Kamukta kahani कीमत वसूल - Page 14 - SexBaba
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Kamukta kahani कीमत वसूल

कीमत वसूल



अनु मेरी बाहों में सिमट गई और बोली- "मुझे आपसे प्यार करना है..."

मैंने कहा- "प्यार... कौन सा वाला?"

अनु ने मेरे लण्ड को पकड़कर कहा- "ये वाला."

मैंने अनु से कहा- "मेरी इतनी आदत मत डालो, नहीं तो तुम्हें परेशानी होगी.."

अनु ने कहा- "अब तो आप मेरी सांसों में बस गयें हो। आपकी आदत क्या, अब तो आप मेरी जान बन गये हो..." कहते हए अनु मेरे से चिपक कर बोली- "मेरे बाबु , मेरे शोना..."

मैंने अनु से फिर इस बारे में कोई बात नहीं करी। मैंने उसको कहा- "पहले अपने कपड़े तो उत्तारो ..."

अनु ने अपने कपड़े उतार दिए। मैंने उसका फिर से अपनी बाहों में ले लिया और अनु के गाल चूमते हए उसके कानों को अपने होंठों में दबा लिया, और फिर उसको अपनी जीभ की नोक से सहलाने लगा।

अनु ने जोर से सिसकी ली- "सस्स्स्स्सीईई अहह... बाबू आह्ह.."

मैंने फिर से ऐसा ही किया। इस बार अनु आउट आफ कंट्रोल हो गई। उसने मेरे चेहरे पर बेहतशा चूमना  शुरू कर दिया। बो मेरे पूरे चेहरे को मेरी गर्दन को ऐसे चूम और चाट रही थी जैसे भूखी बिल्ली को मलाई मिल गई हो। अनु ने मेरे पूरे चेहरे को अपनी जीभ से चाट-चाटकर गीला कर दिया। मेरा पूरे चेहरा अनु की लार से भर गया। अनु ने फिर मेरे सीने पर किस करना शुरू कर दिया।

मुझे ऐसा लगने लगा की अनु अगर कुछ देर मुझे ऐसे ही चूमती रही तो मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगा। फा में इतनी जल्दी अनु को चोदने के मूड में नहीं था। मैंने अनु को अपने ऊपर से उतारकर अपने नीचे कर दिया। अब में अनु के ऊपर था। मैंने उसकी दोनों चूचियों को हाथ से अलग-अलग कर दिया और दोनों चूचियों के बीच की जगह पर अपनी जीभ रख दी। फिर मैंने अपनी जीभ को नीचे से ऊपर तक फिरा दिया। अनु की दोनों चचियां मेरे दोनों हाथों में थी। मैंने उसकी चूचियों पर अपने हाथों को गोल-गोल घुमाकर उसकी चूचियों में दूध उतार दिया। अनु के निपल से दूध रिस कर गिरने लगा।

में इतना कीमती दूध जाया नहीं होने देना चाहता था। मैंने अपना मुँह उसकी चूची पर लगा दिया, और चूसने लगा। अनु मुझे सिसकियां लेते हुए अपनी चूची चुसवा रही थी। बीच-बीच में वो मेरे होठों को अपने होंठों से चूस लेती थी। फिर मैं उसके होंठों से अपना मुँह हटाकर उसकी चूची चूसने लगता था। मैंने अनु की दोनों चूचियों को जमकर चूसा। अनु की हालत अब ऐसे हो गई थी की वो लण्ड को बार-बार पकड़कर मुझे चुदाई के लिए इन्वाइट कर रही थी। पर मैं तो अभी और मजा लेना चाहता था।

मैंने अनु की चूचियों को अपने हाथ से ऊपर किया और उसकी चूचियों के नीचे के हिस्से पर अपनी जीभ फेर दी। फिर मैंने अनु के पेंट पर अपनी जीभ रख दी। मैं अपनी जीभ को धीरे-धीरे नीचे की तरफ ला रहा था। फिर मैंने अपनी जीभ अनु की नाभि के चारों तरफ घुमा दी।
 
अनु को फिर से कुछ हो गया। वो मुझे खींचकर मेरे होठों को चूसने लगी। फिर अनु मेरे कान में कांपती हुई आवाज में बोली- "बाबु .. चोदो  ना उम्म्म्म ..."

मैंने कहा- "अभी और प्यार तो करने दो.."

अनु ने कहा- "बाबु , उहहन चोरो ना.." फिर अनु ने ने कहा- "पहले अंदर डाल दो फिर जो मन में हो करते रहना... बाबू मुझे और नहीं तड़पाओ...'

मैंने अनु से कहा- "रुका नहीं जा रहा क्या?"

अनु ने कहा- "नहीं बाबू अब और मत तड़पाओं मेरे बाबू... जल्दी से डालो ना.."

मैंने अनु की बात मान ली, और अपना लण्ड अनु की चूत पर रख दिया। मैंने अनु से कहा- "लो अपनी चूत को उठाकर डाल लो...

अनु ने अपनी चूत को जितना उठा सकती थी उठाया, और उसकी चूत में थोड़ा सा लण्ड चला गया। अनु ने अपनी चूत को नीचे किया तो लण्ड फिर से निकल गया। अनु ने मेरे सीने पर घूंसे  बरसाते हुए कहा- "बाबू मुझे इतना मत सताओं प्लीज़... बाबू ."

मुझे अनु पर बड़ा प्यार आया। मैंने कहा- "अच्छा जान ये लो." और मैंने अनु की चूत में लण्ड घुसेड़ दिया।


जारी रहेगी
 
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अनु मेरा पूरा लण्ड अपनी चूत में लेकर खुश हो गई। अनु के चेहरा पर अब संतुष्टि के भाव थे। अनु की सिसकियां अब सुख वाली सिसकियों में बदल गई। मैं अनु को पूरे दिल से चोद रहा था। अनु भी मेरी हर चोट पर अपनी चूत उछाल-उछालकर मेरे जोश को बढ़ा रही थी। मैंने अनु की चूत में अब लण्ड डालकर धक्के मारने बंद कर दिए और मैंने अनु के हाथ को अपने हाथ में लेकर उसकी कलाई को ऊपर कर दिया। अनु की चिकनी काँख पर मैंने अपनी जीभ फेरी, तो अनु अपनी चूत को उछाल-उछालकर मेरे लण्ड से रिक्वेस्ट करने लगी की मुझे चोदो।

मेरे लण्ड ने भी अपनी सखी की बात मानकर उसको चोदना शुरू कर दिया। मैं अनु को अब चूमते हुए चोद रहा था। मैं अनु के पूरे जिश्म को सहलाकर उसको चोद रहा था। मुझे भी ऐसी चुदाई करने में मजा आ रहा था। मेरा मन कर रहा था की मैं अनु को बस चोदता ही रहं, उसकी चूत में ऐसे ही अपना लण्ड डाले रहा और फिर अनु की चूत में मैंने अपने लौड़े को जड़ तक धक्के मारते हुए झड़ने का हुकुम दे दिया।

मैं अनु की चूचियों पर अपना मुँह रखकर लंबी-लंबी सांसें लेने लगा। अनु भी ऐसे सांसें ले रही थी जैसे दूर से भागकर आई हो। मैंने अनु से कहा- "जान तुमने तो आज थका दिया.."

अनु ने मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हए कहां मेरा- "बाबू  थक गया... उम्म्म्म ..."

अनु और में दोनों साथ-साथ लेटे हुए थे। मैंने अनु से कहा- "अब थोड़ी देर सो जाते हैं सुबह  जल्दी उठना है."
 
अनु ने पूछा- "हम सुबह किस टाइम चलेंगे?"

मैंने जवाब दिया- "9:00 बजे तक..."

अनु ने कहा- "उम्म्म... इतनी जल्दी क्या है? आराम से चलेंगे.."

मैंने कहा- "मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन तुम सोच लो..'

अनु ने सोचते हुए कहा- "हम यहां से लंच करके चलेंगे..."

मैंने कहा- "जैसे तुम कहो। पर अभी तो सो जाओ, मुझे भी अब हल्की-हल्की नींद आने लगी है.."

अनु ने मेरे हाथ को अपने हाथ में ले लिया, फिर कहने लगी- "मैं आपका हाथ अपने हाथ में लेकर सो जाऊँ?"

मैंने कहा- तुम्हें अगर ऐसे अच्छा लगता है तो सो जाओ।

मैं सोने लगा। थोड़ी देर बाद अनु ने मेरी टांग पर अपनी टांग रख ली, और मेरे कंधों को सहलाने लगी। मैंने अनु की तरफ प्यार में देखा और कहा- "नींद नहीं आ रही बया?"

अनु मुझे देखकर मेरी आँखों में आँखें डालते हुए कहने लगी- "बाबू हम कल सच में चले जाएंगे?"

मैंने कहा- तुम्हारा मन नहीं कर रहा क्या जाने का?

अनु ने अपने नचले हॉट को दबाते हुए कहा "नहीं.."

मैंने कहा- "तुम यहां सिर्फ एक दिन के लिए आई थी और तुमने दो रात  का यहां स्टे कर लिया। अभी भी मन नहीं भरा? अब तो जाना ही पड़ेगा.."

अनु मेरे और पास आकर मेरे से चिपक गई और बोली- "बाबू एक बात पछू ?"
 
मैंने कहा- हाँ पूछो ना।

जारी रहेगी
 
 
कीमत वसूल


अनु ने कहा- "आप वहां जाकर मुझे भूल तो नहीं जाओगे?"

मैंने उसके गाल पर अपना हाथ फेरते हए कहा- "तुम्हें अचानक ऐसा क्यों लग रहा है?"

अनु बोली- बताइए ना?"

मैंने कहा- तुम्हें क्या लगता है?

अनु ने मेरे सीने पर अपना सिर रख दिया और कहने लगी- "पता नहीं... पर डर लग रहा है...

मैंने अनु को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों पर किस किया। फिर मैंने कहा- "ऐसा सोचना भी नहीं कभी..."

अनु ने कहा- सच?

मैंने कहा- "तुम्हारी कसम.."

अनु ने मेरे होंठों को चूसकर कहा- "बाबू.."

मैने अनु को प्यार से सहलाते हए कहा- "अब सो जाओ..."

हम दोनों सो गये। करीब दो घंटे बाद मेरी नींद खुली तो मैंने देखा अनु मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर साई हुई थी, उसके चेहरे पर स्माइल थी। जैसे वो नींद में भी कोई प्यार भरा ख्वाब देख रही हो। मैंने धीरे से अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ाया और उसको प्यार से देखा। अनु दुनियां से बेखबर सोई हुई थी। मैंने उसके ऊपर रजाई डाल दी। मुझे सस आ रहा था। मैं बाथरूम में चला गया।

मैं सस करके वापिस आया। मैंने ऋतु को देखा तो वो गहरी नींद में सोई हुई थी। मैं फिर से अनु के पास जाकर रजाई में घुस गया। अनु अब उठी हुई थी बो फिर से मेरे से चिपक गई। मैंने भी उसको खुद से चिपका लिया। मेरे हाथ फिर से अनु के जिस्म  को सहलाने लगे।

अनु ने फिर कहा- "आपने जब मुझे वीडियो में देखा था तब आपने मुझ में ऐसा क्या देख लिया था? जो मैं आपको इतनी पसंद आ गई..."

मैंने कहा- "तुम हो ही इतनी खूबसूरत... जो भी तुमको देख ले तो वा तुम्हारा दीवाना बन जाएगा.."


अनु ने कहा- "फिर भी आपको मुझमें क्या अच्छा लगा? प्लीज... बताइए ना..."

मैंने अनु की गाण्ड पर हाथ फेरते हुए कहा- "ये.."

अनु ने शर्माते हुए कहा- "हो... हाय राम... आप सच में बड़े बेशर्म हो.."

मैंने कहा- "तुमने जो पूछा बा मैंने सच-सच बता दिया। सच में अनु तुम्हारी गाण्ड बड़ी मस्त है। इसको देखते ही लण्ड खड़ा हो जाता है."

अनु कहने लगी- "अच्छा जी... आपको ये मस्त लगती है पर ये तो सबकी एक जैसी होती है..."

मैंने कहा- "सबके पास इतनी मस्त नहीं होती.."

अनु बोली- "मुझे तो अपनी ये चीज बड़ी भारी लगती है। मुझे जब कभी फिटिंग वाली ड्रेस पहननी पड़ती है तो बड़ी शर्म आती है..."

मैंने कहा- क्यों शर्म आती है?


जारी रहेगी
 
कीमत वसूल

अनु ने कहा- उसमें मेरे चूतड़ों की शेप साफ-साफ नजर आती हैं."

मैंने कहा- "इसीलिए तो सेक्सी लगती हो..."

अनु बोली- "आपको ही तो लगती हैं..." कहकर अनु ने मेरे सीने में मुंह छुपा लिया और बोली- "सब कहते हैं मेरे चूतड़ भारी हैं, मुझे टाइट ड्रेस अच्छी नहीं लगती। मुझे भी बड़ा अजीब लगता है। मैं जब कहीं जाती है तो सब वही देखते हैं, तो मुझे बड़ी शर्म आती है."

अनु फिर बोली "शादी से पहले मैं ऋतु जैसी स्लिम दुबली-पतली थी पर शादी के बाद मैं मोटी हो गई। मैं
आपको मोटी नहीं लगती?"

मैंने कहा- "नहीं। तुम्हारें जिम का गदरायापन तुमको और ज्यादा सेक्सी बना देता है... फिर मैंने अनु का हाथ पकड़कर अपने लौड़े पर रख दिया और कहा- "देखो तुम्हारी गाण्ड के नाम से ये भी उठ गया."

अनु ने मेरे लौड़े को प्यार से सहलाया और बोली- "इसका जो मन करे इसको करने दो। फिर सो
जाएगा."

मैने अनु की गर्दन पर चूमते हुए कहा- "इसका तुम्हारी गाण्ड मारजे का मन कर रहा है.."

अनु हँसने लगी और बोली. "इसमें सोचने की क्या बात है? जैसे आपको करना है कर लो.."

मैंने कहा- "पर तुम्हें पीछे से करवाने में दर्द होता हैं। मैं तुम्हें दर्द नहीं देना चाहता। रहने दो। आगे से ही कर लंगा.."

अनु बोली- "आपकी खुशी के लिए मुझे हर दर्द मंजूर है। आप पीछे से कर लो.."

मैंने फिर से कहा- "तुम्हें दर्द हुआ तो?"

अनु बोली- "नहीं होगा ना... मैं आपको कह रही हैं, आप करो."

मैंने कहा- "रहने दो यार."

अनु ने कहा- "आप करो ना... अच्छा अगर दर्द हआ तो मैं आपको बता देंगी..."

मैंने कहा- “पक्का? अगर तुम्हें जरा सा भी दर्द हुआ तो मुझे बता देना में बाहर निकाल लूगा.."

अनु बोली- "हाँ बाबू, मैं आपको बता दूँगी..' फिर मुझे किस किया और बोली- "वैसे (घोड़ी) बनूं मैं?"

मैंने अनु के होठों को अपने होंठों में दबा लिया और उसके चूतड़ों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। मेरी उंगली अब उसकी गाण्ड के छेद पर घमने लगी थी। अनु भी मेरे साथ चिपक गई। मैंने कहा- "जाओं कोई कीम उठाकर लाओ..."

अनु ने कीम लाकर मुझे दे दी। मैंने अनु की गाण्ड के छेद पर क्रीम लगा दी और अपनी उंगली को सकी गाण्ड में डाल दिया। अनु ने सीईई... की आवाज करी।

मैंने कहा- दर्द हो रहा है?

अनु बोली- नहीं आप करते रहो।

मैंने अनुकी गाण्ड में फिर से अपनी उंगली अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी। अनु की गाण्ड में अच्छी तरह से कीम लगाकर मैंने कहा- "अब घोड़ी बन जाओ..."

अनु घोड़ी बन गईं। मैंने उसकी गाण्ड में थोड़ी और कीम लगा दी और उंगली में अंदर कर दी।

मैंने कहा- "अब में लण्ड डालं?"

अनु ने कहा- हम्म्म्म ! ... आपकी घोड़ी तैयार है।

मुझे अनु का इन्विटेशन अच्छा लगा। मैंने अनु की गाण्ड पर लौड़ा रखकर जोर से दबा दिया। अनु ने हल्की सी सस्स्स अ उईईई... की आवाज निकली।

मैंने कहा- दर्द हो रहा है?

अनु बोली- नहीं नहीं।

मैंने अपना लण्ड अनु की गाण्ड में थोड़ा और डाला। अनु की कोई आवाज नहीं आई। मैंने अपना लण्ड धीरे से पूरा डाल दिया। मैंने अपना पूरा लण्ड अनु की गाण्ड में डालकर धक्के मारने शुरू कर दिए। मेरे धक्के पड़ने पर अनु की सिर्फ हम्म्म्म ... की आवाज आ रही थी।

मैंने कहा- "दर्द तो नहीं हो रहा?"

अनु ने सर हिलाकर कहा- "नहीं.."

मैं अनु की गाण्ड मारता रहा। अनु ने कोई विरोध नहीं किया, और फिर जब मेरे लौड़े से बर्दाश्त नहीं हआ, तो मैंने अपना माल अनु की गाण्ड में झाड़ दिया, फिर अपना लण्ड अनु की गाण्ड से निकाल लिया।

अनु अभी तक घोड़ी बनी हई थी। मैंने अपने लण्ड को तौलिया में साफ किया और अनु को कहा- "अब तो सीधी होकर लेट जाओ।

अनु सस्स्स्स ... आह्ह.. की आवाज करते हुए सीधा लेट गईं।

जारी रहेगी
 
कीमत वसूल


अनु ने कहा- उसमें मेरे चूतड़ों की शेप साफ-साफ नजर आती हैं."

मैंने कहा- "इसीलिए तो सेक्सी लगती हो..."

अनु बोली- "आपको ही तो लगती हैं..." कहकर अनु ने मेरे सीने में मुंह छुपा लिया और बोली- "सब कहते हैं मेरे चूतड़ भारी हैं, मुझे टाइट ड्रेस अच्छी नहीं लगती। मुझे भी बड़ा अजीब लगता है। मैं जब कहीं जाती है तो सब वही देखते हैं, तो मुझे बड़ी शर्म आती है."

अनु फिर बोली "शादी से पहले मैं ऋतु जैसी स्लिम दुबली-पतली थी पर शादी के बाद मैं मोटी हो गई। मैं
आपको मोटी नहीं लगती?"

मैंने कहा- "नहीं। तुम्हारें जिम का गदरायापन तुमको और ज्यादा सेक्सी बना देता है... फिर मैंने अनु का हाथ पकड़कर अपने लौड़े पर रख दिया और कहा- "देखो तुम्हारी गाण्ड के नाम से ये भी उठ गया."

अनु ने मेरे लौड़े को प्यार से सहलाया और बोली- "इसका जो मन करे इसको करने दो। फिर सो
जाएगा."

मैने अनु की गर्दन पर चूमते हुए कहा- "इसका तुम्हारी गाण्ड मारजे का मन कर रहा है.."

अनु हँसने लगी और बोली. "इसमें सोचने की क्या बात है? जैसे आपको करना है कर लो.."

मैंने कहा- "पर तुम्हें पीछे से करवाने में दर्द होता हैं। मैं तुम्हें दर्द नहीं देना चाहता। रहने दो। आगे से ही कर लंगा.."

अनु बोली- "आपकी खुशी के लिए मुझे हर दर्द मंजूर है। आप पीछे से कर लो.."

मैंने फिर से कहा- "तुम्हें दर्द हुआ तो?"

अनु बोली- "नहीं होगा ना... मैं आपको कह रही हैं, आप करो."

मैंने कहा- "रहने दो यार."

अनु ने कहा- "आप करो ना... अच्छा अगर दर्द हआ तो मैं आपको बता देंगी..."

मैंने कहा- “पक्का? अगर तुम्हें जरा सा भी दर्द हुआ तो मुझे बता देना में बाहर निकाल लूगा.."

अनु बोली- "हाँ बाबू, मैं आपको बता दूँगी..' फिर मुझे किस किया और बोली- "वैसे (घोड़ी) बनूं मैं?"

मैंने अनु के होठों को अपने होंठों में दबा लिया और उसके चूतड़ों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। मेरी उंगली अब उसकी गाण्ड के छेद पर घमने लगी थी। अनु भी मेरे साथ चिपक गई। मैंने कहा- "जाओं कोई कीम उठाकर लाओ..."

अनु ने कीम लाकर मुझे दे दी। मैंने अनु की गाण्ड के छेद पर क्रीम लगा दी और अपनी उंगली को सकी गाण्ड में डाल दिया। अनु ने सीईई... की आवाज करी।

मैंने कहा- दर्द हो रहा है?

अनु बोली- नहीं आप करते रहो।

मैंने अनुकी गाण्ड में फिर से अपनी उंगली अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी। अनु की गाण्ड में अच्छी तरह से कीम लगाकर मैंने कहा- "अब घोड़ी बन जाओ..."

अनु घोड़ी बन गईं। मैंने उसकी गाण्ड में थोड़ी और कीम लगा दी और उंगली में अंदर कर दी।

मैंने कहा- "अब में लण्ड डालं?"

अनु ने कहा- हम्म्म्म ! ... आपकी घोड़ी तैयार है।

मुझे अनु का इन्विटेशन अच्छा लगा। मैंने अनु की गाण्ड पर लौड़ा रखकर जोर से दबा दिया। अनु ने हल्की सी सस्स्स अ उईईई... की आवाज निकली।

मैंने कहा- दर्द हो रहा है?

अनु बोली- नहीं नहीं।

मैंने अपना लण्ड अनु की गाण्ड में थोड़ा और डाला। अनु की कोई आवाज नहीं आई। मैंने अपना लण्ड धीरे से पूरा डाल दिया। मैंने अपना पूरा लण्ड अनु की गाण्ड में डालकर धक्के मारने शुरू कर दिए। मेरे धक्के पड़ने पर अनु की सिर्फ हम्म्म्म ... की आवाज आ रही थी।

मैंने कहा- "दर्द तो नहीं हो रहा?"

अनु ने सर हिलाकर कहा- "नहीं.."

मैं अनु की गाण्ड मारता रहा। अनु ने कोई विरोध नहीं किया, और फिर जब मेरे लौड़े से बर्दाश्त नहीं हआ, तो मैंने अपना माल अनु की गाण्ड में झाड़ दिया, फिर अपना लण्ड अनु की गाण्ड से निकाल लिया।

अनु अभी तक घोड़ी बनी हई थी। मैंने अपने लण्ड को तौलिया में साफ किया और अनु को कहा- "अब तो सीधी होकर लेट जाओ।

अनु सस्स्स्स ... आह्ह.. की आवाज करते हुए सीधा लेट गईं।

मैंने अनु को देखा तो उसकी आँखें लाल हो गई थी। उसका पूरा चेहरा आँसुओ से भीगा हुआ था। मैंने उसका कहा- "तुम रो रही थी ना?"

अनु ने कहा- नहीं तो।

मैंने उसके चेहरे पर अपनी उंगली फेरते हुए कहा- "अभी तक आँसू हैं.."

अनु मेरे से कसकर चिपट गई।

मैंने उसको गुस्से से कहा- "झठी... मुझसे कहा क्यों नहीं? मैं इतना जालिम तो नहीं जो तुम्हारे दर्द को नहीं समझता...

अनु बोली. "बाबू आपकी खुशी से बढ़कर मेरे लिए और कुछ नहीं."

मैं अनु को देखता ही रह गया।

अनु की प्यार भरी आवाज मेंरे कानों में सुनाई दे रही थी- "उठिए ना... उठिए."

मैंने नींद में ही कहा- "अभी उठ जाऊँगा जान.."

फिर मुझे अपने होंठों पर अनु के होंठों का एहसास हुआ। उसके नाजुक होंठ मेरे होंठों को चूसने लगे। अनु की महकती सांसें मेरी सांसों में घुल गई। अनु की सांसों की महक मेरी सांसों में बस गईं। मेरे चेहरे
पर उसकी भीगी जुल्फें बिखरी हुई थी। मैंने फिर भी आँखें नहीं खाली।

फिर से आवाज आई- "मेरे बाबू को बड़ी नीद आ रही है.."

अब मैंने अपनी आँखों को खोला तो अनु मेरे ऊपर झुकी हुई थी। मैंने अनु को देखा, तो ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी-अभी नहाकर आई हो, उसके बाल गीले थे। अनु का गोरा रंग उसकी बड़ी-बड़ी आँखें और उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ कयामत लग रहे थे। अनु मुझे बड़े प्यार से मुश्कुराती हुई देख रही थी।

.
अनु ने कहा- गुड मार्निंग

मैंने उसको अपनी बाहों में भरकर कहा- "गड़ मानिंग मेरी जान... काश। तुम रोज मुझे ऐसे उठाती.."

अनु के चेहरा पर लाली और बढ़ने लगी।

फिर मैंने कहा- "आज इतनी जल्दी कैसे उठ गई?"

अनु ने कहा- "पता नहीं अपने आप ही नींद खुल गई थी.." फिर बोली- "जल्दी से उठ जाओं बाबू .."

मैंने हँसते हुए हुए अनु से कहा- "इतनी जल्दी क्यों कर रही हो?"

अनु ने कहा- "मैंने ब्रेकफस्ट का आर्डर दिया हुआ है। आप जल्दी से तैयार हो जाओ..."

मैंने रूम में देखा तो ऋतु नजर नहीं आ रही थी। मैंने पूछा- "ऋतु कहां है?"

अनु बोली- "वो नहा रही है."

मैंने अनु को आँख मारते हुए कहा- "क्या बात है जान, आज बड़ी प्यारी लग रही हो?"

अनु ने शांत हुए कहा- "थैक्स."

इतने में ऋतु नहाकर आ गई।

मैंने उसको कहा. ऋतु अब कैसा लग रहा है?

ऋतु ने कहा- "मैं ठीक हूँ.."

मुझे एहसास हो गया की उसका मूड सही नहीं है। मैंने कुछ नहीं कहा और फिर मैं बाथरूम में चला गया। मैं तैयार होकर बाहर आया तो ऋतु नाश्ता कर रही थी। अनु ऐसे ही बैठी थी।

मैंने अनु से कहा- "तुम नाश्ता नहीं कर रही, किसका इंतजार कर रही हो?"

अनु मुझे देखकर बोली- "आपका.."

मैं अनु के पास जाकर बैठ गया। अनु ने मुझे नाश्ता सर्व किया। फिर वो भी मेरे साथ नाश्ता करने लगी। हम लोगों ने जब नाश्ता कर लिया तब मैंने ऋतु से कहा- "अभी चलें या थोड़ी देर रूक कर चलना है?"

ऋतु बोली- "अब यहां रुकने का मूड नहीं है. जल्दी से चलिए."

जारी रहेगी
 
कीमत वसूल

UPDATE 135



हम सब कार में बैठ गये। मैंने कार स्टार्ट की और चल दिए। अनु मेरे साथ ही बैठी थी। थोड़ी देर बाद मैंने ऋतु से कहा- "क्या बात है तुम कुछ अपसेट लग रही हो?"

उसने कोई जवाब नहीं दिया और बाहर देखती रही। मैंने अनु की तरफ देखा। उसने मुझे इशारा किया की में इस बारे में कोई बात ना करूं। मैं फिर कुछ नहीं बोला।

थोड़ी देर बाद मैंने चुप्पी को तोड़ते हुए अनु से कहा- "कैसा लगा यहां आकर?"

अनु ने मुश्कुराकर कहा- "मुझे तो बड़ा मजा आया। मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था वहां से आने का.."

मैंने मिरर में ऋतु को देखा तो उसने बुरा सा मुँह बनाया हुआ था। जैसे उसको अनु की बात अच्छी ना लगी हो। मैं उसको ऐसा करते देख कर कुछ बोला नहीं। मैं अनु से ही बातें करता रहा। हम दोनों आपस में ही मस्त हो गये थे।

काफी देर बाद ऋतु ने कहा- "मुझे टायलेट जाना है। प्लीज कहीं कार रोक देना..."

मैंने कहा- "ओके... कोई सही जगह आने दो रोकता है."

थोड़ी दर चलने के बाद एक ढाबा नजर आया। मैंने वहां कार रोक दी और ऋतु से कहा- "जाओ..."

ऋतु कार से निकालकर जोर से दरवाजा बंद करते हुए चली गई।

अनु ने मेरी तरफ देखते हुए कहा- "देखा आपने?"

मैने कहा. "ऋतु का मूड़ क्यों अपसेट है?"

अनु ने कहा- "इसका कल रात का गुस्सा है."
.
.
मैंने कहा- "चलो कोई बात नहीं। घर जाकर इसका मूड अपने आप ठीक हो जाएगा.."
 
अनु बोली- "आपको लगता है पर मुझे नहीं। ये तो अब घर जाकर भी मुझे उल्टा सीधा बोलेगी."

मैंने कहा- "अगर ऋतु कुछ कहे तो तुम इसकी बात का बुरा नहीं मानना। मुझे बता देना। मैं उसको समझा दूंगा अपने तरीके से..."

अनु बोली- "मैं आपको कैसे बताऊँगी? मेरे पास तो अपना सेल भी नहीं है। और ऋतु ने मुझे अपने सेल से बात ना करने दी तो?"

मैंने अनु को कहा- "तुम्हें सेल मैं अभी दे दूँगा?"

अनु बोली- "पर कैसे? नहीं-नहीं रहने दीजिए, ऋतु को और गुस्सा आएगा.."

मैंने अनु को कहा- "उसकी चिता तुम मत करो.."

इतने में ऋतु आ गई। कार में बैठकर बोली- "अब चलिए, यहां भी रुकने का इरादा है क्या?"

मैंने कहा- "तुम्हारे लिए ही तो सका था.." मैंने रास्ते में ही अपने आफिस फोन कर दिया। मैंने अपने स्टाफ का एक लड़का है उसको कहा- "सुनो नीरज, तम आफिस के पास जो मोबाइल स्टोर है वहां चले जाना और मेरी बात करवा देना..."

जारी रहेगी
 
deeppreeti said:
कीमत वसूल

UPDATE 135



हम सब कार में बैठ गये। मैंने कार स्टार्ट की और चल दिए। अनु मेरे साथ ही बैठी थी। थोड़ी देर बाद मैंने ऋतु से कहा- "क्या बात है तुम कुछ अपसेट लग रही हो?"

उसने कोई जवाब नहीं दिया और बाहर देखती रही। मैंने अनु की तरफ देखा। उसने मुझे इशारा किया की में इस बारे में कोई बात ना करूं। मैं फिर कुछ नहीं बोला।

थोड़ी देर बाद मैंने चुप्पी को तोड़ते हुए अनु से कहा- "कैसा लगा यहां आकर?"

अनु ने मुश्कुराकर कहा- "मुझे तो बड़ा मजा आया। मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था वहां से आने का.."

मैंने मिरर में ऋतु को देखा तो उसने बुरा सा मुँह बनाया हुआ था। जैसे उसको अनु की बात अच्छी ना लगी हो। मैं उसको ऐसा करते देख कर कुछ बोला नहीं। मैं अनु से ही बातें करता रहा। हम दोनों आपस में ही मस्त हो गये थे।

काफी देर बाद ऋतु ने कहा- "मुझे टायलेट जाना है। प्लीज कहीं कार रोक देना..."

मैंने कहा- "ओके... कोई सही जगह आने दो रोकता है."

थोड़ी दर चलने के बाद एक ढाबा नजर आया। मैंने वहां कार रोक दी और ऋतु से कहा- "जाओ..."

ऋतु कार से निकालकर जोर से दरवाजा बंद करते हुए चली गई।

अनु ने मेरी तरफ देखते हुए कहा- "देखा आपने?"

मैने कहा. "ऋतु का मूड़ क्यों अपसेट है?"

अनु ने कहा- "इसका कल रात का गुस्सा है."
.
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मैंने कहा- "चलो कोई बात नहीं। घर जाकर इसका मूड अपने आप ठीक हो जाएगा.."
 
अनु बोली- "आपको लगता है पर मुझे नहीं। ये तो अब घर जाकर भी मुझे उल्टा सीधा बोलेगी."

मैंने कहा- "अगर ऋतु कुछ कहे तो तुम इसकी बात का बुरा नहीं मानना। मुझे बता देना। मैं उसको समझा दूंगा अपने तरीके से..."

अनु बोली- "मैं आपको कैसे बताऊँगी? मेरे पास तो अपना सेल भी नहीं है। और ऋतु ने मुझे अपने सेल से बात ना करने दी तो?"

मैंने अनु को कहा- "तुम्हें सेल मैं अभी दे दूँगा?"

अनु बोली- "पर कैसे? नहीं-नहीं रहने दीजिए, ऋतु को और गुस्सा आएगा.."

मैंने अनु को कहा- "उसकी चिता तुम मत करो.."

इतने में ऋतु आ गई। कार में बैठकर बोली- "अब चलिए, यहां भी रुकने का इरादा है क्या?"

मैंने कहा- "तुम्हारे लिए ही तो सका था.." मैंने रास्ते में ही अपने आफिस फोन कर दिया। मैंने अपने स्टाफ का एक लड़का है उसको कहा- "सुनो नीरज, तम आफिस के पास जो मोबाइल स्टोर है वहां चले जाना और मेरी बात करवा देना..."

जारी रहेगी

please aagey likho,bahut hot hai,abhi to kai ghodiyaan baki hain
 
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UPDATE 135








नीरज ने कहा- "सर, आप कब तक आएंगे..."



मैंने कहा- "मैं अब कल से ही आऊँगा..."



थोड़ी देर बाद मोबाइल स्टोर से मझे फोन आ गया। मैंने उसको समझा दिया। फिर मैंने नीरज से  कहा- "यहां से मोबाइल लेकर तुम मेरे घर छोड़ देना.."

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हम जब अपनी सिटी में एंटर हए तब तक अंधेरा हो चुका था। मैंने कार अपने घर की तरफ मोड़ दी। जैसे ही कार घर के बाहर रूकी वाचमैन ने गेट खोल दिया। मैं कार अंदर ले गया। वाचमैन ने मुझे एक

पैकेंट दिया। मैं समझ गया उसमें मोबाइल होगा जो मैंने अनु के लिए मैंगवाया था।



मैंने वो पैकेट अपने हाथ में ही रखा और अनु से कहा- "तुम पहली बार मेरे घर आई हो, बाहर से ही जाओगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। 5 मिनट के लिए ही सही अंदर चला..."



अनु भी मना नहीं कर सकी। मैंने घर में पहुँचते ही नौकर को कहा- "जरा बढ़िया  सी   काफी बनाकर मेरे रूम में ले आओ..."



मैने अनु से कहा- "आओं रूम में बैठते हैं."



ऋतु को शायद अनु का मेरे घर आना अच्छा नहीं लगा। वो बोली- "सर आप हम लोगों को छोड़ते  हए ही आ जाते। अब आप एक बार फिर से हमको छोड़ने जाओगे...'



मैंने कहा- "हीं तुम ठीक बोल रही हो। वैसे तो तुम्हारा घर पहले पड़ता। पर मुझे अनु को कुछ देना था इसलिए पहले यहां आना पड़ा..."



अनु को कुछ देने की बात सुनते ही ऋतु के मुँह पर 12:00 बज गयें। उसका चेहरा उसकी फीलिंग्स को शो करने लगा। पर मुझे उसकी कोई परवाह नहीं थी। मैं अनु को अपने रूम में ले गया। ऋतु भी हमारे साथ-साथ आ गई।

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रूम में जाते ही अनु बोली- "आपके रूम का इंटीरियर ता बहुत बदिया है। जिस होटेल में हम रुके थे उससे भी अच्छा लग रहा है."



मैने मुश्कुराकर अनु से कहा- "वा होटेल था, ये घर है..."



अनु मुस्कुरा उठी। अनु मेरे बाद पर फैले हए कपड़ों को देखकर बोली- "अरे यहां तो कपड़े फैले पड़े  हैं। किसी ने सही नहीं किए.."



मैंने मुश्कुराते हए कहा "मेरे रूम में आने की किसी को पमिशन नहीं है। और मैं आज दो दिन बाद आया हैं। कौन करता"



अनु बोली- "क्यों नौकर तो है, वो नहीं कर सकता था?"



मैंने कहा- उसको भी पमिशन नहीं है।



अनु मुझे सवालिया नजर से देखती रही पर बोली कुछ नहीं।



फिर ऋतु में अनु को धीरे से कहा- "इस बारे में सर से कोई बात मत करो, उनको हर्ट होगा.."



मैंने ऋतु में कहा- "अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। जो मेरी लाइफ की हकीकत है उसमें क्या छुपाना..."



मैंने अनु से कहा- "मेरी वाइफ अब मुझसे अलग रहती है। मैं आजकल अकेला रहता हूँ.."



अनु का मुँह खुला का खुला रह गया।



मैंने कहा- "शायद मुझमें कई खामियां है। जिनकी वजह से उसने ऐसा फैसला लिया होगा... फिर मैं हँसते हए बोला- "अरे यार मैं भी तुम लोगों को बोर कर रहा हूँ.." अ नके चेहरा के भाव सिर्फ मैंने देखे थे। वो क्या थे मैं आपको बाद में बताऊँगा।



इतने में लाकर काफी लेकर आ गया।



मैंने कहा- चलो काफी पीते हैं।



फिर हम सब काफी पीने लगे।



मैंने ऋतु में कहा- "तुम कल आफिस आओगी ना?"



ऋतु ने कहा- "क्यों नहीं आऊँगी?"



मैंने कहा- "शायद थकान हो इसलिए मैंने पूछा.."



ऋतु अनु को देखकर कमेंट की"जो थका होगा वो ही तो आराम करेगा। मैं कौन सा थकी है वहां जाकर?"



मैं समझ गया उसकी बात। मैंने अनु को देखकर प्यार से चुप रहने का इशारा किया। फिर कोई कुछ नहीं बोला। काफी पीने के बाद मैंने अनु से कहा- "ये लो.." और मैंने उसके हाथ में मोबाइल दिया और कहा- "अब जब मन करे मेरे से बात कर लेना..



अनु ने मोबाइल देखते हुए कहा- "ये तो बड़ा मैंहगा लग रहा है?"



मैंने हसते हुए कहा- "तुम्हारे आगे इसकी कोई कीमत नहीं.."



अनु फिर से शर्मा गई, और बोली- थैक्स।



मैंने कहा- "मुझे बार-बार थॅंक्स सुनने की आदत नहीं है.."



अनु हँसते हुए बोली- "भच्छा जी... मैं अब नहीं कहूँगी.."



ऋतु को अनु का मोबाइल देखकर बड़ी तकलीफ हो रही थी। उसने कहा- "सर, दीदी जब वापिस चली जाएंगी तो में ये वाला मोबाइल रख लैं?"



मैंने कहा- नहीं, बो अनु के पास ही रहेगा। तुमको लेना है तो मैं और दिलवा दूंगा।



अनु चौंक गई, और बोली- "अरे... मैं इसको वहां कैसे ले जाऊँगी? क्या कहँगी किसने दिया? इतना मैंहगा है नहीं तो बोल देती मम्मी ने दिया है." ‘



मैंने कहा- "तुम बोल देना गिफ्ट दिया है किसी ने."



अनु ने फिर कुछ नहीं कहा।

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मैंने कहा- "चलो तुम लोगों को छोड़ आता है... फिर मैं उन दोनों के साथ कार तक आ गया।
 
[size=xx-large]कीमत वसूल[/size]



UPDATE 136




जाने से पहले अनु मेरे रूम को बड़ी बारीक निगाहों से देख रही थी। मैं जानता था वो क्या ढूंढ  रही है? पर मैंने उसको कुछ कहा नहीं। मैं जब ऋतु के घर पहुँचा तो मैंने उन लोगों को बाहर ही छोड़ दिया। क्योंकी मैं अंदर जाने के मूड में नहीं था।

अनु और ऋतु में कहा भी आने को। पर मैंने मना कर दिया। मैं वापिस आने लगा। मैंने घर आते ही सबसे बसे पहले दो पेंग लगाए। फिर अपना रुम ठीक किया और बेड पर लेट गया। शायद दो दिन की थकान का असर था की मुझे एकदम से नींद आ गई।

मैं सुबह उठा तो "00 बज चुके थे। मैंने अपने सेल को देखा। मुझे पूरी उम्मीद थी की अनु ने मुझे रात को फोन किया होगा। मैंने मोबाइल देखा तो उसमें कोई मिस काल नहीं थी। मैं फिर तैयार होने लगा। मैं आफिस पहचा तो परे स्टाफ ने पछा, "सर आप कहां गये थे? और ऋतु भी नहीं आई आपके पीछे.."

मैंने कहा- "मैं किसी काम से बाहर गया था." और मैंने अंजान बनते हुए कहा- "ऋतु क्यों नहीं आई? हो सकता है उसको कोई अजेंट काम पड़ गया हो या फिर उसकी तबीयत खराब हो.." कहते हुए मैं अपने केबिन में चला गया।

थोड़ी देर बाद ऋतु भी आ गईं। उसका मुँह अभी तक सूज़ा हुआ था। मेरे केबिन में आकर बोली-  “जी. एम. मर..."

मैंने उसको कहा- "आओं ऋतु बैठो.."

अनु बैठ गईं।

मैंने उसको कहा- "मैं जब आफिस में आया तो सबने मुझे पूछा की मैं कहां गया था और तुम भी नहीं आई मेरे पीछे...

ऋतु बोली- "फिर आपने क्या कहा?"

मैंने कहा- "मैंने उनसे कहा है की मैं किसी काम से बाहर गया था। तुम सबको यही बोलना की तुम किसी काम की वजह से नहीं आई। ओके... समझ गई?"

ऋतु ने कहा- "ओके... बोल दूँगी। अब मैं जा सकती हैं।"

मैंने उसको प्यार से कहा- "ऋतु तुम अभी तक नाराज हो क्या?

ऋतु ने कहा- "मैं कौन होती है न न होने वाली? और अगर हो भी जाऊँ तो किसी को क्या फर्क पड़ेगा?"

मैं उठकर उसके पास गया और मैंने उसको अपनी बाहों में भर लिया फिर उसके होंठों पर होंठ रख  दिए। पर उसने कुछ नहीं किया। नहीं तो पहले मैं जब उसके होंठों पर होंठ रखता था तो वो मेरे होंठों को चूसती थी। मैं समझ गया उसका मूड सही नहीं है। मैंने उसको कसकर अपनी बाहों में भर लिया, और अपनी गोदी में उसको उठा लिया।

मैंने कहा- "अच्छा अब मह सही कर लो। पलीजज... अनु तो तुम्हारी बहन है, और वो कौन सा  यहां रुकने वाली है। कुछ दिन में चली जाएगी। तुम तो हमेशा मेरे पास रहोगी। है की नहीं?"

ऋतु की आँखों में आँस आ गये। उसने कहा "आपका मेरे से मन भर गया है तो बता दीजिए। अब आप मुझे प्यार नहीं करते। मैं आपको अच्छी नहीं लगती..."

मैंने उसको फिर से चूमते हुए कहा- "पागल हो क्या? जो ऐसी बातें सोच रही हो। और फिर तुमने खुद ही तो नैनीताल जाने का प्रोग्राम बनाया था। मुझे और अनु को साथ नैनीताल लेकर गई थी। फिर खुद ही गुस्सा हो रही हो..."

जारी रहेगी

 
 
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