Hindi Sex Stories By raj sharma - Page 4 - SexBaba
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Hindi Sex Stories By raj sharma

चुदाई का ट्यूशन पार्ट--1 


अनिल ने अब तक जितनी भी लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाया था दिव्या उन सबसे सेक्सी और चुदाई के लिए पकी हुई थी. मेकॅनिकल इंजिनियरिंग के सेकेंड एअर में पढ़ रहे अनिल ने इससे पहले केवल 7थ - 8थ के स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाया था... उस उम्र में कुच्छ लड़कियों के स्तन उभर तो आते हैं पर जो आकार और गोलाई 11थ में पढ़ रही दिव्या की चुचियों में था वो उनमे में नही था. और उस समय अनिल भी कहाँ केर करता था. इंजिनियरिंग कॉलेज में आने के बाद ये तीसरी लड़की है जिसे अनिल ट्यूशन पढ़ा रहा था. इससे पहले उसने मीनाक्षी और देवयानी को पढ़ाया था. मीनाक्षी तो दुबली पतली थी और उसकी चुचियाँ अभी तक विकसित नही हुई थी. हां देवयानी सेक्सी थी और इसे लाइन भी दे रही थी पर अनिल को कभी हिम्मत ही नही हुई पहल करने की. छ्होटे सहर के संस्कारी वातावरण से आए अनिल के लिए ये समझना बहुत कठिन था कि देवयानी जान बूझ कर अपने ब्रा और चुचियाँ उसे दिखा रही है या बस ग़लती से उसे दिख जा रहा है. अपनी ग़लती का एह्शास तो उसे तब हुआ जब एग्ज़ॅम से पहले वो देवयानी को बेस्ट ऑफ लक विश करने गया था तो घर में अकेली देवयानी ने उससे लिपट कर उसकी छाती पर अपनी चुचियाँ दबा दी थी. जब अनिल के उम्मीद से अधिक देर तक और अधिक ज़ोर से देवयानी उससे लिपटी रही तो अनिल की पॅंट में कुच्छ गतिविधि हुई और उसका हाथ देवयानी की छोटी सी स्कर्ट में छिपी गोल कोमल गांद पर गया. देवयानी ने अपने पैर उपर उठा अनिल की पॅंट में उभड़ रहे पर्वत को उसके अनुकूल स्थान के निकट ला दिया. अनिल के हाथों का ज़ोर बढ़ा और उसने देवयानी को बगल की दीवार की ओर धकेल कर उसके बदन को अपने बदन से मसल्ने लगा. देवयानी ने आँखे बंद कर अपने चेहरे को उपर की तरफ उठाया, अनिल ने आमंत्रण स्वीकार करते हुए उसके गुलाब के पंखुरियों समान नशीले होंठों पर चुंबन जड़ दिया. दवयायानी ने अपने मुँह को खोल अनिल की जीभ को उकसाया. सिर्फ़ अनिल की जीभ दवयायानी के मुँह में नही गयी, उसका हाथ भी दवयायानी की शर्ट में घुस उसकी ब्रा में दबी रसगुल्ले जैसी चुचियों को मसल्ने लगा था. दवयायानी के संपूर्णा समर्पण से प्रोत्साहित हो अनिल उसकी शर्ट के बटन को खोल काले ब्रा में आधी धकी हुई सफेद चुचियों के गुलाबी निपल को चूसने लगा. राक कॉन्सर्ट के ड्रम की तरह धड़कते दिल, धड़कन के साथ लयबद्ध हो फूलती चुचियाँ, और वॅक्यूम क्लीनर की तरह चलती साँसों के साथ दीवार से अटकी दवयायानी अपनी आँखे बंद सबकुच्छ लुटाने को तैयार खड़ी थी. उसकी चुचियों से सारे रस को निचोड़ लेने के बाद अनिल अपने लक्ष्या की तरफ बढ़ा, स्कर्ट खोल कर नीचे गिरने और स्कर्ट सरका कर रेशमी बालों के बीच सुगंध बिखेरती अमृत टपकाती दवयायानी की गुलाबी चूत को प्रकाशमान करने में अनिल को अधिक वक़्त नही लगा. चूत को पहली बार आँखों के सामने प्रत्यक्ष देख कर अनिल के मुँह और लंड दोनो से लार टपक पड़ी. अपनी उंगलियों के नाख़ून को अपनी हथेली में दबाती हुई, अपने निचले होंठ को दांतो तले दबा, आँखों को बंद कर बढ़ती धड़कन और तेज़ होती साँसों के साथ दवयायानी मुर्तिवत खड़ी हो अपनी पंखुरियों के खुलने और भवरे द्वारा रस को चूसने का इंतेज़ार कर रही थी. थोड़ी देर रेशमी झाड़ियों से खेलने के बाद अनिल की उंगलियाँ शबनम से गीली हो चुकी गुलाबी पंखुरियों के बीच जा पहुँची. उन पंखुरियों के गीलेपन, चिकनाई और गर्मी का एह्शास करते हुए उसकी उंगली प्रेम की गहराइयों में जा घुसी. दवयायानी मचल उठी, उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल गयी. सिसकारियो ने अनिल को भी जोश में ला दिया और अनिल की उंगलियाँ गहराई में जा उस कच्ची कली की सिंचाई करने लगी. उंगलियों से सिंचाई कर कली को फूल बनाने की पूरी तैयारी कर अनिल कली को फूल बनाने के लिए बिस्तर पर ले गया और अपनी पॅंट की ज़िप को खोल जल से भरे ट्यूबिवेल को बाहर निकाला. तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी. दवयायानी स्प्रिंग की तरह उच्छल कर अपने स्कर्ट की ओर लपकी और अपने कपड़े ठीक करने लगी. अनिल ने भी जल्दी से अपने हथियार को अंदर डाला और दवयायानी के कमरे से निकल कर भागा. 

इसके बाद तो एग्ज़ॅम हुए, फिर ट्यूशन बंद और फिर दोनो को कभी मिलने का मौका नही मिला. चुदाई के इतने नज़दीक पहुँच कर मिस कर जाने पर अनिल पागल हो उठा था. उस दिन की घटना को, दवयायानी के नंगे बदन को याद कर कर अनिल ना जाने कितनी ही बार हिला चुका था. पर जो मज़ा असली चुदाई का है वो हाथ में कहाँ. दिव्या को पहली बार देख कर अनिल का लंड अपनी अधिकतम लंबाई पर पहुँच गया था. उसने उस रात तीन बार हिलाया. दिव्या दवयायानी से ठीक उल्टी थी. वो गाओं से पहली बार 11थ की पढ़ाई करने आई थी. उसके पिताजी किसान थे और सबलॉग गाओं के संस्कारों के पुजारी थे जहाँ गुरु को भगवान से भी उँचा दर्जा दिया जाता है. अनिल के घर पहुँचने पर दिव्या की मा हाथ जोड़ कर अनिल को प्रणाम करती और दिव्या पावं च्छू कर प्रणाम करती. दूसरे माले पर दिव्या का बेडरूम था, ट्यूशन वहीं चलता और बस एक कप चाइ देने के लिए दिव्या की मा उपर आती, इसके अलावा उपर कोई देखने नही आता. दिव्या नज़र उठा कर भी अनिल की तरफ नही देखती. वो तो बेचारी ठीक से कुच्छ बोल ही नही पाती. बस सर हिला कर अनिल के सवालों का जवाब देती. अनिल इस मौके का खूब फायेदा उठाता और दिव्या के समीज़ से अंदर और समीज़ के उपर से दिव्या के पर्वतों को इतना घूरता कि उसकी पॅंट पर पर्वत खड़ा हो जाता. दिव्या का जिश्म जितना विकसित था, मस्तिष्क उतना ही अविकसित. वो अपने आदरणीय गुरुजी को प्रसन्न रखने का प्रयास तो बहुत करती पर मैथ और फिज़िक्स उसके दीमाग में घुसता ही नही था. केयी बार तो उसकी मंद बुद्धि से अनिल क्रोध में आ उसे डाँट देता और तब उसका गोरा चेहरा लाल हो जाता जो दिव्या को और भी मादक बना देता था.
 
महीना बीत गया पर समीज़ के उपर से उसकी बढ़ी हुए चुचि को मापने के अलावा अनिल अपने लक्ष्या की तरफ एक कदम भी नही बढ़ा पाया था. महीने के अंत में फीस देते समय जब दिव्या के पिताजी ने दिव्या की पढ़ाई के बारे में पूचछा तो अनिल का सारा फ्रस्ट्रेशन बाहर आ गया. उसने खुल कर दिव्या की शिकायत की. दिव्या के पिताजी नीरस हो कर बोले "देखिए सर, हमारा काम फीस देना है, पढ़ना इसका काम है और पढ़ाना आपका. अगर पढ़ाई नही करे तो आप इसे जो जी में आए सज़ा दीजिए. मैं और दिव्या की मा एक शब्द नही बोलेंगे". 'जो जी में आए सज़ा दीजिए' ये शब्द कान में पड़ते ही अनिल का लंड खड़ा हो गया. उसने सर झुकाए, आँखे भरी हुई, चेहरा लाल, खड़ी दिव्या को देखा और उसके पिताजी से आग्या ले हॉस्टिल वापस आ गया. रात भर अनिल यही सोचता रहा अपनी इस नयी आज़ादी का लाभ वो कैसे उठाए. 

अगले दिन अनिल का लंड सुरू से ही खड़ा था. सलवार, समीज़ और ओढनी में बिस्तर पर दिव्या बैठी थी और सामने कुर्शी पर अनिल. दिव्या जब भी कुच्छ लिखने के लिए झुकती, उसकी ओढनी नीचे गिर जाती और फिर वो ओढनी ठीक करने लगती. ओढनी के कारण अनिल को दिव्या के अमूल्या निधि का भरपूर नज़ारा नही मिल रहा था. उसने चाइ आने तक इंतेज़ार किया, फिर खुद को मिली आज़ादी से उत्तेजित अनिल ने दिव्या के जिश्म पर से ओढनी खीच कर साइड में रख दी. "इससे बार बार डिस्टर्ब हो रही हो, बिना इसके रहो". दिव्या चुपचाप अपने गुरु की आग्या मानते हुए झुक कर पढ़ाई में लग गयी. अब अनिल को दिव्या की पुर्णवीकसित चुचियों के आकार का सही अंदाज़ लग रहा था और उसके आकार ने कदाचित् अनिल के लंड का आकार बढ़ा दिया था. अब जब भी दिव्या नीचे झुकती उसकी समीज़ से उसकी गोल चुचियों का कुच्छ हिस्सा अनिल को दिख जाता जो उसके लंड में रक्त संचार बढ़ा उसे उत्तेजित कर देता. अगले दिन से दिव्या पढ़ने बिना ओढनी के ही आई और अगले कुच्छ दिनो में अनिल को दिव्या के ब्रा के कलेक्षन की पूरी जानकारी मिल चुकी थी और उसे दिव्या की गुलाबी निपल्स के भी दर्शन हो चुके थे. पर बात आगे नही बढ़ रही थी. सिर्फ़ देख कर उसका मंन नही भरता. दिव्या को पढ़ा कर लौटने पर वो अक्सर हिला कर अपने लंड के जोश को ठंढा करता फिर सोता. वो दिव्या के जिश्म तक पहुँचने की नयी तरकीब सोचने लगा. 


अगले दिन अनिल ने उस बेचारी जान को टरिगॉनओमीट्री के सारे आइडेंटिटीस याद करने का होमवर्क दे दिया. अनिल अच्छि तरह से जानता था कि दिव्या की मंदबुद्धि में ये आइडेंटिटीस कभी नही घुसने वाले हैं. पर उसका उद्देश्या उसके दिमाग़ में फ़ॉर्मूला घुसाना नही अपितु उसकी चूत में अपना लंड घुसाना था. दिव्या अनिल की उम्मीद पर पूरी तरह से खरी उतरी. अनिल ने झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा "तुम पढ़ाई बिल्कुल नही करती, ऐसे काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे पनिशमेंट नही मिलता तुम पढ़ाई नही करोगी. चलो मुर्गी बनो" ये सज़ा अनिल को बचपन में स्कूल में मिला करती थी, पर इसमे उसे दिव्या की गांद को नज़दीक से देखने का मौका मिलता. बेचारी दिव्या रुआंसी हो चुप चाप अनिल की बगल में खड़ी हो गयी. उसके लाल गाल देख कर अनिल के जी में आया अभी उसे बाहों में भर कर चूम ले. पर उसने कहा "रोने धोने से काम नही चलेगा. जब तक तुम्हे सज़ा नही मिलेगी तुम्हारा पढ़ाई में ध्यान नही लगेगा". दिव्या जब फिर भी नही हिली तो अनिल खड़ा हो गया और गुस्से में कहा "मैने तुमसे कुच्छ कहा है?" दिव्या ने रोती हुई कहा "मुझे मुर्गी बनना नही आता" अनिल को ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी. वो दिव्या के पीछे उसके बदन के एकदम नज़दीक खड़ा हो गया और एक हाथ उसके पीठ पर और दूसरी हाथ उसकी चुचि पर रख कर बोला "नीचे झुको". दिव्या की चुचि को इससे पहले किसी मर्द ने नही च्छुआ था. उसके पूरे बदन में सनसनी दौड़ गयी, मानो उसे करेंट लगा हो. वो रोनो धोना सब भूल गयी थी, उसके आँसू ना जाने कहाँ गायब हो गये थे और उसके दिल की धड़कन अचानक बढ़ने लगी. अनिल के हाथ का दबाव उसकी चुचि पर बढ़ने लगा, वो दिव्या के धड़कते दिल को अपनी हथेलियों पर महशूस कर सकता था. जब दिव्या झुक गयी तो उसने उसे अपने पैर के पीछे से हाथ ला कान पकड़ने को कहा. फिर अनिल का शरारती हाथ दिव्या की टाइट और पूरी तरह से विकसित गांद पर गया और उसने गांद को मसल्ते हुए कहा "इसे उपर उठाओ" फिर अपने हाथ को उसकी गांद पर भ्रमण कराते हुए उसकी चूत पर अपनी उंगली को दबाया. चूत पर सलवार के उपर से उंगली के दबाव ने दिव्या को जैसे पागल बना दिया. उसे ऐसा एह्शास पहले कभी नही हुआ था. उसे सर जी की ये सज़ा पसंद आ रही थी. चूत पर उंगली पड़ते ही एक सनसनी सी दिव्या के पूरे बदन मे होते हुए उसके चूत तक पहुँची और गीलापन बन बाहर आ गयी. दिव्या ने पहले ऐसा कभी महशूष नही किया था. वो उठ कर सीधा टाय्लेट भागना चाहती थी. पर अनिल का हाथ उसकी गांद के आयतन, द्राव्यमान और घनिष्टता मानो सब माप लेना चाहता हो. उसका व्याकुल लंड अपने आगे चूत को देख पॅंट फाड़ कर बाहर निकलने को बेचैन हो रहा था. पर इस डर से की कहीं कोई चला ना आए, अनिल उसके गांद का मज़ा अधिक समय तक नही ले सकता था. उसने थोड़ी ही देर में दिव्या को उठ जाने को कहा.
 
अब दिव्या का मंन पढ़ाई में और नही लग रहा था. अपनी चुचि और चूत पर अनिल के हाथ के स्पर्श से उसके अंदर आनंद की जो लहर उठी थी दिव्या उसकी अनुभूति फिर से करना चाहती थी. वो देखना चाहती थी कि उसकी चूत पर कैसा गीलापन है. उसे अगले दिन सारे आइडेंटिटीस याद करने का होमवर्क दे अनिल घर आ कर सबसे पहले अपने लंड को हिला कर झाड़ा. फिर उसे एह्शास हुआ कि उसने जो सब दिव्या के साथ किया है कहीं उसने अपने घर वालों को बता दिया तो गंभीर समस्या हो जाएगी. दवयायानी के अनुभव से अनिल इतना तो समझ ही गया था कि 11थ की लड़कियाँ छ्होटी बच्ची नही होती. अब उसे भय सताने लगा. कहीं उसने अपने पिताजी को बता दिया हो तो? वो अगले दिन दिव्या को पढ़ाने नही गया. उधर दिव्या बेचारी उसकी यादों में नज़रे बिच्छाए बैठी थी. कल वाली सज़ा वो फिर से पाना चाहती थी. रात को दिव्या के कहने पर दिव्या के पिताजी ने फोन कर अनिल से उसकी तबीयत के बारे में पूछा तो अनिल की जान में जान आई. वो समझ चुका था कि अब दिव्या का शिकार करना अधिक मुश्किल नही होगा. दिव्या के शिकायत ना करने से अनिल की हिम्मत बढ़ गयी थी, अब वो अक्सर दिव्या को मुर्गी बना सलवार के उपर से उसके गांद और चूत से खेलता था. धीरे धीरे उसकी झिझक जाती रही और अब वो अपने पॅंट पर बन रहे पर्वत को छिपाने की कोशिश नही करता. कभी कभी तो वो दिव्या के सामने ही अपने लंड पर हाथ रख देता. दिव्या भी इस खेल में मज़ा उठा रही थी. उसे नही पढ़ने का एक और बहाना मिल गया था, होमवर्क नही करो और सर से मस्ती लूटो. धीरे धीरे वो भी खुलने लगी थी. अब वो सर की तरफ सीधे देखती और अनिल के पॅंट की सूजन को देख कर मुश्कूराती. 

एक दिन मुर्गी बनाने की सज़ा पर उसने कह दिया "मैं मुर्गी नही बनूँगी, पैर दुख़्ता है. आप कोई और सज़ा दे दीजिए." अनिल ने उसे बेड पकड़ कर झुकने को कहा और उसके पीछे खड़ा हो उसके गांद पर अपना लंड दबा दिया. फिर वह झुक कर दोनो हाथों से दिव्या की दोनो चुचि को पकड़ कर मसल्ने लगा. इस खेल में दिव्या को और अधिक मज़ा आ रहा था. अब से पहले अनिल ने उसकी चुचियों को बस दबाया था, पर मसल्ने पर मज़ा कुच्छ और था. वो भी मचल कर अपनी गांद को अनिल के लंड पर धकेलने लगी. फिर अनिल को कुच्छ आहट सुनाई दी, वो झट से दिव्या के पीछे से हट कुर्शी पर बैठ गया और दिव्या को बैठ जाने को बोला. पर कोई आया नही था. दिव्या की चुचियों का ये मज़ा अब अनिल से बर्दाश्त नही हो रहा था. उसने उठ कर कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और दिव्या से फिर झुक कर खड़ा होने को कहा. दिव्या अनिल के इरादे को समझती थी पर नखड़ा दिखाना तो लड़कियों की अदा है. उसने कहा "अब मैने क्या किया है?" क्रमशः......
 
गतान्क से आगे........ 
"कल जो फिज़िक्स में होमवर्क दिया था वो तुमने किया है?" अनिल फिर से उसके चुचियों को मसल्ने और अपने शख्त लंड पर उसकी कोमल गांद कामज़ा लेने के लिए बहाने खोज रहा था. 

"पर कल तो आपने फिज़िक्स में कोई काम नही दिया था" दिव्या अनिल को और सताने के मूड में थी. 

"परसो तो दिया था?" 

"हां, वो मैने बना लिया है" 

"दिखाओ" अब अनिल चिढ़ रहा था. दिव्या ने अपनी कॉपी दिखाई. अनिल ने बिना कॉपी पर देखे ही कहा "ये कैसे बनाई हो, मैने ऐसे थोड़े ही बतायाथा. तुम्हारा पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल ध्यान नही लगता. चुप चाप यहाँ झुक कर खड़ी हो जाओ" 

"पर सर ये तो आपने लिखा था, मैने इसके बाद वाले से बनाया है" दिव्या ने मुश्कूराते हुए कहा, उसकी आँखों में शरारत भरी थी. 

"मुझसे ज़बान लड़ती है. बदतमीज़! जो कहता हूँ चुप चाप करो" अनिल पूरी तरह चिढ़ चुका था. दिव्या भी अनिल की पूरी खिचाई कर चुकी थी. अब उसे भी अनिल का मज़ा लेना था. वो चुप चाप बेड से उतर झुक कर खड़ी हो गयी. अनिल फिर उसकी गांद पर लंड को दबा खड़ा हो गया और कमीज़ केउपर से उसके चुचियों को मसल्ने लगा. जिस चीज़ के लिए अनिल पिछले दो महीनो से तड़प रहा था, वो हाथ में आने के बाद अब अनिल के लिए खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. उसने दिव्या की गांद पर अपने लंड का दबाव और उसकी चुचि पर अपने हाथ का दवाब बढ़ाया. जोश और बढ़ा तो वो दिव्या के कमीज़ के बटन खोलने लगा. 

"मा आ गयी तो?" दिव्या ने पूछा 

"दरवाज़ा बंद है" अनिल ने अस्वासन देना चाहा 

"अगर मा ने पूछा दरवाज़ा क्यूँ बंद है?" 

"बोल देना कि हवा पढ़ाई में डिस्टर्ब कर रही थी" 


दिव्या के कमीज़ के सारे बटन खुल चुके थे और अनिल के हाथ कमीज़ में घुस कर रसगुल्ले की तरह दिव्या की दोनो चुचियों का रस निचोड़ने लगे. दिव्या के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी. अनिल का जोश और बढ़ा और उसने दिव्या की गांद पर ज़ोर का झटका दिया. दिव्या फिसल कर बेड पर गिर गयी. अनिल उसके उपर गिरा और उसकी चुचियों को भींचते हुए उसकी गांद पर अपना लंड मसल्ने लगा. वो अपना होश पूरी तरह से खो चुकाथा, उसे कोई परवाह नही थी कि कोई आ जाएगा. उसे तो ये भी ध्यान नही था कि उसने अभी तक पॅंट पहना हुआ है. वो तो बस दिव्या के दोनो संतरों से रस को निचोड़ते हुए कुत्ते की तरह उसकी कोमल गांद पर अपना लोहे जैसा लंड मसले जा रहा था. जब वो आनंद की शिखर पर पहुँचा तो उसे ध्यान आया कि उसका लंड अभी भी पॅंट के अंदर है. उसने जल्दी से पॅंट की ज़िप को खोल कर लंड बाहर निकालना चाहा, पर बहुत देर हो चुकी थी. विशफोट उसकी पॅंट के अंदर ही हुआ. क्या हुआ जो उसने कपड़े के उपर से गांद पर ही लंड मसला था, जिश्म तो लड़की का था. 80% सेक्स मस्तिष्क में होता है. ये एहसास कि वो किसी लड़की के बदन पर है ही उसके आनंद को बढ़ाने के लिए प्रयाप्त था. उसके लंड से प्रेमरस की जो मात्रा आज बही वो पहले कभी नही बही थी. कुच्छ ही देर में उसके अंडरवेर को गीला करती हुई प्रेमरस रिस्ते हुए पॅंट पर आ पहुँचा. उसके लंड के पास एक बड़े क्षेत्र में उसकी पॅंट पर गीलेपन का निशान था और उसके प्रेमरस की खुसबू उसके पॅंट से उड़ते हुए सीधे दिव्या की नाक में जा रही थी. झाड़ जाने के बाद वो होश में आ चुका था, वो दिव्या के उपर से उठ दरवाजे को खोल फिर से अपने कुर्शी पर बैठ चुका था, दिव्या अपनी कमीज़ को ठीक कर सभ्य विद्यार्थी की तरह अपने स्थान पर पूर्ववत विराजमान थी. दिव्या अब भी नशे में थी और अनिल के प्रेमरस की खुसबू उसके नशे को कम नही होने दे रही थी. ये पहली बार था जब उसने ऐसी मदहोश कर देने वाली खुसबू को सूँघा था. उसके मुँह और चूत दोनो में पानी आ रहा था. जब अनिल के जाने का समय आया तो अनिल बड़ी मुस्किल में था. कहीं दिव्या की मम्मी ने उसकी पॅंट पर उस दाग को देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी. वो अपने शर्ट को पॅंट से बाहर निकाल कर उससे धक लेने की बात से भी संतुष्ट नही था. हमेशा उसका शर्ट उसके पंत के अंदर होता है. अगर आज बाहर होगा तो दिव्या की मम्मी को संदेह हो जाएगा. उसने दिव्या से कहा "दिव्या तुम पहले निकलो और देखो तुम्हारी मम्मी नीचे ड्रॉयिंग रूम में तो नही है?" दिव्या ने अनिल को चिढ़ाते हुए काफ़ी माशूमियत से पूचछा "क्यूँ?". अनिल ने पॅंट की तरफ इशारा करते हुए कहा "इस पोज़िशन में उनके सामने कैसे जाउ?" दिव्या अपनी आँखों में शरारत भरे दबी आवाज़ में हँसने लगी. दिव्या की मा किचन में थी. दिव्या नीचे उतर अनिल को इशारे से नीचे आने को कहा. नीचे उतर अनिल जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा पीछे से दिव्या की मा किचन से निकल कर बोली "सर जी, पढ़ाई ख़तम हो गयी?"
 
अनिल की तो जैसे जान ही निकल गयी. उसने बिना पीछे मुड़े हुए कहा - "जी आंटी जी" 

"अब कैसी पढ़ाई कर रही है. कुच्छ सुधार हुआ है या अभी भी उसे मंन नही लगता. मैं तो कभी इसे पढ़ते देखती ही नही हूँ. दिन भर टीवी के सामने बैठी रहती है" जितना अनिल को वहाँ से भागने की जल्दी थी उतनी ही आंटी जी को बात करने का मंन था. 

"पहले से तो इंप्रूव हुई है. कुच्छ दिनो में लाइन पर आ जाएगी" अनिल ने बात ख़त्म करने के अंदाज़ में कहा. 

"नाश्ता करके जाइए" दिव्या की मा ने दूसरा पाश फेंका. 

"नही आंटी जी, फिर कभी. कल कॉलेज में असाइनमेंट जमा करना है. बहुत काम बांकी है. मुझे हॉस्टिल जल्दी पहुँच काम करना है" 

"ठीक है. प्रणाम" 

"प्रणाम आंटी" बिना पीछे घूमे ही इतना कह कर वो वहाँ से ऐसे भागा जैसे पीछे कोई कुत्ता दौड़ रहा हो. अनिल के निकल जाने के बाद सीढ़ी के पास साँस रोके खड़ी दिव्या के जान में जान आई. 

अगले दिन की सज़ा में अनिल कुच्छ और आगे बढ़ा. बेड पर हाथ रख झुक कर खड़ी दिव्या की सलवार का नाडा उसने खीच कर खोल दिया. उसकी सलवार खुल कर नीचे गिर गयी. "दरवाज़ा खुला है" दिव्या ने कहा. "रहने दो, तुम्हारी मम्मी चाइ देने के बाद कभी उपर नही आती" अनिल उसकी चिकनी गांद को सहला रहा था. कुच्छ ही देर में दिव्या की पॅंटी भी नीचे सरक चुकी थी और अनिल की उंगली उसकी गीली चूत के आस पास भ्रमण कर रही थी. पहली बार अपनी नंगी चूत पर किसी का स्पर्श पा दिव्या बहुत उत्तेजित थी. उसकी चूत से लार की धारा और उसके मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थी. अनिल ने अपनी पॅंट की ज़िप खोल अपने खड़े लंड को बाहर निकाला और उसकी गीली चूत के दरवाजे पर रगड़ने लगा. आज पहली बार अनिल के लंड ने चूत और दिव्या के चूत ने लंड का स्पर्श किया था. दोनो इस स्पर्श और उससे कहीं अधिक इस विचार से कि लंड चूत के अंदर घुसने वाला है, अत्यधिक उत्तेजित थे. तभी सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनाई दी. दिव्या अपनी सलवार समेत झट से बेड पर जा बैठी. अनिल भी तुरंत कुर्शी पर बैठ गया. दिव्या झुक कर कॉपी पर कुच्छ कुच्छ लिखने लगी. ये सारी घटना इतनी जल्दी हुई कि ना तो दिव्या को ठीक से अपनी सलवार ही समेटने का वक़्त मिला और ना ही अनिल को अपने हथियार को पॅंट के अंदर करने का. दिव्या पीछे से पूरी तरह नंगी थी. पूरी सलवार को सामने की तरफ समेट कर उसने अपनी कमीज़ से धक रखा था और कुच्छ इस तरह से झुकी हुई थी कि सामने से पता ना चले. पर उसकी जान अटकी हुई थी. अगर मा पीछे गयी तो क्या होगा. अनिल ने एक किताब को अपनी गोद में रख उससे अपने लंड को धक रखा था. 

"दिव्या बेटी. बक्से की चाभी किधर रखी है? मुझे मिल नही रही" 

"वहीं टीवी वाले टेबल पर पड़ी होगी!" 

"नहीं है वहाँ, मैने सब जगह ढूँढ लिया. बहुत ज़रूरी है. कुच्छ देर के लिए नीचे चल के खोज दे" 

दिव्या और अनिल दोनो की जान निकल गयी. दिव्या के माथे पर पसीना आने लगा. "देखो ना वहीं कहीं पड़ी होगी, पढ़ाई छ्चोड़ कर कैसे आउ?" 

दिव्या की मा ने अनिल की तरफ देखते हुए कहा "सर जी, थोड़ी देर के लिए जाने दीजिए. बहुत ज़रूरी है." अनिल के मुँह से तो आवाज़ ही नही निकल रही थी. उसे तो लगा कि आज सारा भांडा फूट जाएगा. 

"ठीक है, तुम नीचे जाओ. मैं इस सवाल को ख़तम करके आती हूँ" दिव्या ने स्थिति को संभाल लिया. 

"जल्दी आ" मा नीचे चली गयी. 

दोनो ने राहत की साँस ली. दिव्या ने उठ कर अपनी सलवार को ठीक किया और अनिल ने कद्दू से मिर्च हो चुके लंड को पॅंट के अंदर किया. 

दिव्या के वापस आने पर अनिल ने उसे फिर से सज़ा देनी चाही, पर वो नही मानी. "मा आ जाएगी" 

अगले दिन अनिल के काफ़ी ज़ोर देने पर दिव्या सज़ा के लिए तैयार तो हुई पर उसने शर्त लगा दी कि कपड़े मत उतरिएगा. अनिल को कपड़ो के उपर से ही दिव्या की चुचि गांद और चूत को मसल कर संतोष करना पड़ता था. अपने पुराने अनुभव के कारण वो पॅंट के अंदर लंड झार नही सकता था और दिव्या उसे लंड बाहर निकालने नही देती थी. अगले कुच्छ दिनो तक अनिल को बस उपरी मज़ा मिला. गहराई में उतरने की उसकी लालसा बस लालसा बन कर ही रही. पर जो भी मिल रहा था बहुत था. वो तो अपने कॉलेज के एग्ज़ॅमिनेशन के समय भी दिव्या को ट्यूशन पढ़ाने आता, उसे सज़ा देने आता. अब पढ़ाई में पढ़ाई से अधिक महत्वपुर्णा पनिशमेंट हो गया था. कहते हैं ना 'स्पेर दा रोड, स्पायिल दा चाइल्ड'. अनिल अपने रोड को बिल्कुल स्पेर नही करता था. दिव्या को हर ग़लती पर पनिशमेंट में रोड मिलता तो सही पर अवॉर्ड में. ट्यूशन का सत्तर फीसदी समय दिव्या केपनिशमेंट में जाता. दिव्या का गणित सुधरा या नही ये तो उपर वाला जाने, पर उसकी चुचि का आकार ज़रूर सुधर गया था.
 
आज दिव्या घर में अकेली थी. उसके मा और बाबूजी दोनो गाओं गये थे. दिव्या ने पढ़ाई का बहाना कर मना कर दिया था. वास्तव में उसे बहुत ज़िद करनी पड़ी थी. उसकी मा तो गुस्सा हो गयी थी पर बाबूजी पढ़ाई के प्रति दिव्या के समर्पण से खुस थे. अनिल के आने पर दिव्या ने कहा "आज नीचे ही पढ़ा दीजिए" 

"क्यूँ?" 

"घर में कोई नही है. उपर गये और कोई घर में घुस आया तो?" 

दिव्या के घर में अकेली होने के बात से ही अनिल का लंड तमतमा गया. उसका पॅंट फूलने लगा. 

"दरवाजा बंद करके उपर चलो" 

"कहीं कोई आया तो पता कैसे चलेगा?" 

"आने दो, पढ़ाई में कोई डिस्टर्बेन्स नही होनी चाहिए. तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में बिल्कुल नही रहता. तुम्हे पढ़ाई से अधिक लोगों की फिक्र है" 

दिव्या को अनिल के इरादे की भनक लगने लगी थी. उसके निपल भी तन गये, धड़कने और साँसे तेज़ हो गयी और चूत में हलचल होने लगी. उसने दरवाजे को बंद किया और उपर चढ़ने लगी. अनिल उसके पीछे पीछे पॅंट के अंदर अपने लंड को अड्जस्ट करता हुआ चढ़ने लगा. उपर कुर्शी पर बैठते ही अनिल ने कहा 

"कल का होमवर्क बनाई हो" 

दिव्या ने बनाया ही कब था जो आज बनाती. "इतना पनिशमेंट के बाद भी तुम सुधरी नही हो. मुझे तुम्हारा पनिशमेंट बढ़ाना पड़ेगा. चलो अपना कमीज़ उतारो" 

"क्या!" 

"जो कहता हूँ चुप चाप करो, बिना इसके तुम नही सुधरने वाली हो" वो दिव्या की कमीज़ को पकड़ उपर उठाने लगा. 

"कोई आ जाएगा" 
तो दोस्तो दिव्या का ट्यूशन पढ़ाई का या चुदाई का तरक्की पर है आगे क्या हुआ जानने के लिए इस कहानी का अंतिम भाग ज़रूर पढ़े आपका दोस्त राज शर्मा 
क्रमशः......
 
गतान्क से आगे........ 

"कोई नही आएगा, नीचे दरवाजा बंद है" उसका सफेद चिकना पेट खिड़की से आ रहे सूरज के प्रकाश से दीप्तिमान हो रहा था और जैसे जैसे कमीज़ उपर उठती जा रही थी काली ब्रा में छिपि दो गोल चुचियाँ उसकी कमीज़ से ऐसे उभर कर बाहर आ रही थी जैसे बदल के छटने से ग्रहण लगा हुआ चाँद उभर रहा हो. अनिल ने पहली बार दिव्या की चुचियों को कमीज़ के बाहर देखा था. उसका लंड तुरंत पॅंट फाड़ कर बाहर निकलने के लिए उतावला हो गया. उसने दिव्या को फिर से बेड पकड़ कर आगे की तरफ झुकने के लिए कहा. दिव्या की मक्खन जैसी चिकनी पीठ पर ब्रा के काले स्ट्रॅप केअलावा कुच्छ भी नही था. नीचे काले रंग की चूड़ीदार सलवार नीचे की तरफ सरकी हुई थी जिससे दिव्या की गुलाबी ब्रा का उपरी भाग बाहर झाँक रहा था. अपनी गर्म नंगी पीठ पर अनिल की शार्ड उंगलियों के स्पर्श से शिहर उठी. उसने बेड को मुट्ठी में जाकड़ लिया. अनिल अपने हाथ से दिव्या की पीठ की गर्मी को महशूष करता हुआ उसके गर्दन से कमरपर होते हुए नितंब तक गया. फिर अहिश्ते आहिस्ते उपर बढ़ कर उसके ब्रा के स्ट्रॅप को अनहुक किया. दिव्या ने अपनी आँखो को बंद कर लिया. अनिल के हाथ दिव्या की पीठ से होते हुए उसकी गोल चुचियों को अपनी हथेलियो से ढक कर मसल्ने लगे. दिव्या की चुचियों पर से ब्रा की काली पर्छाया हटा कर अनिल ने दोनो चंद्रमाओं को ग्रहण से मुक्त किया और वो चाँदनी की तरह चमक उठे. चमकते गोलाकार चाँद पर दिव्या के गुलाबी निपल्स शिखर के समान खड़े थे. अनिल ने उन गुलाबी शिखरों को अपनी उंगलियों के बीच में दबा कर मसला. "इस्शह" दिव्या नशीले धीमी स्वर में चीखी. दिव्या की चीख ने अनिल के लंड में रक्त संचार को और तीव्र कर दिया. उसने दिव्या की चुचि को ज़ोर से मसल्ते हुए अपने लंड को उसकी गांद पर दबाया. फिर अपने एक हाथ को नीचे सरकाते हुए दिव्या के पेट पर ले गया. दिव्या की मुट्ठी काज़ोर बढ़ने लगा. जैसे जैसे अनिल के हाथ नीचे की तरफ बढ़ रहे थे वैसे वैसे दिव्या का बदन तन रहा था. उसके नितंब कस गये और दिव्या अपनी दोनो जांघों को दबाने लगी. अनिल ने दिव्या की सलवार के नाडे को खीच कर खोल दिया और अपने हाथ से उसकी सलवार को नीचे सरका कर दिव्याको नंगा कर दिया. सलवार के नीचे जाते ही गुलाबी पॅंटी के बीच आधे छिपे दिव्या के पुष्ट सुडौल नितंब प्रत्यक्ष हो उठे. 

अनिल ने अब तक दिव्या को केवल ढीले सलवार और कमीज़ में देखा था जिसमे उसके जिश्म की खूबसूरती पूरी तरह से नही झलकती थी. नंगी दिव्या के जिश्म का नज़ारा कुच्छ और ही था. साढ़े पाँच फुट लंबा कद, दुबली काया - 26 की कमर. दुबली साइलेंडरिकल बदन पर दो गोल पुष्ट उरोज़ और कमर के नीचे औसत से अधिक बड़े नितंब दिव्या को बहुत सेक्सी बना रहे थे. दिव्या के इस कामिनी रूप देखने के पस्चात अनिल के लिए सब्र रखना मुश्किल हो रहा था. उसने अपना शर्ट और पॅंट उतारना सुरू कर दिया. बंद आँखों में मूर्ति की तरह झुक कर खड़ी दिव्या अचानक से अनिल कास्पर्श ख़त्म होने से थोड़ी अचंभित थी. उसने ये उम्मीद नही किया था कि उसके अनिल सर उसके सामने नंगे हो जाएँगे. थोड़ी देर बाद जब अपनी जांघों पर अनिल के जांघों की गर्मी, अपनी चूत के पास अनिल के लंड, अपनी गांद पर अनिल के बॉल और पीठ पर अनिल की नंगी छाती महशूष करने के बाद उसे यकीन हो चुका था कि सर नंगे हो गये हैं. पर उसकी आँख खोल कर देखने की हिम्मत नही हो रही थी. उसने अपने निचले होंठ को दांतो में दबा लिया और सर के अगले कदम का इंतेज़ार करने लगी. दिव्या को अधिक देर तक इंतेज़ार नही करना पड़ा. अनिल का एक हाथ फिर से उसकी चुचियों से खेल रहा था और दूसरा हाथ नीचे उसकी पॅंटी के उपर से उसकी गीली चूत को मसल रहा था. चुदाई के इस पहले मौके में अनिल केलिए सब्र रखना संभव नही था. वह बिना अधिक समय गवायें दिव्या की पॅंटी को नीचे सरका कर उसकी चूत को अपनी उंगली से मसल्ने लगा. ज़ोर से धड़कते दिल और तेज़ चलती सांसो के बीच बंद आँखों में अपने होंठ को दाँतों तले दबाए दिव्या ने अपनी जांघों को एक दूसरे की तरफ दबाया. अनिल ने उसकी जांघों को फैलाया और उसकी चूत में अपनी उंगली घुसा दी. दिव्या का बदन अकड़ गया. अनिल की उंगली इस काली घाटी की गहराइयों में उतरने लगी. अब दिव्या भी आनंद में मचल रही थी. अनिल दिव्या को मस्ती में देख समझ गया कि अब दिव्या उसके लंड को लेने केलिए तैयार है. उसने उसकी चूत से उंगली निकाल कर अपने लंड का सूपड़ा उसकी चूत पर मसल्ने लगा. फिर धीरे धीरे उसने लंड को अंदर घुसाया. दिव्या की कुँवारी चूत बहुत टाइट थी. लंड के दबाव से दिव्या चीखने लगी. अनिल ने लंड को अंदर घुसाना बंद कर उसकी चुचियों को मसल्ने लगा. दिव्या के शांत होने पर उसकी चुचियों को छ्चोड़ अनिल दिव्या की कमर और गांद को अपने दोनो हाथों से मसल्ने लगा. और फिर दिव्या की कमर को पकड़ एक झटके के साथ लंड को अंदर धकेल दिया. दिव्या दर्द से चीख उठी. दिव्या के शांत होने तक अनिल उसकी चुचियों और बदन को सहलाने लगा. कुच्छ देर में दिव्या फिर से शांत हो गयी. फिर अनिल ने अपने लंड को धीरे धीरे हिलाना सुरू किया. थोड़ी देर में ही अनिल दिव्या को पूरे जोश में चोद रहा था और दिव्या भी अपनी गांद को हिला और सिसकारियाँ भर कर अनिल को पूरा सहयोग दे रही थी. पहली बार चुदाई का मज़ा ले रहे अनिल और दिव्या को चरम पर पहुँचने में अधिक वक़्त नही लगा. एक धमाके के साथ दोनो के प्रेमरस का संगम हुआ. आख़िरकार अनिल को उसकी पहली चुदाई का मज़ा मिल ही गया.


उस दिन दिव्या का ट्यूशन पूरी रात चला और पूरी रात अनिल ने उसे अलग अलग ढंग से सज़ा दी. अगले 18 महीनो के ट्यूशन में अनिल ने दिव्याको हर तरह से, हर पोज़िशन में हर पासिबल तरीके से चोद कर उसका मज़ा लिया. दिव्या इस ट्यूशन से फिज़िक्स मैथ में स्ट्रॉंग तो नही हुई परचुदाई में अव्वल दर्जे की हो गयी. 
दोस्तो ये तो होना ही था मुझे पहले से ही शक था कि ये ट्यूशन पढ़ाई का है या चुदाई का आपका दोस्त राज शर्मा 

समाप्त दा एंड
 
बबिता और मैं 


दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ ये कहानी मेरे और बबिता के सेक्स संबंधो की कहानी है वो मेरे घर के साथ रहती है और चुदाई से कुच्छ दिन पहले ही मैं ने इक़रार मोहब्बत किया था. वो सिर्फ़ सत्रह साल की है और बिल्कुल ही वर्जिन थी. वाइट कलर स्मार्ट लंबा क़द पतले होन्ट स्माल टिट्स (बूब) छ्होटी सी गंद टाइट फुददी बस क़ायामत का हुस्न है उस का मतलब बहुत ही क्यूट हर तरफ से. 

ऐक दिन वो मेरे घर आई थी जब मैं ने उस को पहली बार देखा और देखते ही उस पर मर मिटा और रात को देर तक उस को चोदने की सोचता रहा. कुच्छ दिन ऐसा चलता रहा और काफ़ी दिनो बाद वो दोबारा मेरे घर आई और इस बार मुझ से रहा ना गया और मैं ने उस से कह दिया के आप मुझे बहुत अच्छी लग'ती हैं. मुझे आप से प्यार हो गया है. 
बबिता: अच्च्छा तो कैसे प्यार हो गया और कब हुआ वैसे सब लड़के ऐक जैसे होते हैं प्यार कुच्छ दिनो बाद ख़तम, जब कोई और मिल जाए तो. 
नही डियर ऐसी बात नही है रियली आइ लव यू सो मच. 
अच्छा मैं सोच कर बताऊं गी. 
फिर उस के बाद मेरी तड़प उस के लिए और भी बढ़ गयी और मैं रात को उस के ख्वाब देखता रहा और अचानक ऐक दिन फिर वो आई और मौका मिलते ही मैं उस के पास गया और जवाब माँगा तो उस ने इशारा कर दिया सिर हिला कर के हां और मेरी खुशी की इंतेहा ना रही. यक़ीन ही नही हो रहा था के उस ने हां कर दी. 
थोरी देर बाद मौका बना और मैं उस के क़रीब जा कर खड़ा हो गया और हॅंड शेक किया उस ने फ़ौरन मेरा हाथ पकड़ा और थोरी देर बाद छुड़ा लिया. उस दिन सिर्फ़ इतना ही हुआ ऐक दो बार हाथ पकड़ा और उस से ज़ियादा कुच्छ नही कर सके और ना ही मौका था. 
फिर कुच्छ ही दिन गुज़रे और वो दोबारा मेरे घर आई उस दिन संडे था और मैं संडे को देर तक सोता हूँ और वो जल्दी आ गयी और मैं सो रहा था. घर पर सिर्फ़ मोम थी और कोई नही था और मैं अपने रूम मैं सो रहा था. मोम टीवी पर जियो न्यूज़ सुन रही थी. 
मैं सो रहा था और अचानक ऐक बहुत ही प्यारी आवाज़ मे मैं ने अपना नाम सुना और आँख खोली तो सामने बबिता खड़ी थी. 
मैं: अर्रे आप और इतनी सुबह और मेरे रूम मैं आज सूरज कहाँ से निकला जनाब. 
बबिता: मैं ने सोचा आज आप को च्छुटी है इस लिए मिल आऊँ और आप हैं के अभी तक सो रहे हैं. हमारे लिए क्या हुकुम है, हम वेट करे जनाब या चले जाएँ. क्यों के आंटी भी टीवी देख रही हैं और मैं अकेली क्या करूँ गी यहाँ. 
मैं: हम जो हैं आप को कंपनी देने के लिए लकिन सिर्फ़ थोरी देर वेट करे. मैं अभी तैयार हो जाता हूँ. और इस दौरान मैं ने उस के हॅंड पर बहुत सारे किस कर लिए उस ने कुच्छ भी नही कहा ना ही मना किया बस आराम से बैठी रही मेरे सामने. थोरी देर हम बाते करते रहे उस के बाद मैं ने उस से कहा के क्या मैं आप को किस कर सकता हूँ तो उस ने कहा इतने तो कर लिए बिना इजाज़त और अब इजाज़त माँग रहे हैं वाह क्या बात है आप की. 
मैं: जनाब इस बार हम आप के होन्ट पर किस करना चाहते हैं अगर माइंड ना करे और इजाज़त हो तो. 
बबिता: मैं क्या कह सकती हूँ क्यों के मुझे शरम आती है आप की मेर्ज़ी है. 
मैं: हेलो मेडम जब आप यहाँ आया करे उस वक़्त शरम घर पर छ्चोड़ आया करे यहाँ हमारे साथ शरम का कोई काम नही है अंडरस्टॅंड… 
बबिता: ओके एज यू विश जो दिल चाहे कर ले लकिन सिर्फ़ उप्पेर तक ही रहना है नीचे नही जाना अभी. 
मैं: अर्रे डरो नही हमारा हक सिर्फ़ आप के पैट (स्टमक) के उप्पेर तक है नीचे हमारा क्या काम. वैसे क्या डर लगता है आप को मुझ से. 
बबिता: जी लगता तो है लकिन बहुत कम मीन 20% डर लगता है और 80% नही लगता. उस के बाद मैं उठा और बाथ गया नहा धो कर तैयार हो कर वापिस आ गया और वो मोम के साथ बैठी थी मैं जब अच्छी तरह तैयार हो गया तो टीवी लाउंज मैं आया और देखा मोम नही थी वो बाथरूम मे थी. मैं ने मौका देखते ही फ़ायडा उठाया और बबिता को इशारे से कहा के उप्पेर आ जाओ और बाहर जाने का बहाना कर के मोम से पूचछा के मैं बाहर जा रहा हूँ कोई काम है. मोम ने कहा नही कोई काम नही है और मैं खामोशी से उप्पेर चढ़ गया और थोरी देर बाद बबिता भी आ गयी. अब मोम को यही पता था के मैं बाहर गया हुआ हूँ और बबिता अपने घर चली गयी है. लकिन उन्हे क्या पता के उन का बेटा क्या गुल खिला रहा है उप्पेर. 
उपर जाते ही मैं ने बबिता से कहा के आओ और मुझे गले मिलो. उस ने कहा नही मुझे शरम आती है. 
मैं ने कहा देखो मैं ने पहले कहा था ना के शरम घर रख कर आया करो जब मुझ से मिलने आया करो. 
तो वो उठी और नज़दीक आ गयी और उस वक़्त मेरा लंड बिल्कुल ही सख़्त हो गया था और मैं आगे हुआ और उस को गले से लगा कर उस के पूरे चेहरे पर किस्सिंग करने लगा और इस से थोरी देर बाद उस को भी मज़ा आने लगा. 
मैं ने उस के कान मे कहा के बबिता क्या मैं आप के बूब्स को हाथ लगा सकता हूँ क्यों के मुझे आप के बूब बहुत अच्छे लगते हैं और मैं इन के साथ खेलना चाहता हूँ. 
उस ने कहा जो दिल कहे वही करो मुझ से कुच्छ मत पुछो क्यों के मुझे शरम आती है और मैं कुच्छ नही कहूँ गी आप ने जो करना है वही करे बस. 
ओके जैसे आप की मेर्ज़ी हम तो हुकुम के गुलाम हैं. उस के बाद मैं ने उस को थोरी देर खरे खरे ही किस किया और गले से लगाए रखा और ऐक हाथ उस की कमर पर फेरता रहा और दूसेरे से उस के बूब को आराम आराम से मसलता रहा ताके उस को ज़ियादा से ज़ियादा मज़ा मिले और जल्दी हॉट हो जाए और आगे कुच्छ भी केरने से मना ना करे. 

फिर मैं ने उस को बेड पेर लिटा दिया और उस के साथ लेट गया और ऐक हाथ उस के चेस्ट पर रखा और बड़े प्यार से मसल्ने लगा और साथ साथ बातै भी करता रहा उस का रिक्षन देखने के लिए. अभी तक वो नॉर्मल ही थी और कुच्छ ना बोली मैं ने ये देखा और अपना हाथ उस की कमीज़ के अंदर डालने लगा तो उस ने फ़ौरन मेरा हाथ पकड़ा और मेरी तरफ देखा कर कहा. 
देखो जान मुझे तुम पर यक़ीन है लकिन थोड़ा डर भी लगता है कहीं कुच्छ ग़लत ना हो जाए हम से. तुम जो चाहो करो मैं मना नही करूँ गी लकिन ऐसा कुच्छ मत करना जिस से मेरी ज़िंदगी तबाह हो जाए और मैं किसी को मूँह दिखाने के लाइक ही ना रहूं. 
बबिता अगेर मुझ पर यक़ीन है तो सुनो मैं तुम्है बहुत चाहता हूँ और तुम से शादी करने की कोशिश भी करूँ गा लकिन तू किस्मत के फ़ैसले को तो मानती हो ना अगेर किस्मत मैं हुआ तो ज़रूर हो गी हमारी शादी वेर्ना नही और मैं तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूँ अभी इसी वक़्त क्यों के मुझ से वेट नही होता और रही ज़िंदगी तबाहा होने वाली बात तो आज कल हर दूसरी लड़की ये सब करती है तुम कोई पहली लड़की नही हो और हम किसी को बता थोड़ा रहे हैं जो तुम्हारी ज़िंदगी तबाह हो जाए गी. 
बबिता: हू तो ठीक है लकिन अगर कुच्छ गड़बड़ हो गयी तो मीन बच्चा हो गया तो कैसे च्छूपाऊँ गी. इस लिए डरती हूँ. और दर्द भी होता है उस से भी डर लगता है. क्यों के कुच्छ दिन पहले मैं अपनी कज़िन की शादी पर गयी थी उस ने सब बताया के क्या हुआ था पहली रात. 
हां दर्द तो होता है लकिन फिकेर मत करो मैं आराम से करूँ गा कुच्छ भी नही हो गा और बच्चा ऐसे नही होता जब तक कम अंदर ना जाए तब तक कुच्छ नही होता और ना ही किसी को ऐसे पता चले गा. 
इस के बाद वो मुस्कुरा कर आन्खै बंद कर के आराम से जैसे थी वैसे ही लेटी रही और मुझे इशारा मिला के उस की तरफ से हां है. मैं अब दिल मे बहुत खुश था. 
मैं ने जल्दी से उस को किस करना शुरू कर दिया और उस की कमीज़ उप्पेर कर दी उस ने ब्लॅक ब्रा पहना हुआ था मैं ने पूछा के क्या साइज़ है ब्रा का तो वो बोली 32सी. 
फिर मैं ने उस को उठाया और कमीज़ उतार दी और ब्रा मे भी अब वो आधी नंगी थी लकिन मैं कपड़ो मे ही था अभी तक. मैं ने उस के बूब्स को बारी बारी चूसना शुरू कर दिया और अपना ऐक हाथ उस की कमर पर फेरने लगा और दूसेरा उस की फुदी पर ले गया और आराम से उस की फुदी पर हाथ फेरने लगा और जब हाथ शलवार मैं डालना चाहा तो उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा. 
बबिता: हाथ अंदर मत डालो मुझे बहुत शरम आ रही है क्यों के आज ही मैं ने शेव की है और कभी किसी को दिखाई भी नही इस लिए शलवार मत उतारो.
 
मैं: ऐसे कैसे मज़ा आएगा और कैसे चोदून्गा अगेर शलवार नही उतारी तो. फिर मैं ने उस को किस्सिंग करते करते इतना गरम कर दिया कि मैं ने उस की शलवार उतारने की कोशिश की तो उस ने मुझे रोका नही बलके खुद ही अपनी गंद उपेर उठा कर मेरी हेल्प की शलवार उतारने मैं फिर वो एक दम नंगी मेरे सामने थी मैं ने उस के जिस्म पर किस करना सूरू कर दिया वो जोश मैं आहह उउउफफफफफ्फ़ कर रही थी मुझे उस की आवाज़ सुन कर बोहत मज़ा आ रहा था फिर उस ने मुझ से कहा, 
प्ल्ज़ जान जो कुच्छ भी करना आराम से करना मुझे दर्द बिल्कुल अच्च्छा नही लगता इस लिए आराम से करना और जितना हो सके मज़ा देना. फिर मैं ने एक फिंगर उस के कंट मे उप्पेर से ही फेरना शुरू कर दी और किस्सिंग भी करता रहा कभी लिप्स पर कभी बूब कभी निपल्स सक करता कभी कहीं मीन पूरे जिस्म पर किस किया और किस करते करते उस की चूत पर ज़ुबान से चाटना शुरू कर दिया. उस को बोहत मज़ा आने लगा और वो ज़ोर ज़ोर से आवाज़े निकालने लगी. 
जान प्ल्ज़ और करो बोहत मज़ा आ रहा है मेरी चूत को और चॅटो अपनी पूरी ज़ुबान मेरी चूत मे डाल दो प्ल्ज़ बोहत मज़ा आ रहा है और थोरी देर बाद जब महसूस हुआ के वो हॉट हो रही हैं तो मैं ने अपनी फिंगर उस की फुदी मैं डाली बिल्कुल आराम से. 
बबिता: ऊह जान आराम से करना मुझे बहुत डर लग रहा है लकिन मज़ा भी आ रहा है. बहुत अच्छा फील कर रही हूँ मैं. आज तक ऐसा कभी फील नही हुआ आराम से अंदर करो प्यार से बहुत ही प्यार से आअहह हां मज़ा आ आहा है ऐसे ही अफ ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ मुझ मे इतनी गर्मी क्यों है आग लगी हुई है जिस्म मे. बुझा दो इस आग को कुच्छ करो बहुत ही गेर्मी लग रही है मुझे. आहह मज़ा बहुत आ रहा है उउंम ऊहह जान आहह ऊहह अभी एक ही फिंगर ठीक है मज़ा आ रहा है….. नही दूसेरी अंदर मत करो ना ऐसे ही अच्च्छा महसूस हो रहा है आहह. 
मैं: देखा बबिता कितना मज़ा है इस काम मैं और जनाब आप के कपड़े तो उतर गये हमारे कौन उतारे गा. 
बबिता: जो करना है खुद करो मुझे बस मज़ा दो जितना हो सके और जल्दी करो कहीं कोई आ ना जाए मेरा पता करने और हम पकड़े ना जाएँ. जल्दी करो जान. 
मैं ने अपने कपड़े उतार दिए और फिर उस के साथ लेट गया और उस को बाहों मे जाकड़ लिया और थोड़ा ज़ोर लगा कर उस को दबाया और फिर अपना काम शुरू कर दिया मीन फिंगरिंग आंड किस्सिंग आंड रब्बिंग. 
बबिता: हां मज़ा आ रहा है ऊहह करते जाओ करते जाओ ऊहह उउंम्म अर्रे ये क्या सख़्त और हॉट चीज़ मुझे लग रही है टाँगो मे… 
यही तो है जिस का सारा काम है जिस ने आप को और मुझ को खूब मज़ा देना है. यही तो अंदर डालूं गा तुम्हारी फुदी मैं लकिन तोड़ा इस के सर पर हाथ फेरो इस को प्यार करो उस के बाद ये तुम्है अपना काम दिखाए गा. 
उस ने मेरा लंड अपने हाथ मे पकड़ा और उस को सहलाने लगी और उस को बहुत अच्च्छा फील हो रहा था ऐसा करते और करवाते हुए. वो बहुत हॉट हो गयी थी शायद अब बर्दाश्त नही कर रही थी अपने और मेरे बदन की गर्मी. 
बबिता: अफ हाँ इतना मज़ा आ रहा है तुम ने पहले क्यों नही बताया था के इतना मज़ा आता है इस काम मे. मैं तो कब से प्यार करती थी तुम्है और तुम ने इतना टाइम लगा दिया कहने मे. लकिन जो हुआ अच्छा हुआ क्यों के सबर का फल मीठा होता है. सुना तो था आज देख भी रही हूँ. आज मुझे खूब मज़ा दो. मुझे प्यार करो मुझे ठंडा कर दो अब और बर्दाश्त नही हो रहा है. 
मैने उस से कहा कि मेरे लंड को मुँह मैं डाल कर लॉली पोप की तरहा चूसो पहले उस ने मना किया लकिन जब मैं ने उस को कहा कि मैं ने तुम्हारी फुदी को भी चॅटा था तो वो मान गयी और उस ने मेरे लंड को किस करना शुरू कर दिया और फिर मु'ह मे ले कर चूसने लगी. मैं बता नही सक़ता मुझे कितना मज़ा आ रहा था मैं ने उस को 69 पोज़िशन मे कर दिया और उस की फुदी को सक करना शुरू कर दिया वो मेरा लंड सक कर रही थी और मैं उस की फुदी. 15 मिनट तक सक करने क बाद उस की फुदी से जूस निकलने लगा और मैं ने सारा जूस चाट चाट कर सॉफ कर दिया. उस के बाद मैं ने उस से कहा कि अब तुम लेट जाओ और उस को बेड पर लिटा कर उस की गंद के नीचे एक तकिया रख दिया जिस से उस की फुदी उपेर की तरफ उठ गयी फिर मैं ने उस की टाँगे उपेर उठा दी तो उस ने पोच्छा, 
टाँगे क्यों उठा रहे हो अब क्या इरादा है ऐसे क्या हो गा. 
अब चुदाई करने जा रहा हूँ और आप ने भी साथ देना है मीन पेन पर कंट्रोल करना है और चिल्लाना भी नही है मेरी खातिर बेरदाश्त कर लो थोरी देर बाद बहुत मज़ा मिले गा ओके तैयार हो करूँ अंदर. 
हां मैं तैयार हूं और तुम्हारा साथ भी दूंगी तुम बेफिकेर हो कर अपना काम करो बस मुझे मज़ा दो चाहे जैसे भी और तुम भी कोशिश करना आराम से और प्यार से करने की जिस से दर्द कम और मज़ा ज़ियादा मिले ऐसा काम करना. 
मैं ने उस की फुदी पर लंड रखा ठीक निशाने पर और आराम से अंदर करने लगा वो बहुत टाइट थी और उस को तकलीफ़ भी होना शुरू हो गई…
 
आराम से डालो आराम से हां आहिस्ता आहिस्ता प्यार से करो अंदर अफ बहुत मज़ा आ रहा है. हां थोड़ा और करो हां आराम से ओई मा जान दर्द हो रहा है लकिन तुम रूको नही बस आराम आराम से अंदर करते जाओ. मज़ा आ रहा है ऊहह म्मा आराम से हां ऐसे ऊहह करो और अंदर करो ओईईई माआअ बहुत दर्द हो रहा है आआहह उउउँ मेरे लिप्स सक करो बूब्स को रागडो मुझे प्यार भी करो जान. 
अभी तक मेरा आधा लंड उस के अंदर घुसा था और अब उस को पेन भी बहुत हो रहा था इस लिए मैं ने वही तक ही अंदर रखा और आहिस्ता आहिस्ता हिलने लगा ताके उस को मज़ा ज़ियादा और दर्द कम महसूस हो. मेरा लंड अभी 2 इंच ही अंदर गया था और अंदर नही जा रहा था कोई चीज़ और अंदर जाने से रोक रही थी मैं समझ गया कि यह उस की फुदी की सील है जो लंड को और अंदर नही जाने दे रही थोड़ी देर तक मैं 2 इंच लंड ही अंदर बाहर करता रहा फिर बबिता बोली 
हां अब ठीक है अब करो अंदर ऐक ही झटके से अंदर बाहर करो. उस ने सोचा पूरा अंदर जा चुक्का है इसी लिए ऐसा कहा और मैं ने भी नही बताया के अभी 2 इंच ही अंदर है और 5 इंच बाहर बस उस का यही कहना था मैं ने उस के लिप्स पर अपने लिप्स रखे और ऐक ज़ोर दार फुल पवर से झटका मारा और पूरा लंड अंदर गुम हो गया. 
लंड अंदर जाते ही उस ने ऐक ज़ोर दार चीख मारी लकिन मेरे मुँह मे ही रही उस की चीख और उस की आँख से पानी निकल आया थोरी देर ऐसे ही लेटा रहा और जब देखा के अब कुच्छ नॉर्मल है तो मैं ने उस के लिप्स फ्री कर दिए और उस ने गुस्से से मेरी आँखूं मे देखा और रोने लगी. उस की फुदी से खून निकलना शुरू हो गया था. 
मैं: आइ म सॉरी बबिता रो मत और तुम ने खुद ही तो कहा था के झटका मार कर अंदर बाहर करूँ और अब तुम रो रही हो. 

शी: मैं ने कहा था लकिन मुझे क्या पता था अभी बाहर भी बचा है और जनाब ने भी बताने की तकलीफ़ नही महसूस की. बहुत बुरे हो तुम अब कुच्छ नही केरने दूंगी बस आज पहली और आखरी बार कर लो जितना और जैसा करना है इस के बाद कभी नही करेंगे. 
लकिन ऐक बात है उस वक़्त दर्द बहुत हुआ ऐसा लगा जैसे किसी ने चाकू मार दिया हो और मेरी फुदी चीर डाली हो लकिन अब कुच्छ दर्द कम हो गया है पहले से. बहुत ज़ालिम हो तुम अब निकालो इस को बाहर थोड़ा दर्द कम होने दो उस के बाद करना अभी कुच्छ मत करो. 
ठीक है लकिन अंदर ही रहने दो मैं नही हिलूं गा और जब दर्द ख़तम हो जाए गा फिर स्टार्ट करेगे. 
नही इतनी देर अंदर ही रहो गे तो मैं मर जाऊं गी. बस करो जैसा करना है मैं बर्दाश्त करती हूँ. लकिन करना आराम से और करो भी जल्दी मैं ने जाना भी है. 
हां ऐसे ही प्यार से करो बहुत मज़ा आ रहा है. ऊओ एस अब ठीक है अच्च्छा फील हो रहा है अब और कितनी देर करना है बस भी करो ना. मैं थक गयी हूँ 10 मिनट से मेरी टाँगे उठा कर मेरे उप्पेर चढ़े हैं जनाब कोई एहसास भी है मेरा या नही. 
बस जान थोरी सी देर और ओन्ली 2 मिनट. मैं छूट'ने वाला हूँ. 
ओके कर लो लकिन सिर्फ़ 2 मिनट हैं आआआअहह आराम से करो ना जान आराम से करो दर्द होता है ऊओह नूऊ मैं नाराज़ हो जाऊं गी साची कहती हूँ. 
जान आख़िर मैं मत रोको मुझे मज़ा लेने दो आख़िर मे मैं ऐसे ही चोद्ता हूँ. 
अच्च्छा लकिन थोड़ा सा तो आहिस्ता करो साची दर्द हो रहा है इतना कहा भी नही मानो गे आअहह. साची बहुत दर्द हो रहा है उउफफफ्फ़ मैं आज कहाँ फँस गयी. मैं अच्छी भली घर मैं बैठी थी. पता नही क्या हुआ यहाँ आ गयी तुम से चुदवाने. जान हां हां करो अब कुच्छ अच्छा लग रहा है. करो ऐसे ही करते रहो अब मुझे अच्छा लग रहा है मज़ा आ रहा है. अब हाईईइ कितना अच्छा है चुदवाना काश मैं तुम्हारी बीवी होती. उस से डेली तो करते हां करो और तेज़ और तेज़ करो ऊओ अलईइीई आहह. तुम्हारी सांस क्यों तेज़ आ रही है. 
बिकॉज़ आइ एम सो नियर टू कम. बबिता दबाओ मुझे हाथ मेरी कमर पर रखो. जितना ज़ोर है दबाओ अपने सीने से लगा लो मैं आ रहा हूँ आइ एम कमिंग जान. 
हां हां ज़ोर से और तेज़ अब मज़ा आ रहा है मेरे अंदर कुच्छ हो रहा है जैसे पिशाब आ रहा हो. करो करो अब मत रुकना. ऊहह कुच्छ निकल रहा है आअहह ऊओ नू क्या हो रहा है. करो रूको नही ऊहह. आइ फील सम्तिंग इन मी ऊओ तुम छूट गये ना अया मुझ मे कुच्छ गिर रहा है. बहुत मज़ा आ रहा है ऊवू चोदो मुझे बहुत मज़ा आ रहा है जान आइ लव यू. 
हम दोनो ऐक साथ ही फारिग हुए और ऐक दूसरे के साथ लिपट कर कुच्छ देर लेटे रहे उस के बाद दोनो उठ कर बैठ गये और थोड़ी देर बाते करते रहे और किस्सिंग भी. फिर बबिता कपड़े पहन कर चोरी से दबे पाँव वहाँ से चली गयी 
उसके बाद हम काफ़ी टाइम तक सेक्स करते रहे फिर बबिता की शादी हो गई मैं फिर से अकेला रह गया किसी दूसरी बबिता के लिए कहानी कैसी लगी बताना मत भूलिएगा आपका दोस्त राज शर्मा
 
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