desiaks
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भाग २८)
Narration:
रात के 11 बजे कैसियो बार के सामने एक कार आ के रुकी... इम्पोर्टेड जान पड़ती है | गहरे लाल रंग की .. और उसमें से उतरा अभय! गहरे ग्रे कलर की कोट पैंट में | होंठों के किनारे एक महँगी सिगार दबाए... आँखों पर काला चश्मा | एक नज़र में ही देख के ऐसा लगे जैसे की कोई बहुत बड़ा , रईस हो... | और लगे भी क्यों न? आख़िर इस समय उसका गेटअप – मेकअप सब चेंज जो था |
धुआँ उड़ाता हुआ अन्दर दाखिल हुआ |
दरबान ने जैसे ही सलाम ठोका; अभय ने सौ के तीन पत्ती उसकी ओर बढ़ा दिए | दरबान तो ख़ुशी से उछल ही पड़ा | उसकी आँखों में कृतज्ञता के भाव उभर आए ..
यही मौका है ...
सोचा अभय ने,
और सोचने के साथ ही बोल पड़ा,
“सुनो, वो बाहर लाल गाड़ी देख रहे हो..?, हाँ... वो वाला.... वो मेरी है ... ज़रा ध्यान रखना ... |”
आवाज़ में मिठास और चापलूसी से अंदाज़ लिए बोला दरबान,
“अरे बिल्कुल देखेंगे साहब.. क्यों न देखें.. आप बस अंदर के मज़े लें... ” कहते हुए दाहिने हाथ को सीधा करते हुए सामने थोड़ा झुका |
इस छोटी सी जीत पर मुस्कुराता हुआ अभय आगे बढ़ा |
कुछ टेबल्स थे, सब पर ताश के गेम चल रहे थे |
एक पल को ठिठका अभय, फिर मन ही मन भगवान का नाम लेकर सभी टेबल्स पर गेम खेलते मौजूद लोगों को गौर से देखने लगा | देखते-देखते अपने से थोड़ी दूर मौजूद एक टेबल पर नज़रें टिकी उसकी... चार लोग खेल रहे थे .. उनमें से एक जो टेबल के बीचोंबीच बैठा था उसे गौर से देखने लगा ... और पहचानते ही एक सफलता वाली मुस्कान बिखर गई अभय के होंठों पर ..
मोना ने इसी के बारे में बताया था...
सधे कदमों से आगे बढ़ते हुए उस टेबल तक पहुँचा अभय,
और,
मैं – “खेल सकता हूँ क्या?”
आदमी – “खेलना तो सिर्फ एक बहाना है.. यहाँ तो सब अपनी किस्मत आजमाने आते हैं हुज़ूर... हाहाहा... आप भी आजमा ही लीजिए |”
मैं – “माफ़ कीजिएगा जनाब.. पर मैं क़िस्मत आजमाने के लिए नहीं खेलता |”
आदमी – “ह्म्म्म..... तो फ़िर शौक पूरा कर लीजिए...”
मैं (मुस्कराते हुए) – “कुछेक हज़ार रुपए दांव पर लगाने से भी मेरा शौक पूरा नहीं होता |”
उस आदमी ने गहरी सांस लेता हुआ सिगार का एक लम्बा कश लगाया और धुएँ के बादल छोड़ता हुआ मेरी ओर रहस्यमयी मुस्कान देता हुआ देखता रहा कुछ क्षण ..
फ़िर,
आदमी (होंठों पर मुस्कान बरक़रार रखते हुए) – “ह्म्म्म... सही जगह तशरीफ़ लाये हैं आप हुज़ूर... आपके साथ एक दांव खेलने में वाकई मज़ा आएगा.”
जवाब में मैं भी बैठ गया और अपनी पत्तियाँ देखने लगा..
वो आदमी अपनी पत्तियाँ चले, उससे पहले ही मैं बोल पड़ा – “एक मिनट जनाब.. न्यू गेम, न्यू कार्ड्स ! ”
मुझसे ऐसे अप्रत्याशित डिमांड की शायद आशा नहीं की थी उसने.. कुछ क्षण अपलक देखता रहा .. फ़िर ‘हे-हे’ कर के हँसते हुए सहमति में सिर हिलाया |
नए कार्ड्स आए.. खेल शुरू हुआ... नौसिखिया होने के कारण शुरू में कुछेक दांव हार गया.. पर जल्द ही पटरी पर आया और एक अच्छी टक्कर देने लगा ..
करीब पौन घंटा हुआ होगा.. रात के साथ साथ खेल भी काफ़ी जम रहा था... कि तभी एक आदमी आया और उसके कान में कुछ कहा..
सुनकर मेरी ओर देख कर बोला,
“माफ़ कीजिएगा.. थोड़ा अर्जेंट काम है.. थोड़ी देर के लिए उठाना पड़ेगा.. आप बैठिए .. ड्रिंक्स लीजिए. मैं अभी आया |
अभी वह उठने ही वाला था कि एक नकाबपोश महिला उसके पास आई और झुक कर उसे गले लगाई ---- उस आदमी के चेहरे पर रौनक तो ऐसे छाई मानो कई सौ वाट के बल्ब जल गये हों ---
दोनों की बॉडी लैंग्वेज ऐसी थी मानो वे दोनों एक दूसरे को बहुत भली भांति जानते पहचानते हैं ---
शरीर का खास कोई भी हिस्सा दिख नहीं रहा था उस महिला का, कपड़े पहनी ही ऐसी थी --- बुर्का नहीं --- नार्मल कोई ड्रेस --- चेहरा ढका हुआ था --- पर कपड़े थे टाइट --- और इस कारण उसके नितम्ब और वक्षस्थल अपने पूरे कटाव के साथ अपनी नुमाइश कराने पर आमादा थे --- विशेषतः उसके वक्षः ... आह !!...
खैर,
उस महिला के गले लग कर थोड़ा हटते ही आदमी चहक कर बोला,
‘मिस्ड यू डियर’
फ़िर,
दोबारा मेरी ओर देखते हुए बोला,
“प्लीज़ एक्सक्यूज़ अस”
मेरी ओर से किसी प्रत्युत्तर के प्रतीक्षा किये बिना ही वो उठ कर वहां से चलता बना |
पर वो औरत, अब भगवान जाने वो औरत थी या लड़की, मेरी ओर कुछ इस तरह देखने लगी मानो मुझे पहचानने की कोशिश कर रही है --- या शायद उसे पहचाना हुआ सा लग रहा होऊँगा ---
क़रीब दो से तीन मिनट अच्छे से मुझे देखने के बाद वह पलट कर उस आदमी के पीछे चल दी; और जाते जाते भी दो बार पीछे पलट कर मेरी ओर, मुझे ही देखी ----
मुझे भारी संदेह हुआ...
उसके जाने के तुरंत बाद ही उठ कर उसके पीछे जाना चाहता था पर ऐसा कर न सका..
रिस्क बहुत था ...
और मुझे हर पल बहुत सावधान रहना था...
आस पास के लोगों के साथ खेलते खेलते धीरे धीरे करीब एक घंटा से ज़्यादा का समय बीत गया ...
बोर होकर अपने सूखे गले को तर करने के लिए पास ही घूम रही एक बार बाला को इशारे से ड्रिंक के लिए बोला..
बड़ी ही मोहक मुस्कान से उसने हाँ में सिर नवाया और कुछ ही पलों में एक ट्रे में एक विदेशी वाइन और एक ग्लास लिए उपस्थित हुई.. सर्व की... और फिर चली गई..
विदेशी वाइन की दो तीन घूँट अभी भरा ही था कि अचानक से वहां एक ज़ोरदार साईरन की आवाज़ पूरे हॉल में गूँज उठी |
जो जहाँ बैठे थे, वहाँ से उठ कर इधर उधर भागने लगे...
मेरे साथ टेबल पर बैठे लोग भी भाग खड़े हुए...
हालात को समझने के लिए मैंने, मेरे समीप से भागते एक शख्स को पकड़ा और इस भागदौड़ का कारण पूछा ...
वो मुझे हैरानी से देखते हुए बोला,
“क्यों भई... नए हो क्या?”
“हाँ”
“ओह्हो... इसलिए...अरे भाई.. इस सायरन का मतलब है की कोई अनहोनी.. दुर्घटना हुई है.. या फ़िर पुलिस आई है... ”
“पुलिस??”
“हाँ..”
अब तक हम दोनों हॉल में ही एक कोने में बने एक संकरी गली से बाहर निकलने को आगे बढ़ चुके थे...
मैंने पूछा,
“पर पुलिस क्यों भई? यहाँ तो सब......”
“अरे भाई... जहाँ इललीगल पोकर या जुआघर चलता हो... वहाँ रेड तो मारेगी ही न पुलिस...” मेरी बात को बीच में ही काटते हुए वह बोला |
“ओह.. अच्छा...”
अब तक हम दोनों हॉल से निकल गए थे.. वह दूर खड़ी अपनी बाइक के पास चला गया...
मैंने भी थोड़ी दूर पैदल चल कर एक ऑटो पकड़ा और घर के लिए निकल पड़ा.. |
----
अगले दिन सुबह,
अपने कोचिंग के दो टीचिंग स्टाफ के साथ बैठ कर कुछ सलाह मशवरा कर रहा था ..
मीटिंग के अंतिम पड़ाव पर ही थे कि तभी मेरा लैंडलाइन टेलीफोन घनघना उठा..
पहले तो इग्नोर किया..
पर जब लगातार चार बार बज चुका, तो बाध्य हो कर उठना ही पड़ा |
रिसीव किया,
उधर से आवाज़ आई,
“मिस्टर अभय??”
“जी बोल रहा हूँ |”
“ह्म्म्म.. मैं इंस्पेक्टर दत्ता बोल रहा हूँ --- एक ज़रूरी मामले में आपसे बात करनी है --- ज़रा पुलिस स्टेशन आइयेगा --- जल्दी |”
“पर क्यों सर --- क्या हुआ --- मैं दरअसल अभी अपने इंस्टिट्यूट में ......”
“जल्दी आइए --- आएँगे तो आप ही का भला होगा --- यों समझिए कि अभी आपके पास थाने आने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है --- आ जाइए --- मिलते हैं |”
इतना कह कर उधर से फ़ोन कट गया |
मैं थोड़ा उलझा हुआ से वहीँ बैठा रहा कुछ देर --- फ़ोन को क्रैडल पर रख कर रूम से बाहर निकल कर एक सिगरेट सुलगाया; दोनों स्टाफ को छुट्टी दे दिया --- दिमाग में बहुत से प्रश्न चल रहे थे --- जिनमें से कुछ का जवाब तो शायद थाने जा कर अभी मिल भी जाए ; पर --- पर बाकी प्रश्नों के उत्तर कहाँ से ढूँढू --?
इंस्टिट्यूट को बंद कर बाहर सड़क किनारे खड़े अपने स्कूटर के पास आया ---
स्टार्ट करने ही वाला था कि कुछ दूरी पर खड़े एक पेड़ के ओट में किसी को छिपते हुए देखा --- ऐसा लगा जैसे कोई नज़र रखे हुए मुझ पर --- आश्चर्य तो हुआ पर इतने दिनों में घटी कई सारी घटनाओं ने अब थोड़ा थोड़ा कर के मुझे ऐसी बातों का अभ्यस्त बना दिया था |
खैर,
बालों को ठीक करता हुआ मैं स्कूटर के मिरर में देख ही रहा था कि अचानक से मेरा ध्यान कहीं और गया ---
हमारे घर की खिड़की से मेरी चाची मुझी को देखे जा रही थी ---
थोड़ा रुक कर इधर उधर देखने के बहाने घर की ओर देखा ---
मुझे घर की तरफ़ देखता हुआ देख कर चाची एक पर्दे के पीछे शायद छिपने ही वाली होगी की मैंने उन्हें देख लिया --- उनके पास सिवाय वहीँ रुक कर मेरी ओर एक मुस्कान देने के अलावा और कोई चारा न बचा ---
मैंने भी पलट कर एक मुस्कान दिया और हाथों के इशारे से बताया की थोड़ी देर में आ रहा हूँ ---
वही मुस्कान लिए उन्होंने भी सर हिला कर अपनी सहमति जताई |
स्कूटर स्टार्ट कर मैं आगे तो बढ़ गया पर अब पेड़ के पीछे छुपे आदमी के साथ साथ चाची वाला टेंशन भी दिमाग में घर कर गया ---
न जाने क्यों मुझे दोनों ही बात आपस में कनेक्टेड से क्यों लगने लगे ----??
क्रमशः
Narration:
रात के 11 बजे कैसियो बार के सामने एक कार आ के रुकी... इम्पोर्टेड जान पड़ती है | गहरे लाल रंग की .. और उसमें से उतरा अभय! गहरे ग्रे कलर की कोट पैंट में | होंठों के किनारे एक महँगी सिगार दबाए... आँखों पर काला चश्मा | एक नज़र में ही देख के ऐसा लगे जैसे की कोई बहुत बड़ा , रईस हो... | और लगे भी क्यों न? आख़िर इस समय उसका गेटअप – मेकअप सब चेंज जो था |
धुआँ उड़ाता हुआ अन्दर दाखिल हुआ |
दरबान ने जैसे ही सलाम ठोका; अभय ने सौ के तीन पत्ती उसकी ओर बढ़ा दिए | दरबान तो ख़ुशी से उछल ही पड़ा | उसकी आँखों में कृतज्ञता के भाव उभर आए ..
यही मौका है ...
सोचा अभय ने,
और सोचने के साथ ही बोल पड़ा,
“सुनो, वो बाहर लाल गाड़ी देख रहे हो..?, हाँ... वो वाला.... वो मेरी है ... ज़रा ध्यान रखना ... |”
आवाज़ में मिठास और चापलूसी से अंदाज़ लिए बोला दरबान,
“अरे बिल्कुल देखेंगे साहब.. क्यों न देखें.. आप बस अंदर के मज़े लें... ” कहते हुए दाहिने हाथ को सीधा करते हुए सामने थोड़ा झुका |
इस छोटी सी जीत पर मुस्कुराता हुआ अभय आगे बढ़ा |
कुछ टेबल्स थे, सब पर ताश के गेम चल रहे थे |
एक पल को ठिठका अभय, फिर मन ही मन भगवान का नाम लेकर सभी टेबल्स पर गेम खेलते मौजूद लोगों को गौर से देखने लगा | देखते-देखते अपने से थोड़ी दूर मौजूद एक टेबल पर नज़रें टिकी उसकी... चार लोग खेल रहे थे .. उनमें से एक जो टेबल के बीचोंबीच बैठा था उसे गौर से देखने लगा ... और पहचानते ही एक सफलता वाली मुस्कान बिखर गई अभय के होंठों पर ..
मोना ने इसी के बारे में बताया था...
सधे कदमों से आगे बढ़ते हुए उस टेबल तक पहुँचा अभय,
और,
मैं – “खेल सकता हूँ क्या?”
आदमी – “खेलना तो सिर्फ एक बहाना है.. यहाँ तो सब अपनी किस्मत आजमाने आते हैं हुज़ूर... हाहाहा... आप भी आजमा ही लीजिए |”
मैं – “माफ़ कीजिएगा जनाब.. पर मैं क़िस्मत आजमाने के लिए नहीं खेलता |”
आदमी – “ह्म्म्म..... तो फ़िर शौक पूरा कर लीजिए...”
मैं (मुस्कराते हुए) – “कुछेक हज़ार रुपए दांव पर लगाने से भी मेरा शौक पूरा नहीं होता |”
उस आदमी ने गहरी सांस लेता हुआ सिगार का एक लम्बा कश लगाया और धुएँ के बादल छोड़ता हुआ मेरी ओर रहस्यमयी मुस्कान देता हुआ देखता रहा कुछ क्षण ..
फ़िर,
आदमी (होंठों पर मुस्कान बरक़रार रखते हुए) – “ह्म्म्म... सही जगह तशरीफ़ लाये हैं आप हुज़ूर... आपके साथ एक दांव खेलने में वाकई मज़ा आएगा.”
जवाब में मैं भी बैठ गया और अपनी पत्तियाँ देखने लगा..
वो आदमी अपनी पत्तियाँ चले, उससे पहले ही मैं बोल पड़ा – “एक मिनट जनाब.. न्यू गेम, न्यू कार्ड्स ! ”
मुझसे ऐसे अप्रत्याशित डिमांड की शायद आशा नहीं की थी उसने.. कुछ क्षण अपलक देखता रहा .. फ़िर ‘हे-हे’ कर के हँसते हुए सहमति में सिर हिलाया |
नए कार्ड्स आए.. खेल शुरू हुआ... नौसिखिया होने के कारण शुरू में कुछेक दांव हार गया.. पर जल्द ही पटरी पर आया और एक अच्छी टक्कर देने लगा ..
करीब पौन घंटा हुआ होगा.. रात के साथ साथ खेल भी काफ़ी जम रहा था... कि तभी एक आदमी आया और उसके कान में कुछ कहा..
सुनकर मेरी ओर देख कर बोला,
“माफ़ कीजिएगा.. थोड़ा अर्जेंट काम है.. थोड़ी देर के लिए उठाना पड़ेगा.. आप बैठिए .. ड्रिंक्स लीजिए. मैं अभी आया |
अभी वह उठने ही वाला था कि एक नकाबपोश महिला उसके पास आई और झुक कर उसे गले लगाई ---- उस आदमी के चेहरे पर रौनक तो ऐसे छाई मानो कई सौ वाट के बल्ब जल गये हों ---
दोनों की बॉडी लैंग्वेज ऐसी थी मानो वे दोनों एक दूसरे को बहुत भली भांति जानते पहचानते हैं ---
शरीर का खास कोई भी हिस्सा दिख नहीं रहा था उस महिला का, कपड़े पहनी ही ऐसी थी --- बुर्का नहीं --- नार्मल कोई ड्रेस --- चेहरा ढका हुआ था --- पर कपड़े थे टाइट --- और इस कारण उसके नितम्ब और वक्षस्थल अपने पूरे कटाव के साथ अपनी नुमाइश कराने पर आमादा थे --- विशेषतः उसके वक्षः ... आह !!...
खैर,
उस महिला के गले लग कर थोड़ा हटते ही आदमी चहक कर बोला,
‘मिस्ड यू डियर’
फ़िर,
दोबारा मेरी ओर देखते हुए बोला,
“प्लीज़ एक्सक्यूज़ अस”
मेरी ओर से किसी प्रत्युत्तर के प्रतीक्षा किये बिना ही वो उठ कर वहां से चलता बना |
पर वो औरत, अब भगवान जाने वो औरत थी या लड़की, मेरी ओर कुछ इस तरह देखने लगी मानो मुझे पहचानने की कोशिश कर रही है --- या शायद उसे पहचाना हुआ सा लग रहा होऊँगा ---
क़रीब दो से तीन मिनट अच्छे से मुझे देखने के बाद वह पलट कर उस आदमी के पीछे चल दी; और जाते जाते भी दो बार पीछे पलट कर मेरी ओर, मुझे ही देखी ----
मुझे भारी संदेह हुआ...
उसके जाने के तुरंत बाद ही उठ कर उसके पीछे जाना चाहता था पर ऐसा कर न सका..
रिस्क बहुत था ...
और मुझे हर पल बहुत सावधान रहना था...
आस पास के लोगों के साथ खेलते खेलते धीरे धीरे करीब एक घंटा से ज़्यादा का समय बीत गया ...
बोर होकर अपने सूखे गले को तर करने के लिए पास ही घूम रही एक बार बाला को इशारे से ड्रिंक के लिए बोला..
बड़ी ही मोहक मुस्कान से उसने हाँ में सिर नवाया और कुछ ही पलों में एक ट्रे में एक विदेशी वाइन और एक ग्लास लिए उपस्थित हुई.. सर्व की... और फिर चली गई..
विदेशी वाइन की दो तीन घूँट अभी भरा ही था कि अचानक से वहां एक ज़ोरदार साईरन की आवाज़ पूरे हॉल में गूँज उठी |
जो जहाँ बैठे थे, वहाँ से उठ कर इधर उधर भागने लगे...
मेरे साथ टेबल पर बैठे लोग भी भाग खड़े हुए...
हालात को समझने के लिए मैंने, मेरे समीप से भागते एक शख्स को पकड़ा और इस भागदौड़ का कारण पूछा ...
वो मुझे हैरानी से देखते हुए बोला,
“क्यों भई... नए हो क्या?”
“हाँ”
“ओह्हो... इसलिए...अरे भाई.. इस सायरन का मतलब है की कोई अनहोनी.. दुर्घटना हुई है.. या फ़िर पुलिस आई है... ”
“पुलिस??”
“हाँ..”
अब तक हम दोनों हॉल में ही एक कोने में बने एक संकरी गली से बाहर निकलने को आगे बढ़ चुके थे...
मैंने पूछा,
“पर पुलिस क्यों भई? यहाँ तो सब......”
“अरे भाई... जहाँ इललीगल पोकर या जुआघर चलता हो... वहाँ रेड तो मारेगी ही न पुलिस...” मेरी बात को बीच में ही काटते हुए वह बोला |
“ओह.. अच्छा...”
अब तक हम दोनों हॉल से निकल गए थे.. वह दूर खड़ी अपनी बाइक के पास चला गया...
मैंने भी थोड़ी दूर पैदल चल कर एक ऑटो पकड़ा और घर के लिए निकल पड़ा.. |
----
अगले दिन सुबह,
अपने कोचिंग के दो टीचिंग स्टाफ के साथ बैठ कर कुछ सलाह मशवरा कर रहा था ..
मीटिंग के अंतिम पड़ाव पर ही थे कि तभी मेरा लैंडलाइन टेलीफोन घनघना उठा..
पहले तो इग्नोर किया..
पर जब लगातार चार बार बज चुका, तो बाध्य हो कर उठना ही पड़ा |
रिसीव किया,
उधर से आवाज़ आई,
“मिस्टर अभय??”
“जी बोल रहा हूँ |”
“ह्म्म्म.. मैं इंस्पेक्टर दत्ता बोल रहा हूँ --- एक ज़रूरी मामले में आपसे बात करनी है --- ज़रा पुलिस स्टेशन आइयेगा --- जल्दी |”
“पर क्यों सर --- क्या हुआ --- मैं दरअसल अभी अपने इंस्टिट्यूट में ......”
“जल्दी आइए --- आएँगे तो आप ही का भला होगा --- यों समझिए कि अभी आपके पास थाने आने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है --- आ जाइए --- मिलते हैं |”
इतना कह कर उधर से फ़ोन कट गया |
मैं थोड़ा उलझा हुआ से वहीँ बैठा रहा कुछ देर --- फ़ोन को क्रैडल पर रख कर रूम से बाहर निकल कर एक सिगरेट सुलगाया; दोनों स्टाफ को छुट्टी दे दिया --- दिमाग में बहुत से प्रश्न चल रहे थे --- जिनमें से कुछ का जवाब तो शायद थाने जा कर अभी मिल भी जाए ; पर --- पर बाकी प्रश्नों के उत्तर कहाँ से ढूँढू --?
इंस्टिट्यूट को बंद कर बाहर सड़क किनारे खड़े अपने स्कूटर के पास आया ---
स्टार्ट करने ही वाला था कि कुछ दूरी पर खड़े एक पेड़ के ओट में किसी को छिपते हुए देखा --- ऐसा लगा जैसे कोई नज़र रखे हुए मुझ पर --- आश्चर्य तो हुआ पर इतने दिनों में घटी कई सारी घटनाओं ने अब थोड़ा थोड़ा कर के मुझे ऐसी बातों का अभ्यस्त बना दिया था |
खैर,
बालों को ठीक करता हुआ मैं स्कूटर के मिरर में देख ही रहा था कि अचानक से मेरा ध्यान कहीं और गया ---
हमारे घर की खिड़की से मेरी चाची मुझी को देखे जा रही थी ---
थोड़ा रुक कर इधर उधर देखने के बहाने घर की ओर देखा ---
मुझे घर की तरफ़ देखता हुआ देख कर चाची एक पर्दे के पीछे शायद छिपने ही वाली होगी की मैंने उन्हें देख लिया --- उनके पास सिवाय वहीँ रुक कर मेरी ओर एक मुस्कान देने के अलावा और कोई चारा न बचा ---
मैंने भी पलट कर एक मुस्कान दिया और हाथों के इशारे से बताया की थोड़ी देर में आ रहा हूँ ---
वही मुस्कान लिए उन्होंने भी सर हिला कर अपनी सहमति जताई |
स्कूटर स्टार्ट कर मैं आगे तो बढ़ गया पर अब पेड़ के पीछे छुपे आदमी के साथ साथ चाची वाला टेंशन भी दिमाग में घर कर गया ---
न जाने क्यों मुझे दोनों ही बात आपस में कनेक्टेड से क्यों लगने लगे ----??
क्रमशः