hotaks444
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पिया मिलन को जाना
मैं जल्दी से अपने कमरे की ओर बढ़ी।
मेरी निगाह अपनी पतली कलाई में लगी घडी की ओर पड़ी।
सवा आठ , और साढ़े आठ पे अजय को आना है।
और एक पल में मैं सब कुछ भूल गयी, भाभी की छेड़छाड़ , बसंती और गुलबिया , बस मैं तेजी से चलते हुए आँगन तक पहुंच गयी।
लेकिन तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी.
टप ,टप ,टप ,टप,…
और बूंदे बड़ी बड़ी होती जा रही थीं।
लेकिन इस समय अगर आग की भी बूंदे बरस रही होतीं तो मैं उन्हें पार कर लेती।
……………..
मुझे उस चोर से मिलना ही था , जिसने मुझसे मुझी को चुरा लिया था।
जिसने जिंदगी की एक नयी खुशियों का एक नया दरवाजा मेरे लिए खोल दिया था।
थोड़ा बदमाश था लेकिन सीधा ज्यादा ,
जैसे बैकग्राउंड में गाना बज रहा था , ( जो मैंने कई बार सुबह सुबह भूले बिसरे गीत में सूना था )
तेरे नैनों ने , तेरे नैनों ने चोरी किया ,
मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया
तेरे नैनों ने चोरी किया ,
जाने कैसा जादू किया तेरी मीठी बात ने ,
तेरा मेरा प्यार हुआ पहली मुलाकात में
पहली मुलाकात में हाय तेरे नैनों ने चोरी किया ,
मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया ,....
हाँ पक्के वाले आँगन से निकलते समय उसके और कच्चे वाले हिस्से के बीच का दरवाजा मैने अच्छी तरह बंद कर दिया।
वैसे भी दोनों हिस्सों में दूरी इतनी थी की मेरे कमरे में क्या हो रहा था वहां पता नहीं चलने वाला था , और चंपा भाभी ,मेरी भाभी की कब्बड्डी तो वैसे ही सारे रात चलने वाली थी,
फिर भी ,…
अब मैं कच्चे वाले आँगन में आ गयी ,जहाँ एक बड़ा सा नीम का पेड़ था, और ज्यादातर आँगन कच्चा था.
वहां ताखे में रखी ढिबरी बुझ चुकी थी ,कुछ भी नहीं दिख रहा था।
बूंदो की आवाज तेज हो चुकी थी ,उस हिस्से में कमरों और बरामदे की छतें खपड़ैल की थीं ,और उन पर गिर रही बूंदो की आवाज , और वहां से ढरक कर आँगन में गिर रही तेज मोटी पानी की धार एक अलग आवाज पैदा कर रही थी।
बादलों की गरज तेज हो गयी थी ,एक बार फिर तेजी से बिजली चमकी ,
और मैं एक झटके में आँगन पार कर के अपने कमरे में पहुँच गयी।
पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना
जग की लाज, मन की मौज, दोनों को निभाना
पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना
काँटे बिखरा के चलूं, पानी ढलका के चलूं - २
सुख के लिये सीख रखूं - २
पहले दुख उठाना, पिया मिलन को जाना ...
(पायल को बांध के -
पायल को बांध के
धीरे-धीरे दबे-दबे पावों को बढ़ाना
पिया मिलन को जाना ...
बुझे दिये अंधेरी रात, आँखों पर दोनों हाथ - २
कैसे कटे कठिन बाट - २
चल के आज़माना, पिया मिलन को जाना
हां पिया मिलन को जाना, जाना
पिया मिलन को जाना, जाना
पिया मिलन को जाना, हां
पिया मिलन को जाना
....
गनीमत थी वहां ताखे में रखी ढिबरी अभी भी जल रही थी और उस की रोशनी उस कमरे के लिए काफी थी।
लेकिन उसकी रोशनी में सबसे पहली नजर में जिस चीज पे पड़ी , उसी ताखे में रखी,
एक बड़ी सी शीशी , जो थोड़ी देर पहले वहां नहीं थी।
कड़ुआ तेल ( सरसों के तेल ) की ,
मैं मुस्कराये बिना नहीं रह सकी ,चंपा भाभी भी न ,
लेकिन चलिए अजय का काम कुछ आसान होगा ,आखिर हैं तो उन्ही का देवर।
अब एक बार मैंने फिर अपनी कलाई घड़ी पे निगाह डाली , उफ़ अभी भी ८ मिनट बचे थे।
थोड़ी देर मैं पलंग पर लेटी रही , करवटें बदलती रही , लेकिन मेरी निगाह बार बार ताखे पर रखी कडुवे तेल की बोतल पर पड़ रही थी।
अचानक हवा बहुत तेज हो गयी और जोर जोर से मेरे कमरे की छोटी सी खिड़की और पीछे वाले दरवाजे पे जोर जोर धक्के मारने लगी।
लग रहा था जोर का तूफान आ रहा है।
ऊपर खपड़ैल की छत पर बूंदे ऐसी पड़ रही थीं जैसे मशीनगन की गोलियां चल रही हों। बादल का एक बार गरजना बंद नहीं होता की दूसरी बार उससे भी तेज कड़कने की आवाज गूँज जाती , कमरा चारो ओर से बंद था लेकिन लग रहा था सीधे कान में बादल गरज रहे हों ,
बस मेरे मन में यही डर डर बार उठता था ,इतनी तूफानी रात में वो बिचारा कैसे आएगा।
अजय
अजय जित्ता भी सीधा लगे ,उसके हाथ और होंठ दोनों ही जबरदस्त बदमाश थे ,ये मुझे आज ही पता लगा।
शुरू में तो अच्छे बच्चो की तरह उसने हलके हलके होंठों को ,गालो को चूमा लेकिन अँधेरा देख और अकेली लड़की पा के वो अपने असली रंग में उतर आये। मेरे दोनों रस से भरे गुलाबी होंठों को उसने हलके से अपने होंठों के बीच दबाया ,कुछ देर तक वो बेशरम उन्हें चूसता रहा, चूसता रहा जैसे सारा रस अभी पी लेगा ,और फिर पूरी ताकत से कचकचा के ,इतने जोर से काटा की आँखों में दर्द से आंसू छलक पड़े , फिर होंठों से ही उस जगह दो चार मिनट सहलाया और फिर पहले से भी दुगुने जोर से और खूब देर तक… पक्का दांत के निशान पड़ गए होंगे।
मेरी सहेलियां , चंदा , पूरबी ,गीता ,कजरी तो चिढ़ाएंगी ही ,चम्पा भाभी और बसंती भी …
लेकिन मैं न तो मना कर सकती थी न चीख सकती थी ,मेरे दोनों होंठ तो उस दुष्ट के होंठों ने ऐसे दबोच रखे थे जैसे कोई बाज किसी गौरेया को दबोचे।
बड़ी मुश्किल से होंठ छूटे तो गाल ,
और वैसे भी मेरे भरे भरे डिम्पल वाले गालों को वो हरदम ऐसे ललचा ललचा के देखता था जैसे कोई नदीदा बच्चा हवा मिठाई देख रहा हो।
गाल पर भी उसने पहले तो थोड़ी देर अपने लालची होंठ रगड़े ,और फिर कचकचा के , पहले थोड़ी देर चूस के दो दांत जोर से लगा देता ,मैं छटपटाती ,चीखती अपने चूतड़ पटकती ,फिर वो वहीँ थोड़ी देर तक होंठों से सहलाने के बाद दुगुनी ताकत से , .... दोनों गालों पर।
मुझे मालूम था उसके दाँतो के निशान मेरे गुलाब की पंखुड़ियों से गालों पर अच्छे खासे पड़ जाएंगे ,
पर आज मैंने तय कर लिया था।
मेरा अजय ,
उसकी जो मर्जी हो ,उसे जो अच्छा लगे ,… करे।
मैं कौन होती हूँ बोलने वाली , उसे रोंकने टोकने वाली।
और शह मिलने पर जैसे बच्चे शैतान हो जाते हैं वैसे ही उसके होंठ और हाथ ,
उसके होंठ जो हरकत मेरे होंठों और गालों के साथ कर रह रहे थे ,वही हरकत अजय के हाथ मेंरे मस्त उभरते १६ साल के कड़े कड़े टेनिस बाल साइज के जोबन के साथ कर रहे थे।
आज तक मेरे जोबन ,चाहे शहर के हो या या गांव के लड़के ,उन्हें तंग करते ,ललचाते ,उनके पैंट में तम्बू बनाते फिरते थे ,
आज उन्हें कोई मिला था , टक्कर देने वाला।
और वो सूद ब्याज के साथ ,उनकी रगड़ाई कर रहा था ,
पर मेरे जोबन चाहते भी तो यही थे।
कोई उन्हें कस के मसले ,कुचले ,रगड़े ,मीजे दबाये,
और फिर जोबन का तो गुण यही है , बगावत की तरह उन्हें जितना दबाओ उतना बढ़ते हैं ,और सिर्फ मेरे जुबना को मैं क्यों दोष दूँ ,
सभी तो यही चाहते थे न की मैं खुल के मिजवाऊं ,दबवाऊं ,मसलवाऊं।
चंपा भाभी ,मेरी भाभी ,
यहाँ तक की भाभी की माँ भी
और फिर जब दबाने मसलने वाला मेरा अपना हो ,
अजय
तो मेरी हिम्मत की मैं उसे मना करूँ।
और क्या कस कस के ,रगड़ रगड़ के मसल रहा था वो।
आज वो अमराई वाला अजय नहीं था ,जिसने मेरी नथ तो उतारी , मेरी झिल्ली भी फाड़ी थी अमराई में ,लेकिन हर बार वो सम्हल सम्हल कर ,झिझक झिझक कर मुझे छू रहा था ,पकड़ रहा था ,दबा रहा था.
आज आ गया था ,मेरे जोबन का असली मालिक ,मेरे जुबना का राजा ,
आज आ गया था मेरे जोबन को लूटने वाला ,जिसके लिए १६ साल तक बचा के रखा था मैंने इन्हे ,
मेरी पूरी देह गनगना रही थी ,मेरी सहेली गीली हो रही थी ,
बाहर चल रहे तूफान से ज्यादा तेज तूफान मेरे मन को मथ रहा था.
और मेरे उरोजों की मुसीबत, हाथ जैसे अकेले काफी नहीं थे , उनका साथ देने के लिए अजय के दुष्ट पापी होंठ भी आ गए।
दोनों ने मिल के अपना माल बाँट लिया ,एक होंठों के हिस्से एक हाथ के हवाले।
गाल और होंठों का रस लूट चुके ,अजय के होंठ अब बहुत गुस्ताख़ हो चुके थे , सीधे उन्होंने मेरे खड़े निपल पर निशाना लगाया और साथ में अजय की एक्सपर्ट जीभ भी ,
उसकी जीभ ने मेरे कड़े खड़े , कंचे की तरह कड़े निपल को पहले तो फ्लिक किया ,देर तक और फिर दोनों होंठों ने एक साथ गपुच लिया और देर तक चुभलाते रहे चूसते रहे , जैसे किसी बच्चे को उसका पसंदीदी चॉकलेट मिल जाए और वो खूब रस ले ले के धीमे धीमे चूसे , बस उसी तरह चूस रहा था वो।
और दूसरा निपल बिचारा कैसे आजाद बचता ,उसे दूसरे हाथ के अंगूठे और तरजनी ने पकड़ रखा था और धीमे धीमे रोल कर रहे थे ,
जब पहली बार शीशे में अपने उभरते उभारों को देख के मैं शरमाई ,
जब गली के लड़कों ने मुझे देख के ,खास तौर से मेरे जोबन देख के पहली बार सीटी मारी ,
जब स्कूल जाते हुए मैंने किताब को अपने सीने के सामने रख के उन्हें छिपाना शुरू किया ,
जब पड़ोस की आंटी ने मुझे ठीक से चुन्नी न रखने के लिए टोका ,
और जब पहली बार मैंने अपनी टीन ब्रा खरीदी ,
तब से मुझे इसी मौके का तो इन्तजार था , कोई आये ,कस कस के इसे पकडे ,रगड़े ,दबाये ,मसले ,
और आज आ गया था , मेरे जुबना का राजा।
मैंने अपने आप को अजय के हवाले कर दिया था ,मैं उसकी ,जो उसकी मर्जी हो करे।
मैं चुप चाप लेटी मजे ले रही थी ,सिसक रही थी और जब उसने जोर से मेरी टेनिस बाल साइज की चूंची पे कस के काटा तो चीख भी रही थी।
पर थोड़ी देर में मेरी हालत और ख़राब हो गयी ,उसका जो हाथ खाली हुआ उससे ,अजय ने मेरी सुरंग में सेंध लगा दी।
मेरी सहेली तो पहले से गीली थी और ऊपर से उसने अपनी शैतान गदोरी से जोर जोर से मसला रगड़ा।
मेरी जांघे अपने आप फैल गयी ,और उसको मौका मिल गया ,खूब जोर से पूरी ताकत लगा के घचाक से एक उंगली दो पोर तक मेरी बुर में पेलने का।
उईई इइइइइइइ ,मैं जोर से चीख उठी.
आज उसे मेरे चीखने की कोई परवाह नहीं थीं ,वो गोल गोल अपनी उंगली मेरी बुर में घुमा रहा था ,
मैं सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी , मैंने लता की तरह अजय को जोर से अपनी बाँहों में ,अपने पैरों के बीच लता की तरह लपेट लिया।
लता कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो ,उसे एक सपोर्ट तो चाहिए न ,ऊपर चढ़ने के लिए।
और आज मुझे वो सहारा मिल गया था ,मेरा अजय।
लेकिन था वो बहुत दुष्ट ,एकदम कमीना।
उसे मालूम था मुझे क्या चाहिए इस समय ,उसका मोटा और सख्त ,… लेकिन मैं जानती थी वो बदमाश मेरे मुंह से सुनना चाहता था।
मैंने बहुत तड़पाया था उसे ,और आज वो तड़पा रहा था।
" हे करो न ,… " आखिर मुझे हलके से बोलना ही पड़ा।
जवाब में मेरे उरोज के ऊपरी हिस्से पे ,( जो मेरी लो कट चोली से बिना झुके भी साफ साफ दिखता ) अजय ने खूब जोर से कचकचा के काटा ,और पूछा ,
"बोल न जानू क्या करूँ ,… "
मैं क्या करती ,आखिर बोली ," प्लीज अजय ,मेरा बहुत मन कर रहा है , अब और न तड़पाओ ,प्लीज करो न "
जोर से मेरे निपल उसने मसल दिए और एक बार अपनी उंगली आलमोस्ट बाहर निकाल कर एकदम जड़ तक मेरी बुर में ठेलते हुए वो शैतान बोला ,
" तुम जानती हो न जो तुम करवाना चाहती हो ,मैं करना चाहता हूँ उसे क्या कहते हैं ,तो साफ साफ बोलो न। "
और मेरे जवाब का इन्तजार किये बिना मेरी चूंची के ऊपरी हिस्से पे, एक बार उसने फिर पहले से भी दूने जोर से काट लिया और मैं समझ गयी की ये निशान तो पूरी दुनिया को दिखेंगे ही और मैं न बोली तो बाकी जगह पर भी ,
फिर उसकी ऊँगली ने मुझे पागल कर दिया था ,
शरम लिहाज छोड़ के उसके कान के पास अपने होंठ ले जाके मैं बहुत हलके से बोली ,
" अजय , मेरे राजा ,चोद न मुझे "
मैं जल्दी से अपने कमरे की ओर बढ़ी।
मेरी निगाह अपनी पतली कलाई में लगी घडी की ओर पड़ी।
सवा आठ , और साढ़े आठ पे अजय को आना है।
और एक पल में मैं सब कुछ भूल गयी, भाभी की छेड़छाड़ , बसंती और गुलबिया , बस मैं तेजी से चलते हुए आँगन तक पहुंच गयी।
लेकिन तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी.
टप ,टप ,टप ,टप,…
और बूंदे बड़ी बड़ी होती जा रही थीं।
लेकिन इस समय अगर आग की भी बूंदे बरस रही होतीं तो मैं उन्हें पार कर लेती।
……………..
मुझे उस चोर से मिलना ही था , जिसने मुझसे मुझी को चुरा लिया था।
जिसने जिंदगी की एक नयी खुशियों का एक नया दरवाजा मेरे लिए खोल दिया था।
थोड़ा बदमाश था लेकिन सीधा ज्यादा ,
जैसे बैकग्राउंड में गाना बज रहा था , ( जो मैंने कई बार सुबह सुबह भूले बिसरे गीत में सूना था )
तेरे नैनों ने , तेरे नैनों ने चोरी किया ,
मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया
तेरे नैनों ने चोरी किया ,
जाने कैसा जादू किया तेरी मीठी बात ने ,
तेरा मेरा प्यार हुआ पहली मुलाकात में
पहली मुलाकात में हाय तेरे नैनों ने चोरी किया ,
मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया ,....
हाँ पक्के वाले आँगन से निकलते समय उसके और कच्चे वाले हिस्से के बीच का दरवाजा मैने अच्छी तरह बंद कर दिया।
वैसे भी दोनों हिस्सों में दूरी इतनी थी की मेरे कमरे में क्या हो रहा था वहां पता नहीं चलने वाला था , और चंपा भाभी ,मेरी भाभी की कब्बड्डी तो वैसे ही सारे रात चलने वाली थी,
फिर भी ,…
अब मैं कच्चे वाले आँगन में आ गयी ,जहाँ एक बड़ा सा नीम का पेड़ था, और ज्यादातर आँगन कच्चा था.
वहां ताखे में रखी ढिबरी बुझ चुकी थी ,कुछ भी नहीं दिख रहा था।
बूंदो की आवाज तेज हो चुकी थी ,उस हिस्से में कमरों और बरामदे की छतें खपड़ैल की थीं ,और उन पर गिर रही बूंदो की आवाज , और वहां से ढरक कर आँगन में गिर रही तेज मोटी पानी की धार एक अलग आवाज पैदा कर रही थी।
बादलों की गरज तेज हो गयी थी ,एक बार फिर तेजी से बिजली चमकी ,
और मैं एक झटके में आँगन पार कर के अपने कमरे में पहुँच गयी।
पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना
जग की लाज, मन की मौज, दोनों को निभाना
पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना
काँटे बिखरा के चलूं, पानी ढलका के चलूं - २
सुख के लिये सीख रखूं - २
पहले दुख उठाना, पिया मिलन को जाना ...
(पायल को बांध के -
पायल को बांध के
धीरे-धीरे दबे-दबे पावों को बढ़ाना
पिया मिलन को जाना ...
बुझे दिये अंधेरी रात, आँखों पर दोनों हाथ - २
कैसे कटे कठिन बाट - २
चल के आज़माना, पिया मिलन को जाना
हां पिया मिलन को जाना, जाना
पिया मिलन को जाना, जाना
पिया मिलन को जाना, हां
पिया मिलन को जाना
....
गनीमत थी वहां ताखे में रखी ढिबरी अभी भी जल रही थी और उस की रोशनी उस कमरे के लिए काफी थी।
लेकिन उसकी रोशनी में सबसे पहली नजर में जिस चीज पे पड़ी , उसी ताखे में रखी,
एक बड़ी सी शीशी , जो थोड़ी देर पहले वहां नहीं थी।
कड़ुआ तेल ( सरसों के तेल ) की ,
मैं मुस्कराये बिना नहीं रह सकी ,चंपा भाभी भी न ,
लेकिन चलिए अजय का काम कुछ आसान होगा ,आखिर हैं तो उन्ही का देवर।
अब एक बार मैंने फिर अपनी कलाई घड़ी पे निगाह डाली , उफ़ अभी भी ८ मिनट बचे थे।
थोड़ी देर मैं पलंग पर लेटी रही , करवटें बदलती रही , लेकिन मेरी निगाह बार बार ताखे पर रखी कडुवे तेल की बोतल पर पड़ रही थी।
अचानक हवा बहुत तेज हो गयी और जोर जोर से मेरे कमरे की छोटी सी खिड़की और पीछे वाले दरवाजे पे जोर जोर धक्के मारने लगी।
लग रहा था जोर का तूफान आ रहा है।
ऊपर खपड़ैल की छत पर बूंदे ऐसी पड़ रही थीं जैसे मशीनगन की गोलियां चल रही हों। बादल का एक बार गरजना बंद नहीं होता की दूसरी बार उससे भी तेज कड़कने की आवाज गूँज जाती , कमरा चारो ओर से बंद था लेकिन लग रहा था सीधे कान में बादल गरज रहे हों ,
बस मेरे मन में यही डर डर बार उठता था ,इतनी तूफानी रात में वो बिचारा कैसे आएगा।
अजय
अजय जित्ता भी सीधा लगे ,उसके हाथ और होंठ दोनों ही जबरदस्त बदमाश थे ,ये मुझे आज ही पता लगा।
शुरू में तो अच्छे बच्चो की तरह उसने हलके हलके होंठों को ,गालो को चूमा लेकिन अँधेरा देख और अकेली लड़की पा के वो अपने असली रंग में उतर आये। मेरे दोनों रस से भरे गुलाबी होंठों को उसने हलके से अपने होंठों के बीच दबाया ,कुछ देर तक वो बेशरम उन्हें चूसता रहा, चूसता रहा जैसे सारा रस अभी पी लेगा ,और फिर पूरी ताकत से कचकचा के ,इतने जोर से काटा की आँखों में दर्द से आंसू छलक पड़े , फिर होंठों से ही उस जगह दो चार मिनट सहलाया और फिर पहले से भी दुगुने जोर से और खूब देर तक… पक्का दांत के निशान पड़ गए होंगे।
मेरी सहेलियां , चंदा , पूरबी ,गीता ,कजरी तो चिढ़ाएंगी ही ,चम्पा भाभी और बसंती भी …
लेकिन मैं न तो मना कर सकती थी न चीख सकती थी ,मेरे दोनों होंठ तो उस दुष्ट के होंठों ने ऐसे दबोच रखे थे जैसे कोई बाज किसी गौरेया को दबोचे।
बड़ी मुश्किल से होंठ छूटे तो गाल ,
और वैसे भी मेरे भरे भरे डिम्पल वाले गालों को वो हरदम ऐसे ललचा ललचा के देखता था जैसे कोई नदीदा बच्चा हवा मिठाई देख रहा हो।
गाल पर भी उसने पहले तो थोड़ी देर अपने लालची होंठ रगड़े ,और फिर कचकचा के , पहले थोड़ी देर चूस के दो दांत जोर से लगा देता ,मैं छटपटाती ,चीखती अपने चूतड़ पटकती ,फिर वो वहीँ थोड़ी देर तक होंठों से सहलाने के बाद दुगुनी ताकत से , .... दोनों गालों पर।
मुझे मालूम था उसके दाँतो के निशान मेरे गुलाब की पंखुड़ियों से गालों पर अच्छे खासे पड़ जाएंगे ,
पर आज मैंने तय कर लिया था।
मेरा अजय ,
उसकी जो मर्जी हो ,उसे जो अच्छा लगे ,… करे।
मैं कौन होती हूँ बोलने वाली , उसे रोंकने टोकने वाली।
और शह मिलने पर जैसे बच्चे शैतान हो जाते हैं वैसे ही उसके होंठ और हाथ ,
उसके होंठ जो हरकत मेरे होंठों और गालों के साथ कर रह रहे थे ,वही हरकत अजय के हाथ मेंरे मस्त उभरते १६ साल के कड़े कड़े टेनिस बाल साइज के जोबन के साथ कर रहे थे।
आज तक मेरे जोबन ,चाहे शहर के हो या या गांव के लड़के ,उन्हें तंग करते ,ललचाते ,उनके पैंट में तम्बू बनाते फिरते थे ,
आज उन्हें कोई मिला था , टक्कर देने वाला।
और वो सूद ब्याज के साथ ,उनकी रगड़ाई कर रहा था ,
पर मेरे जोबन चाहते भी तो यही थे।
कोई उन्हें कस के मसले ,कुचले ,रगड़े ,मीजे दबाये,
और फिर जोबन का तो गुण यही है , बगावत की तरह उन्हें जितना दबाओ उतना बढ़ते हैं ,और सिर्फ मेरे जुबना को मैं क्यों दोष दूँ ,
सभी तो यही चाहते थे न की मैं खुल के मिजवाऊं ,दबवाऊं ,मसलवाऊं।
चंपा भाभी ,मेरी भाभी ,
यहाँ तक की भाभी की माँ भी
और फिर जब दबाने मसलने वाला मेरा अपना हो ,
अजय
तो मेरी हिम्मत की मैं उसे मना करूँ।
और क्या कस कस के ,रगड़ रगड़ के मसल रहा था वो।
आज वो अमराई वाला अजय नहीं था ,जिसने मेरी नथ तो उतारी , मेरी झिल्ली भी फाड़ी थी अमराई में ,लेकिन हर बार वो सम्हल सम्हल कर ,झिझक झिझक कर मुझे छू रहा था ,पकड़ रहा था ,दबा रहा था.
आज आ गया था ,मेरे जोबन का असली मालिक ,मेरे जुबना का राजा ,
आज आ गया था मेरे जोबन को लूटने वाला ,जिसके लिए १६ साल तक बचा के रखा था मैंने इन्हे ,
मेरी पूरी देह गनगना रही थी ,मेरी सहेली गीली हो रही थी ,
बाहर चल रहे तूफान से ज्यादा तेज तूफान मेरे मन को मथ रहा था.
और मेरे उरोजों की मुसीबत, हाथ जैसे अकेले काफी नहीं थे , उनका साथ देने के लिए अजय के दुष्ट पापी होंठ भी आ गए।
दोनों ने मिल के अपना माल बाँट लिया ,एक होंठों के हिस्से एक हाथ के हवाले।
गाल और होंठों का रस लूट चुके ,अजय के होंठ अब बहुत गुस्ताख़ हो चुके थे , सीधे उन्होंने मेरे खड़े निपल पर निशाना लगाया और साथ में अजय की एक्सपर्ट जीभ भी ,
उसकी जीभ ने मेरे कड़े खड़े , कंचे की तरह कड़े निपल को पहले तो फ्लिक किया ,देर तक और फिर दोनों होंठों ने एक साथ गपुच लिया और देर तक चुभलाते रहे चूसते रहे , जैसे किसी बच्चे को उसका पसंदीदी चॉकलेट मिल जाए और वो खूब रस ले ले के धीमे धीमे चूसे , बस उसी तरह चूस रहा था वो।
और दूसरा निपल बिचारा कैसे आजाद बचता ,उसे दूसरे हाथ के अंगूठे और तरजनी ने पकड़ रखा था और धीमे धीमे रोल कर रहे थे ,
जब पहली बार शीशे में अपने उभरते उभारों को देख के मैं शरमाई ,
जब गली के लड़कों ने मुझे देख के ,खास तौर से मेरे जोबन देख के पहली बार सीटी मारी ,
जब स्कूल जाते हुए मैंने किताब को अपने सीने के सामने रख के उन्हें छिपाना शुरू किया ,
जब पड़ोस की आंटी ने मुझे ठीक से चुन्नी न रखने के लिए टोका ,
और जब पहली बार मैंने अपनी टीन ब्रा खरीदी ,
तब से मुझे इसी मौके का तो इन्तजार था , कोई आये ,कस कस के इसे पकडे ,रगड़े ,दबाये ,मसले ,
और आज आ गया था , मेरे जुबना का राजा।
मैंने अपने आप को अजय के हवाले कर दिया था ,मैं उसकी ,जो उसकी मर्जी हो करे।
मैं चुप चाप लेटी मजे ले रही थी ,सिसक रही थी और जब उसने जोर से मेरी टेनिस बाल साइज की चूंची पे कस के काटा तो चीख भी रही थी।
पर थोड़ी देर में मेरी हालत और ख़राब हो गयी ,उसका जो हाथ खाली हुआ उससे ,अजय ने मेरी सुरंग में सेंध लगा दी।
मेरी सहेली तो पहले से गीली थी और ऊपर से उसने अपनी शैतान गदोरी से जोर जोर से मसला रगड़ा।
मेरी जांघे अपने आप फैल गयी ,और उसको मौका मिल गया ,खूब जोर से पूरी ताकत लगा के घचाक से एक उंगली दो पोर तक मेरी बुर में पेलने का।
उईई इइइइइइइ ,मैं जोर से चीख उठी.
आज उसे मेरे चीखने की कोई परवाह नहीं थीं ,वो गोल गोल अपनी उंगली मेरी बुर में घुमा रहा था ,
मैं सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी , मैंने लता की तरह अजय को जोर से अपनी बाँहों में ,अपने पैरों के बीच लता की तरह लपेट लिया।
लता कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो ,उसे एक सपोर्ट तो चाहिए न ,ऊपर चढ़ने के लिए।
और आज मुझे वो सहारा मिल गया था ,मेरा अजय।
लेकिन था वो बहुत दुष्ट ,एकदम कमीना।
उसे मालूम था मुझे क्या चाहिए इस समय ,उसका मोटा और सख्त ,… लेकिन मैं जानती थी वो बदमाश मेरे मुंह से सुनना चाहता था।
मैंने बहुत तड़पाया था उसे ,और आज वो तड़पा रहा था।
" हे करो न ,… " आखिर मुझे हलके से बोलना ही पड़ा।
जवाब में मेरे उरोज के ऊपरी हिस्से पे ,( जो मेरी लो कट चोली से बिना झुके भी साफ साफ दिखता ) अजय ने खूब जोर से कचकचा के काटा ,और पूछा ,
"बोल न जानू क्या करूँ ,… "
मैं क्या करती ,आखिर बोली ," प्लीज अजय ,मेरा बहुत मन कर रहा है , अब और न तड़पाओ ,प्लीज करो न "
जोर से मेरे निपल उसने मसल दिए और एक बार अपनी उंगली आलमोस्ट बाहर निकाल कर एकदम जड़ तक मेरी बुर में ठेलते हुए वो शैतान बोला ,
" तुम जानती हो न जो तुम करवाना चाहती हो ,मैं करना चाहता हूँ उसे क्या कहते हैं ,तो साफ साफ बोलो न। "
और मेरे जवाब का इन्तजार किये बिना मेरी चूंची के ऊपरी हिस्से पे, एक बार उसने फिर पहले से भी दूने जोर से काट लिया और मैं समझ गयी की ये निशान तो पूरी दुनिया को दिखेंगे ही और मैं न बोली तो बाकी जगह पर भी ,
फिर उसकी ऊँगली ने मुझे पागल कर दिया था ,
शरम लिहाज छोड़ के उसके कान के पास अपने होंठ ले जाके मैं बहुत हलके से बोली ,
" अजय , मेरे राजा ,चोद न मुझे "