desiaks
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- Aug 28, 2015
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और जब ऐसा होगा तो मुझे उस सिलसिले से कोई ऐतराज नहीं होगा। और तब हमारे बीच से सारे सवाल खत्म हो। जाएंगे। अब तुम खुश हो जाओ और तब के लिए जल्दी से मुझे गुड बॉय बोलो।"
बालों की आवारा लट फिर उसके माथे को चूमने लगी थी, जिसे इस बार उसने फूंक मारने के बजाय नफासत से अपनी
पतली अंगुलियों द्वारा दुरुस्त किया और उसकी ओर एक दिलकश मुस्कान उछालकर वहां से चली गई।
अजय बुत की तरह खड़ा कितनी ही देर उसे देखता रह गया। वह जितनी शोख थी, उतनी ही बेबाक भी थी जितनी शरारती
थी,
उतनी ही संजीदा भी थी। उसके व्यक्तित्व में अनछुई थीं। उसकी हर अदा दीवाना बना देने वाली थी। क्योंकि कहानी तो सचमुच ही लिखी थी और उन दोनों को उस कहानी का किरदार बनकर सिलसिला भी शुरू करना था, लिहाजा फिर इत्तेफाक हुआ था और एक बार फिर वह कयामत उससे टकराई थी। उस रोज जबकि ………..
एकाएक फ्लैट की कॉलबेल जोर से बजी और अजय की विचारशृंखला एकाएक किरचे-किरचे हो गई।
उसके जेहन को जोर का झटका लगा और वह अतीत की एक छोटी सी दौड़ लगाकर अपने वर्तमान में वापस आ गया।
मूसलाधार बारिश तो कब की थम चुकी थी मगर जिसका उसे पता ही न चला था। काले बादलों के झुंड छंट गए थे और आसमान साफ हो गया था। लेकिन ठंडी हवाओं के झोंके निरंतर चल रहे थे, जिसने उसके तर-बतर कपड़ों को किसी हद तक सुखा दिया था।
कॉलबेल फिर बजी थी। उसके होठों से आह निकल गई।
जीवन के वह लम्हे ही तो उसकी मुकम्मल जिंदगी का अहसास था, जबकि आलोका का उस हसीना का उसमें दखल हुआ था। अगर उन लम्हों को उसकी जिंदगी से निकाल दिया जाए तो कुछ भी तो नहीं बचता था उसकी वीरान जिंदगी में।
तकदीर सब कुछ छीनती ही तो आई थी आज तक उससे।
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आखिरकार आलोका भी कहां बची थी उसके पास । नियति के क्रूर पंजों ने उसे भी बड़ी बेरहमी के साथ उससे छीन लिया था और वह कुछ नहीं कर सका था कुछ भी तो नहीं।
इस दरम्यान कॉलबेल एक बार फिर बजी थी।
उसने अपने सिर को झटका। उसके साथ ही अतीत की यादें धुंधलाती चली गईं। वह ईजीचेयर से उठ खड़ा हुआ। उसने जाकर दरवाजा खोला और आगंतुक को देखते ही वह आहिस्ता से चौंक पड़ा और आंखें फाड़कर सामने खड़े शख्स को देखने लगा, जिसकी कि उस वक्त वहां मौजूदगी की उसे जरा सी भी उम्मीद नहीं थी।
"हल्लो बिरादर।” सहगल ने संदीप को इस्तकबाल किया "कैसे हो?"
प्रत्युत्तर में संदीप मुस्कराया। एक भेदभरी मुस्कराहट थी वह।
"देख ही रहे हो?" फिर वह बोला “एकदम चंगा हूं। तुम अपनी सुनाओ। जेल से बाहर कब आए।"
"समझ लो कि बस आता ही जा रहा हूं।"
"समझ लिया। मगर मुझसे मिलने का यह कौन सा तरीका निकाला है तुमने? मेरी कार ठीक करवाने के लिए अब मुझे यहां मैकेनिक बुलाना पड़ेगा।”
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“मेरा ड्राइवर मैकेनिक भी है। यह उसी का काम है। वही ठीक भी कर देगा।”
“ओह। लेकिन वह तो कहीं नजर नहीं आ रहा?" “जब उसकी जरूरत होगा तो नजर आने लगेगा।"
“समझा। पूछने की जरूरत तो नहीं है, फिर भी पूछ रहा हूं। बहरहाल मेरे फादर इन लॉ के मुलाजिम तो खैर अब तुम क्या होगे?"
सहगल ने दांत किटकिटाए।
उसके मुंह से जानकी लाल के लिए एक भद्दी सी गाली निकली। “बहुत अच्छे ।” संदीप हंसा, फिर बोला “मेरे ही मुंह पर मेरे ग्रेट फादर इन लॉ को गाली दे रहे हो? मेरी नाराजगी का जरा सा भी खौफ नहीं है तुम्हें।”
“दाई से पेट छुपा रहे हो बंधु। मुझे क्या मालूम नहीं है कि वह तुम्हारा कैसा ग्रेट फादर इन लॉ है।” 'ग्रेट' शब्द पर उसने खास जोर दिया था।
संदीप फिर हंसा वही कुटिल हंसी!
“वह तो बहुत ही मजबूत शिंकजा कसा था तुमने उसकी लाड़ली पर, नहीं तो जीवनभर उसका सौतेला दामाद ही बनकर संतोष करना पड़ता।"
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“उसमें भी कोई बुराई नहीं थी। उसकी सौतेली बेटी के पास भी कम पैसा नहीं है और खूबसूरती में वह रीनी से कम नहीं
“जानता हूं। और यह भी जानता हूं कि वह पैसा भी जानकी लाल सेठ का ही है। तुम्हारी भूतपूर्व बीवी की मां ने उसके लिए एक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी और अपनी बेटी को उसका हक दिलाया था।"
"हूं। लेकिन रीनी की बात और है।"
"होनी भी चाहिए। आखिर वह अरबपति बाप की बेटी है।
“कंगला तो मैं भी नहीं हूं।"
“नहीं हो तो हो जाओगे। बहुत जल्दी।”
"क्या?"
“दाई से कहीं पेट छुपता है। मैं क्या तुम्हारे बाप की खस्ता हालत से अंजान हूं। उसका रोम-रोम कर्ज में डूबा पड़ा है। दिवालियेपन की कगार पर खड़ा है। जिस दिन उसका दिवाला पिटा, कर्जदार अंगुलियों के नाखून भी नोंच ले जाएंगे। तुम्हारे
सामने बस, फॉदर इन लॉ ही आखिरी उम्मीद है।"
संदीप ने फिर संजीदगी से हुंकार भरी। उसने अपने होंठ भींच लिए। “सॉरी बंधु, थोड़ा गलत कह गया।” सहगल ने संशोधन लगाया “तुम्हारे सामने तुम्हारे ग्रेट फादर इन लॉ की मौत ही आखिरी उम्मीद है।”
“म..मौत क्यों? उसकी जिंदगी में क्या मेरे लिए कोई उम्मीद नहीं है? क्या अभी ही मैं उसकी बेशुमार दौलत और सम्पत्ति का वारिस नहीं हूं?"
“अगर होते तो क्या उसकी मौत का सामान करते।"
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“म...मैंने उसकी मौत का सामान नहीं किया?” वह तीखे स्वर में बोला।
"मैं अभी की बात नहीं कर रहा? अभी तो जो कुछ हुआ वह मुझे मालूम है कि किसका कारनामा है। मैं इससे पहले की बात कर रहा हूं। इससे पहले भी जानकी लाल सेठ का राम नाम सत करने की दो कोशिशें हो चुकी हैं। मेरा इशारा उस दूसरी कोशिश की तरफ था, जो तुमने की थी उसकी कार के ब्रेक फेल कराकर ।”
संदीप हकबकाया। उसने सख्त हैरानी से उसे देखा।
सहगल के होंठों पर कुटिल मुस्कराहट उभरी।
“वि...विश्वास नहीं होता।" संदीप अविश्वास से आंखें फैलाकर बोला।
"क्या ?"
“यही कि तुम सात साल के बाद जेल से बाहर आए हो?"
“पिंजरे में बंद कर देने से शेर कुत्ता नहीं बन जाता, न ही वह दुम हिलाना सीख जाता है। वह हमेशा शेर ही रहता है।"
संदीप बेचैन नजर आने लगा था।
“घबराओ मत बिरादर।” सहगल उसके मनोभावों को पढ़ता बोला “यह राज केवल मुझ तक ही रहेगा। मैं पुलिस को नहीं बताने वाला तुम्हारे...।” उसके लहजे में व्यंग सहसा उभरा और वह संदीप को आश्वस्त करता हुआ बोला।
संदीप आश्वस्त न हुआ।
"दोस्तों पर भरोसा करना सीखो बिरादर।” सहगल बोला “और कबूल करो कि अपने फादर इन लॉ के जीते जी तुम उसके वारिस नहीं हो, न हो सकते हो। तुम केवल रीनी के पति हो और वही रहने वाले हो। बल्कि वह भी नहीं रहने वाले। जानकी लाल सेठ उसका भी कोई मुनासिब रास्ता ढूंढ ही लेगा। सच पूछो तो ढूंढकर ही रहेगा। यह तुम जानते हो इसलिए तुमने उसे रास्ते से हटाने की कोशिश की थी।"
बालों की आवारा लट फिर उसके माथे को चूमने लगी थी, जिसे इस बार उसने फूंक मारने के बजाय नफासत से अपनी
पतली अंगुलियों द्वारा दुरुस्त किया और उसकी ओर एक दिलकश मुस्कान उछालकर वहां से चली गई।
अजय बुत की तरह खड़ा कितनी ही देर उसे देखता रह गया। वह जितनी शोख थी, उतनी ही बेबाक भी थी जितनी शरारती
थी,
उतनी ही संजीदा भी थी। उसके व्यक्तित्व में अनछुई थीं। उसकी हर अदा दीवाना बना देने वाली थी। क्योंकि कहानी तो सचमुच ही लिखी थी और उन दोनों को उस कहानी का किरदार बनकर सिलसिला भी शुरू करना था, लिहाजा फिर इत्तेफाक हुआ था और एक बार फिर वह कयामत उससे टकराई थी। उस रोज जबकि ………..
एकाएक फ्लैट की कॉलबेल जोर से बजी और अजय की विचारशृंखला एकाएक किरचे-किरचे हो गई।
उसके जेहन को जोर का झटका लगा और वह अतीत की एक छोटी सी दौड़ लगाकर अपने वर्तमान में वापस आ गया।
मूसलाधार बारिश तो कब की थम चुकी थी मगर जिसका उसे पता ही न चला था। काले बादलों के झुंड छंट गए थे और आसमान साफ हो गया था। लेकिन ठंडी हवाओं के झोंके निरंतर चल रहे थे, जिसने उसके तर-बतर कपड़ों को किसी हद तक सुखा दिया था।
कॉलबेल फिर बजी थी। उसके होठों से आह निकल गई।
जीवन के वह लम्हे ही तो उसकी मुकम्मल जिंदगी का अहसास था, जबकि आलोका का उस हसीना का उसमें दखल हुआ था। अगर उन लम्हों को उसकी जिंदगी से निकाल दिया जाए तो कुछ भी तो नहीं बचता था उसकी वीरान जिंदगी में।
तकदीर सब कुछ छीनती ही तो आई थी आज तक उससे।
RSS (RAJSHARMASTORIES.COM )
आखिरकार आलोका भी कहां बची थी उसके पास । नियति के क्रूर पंजों ने उसे भी बड़ी बेरहमी के साथ उससे छीन लिया था और वह कुछ नहीं कर सका था कुछ भी तो नहीं।
इस दरम्यान कॉलबेल एक बार फिर बजी थी।
उसने अपने सिर को झटका। उसके साथ ही अतीत की यादें धुंधलाती चली गईं। वह ईजीचेयर से उठ खड़ा हुआ। उसने जाकर दरवाजा खोला और आगंतुक को देखते ही वह आहिस्ता से चौंक पड़ा और आंखें फाड़कर सामने खड़े शख्स को देखने लगा, जिसकी कि उस वक्त वहां मौजूदगी की उसे जरा सी भी उम्मीद नहीं थी।
"हल्लो बिरादर।” सहगल ने संदीप को इस्तकबाल किया "कैसे हो?"
प्रत्युत्तर में संदीप मुस्कराया। एक भेदभरी मुस्कराहट थी वह।
"देख ही रहे हो?" फिर वह बोला “एकदम चंगा हूं। तुम अपनी सुनाओ। जेल से बाहर कब आए।"
"समझ लो कि बस आता ही जा रहा हूं।"
"समझ लिया। मगर मुझसे मिलने का यह कौन सा तरीका निकाला है तुमने? मेरी कार ठीक करवाने के लिए अब मुझे यहां मैकेनिक बुलाना पड़ेगा।”
2
RSS (RAJSHARMASTORIES.COM ).
“मेरा ड्राइवर मैकेनिक भी है। यह उसी का काम है। वही ठीक भी कर देगा।”
“ओह। लेकिन वह तो कहीं नजर नहीं आ रहा?" “जब उसकी जरूरत होगा तो नजर आने लगेगा।"
“समझा। पूछने की जरूरत तो नहीं है, फिर भी पूछ रहा हूं। बहरहाल मेरे फादर इन लॉ के मुलाजिम तो खैर अब तुम क्या होगे?"
सहगल ने दांत किटकिटाए।
उसके मुंह से जानकी लाल के लिए एक भद्दी सी गाली निकली। “बहुत अच्छे ।” संदीप हंसा, फिर बोला “मेरे ही मुंह पर मेरे ग्रेट फादर इन लॉ को गाली दे रहे हो? मेरी नाराजगी का जरा सा भी खौफ नहीं है तुम्हें।”
“दाई से पेट छुपा रहे हो बंधु। मुझे क्या मालूम नहीं है कि वह तुम्हारा कैसा ग्रेट फादर इन लॉ है।” 'ग्रेट' शब्द पर उसने खास जोर दिया था।
संदीप फिर हंसा वही कुटिल हंसी!
“वह तो बहुत ही मजबूत शिंकजा कसा था तुमने उसकी लाड़ली पर, नहीं तो जीवनभर उसका सौतेला दामाद ही बनकर संतोष करना पड़ता।"
RSS (RAJSHARMASTORIES.COM )
“उसमें भी कोई बुराई नहीं थी। उसकी सौतेली बेटी के पास भी कम पैसा नहीं है और खूबसूरती में वह रीनी से कम नहीं
“जानता हूं। और यह भी जानता हूं कि वह पैसा भी जानकी लाल सेठ का ही है। तुम्हारी भूतपूर्व बीवी की मां ने उसके लिए एक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी और अपनी बेटी को उसका हक दिलाया था।"
"हूं। लेकिन रीनी की बात और है।"
"होनी भी चाहिए। आखिर वह अरबपति बाप की बेटी है।
“कंगला तो मैं भी नहीं हूं।"
“नहीं हो तो हो जाओगे। बहुत जल्दी।”
"क्या?"
“दाई से कहीं पेट छुपता है। मैं क्या तुम्हारे बाप की खस्ता हालत से अंजान हूं। उसका रोम-रोम कर्ज में डूबा पड़ा है। दिवालियेपन की कगार पर खड़ा है। जिस दिन उसका दिवाला पिटा, कर्जदार अंगुलियों के नाखून भी नोंच ले जाएंगे। तुम्हारे
सामने बस, फॉदर इन लॉ ही आखिरी उम्मीद है।"
संदीप ने फिर संजीदगी से हुंकार भरी। उसने अपने होंठ भींच लिए। “सॉरी बंधु, थोड़ा गलत कह गया।” सहगल ने संशोधन लगाया “तुम्हारे सामने तुम्हारे ग्रेट फादर इन लॉ की मौत ही आखिरी उम्मीद है।”
“म..मौत क्यों? उसकी जिंदगी में क्या मेरे लिए कोई उम्मीद नहीं है? क्या अभी ही मैं उसकी बेशुमार दौलत और सम्पत्ति का वारिस नहीं हूं?"
“अगर होते तो क्या उसकी मौत का सामान करते।"
RSS (RAJSHARMASTORIES.COM )
“म...मैंने उसकी मौत का सामान नहीं किया?” वह तीखे स्वर में बोला।
"मैं अभी की बात नहीं कर रहा? अभी तो जो कुछ हुआ वह मुझे मालूम है कि किसका कारनामा है। मैं इससे पहले की बात कर रहा हूं। इससे पहले भी जानकी लाल सेठ का राम नाम सत करने की दो कोशिशें हो चुकी हैं। मेरा इशारा उस दूसरी कोशिश की तरफ था, जो तुमने की थी उसकी कार के ब्रेक फेल कराकर ।”
संदीप हकबकाया। उसने सख्त हैरानी से उसे देखा।
सहगल के होंठों पर कुटिल मुस्कराहट उभरी।
“वि...विश्वास नहीं होता।" संदीप अविश्वास से आंखें फैलाकर बोला।
"क्या ?"
“यही कि तुम सात साल के बाद जेल से बाहर आए हो?"
“पिंजरे में बंद कर देने से शेर कुत्ता नहीं बन जाता, न ही वह दुम हिलाना सीख जाता है। वह हमेशा शेर ही रहता है।"
संदीप बेचैन नजर आने लगा था।
“घबराओ मत बिरादर।” सहगल उसके मनोभावों को पढ़ता बोला “यह राज केवल मुझ तक ही रहेगा। मैं पुलिस को नहीं बताने वाला तुम्हारे...।” उसके लहजे में व्यंग सहसा उभरा और वह संदीप को आश्वस्त करता हुआ बोला।
संदीप आश्वस्त न हुआ।
"दोस्तों पर भरोसा करना सीखो बिरादर।” सहगल बोला “और कबूल करो कि अपने फादर इन लॉ के जीते जी तुम उसके वारिस नहीं हो, न हो सकते हो। तुम केवल रीनी के पति हो और वही रहने वाले हो। बल्कि वह भी नहीं रहने वाले। जानकी लाल सेठ उसका भी कोई मुनासिब रास्ता ढूंढ ही लेगा। सच पूछो तो ढूंढकर ही रहेगा। यह तुम जानते हो इसलिए तुमने उसे रास्ते से हटाने की कोशिश की थी।"