desiaks
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मैं आज्ञाकारी बच्चे की तरह औंधा लेट गया।
उसने तेल लेकर मेरी पूरी पीठ गर्दन पर फैला दिया और पहले अपने नरम नरम हाथों से मेरी पीठ रगड़ती रही फिर मेरी गर्दन चूमते हुए… मेरे पेट के दोनों तरफ फैले अपने घुटनों पर भार रखते हुए, मेरी पीठ पर इस तरह झुक गई कि उसके मम्मे पीठ से रगड़ने लगे।
अब वह अपने तेल से चिकनाए वक्षों को सख्ती से मेरी पूरी पीठ पर रगड़ने लगी।
यह नरम नरम छुअन मेरे लिंग को कड़ा करने लगी।
वह अपने वक्षों को रगड़ती नीचे जाती, ऊपर आती, दाएं जाती, बाएं जाती और ऐसी ही अवस्था में नीचे खिसकते हुए मेरे घुटनों तक पहुँच गई और अपने वक्षों से ही मेरे कूल्हों को रगड़ने मसलने लगी।
फिर दोनों हाथों से मुट्ठियों में मेरे चूतड़ों को मसलती रगड़ती मेरे जुड़े हुए पैरों पर घुटनों के पीछे अपने पेट के निचले सिरे, यानि उस हिस्से को जहाँ उसकी गीली होकर बह रही योनि थी और तेल से नहाया गुदाद्वार था, रगड़ने लगी।
वहाँ से उठती भाप जैसे मैं अपने पैरों पर महसूस कर सकता था।
दोनों कूल्हों को मसलती कहीं वह उन्हें एक दूसरे से मिला देती तो कहीं एकदूसरे के समानांतर फैला देती और यूँ मेरे गुदाद्वार को अपने सामने नुमाया कर लेती।
फिर उसने वहाँ भी तेल टपकाया और मेरे छेद को उंगली से सहलाने लगी।
मेरे दिमाग पर नशा सा छा रहा था।
भले मैं ‘गे’ नहीं था लेकिन यह ऐसी संवेदनशील जगह थी जहाँ इस तरह की छुअन आपको उत्तेजित ही कर देती है, भले करने वाला पुरुष हो या औरत।
और जैसा कि मैं उम्मीद कर रहा था उसने सहलाते सहलाते अपनी उंगली अंदर उतार दी।
मुझे भी वैसा ही मज़ा आया जैसा उसने महसूस किया होगा और मेरी भी ‘आह’ छूट गई जिसे सुन कर वह हंसने लगी- क्या तुम्हें भी मज़ा आता है यहाँ?
उसने शरारत भरे अंदाज़ में पूछा।
‘किसे नहीं आता? मगर मर्द के दिमाग में बचपन से यह बात पारम्परिक मान्यता की तरह ठूंस दी जाती है कि यह गलत है और मर्द होकर मर्द से करना तो बिल्कुल गलत है इसलिए सामान्य मर्द इस हिस्से के मज़े से बेहिस बने रहते हैं, जो इस वर्जना को तोड़ देते हैं वह भले मज़ा हासिल करने में कामयाब रहते हो लेकिन ‘गे’ के रूप में समाज में अपमानित भी होते हैं।’
फिर वह बड़ी लगन और दिलचस्पी से उंगली अंदर बाहर करने में लग गई और मैं आँखें बंद करके उस मज़े पर कन्सन्ट्रेट करने लगा जो मुझे अपने जिस्म के उस हिस्से से मिल रहा था जो मेरे संस्कारों के हिसाब से इस क्रिया के लिये वर्जित था।
फिर उसने उंगली हटा ली और मेरे कूल्हों को छोड़ कर परे हटी और मुझे पलट कर सीधा कर लिया।
अब वह अपनी दोनों टांगें मेरे इधर उधर रखे मेरे पेट पर बैठ गई… उसकी गर्म, रस और भाप छोड़ती योनि और तेल से चिकना हुआ गुदाद्वार मेरे पेट से रगड़ता उसे गीला करने लगा और वह मेरे कन्धों और सीने की मालिश करने लगी।
इस घड़ी उसके चेहरे पर शरारत थी और आँखों में मस्ती…
मसाज करते करते वह पीछे खिसकी और वहाँ पहुँच गई जहाँ लकड़ी की तरह तना मेरा लिंग मौजूद था जो अब उसकी दरार की गर्माहट को अपने ऊपर महसूस कर रहा था।
फिर गौसिया मेरे सीने पे ऐसे झुकी कि उसके दूध मेरे पेट के ऊपरी हिस्से से रगड़ खाने लगे और उसने जीभ निकाल कर मेरे छोटे से निप्पल को चाटा, मेरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई।
वह हंस पड़ी।
‘मतलब आदमी को भी वही संवेदनाएं होती हैं।’
‘कुछ हद तक… वैसी सहरंगेज नहीं पर होती हैं।’
फिर वह अपनी ज़ुबान से मेरे दोनों तरफ के निप्पल छेड़ने चुभलाने लगी।
नीचे उसकी गीली दरार मेरे पप्पू को बुरी तरह भड़का रही थी।
फिर उसने खुद से अपने चूतड़ों को इस तरह सेट किया कि मेरे लिंग की नोक उसके पीछे वाले छेद से सट गई और अपना एक हाथ पीछे ले जा कर वह लिंग को पकड़ कर अंदर घुसाने की कोशिश करने लगी।
अगर यह कोशिश शुरू में की होती तो अंदर होने में थोड़ी मुश्किल आती भी लेकिन अब तक तो हम कामोत्तेजना से ऐसे तप चुके थे कि मेरा लिंग लकड़ी बन चुका था और उसका छेद खुद से गीला होकर ढीला हो गया था।
थोड़ी कसाकसी के साथ वह गर्म गड्ढे में उतर गया।
एक आह सी उसके मुंह से ख़ारिज हुई और उसने मेरे निप्पल से मुंह हटा लिया और कुछ ऊपर होकर मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कराने लगी।
‘इस तरह आगे पीछे होना तो ध्यान रखना कहीं आगे ही न घुस जाए।’
‘नहीं घुसने दूँगी और घुस भी गया तो देखा जायेगा।’
हम दोनों के शरीर तेल से चिकने हुए पड़े थे… वह मेरे पेट से सीने तक अपने दूध रगड़ते आगे हुई तो लिंग धीरे धीरे सरकता हुआ बाहर हो गया।
फिर उसी तरह वह वापस नीचे खिसकी और यह चाहा कि लिंग खुद छेद में घुस जाए लेकिन इस तरह योनि में तो घुस सकता है मगर गुदा में नहीं।
उसे फिर हाथ की मदद लेनी पड़ी।
वह बार बार ऐसे ही मेरे फ्रंट से अपना फ्रंट रगड़ती आगे पीछे होती लिंग को बाहर और हाथ के सपोर्ट से अंदर करती रही, इस तरह उसकी योनि का ऊपरी सिरा भी मेरे पेट के निचले सिरे से घर्षण का मज़ा पा रहा था और उसके आनन्द को दोगुना कर रहा था।
लेकिन यह स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं थी और जब लगा कि अब कुछ चेंज होना चाहिए तो सीधे होकर मेरे ऊपर इस तरह बैठ गई कि लिंग उसके छेद के अंदर ही रहा और अपने हाथ मेरे सीने से टिका कर अपने कूल्हों या कहो कि कमर को इस तरह राउंड घुमाने लगी जैसे बैले डांस में घुमाते हैं।
लिंग चरों तरफ मूव करते उसके छेद के साथ अंदर बाहर सरक रहा था और दोनों की उत्तेजना को अपने शिखर की तरफ ले जा रहा था।
‘मार्वलस! तुम तो सीख गई… ग़ज़ब हो यार!’ आज बड़बड़ाने की बारी मेरी थी।
कुछ झटकों के बाद वह रुक जाती और एक ही पोजीशन में बैठे बैठे ऐसे हिलती जैसे ऊँट की सवारी कर रही हो।
इस तरह लिंग तो अंदर बाहर न होता जिससे मुझे आराम था लेकिन उसकी योनि मेरे लिंग के ऊपर के तीन दिन के बालों से जो रगड़ खाती वह उसे ज़रूर मस्त कर देती।
फिर मेरे आराम के पल पूरे हुए और उसने थकन के आसार दिखाये लेकिन उठी फिर भी नहीं, बस लिंग के ऊपर बैठे बैठे इस तरह घूम गई कि लिंग एक ही पोजीशन में रहा और उस पर चढ़ा छल्ला घूम गया।
उसके सीने के बजाय अब उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई और उसने थोड़ा पीछे होते हुए मेरे सीने पर अपने पंजे टिकाये और अपने चूतड़ों को इतना ऊपर उठा लिया कि नीचे से मैं धक्के लगा सकूँ।
उसकी मनोस्थिति मैं समझ सकता था… मैंने सहारे के लिए उसके दोनों कूल्हों के नीचे अपनी हथेलियाँ लगा लीं और फिर अपनी कमर के जोर से धीरे धीरे धक्के लगाने लगा।
उसकी कामुक सीत्कारें कमरे में गूंजती तेज़ होने लगीं।
बीच में कभी इस हाथ से कभी उस हाथ से वह अपनी क्लिटरिस भी सहलाने लगती जिससे उसे चरम पर पहुँचने में देर नहीं लगी।
‘जोर जोर से करो… हार्डर हार्डर…’ वह तेज़ होती साँसों के बीच बड़बड़ाई।
मैंने धक्कों की स्पीड तेज़ कर दी और जितनी मुझमें क्षमता थी मैं तेज़ और जोर से धक्के लगाने लगा।
कमरे में ‘थप-थप’ की संगीतमय आवाज़ गूंजने लगी।
और जब वह स्खलन के जोर में अकड़ी तभी मेरे लिंग ने भी लावा छोड़ दिया और वह एकदम मेरे सीने पर फैल गई और एक हाथ से चादर तो दूसरे हाथ से मेरी बांह दबोच ली…
जबकि मैंने स्खलन के क्षणों में दोनों हाथों से उसके पेट को दबोच लिया था।
तूफ़ान गुज़र गया… दिमाग की सनसनाहट काबू में आई तो हम अलग हुए और थोड़ी देर में हम बिस्तर के सरहाने टिके साँसें नियंत्रित कर रहे थे।
‘हर दिन एक नया मज़ा… शायद यही तो चाहती थी मेरे अंदर की मिस हाइड!’ उसने खुद से एक सिगरेट सुलगा ली और कश लेकर धुआं छोड़ती हुई बोली- लेकिन एक बात कहूँ… यह ठीक है कि मैं हर रोज़ बेशर्म होती जा रही हूँ लेकिन एक डर भी दिल में समां रहा है कि कभी ये बातें लीक हो गईं तो… किसी को पता चल गया तो?’
‘कैसे?’
‘पता नहीं… मैं तो बताने से रही। शायद तुमसे… मुझसे वादा करो कि कभी तुम यह सब किसी को बताओगे नहीं।’
‘नहीं… मैं यह वादा नहीं कर सकता कि बताऊँगा नहीं, पर यह वादा कर सकता हूँ कि तुम्हारी आइडेंटिटी डिस्क्लोज नहीं करूँगा।’
‘और बताओगे किसे?’
‘कह नहीं सकता। हो सकता है न ही बताऊँ पर वादा करने की हालत में नहीं क्योंकि मैं खुद को जानता हूँ। खैर छोड़ो- अगर तुम्हारी एम एम ऍफ़ की ख्वाहिश हो तो कहो वह भी पूरी कर दूँ।’
‘मतलब?’
‘मतलब दो लड़के और एक लड़की… मतलब कोई और लड़का भी हमारे साथ?’
‘नहीं, अब मेरे अंदर की मिस हाइड इतनी बेलगाम भी नहीं हुई और वैसे भी उसका मज़ा तब आएगा जब एक आगे करे एक पीछे और यहाँ आगे कुछ होना नहीं। ऐसे नाज़ुक वक़्त में सँभलने की उम्मीद मैं तुमसे कर सकती हूँ किसी और से नहीं, चलो पैग बनाओ।’
बोतल में अब इतनी ही बची थी कि एक बड़ा पैग बन सकता।
मैंने पैग तो बनाया पर पिया अलग ढंग से… मैं घूँट लेता, थोड़ी अपने गले में उतारता और थोड़ी उसके मुंह से मुंह जोड़ कर उसमें उगल देता जिसे वह गटक जाती और दूसरा घूँट वह लेती और उसी तरह मुझे पिलाती।
साथ ही मोबाइल भी हाथ में ले लिया और कुछ मज़ेदार पोर्न देखने लगे।
थोड़ी देर बाद जब फिर गर्म हुए तो फिर तेलियाए हुए जिस्मों के साथ शुरू हो गए, खेलने वाला एक लम्बा सिलसिला फिर चला और अंत वही हुआ जो ऐसी हालत में होता है।
आज दो बार में ही उसका दम भी निकल गया और फिर मुझे वहाँ से रुखसत होना पड़ा।
अगले दिन शुक्रवार था और आज भी उसकी क्लास थी जिससे वह साढ़े बारह बजे फारिग हुई। मैंने उसे यूनिवर्सिटी से पिक किया और पहले ही साहू के पीछे जाकर पेट पूजा कर ली।
उसके बाद नरही की तरफ चले आये और बाकी का दिन चिड़ियाघर में घूमते फिरते, बकैती करते, मस्ती करते गुज़ारा और छः बजे मैंने उसे यूनिवर्सिटी के पास ही छोड़ दिया जहाँ से वह अपने रास्ते चली गई और मैं अपने रास्ते।
रात को मुझे फिर ड्रिंक और स्मोकिंग के इंतज़ाम के साथ पहुंचना पड़ा।
‘आज कुछ नया फीचर बचा हो तो वह भी अपलोड कर दो मिस हाइड की हार्ड डिस्क में।’ वह आँखें चमकाती हुई बोली।
‘आज हम बाथरूम सेक्स करेंगे, साथ में नहाते हुए!’
‘वॉव।’ उसने खुश होकर मुट्ठियां भींची।
पहले हमने स्मोकिंग और ड्रिंक का मज़ा लिया फिर कपड़े उतार कर वो पोर्न मसाला देखने बैठ गए जो बाथरूम सेक्स से जुड़ा था। इसके बाद जब जिस्म में हरारत पैदा होने लगी तो एक दूसरे को बिस्तर पर ही रगड़ना शुरू कर दिया और अच्छे खासे मस्त हो चुके तो बाथरूम में घुसे।
बाथरूम में लगे शीशे को हमने ऐसे एडजस्ट कर लिया कि हम खुद को अपनी हरकतों के दौरान देखते रह सकें और शावर चला दिया। आज यह तय हुआ था कि वह पीछे से सेक्स कराते कराते स्क्वर्टिंग करेगी।
फिर हमने वैसा ही किया।
जी भर के पानी में भीगते हुए मैंने उसकी योनि ही नहीं, गुदा के छेद को भी चूसा चाटा, खूब खींच खींच कर दूध पिये और खड़े बैठे ही नहीं लेटे वाले आसन में भी जी भर से उसे पीछे से फक किया।
उसने भी हर आसन को खूब एन्जॉय किया, अच्छे से लिंग चूषण किया और खूब स्क्वर्टिंग भी की… तीन बार तो मैंने छोटी छोटी फुहारें अपने मुंह में झेलीं।
साथ ही हम खुद को शीशे में देखते उत्तेजित होते रहे थे।
मुझे इस बीच टाइम का एक्सटेंशन इसलिए मिल गया था कि बार बार पानी में भीगने के कारण लिंग की गर्माहट कम हो जाती थी और मुझे यह डर नहीं रहता था कि मैं जल्दी डिस्चार्ज हो जाऊंगा।
आज उसने एक बाधा और पार की… वह भी इसलिए कि हम पानी में थे। जिस वक़्त उसका पानी निकला, मैं स्खलित होने से बच गया था और जब मैं स्खलित होने को हुआ तो उस वक़्त हम बाथरूम के टाइल पर लोट रहे थे…
मैंने मौके का फायदा उठाते हुए, झड़ने से पहले लिंग हाथ में पकड़ा और उसके चेहरे के सामने ले आया। करीब था कि मेरी मंशा समझ कर वह इंकार करके चेहरा घुमा लेती कि मेरी बेचारगी और इच्छा देख कर उम्मीद के खिलाफ उसने मुंह खोल दिया।
मन में यह ज़रूर रहा होगा कि शावर से गिरती पानी की फुहार उसके मुंह को फ़ौरन धो देगी।
वीर्य की जो पिचकारी छूटी उसमें थोड़ी उसकी नाक, आँख और गाल पे गई मगर ज्यादातर उसके खुले मुंह में गई।
मैं आखिरी वाली छोटी पिचकारी के निकल जाने के बाद दीवार से टिक कर पड़ गया और वह मुंह बंद करके उस चीज़ के ज़ायके को महसूस करने लगी जो उसके मुंह में था।
फिर उसने ‘पुच’ करके उसे उगल दिया और फुहार के नीचे मुंह करके पानी से अंदर का मुंह धोने लगी।
मुंह साफ़ हो गया तो उसने शावर बंद कर दिया।
थोड़ी देर बाद सामान्य हुए तो नए सिरे से तैयार होने के लिए बाहर आ गए।
‘अजीब सा टेस्ट लगा, न अच्छा न बुरा!’
‘चार छः बार मुंह में ले लो, न अच्छा लगने लगे तो कहना।’
‘चलो ठीक है, तुम्हारी यह ख्वाहिश भी पूरी कर देती हूँ। अब से परसों तक जितनी बार भी निकालना मेरे मुंह में ही निकालना। मिस हाइड उस घिन से लड़ने और जीतने की कोशिश करेगी जो कल तक सोचने से भी आती थी।’
फिर एक बार स्मोकिंग, ड्रिंक और पोर्न का दौर चला और फिर जब हम गर्म हुए तो बाथरूम चले आये और शावर खोल कर उसके नीचे वासना का नंगा नाच नाचने लगे।
अब चूँकि मेरे दिमाग में यह था कि उसके मुंह में निकालना है तो उससे मेरा ध्यान बंट गया और आधे घंटे की धींगामुश्ती के बाद जब वह स्खलित हो कर मेरे लिंग के सामने अपना मुंह खोल कर बैठी भी तो मेरा वीर्य फ़ौरन नहीं निकला बल्कि उसे हाथ से घर्षण करते हुए निकालना पड़ा।
इस बार भी थोड़ा गाल पर तो बाकी मुंह में गया, जिसे थोड़ी देर मुंह में रख के उसने उगल दिया और पानी से मुंह साफ़ करने लगी।
अब शायद टंकी में पानी कम हो गया था जिससे टोंटी खोखियाने लगी थी और रात के इस वक़्त तो मोटर चलाई नहीं जा सकती थी जबकि सुबह फजिर में उठने पर दादा दादी को पानी चाहिए होगा।
यह सोच कर हमने अपने प्रोग्राम को वही ख़त्म किया और बाहर आ गए।
इसके बाद थोड़ी देर बिस्तर पर रगड़ घिस करते हुए चादर की मां बहन एक की और फिर वहां से निकल कर अपनी राह ली।
उसने तेल लेकर मेरी पूरी पीठ गर्दन पर फैला दिया और पहले अपने नरम नरम हाथों से मेरी पीठ रगड़ती रही फिर मेरी गर्दन चूमते हुए… मेरे पेट के दोनों तरफ फैले अपने घुटनों पर भार रखते हुए, मेरी पीठ पर इस तरह झुक गई कि उसके मम्मे पीठ से रगड़ने लगे।
अब वह अपने तेल से चिकनाए वक्षों को सख्ती से मेरी पूरी पीठ पर रगड़ने लगी।
यह नरम नरम छुअन मेरे लिंग को कड़ा करने लगी।
वह अपने वक्षों को रगड़ती नीचे जाती, ऊपर आती, दाएं जाती, बाएं जाती और ऐसी ही अवस्था में नीचे खिसकते हुए मेरे घुटनों तक पहुँच गई और अपने वक्षों से ही मेरे कूल्हों को रगड़ने मसलने लगी।
फिर दोनों हाथों से मुट्ठियों में मेरे चूतड़ों को मसलती रगड़ती मेरे जुड़े हुए पैरों पर घुटनों के पीछे अपने पेट के निचले सिरे, यानि उस हिस्से को जहाँ उसकी गीली होकर बह रही योनि थी और तेल से नहाया गुदाद्वार था, रगड़ने लगी।
वहाँ से उठती भाप जैसे मैं अपने पैरों पर महसूस कर सकता था।
दोनों कूल्हों को मसलती कहीं वह उन्हें एक दूसरे से मिला देती तो कहीं एकदूसरे के समानांतर फैला देती और यूँ मेरे गुदाद्वार को अपने सामने नुमाया कर लेती।
फिर उसने वहाँ भी तेल टपकाया और मेरे छेद को उंगली से सहलाने लगी।
मेरे दिमाग पर नशा सा छा रहा था।
भले मैं ‘गे’ नहीं था लेकिन यह ऐसी संवेदनशील जगह थी जहाँ इस तरह की छुअन आपको उत्तेजित ही कर देती है, भले करने वाला पुरुष हो या औरत।
और जैसा कि मैं उम्मीद कर रहा था उसने सहलाते सहलाते अपनी उंगली अंदर उतार दी।
मुझे भी वैसा ही मज़ा आया जैसा उसने महसूस किया होगा और मेरी भी ‘आह’ छूट गई जिसे सुन कर वह हंसने लगी- क्या तुम्हें भी मज़ा आता है यहाँ?
उसने शरारत भरे अंदाज़ में पूछा।
‘किसे नहीं आता? मगर मर्द के दिमाग में बचपन से यह बात पारम्परिक मान्यता की तरह ठूंस दी जाती है कि यह गलत है और मर्द होकर मर्द से करना तो बिल्कुल गलत है इसलिए सामान्य मर्द इस हिस्से के मज़े से बेहिस बने रहते हैं, जो इस वर्जना को तोड़ देते हैं वह भले मज़ा हासिल करने में कामयाब रहते हो लेकिन ‘गे’ के रूप में समाज में अपमानित भी होते हैं।’
फिर वह बड़ी लगन और दिलचस्पी से उंगली अंदर बाहर करने में लग गई और मैं आँखें बंद करके उस मज़े पर कन्सन्ट्रेट करने लगा जो मुझे अपने जिस्म के उस हिस्से से मिल रहा था जो मेरे संस्कारों के हिसाब से इस क्रिया के लिये वर्जित था।
फिर उसने उंगली हटा ली और मेरे कूल्हों को छोड़ कर परे हटी और मुझे पलट कर सीधा कर लिया।
अब वह अपनी दोनों टांगें मेरे इधर उधर रखे मेरे पेट पर बैठ गई… उसकी गर्म, रस और भाप छोड़ती योनि और तेल से चिकना हुआ गुदाद्वार मेरे पेट से रगड़ता उसे गीला करने लगा और वह मेरे कन्धों और सीने की मालिश करने लगी।
इस घड़ी उसके चेहरे पर शरारत थी और आँखों में मस्ती…
मसाज करते करते वह पीछे खिसकी और वहाँ पहुँच गई जहाँ लकड़ी की तरह तना मेरा लिंग मौजूद था जो अब उसकी दरार की गर्माहट को अपने ऊपर महसूस कर रहा था।
फिर गौसिया मेरे सीने पे ऐसे झुकी कि उसके दूध मेरे पेट के ऊपरी हिस्से से रगड़ खाने लगे और उसने जीभ निकाल कर मेरे छोटे से निप्पल को चाटा, मेरे शरीर में एक सिहरन दौड़ गई।
वह हंस पड़ी।
‘मतलब आदमी को भी वही संवेदनाएं होती हैं।’
‘कुछ हद तक… वैसी सहरंगेज नहीं पर होती हैं।’
फिर वह अपनी ज़ुबान से मेरे दोनों तरफ के निप्पल छेड़ने चुभलाने लगी।
नीचे उसकी गीली दरार मेरे पप्पू को बुरी तरह भड़का रही थी।
फिर उसने खुद से अपने चूतड़ों को इस तरह सेट किया कि मेरे लिंग की नोक उसके पीछे वाले छेद से सट गई और अपना एक हाथ पीछे ले जा कर वह लिंग को पकड़ कर अंदर घुसाने की कोशिश करने लगी।
अगर यह कोशिश शुरू में की होती तो अंदर होने में थोड़ी मुश्किल आती भी लेकिन अब तक तो हम कामोत्तेजना से ऐसे तप चुके थे कि मेरा लिंग लकड़ी बन चुका था और उसका छेद खुद से गीला होकर ढीला हो गया था।
थोड़ी कसाकसी के साथ वह गर्म गड्ढे में उतर गया।
एक आह सी उसके मुंह से ख़ारिज हुई और उसने मेरे निप्पल से मुंह हटा लिया और कुछ ऊपर होकर मेरी आँखों में देखते हुए मुस्कराने लगी।
‘इस तरह आगे पीछे होना तो ध्यान रखना कहीं आगे ही न घुस जाए।’
‘नहीं घुसने दूँगी और घुस भी गया तो देखा जायेगा।’
हम दोनों के शरीर तेल से चिकने हुए पड़े थे… वह मेरे पेट से सीने तक अपने दूध रगड़ते आगे हुई तो लिंग धीरे धीरे सरकता हुआ बाहर हो गया।
फिर उसी तरह वह वापस नीचे खिसकी और यह चाहा कि लिंग खुद छेद में घुस जाए लेकिन इस तरह योनि में तो घुस सकता है मगर गुदा में नहीं।
उसे फिर हाथ की मदद लेनी पड़ी।
वह बार बार ऐसे ही मेरे फ्रंट से अपना फ्रंट रगड़ती आगे पीछे होती लिंग को बाहर और हाथ के सपोर्ट से अंदर करती रही, इस तरह उसकी योनि का ऊपरी सिरा भी मेरे पेट के निचले सिरे से घर्षण का मज़ा पा रहा था और उसके आनन्द को दोगुना कर रहा था।
लेकिन यह स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं थी और जब लगा कि अब कुछ चेंज होना चाहिए तो सीधे होकर मेरे ऊपर इस तरह बैठ गई कि लिंग उसके छेद के अंदर ही रहा और अपने हाथ मेरे सीने से टिका कर अपने कूल्हों या कहो कि कमर को इस तरह राउंड घुमाने लगी जैसे बैले डांस में घुमाते हैं।
लिंग चरों तरफ मूव करते उसके छेद के साथ अंदर बाहर सरक रहा था और दोनों की उत्तेजना को अपने शिखर की तरफ ले जा रहा था।
‘मार्वलस! तुम तो सीख गई… ग़ज़ब हो यार!’ आज बड़बड़ाने की बारी मेरी थी।
कुछ झटकों के बाद वह रुक जाती और एक ही पोजीशन में बैठे बैठे ऐसे हिलती जैसे ऊँट की सवारी कर रही हो।
इस तरह लिंग तो अंदर बाहर न होता जिससे मुझे आराम था लेकिन उसकी योनि मेरे लिंग के ऊपर के तीन दिन के बालों से जो रगड़ खाती वह उसे ज़रूर मस्त कर देती।
फिर मेरे आराम के पल पूरे हुए और उसने थकन के आसार दिखाये लेकिन उठी फिर भी नहीं, बस लिंग के ऊपर बैठे बैठे इस तरह घूम गई कि लिंग एक ही पोजीशन में रहा और उस पर चढ़ा छल्ला घूम गया।
उसके सीने के बजाय अब उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई और उसने थोड़ा पीछे होते हुए मेरे सीने पर अपने पंजे टिकाये और अपने चूतड़ों को इतना ऊपर उठा लिया कि नीचे से मैं धक्के लगा सकूँ।
उसकी मनोस्थिति मैं समझ सकता था… मैंने सहारे के लिए उसके दोनों कूल्हों के नीचे अपनी हथेलियाँ लगा लीं और फिर अपनी कमर के जोर से धीरे धीरे धक्के लगाने लगा।
उसकी कामुक सीत्कारें कमरे में गूंजती तेज़ होने लगीं।
बीच में कभी इस हाथ से कभी उस हाथ से वह अपनी क्लिटरिस भी सहलाने लगती जिससे उसे चरम पर पहुँचने में देर नहीं लगी।
‘जोर जोर से करो… हार्डर हार्डर…’ वह तेज़ होती साँसों के बीच बड़बड़ाई।
मैंने धक्कों की स्पीड तेज़ कर दी और जितनी मुझमें क्षमता थी मैं तेज़ और जोर से धक्के लगाने लगा।
कमरे में ‘थप-थप’ की संगीतमय आवाज़ गूंजने लगी।
और जब वह स्खलन के जोर में अकड़ी तभी मेरे लिंग ने भी लावा छोड़ दिया और वह एकदम मेरे सीने पर फैल गई और एक हाथ से चादर तो दूसरे हाथ से मेरी बांह दबोच ली…
जबकि मैंने स्खलन के क्षणों में दोनों हाथों से उसके पेट को दबोच लिया था।
तूफ़ान गुज़र गया… दिमाग की सनसनाहट काबू में आई तो हम अलग हुए और थोड़ी देर में हम बिस्तर के सरहाने टिके साँसें नियंत्रित कर रहे थे।
‘हर दिन एक नया मज़ा… शायद यही तो चाहती थी मेरे अंदर की मिस हाइड!’ उसने खुद से एक सिगरेट सुलगा ली और कश लेकर धुआं छोड़ती हुई बोली- लेकिन एक बात कहूँ… यह ठीक है कि मैं हर रोज़ बेशर्म होती जा रही हूँ लेकिन एक डर भी दिल में समां रहा है कि कभी ये बातें लीक हो गईं तो… किसी को पता चल गया तो?’
‘कैसे?’
‘पता नहीं… मैं तो बताने से रही। शायद तुमसे… मुझसे वादा करो कि कभी तुम यह सब किसी को बताओगे नहीं।’
‘नहीं… मैं यह वादा नहीं कर सकता कि बताऊँगा नहीं, पर यह वादा कर सकता हूँ कि तुम्हारी आइडेंटिटी डिस्क्लोज नहीं करूँगा।’
‘और बताओगे किसे?’
‘कह नहीं सकता। हो सकता है न ही बताऊँ पर वादा करने की हालत में नहीं क्योंकि मैं खुद को जानता हूँ। खैर छोड़ो- अगर तुम्हारी एम एम ऍफ़ की ख्वाहिश हो तो कहो वह भी पूरी कर दूँ।’
‘मतलब?’
‘मतलब दो लड़के और एक लड़की… मतलब कोई और लड़का भी हमारे साथ?’
‘नहीं, अब मेरे अंदर की मिस हाइड इतनी बेलगाम भी नहीं हुई और वैसे भी उसका मज़ा तब आएगा जब एक आगे करे एक पीछे और यहाँ आगे कुछ होना नहीं। ऐसे नाज़ुक वक़्त में सँभलने की उम्मीद मैं तुमसे कर सकती हूँ किसी और से नहीं, चलो पैग बनाओ।’
बोतल में अब इतनी ही बची थी कि एक बड़ा पैग बन सकता।
मैंने पैग तो बनाया पर पिया अलग ढंग से… मैं घूँट लेता, थोड़ी अपने गले में उतारता और थोड़ी उसके मुंह से मुंह जोड़ कर उसमें उगल देता जिसे वह गटक जाती और दूसरा घूँट वह लेती और उसी तरह मुझे पिलाती।
साथ ही मोबाइल भी हाथ में ले लिया और कुछ मज़ेदार पोर्न देखने लगे।
थोड़ी देर बाद जब फिर गर्म हुए तो फिर तेलियाए हुए जिस्मों के साथ शुरू हो गए, खेलने वाला एक लम्बा सिलसिला फिर चला और अंत वही हुआ जो ऐसी हालत में होता है।
आज दो बार में ही उसका दम भी निकल गया और फिर मुझे वहाँ से रुखसत होना पड़ा।
अगले दिन शुक्रवार था और आज भी उसकी क्लास थी जिससे वह साढ़े बारह बजे फारिग हुई। मैंने उसे यूनिवर्सिटी से पिक किया और पहले ही साहू के पीछे जाकर पेट पूजा कर ली।
उसके बाद नरही की तरफ चले आये और बाकी का दिन चिड़ियाघर में घूमते फिरते, बकैती करते, मस्ती करते गुज़ारा और छः बजे मैंने उसे यूनिवर्सिटी के पास ही छोड़ दिया जहाँ से वह अपने रास्ते चली गई और मैं अपने रास्ते।
रात को मुझे फिर ड्रिंक और स्मोकिंग के इंतज़ाम के साथ पहुंचना पड़ा।
‘आज कुछ नया फीचर बचा हो तो वह भी अपलोड कर दो मिस हाइड की हार्ड डिस्क में।’ वह आँखें चमकाती हुई बोली।
‘आज हम बाथरूम सेक्स करेंगे, साथ में नहाते हुए!’
‘वॉव।’ उसने खुश होकर मुट्ठियां भींची।
पहले हमने स्मोकिंग और ड्रिंक का मज़ा लिया फिर कपड़े उतार कर वो पोर्न मसाला देखने बैठ गए जो बाथरूम सेक्स से जुड़ा था। इसके बाद जब जिस्म में हरारत पैदा होने लगी तो एक दूसरे को बिस्तर पर ही रगड़ना शुरू कर दिया और अच्छे खासे मस्त हो चुके तो बाथरूम में घुसे।
बाथरूम में लगे शीशे को हमने ऐसे एडजस्ट कर लिया कि हम खुद को अपनी हरकतों के दौरान देखते रह सकें और शावर चला दिया। आज यह तय हुआ था कि वह पीछे से सेक्स कराते कराते स्क्वर्टिंग करेगी।
फिर हमने वैसा ही किया।
जी भर के पानी में भीगते हुए मैंने उसकी योनि ही नहीं, गुदा के छेद को भी चूसा चाटा, खूब खींच खींच कर दूध पिये और खड़े बैठे ही नहीं लेटे वाले आसन में भी जी भर से उसे पीछे से फक किया।
उसने भी हर आसन को खूब एन्जॉय किया, अच्छे से लिंग चूषण किया और खूब स्क्वर्टिंग भी की… तीन बार तो मैंने छोटी छोटी फुहारें अपने मुंह में झेलीं।
साथ ही हम खुद को शीशे में देखते उत्तेजित होते रहे थे।
मुझे इस बीच टाइम का एक्सटेंशन इसलिए मिल गया था कि बार बार पानी में भीगने के कारण लिंग की गर्माहट कम हो जाती थी और मुझे यह डर नहीं रहता था कि मैं जल्दी डिस्चार्ज हो जाऊंगा।
आज उसने एक बाधा और पार की… वह भी इसलिए कि हम पानी में थे। जिस वक़्त उसका पानी निकला, मैं स्खलित होने से बच गया था और जब मैं स्खलित होने को हुआ तो उस वक़्त हम बाथरूम के टाइल पर लोट रहे थे…
मैंने मौके का फायदा उठाते हुए, झड़ने से पहले लिंग हाथ में पकड़ा और उसके चेहरे के सामने ले आया। करीब था कि मेरी मंशा समझ कर वह इंकार करके चेहरा घुमा लेती कि मेरी बेचारगी और इच्छा देख कर उम्मीद के खिलाफ उसने मुंह खोल दिया।
मन में यह ज़रूर रहा होगा कि शावर से गिरती पानी की फुहार उसके मुंह को फ़ौरन धो देगी।
वीर्य की जो पिचकारी छूटी उसमें थोड़ी उसकी नाक, आँख और गाल पे गई मगर ज्यादातर उसके खुले मुंह में गई।
मैं आखिरी वाली छोटी पिचकारी के निकल जाने के बाद दीवार से टिक कर पड़ गया और वह मुंह बंद करके उस चीज़ के ज़ायके को महसूस करने लगी जो उसके मुंह में था।
फिर उसने ‘पुच’ करके उसे उगल दिया और फुहार के नीचे मुंह करके पानी से अंदर का मुंह धोने लगी।
मुंह साफ़ हो गया तो उसने शावर बंद कर दिया।
थोड़ी देर बाद सामान्य हुए तो नए सिरे से तैयार होने के लिए बाहर आ गए।
‘अजीब सा टेस्ट लगा, न अच्छा न बुरा!’
‘चार छः बार मुंह में ले लो, न अच्छा लगने लगे तो कहना।’
‘चलो ठीक है, तुम्हारी यह ख्वाहिश भी पूरी कर देती हूँ। अब से परसों तक जितनी बार भी निकालना मेरे मुंह में ही निकालना। मिस हाइड उस घिन से लड़ने और जीतने की कोशिश करेगी जो कल तक सोचने से भी आती थी।’
फिर एक बार स्मोकिंग, ड्रिंक और पोर्न का दौर चला और फिर जब हम गर्म हुए तो बाथरूम चले आये और शावर खोल कर उसके नीचे वासना का नंगा नाच नाचने लगे।
अब चूँकि मेरे दिमाग में यह था कि उसके मुंह में निकालना है तो उससे मेरा ध्यान बंट गया और आधे घंटे की धींगामुश्ती के बाद जब वह स्खलित हो कर मेरे लिंग के सामने अपना मुंह खोल कर बैठी भी तो मेरा वीर्य फ़ौरन नहीं निकला बल्कि उसे हाथ से घर्षण करते हुए निकालना पड़ा।
इस बार भी थोड़ा गाल पर तो बाकी मुंह में गया, जिसे थोड़ी देर मुंह में रख के उसने उगल दिया और पानी से मुंह साफ़ करने लगी।
अब शायद टंकी में पानी कम हो गया था जिससे टोंटी खोखियाने लगी थी और रात के इस वक़्त तो मोटर चलाई नहीं जा सकती थी जबकि सुबह फजिर में उठने पर दादा दादी को पानी चाहिए होगा।
यह सोच कर हमने अपने प्रोग्राम को वही ख़त्म किया और बाहर आ गए।
इसके बाद थोड़ी देर बिस्तर पर रगड़ घिस करते हुए चादर की मां बहन एक की और फिर वहां से निकल कर अपनी राह ली।