hotaks444
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रामु अपना सुध बुध खोया हुआ अपने सामने इस सुंदर काया को अपने हाथों का खिलोना बनाने को आजाद था वो चुचियों को तो ब्लाउज के ऊपर से सहला रहा था पर उसका मन तो उसके अंदर से छूने को था उसने दूसरे हाथ को आरती के गालों और होंठों से आजाद किया और धीरे से उसके ब्लाउज के गॅप से उसके अंदर की डाल दिया मखमल सा एहसास उसके हाथों को हुआ और वो बढ़ता ही गया
जैसे-जैसे उसका हाथ आरती के ब्लाउज के अंदर की ओर होता जा रहा था वो आरती से और भी सटता जा रहा था अब दोनों के बीच में कोई भी गॅप नहीं था आरती रामू से पूरी तरह टिकी हुई थी या कहिए अब पूरी तरह से उसके सहारे थी उसकी जाँघो से टिकी अपने पीठ पर रामू काका के लण्ड का एहसास लेती हुई आरती एक अनोखे संसार की सैर कर रही थी उसके शरीर में जो आग लगी थी अब वो धीरे-धीरे इतनी भड़क चुकी थी कि उसने अपने जीवन काल में इस तरह का एहसास नहीं किया था
वो अपने को भूलकर रामू काका को उनका हाथ अपने ब्लाउसमें घुसने में थोड़ा मदद की वो थोड़ा सा आगे की ओर हुई अपने कंधों को आगे करके ताकि रामू काका के हाथ आराम से अंदर जा सके । रामू काका की कठोर और सख्त हथेली जब उसकी स्किन से टकराई तो वो और भी सख्त हो गई उसका हाथ अपने आप उठकर अपने ब्लाउज के ऊपर से रामू काका के हाथ पर आ गया एक फिर दोनों और फिर रामू काका का हाथ ब्लाउज के अंदर रखे हुई थी वो और भी तन गई अपने चूचियां को और भी सामने की और करके वो थोड़ा सा सिटी से उठ गई थी
रामू ने भी आरती के समर्थन को पहचान लिया था वो समझ गये थे कि आरती अब ना नहीं कहेगी वो अब अपने हाथों का जोर उसके चुचियों पर बढ़ने लगे थे धीरे-धीरे रामू उसकी चुचियों को छेड़ता रहा और उसकी सुडोलता को अपने हाथों से तोलता रहा और फिर उसके उंगलियों के बीच में निपल को लेकर धीरे से दबाने लगा
उूुुुुुउऊह्ह आरति के मुख से एक लंबी सी सिसकारी निकली
आरती- ऊऊह्ह पल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लीीआआआआअसस्स्स्स्स्स्सीईईई आआआआआह्ह
रामू को क्या पता क्या बोल गई थी आरती पर हाँ उसके दोनों हाथों के दबाब से वो यह तो समझ ही गया था कि आरती क्या चाहती थी उसने अपने दोनों हाथों को उसके ब्लाउज के अंदर घुसा दिया इस बार कोई ओपचारिकता नहीं की बस अंदर और अंदर और झट से दबाने लगा पहले धीरे फिर थोड़ा सा जोर से इतनी कोमल और नरम चीज आज तक उसके हाथ में नहीं आई थी वो अपने आप पर विश्वास नहीं कर पा रहा था वो थोड़ा सा और झुका और अपने बड़े और मोटे-मोटे होंठों को आरती के चिकने और गुलाबी गालों पर रख दिया और चूमने लगा चूमने क्या लगा सहद जैसे चाटने लगा था पागलो जैसी स्थिति थी रामू की । अपने हाथों में एक बड़े घर की बहू को वो शरीर रूप से मोलेस्ट कर रहा था और आरती उसका पूरा समर्थन दे रही थी कंधे का दर्द कहाँ गया वो तो पता नहीं हाँ पता था तो बस एक खेल की शुरूरत हो चुकी थी और वो था सेक्स का खेल्ल शारीरिक भूख का खेल एक दूसरे को संत्ुस्त करने का खेल एक दूसरे को समर्पित करने का खेल। आरती तो बस अपने आपको खो चुकी थी । रामू के झुक जाने की बजाह से उसके ब्लाउज के अंदर रामु के हाथ अब बहुत ही सख़्त से हो गये थे वो उसके ब्लाउज के ऊपर के दो तीन बाट्टों को टाफ चुले थे दोनों तरफ के ब्लाउज के साइड लगभग अब उसका साथ छोड़ चुके थी वो अब बस किसी तरह नीचे के कुछ एक दो या फिर तीन हुक के सहारे थे वो भी कब तक साथ देंगे पता नहीं पर आरती को उससे क्या वो तो बस अपने शरीर भूख की शांत करना चाहती थी इसीलिए तो रामू काका को उसने अपने कमरे में बुलाया था वो शांत थी और अपने हाथों का दबाब रामू के हाथों पर और जोर से कर रही थी वो रामू के झुके होने से अपना सिर रामु के कंधे पर टिकाए हुए थी वो शायद सिटी को छोड़ कर अपने पैरों को नीचे रखे हुए और सिर को रामू के कंधे पर टिकाए हुए अपने को हवा में उठा चुकी थी
रामू तो अपने होंठों को आरती के गालों और गले तक जहां तक वो जा सटका था ले जा रहा था अपने हाथों का दबाब भी वो अब बढ़ा चुका था। आरती के चूचियां पर जोर जोर-जोर से और जोर से की आरती के मुख से एक जोर से चीत्कार जब तक नहीं निकल गई
आरती- ईईईईईईईईईईईई आआआआआअह्ह उूुुुउउफफफफफफफफफफफफ्फ़
और झटक से आरती के ब्लाउसने भी आरती का साथ छोड़ दिया अब उसकी ब्लाउस सिर्फ़ अपना अस्तितव बनाने के लिए ही थे उसके कंधे पर और दोनों पाट खुल चुके थे अंदर से उसकी महीन सी पतली सी स्ट्रॅप्स के सहारे आरती के कंधे पर टीके हुए थे और ब्रा के अंदर रामू के मोटे-मोटे हाथ उसके उभारों को दबा दबा के निचोड़ रहे थे रामू भूल चुका था की आरती एक बड़े घर की बहू है कोई गॉव की देहाती लड़की नही या फिर कोई देहात की खेतो में काम करने वाली लड़की नहीं है पर वो तो अपने हाथों में रूई सी कोमल और मखमल सी कोमल नाजुक लड़की को पाकर पागलो की तरह अब उसे रौंदने लगा था।
वो अपने दोनों हाथों को आरती की चुचियों पर रखे हुए उसे सहारा दिए हुए उसके गालों और गले को चाट और चूम रहा था
उसका थूक आरती के पूरे चेहरे को भिगा चुका था वो अब एक हाथ से रामू की गर्दन को पकड़ चुकी थी और खुद ही अपने गालों और गर्दन को इधर-उधर या फिर उचका करके रामु को जगह दे रही थी कि यहां चाटो या फिर यहां चुमो उसके मुख और नाक से सांसें अब रामु के चेहरे पर पड़ रही थी । रामू की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं थी वो अधखुली आखों से आरती की ओर देखता रहा और अपने होंठों को उसके होंठों की ओर बढ़ाने लगा। आरती रामू के इस इंतजार को सह ना पाई और उसकी आखें भी खुली रामू की आखों में देखते ही वो जैसे समझ गई थी कि रामू क्या चाहता है उसने अपने होंठों को रामु के होंठो में रख दिया जैसे कह रही हो लो चूमो चाटो और जो मन में आए करो पर मुझे शांत करो । आरती की हालत इस समय ऐसी थी कि वो किसी भी हद तक जा सकती थी वो रामू के होंठों को अपने कोमल होंठों से चूस रही थी और रामु जो कि आरती की इस हरकत को नजर अंदाज नहीं कर पाया वो अब भी आरती की दोनों चुचियों को कसकर निचोड़ रहा था और अपने मुँह में आरती के होंठों को लेकर चूस रहा था वो हब्सियो की तरह हो गया था उसके जीवन में इस तरह की घटना आज तक नहीं हुई थी और आज वो इस घटना को अपने आप में समेट कर रख लेना चाहता था वो अब आरती को चोदे बगैर नहीं छोड़ना चाहता था वो भूल चुका था कि वो इस घर का नौकर है अभी तो वो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मर्द था और उसे भूख लगी थी किसी नारी के शरीर की और वो नारी कोई भी हो उससे फरक नहीं पड़ता था उसकी मालकिन ही क्यों ना हो वो अब नहीं रुक सकता .
उसने आरती को अपने बलिश्त हाथ से खींच लिया लगभग गिरती हुई आरती कुर्सी को छोड़ कर रामू के ऊपर गिर पड़ी पर रामू तैयार था उसने आरती को सहारा दिया और अपनी बाहों में कसकर बाँध लिया उसने आरती को अब भी पीठ से पकड़ा हुआ था उसके हाथों की छीना झपटी में आरती की दोनों चूचियां ब्रा के बाहर आ गई थी
बल्कि कहिए खुद ही आजाद हो गई होंगी कितना जुल्म सहे बेचारी कैद में आरती का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था वो इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि लग रहा था कि अब कभी भी बस झड जाएगी पर रामू की उत्तेजना तो इससे भी कही अधिक थी उसका लण्ड तो जैसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था । रामू अब नहीं रुकना चाहता था और ना ही कुछ आगे की ही सोच पा रहा था उसने आरती को अपनी ओर कब मोड़ लिया आरती को पता भी ना चला बस पता चला तब जब उसकी सांसें अटकने लगी थी । रामू काका की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो उनकी बाहों में हिल भी नहीं पा रही थी सांस लेना तो दूर की बात वो अपने होंठों को भी रामू काका से अलग करके थोड़ा सा सांस ले ले वो भी नहीं कर पा रही थी
रामू जो कि बस अब आरती के पूरे तन पर राज कर रहा था उसके हाथों का खिलोना पाकर वो उसे अपनी बाहों में जकड़े हुए उसके होंठों को अपने मुख में लेता जा रहा था और अंदर तक वो अपनी जीब को आरती के सुंदर और कोमल मुख में घुसाकर अंदर उसकी लार को अपने मुख में लेकर अमृत पान कर रहा था उसने आरती को इतनी जोर से जकड़ रखा था यह वो नहीं जानता था हाँ… पर उसे यह जरूर पता था रूई की गेंद सी कोई चीज़ जो कि एकदम कही से भी खुरदरी नहीं है उसके बाहों में है उसका लण्ड अब आरती की जाँघो के बीच में रगड़ खा रहा था रामू की हथेली आरती को थोड़ा सा ढीला छोड़ कर अपनी बाहों में आए हुश्न की परिक्रमा करने चल दी और आरती की पीठ से लेकर नितंबों तक घूम आए कब कहाँ कौन सा हाथ था यह आरती भी नहीं जानना चाहती थी नहीं ही रामू हाँ… सपर्श जिसका ही एहसास दोनों को महसूस हो रहा था वो खास था। आरती के शरीर को आज तक किसी ने इस तरह से नहीं छुआ था इतनी बड़ी बड़ी हाथलियो का स्पर्श और इतना कठोर स्पर्श आज तक आरती के शरीर ने नहीं झेला था या कहिए महसूस नहीं किया था रामू जैसे आटा गूँथ रहा था
वो आरती के शरीर को इस तरह से मथ रहा था कि आरती का सारा शरीर ही उसके खेलने का खिलोना था वो जहां मन करता था वही उसे रगड़ रहा था । रामू और आरती अब नीचे कालीन में लेटे हुए थे और रामू नीचे से आरती को अपने ऊपर पकड़कर उससे खेल रहा था उसके होंठ अब भी आरती के होंठों पर थे और एक दूसरे के थूक से खेल रहे थे । आरती अपने को संभालने की स्थिति में नहीं थी उसकी पेटीकोट उसकी कमर के चारो तरफ एक घेरा बना के रह गया था अंदर की पैंटी पूरी तरह से गीली थी और वो रामू काका को अपनी जाँघो की मदद से थोड़ा बहुत पकड़ने की कोशिश भी कर रही थी पर रामू तो जो कुछ कर रहा था उसका उसे अनुभव ही नहीं था वो कभी आरती को इस तरफ और तो कभी उस तरफ करके उसके होंठों को अपने मुख में घुसा लेता था दोनों हाथ आजादी से उसके जिश्म के हर हिस्से पर घूम घूमकर उनकी सुडौलता का और कोमलता का एहसास भी कर रहे थे रामू के हाथ अचानक ही उसके नितंबो पर रुक गये थे और आरती की पैंटी की आउट लाइन के चारो तरफ घूमने लगे थे। आरती का पूरा शरीर ही समर्पण के लिए तैयार था इतनी उत्तेजना उसे तो पहली बार ही हुई थी
उसके पति ने भी कभी उसके साथ इस तरह से नहीं खेला था या फिर उसके शरीर को इस तरह से नहीं छुआ था। रामु काका के हर टच में कुछ नया था जो कि उसके अंदर तक उसे हिलाकर रख देता था उसके शरीर के हर हिस्से से सेक्स की भूख अपना मुँह उठाकर रामू काका को पुकार रही थी वो अब और नहीं सह सकती थी वो रामु काका को अपने अंदर समा लेना चाहती थी। रामू जो कि अब भी नीचे था और आरती को एक हाथ से जकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसकी पैंटी के चारो और से आउटलाइन बना रहा था अचानक ही उसने अपना हाथ उसकी पैंटी के अंदर घुसा दिया और कस कस कर उसके नितंबों को दबाने लगा फिर दूसरा हाथ भी इस खेल में शामिल हो गया आरती पर पकड़ जैसे ही थोड़ा ढीली हुई आरती अपनी चुत को और भी रामु के लण्ड के समीप ले गई और खुद ही उपर से घिसने लगी रामु का लण्ड तो आजादी के लिए तड़प ही रहा था्
जैसे-जैसे उसका हाथ आरती के ब्लाउज के अंदर की ओर होता जा रहा था वो आरती से और भी सटता जा रहा था अब दोनों के बीच में कोई भी गॅप नहीं था आरती रामू से पूरी तरह टिकी हुई थी या कहिए अब पूरी तरह से उसके सहारे थी उसकी जाँघो से टिकी अपने पीठ पर रामू काका के लण्ड का एहसास लेती हुई आरती एक अनोखे संसार की सैर कर रही थी उसके शरीर में जो आग लगी थी अब वो धीरे-धीरे इतनी भड़क चुकी थी कि उसने अपने जीवन काल में इस तरह का एहसास नहीं किया था
वो अपने को भूलकर रामू काका को उनका हाथ अपने ब्लाउसमें घुसने में थोड़ा मदद की वो थोड़ा सा आगे की ओर हुई अपने कंधों को आगे करके ताकि रामू काका के हाथ आराम से अंदर जा सके । रामू काका की कठोर और सख्त हथेली जब उसकी स्किन से टकराई तो वो और भी सख्त हो गई उसका हाथ अपने आप उठकर अपने ब्लाउज के ऊपर से रामू काका के हाथ पर आ गया एक फिर दोनों और फिर रामू काका का हाथ ब्लाउज के अंदर रखे हुई थी वो और भी तन गई अपने चूचियां को और भी सामने की और करके वो थोड़ा सा सिटी से उठ गई थी
रामू ने भी आरती के समर्थन को पहचान लिया था वो समझ गये थे कि आरती अब ना नहीं कहेगी वो अब अपने हाथों का जोर उसके चुचियों पर बढ़ने लगे थे धीरे-धीरे रामू उसकी चुचियों को छेड़ता रहा और उसकी सुडोलता को अपने हाथों से तोलता रहा और फिर उसके उंगलियों के बीच में निपल को लेकर धीरे से दबाने लगा
उूुुुुुउऊह्ह आरति के मुख से एक लंबी सी सिसकारी निकली
आरती- ऊऊह्ह पल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लीीआआआआअसस्स्स्स्स्स्सीईईई आआआआआह्ह
रामू को क्या पता क्या बोल गई थी आरती पर हाँ उसके दोनों हाथों के दबाब से वो यह तो समझ ही गया था कि आरती क्या चाहती थी उसने अपने दोनों हाथों को उसके ब्लाउज के अंदर घुसा दिया इस बार कोई ओपचारिकता नहीं की बस अंदर और अंदर और झट से दबाने लगा पहले धीरे फिर थोड़ा सा जोर से इतनी कोमल और नरम चीज आज तक उसके हाथ में नहीं आई थी वो अपने आप पर विश्वास नहीं कर पा रहा था वो थोड़ा सा और झुका और अपने बड़े और मोटे-मोटे होंठों को आरती के चिकने और गुलाबी गालों पर रख दिया और चूमने लगा चूमने क्या लगा सहद जैसे चाटने लगा था पागलो जैसी स्थिति थी रामू की । अपने हाथों में एक बड़े घर की बहू को वो शरीर रूप से मोलेस्ट कर रहा था और आरती उसका पूरा समर्थन दे रही थी कंधे का दर्द कहाँ गया वो तो पता नहीं हाँ पता था तो बस एक खेल की शुरूरत हो चुकी थी और वो था सेक्स का खेल्ल शारीरिक भूख का खेल एक दूसरे को संत्ुस्त करने का खेल एक दूसरे को समर्पित करने का खेल। आरती तो बस अपने आपको खो चुकी थी । रामू के झुक जाने की बजाह से उसके ब्लाउज के अंदर रामु के हाथ अब बहुत ही सख़्त से हो गये थे वो उसके ब्लाउज के ऊपर के दो तीन बाट्टों को टाफ चुले थे दोनों तरफ के ब्लाउज के साइड लगभग अब उसका साथ छोड़ चुके थी वो अब बस किसी तरह नीचे के कुछ एक दो या फिर तीन हुक के सहारे थे वो भी कब तक साथ देंगे पता नहीं पर आरती को उससे क्या वो तो बस अपने शरीर भूख की शांत करना चाहती थी इसीलिए तो रामू काका को उसने अपने कमरे में बुलाया था वो शांत थी और अपने हाथों का दबाब रामू के हाथों पर और जोर से कर रही थी वो रामू के झुके होने से अपना सिर रामु के कंधे पर टिकाए हुए थी वो शायद सिटी को छोड़ कर अपने पैरों को नीचे रखे हुए और सिर को रामू के कंधे पर टिकाए हुए अपने को हवा में उठा चुकी थी
रामू तो अपने होंठों को आरती के गालों और गले तक जहां तक वो जा सटका था ले जा रहा था अपने हाथों का दबाब भी वो अब बढ़ा चुका था। आरती के चूचियां पर जोर जोर-जोर से और जोर से की आरती के मुख से एक जोर से चीत्कार जब तक नहीं निकल गई
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और झटक से आरती के ब्लाउसने भी आरती का साथ छोड़ दिया अब उसकी ब्लाउस सिर्फ़ अपना अस्तितव बनाने के लिए ही थे उसके कंधे पर और दोनों पाट खुल चुके थे अंदर से उसकी महीन सी पतली सी स्ट्रॅप्स के सहारे आरती के कंधे पर टीके हुए थे और ब्रा के अंदर रामू के मोटे-मोटे हाथ उसके उभारों को दबा दबा के निचोड़ रहे थे रामू भूल चुका था की आरती एक बड़े घर की बहू है कोई गॉव की देहाती लड़की नही या फिर कोई देहात की खेतो में काम करने वाली लड़की नहीं है पर वो तो अपने हाथों में रूई सी कोमल और मखमल सी कोमल नाजुक लड़की को पाकर पागलो की तरह अब उसे रौंदने लगा था।
वो अपने दोनों हाथों को आरती की चुचियों पर रखे हुए उसे सहारा दिए हुए उसके गालों और गले को चाट और चूम रहा था
उसका थूक आरती के पूरे चेहरे को भिगा चुका था वो अब एक हाथ से रामू की गर्दन को पकड़ चुकी थी और खुद ही अपने गालों और गर्दन को इधर-उधर या फिर उचका करके रामु को जगह दे रही थी कि यहां चाटो या फिर यहां चुमो उसके मुख और नाक से सांसें अब रामु के चेहरे पर पड़ रही थी । रामू की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं थी वो अधखुली आखों से आरती की ओर देखता रहा और अपने होंठों को उसके होंठों की ओर बढ़ाने लगा। आरती रामू के इस इंतजार को सह ना पाई और उसकी आखें भी खुली रामू की आखों में देखते ही वो जैसे समझ गई थी कि रामू क्या चाहता है उसने अपने होंठों को रामु के होंठो में रख दिया जैसे कह रही हो लो चूमो चाटो और जो मन में आए करो पर मुझे शांत करो । आरती की हालत इस समय ऐसी थी कि वो किसी भी हद तक जा सकती थी वो रामू के होंठों को अपने कोमल होंठों से चूस रही थी और रामु जो कि आरती की इस हरकत को नजर अंदाज नहीं कर पाया वो अब भी आरती की दोनों चुचियों को कसकर निचोड़ रहा था और अपने मुँह में आरती के होंठों को लेकर चूस रहा था वो हब्सियो की तरह हो गया था उसके जीवन में इस तरह की घटना आज तक नहीं हुई थी और आज वो इस घटना को अपने आप में समेट कर रख लेना चाहता था वो अब आरती को चोदे बगैर नहीं छोड़ना चाहता था वो भूल चुका था कि वो इस घर का नौकर है अभी तो वो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मर्द था और उसे भूख लगी थी किसी नारी के शरीर की और वो नारी कोई भी हो उससे फरक नहीं पड़ता था उसकी मालकिन ही क्यों ना हो वो अब नहीं रुक सकता .
उसने आरती को अपने बलिश्त हाथ से खींच लिया लगभग गिरती हुई आरती कुर्सी को छोड़ कर रामू के ऊपर गिर पड़ी पर रामू तैयार था उसने आरती को सहारा दिया और अपनी बाहों में कसकर बाँध लिया उसने आरती को अब भी पीठ से पकड़ा हुआ था उसके हाथों की छीना झपटी में आरती की दोनों चूचियां ब्रा के बाहर आ गई थी
बल्कि कहिए खुद ही आजाद हो गई होंगी कितना जुल्म सहे बेचारी कैद में आरती का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था वो इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि लग रहा था कि अब कभी भी बस झड जाएगी पर रामू की उत्तेजना तो इससे भी कही अधिक थी उसका लण्ड तो जैसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था । रामू अब नहीं रुकना चाहता था और ना ही कुछ आगे की ही सोच पा रहा था उसने आरती को अपनी ओर कब मोड़ लिया आरती को पता भी ना चला बस पता चला तब जब उसकी सांसें अटकने लगी थी । रामू काका की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो उनकी बाहों में हिल भी नहीं पा रही थी सांस लेना तो दूर की बात वो अपने होंठों को भी रामू काका से अलग करके थोड़ा सा सांस ले ले वो भी नहीं कर पा रही थी
रामू जो कि बस अब आरती के पूरे तन पर राज कर रहा था उसके हाथों का खिलोना पाकर वो उसे अपनी बाहों में जकड़े हुए उसके होंठों को अपने मुख में लेता जा रहा था और अंदर तक वो अपनी जीब को आरती के सुंदर और कोमल मुख में घुसाकर अंदर उसकी लार को अपने मुख में लेकर अमृत पान कर रहा था उसने आरती को इतनी जोर से जकड़ रखा था यह वो नहीं जानता था हाँ… पर उसे यह जरूर पता था रूई की गेंद सी कोई चीज़ जो कि एकदम कही से भी खुरदरी नहीं है उसके बाहों में है उसका लण्ड अब आरती की जाँघो के बीच में रगड़ खा रहा था रामू की हथेली आरती को थोड़ा सा ढीला छोड़ कर अपनी बाहों में आए हुश्न की परिक्रमा करने चल दी और आरती की पीठ से लेकर नितंबों तक घूम आए कब कहाँ कौन सा हाथ था यह आरती भी नहीं जानना चाहती थी नहीं ही रामू हाँ… सपर्श जिसका ही एहसास दोनों को महसूस हो रहा था वो खास था। आरती के शरीर को आज तक किसी ने इस तरह से नहीं छुआ था इतनी बड़ी बड़ी हाथलियो का स्पर्श और इतना कठोर स्पर्श आज तक आरती के शरीर ने नहीं झेला था या कहिए महसूस नहीं किया था रामू जैसे आटा गूँथ रहा था
वो आरती के शरीर को इस तरह से मथ रहा था कि आरती का सारा शरीर ही उसके खेलने का खिलोना था वो जहां मन करता था वही उसे रगड़ रहा था । रामू और आरती अब नीचे कालीन में लेटे हुए थे और रामू नीचे से आरती को अपने ऊपर पकड़कर उससे खेल रहा था उसके होंठ अब भी आरती के होंठों पर थे और एक दूसरे के थूक से खेल रहे थे । आरती अपने को संभालने की स्थिति में नहीं थी उसकी पेटीकोट उसकी कमर के चारो तरफ एक घेरा बना के रह गया था अंदर की पैंटी पूरी तरह से गीली थी और वो रामू काका को अपनी जाँघो की मदद से थोड़ा बहुत पकड़ने की कोशिश भी कर रही थी पर रामू तो जो कुछ कर रहा था उसका उसे अनुभव ही नहीं था वो कभी आरती को इस तरफ और तो कभी उस तरफ करके उसके होंठों को अपने मुख में घुसा लेता था दोनों हाथ आजादी से उसके जिश्म के हर हिस्से पर घूम घूमकर उनकी सुडौलता का और कोमलता का एहसास भी कर रहे थे रामू के हाथ अचानक ही उसके नितंबो पर रुक गये थे और आरती की पैंटी की आउट लाइन के चारो तरफ घूमने लगे थे। आरती का पूरा शरीर ही समर्पण के लिए तैयार था इतनी उत्तेजना उसे तो पहली बार ही हुई थी
उसके पति ने भी कभी उसके साथ इस तरह से नहीं खेला था या फिर उसके शरीर को इस तरह से नहीं छुआ था। रामु काका के हर टच में कुछ नया था जो कि उसके अंदर तक उसे हिलाकर रख देता था उसके शरीर के हर हिस्से से सेक्स की भूख अपना मुँह उठाकर रामू काका को पुकार रही थी वो अब और नहीं सह सकती थी वो रामु काका को अपने अंदर समा लेना चाहती थी। रामू जो कि अब भी नीचे था और आरती को एक हाथ से जकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसकी पैंटी के चारो और से आउटलाइन बना रहा था अचानक ही उसने अपना हाथ उसकी पैंटी के अंदर घुसा दिया और कस कस कर उसके नितंबों को दबाने लगा फिर दूसरा हाथ भी इस खेल में शामिल हो गया आरती पर पकड़ जैसे ही थोड़ा ढीली हुई आरती अपनी चुत को और भी रामु के लण्ड के समीप ले गई और खुद ही उपर से घिसने लगी रामु का लण्ड तो आजादी के लिए तड़प ही रहा था्