hotaks444
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नानाजी थोड़ा चुप हो गए. शायद मेरा रिएक्शन परख रहे है. मेरा दिमाग में दूसरा कैलकुलेशन चल रहा है. अब मुझे लगा की शायद इस बात से माँ दुखी है और मुझसे शायद नाराज भी है. मैं मन में सोचा की अगर उनका ख़ुशी के लिए मुझे शादी न भी करना पडे, तो मुझे कोई खेद नहीं है. उनको ज़िन्दगी भर खुश रखना चाहता हुं.
नानाजी फिर बोले
"देखो बेटे ..तुमहारा लाइफ में कोई आकर तुम्हारे पास खड़े हो जाए, तुम्हारा हर इमोशन सही तरह से शेयर कर ले, हर चढाई उतराई में तुम्हारे साथ रहके ज़िन्दगी की राहों में चलना आसान कर दे. इस लिए सब के लाइफ में बीवी की जरूरत पड़ती है."
मैं में जो सोच रहा था टेंशन के साथ, शायद उस का छाप मेरे फेस पे नज़र आया था. इस लिए नाना नानी हास पडा. नानाजी आगे बोलते रहै
" हमने आज तक तुमहारा सब भला बुरा सोच के ही काम किया. अब यह लास्ट ड्यूटी भी ठीक से पूरी हो जाये तो चैन से मर सकता हु."
मैं माँ का बात सोच के बोलने लगा
" नानाजी....आप का बात ठीक है... लेकिन ......."
मैन रुक गया. मुझे पहले माँ से जानना है , क्या इस बात को लेके वह दुखी है !!. इस लिए मुझे गुस्सा होक मेरे से दूर है!! लेकिन नानाजी शायद मेरा द्विधा समझ गए और मेरा बात पकड़ के बोले
" बेटा पहले में जो बोल रहा हुन ..पुरा सुन लो. फिर तुम आराम से सोच समझ के मुझे बताना. अगर तुम को लगे की यह हमारा सब का भलाई के लिए है, तो वैसे सोच के बताना, नहीं तो जो मन में डिसाईड करोगे ,वईसे ही बताना. कोई प्रेशर नहीं तुम्हारे उपर. "
यह बोलके नानाजी नानीजी को देखे. नानीजी भी सहमत होकर अपना सर हिलके मुझे आश्वसन दिलाया.
नानाजी फिर से बोलना शुरू किया
" बेटा...हुम तुम को सब चीज़ दिया बचपन से, जो हर कोई बच्चे को मिलता है, लेकिन एक चीज़ कभी नहीं दे पाये"
मैं नानाजी के तरफ देख के सुनने लगा
" हर बच्चे का नसीब में किसीको 'पापा' कहके बुलाने का सुख है, वह हम कभी तुम्हे प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं दे पाया. और अब तुम्हारा शादी हो जाये तो तुम को एक नए मम्मी पापा भी मिलेंगे."
फिर नानाजी थोड़ा आगे आके , मेरा हाथ अपना हाथ के अंदर लेके, दूसरी हाथ से मेरे हाथ को दो बार थप थपाया. और एक मुलायम स्नेह भरी आवाज़ से मुझे देख के बोलने लगे
" हम सब का भलाई सोच के ही यह सब कर रहा हु.........अगर तुम को बोलू...मतलब...क्या तुम मुझे 'पापा' बोलके बुलाना पसंद करोगे?"
बोलके मेरे आँखों में अंख मिलके देखने लगे. मुझे इस बात को समझने में कुछ पल लग गया. जैसे ही इस का मतलब मुझे समझ में आया, तभी मेरा शरीर में एक अनजाना अनुभुति फ़ैलने लगाग. मैं फिर भी कन्फर्म होने के लिए , गले में उसका असर पड़ने ना देखे, पुछा
" मतलब आप क्या कहना चाहते है नानाजी ?"
नानाजी स्ट्रैट बोलने लाग
" बेटा अब में तुम्हारा नाना बनके नही, एक बेटी का बाप बनके तुमसे यह पुछ रहा हु की क्या तुम मेरी बेटी का हाथ थामोगे?"
अब मेरे अंदर एक अजीब सा, एक अद्भुत सा फीलिंग्स होने लगा. जो में बयां नहीं कर सकता. मैं केवल बोला
" एह्...यः....आप क्य...क्या कह रहे है नानाजी......"
"हम बहुत..बहुत सोच समझने के बाद यह बात तुमको बोलने का साहस किया"
मैं अपने आप को कण्ट्रोल करते हुए कह
"पर...पर....यह कैसे होगा.....कैसे मुमकीन है......"
" अगर हम चाहे तो सब हो सकता है बेटा"
मेरी माँ का चेहरा मेरे नज़र के सामने आया. मैं सोचने लगा की यह सब बात सुनने के बाद में माँ से कैसे फेस करूँगा अब. और नाना नानी मेरे से खुलके ऐसे बात कर रहे है की मुझे एक शरम, न जाने क्या , मुझ में छा ने लगाग. मैं बोला
" नानाजी हम कैसे ऐसे कर सकते है....ना की कहीं...कभी ऐसा हुआ!!"
नानाजी शांत आवाज़ से कहे
"बेटा...में और तुम्हारा नानी इस बारे में सोचा..हमसब का ख़ुशी के लिए हम कुछ भी सहने के लिए तैयार है. हम बस चाहते है की हमारा बेटी और हमारा पोता ज़िन्दगी में हमेशा खुश रहे..."
फिर थोड़ा रुक के बोले
" और...और तुम्हारी माँ भी इस रिश्ते के लिए राजी है."
मैं चोंक गया. क्या माँ भी जानती है यह सब!! क्या इस लिए वह मेरे सामने नहीं आरही है!! इस लिए फ़ोन पे ठीक से बात नहीं कर पायी!! और तो और उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने के लिए भी मंजूरी दे दि.. मेरा स्पाइन में के एक ठण्डी शीतल पर दिल में कम्पन देणे वाली एक अनुभुति धेरे धेरे नीचे जेक पूरा सरीर में फैल गया. मेरा सर झिमझिम करने लगा. फिर भी में थोड़ा आश्चर्य और डाउट के साथ धिरे से पुछा
" क्या आप लोग माँ से भी इस बारे में बात......और.....और उन्होंने ...."
बोलके में चुप हो गया. नानाजी बोले
" पहले तो वह हम से बहुत गुस्सा किया. एक दम ख़फ़ा हो गयी थी. तीन दिन ठीक से बात भी नहीं कि, खाना भी नहीं खायी. दिन भर रूम लॉक करके अंदर रहने लगी. फिर और दो दिन बाद सिचुएशन थोड़ा सहज हुआ. मंजु भी धिरे धिरे थोड़ा नरम होने लगी. और कल जब तुम्हारा नानी से मंजु का बात हुआ तो तभी हम जान पाये."
मेरा दिमाग में बहुत सारे सोच्, चिंता भर के भीड़ करने लगा. मैं कुछ न बोलके बैठा था. नानाजी बोले
" हम तुम पर जबरदस्ती से हमारा इच्छा चढा नहीं रहा हु. इतना जल्दी जवाब देणे की जरुरत नही. तुम टाइम लेके सोचो. फिर बताओ. जो भी राय होगा तुम्हारा, उसको हम प्यार से एक्सेप्ट करेंगे"
उस दिन में बहुत सारे चिंता और नए नए अनुभुति के साथ धिरे धिरे नाना जी के रूम से निकल के मेरे रूम में आया. मेरा अनुपस्थिति में , मेरा बिस्तर एक दम फिट फाट बनाके गयी है मा. मैं ज़ादा सोच भी नहीं पा रहा था. बस जाके सो गाया. नीद नहीं आ रही थी. बीच बीच में एक नइ उत्तेजना से कांपने लगा. जो भावना मेरे मन के अंदर थी, आज वह सच मुच घटने जा रहा है. एक रोमाँच में बन्द होकर आंख बंध करके पड़ा रहा. ऐसे कैसे टाइम चला गया पता नहीं चला. देर रात तक अकेला सो सो के कुछ डिसिशन लेनेका फैसला किया. पर हालत ऐसा था की उस से पहले खुदको हल्का करने के लिए पाजामे के अंदर से अपना पेनिस निकल के हिलाने लगा. पेनिस आज ज़ादा गरम मेहसुस हुआ. मैं जोर से झटका मार मार के गरम गरम सीमेन पूरा बॉडी में बारिश जैसा गिराया. मन शांत होने लगा क्यों की तब तक शायद मेरे अंदर अन्जाने में कोई डिसिशन हो चुका था. और धिरे धिरे एक चैन की नीद आने लगी.
नानाजी फिर बोले
"देखो बेटे ..तुमहारा लाइफ में कोई आकर तुम्हारे पास खड़े हो जाए, तुम्हारा हर इमोशन सही तरह से शेयर कर ले, हर चढाई उतराई में तुम्हारे साथ रहके ज़िन्दगी की राहों में चलना आसान कर दे. इस लिए सब के लाइफ में बीवी की जरूरत पड़ती है."
मैं में जो सोच रहा था टेंशन के साथ, शायद उस का छाप मेरे फेस पे नज़र आया था. इस लिए नाना नानी हास पडा. नानाजी आगे बोलते रहै
" हमने आज तक तुमहारा सब भला बुरा सोच के ही काम किया. अब यह लास्ट ड्यूटी भी ठीक से पूरी हो जाये तो चैन से मर सकता हु."
मैं माँ का बात सोच के बोलने लगा
" नानाजी....आप का बात ठीक है... लेकिन ......."
मैन रुक गया. मुझे पहले माँ से जानना है , क्या इस बात को लेके वह दुखी है !!. इस लिए मुझे गुस्सा होक मेरे से दूर है!! लेकिन नानाजी शायद मेरा द्विधा समझ गए और मेरा बात पकड़ के बोले
" बेटा पहले में जो बोल रहा हुन ..पुरा सुन लो. फिर तुम आराम से सोच समझ के मुझे बताना. अगर तुम को लगे की यह हमारा सब का भलाई के लिए है, तो वैसे सोच के बताना, नहीं तो जो मन में डिसाईड करोगे ,वईसे ही बताना. कोई प्रेशर नहीं तुम्हारे उपर. "
यह बोलके नानाजी नानीजी को देखे. नानीजी भी सहमत होकर अपना सर हिलके मुझे आश्वसन दिलाया.
नानाजी फिर से बोलना शुरू किया
" बेटा...हुम तुम को सब चीज़ दिया बचपन से, जो हर कोई बच्चे को मिलता है, लेकिन एक चीज़ कभी नहीं दे पाये"
मैं नानाजी के तरफ देख के सुनने लगा
" हर बच्चे का नसीब में किसीको 'पापा' कहके बुलाने का सुख है, वह हम कभी तुम्हे प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं दे पाया. और अब तुम्हारा शादी हो जाये तो तुम को एक नए मम्मी पापा भी मिलेंगे."
फिर नानाजी थोड़ा आगे आके , मेरा हाथ अपना हाथ के अंदर लेके, दूसरी हाथ से मेरे हाथ को दो बार थप थपाया. और एक मुलायम स्नेह भरी आवाज़ से मुझे देख के बोलने लगे
" हम सब का भलाई सोच के ही यह सब कर रहा हु.........अगर तुम को बोलू...मतलब...क्या तुम मुझे 'पापा' बोलके बुलाना पसंद करोगे?"
बोलके मेरे आँखों में अंख मिलके देखने लगे. मुझे इस बात को समझने में कुछ पल लग गया. जैसे ही इस का मतलब मुझे समझ में आया, तभी मेरा शरीर में एक अनजाना अनुभुति फ़ैलने लगाग. मैं फिर भी कन्फर्म होने के लिए , गले में उसका असर पड़ने ना देखे, पुछा
" मतलब आप क्या कहना चाहते है नानाजी ?"
नानाजी स्ट्रैट बोलने लाग
" बेटा अब में तुम्हारा नाना बनके नही, एक बेटी का बाप बनके तुमसे यह पुछ रहा हु की क्या तुम मेरी बेटी का हाथ थामोगे?"
अब मेरे अंदर एक अजीब सा, एक अद्भुत सा फीलिंग्स होने लगा. जो में बयां नहीं कर सकता. मैं केवल बोला
" एह्...यः....आप क्य...क्या कह रहे है नानाजी......"
"हम बहुत..बहुत सोच समझने के बाद यह बात तुमको बोलने का साहस किया"
मैं अपने आप को कण्ट्रोल करते हुए कह
"पर...पर....यह कैसे होगा.....कैसे मुमकीन है......"
" अगर हम चाहे तो सब हो सकता है बेटा"
मेरी माँ का चेहरा मेरे नज़र के सामने आया. मैं सोचने लगा की यह सब बात सुनने के बाद में माँ से कैसे फेस करूँगा अब. और नाना नानी मेरे से खुलके ऐसे बात कर रहे है की मुझे एक शरम, न जाने क्या , मुझ में छा ने लगाग. मैं बोला
" नानाजी हम कैसे ऐसे कर सकते है....ना की कहीं...कभी ऐसा हुआ!!"
नानाजी शांत आवाज़ से कहे
"बेटा...में और तुम्हारा नानी इस बारे में सोचा..हमसब का ख़ुशी के लिए हम कुछ भी सहने के लिए तैयार है. हम बस चाहते है की हमारा बेटी और हमारा पोता ज़िन्दगी में हमेशा खुश रहे..."
फिर थोड़ा रुक के बोले
" और...और तुम्हारी माँ भी इस रिश्ते के लिए राजी है."
मैं चोंक गया. क्या माँ भी जानती है यह सब!! क्या इस लिए वह मेरे सामने नहीं आरही है!! इस लिए फ़ोन पे ठीक से बात नहीं कर पायी!! और तो और उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने के लिए भी मंजूरी दे दि.. मेरा स्पाइन में के एक ठण्डी शीतल पर दिल में कम्पन देणे वाली एक अनुभुति धेरे धेरे नीचे जेक पूरा सरीर में फैल गया. मेरा सर झिमझिम करने लगा. फिर भी में थोड़ा आश्चर्य और डाउट के साथ धिरे से पुछा
" क्या आप लोग माँ से भी इस बारे में बात......और.....और उन्होंने ...."
बोलके में चुप हो गया. नानाजी बोले
" पहले तो वह हम से बहुत गुस्सा किया. एक दम ख़फ़ा हो गयी थी. तीन दिन ठीक से बात भी नहीं कि, खाना भी नहीं खायी. दिन भर रूम लॉक करके अंदर रहने लगी. फिर और दो दिन बाद सिचुएशन थोड़ा सहज हुआ. मंजु भी धिरे धिरे थोड़ा नरम होने लगी. और कल जब तुम्हारा नानी से मंजु का बात हुआ तो तभी हम जान पाये."
मेरा दिमाग में बहुत सारे सोच्, चिंता भर के भीड़ करने लगा. मैं कुछ न बोलके बैठा था. नानाजी बोले
" हम तुम पर जबरदस्ती से हमारा इच्छा चढा नहीं रहा हु. इतना जल्दी जवाब देणे की जरुरत नही. तुम टाइम लेके सोचो. फिर बताओ. जो भी राय होगा तुम्हारा, उसको हम प्यार से एक्सेप्ट करेंगे"
उस दिन में बहुत सारे चिंता और नए नए अनुभुति के साथ धिरे धिरे नाना जी के रूम से निकल के मेरे रूम में आया. मेरा अनुपस्थिति में , मेरा बिस्तर एक दम फिट फाट बनाके गयी है मा. मैं ज़ादा सोच भी नहीं पा रहा था. बस जाके सो गाया. नीद नहीं आ रही थी. बीच बीच में एक नइ उत्तेजना से कांपने लगा. जो भावना मेरे मन के अंदर थी, आज वह सच मुच घटने जा रहा है. एक रोमाँच में बन्द होकर आंख बंध करके पड़ा रहा. ऐसे कैसे टाइम चला गया पता नहीं चला. देर रात तक अकेला सो सो के कुछ डिसिशन लेनेका फैसला किया. पर हालत ऐसा था की उस से पहले खुदको हल्का करने के लिए पाजामे के अंदर से अपना पेनिस निकल के हिलाने लगा. पेनिस आज ज़ादा गरम मेहसुस हुआ. मैं जोर से झटका मार मार के गरम गरम सीमेन पूरा बॉडी में बारिश जैसा गिराया. मन शांत होने लगा क्यों की तब तक शायद मेरे अंदर अन्जाने में कोई डिसिशन हो चुका था. और धिरे धिरे एक चैन की नीद आने लगी.