desiaks
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फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा.
मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा.
मेरी बात सुन कर आंटी ने मुझे कान पर हल्के से काटा और दांतों को बड़े प्यार से कान पर चलाने लगी मानो दांत पीस रही हो, एक अद्भुत ही अनुभूति थी वो, और फिर वो धीरे से मेरे ऊपर आ गई और फिर मेरे दूसरे कान को भी इसी तरह से चूम कर काटने लगी.
मुझे लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ,
उसके बाद उन्होंने मेरे बायें कान को छोड़ा और उसके थोड़ा नीचे एक बार काट कर दांतों से निशान बना दिया, मुझे मजा भी बहुत आया और दर्द भी हुआ पर मैं आह करने के अलावा कुछ और कर नहीं सकता था तब, उसके बाद आंटी ने मेरी ठोड़ी और कान के बीच एक बार हल्के से काट लिया और मैं बोल ही पड़ा- क्या कर रही हो यार तुम ?
तो जवाब मिला- तुझे जिंदगी भर ना भूल सकने वाली याद दे रही हूँ !
उसके बाद आंटी थोड़ा नीचे खिसकी और मुझे फिर कंधों पर काट कर निशान बना दिया फिर एक निशान, दूसरा निशान, तीसरा निशान इस तरह से उन्होंने एक एक कर के मेरे शरीर पर जाने कितने लव बाइट्स देना शुरू करे और रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं उन लव् बाइट्स से तड़प भी रहा था और मजा भी ले रहा था.
जब आंटी मुझे ये निशान दे रही थी तो खुद को, अपनी चूत को भी मेरे शरीर के जिस हिस्से पर हो सकता था वहाँ टिका कर रगड़ते भी जा रही थी. उन्होंने कुछ और निशान बनाए होंगे कि वो झड़ने लगी, झड़ने के बाद वो कुछ देर रुकी और फिर से उन्होंने मुझे काटना शुरू कर दिया.
पहले कंधा फिर दूसरा कंधा बाजू दूसरा बाजू सीना, पेट कांख कमर जांघे, पैरों की पिंडलियाँ तो अलग उन्होंने तलवों तक को नहीं छोड़ा. मेरे शरीर का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ उन्होंने काट कर निशान न बनाए हों.
बाद में उन निशानों की गिनती में कुल संख्या 197 निकली थी.
उस वक्त मेरी हालत ऐसी थी कि मजा तो बहुत मिल रहा था पर दर्द भी उतना ही होता जा रहा था.
और इस सब में आंटी को जाने कितना मजा आ रहा था कि वो दो बार झड़ भी गई.
जब वो मेरे पूरे शरीर पर निशान बना चुकी तो मुझे बोली- अब बता? तू भूल पायेगा इस दिन को?
और मेरा जवाब था- नहीं भूल पाऊँगा.
मैंने फिर आंटी से कहा- अब तो खोल दो !
तो आंटी बोली- अभी तो और बाकी है न ! वो भी हो जाने दे, फिर खोल दूँगी !
यह कह कर वो मेरे सामने आकर बैठ गई और उन्होंने मेरा लंड मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया. उनके लंड चूसने का अंदाज भी निराला ही था पहले लंड को मुंह में लेती और फिर कुल्फी की तरह धीरे धीरे बाहर की तरफ चूस कर होंठ बाहर ले आती, और फिर हाथों से लंड को पकड़ कर सुपारे की चमड़ी फिर से पीछे खींच देती थी. उन्होंने 20 मिनट ऐसे किया होगा, मुझे लगा मैं झड़ने वाला हूँ और जैसे ही उन्हें लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ आंटी ने चूसना बंद कर दिया.
मैंने कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गई?
तो बोली- अभी तुझे झड़ने थोड़े ही देना है.
और फिर आंटी ने लंड को छोड़ कर मेरे बालों को सहलाना शुरू कर दिया, उस वक्त मैं चाहता तो यह था कि आंटी को अभी पटक कर चोद दूँ और सारा वीर्य उनकी चूत में ही भर दूं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, हाथ पैर दोनों बंधे हुए थे.
जब आंटी को लगा कि मैं फिर से सहन करने की हालत में आ गया हूँ तो उन्होंने अपनी पैंटी उतारी और अपनी चूत मेरे मुंह पर रख दी और मुझे फिर से चूसने लगी.
अब वो मुझे चूस रही थी और मैं उनको और जब भी उन्हें लगता कि मैं झड़ने की कगार पर हूँ, वो मुझे चूसना बंद कर देती और अपनी चूत को मेरे मुँह पर और जोर से रगड़ना शुरु कर देती थी.
हम दोनों ने इसी तरह एक दूसरे को थोड़ी देर चूसा था कि आंटी अपनी चूत का नमकीन सा रस मेरे मुंह पर छोड़ते एक बार और झड़ गई. जब आंटी झड़ चुकी तो उठ कर मेरे बगल में तकिये पर लेट गई और चादर उठा कर खुद भी ओढ़ ली और मुझे भी ढक लिया.
मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा.
मेरी बात सुन कर आंटी ने मुझे कान पर हल्के से काटा और दांतों को बड़े प्यार से कान पर चलाने लगी मानो दांत पीस रही हो, एक अद्भुत ही अनुभूति थी वो, और फिर वो धीरे से मेरे ऊपर आ गई और फिर मेरे दूसरे कान को भी इसी तरह से चूम कर काटने लगी.
मुझे लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ,
उसके बाद उन्होंने मेरे बायें कान को छोड़ा और उसके थोड़ा नीचे एक बार काट कर दांतों से निशान बना दिया, मुझे मजा भी बहुत आया और दर्द भी हुआ पर मैं आह करने के अलावा कुछ और कर नहीं सकता था तब, उसके बाद आंटी ने मेरी ठोड़ी और कान के बीच एक बार हल्के से काट लिया और मैं बोल ही पड़ा- क्या कर रही हो यार तुम ?
तो जवाब मिला- तुझे जिंदगी भर ना भूल सकने वाली याद दे रही हूँ !
उसके बाद आंटी थोड़ा नीचे खिसकी और मुझे फिर कंधों पर काट कर निशान बना दिया फिर एक निशान, दूसरा निशान, तीसरा निशान इस तरह से उन्होंने एक एक कर के मेरे शरीर पर जाने कितने लव बाइट्स देना शुरू करे और रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं उन लव् बाइट्स से तड़प भी रहा था और मजा भी ले रहा था.
जब आंटी मुझे ये निशान दे रही थी तो खुद को, अपनी चूत को भी मेरे शरीर के जिस हिस्से पर हो सकता था वहाँ टिका कर रगड़ते भी जा रही थी. उन्होंने कुछ और निशान बनाए होंगे कि वो झड़ने लगी, झड़ने के बाद वो कुछ देर रुकी और फिर से उन्होंने मुझे काटना शुरू कर दिया.
पहले कंधा फिर दूसरा कंधा बाजू दूसरा बाजू सीना, पेट कांख कमर जांघे, पैरों की पिंडलियाँ तो अलग उन्होंने तलवों तक को नहीं छोड़ा. मेरे शरीर का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ उन्होंने काट कर निशान न बनाए हों.
बाद में उन निशानों की गिनती में कुल संख्या 197 निकली थी.
उस वक्त मेरी हालत ऐसी थी कि मजा तो बहुत मिल रहा था पर दर्द भी उतना ही होता जा रहा था.
और इस सब में आंटी को जाने कितना मजा आ रहा था कि वो दो बार झड़ भी गई.
जब वो मेरे पूरे शरीर पर निशान बना चुकी तो मुझे बोली- अब बता? तू भूल पायेगा इस दिन को?
और मेरा जवाब था- नहीं भूल पाऊँगा.
मैंने फिर आंटी से कहा- अब तो खोल दो !
तो आंटी बोली- अभी तो और बाकी है न ! वो भी हो जाने दे, फिर खोल दूँगी !
यह कह कर वो मेरे सामने आकर बैठ गई और उन्होंने मेरा लंड मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया. उनके लंड चूसने का अंदाज भी निराला ही था पहले लंड को मुंह में लेती और फिर कुल्फी की तरह धीरे धीरे बाहर की तरफ चूस कर होंठ बाहर ले आती, और फिर हाथों से लंड को पकड़ कर सुपारे की चमड़ी फिर से पीछे खींच देती थी. उन्होंने 20 मिनट ऐसे किया होगा, मुझे लगा मैं झड़ने वाला हूँ और जैसे ही उन्हें लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ आंटी ने चूसना बंद कर दिया.
मैंने कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गई?
तो बोली- अभी तुझे झड़ने थोड़े ही देना है.
और फिर आंटी ने लंड को छोड़ कर मेरे बालों को सहलाना शुरू कर दिया, उस वक्त मैं चाहता तो यह था कि आंटी को अभी पटक कर चोद दूँ और सारा वीर्य उनकी चूत में ही भर दूं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, हाथ पैर दोनों बंधे हुए थे.
जब आंटी को लगा कि मैं फिर से सहन करने की हालत में आ गया हूँ तो उन्होंने अपनी पैंटी उतारी और अपनी चूत मेरे मुंह पर रख दी और मुझे फिर से चूसने लगी.
अब वो मुझे चूस रही थी और मैं उनको और जब भी उन्हें लगता कि मैं झड़ने की कगार पर हूँ, वो मुझे चूसना बंद कर देती और अपनी चूत को मेरे मुँह पर और जोर से रगड़ना शुरु कर देती थी.
हम दोनों ने इसी तरह एक दूसरे को थोड़ी देर चूसा था कि आंटी अपनी चूत का नमकीन सा रस मेरे मुंह पर छोड़ते एक बार और झड़ गई. जब आंटी झड़ चुकी तो उठ कर मेरे बगल में तकिये पर लेट गई और चादर उठा कर खुद भी ओढ़ ली और मुझे भी ढक लिया.