर हाथ रख के वो फिर बोले-

ये लड़का, जो अभी मात्र 20 साल का भी नही हुआ होगा, इसने उस बात को ख़तम नही होने दिया, इसकी ज़िद थी की इस बुराई को जब तक जड़ से ख़तम नही करेंगे, ये फिर से खड़ी हो जाएगी, और हमारा ही कॉलेज क्यों, ये शहर क्यों मुक्त नही होना चाहिए इस जहर की खेती से ?

सीमित संसाधनों से, अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए इस साहसी बच्चे ने अपने कुछ साथियों को चुना, जो आप लोगों के सामने खड़े हैं.. अब ये हम नही जानते कि इसने इन बच्चों को किस तरह से इतने बड़े और जोखिम भरे काम के लिया राज़ी किया, इन्हें एक लड़ाई लड़ने के लिए तैयार भी किया, और मात्र कुछ ही समय में इस कारनामे को अंज़ाम भी दे डाला.

आज इस शहर में ड्रग कारोबार के सबसे बड़े माफ़िया हकीम लुक्का समेत उसके सभी छोटे-बड़े अड्डों को तबाह करके उसके अंज़ाम तक पहुँचाने का काम इन बच्चों ने किया है, पोलीस ने सिर्फ़ अपने भृष्ट लोगों को की पकड़ा है..!

में अब सार्वजनिक रूप से ये घोसित करता हूँ, कि जितना ड्रग हमने इस दौरान जप्त किया है उसकी राशि का सरकार के नियम के मुतविक 10% इनाम इन बच्चों को दिया जाएगा, जो इनका हक़ है, और में मंत्री महोदया से निवेदन करूँगा कि इन बच्चों को पुरस्कृत कर के इनका मनोबल बढ़ाएँ, धन्याबाद.. इतना बोलकर उन्होने अपनी स्पीच ख़तम की.

पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा, वहाँ मौजूद हर नज़र हम पर थी, और उनमें प्रसंसा के भाव दिखाई दे रहे थे.

उसके बाद होम मिनिस्टर ने 25-25 हज़ार रुपये का इनाम घोसित किया, और चार शब्द प्रशासा में कहे.. इस तरह से समारोह संपन्न हुआ और हम अपने कॉलेज लौट आए.

एक बार फिर हम लोग अपना ध्यान अपने कोर्स पर केंद्रित करके अपनी स्टडी मे जुट गये, एग्ज़ॅम सर पर आ चुके थे प्रॉजेक्ट वग़ैरह चल रहे थे.

देखते देखते एग्ज़ॅम भी ख़तम हो गये, रिज़ल्ट मे देरी थी, मैने सोचा एक बार घर का चक्कर लगाना चाहिए, लगभग दो साल हो चुके थे, वैसे भी अब मैने पिता जी को लिख दिया था कि पैसे ना भेजें अब मुझे फिलहाल ज़रूरत नही है..

धनंजय का गाँव भी मेरे गाँव के पास ही था, तो वो भी तैयार हो गया साथ में, वाकी दोस्त भी लगभग अपने-2 घर छुट्टियों मे जा ही चुके थे.

सागर और मोहन का तो ये फाइनल ही था, तो वो दोनो तो हमेशा के लिए विदा लेने वाले थे हम लोगों से. 

जब वो हमसे विदा हुए तो हम सबकी आँखों में जुदाई के आँसू थे.. जोकि ये स्वाभाविक भी था, इतना बड़ा लाइफ मे काम जो किया था हम सबने मिलकर, जो सपने में भी सोचा नही होगा कभी..

फिर से मिलने का वादा करके वो विदा हुए..!

दूसरे दिन में और धनंजय ट्रेन पकड़के चल दिए घर की ओर, मेरा गाँव पहले पड़ता था, और उसका मेरे बाद कोई 30 किमी आगे.

डिसाइड ये हुआ कि पहले एक हफ्ते हम अपने गाँव मे रहेंगे उसके बाद उसके गाँव जाएँगे.

उसी शाम हम मेरे घर पहुँच गये, देख कर सभी खुश हुए, माँ, पिता जी, चाचा और सभी भाइयों के पैर छुये, मेरे साथ-2 धनंजय ने भी, माँ ने मुझे कितनी ही देर अपने सीने से लगाए रखा उसकी आँखों मे आँसू थे. 

पिता जी ने पुछा- तुमने पैसे ना भेजने के लिए क्यों लिखा था ? तो हमने उन्हें सारी कहानी बताई, पिता जी के साथ-2 मेरे कजन, चाचा, श्याम भाई 
सभी ने मुझे गले लगा कर शाबासी दी, चाचा ने तो चुटकी लेते हुए कहा—

क्यों रे नालयक, तू तो मेरा भी बाप निकला रे.. मैने कहा- चाचा ये सब आपके सिखाए गये पाठ का नतीजा है.. आपने कभी डरना सिखाया ही नही मुझे.

चाचा ये सुन कर भाव विभोर हो कर मुझे सीने से लगा लिया, जीता रह मेरे शेर.. और ऐसे ही अपने खानदान का नाम रोशन करता रह.

मैने कहा चाचा, इसमे मेरे अकेले का हाथ नही है, मेरे दोस्तों का साथ नही होता तो शायद इतना बड़ा काम नही कर पाता में, उनमें से एक ये है..धनंजय चौहान. 

चाचा और पिता जी ने फिर धनंजय के गाँव वग़ैरह के बारे में पुछा, जब उसने बताया तो वो उसके परिवार से परिचित थे. उसके परिवार का भी बड़ा नाम था उसके इलाक़े में.

दूसरे दिन हम दोनो कस्बे में घूमने चले गये, सोचा शायद रिंकी रानी से मुलाकात हो जाए, उसके घर के सामने मेरे पुराने क्लास मेट राजू त्यागी के भाई की रेडीमेड गारमेंट की दुकान थी, सोचा वहीं जाकर बैठते हैं शायद बाहर निकले तो दीदार हो जाएँ.

जब हम उसकी दुकान पर पहुचे, तो हमें राजू ही मिल गया, पता चला 12त के बाद वो भी अपने भाई के साथ उसी बिज्निस में लग गया था.

20-20 किमी तक अकेला बाज़ार था ग्रामीण एरिया का, तो अच्छी-ख़ासी आमदनी हो जाती थी दुकान से. और वैसे भी पढ़ने में वो कुछ खास नही था, सो लग गया उसी धंधे में.

मुझे देखते ही राजू बड़ा खुश हुआ, पूछा क्या कर रहा है, तो मैने उसे बताया, वो बोला चल यार तू तो इंजिनियर बन ही जाएगा, हम तो बस इसी लायक हैं.

मैने कहा- और सुना वाकी सब लोगों का कैसा क्या चल रहा है.. वो बोला- सब ठीक ही है, दो-चार को छोड़ कर वाकी कुछ ज़्यादा नही कर पाए..

और तेरे आस पड़ोस के लोगों के क्या हाल हैं… वो मेरा इशारा समझ गया और हंसते हुए बोला.. कि सीधे बोल ना घुमा फिरा के क्यों पुछ्ता है, मुझे सब पता है तेरा..
 
धनंजय हम दोनो की बातें समझने की कोशिश कर रहा था, राजू बोला मिलना है ?

मे- हां यार अगर हो सके तो मिलवादे....

राजू- अरे इसमे क्या प्राब्लम है ? पड़ोसी हूँ यार, मेरे लिए कोई रोक-टोक नही है इस घर मे. 

उसने अपना पानी का जग उठाया, और घुस गया उसके घर मे. करीब 5 मिनट बाद ही वो वापस आया, और मेरे से बोला, जा अकेली है, वही बुलाया है तुझे.

में धनंजय को लेके उसके घर मे घुस गया, वो सामने ही गेट पर आ गई थी, मुझे देखते ही हाथ पकड़ा और अंदर ले गयी..

अंदर जाते ही मेरे सीने से लिपट कर रोने लगी.. उसको ये भी होश नही रहा कि मेरे साथ कोई और भी है वहाँ..

मैने उसे प्यार से अपने से अलग किया, तो वो मेरी ओर शिकायत भरी नज़रों से देखने लगी, जैसे कहना चाहती हो कि अलग क्यों किया..?

मे- रिंकी ये मेरा दोस्त धनंजय चौहान, क्लास-मेट, रूम-मेट सभी कुछ है.

जैसे ही उसने सुना, तब उसका ध्यान धनंजय की तरफ गया, उससे देख कर वो बुरी तरह झेप गयी, शर्म के मारे ज़मीन में गढ़ी जा रही थी रिंकी...!!

धनंजय – नमस्ते भाभी जी… 

शर्म से पानी-पानी ही हो गयी वो…और काँपती सी आवाज़ में बोली…

न.आ.म..अस.ते…!. भाभी जी क्यों कहा आपने..?? रिंकी बोली ..

धनंजय- ये मेरा भाई है.. बल्कि भाई से भी बढ़के है… तो आप भाभी ही हुई ना मेरी तो..?

मे- अरे यार अभी से भाभी मत बोल.. देख नही रहा, बेचारी कहीं रो ना पड़े.. वैसे भी रोने मे बहुत माहिर है ये..!

रिंकी ने बनावटी गुस्से से मुझे घूरा और फिर नज़र नीची करके अपने निचले होठ को काटने लगी.

हमें सोफे पर बिठा के खुद चाइ बनाने किचन मे चली गयी, मे भी उसके पीछे-2 चला गया, और पीछे से उसको बाहों में कस लिया.

रिंकी – छोड़ो ना अरुण, क्या करते हो ? तुम्हारा दोस्त बैठा है वहाँ.. कुछ तो शर्म करो ?

मे- अरे मेरी जान वो बैठा है तो बैठा रहने दो, कम-से-कम दो पल तो एकांत में मिलने दो, 

रिंकी – तुम बहुत बेसबरे हो सच मे, कैसे रहते होगे वहाँ?? कोई और देख रखी है क्या??

मे- तुम्हें क्या लगता है..? उसके कान की लौ को जीभ से छूते हुए पूछा..

रिंकी – मे क्या जानू..? सीयी.. आई.. मान जाओ ना..!

मे- भरोसा नही है मुझ पर..? गर्दन पर होंठ रख कर चूमते हुए कहा..!

रिंकी- खुद से ज़्यादा.. आँखें बंद करते हुए..!

मे- तो फिर ऐसा क्यों बोल रही हो..? और उसका गाल दाँतों में दबा लिया..!

रिंकी- आई…! मज़ाक भी नही कर सकती?.. सच अरुण मुझे तुम पर अपने से ज़्यादा भरोसा है..! और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी पढ़ाई..

उसकी चुचियों को मसल्ते हुए…एकदम फर्स्ट क्लास..!! तुम बताओ, क्या कर रही हो आजकल..?

रिंकी- बी.ए. कर रही हूँ…, वैसे और कुछ भी किया या सिर्फ़ पढ़ाई मे ही लगे रहे..?

मे- दो महीने पहले एक न्यूज़ पढ़ी थी तुमने मेरे कॉलेज वाले शहर के बारे में..?

रिंकी – वो ड्रग माफिया के सफ़ाए के बारे में…?

मे- हां वोही, 

रिंकी- हां पढ़ी थी..

मे- उसका सफ़ाया, मैने और मेरे 7 दोस्तों ने मिलके किया था..

रिंकी- क्य्ाआ??? इसका मतलब उस हकीम लुक्का नाम के ड्रग डीलर को तुम लोगों ने मारा..?

मे- उसको मैने…, मेरे दोस्तों ने उसके गुण्डों को..

रिंकी- क्या ..? सच में ये तुमने किया…? तुम ये भी कर सकते हो..?

मे- करना पड़ा.. समाज और देश की भलाई के लिए.., और फिर तुमने ही तो कहा था, कि खूब नाम कमाओ, सो कमा लिया, अब तुम्हारी इच्छा को तो नही ठुकरा सकता था ना…! और हंसते हुए उसके गले पर किस कर दिया..

रिंकी.. सीयी.. करती हुई पलट गयी और मेरा सर अपने हाथों मे लेके मेरे होठों को चूम लिया…!

सच में तुम स्पेशल हो मेरे अरुण..! पोलीस ने कुछ नही कहा? वो बोली.

मे- पोलीस के कुछ भृष्ट लोग भी उनसे मिले हुए थे, पहले उनको ही पकड़वाया…! और जानती हो खुद होम मिनिस्टर ने हमें सम्मानित किया, इनाम के साथ-2..

रिंकी- सच…! कितना इनाम मिला…?

मे- क्या करोगी जान कर… तुम्हारा हिस्सा ये रहा.. और जेब से एक सोने का लॉकेट निकालके उसके गले मे पहना दिया.. जिसमें “एआर” मर्जिंग पेंडुलम था.

रिंकी लॉकेट देखकर खुशी से झूम उठी…

ऑश..मेरे अरुण.. तुम सचमुच कितने प्यारे हो… और खुशी के मारे उसकी आँखें नम हो गयी..

तब तक धनंजय ने हमें आवाज़ दी, तो मे उसके पास चला गया, 5 मिनट. मे रिंकी चाइ लेके आ गई, हमने मिलके चाइ पी, और इधर-उधर की बातें करने लगे..
 
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