non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - Page 12 - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

सासूमाँ- हाँ हाँ... चम्पारानी।, बहुत मजा आ गया तेरे भाई की गलतफहमी से।
दीदी- हाँ... मेरी चम्पारानी। बहुत मजा आया। पर ये तो बता। कामरू असल में भादरू की फेमली को बजा पाया या नहीं?
सासूमाँ- वो सब बाद में। पहले उंगली पेल मेरी बहूरानी, उंगली पेलते रह... बस मैं छूटने ही वाली हैं।
दीदी- अरे चम्पारानी, तू भी मत रुक मेरी रानी। पेल पूरा का पूरा पेल।
चम्पा- झरना दीदी, आप भी चूसो ना मेरी फुद्दी को।
झरना- हाँ हाँ चूस तो रही हूँ। इधर माँ भी मेरी फुद्दी में उंगली घुसेड़ रही है। मजा आ गया री... है अम्मा, मैं छूटी... गई मैं तो... और कमरा उन चारों की सिसकियों से भर गया।
और इतने में ही हमारे कथा के महानायक रामू ने जीजाजी के साथ कमरे में प्रवेश किया।
जीजाजी- अरे... रे... रे... चारों के चोरों नंगे पलंग के ऊपर... वो भी दिनदहाड़े, भाई क्या बात है?
दीदी- और करें भी तो क्या करें? आप दोनों ही मुस्टंडे, पहलवान इतने बड़े-बड़े मस्त-मस्त लण्ड अपने-अपने चडियों में छुपा के रखे हो। तो हम चारों कमसिन जवान औरतें, नंगी होकर एक-दूसरे से लिपटकरके एक-दूसरे की फुद्दी के बीच उंगली करके एक-दूसरे को शांत ना करें तो और क्या करें? आप ही बताओ?
सासूमॉ- और नहीं तो क्या? मेरी बहू ठीक ही तो कह रही है।
जीजाजी- पर अम्मा, अभी सुबह तक तो चोद चुदा कर गये ही थे।
दीदी- चोद चुदा करके गये थे? बोलो ना कि मेरे रामू भैया के बिशाल लण्ड से गाण्ड मरवा करके गये थे।
जीजाजी- वो... तो वो... तो साले का मस्त लण्ड देखकर गाण्ड में खुजली हो रही थी सो मिटा लिया।
दीदी- तो क्या हमारी फुदियों में क्या कीड़ी हो रखी है जो ऊँगालियां करके निकाल रही हैं। अरे हमें भी मस्त लण्डों की जरूरत है। हम चार जवान और आपके पास हैं दो पिद्दी सा लण्ड। पता नहीं हमारा क्या होगा? हमारी फुदियों का क्या होगा? अरी झरना दीदी, जाकर देख ना तो... फ्रीज में कोई बैगन, मूली, गाजर या ककड़ी है की नहीं।
झरना- क्या करोगी भाभी इन सबका?
दीदी- सब्जी बनाऊँगी झरना दीदी।
झरना- क्यों मजाक करती हो भाभी। यहाँ हमारी फुदियों में घुसने के लिए तो ये सब कम पड़ रहे हैं। इस महँगाई के जमाने में, सब्जियां पता है कितनी महँगी हो गई हैं। इससे अच्छा है प्लास्टिक का डिल्डो मंगालो। सबके काम आएगा।
दीदी- ठीक है, पर ज्यादा महँगा तो नहीं होगा ना? और कीतनी बार इश्तेमाल कर सकते हैं इस डिल्डो को?
झरना- नहीं भाभी, एकदम सस्ता। और इसे आप बार-बार इश्तेमाल कर सकती हैं। और कहीं भी, कभी भी, कैसे भी, आगे भी और पीछे भी, ऊपर भी और नीचे भी, किधर भी इश्तेमाल कर सकती हैं।
रामू- पर दीदी, हमारे खड़े हुए लण्ड का क्या होगा?
दीदी- अच्छा... रामू भैया, आपका लण्ड खड़ा भी होता है, मुझे नहीं पता था। मैं तो सोच रही थी कि कहीं आप नपुंसक तो नहीं हो गये हो। जरा दिखाना तो। हाय रे... भैया आज तो... हे... एक मिनट, लण्ड से एक अजीब सी खुशबू आ रही है।
सासूमाँ- कैसी खुशबू? बहू।
दीदी- बुर रस की खुशबू।
सासूमाँ- बुर रस की खुशबू? हाँ परसों रात भर तो तेरी बुर रस से नहाया है इसका मस्ताना लण्ड। कल मेरी फुद्दी, तेरी फुद्दी, झरना बिटिया की फुद्दी, फिर चम्पा रानी की फूदी और मेरे बेटे की गाण्ड में भी घुस चुका है इसका लण्ड.. उनकी खुशबू होगी बेटी।
दीदी- नहीं अम्माजी, उसके बाद तो रामू भैया नहाए भी थे। उसके बाद इंटरव्यू देने को उस साली चू-दाने वाली सुमनलता... ओहह... ओह्ह... अब समझी मैं... सुमनलता को चोदकरके आ रहे हो ना भैया?
रामू- “हाँ हाँ दीदी, हाँ..”
दीदी- मैं पहले ही समझ गई थी की सुमनलता बिना चुदाए आपको वापस नहीं आने देने वाली। वैसे इंटरव्यू कैसे रहा नहीं पूछूगी। चुदाई में पास तो सबकुछ पास।
रामू- हाँ दीदी, कल से ड्यूटी जान करना है।
दीदी- मुबारक हो... पर हमारा क्या होगा? हमारी फुदियों का क्या होगा?
रामू- अरे दीदी, मैं हूँ और जीजाजी भी तो हैं।
दीदी- पर अब हम चार हैं।
रामू- तो क्या हुआ? सबकी बारी आएगी, सबका नंबर लगेगा।
सासूमाँ- पहले खाना हो जाये। फिर बाकी सोचेंगे।
जीजाजी- पर कपड़े तो।
सासूमाँ- कोई बात नहीं पुत्तर। हम सब हमाम में नंगे हो चुके है। अब एक-दूसरे से क्या पर्दा?
रामू- पर सासूमाँ... कहीं कोई आ जाये तो? ये सब रात को ही ठीक है। दिन में सालीनता बरतनी जरूरी है।
दीदी- रामू भैया ठीक कह रहे हैं अम्माजी। कभी भी कोई भी टपक सकता है।
चलो सब लोग कपड़े पहन लो। झरना दीदी, आपको कपड़े पहनने का संदेश मोबाइल से भेजें क्या?
झरना- नहीं... खाली, रामू भैया के लण्ड के हाथों भेज दो।
दीदी- अच्छा... लण्ड के भी हाथ होते हैं, मुझे तो आज ही पता चला।

चलो चलो, कपड़े पहन लो। और सब लोग हँसते हुए खाना खाने लगे।
* * * * * * * * * *खाना खाने के बाद दीदी- चलो सभी जने मेरे बेडरूम में हाजिर हो जाओ।
सासूमाँ- अरे बहूरानी। तेरे बेडरूम में क्यों? मेरे में क्यों नहीं?
झरना- आप समझी नहीं अम्मी। पहले पहल इनको ही तो चुदाना है अपने रामू भैया से। पति के लण्ड को भी नहीं छोड़ना चाहती।
दीदी- ऐसी बात नहीं है झरना दीदी।
झरना- फिर कैसी बात है भाभी? मेरे बेडरूम में क्यों नहीं? अम्मा के बेडरूम में क्यों नहीं?
दीदी- वो इसलिए झरना दीदी की अब हम औरतें हैं चार। मर्द है दो। कुल मिलाकर हो गये छः जने। अगर छः जने बैठ गये आपके पलंग के ऊपर तो क्या होगा सोच लो। और अम्मी, आपका पलंग भी एक ही चुदाई के पहले धक्के में ही जवाब दे देगा उसके बाद कहाँ चुदवाऊँगी।
सासूमाँ- अरे बहू, जैसा तुझे ठीक लगे। मैं तो ऐसे ही मजाक कर रही थी।
दीदी- तो ये तय रहा की जबतक रामू भैया रहेंगे। रात को कोई भी कपड़े नहीं पहनेगा और दिन में सावधानी बरतेंगे। ठीक है?
चम्पारानी- पर मेरा क्या होगा? मेरी चूत में हो रही खुजली का क्या होगा? दीदी- अरे चम्पारानी, घबराती क्यों है, उसका इलाज है मेरे पास। मैंने आज दमऊ भैया को फोन कर दिया है। वो अभी शाम तक पहुँचता ही होगा।
जीजाजी- अरे वाह... दमऊ, मेरा साला भी आ रहा है।
झरना- फिर भी एक लण्ड कम पड़ रहा है भाभी।
दीदी- अरे... कल तूने देखा नहीं कि तुम्हारे और मेरे भैया ने मिलकर हम चारों को चोदा था। आज तो एक लण्ड की बढ़ोतरी ही हो रही है।
झरना- हाँ हाँ भाभी... पर पहले मेरी चुदाई ही होगी।
दीदी- रामू भैया, अभी इस साली को पकड़ो.. साली की खुजली मिटाओ, और मेरे सैंया इसकी गाण्ड में आप लण्ड पेलो तो।

झरना- नहीं नहीं, ऐसे नहीं। मैं तो मजाक कर रही थी।
दीदी- “मजाक-मजाक में अभी चूत और गाण्ड दोनों का एक साथ कचूमर निकलवा देती। हाँ... मुझसे पंगा ना लेना...”
 
सभी पलंग पर बैठ गये। रामू के एक तरफ दीदी, उसके बगल में सासूमाँ, फिर जीजाजी, फिर चम्पारानी, फिर झरना याने रामू के एक तरफ दीदी तो दूसरी तरफ झरना थी। जीजाजी के एक तरफ सासूमाँ तो दूसरी तरफ चम्पारानी। यानी सभी औरतों को लण्ड हासिल था, और मर्दो को कम से कम दो-दो चूत हासिल थी।
दीदी- हाँ भाई चम्पारानी तू शुरू हो जा।
चम्पारानी- मैं... भाभी, मैं शुरू हो जाऊँ?
दीदी- हाँ.. मेरी छम्मकछल्लो, आज मैं तुझे पहले मौका दे रही हैं।
चम्पारानी- पर किससे पहले चुदवाऊँ? भैया जी से या आपके रामू भैया से?
दीदी- अरे चुदक्कड़, चुदवाने को किसने कहा?
चम्पारानी- ओहो... फिर शुरू हो जाऊँ यानी कि इनका लण्ड चूस लूं, या इनसे फुद्दी चूसवाऊँ?
दीदी- कहानी शुरू कर की कैसे तेरे भाई कामरू ने अपने दोस्त भादरू की बीवी, जिसे वो भाभी भी कहता था
और साली भी। उसके साथ कैसे मस्ती की ये बता। हमारे गाशिप के पाठक लण्ड थाम के और पाठिकायें चूत रगड़ते हुए बड़ी बेशबरी के साथ इंतेजार कर रहे हैं।
चम्पा- अच्छा तो लीजिए, सुनिए वाकिया मेरे भाई कामरू की जुबानी।
चम्पारानी जीजाजी के लण्ड को सहलाते हुए बोल रही थी। जैसा की आप लोग जानते हैं कि मेरा भाई कामरू और भादरू पक्के दोस्त थे। कामरू अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दिया और भादरू पढ़के आगे बढ़ता ही गया। पर उनकी दोस्ती में कोई कमी नहीं आई। और दोस्ती तब और ज्यादा गहरी हो गई जब दोनों की शादी एक ही गाँव में तय हो गई। पंडित ने शादी का महूरत भी क्या निकाला। दोनों की शादी एक ही दिन एक ही समय पर... दोनों एक-दूसरे की शादी में ना जाने पाने की वजह से उदास थे।
शादी के कुछ दिनों के बाद एक दिन तालाब पर दोनों दोस्त मिले।
भादरू- यार, कैसे रही तेरी शादी।
कामरू- तू तो आया ही नहीं मेरी शादी में।
भादरू- तो तू भी कहाँ आया था मेरी शादी पे।
कामरू- का करें भैया दोनों की शादी एक ही दिन एक ही समय पे।
भादरू- यार, मेरे मन में एक बिचार है कि इधर मैं और तेरी भाभी, उधर तू और मेरी भाभी चारों घूमने चलते हैं। शिमला।
कामरू- पर यार, उसमें तो खर्चा बहुत आएगा।
भादरू- तू खर्चे की चिंता छोड़, खर्चा सारा मेरी तरफ से।
कामरू- ठीक है भैया, पर चलना कब है?
भादरू- परसों ही चलना है, ठीक है... इस बहाने हमारी दोनों बीवियां भी एक-दूसरे से काफी मेल जोल कर लेंगी। और दो दिनों के बाद।
कामरू और कामरू की बीवी कमलावती- इधर भादरू और भादरू की बीवी सहेली चारों बस में सवार होकर घूमने (और भादरू के हिसाब से हनीमून ट्रिप पे) चले। दोनों ही औरतों ने पूँघट कर रखा था। दूसरे दिन सुबनह शिमला पहुँच गये।
भादरू- अरे सहेली, देख यहाँ कोई गाँव का बंदा है नहीं, हम चारों ही हैं। ये है कामरू मेरा पक्का दोस्त, और ये हैं भाभीजी। तो तुम दोनों अपना-अपना पूँघट उठालो। और दोनों ने जैसे ही पूँघट उठाया।
सहेली- अरे यार कमलावती तुम?
कमलावती- यारा सहेली तुम? तुम भाई साहब की बीवी हो?
भादरू- इसका मतलब आप दोनों एक-दूसरे को जानते हैं।
कमलावती- बहुत अच्छी तरह जीजाजी।
भादरू- जीजाजी?
कमलावती- हाँ जीजाजी। मैं और सहेली एक-दूसरे की पक्की सहेलियां हैं जैसे। आप और ये एक-दूसरे के लंगोटिए यार हैं।
भादरू- अच्छा भाभी जैसे हम एक-दूसरे के लंगोटिए यार हैं आप दोनों कैसी हैं?
सहेली- हम दोनों कच्छी सहेली हैं। जाहिर है हम लंगोट नहीं पहनते पर नंगी भी तो नहीं रहते ना... कच्छी पहनते हैं तो कच्छी सहेली। क्यों कमलावती?
कमलावती- सही कहा तुमने सहेली।
भादरू- चलो यारा, एक बात खूब रही की तुम दोनों एक-दूसरे को बचपन से जानते हो।
कमलावती- हाँ... जीजाजी, अब तो खूब मजे करेंगे। खूब मजा आएगा हनीमून में।
कामरू- यार भादरू ये हनीमून क्या होता है?
भादरू- यार हनी का मतलब होता है शहद याने मधु... और मून का मतलब होता है चाँद या चंद्रिका... याने हनीमून का मतलब हुआ मधुचंद्रिका।
कामरू- अच्छा, याने सुहागरात के बाद बाहर गाँव आकर सुहागरात मनाने को हनीमून याने मधुचंद्रिका कहते हैं।
सहेली- हाँ.. जीजाजी... और सुहागरात रात में ही नहीं, दिन में मनाई जा सकती है। हमारे ये याने आपके दोस्त तो रात-दिन, सुबह-शाम कभी भी मौका मिलते ही चौका मार देते हैं।
कामरू- अरे भाभी, ये भादरू तो बचपन से ऐसे ही है। मैं तालाब में भैंस को एक बार चोद के रुक जाता था। पर ये तीन बार चोदकर ही दम लेता था।
सहेली- क्या? क्या जी? आप बचपन में भैसिया को चोदते रहे।
भादरू- अरे नहीं सहेली, मेरा दोस्त मजाक कर रहा है। क्यों कामरू?
कामरू- हाँ भाभी, मैं सही में मजाक ही कर रहा था। भैसिया ही नहीं बकरी भी चोदता था ये भादरू।
सहेली- हे राम... बकरी को भी नहीं छोड़ा तुमने?
भादरू- चुप कर कामरू... मरवाएगा क्या? आधी इज़्ज़त तो गई। बाकी आधी तो रहने दे। अरे नहीं सहेली, ये सचमुच मजाक कर रहा है। मैं अभी साबित कर देता हूँ। अच्छा कामरू, एक बात बता। मैं ये मानता हूँ की मैं भैंस को भी चोदता रहा और बकरी भी चोदता रहा। इसका मतलब आई है की तुम भी मैंस और बकरी चोदते रहे। हमरे साथ... क्यों सही कहा ना मैंने?
कामरू हड़बड़ा करके- अरे नहीं नहीं, हम कहाँ चोदत रहे। आई सब झूठ है, बकवास है। हम तो ऐसन ही मजाक कर रहे थे, सच में भाभीजी।
सहेली- हमें अभी भाभी मत कहिए। आप दोनों ने दोस्त की पत्नी को भाभी कहलाने का हक खो दिया है।
कामरू- हमें माफ कर दीजिए भाभीजी। मैं तो यूं ही मजाक कर रहा था।
कमलावती- पर हम दोनों सहेलिया मजाक नहीं कर रहीं हैं आप मेरी सहेली को भाभी नहीं कह सकते और जीजाजी (भादरू) आप... आप हमें भाभी नहीं कह सकते।
भादरू- देखा साले... कामरू, तेरी एक मजाक... हमें कितना महँगा पड़ गया है। अब भाभियों को भाभी भी नहीं कह सकते हम।
कमलावती- अरे जीजाजी, आप हमें भाभी नहीं कह सकते पर साली तो कह सकते हैं।
भादरू- क्या मतलब?
कमलावती- मतलब आई जीजाजी की हम दोनों बचपन की सहेलियां हैं और एक-दूसरे के पति को हम भाई साहब या भैया नहीं कह सकते हाँ जीजाजी जरूर कह सकते हैं।
भादरू- अच्छा सालीजी.. पर साली आधी घरवाली भी होती है, सोच लो?
कमलावती- इसमें सोचना क्या है? साली तो आधी घरवाली होती ही है। पर एक बात है जीजाजी। जैसे मैं आपकी साली और आधी घरवाली लगती हैं। वैसे ही आपकी बीवी भी हमरे सैया (कामरू) की साली और आधी घरवाली लगती है। जैसा आप हमरे साथ करोगे। सोच लो हमरे पति भी आपकी बीवी के साथ वैसे ही करेंगे। क्यों जी, सही कहा ना मैंने?
कामरू- हाँ हाँ भगवान तुमने सही कहा है।
सहेली- हाँ हाँ... सैया जी (भादरू)। सोच समझकर साली के गिरेबान में हाथ डालना। और ये सोचकर डालना की तुम्हारा दोस्त भी तुमरी बीवी के गिरेबान में हाथ डाल सकता है।
भादरू- अरी, मेरी तौबा... मैंने अपनी साली को आँख उठाकर भी नहीं देखना।
 
कमलावती- अरे नहीं जीजाजी। आँख उठाकर भी देख सख्त हो, आँख मार भी सख्त हो, मजाक भी कर सख्त हो, बस अयू.. अयू.. चीज उठाकर नहीं देख सख्त हो।
सहेली- उउउ... अयू... चीज क्या कमला?
कमलावती- अरी सहेली तू भी ना। उउउ... चीज मतलब उउउ... चीज जो रात को उठाकर जीजाजी तेरे जांघों के बीच में ललमुनिया में रोज रात को घुसावत हैं, उउउ चीज।
सहेली- हाय राम री... कमला, तू तो शादी के बाद बहुत ही बदमाश और गंदी हो गई है री। शादी से पहले तो तू ऐसी नहीं थी। शादी से पहले जब एक दिन मैंने तुझे अपने भैया भाभी की चुदाई का आँखों देखा हाल सुनाया था तो तूने नाराज होकर तीन दिनों तक मुझसे बात ही नहीं की। और अब आज देख ले, कितनी बेशर्म होकर तूने ये सब बातें सबके सामने कह दिया।
कमलावती- तो क्या हुआ? यहां कौन से पराए हैं जो मैं शर्माऊँ? सच बता क्या जीजाजी अपना अयू... चीज तेरे अयू... चीज में घुसाते नहीं हैं?
सहेली- “घुसाते हैं पर...”
कमलावती- पर... पर क्या लगा रखी है? इधर मेरे सैंया भी अपना अयू... चीज मेरे अयू चीज में घुसाते हैं, हर रात को बिना नागा। इतना की परसों मैंने व्रत कर रखा था।
और रात को इन्होंने अपना अयू... चीज खड़ा करके आ गये और बोले- लो... चूस लो।
मैंने कहा- मैं नहीं चुहूंगी।
तो इन्होंने कहा- क्यों नहीं? रोज तो खुद ही चूसने पर उतावली रहती है आज क्यों नहीं?
मैंने कहा- आज मेरा व्रत है आज ये सब नहीं। तब पता है इन्होंने क्या कहा?
सहेली- क्या कहा जीजाजी ने?
कमलावती- इन्होंने कहा कि अच्छा व्रत कर रखी है इसलिए मेरा अयू... चीज को नहीं चूसेगी। पर मैंने कहाँ अपने उउउ... चीज में आटा या चावल या डाल लगा रखा है जो तेरा व्रत टूट जाएगा।
सब हँसने लगे और होटेल की तरफ बढ़ने लगे।
होटेल में दो रूम लिए गये। और दूसरी मंजील में रूम नम्बर 204 और 212 मीला। एक कमरे में भादरू और कमलावती और दूसरे में कामरू और सहली। अरे नहीं भाई सारी सारी... गलती हो गई जोड़ी उलट गई। एक । कमरे में भादरू और उसकी बीवी सहेली और दूसरे कमरे में कामरू और उसकी बीवी कमलावती घुस गई और कमरा अंदर से बंद।
कामरू के कमरे में। कामरू बोला- चल आ जा सोणिये... चल संग में नहाते हैं।
कमलावती- यहां तो होटेल के बाहर भीड़ ही भीड़ है जी। इतने लोगों के बीच में तो हम नहीं नहा पाएंगे।
कामरू- अरी मेरी रानी, इसी कमरे में नहाएंगे।
कमलावती- इसी कमरे में? कमरा गीला नहीं हो जाएगा?
कामरू- अरे नहीं पगली ये देख, ये दरवाजा है ना.. ये बाथरूम है याने स्नानघर। इसमें गुसल खाना भी है। सबकुछ यहीं करना है।
कमलावती- अरे पर संडास देखो। कितना ऊंचा बनाया है। इतने ऊपर हम कैसे बैठेगी?
कामरू- अरे, इसके ऊपर पैर नहीं ना रखना है। इसके ऊपर जैसे कुर्सी में बैठते हैं ना वैसे बैठना है।
कमलावती- हाय राम रे... ऐसे में में तो मेरा निकलेगा ही नहीं।
कामरू- और निकालने के बाद ना आई नलवा को खोल देना। तुमको हाथ भी लगाना नहीं पड़ेगा।
कमलावती- अच्छा... फिर साफ कैसे होगा हमारा पिछवाड़ा। गंदगी लगी रहेगी ना?
कामरू- अरी पगली, आई नलवा को खोल देने पर पानी तेरा पिछवाड़ा पूरा का पूरा साफ कर देई समझ गई ना। अच्छा ऊ सब तो कल सुबह की बात है। चल अब साथ-साथ नहा लेते हैं।
कमलावती- हाय राम रे... बेशर्म कहीं के.. आपको शर्म नहीं आती ऐसे बातें करते हुए। लोग क्या कहेंगे? गाँव में हमरी अम्मा क्या बोलेगी? बगल के कमरे में हमरी सेहेली और जीजाजी हैं। अयू... लोग क्या सोचेंगे हमरे बारे में की हम और आप एक साथ स्नान किए हैं।
कामरू- अरे बाबा... किसी को कैसे पता चली? बता, दरवाजा अंदर से बंद है। मैं किसी को बताऊँगा नहीं। तो फिर तुम जाकर अपनी अम्मा को बताओगी क्या की तुमने मेरे साथ आई होटेलवा माँ नंगा होकर बाथरूम में स्नान किया है।
कमलावती- हाय राम रे... नंगा होकर। हम तुमरे सामने नंगा ना होई सख्त... हाँ कहे देती हैं।
कामरू- तुम नंगा नहीं होगी तो क्या तुमरी अम्मा नंगी होगी, इहां पर? अरे मेरी छम्मकछल्लो, किसी को पता ना चली हाँ... और मजा भी खूब आई। देख मैं तोहार ब्लाउज़ खोलत हूँ। और अब देख आई चोली भी। हाय क्या मस्तानी चूचियां हैं तोहार। सच कहूँ आज तक ऐसन गजब की चूचियां ना देखी हमने।
कमलावती- अच्छा... कैसी चूचियां देखी हैं तुमने? बताई जरा, हम भी तो सुनी।
कामरू- अरे कमलावती, तू फिर झगड़ने लगी हमसे। मजा ले ना तू।
कमलावती- ठीक ही बा, आप जीते हम हारे बस, खुश... पर आप तो खाली हमको नंगा किए जा रहे हैं। तनिक अपना जलवा भी दिखाई। हमें भी तनिक मजा आवे दो।
कामरू- ले मेरी जान। तेरे पे मेरा सब कुछ कुर्बान। तेरे बुर में घुसे हमेशा मेरा लण्ड।
कमलावती- आपकी इन्हीं सब अदाओं पे तो हम हमेश रहेंगे जवान।
कामरू- हाय... मेरा हथियार तो तनिक हाथ में ले ले मेरी जान।
कमलावती- चलो जी... जाओ, मत करो हमें परेशान। शर्म से निकल रही है हमरी जान।
कामरू- “अरी सुंदरी... अभी तुम हो नादान। ये लण्ड सुंदर पकवान। आज बनेगा तेरी फुद्दी का मेहमान। घुसेगा अंदर दिखाए देगा तीनों जहांन..” कामरूफिर बोला- तो आपका क्या बिचार है मेरी कमलावती। मेरे संग स्नान करेगी या नहीं?
कमलावती- अरे मेरे राजा... कमरा बंद है, मेरी ब्लाउज़ आप खोल चुके हो... चोली भी खुल चुकी है, अपना मस्ताना लण्ड दिखा ही चुके हो... मुझे डर है कहीं आप स्नान घर में ही जिसे आप बाथरूम कहते हैं। उसमें ही ना शुरू हो जाओ।
कामरू चूचियों को सहलाते हुए- इफ्ता गए इश्क में होता है क्या? आगे आगे देखिए होता है क्या?
कमलावती- इसी बात से तो डर लग रहा है सैंया जी। आप नहाते-नहाते मेरी फुद्दी को अपने गरम पानी से भी नहलाएंगे, मुझे शक है।
 
कामरू- तो फिर मैं आपके शक को यकीन में बदल देता हूँ मेरी प्यरी कमलावती।
कमलावती- तो फिर देर किस बात की मोरे राजा... आ जा। मेरी फुद्दी तड़प रही है तोहरे लण्ड को निगलने को... अपने अंदर सामने को... अपने खुजली मिटाने को।
कामरू- अभी लो मेरी रानी। कमलावती यार.. तोहार फुद्दी के चारों तरफ के इस झाँटें भरे जंगल से परेशान हो गया हैं। इसे साफ क्यों नहीं करवा लेती हो तुम।
कमलावती- किससे करवाऊँ जी... गाँव में जितने भी सैलून हैं, सभी दिन में ही खुलते है, और भीड़-भाड़ रहती है। ऊपर से कोई औरत को वहाँ पे अपनी झाँटें साफ करवाते देखी नहीं हमने कभी... और हमें तो बड़ी शर्म आएगी किसी दूसरे को अपने फुद्दी दिखाते हुए। भला हम किसी दूसरे से अपनी झांट कैसे साफ करवा ले भला।
कामरू- अरे, मेरी छम्मकछल्लो, ऐसा गजब ना कर देना। वरना हमारे गाँव का नवा जो है ना... साला महा खतरनाक है। हमरे पड़ोस में भोंदूमल की बीवी को चोद डाला उसने, इसी झाँटों के चक्कर में।
कमलावती- अच्छा... भला कैसे?
कामरू- अरे... नव्वा की दुकान थी, पहले निचले हिस्से में। दुकान मलिक ने कहा की यहाँ पे मैं अपनी किराना दुकान खोलूंगा तुम ऊपर माले में दुकान खोल लो। नव्वा ने ऊपर दुकान खोल लिया। नीचे एक पोस्टर लगवा दिया ताकी लोगों को मालूम पड़े की दुकान ऊपर माले में है।
कमलावती- अच्छा पोस्टर में का लिखा?
कामरू- उसने दीवार पे लिखा की नीचे का बाल ऊपर कटाई होते हैं।
एक दिन की बात है। अपना भोंदूमल उधर से गुजर रहा था। उसने दीवार का लिखा देखा और पहुँच गया ऊपर बैठ गया कुर्सी के ऊपर। दोपहर का समय था। कोई दूसरा ग्राहक था नहीं।
उसने नव्वा से कहा- चलो भाई मैंने दरवाजा बंद कर दिया है।
नव्वा ने कहा- भला क्यों?
भोंदूमल ने कहा- “अरे यार हमें शर्म आती है अपना नीचे का बाल कटवाने में..."
नव्वा ने कहा- आप बड़े बेशर्म हैं। यहाँ पे दाढ़ी बनाई जाती है, बाल काटे जाते हैं, झाँटें नहीं।
भोंदूमल ने कहा- “हमें पागल ना समझो। नीचे तुमने लिखा है कि नीचे का बाल ऊपर काटा जाता है। चलो फटाफट काटो वरना तुमरी गर्दन काट देंगे कहे देते हैं हाँ..”
कमलावती- अच्छा... फिर नव्वा ने क्या किया?
कामरू- और क्या करता बेचारा। उसकी झांटों को बड़े प्यार से साफ कर दिया।
उस दिन रात को। जब भोंदूमल अपनी बीवी को चोद रहा था तो उसकी बीवी ने कहा- बहुत ही सुंदर लग रहा है। आपका लौड़ा जी। हमरा भी साफ करवा दो ना।
कमलावती- अच्छा, तो भोंदूमल ने क्या किया? क्या उसने अपनी बीवी को नव्वा की दुकान पे लेकर गया?
कामरू- हाँ री मेरी रूपमति कमलावती। उस साले भोंदूमल ने अपने बीवी को दूसरे दिन दोपहर को ठीक उसी समय लेकर गया उस नव्वा के दुकान पे, जिस समय कोई नहीं होता।
नव्वा ने कहा- अरे भाई आज क्या है?
भोंदूमल ने कहा- “भैया, मेरी बीवी के नीचे का बाल कटवाना है...”
कमलावती- अच्छा... फिर तो नव्वा ने मना कर दिया होगा?
कामरू- नहीं। उसने भोंदूमल को बाहर बिठाया, दरवाजा बंद किया... भोंदूमल ने ऐतराज जताया तो उसने समझाया... देखो आप हो मर्द आदमी, आपको कोई शर्म नहीं... पर भाभीजी तो औरत हैं। मैं इनका नीचे का साफ करते रहूँगा और ऊपर कोई आ गया तो भाभीजी की तो बदनामी हो जाएगी ना... इसीलिए दरवाजा बंद करके तुम बाहर बैठ जाओ। और अंदर किसी को आने मत देना।
कमलावती- अच्छा जी, फिर.. फिर क्या हुआ?
कामरू- फिर मेरी छम्मकछल्लो... उस नव्वा ने पूरे घंटा भर लगाया उस भोंदूमल की बीवी का झाँटें साफ करने
में।
और एक घंटे के बाद... जब दरवाजा खुला तो भोंदूमल ने कहा- अबे नव्वे.. कल तो तूने मेरी झाँटें 15 मिनट में ही साफ कर दिए थे, आज एक घंटे कैसा लगा?
कमलावती- अच्छा... हाँ तो सही बात है। एक घंटे कैसे लगा?
कामरू- तू सुन तो ले मेरे रानी। की उस नव्वे ने क्या कहा?
उस नव्वे ने कहा- अरे भोंदूमल भैया... आप भी ना पूरे के पूरे भोंदू ही हैं... कल आपका लण्ड था... आपके लण्ड को पकड़कर मैंने उसके चारों तरफ की झाँटें साफ कर दिए। पर भाभीजी का तो लण्ड नहीं है ना।
भोंदूमल- फिर... साले घंटा भर लगा दिया और साफ भी नहीं किया क्या?
नव्वा- अरे भाई भोंदूमल.. मैं जिस काम को हाथ में लेता हूँ। उसे पूरा करके ही छोड़ता हूँ।
भोंदूमल- फिर तूने झाँटें साफ कैसे किया?
 
नव्वा- मैंने भाभीजी की फुद्दी के गड्ढे में पहले अपना लण्ड को डाला। उसके बाद निकाला फिर थोड़ा सा झाँटें साफ कर दिया। फिर फुद्दी में लण्ड डाला निकाला और साफ किया... इसीलिए भैया... इतनी देर लगी। याने की भैया, आपका लण्ड था तो लण्ड पकड़कर साफ किया। भाभी का चूत सफाचट करने को चूत में लण्ड घुसेड़ा तब साफ किया।
भोंदूमल- चलो, शुक्रिया भाई नव्वे, कितने रूपए हुए?
नव्वा- अरे भैया। भाभीजी का फ्री में... हरमाह ले आना भाभीजी को। आपका भी साफ कर दूंगा और भाभीजी का फ्री में कर दूंगा। क्यों भाभीजी?
भोंदूमल की बीवी- ठीक है भैया... बहुत मजा आया आपसे लण्ड घुसवाने में और झाँटें साफ करवाने में।
कमलावती- तो मेरे प्यारे सैया जी... फिर क्या हुआ? क्या भोंदूमल की बीवी ने फिर से अपनी चूत का झाँट साफ करवाया उस नव्वे से?
कामरू- हाँ... मेरी प्यारी कमलावती। वो तो हर तीसरे चौथे दिन ही झाँटें बढ़ने का बहाना करके नव्वे से हैंडल फिट करवा कर झाँट के बाल साफ करवा आती। और जब तक भोंदूमल कुछ-कुछ समझ पाता उसकी बीवी और नव्वा गाँव से भाग खड़े हुए। और सीधा दो महीने के बाद आए और तब तक भोंदूमल की बीवी का पेट गुब्बारा बन चुका था।
भोंदूमल और क्या करता... उसकी बीवी अब उसकी बीवी नहीं रही। नव्वे की बीवी बन चुकी थी।
कमलावती- तो सैंया आप भी क्यों ना नव्वे का काम शुरू कर देते?
कामरू- कर तो दू मेरी रानी। पर मुझसे झाँट साफ करवाएगा कौन?
कमलावती- एक पर्मानेंट ग्राहक तो मैं आपके लिए जुगाड़ कर देंगी।
कामरू- पर मैं तो खाली औरतों के झाँट साफ करूंगा मर्दो के नहीं।
कमलाववाती- हाँ बाबा... खाली औरतों का।
कामरू- और झाँट साफ करने से पहले मैं उसकी फुद्दी में हैंडल भी घुसाऊँगा। कहे देता हूँ।
कमलावती- हाँ बाबा... अपना ये मुस्टंडा मूसल सा लण्ड घुसेड़ लेना, झाँट साफ करने से पहले। और दुबारा झाँट साफ करने के बाद में।
कामरू- अच्छा... पर उसके पति को कोई आपत्ति तो नहीं होगी। वो कोई हल्ला गुल्ला तो नहीं ना करेगा?
कमलावती- हल्ला गुल्ला क्यों करेगा भला। क्या भोंदूमल ने हल्ला गुल्ला किया था?
कामरू- अरे.. इस जमाने में हर कोई थोड़े ही भोंदूमल रहता है।
कमलावती- हाँ हाँ वो तो है। पर मैं उस महिला को समझा देंगी की वो अपने पति को इस बारे में कुछ ना कहे।
कामरू- हाँ... तब ठीक रहेगा। पर वो औरत है कौन? बता तो सही?
कमलावती- वो औरत को आप अच्छी तरह से जानते हैं।
कामरू- अच्छा... बता ना फिर कौन है वो, जिसकी झाँटें मैंने साफ करनी हैं?
कमलावती- मैं... मैं याने आपकी बीवी, कमलावती।
कामरू- अरे... हाँ यार, तू तो मेरी पर्मानेंट ग्राहक बन सकती है।
कमलावती- बन सकती है क्या? पर्मानेंट रहूंगी... और अच्छी तरह से झाँट साफ किए तो दूसरी भी दिलाऊँगी... पर अभी नाम ना पूछना।
कामरू- हाय हाय मेरी कमलावती... आ जा मेरे बाहों में समा जा।
कमलावती- बाहों में समा जा... अरे हम पूरे के पूरे नंगे हैं.. स्नान घर में नहा रहे हैं... आपने मेरे बदन पे साबुन लगा दिया है। ऐसा मस्त लग रहा है सैंया की क्या बोलू... काश की ये वक्त पूरा का पूरा रुक जाए। आप मेरी चूचियों के ऊपर साबुन लगाते रहो, और मैं आपके लण्ड के ऊपर साबुन रगड़ती रहूं। हाय राम रे... हाँ जी... आपका लण्ड तो फुफ्कार मार रहा है. इससे जल्दी से समझाओ, नहीं तो बाबा ये बड़ा उत्पात मचाएगा।
कामरू- “अरे कमलावती रानी, चिंता क्यों करती है? इसे अभी...”
कमलावती- “हाय जानू... अब तो घुसा ही दो.."
कामरू- ये लो रानी कमलावती... आ गया है मेरा लौड़ा... बान जा तू घोड़ी मैं तेरा घोड़ा। मैं लगाऊँ ऊपर से धक्का। तू लगा ना नीचे से थोड़ा थोड़ा।
कमलावती- मेरे सैया जी... क्या हो गया है आपको? यहीं घुसाओगे क्या?
कामरू- हाँ मेरी जान... तू जवान... मैं जवान... जवानी में तो गधा भी पहलवान।
कमलावती- तो फिर देख क्या रहे हो मेरे राजा... बजा दो मेरा बाजा। चूत मेरी है फड़क रही। इसकी प्यास बुझा जा। अरे मेरे सैया जी चलो पलंग के ऊपर चलते हैं।
कामरू- नहीं मेरी रानी। अपने तो यहीं चुदाई करेंगे। चूत में लौड़ा घुसाएंगे।
कमलावती- छीः छीः छीः कैसी गंदी-गंदी बातें करते हो जी आप।
कामरू- तो क्या भजन गाते हुए संभोग करें? उठ जाग मुसफिर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है... जो सोवत हैं सो खोवत हैं, जो जागत है सो पावत हैं।
कमलावती- चल घुस जा लौड़ा चूतवा में। अब चूत मेरी पनियात है। जो चोदत हैं मजा पावत हैं... जो सोवत हैं। गाण्ड मरावत हैं।
कामरू- अरे जियो मेरी रानी। ये लो, मेरा पहला धक्का।
कमलावती- उउईई माँ... ऐसे धक्का लगाते हैं क्या जी... अरे आपने तो दूसरा भी लगा ही दिया। हाय... मुझे भी तो पीछे धक्का लगाने दीजिए... अजी धक्का थोड़ा ठीक से, जरा जोर लगाकर मारिए ना जी। क्या जी... आप । पहले जैसा धक्का नहीं मारते हैं आजकल। क्या हो गया है आपको? हाँ मेरे राजा, बस ऐसे ही धक्का लगाओ... बड़ा मजा आता है जी आपसे चुदवाने में।
कामरू- अच्छा फिर किससे चुदवाने में मजा नहीं आता है?
कमलावती- छीः छीः कैसी गंदी बातें कर रह हो? भला मैं क्यों दूसरे से चुदवाऊँ। मेरे पास हैं ना आपका ये लण्ड। फिर कहो मैं दूसरे के पास क्यों जाऊँ भला? क्या आपका लण्ड खड़ा होना बंद हो गया है? हाय... ये तो लोहे के जैसे सख्त हो गया है। हाय... ऐसे ही धक्का लगते रहो... बस लगते रहो। हाँ, बस मैं झड़ने ही वाली हूँ।
कामरू- हाँ हाँ... मेरी रानी मैं भी झड़ने ही वाला हूँ। बस हो गया है... निकला रे।
कमलावती- हो गया ना... कर लिये ना अपने मन की बात? चोद लिया हमें... बिना पलंग बिना खाट। ना दिन । देखते हो ना रात। कहते हो बढ़ गई हमरी चूत के चोरों तरफ झाँट ही झाँट। अब चलो जल्दी से नहाके... देख रहे होंगे तुमरे दोस्त तुमरी बाट।
उधर... दूसरे कमरे में सहेली- एजी... चलो आज तो संग में नहाते हैं।
भादरू- क्या? संग में नहाते हैं... शर्म नहीं आती, संग में नहाते हैं।
सहेली- शर्म नहीं आती कहते हो... अरे हम पत्नी हैं आपकी... बहन थोड़े ही लगते हैं जो हमें शर्म आएगी। अरे... पति पत्नी दोनों में काहे की शर्म... चलो, संग में नहाते हैं कहे देती हूँ।
भादरू- चलो यार, तुम नहीं मानने वाली।
 
सहेली- हाँ हाँ नहीं मानने वाली... और कपड़े सहित कहाँ घुसे चले आ रहे हो बाथरूम में पैंट शर्ट में ही नहाना है। का? चलो, कपड़े खोलकर आओ।
भादरू- पर... अरी रे... आई का? तुमने तो सारे कपड़े ही खोल दिया... अरे पूरा ही खोल दिया तुमने तो... शर्म नहीं आवत है का? साया तो रहने दो बदन पे।
सहेली- हम कह रहे हैं ना कुछ शर्म नहीं करनी। हमरी किताब में लिखा है- जिसने किया शर्म... उसके फूटे करम।
भादरू- अच्छा बाबा... हम भी आवत हैं।
सहेली- अच्छा... बाबा हम भी आवत हैं... क्या आवत हैं। चलो आई चड्ढी भी निकालो।
भादरू- अरी भगवान, आई चड्ढी को तो रहने दो। वरना हम पूरे के पूरे नंगे हो जाएंगे।
सहेली- अरे सैया जी... चड्ढी के नीचे तो सभी नंगे ही होते हैं। देखों हमने अपना पूरा कपड़ा खोल दिया है। और हम चाहते हैं की तुम भी सारे कपड़े निकाल दो।
भादरू- पर... पर...
सहेली- क्या पर पर लगा रखा है? चड्ढी के नीचे लण्ड खड़ा नहीं हो पा रहा है का? कहीं तुम नपुंसक तो नहीं हो गये हो? हे राम... मैं बर्बाद हो गई... किशमत फूट गई मेरी... मेरे सैंया नपुंसक हो गये... उनका लण्ड खड़ा नहीं हो पा रहा है। अब मेरी जिंदगी कैसे चलेगी? हाय... हाय... जिंदगी भर लण्ड की जगह मेरी चूत में गाजर, बैगन, मूली होगी।
भादरू- अबे चुपकर भगवान... मैं कोई नपुंसक नहीं हुआ हूँ, और मेरा लण्ड भी खड़ा हो रहा है। ले ये देख।
सहेली- हे राम... रे... आपका तो सचमुच में जी खड़ा हो रखा है। मैं तो डर ही गई थी की कहीं.. चलो भगवान का लाख-लाख शुक्र है की आपका लण्ड खड़ा है। चलो, इधर आओ।
भादरू- अब क्या है? हाय... ये क्या कर रही हो भगवान? अरे मेरी नूनी को अपने मुँह में क्यों ले रही हो? देखो बड़ी गुदगुदी हो रही है। छीः छीः छीः ये मत करो ना।
सहेली- अरे... क्या मत करो, मत करो लगा रखा है?
भादरू- अरी भगवान... कुछ तो शर्म करो।
सहेली- अरे मैं अगर शर्म करने लग जाती तो अभी तक हमारी सुहागरात भी नहीं हुई होती। वो तो शादी से । पहले एक दिन मैंने भैया भाभी को चुदते हुए देख लिया था। तो मुझे पता था की पति पत्नी में क्या होता है। वरना आपने तो सुहागरात को कह ही दिया था की आपको कुछ नहीं मालूम की पति पत्नी के बीच में क्या होता
भादरू- वो... पता तो था.. पर हमें शर्म जो आ रही थी ना।
सहेली- शर्म आ रही थी? वहां क्या तुमरी अम्मा नाच रही थी?
भादरू- अरे सुहागरात के दूसरे दिन हम पहलवानों के से अंदाज में कबड्डी-कबड्डी करते हुए कमरे में आए थे। और जोश में कहे तो थे की आज मैं तुमरी अम्मा चोद दूंगा... आज मैं तुमरी अम्मा चोद दूंगा।
सहेली- हाँ हाँ मेरे बलम मुझे याद है... और हमने अपना लहंगा उठाकर आपको अपनी चूत दिखाते हुए कहा थातुम हमरी अम्मा को चोदोगे तो आई मेरी फुद्दी को क्या तुम्हारा बाबूजी आकर चोदी?
भादरू- फिर उस दिन हमने चोदा तो था तुम्हें।
सहेली- हाँ... दस मिनट तक हमरी फुद्दी का छेद ही ढूँढ़ रहे थे। तब जाकर तुम्हें मालूम पड़ा की हमने चड्ढी पहनी हुई है।
भादरू- हाँ... तो भगवान मैंने चड्ढी उतारने के बाद चोदा तो था तुम्हें... मजा नहीं आया क्या?
सहेली- मजा आया था... अरे बहुत मजा आया था... वैसे चोदने में तो पता नहीं हमने आज तक किसी दूसरे से चुदवाया तो नहीं है पर चूत चुसाई में तुम मास्टर हो मास्टर। एकदम ऐसे मस्त चूसते हो मेरी जान की बिना चोदे ही झड़ देते हो हमको... इस बात के हम कायल हैं... की चूत चुसाई में तुम्हारा कोई मुकबला नहीं।
भादरू- अच्छा... कोई मुकवला नहीं इसका... मतलब किसी और से भी चुसवा चुकी हो। डार्लिंग, सच-सच बता कौन है वो कंबख्त?
सहेली- अरे आप खामखाह ही हम पे शक कर रहे हैं।
भादरू- खामखाह ही शक नहीं, हमें यकीन है की तुम पहले भी और किसी से चूत चुसवा चुकी हो, चटवा चुकी हो। हम तो केवल उसका नाम जानना चाहते हैं।
सहेली- क्यों? उसकी चूत भी चाटनी है?
भादरू- उसकी चूत भी चाटनी है? इसका मतलब डार्लिंग आप जिससे अपनी चूत चुसवाए हो वो कोई आदमी नहीं औरत है। चलो, शुक्र है भगवान का... हमें तुम अनचुदी मिल गई।
भादरू- पर मेरी रानी, हमें उसका नाम तो बता दे.. जिसने तेरी फुद्दी चूसी है।
सहेली- अच्छा जी... नाम जानकार के क्या करोगे? उसकी फुद्दी भी चूसोगे? चूत चुसाई मास्टर।
भादरू- अरे नहीं रे।
सहेली- अच्छा... नहीं रे, अगर वो चूसवाने के लिए तैयार हो जाए तो?
भादरू- तो अलग बात है... पर हमें तो बड़ी शर्म आएगी।
सहेली- और अगर कमरे में अंधेरा हो तब?
भादरू- तब तो मेरी प्यारी आनंद ही आनंद।
सहेली- अच्छा... अच्छा.. वो आनंद फिर कभी, अभी मेरी फुद्दी को तो आनंद प्रदान करो। शांत चूत चूसेस्वर महाराज।
भादरू- अभी लो, मेरी रानी।
सहेली- हाँ हाँ... मेरे सैंया। हम तो कभी भी आपके छोटे से लण्ड की चिंता नहीं किए। क्योंकी आपने चूत चूसकरके हमें जो आनंद प्रदान करते हो। उसके आगे आपके सट खून माफ।
 
भादरू- अरे मेरी रानी, पर तू उलट क्यों रही हो। अरे... रे... मेरे लण्ड को चूस रही हो.. अरे भाई मैंने पेशाब करने के बाद धोया नहीं है... अरे... तुमने तो सीधा मुँह में ही ले लिया... अरे चूसने भी लगी... हाय मजा आ रहा है मेरी जान।
सहेली- मजा आ रहा है तो मुझे भी मजा दो ना... बुर को चूसते रहो। हाँ हाँ... बड़ा मजा आ रहा है... बस ऐसे ही लगे रहो।
भादरू- ठीक है मेरी जान, ये ले देख मेरी जीभ का कमाल।
सहेली- हाँ हाँ.. मेरा निकल रहा है मेरे सरताज... निकल रहा है... अरे निकला... निकला.. मैं झड़ रही हूँ... बस हो गया... कितना चूसोगे? रुक जाओ... बस... बस। अब एक काम करो चलो चोदना शुरू कर दो।
भादरू- रात को चोदेंगे मेरी जान... दिन में भी कोई चुदवाता है भला।
सहेली- अरे... मेरी सहेली कमलावती रोज चुदवाती है... कामरू जीजाजी ना दिन देखते हैं ना रात, ना सुबह देखते हैं ना शाम, कभी भी कहीं भी बस मौका मिलना चाहिए उनको। मौका मिला चूत खुली... लण्ड खुला... लण्ड घुस गया चूत के अंदर... बंदरिया को चोद रहा है बंदर। जीजा कमर हिलाते हैं... जीजी चूतड़ उछालती हैं. लौड़ा अंदरबाहर होवत है... दोनों को मजा आवत है।
भादरू- तू जैसे आँखों देखा हाल बता रही है। मेरी जान... तुझे ये सब कैसे पता?
सहेली- अरे सैंया। भूल गये, वो मेरी सहेली है। गाँव में जब हम शादी के बाद पहली बार मिले थे तब उसने ये सब बातें कही थी।
भादरू- अच्छा अच्छा... ये ले... मेरा लण्ड घुस गया तेरी फुद्दी के अंदर। दर्द होगा तो बताना?
सहेली- दर्द होगा तो बताना... अरे लौड़े को घुसाओ तो सही।
भादरू- अरे घुसा तो दिया है मेरी जान।
सहेली- अरे मेरी सहेली कमलावती कहती है कि उसके सैंया जब चूत में लण्ड घुसाते हैं तो उसे नानी याद आ जाती है। गले तक उछल-उछल जाता है।
भादरू- हाँ हाँ ये बात तो सही है। साले कामरू का लण्ड है तो बिशाल... मजा आ जाता है घुसवाने में।
सहेली- मजा आ जाता है घुसवाने में? कहीं आप उससे गाण्ड तो नहीं मरवाते हो? हाय मुझे तो पहले से ही शक था। आज यकीन हो गया... हाय मेरा पति तो गान्डू निकला री।
भादरू- अरे चुपकर रानी। एक ही बार मरवाया हूँ गाण्ड उससे। पहली बार में ही लण्ड घुसते ही इतना दर्द दिया की मैंने कान पकड़ लिए अपने की गाण्ड नहीं मरवानी। वो तो खेल-खेल में गाण्ड मराई हो गई।
भादरू- मुझे माफ कर दो मेरी रानी।
सहेली- “चलो जी, हमने आपको माफ किया... आप भी क्या याद रखोगे की किस दयावान औरत से पाला पड़ा
भादरू- तो मेरी प्यारी रानी... चोदना चालू करूं?
सहेली- और नहीं तो क्या। फूल पत्ती लेकर आरती उतरोगे मेरी फुद्दी की। अरे जांघे फैलाए, अपनी सफाचट चूत में तुम्हारा लण्ड घुसवाए हुए क्या यहाँ पर जगराता करना है।
बिना झांटों वाली फुद्दी, तेरी सदा ही जै हो, दो पुत्तियों वाली फुद्दी, तेरी सदा ही जै हो, मोटे-पतले, काले-गोरे, लंबे-छोटे, लण्ड निगलने वाली फुद्दी, तेरी सदा ही जै हो।
भादरू- है मेरी रानी, क्या बात कही... मजा आ गया।
सहेली- मजा आ गया तो तनिक लण्ड को पूरा घुसाइए ना... खाली लण्ड का सुपाड़ा घुसाके खड़े हो गये हैं... हाँ नहीं तो।।
भादरू- अरे मेरी रानी रूपमती... पूरा का पूरा लण्ड तो घुसा ही दिया हूँ। अब खुद भी घुस जाऊँ क्या तोहरी चूत में?
सहेली- नहीं मेरे सैंया, आपको घुसने की कौनो जरूरत नहीं है। बस लण्ड घुसा के धक्का भी तो लगाओ ना।
पढ़ोगे लिखोगे तो होगे खराब। चोदोगे चूत तो बनोगे नवाब। ऐसा मेरी फुद्दी चोदो... दिल खुश हो जाए। अभी चोद लो हमें ऐसा की रात तक दुबारा नौबत ना आए।
भादरू- ले साली... ले... ये ले मेरा धक्का संभाल... फिर ना कहना की हमने पहले बताया ही नहीं और दर्द दे
दिया।
सहेली- हूँ... फिर ना कहना की हमने पहले बताया ही नहीं। कह तो इस तरह रहे हो जैसे हाथी का लण्ड लिए फिर रहे हो... और मैं कमसिन कुँवारी कली। नजों से पली पहली बार चुदवा रही हूँ। और तुम्हारे लण्ड का सुपाड़ा घुसते ही बचाओ-बचाओ करने लग जाऊँगी... रहम की भीख माँगने लगूंगी की बहुत दर्द हो रहा है बालम... आज की चुदाई इतना ही रहने दो जी बहुत दर्द हो रहा है... कशम से बहुत दर्द हो रहा है... सैंया जी, आपके लण्ड से मेरी चूत की दीवारें छिल सी गई हैं।
भादरू- रानी, क्यों मजाक कर रही हो?
 
सहेली- अच्छा... मैं मजाक कर रही हूँ? पर मेरे प्यारे बालम मजाक शुरू किसने किया था? आपने ही कहा था की ले संभाल मेरा शानदार धक्का, फिर ना कहना की धक्का देके दर्द बढ़ा दिया... अरे मेरे प्यारे बालम।
भादरू- अरे मेरा लण्ड छोटा है तो कहाँ से बड़ा करूं?
सहेली- मेरे प्यारे साजन, बड़ा करने को किसने कहा... एक मजाक आपने किया तो हमने भी एक मजाक कर दिया... आप मजाक कर सकते हैं तो क्या मैं मजाक नहीं कर सकती हूँ?
भादरू- पर तुम्हें तो मजा पूरा नहीं दे पा रहा हूँ मैं। लगता है इस छोटे से लिंग का कोई इलाज करना पड़ेगा।
सहेली- अरे सैंया जी... मुझे आपसे चुदते हुए पूरा का पूरा मजा मिलता है... और आपको किसी इलाज की कौनो जरूरत नहीं है।
भादरू- “वो... सड़क किनारे जड़ी बूटी वाले बेचते हैं। एक माह में अपना लण्ड का साइज दुगुना करो... ढीली चूत को भी कस के चोदो... और उसे नानी याद दिला दो... मैं सोचता हूँ..”
सहेली- खबरदार... अगर उनके पास गये तो? अरे ये सड़क छाप झोले छाप डाक्टर लोग आप जैसे भोले भले लोगों को लूटते हैं। आप जैसे लोग ही तो इनका शिकार बनते हैं... चले लण्ड का साइज दोगुना करने... ये दवाई के नाम पे ऐसी चीजें देंगे की ना घर के रहोगे ना घाट के। जो अभी चूत में लण्ड घुसा के चोद पा रहे हो ना... फिर मेरी जगह रानी रूपमती खुद नंगी खड़ी हो जाये ना फिर भी लण्ड खड़ा ना हो सकेगा... आप भूलकर भी इनके झाँसे में मत आना... और अपने दोस्तों को भी ना आने देना।
भादरू- तुम शायद ठीक कहती हो।
सहेली- अरे हम गलत हो भी नहीं सख्त हैं। हाँ... कहे देती हैं। अरे मेरे प्रीतम... चूत चुदाई का और चुदाई में आने वाले मजे का लण्ड के साइज से कोई ताल्लुक नहीं है... जरूरत है तो बस एक-दूसरे को मजा देने की... इसमें
सामने वाले को जितना मजा दोगे, उससे दोगुना मजा आपको भी मिलेगा। अच्छा सच बताओ? तुमको तब मजा आता है की नहीं जब मैं आपका लण्ड चूसती हूँ?
भादरू- खूब मजा आता है रानी।
सहेली- और हमें भी खूब मजा आता है, आपका लण्ड चूसने में। और मुझे उस समय भी बहुत मजा आता है। जब आप मेरी फुद्दी को चूसते हो।
भादरू- अच्छा। हमें भी फुद्दी चूसने में खूब मजा आता है।
सहेली- और फुद्दी को चोदने में?
भादरू- उसमें तो बहुत ही ज्यादा मजा आता है।
सहेली- तो हम सही हैं ना अपनी बात पे।।
भादरू- “हाँ... अब हमें समझ में आ गया की दोनों को ही मजा आता है... पर...”
सहेली- अब चुदाई के मजे में ये पर... कहाँ से आ गया?
भादरू- अरे रानी, मैं ये कहता था... जैसे।
सहेली- क्या जैसे? जरा खुलकर कहो?
भादरू- “जैसा की तुम जानते हो... मैं और कामरू बचपन के ही दोस्त हैं... तो...”
सहेली- तो क्या हुआ? हम और कमलावती भी तो बचपन की सहेलियां हैं। और हम दोनों एक-दूसरे से कोई बात नहीं छुपाती हैं।
भादरू- क्या तुम अपनी सहेली की चूत?
सहेली- हाँ हाँ... मैं अपनी सहेली का चूत चूचियां सब देख रखी हूँ। और उसने भी मुझे नंगा देखा है... अभी थोड़ी देर पहले आप पूछ रहे थे ना की किसने चूसा है मेरी फुद्दी तो सुनिए मैंने और मेरी सहेली कमलावती ने एकदूसरे की फुद्दी चुसी है। चाटी है।
भादरू- क्या? क्या कह रही हो रानी... तुमने भाभीजी की चूत चाटी है... और भाभीजी ने तुम्हारी चूत चूसी है?
सहेली- हाँ हाँ मेरे बालम, मैंने अपनी सहेली की चूत चूसी भी है, चाटी भी है... और उसे अपनी चूत चुसवाई भी है और चटवाई भी है... उसकी चूचियों को दबाया भी है और उससे दबवाया भी है... चूचियों को चूसा भी है और उससे चुसवाया भी है। एक-दूसरे के नंगे बदन को खूब सहलाया है हमने।
भादरू- राम... राम... रामम्म... आप लोगों को शर्म नहीं आती थी?
सहेली- “काहे की शर्म मोरे सैंया... वो भी नंगी, मैं भी नगी। वो मेरा चूसती थी तो मैं उसका चूसती थी। वो मुझे चूमती थी तो मैं उसे चूमती थी। फिर कहे की शर्म? हाँ पहले पहल जब शुरुवात हुई तो मेरी सहेली कमलावती को बड़ी शर्म आई थी पर धीरे-धीरे उसे भी इसमें मजा आने लगा था। और फिर?
भादरू- कहीं तुम दोनों ने शादी से पहले ही लण्ड का स्वाद तो नहीं चख लिया था रानी?
सहेली- सुहागरात को भूल गये का सैंया जी? कितना खून निकला था मेरा। पूरी चद्दर लाल हो गई थी।
भादरू- हाँ... वो तो है। इसका मतलब तुम दोनों ने खाली चूत चुसवाई का ही मजा लिया था। लण्ड चुदाई का नहीं?
सहेल्ली- अगर मेरे पास लण्ड होता तो जरूर से मैं उसे पेल देती... साली की चूचियां बड़ी मस्त हैं.. गोरा बदन।
भादरू- चूचियां तो तुमरी भी बड़ी-बड़ी हैं मेरी रानी।
सहेली- हाँ... मैं और मेरी सहेली कमलावती का बदन पूरा समान हैं केवल एक फर्क है हम दोनों में... अगर अंधेरे में कोई हमको छुए तो उसे पता भी ना चले की कौन हैं हम... बस उसी फर्क से ही पता चल सकेगा।
भादरू- जरा हमें भी तो वो फर्क बताओ मेरी रानी।
 
सहेली- छीः छीः छीः अपनी भाभी के बारे में ऐसी गंदी बातें पुचहते हुए आपको शर्म नहीं आती?
भादरू- सारी... रानी, वैसे आपने ही कहा था वो हमरी साली भी लगती है। और साली आधी घरवाली भी होती है। तुम्ही ने तो कहा था।
सहेली- हाँ हाँ सैंया जी। हमी ने कहा था की साली आधी घरवाली भी होती है... पर पूरी भी तो नहीं होती है ना... जब अपनी बीवी बगल में चुद रही हो तो साली को याद नहीं ना करते हैं मेरे बालम। आप तो धक्का लगाते जाओ... हाँ हाँ सैंया जी बस ऐसे ही धक्का लगाओ... आप अच्छी तरह से चोदते हो मेरे राजा जी।
भादरू- अच्छा हम अच्छी तरह से चोदते हैं.. फिर कौन अच्छी तरह से नहीं चोदता है?
सहेली- क्या? क्या कहा आपने? कौन अच्छी तरह से नहीं चोदता है? ऐसा कहके आप मेरे चरित्र पर शक कर रहे हो सैंया जी।
भादरू- अरे मैं तो मजाक कर रहा था।
सहेली- पर मैं मजाक नहीं कर रही हूँ... मैं तो सच ही बता रही थी की आज बहुत मजा आ रहा है... और हमें पता है कि आप आज बड़े जोश के साथ क्यों चोद रहे हो।
भादरू- अच्छा भला कैसे?
सहेली- वो ऐसे मेरे सैंया जी... आज मेरी सहेली की बात जो निकली है... आप चोद मेरे को रहे हो... और मन ही मन मेरी सहेली कमलावती को चोद रहे हो... आप सच बताना ऐसा ही है ना?
भादरू- अरे रानी, ऐसे बात नहीं है।
सहेली- तो कैसी बात है सैंया जी? हर रोज से दोगुने जोश के साथ आज हमें चोद रहे हो। रोज मेरा पानी निकलने से पहले ही आप चूत जाते हो... फिर मैं जबरदस्ती आपसे अपनी फुद्दी चटवाके शांत होती हैं.. और आज... आज मैं एक बार चूत चुकी हूँ पर आप अभी तक वही जोश के साथ मुझे चोद रहे हो।
भादरू- अरे आप भी।
सहेली- हाँ हाँ सैंया जी... बोलो की आज ऐसी क्या बात है? सैंया जी, ऐसे धक्का लगा रहे हो आज की आज सचमुच दोगुना मजा आ रहा है। बस आप पेले जाओ... मन ही मन मेरी सहेली कमलावती को चोदते जाओ और हकीकत में मेरी फुद्दी में लौड़ा पेलते जाओ... पेलते जाओ।
भादरू- ले साली ले।
सहेली- हाँ हाँ जीजाजी, मारो धक्का।
भादरू- जीजाजी? अरे मैं आपका पती हूँ।
सहेली- अच्छा जी... आप हमें साली कह सकते हो और हम आपको जीजाजी भी ना कहें। आप साली को चोदने का मजा मन ही मन लूट रहे हो। और हम जीजाजी से चुदवाने का ये शानदार मौका छोड़ दें।
भादरू- तो चुदवा ले साली... अपने जीजाजी से।
सहेली- आपको कोई ऐतराज तो नहीं अगर हम अपने जीजाजी से चुदवायें?
भादरू- मुझे क्या ऐतराज होगा? मैं भी तो अपनी साली को चोदूंगा... हाय मेरी साली, मेरा निकलने वाला है... बता... बता मेरी साली की कहाँ निकालूं? तेरी फुद्दी के अंदर निकालू की तेरे पेट के ऊपर डाल दें, या की तेरी चूचियों पे डालूं?
सहेली- आज तो सैंया जी मेरे मुँह में डाल दो... मैं आज अपने जीजाजी के लण्ड का रस चखना चाहती हूँ। कैसे लगता है... लाइए।
भादरू- ले साली ले... चूस ले... चूस ले अपने जीजाजी का लण्ड... ले पूरा का पूरा काट के खाले।
सहेली- “लाइए... हाँ... हुम्म... हुम्म...”
भादरू- अरे रे वाह... मजा आ गया आज तो साली को चोद के।
सहेली- हाँ... सैंया जी हमें भी खूब मजा आया।
भादरू- अच्छा चलो, जल्दी से नहाके फ्रेश होकर बाहर निकलते हैं... पता नहीं मेरा दोस्त कामरू क्या कर रहा होगा?
सहेली- अरे वो... जीजाजी, क्या कर रहे होंगे? अपनी बीवी को चोद रहे होंगे, दनादन... और क्या उससे राखी बँधवा रहे होंगे?
भादरू- तुम भी रानी, क्या-क्या बोलते जाती हो? और तुम्हें पता है.. मेरे दोस्त कामरू के लण्ड का साइज क्या है? मेरे से दोगुना है मेरे दोस्त का लण्ड का साइज... और मोटाई... मोटाई इतनी की एक हाथ से पकड़ा भी ना जाए... मेरे लण्ड को जैसे आसानी से अपने मुँह में लेकर पूरा का पूरा चूस लेती हो... ऐसे आपके सहेली तो नहीं कर पाती होगी।
सहेली- क्या? क्या कहा आपने? इतना बड़ा लण्ड है जीजाजी का? हाय... मेरी सहेली कमलावती की फुद्दी का तो भोसड़ा बन गया होगा अभी तक... हे भगवान्... कितना मजा लूट रही है साली... पर साली ने अभी तक मुझे बताया भी नहीं... मिलते ही साली के कान पकड़ती हूँ।
भादरू- मिलते ही कान पकड़ती हूँ। अच्छा, चूचियां नहीं पाकड़ोगी... अपने सहेली की?
सहेली- वो सब अकेले में आप लोगों के सामने तो सिर्फ कान ही पकड़ेंगी। अच्छा चलो नहाते हैं और तैयार होते हैं... सचमुच में देरी हो गई है। पता नहीं वो हमरे बारे में क्या सोच रहे होंगे?
भादरू- हाँ हाँ... चलो। पर सच कहता हूँ बड़ा मजा आया आज तो, जीजा साली बनकर।
सहेली- हम ऐसा मजा पाने को रोज रात को आपकी साली बनने के लिये तैयार है मेरे राजा।
भादरू- ठीक है साली... आज रात को आप मेरी साली, और मैं आपका जीजा... ठीक है।
सहेली- “ठीक है वादा रहा...”
और ठीक आधे घंटे बाद। किसी ने दरवाजे की घंटी बजायी... और सहेली ने दरवाजा खोला- अरे जीजाजी... कमला... आइए आइए।
कामरू- अरे भाभीजी... आप अभी तक तैयार नहीं हुए।
 
सहेली- कितनी बार कहना पड़ेगा जीजाजी। की मैं आपकी भाभी नहीं साली हूँ... जब तक आप हमें साली नहीं कहोगे, मैं आपसे बात नहीं करूंगी... और साली कमला की बच्ची, इधर आ कोने में... तूने ये बात हमसे क्यों छुपाई की जीजाजी का?
कमलावती- क्या हुआ? सहेली।
सहेली- इधर आ कोने में... आ तेरा कान खींचती हूँ, चूचियां बाद में दबाऊँगी... साली तूने आज तक मुझे ये बात क्यों नहीं बताई की जीजाजी का लण्ड एकदम बड़ा है।
कमलावती- छीः छीः छीः अरे यार ये सब बातें यहाँ सबके सामने?
सहेली- नहीं... वो सब नहीं सुन पा रहे हैं... पर तूने मुझसे ये बात क्यों छुपाई?
कमलावती- “अरे... मैंने कौन सा आठ दस लण्ड देख रखा है जो मुझे पता होगा की मर्द के लण्ड का साइज कितना बड़ा होने से बड़ा कहलाता है और कितना होने से छोटा कहलाता है। मैंने तो आज तक सिर्फ और सिर्फ इनका लण्ड ही देखा है...” ।
सहेली- “और मैंने कौन सा आठ दस लण्ड को अपनी फुद्दी में घुसवा रखा है जो मुझे पता चलेगा। वो तो आज बाथरूम में चुदवाई करवाते वक्त...”
कमलावती- क्या? आज बाथरूम में तुम दोनों भी चुदाई कर रहे थे?
सहेली- तुम दोनों भी... इसका मतलब है बाथरूम में तुम भी चुदा चुकी हो।
कमलावती- हाँ... बड़े चुदक्कड़ है तुमरे जीजाजी... रात को बस में हम दोनों को मौका नहीं मिला ना इसलिए आते ही बाथरुमवा में ही शुरू हो गये। पर लण्ड का साइज के बारे में तू का कह रही थी?
सहेली- अरे वो... तुमरे जीजाजी बता रहे थे की कामरू जीजाजी के लण्ड का साइज इनके लण्ड के साइज से दोगुना है और मोटाई भी ज्यादा ही है।
कमलावती- अच्छा... ऐसा है क्या?
सहेली- हाँ री... ऐसा ही है... पर तुझे बहुत मजा आता होगा ना?
कमलावती- मजा तो आता है। और संग में तकलीफ भी होती है... खास करके उस दिन जिस दिन ये मुझे दिन में एक बार चोद लेते हैं।
सहेली- क्यों भला? उसी दिन क्यों?
कमलावती- “अरे, उस दिन... दिन में इनका पानी निकल चुका होता है। रात को जल्दी निकलता नहीं है। मैं दोतीन बार झड़ जाती हैं। उसके बाद भी उनका नहीं निकलता है। मैं हाथ पैर जोड़ती हूँ, मुँह में चूसने को स्वीकार करती हूँ, मुँह में लेकर चूस के झड़ाना पड़ता है... उस रात को बहुत तकलीफ होती है। इसीलिए मैं इन्हें दिन में कभी देती ही नहीं... पर आज इन्होंने मौका देखकर चौका मार दिया है... हे भगवान्... आज रात को मेरी खैर नहीं... हे भगवान्, आज तो ये मेरी फुद्दी का कचूमर निकाल के ही मानेंगे... मेरी सहेली, क्या करूं? तू ही बता... मुझे बचा ले...”
सहेली- अरे... पर मैं कैसे?
कमलावती- तू बड़ी चालक है कोई ना कोई उपाय सोच ही लेगी तू।
सहेली- अच्छा खैर, सोचते हैं।
कमलावती- सोचते नहीं... साच, अभी का अभी सोच।
सहेली- देख, एक उपाय है... रात को अंधेरे में तू मेरे कमरे में... और मैं तेरे कमरे में।
कमलावती- छीः छीः छीः मैं जीजाजी से... नहीं.. पर हाँ रे... बहुत तकलीफ होती है दूसरी बार इनसे चुदवाने पर.. जीजाजी तो जोर से नहीं ना चोदते हैं?
सहेली- अरे नहीं रे... वैसे भी अभी-अभी चोद चुके हैं। रात को खड़ा होगा तभी ना चोदेंगे।
कमलावती- ठीक है फिर... पर तुम इनसे कैसे बचोगी... कमरे में तो लाइट होगी, पकड़ी जाएगी तो बड़ी बदनामी होगी... तुमरी भी और हमरी भी।
सहेली- अरे कोई ना कोई उपाय तो निकालना ही पड़ेगा... खैर वो सब रात को देखते हैं।
कमलावती- “देखते है नहीं, करते हैं। ऐसा ही करते हैं। आज मुझे बचा ले मेरी सहेली। वादा करती हूँ कि फिर कभी इनसे दिन में नहीं चुदवाऊँगी। ऐसा एक ही बार...”
सहेली- एक बार क्या? क्या हुआ?
कमलावती- कुछ नहीं... हमें तो उस रात का वाकया याद आते ही, उस रात के दर्द को याद करते ही मेरी फुद्दी अभी तक सिहर उठती है, और दुबारा इनसे ना चुदवाने की खाई कशम को याद दिलाती है। मैंने इनको कशम दिलाई थी उस रात की दिन में कभी नहीं चोदोगे। पर आज मुझे इनपर दया आ गई और मैं इनसे चुदवा बैठी।
सहेली- इनपे दया आ गई या तेरी फुद्दी खुद जीजाजी के मस्ताने लण्ड से चुदवाने को फड़फड़ा रही थी?
कमलावती- अरे काहे का फड़फड़ा रही थी... मेरा जी जानता है कि मैं इनसे कैसे चुदवाती हूँ।
सहेली- अच्छा तुम्हें खाली दर्द ही होता है, मजा बिल्कुल भी नहीं आता?
कमलावती- सच-सच बताऊँ?
सहेली- हाँ.. अपनी फुद्दी के ऊपर उगी उन झांटों की कशम खाकर बोल की तू जो कहेगी सच कहेगी और सच के अलावा कुछ भी नहीं कहेगी।
कमलावती- “अच्छा... अच्छा मैं कमलावती... अपनी फुद्दी के ऊपर उगी हुई घंघराली झांटों की कशम खाकर ये कहती हूँ की... की.."
सहेली- की. की... क्या लगा रखा है री... बोल?
कमलावती- अरे, क्या बताऊँ री सहेली... हमरी नई-नई शादी हुई थी।
सहेली- अच्छा... नई-नई शादी हुई थी... पर हमारी तो यार पुरानी-पुरानी शादी हुई थी।
कमलावती- बाल की खाल मत उखाड़ सुन।
सहलेई- सुना।
कमलावती- तो वाकया ये हुआ की दिन में हमरी सास पड़ोस के यहाँ गई थीं और ये किसी काम से घर आए। मौका अच्छा देखकर इन्होंने चौका लगाने की सोची। और मैंने भी मौके की नजाकत को देखते हुए अपनी झांटों से ढकी हुई फुद्दी के द्वार इनके लण्ड के लिए खोल ही दिए। और फिर जो होता है तू तो जानती ही है... इनका लण्ड और मेरी फुद्दी, और हमारा प्यारा सा पलंग... बस दे दनादन... दे दनादन लग गये। आधे घंटे के बाद ही जब अपना माल मेरी फुद्दी के अंदर छोड़ा तभी इन्होंने मुझे अपनी बाहों से आजाद किया।
 
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