Hindi Sex Kahaniya पहली फुहार - Page 4 - SexBaba
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Hindi Sex Kahaniya पहली फुहार

पिया मिलन को जाना 











मैं जल्दी से अपने कमरे की ओर बढ़ी। 

मेरी निगाह अपनी पतली कलाई में लगी घडी की ओर पड़ी। 

सवा आठ , और साढ़े आठ पे अजय को आना है।
और एक पल में मैं सब कुछ भूल गयी, भाभी की छेड़छाड़ , बसंती और गुलबिया , बस मैं तेजी से चलते हुए आँगन तक पहुंच गयी। 

लेकिन तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी.

टप ,टप ,टप ,टप,… 

और बूंदे बड़ी बड़ी होती जा रही थीं। 

लेकिन इस समय अगर आग की भी बूंदे बरस रही होतीं तो मैं उन्हें पार कर लेती। 
……………..
मुझे उस चोर से मिलना ही था , जिसने मुझसे मुझी को चुरा लिया था। 

जिसने जिंदगी की एक नयी खुशियों का एक नया दरवाजा मेरे लिए खोल दिया था। 

थोड़ा बदमाश था लेकिन सीधा ज्यादा , 

जैसे बैकग्राउंड में गाना बज रहा था , ( जो मैंने कई बार सुबह सुबह भूले बिसरे गीत में सूना था )

तेरे नैनों ने , तेरे नैनों ने चोरी किया ,

मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया 

तेरे नैनों ने चोरी किया ,

जाने कैसा जादू किया तेरी मीठी बात ने ,

तेरा मेरा प्यार हुआ पहली मुलाकात में 

पहली मुलाकात में हाय तेरे नैनों ने चोरी किया ,

मेरा छोटा सा जिया ,परदेशिया ,.... 

हाँ पक्के वाले आँगन से निकलते समय उसके और कच्चे वाले हिस्से के बीच का दरवाजा मैने अच्छी तरह बंद कर दिया। 

वैसे भी दोनों हिस्सों में दूरी इतनी थी की मेरे कमरे में क्या हो रहा था वहां पता नहीं चलने वाला था , और चंपा भाभी ,मेरी भाभी की कब्बड्डी तो वैसे ही सारे रात चलने वाली थी,

फिर भी ,… 

अब मैं कच्चे वाले आँगन में आ गयी ,जहाँ एक बड़ा सा नीम का पेड़ था, और ज्यादातर आँगन कच्चा था.

वहां ताखे में रखी ढिबरी बुझ चुकी थी ,कुछ भी नहीं दिख रहा था। 

बूंदो की आवाज तेज हो चुकी थी ,उस हिस्से में कमरों और बरामदे की छतें खपड़ैल की थीं ,और उन पर गिर रही बूंदो की आवाज , और वहां से ढरक कर आँगन में गिर रही तेज मोटी पानी की धार एक अलग आवाज पैदा कर रही थी। 

बादलों की गरज तेज हो गयी थी ,एक बार फिर तेजी से बिजली चमकी ,

और मैं एक झटके में आँगन पार कर के अपने कमरे में पहुँच गयी। 


पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना
जग की लाज, मन की मौज, दोनों को निभाना
पिया मिलन को जाना, हां पिया मिलन को जाना

काँटे बिखरा के चलूं, पानी ढलका के चलूं - २
सुख के लिये सीख रखूं - २
पहले दुख उठाना, पिया मिलन को जाना ...

(पायल को बांध के - 
पायल को बांध के
धीरे-धीरे दबे-दबे पावों को बढ़ाना
पिया मिलन को जाना ...


बुझे दिये अंधेरी रात, आँखों पर दोनों हाथ - २
कैसे कटे कठिन बाट - २

चल के आज़माना, पिया मिलन को जाना
हां पिया मिलन को जाना, जाना

पिया मिलन को जाना, जाना
पिया मिलन को जाना, हां


पिया मिलन को जाना


....


गनीमत थी वहां ताखे में रखी ढिबरी अभी भी जल रही थी और उस की रोशनी उस कमरे के लिए काफी थी। 

लेकिन उसकी रोशनी में सबसे पहली नजर में जिस चीज पे पड़ी , उसी ताखे में रखी, 

एक बड़ी सी शीशी , जो थोड़ी देर पहले वहां नहीं थी। 

कड़ुआ तेल ( सरसों के तेल ) की ,

मैं मुस्कराये बिना नहीं रह सकी ,चंपा भाभी भी न ,

लेकिन चलिए अजय का काम कुछ आसान होगा ,आखिर हैं तो उन्ही का देवर। 


अब एक बार मैंने फिर अपनी कलाई घड़ी पे निगाह डाली , उफ़ अभी भी ८ मिनट बचे थे। 

थोड़ी देर मैं पलंग पर लेटी रही , करवटें बदलती रही , लेकिन मेरी निगाह बार बार ताखे पर रखी कडुवे तेल की बोतल पर पड़ रही थी। 

अचानक हवा बहुत तेज हो गयी और जोर जोर से मेरे कमरे की छोटी सी खिड़की और पीछे वाले दरवाजे पे जोर जोर धक्के मारने लगी। 

लग रहा था जोर का तूफान आ रहा है। 

ऊपर खपड़ैल की छत पर बूंदे ऐसी पड़ रही थीं जैसे मशीनगन की गोलियां चल रही हों। बादल का एक बार गरजना बंद नहीं होता की दूसरी बार उससे भी तेज कड़कने की आवाज गूँज जाती , कमरा चारो ओर से बंद था लेकिन लग रहा था सीधे कान में बादल गरज रहे हों ,

बस मेरे मन में यही डर डर बार उठता था ,इतनी तूफानी रात में वो बिचारा कैसे आएगा। 
अजय

अजय जित्ता भी सीधा लगे ,उसके हाथ और होंठ दोनों ही जबरदस्त बदमाश थे ,ये मुझे आज ही पता लगा। 

शुरू में तो अच्छे बच्चो की तरह उसने हलके हलके होंठों को ,गालो को चूमा लेकिन अँधेरा देख और अकेली लड़की पा के वो अपने असली रंग में उतर आये। मेरे दोनों रस से भरे गुलाबी होंठों को उसने हलके से अपने होंठों के बीच दबाया ,कुछ देर तक वो बेशरम उन्हें चूसता रहा, चूसता रहा जैसे सारा रस अभी पी लेगा ,और फिर पूरी ताकत से कचकचा के ,इतने जोर से काटा की आँखों में दर्द से आंसू छलक पड़े , फिर होंठों से ही उस जगह दो चार मिनट सहलाया और फिर पहले से भी दुगुने जोर से और खूब देर तक… पक्का दांत के निशान पड़ गए होंगे। 
मेरी सहेलियां , चंदा , पूरबी ,गीता ,कजरी तो चिढ़ाएंगी ही ,चम्पा भाभी और बसंती भी … 

लेकिन मैं न तो मना कर सकती थी न चीख सकती थी ,मेरे दोनों होंठ तो उस दुष्ट के होंठों ने ऐसे दबोच रखे थे जैसे कोई बाज किसी गौरेया को दबोचे।

बड़ी मुश्किल से होंठ छूटे तो गाल , 

और वैसे भी मेरे भरे भरे डिम्पल वाले गालों को वो हरदम ऐसे ललचा ललचा के देखता था जैसे कोई नदीदा बच्चा हवा मिठाई देख रहा हो। 

गाल पर भी उसने पहले तो थोड़ी देर अपने लालची होंठ रगड़े ,और फिर कचकचा के , पहले थोड़ी देर चूस के दो दांत जोर से लगा देता ,मैं छटपटाती ,चीखती अपने चूतड़ पटकती ,फिर वो वहीँ थोड़ी देर तक होंठों से सहलाने के बाद दुगुनी ताकत से , .... दोनों गालों पर।

मुझे मालूम था उसके दाँतो के निशान मेरे गुलाब की पंखुड़ियों से गालों पर अच्छे खासे पड़ जाएंगे ,

पर आज मैंने तय कर लिया था। 



मेरा अजय ,

उसकी जो मर्जी हो ,उसे जो अच्छा लगे ,… करे। 

मैं कौन होती हूँ बोलने वाली , उसे रोंकने टोकने वाली। 


और शह मिलने पर जैसे बच्चे शैतान हो जाते हैं वैसे ही उसके होंठ और हाथ ,

उसके होंठ जो हरकत मेरे होंठों और गालों के साथ कर रह रहे थे ,वही हरकत अजय के हाथ मेंरे मस्त उभरते १६ साल के कड़े कड़े टेनिस बाल साइज के जोबन के साथ कर रहे थे। 


आज तक मेरे जोबन ,चाहे शहर के हो या या गांव के लड़के ,उन्हें तंग करते ,ललचाते ,उनके पैंट में तम्बू बनाते फिरते थे ,

आज उन्हें कोई मिला था , टक्कर देने वाला। 
और वो सूद ब्याज के साथ ,उनकी रगड़ाई कर रहा था ,

पर मेरे जोबन चाहते भी तो यही थे।

कोई उन्हें कस के मसले ,कुचले ,रगड़े ,मीजे दबाये,

और फिर जोबन का तो गुण यही है , बगावत की तरह उन्हें जितना दबाओ उतना बढ़ते हैं ,और सिर्फ मेरे जुबना को मैं क्यों दोष दूँ ,

सभी तो यही चाहते थे न की मैं खुल के मिजवाऊं ,दबवाऊं ,मसलवाऊं। 

चंपा भाभी ,मेरी भाभी ,

यहाँ तक की भाभी की माँ भी 

और फिर जब दबाने मसलने वाला मेरा अपना हो ,

अजय 


तो मेरी हिम्मत की मैं उसे मना करूँ।
और क्या कस कस के ,रगड़ रगड़ के मसल रहा था वो। 

आज वो अमराई वाला अजय नहीं था ,जिसने मेरी नथ तो उतारी , मेरी झिल्ली भी फाड़ी थी अमराई में ,लेकिन हर बार वो सम्हल सम्हल कर ,झिझक झिझक कर मुझे छू रहा था ,पकड़ रहा था ,दबा रहा था.

आज आ गया था ,मेरे जोबन का असली मालिक ,मेरे जुबना का राजा ,

आज आ गया था मेरे जोबन को लूटने वाला ,जिसके लिए १६ साल तक बचा के रखा था मैंने इन्हे ,



मेरी पूरी देह गनगना रही थी ,मेरी सहेली गीली हो रही थी ,

बाहर चल रहे तूफान से ज्यादा तेज तूफान मेरे मन को मथ रहा था.


और मेरे उरोजों की मुसीबत, हाथ जैसे अकेले काफी नहीं थे , उनका साथ देने के लिए अजय के दुष्ट पापी होंठ भी आ गए। 

दोनों ने मिल के अपना माल बाँट लिया ,एक होंठों के हिस्से एक हाथ के हवाले। 

गाल और होंठों का रस लूट चुके ,अजय के होंठ अब बहुत गुस्ताख़ हो चुके थे , सीधे उन्होंने मेरे खड़े निपल पर निशाना लगाया और साथ में अजय की एक्सपर्ट जीभ भी , 

उसकी जीभ ने मेरे कड़े खड़े , कंचे की तरह कड़े निपल को पहले तो फ्लिक किया ,देर तक और फिर दोनों होंठों ने एक साथ गपुच लिया और देर तक चुभलाते रहे चूसते रहे , जैसे किसी बच्चे को उसका पसंदीदी चॉकलेट मिल जाए और वो खूब रस ले ले के धीमे धीमे चूसे , बस उसी तरह चूस रहा था वो। 

और दूसरा निपल बिचारा कैसे आजाद बचता ,उसे दूसरे हाथ के अंगूठे और तरजनी ने पकड़ रखा था और धीमे धीमे रोल कर रहे थे ,




जब पहली बार शीशे में अपने उभरते उभारों को देख के मैं शरमाई ,

जब गली के लड़कों ने मुझे देख के ,खास तौर से मेरे जोबन देख के पहली बार सीटी मारी ,

जब स्कूल जाते हुए मैंने किताब को अपने सीने के सामने रख के उन्हें छिपाना शुरू किया ,
जब पड़ोस की आंटी ने मुझे ठीक से चुन्नी न रखने के लिए टोका ,

और जब पहली बार मैंने अपनी टीन ब्रा खरीदी ,




तब से मुझे इसी मौके का तो इन्तजार था , कोई आये ,कस कस के इसे पकडे ,रगड़े ,दबाये ,मसले ,

और आज आ गया था , मेरे जुबना का राजा। 

मैंने अपने आप को अजय के हवाले कर दिया था ,मैं उसकी ,जो उसकी मर्जी हो करे। 

मैं चुप चाप लेटी मजे ले रही थी ,सिसक रही थी और जब उसने जोर से मेरी टेनिस बाल साइज की चूंची पे कस के काटा तो चीख भी रही थी। 


पर थोड़ी देर में मेरी हालत और ख़राब हो गयी ,उसका जो हाथ खाली हुआ उससे ,अजय ने मेरी सुरंग में सेंध लगा दी। 

मेरी सहेली तो पहले से गीली थी और ऊपर से उसने अपनी शैतान गदोरी से जोर जोर से मसला रगड़ा। 
मेरी जांघे अपने आप फैल गयी ,और उसको मौका मिल गया ,खूब जोर से पूरी ताकत लगा के घचाक से एक उंगली दो पोर तक मेरी बुर में पेलने का। 

उईई इइइइइइइ ,मैं जोर से चीख उठी.

आज उसे मेरे चीखने की कोई परवाह नहीं थीं ,वो गोल गोल अपनी उंगली मेरी बुर में घुमा रहा था ,

मैं सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी , मैंने लता की तरह अजय को जोर से अपनी बाँहों में ,अपने पैरों के बीच लता की तरह लपेट लिया। 

लता कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो ,उसे एक सपोर्ट तो चाहिए न ,ऊपर चढ़ने के लिए। 

और आज मुझे वो सहारा मिल गया था ,मेरा अजय। 

लेकिन था वो बहुत दुष्ट ,एकदम कमीना। 


उसे मालूम था मुझे क्या चाहिए इस समय ,उसका मोटा और सख्त ,… लेकिन मैं जानती थी वो बदमाश मेरे मुंह से सुनना चाहता था। 

मैंने बहुत तड़पाया था उसे ,और आज वो तड़पा रहा था। 

" हे करो न ,… " आखिर मुझे हलके से बोलना ही पड़ा। 

जवाब में मेरे उरोज के ऊपरी हिस्से पे ,( जो मेरी लो कट चोली से बिना झुके भी साफ साफ दिखता ) अजय ने खूब जोर से कचकचा के काटा ,और पूछा ,

"बोल न जानू क्या करूँ ,… "

मैं क्या करती ,आखिर बोली ," प्लीज अजय ,मेरा बहुत मन कर रहा है , अब और न तड़पाओ ,प्लीज करो न " 

जोर से मेरे निपल उसने मसल दिए और एक बार अपनी उंगली आलमोस्ट बाहर निकाल कर एकदम जड़ तक मेरी बुर में ठेलते हुए वो शैतान बोला ,

" तुम जानती हो न जो तुम करवाना चाहती हो ,मैं करना चाहता हूँ उसे क्या कहते हैं ,तो साफ साफ बोलो न। "

और मेरे जवाब का इन्तजार किये बिना मेरी चूंची के ऊपरी हिस्से पे, एक बार उसने फिर पहले से भी दूने जोर से काट लिया और मैं समझ गयी की ये निशान तो पूरी दुनिया को दिखेंगे ही और मैं न बोली तो बाकी जगह पर भी ,


फिर उसकी ऊँगली ने मुझे पागल कर दिया था ,

शरम लिहाज छोड़ के उसके कान के पास अपने होंठ ले जाके मैं बहुत हलके से बोली ,

" अजय , मेरे राजा ,चोद न मुझे " 
 
अजय , 






शरम लिहाज छोड़ के उसके कान के पास अपने होंठ ले जाके मैं बहुत हलके से बोली ,

" अजय , मेरे राजा ,चोद न मुझे "

और अबकी एक बार फिर उसने दूसरे उभार पे अपने दांत कचकचा के लगाये और बोला ," गुड्डी ,जोर से बोलो , मुझे सुनाई नहीं दे रहा है। "

" अजय ,चोदो ,प्लीज आज चोद दो मुझको , बहुत मन कर रहा है मेरा। " अबकी मैंने जोर से बोला। 

बस ,इसी का तो इन्तजार कर रहा था वो दुष्ट ,

मेरी दोनों लम्बी टाँगे उसके कंधे पे थीं ,उसने मुझे दुहरा कर दिया और उसका सुपाड़ा सीधे मेरी बुर के मुहाने पे। 

दोनों हाथ से उसने जोर से मेरी कलाई पकड़ी ,और एक करारा धक्का ,

दूसरे तूफानी धक्के के साथ ही ,अजय का मोटा सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से सीधे टकराया ,

और मैं जोर से चिल्लाई ," उईइइइइइइइइइ माँ , प्लीज लगता है ,माँ ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई अजय बहोत दर्द उईईईईईई माँ। " 

" अपनी माँ को क्यों याद कर रही हो ,उनको भी चुदवाना है क्या ,चल यार चोद देंगे उनको भी , वो भी याद करेंगी की ,...."

दोनों हाथों से हलके हलके मेरी दोनों गदराई चूंची दबाते , और अपने पूरा घुसे लंड के बेस से जोर जोर से मेरे क्लिट को रगड़ते अजय ने चिढ़ाया।

लेकिन मैं क्यों छोड़ती उसे ,जब भी वो हमारे यहाँ आता मैं उसे साल्ले ,साल्ले कह के छेड़ती , आखिर मेरे भइया का साला तो था ही। मैंने भी जवाब जोरदार दिया। 
" अरे साल्ले भूल गए ,अभी साल दो साल भी नहीं हुआ , जब मैं इसी गाँव से तोहार बहिन को सबके सामने ले गयी थी , अपने घर ,अपने भइया से चुदवाने। और तब से कोई दिन नागा नहीं गया है जब तोहार बहिन बिना चुदवाये रही हों। ओहि चुदाई का नतीजा ई मुन्ना है , और आप मुन्ना के मामा बने हो। "


मिर्ची उसे जोर की लगी। 

बस उसने उसी तरह जवाब दिया ,जिस तरह से वो दे सकता था ,पूरा लंड सुपाड़े तक बाहर निकाल कर ,एक धक्के में हचक के उसने पेल दिया पूरी ताकत अबकी पहली बार से भी जोरदार धक्का उसके मोटे सुपाड़े का मेरी बच्चेदानी पे लगा। 

दर्द और मजे से गिनगीना गयी मैं। 

और साथ ही कचकचा के मेरी चूची काटते , अजय ने अपना इरादा जाहिर किया ,

" जितना तेरी भाभी ने साल भर में , उससे ज्यादा तुम्हे दस दिन में चोद देंगे हम, समझती क्या हो।
मुझे मालूम है हमार दी की ननद कितनी चुदवासी हैं ,सारी चूत की खुजली मिटा के भेजेंगे यहाँ से तुम खुदे आपन बुरिया नही पहचान पाओगी। "

जवाब में जोर से अजय को अपनी बाहों में बाँध के अपने नए आये उभार ,अजय की चौड़ी छाती से रगड़ते हुए , उसे प्यार से चूम के मैंने बोला ,

" तुम्हारे मुंह में घी शक्कर , आखिर यार तेरा माल हूँ और अपनी भाभी की ननद हूँ ,कोई मजाक नहीं। देखती हूँ कितनी ताकत है हमारी भाभी के भैय्या में , चुदवाने में न मैं पीछे हटूंगी ,न घबड़ाउंगी। आखिर तुम्हारी दी भी तो पीछे नहीं हटती चुदवाने में , मेरे शहर में। साल्ले बहनचोद , अरे यार बुरा मत मानना , आखिर मेरे भैय्या के साले हो न और तोहार बहिन को तो हम खुदै ले गयी थीं ,चुदवाने तो बहिनचोद , … "

मेरी बात बीच में ही रुक गयी , इतनी जोर से अजय ने मुझे दुहरा कर के मेरे दोनों मोटे मोटे चूतड़ हाथ से पकड़े और एक ऐसा जोरदार धक्का मारा की मेरी जैसे साँस रुक गयी ,और फिर तो एक के बाद एक ,क्या ताकत थी अजय में ,मैंने अच्छे घर दावत दे दी थी। 

मैं जान बूझ के उसे उकसा रही थी। वो बहुत सीधा था और थोड़ा शर्मीला भी ,लेकिन इस समय जिस जोश में वो था ,यही तो मैं चाहती टी। 

जोर जोर से मैं भी अब उसका साथ देने की कोशिश कर रही थी। दर्द के मारे मेरी फटी जा रही थी लेकिन फिर भी हर धक्के के जवाब में चूतड़ उचका रही थी , जोर जोर से मेरे नाखून अजय के कंधे में धंस रहे थे ,मेरी चूंचियां उसकी उसके सीने में रगड़ रही थीं। 

दरेरता, रगड़ता , घिसटता उसका मोटा लंड जब अजय का ,मेरी चूत में घुसता तो जान निकल जाती लेकिन मजा भी उतना ही आ रहा था। 

कचकचा के गाल काटते ,अजय ने छेड़ा मुझे ,

" जब तुम लौट के जाओगी न तो तोहार भैया सिर्फ हमार बल्कि पूरे गाँव के साले बन जाएंगे , कौनो लड़का बचेगा नहीं ई समझ लो। "

और उस के बाद तो जैसे कोई धुनिया रुई धुनें ,

सिर्फ जब मैं झड़ने लगी तो अजय ने थोड़ी रफ्तार कम की। 

मैंने दोनों हाथ से चारपाई पकड़ ली ,पूरी देह काँप रही थी. बाहर तूफान में पीपल के पेड़ के पत्ते काँप रहे थे ,उससे भी ज्यादा तेजी से। 

जैसे बाहर पागलों की तरह बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे थे, मैं अपनी देह अजय की देह में रगड़ रही थी। 

अजय मेरे अंदर धंसा था लेकिन मेरा मन कर रहा था बस मैं अजय के अंदर खो जाऊं , उसके बांस की बांसुरी की हवा बन के उसके साथ रहूँ। 

मुझे अपने ही रंग में रंग ले , मुझे अपने ही रंग में रंग ले ,

जो तू मांगे रंग की रंग रंगाई , जो तू मांगे रंग की रंगाई ,

मोरा जोबन गिरवी रख ले , अरे मोरा जोबन गिरवी रख ले ,


मेरा तन ,मेरा मन दोनों उस के कब्जे में थे। 


दो बार तक वह मुझे सातवें आसमान तक ले गया ,और जब तीसरी बार झड़ी मैं तो वो मेरे साथ ,मेरे अंदर , … खूब देर तक गिरता रहा ,झड़ता रहा। 

बाहर धरती सावन की हर बूँद सोख रही थी और अंदर मैं उसी प्यास से ,एक एक बूँद रोप रही थी। 

देर तक हम दोनों एक दूसरे में गूथे लिपटे रहे। 

वह बूँद बूँद रिसता रहा। 
अलसाया ,

रात भर 












वह बूँद बूँद रिसता रहा। 
अलसाया , 


बाहर भी तूफान हल्का हो गया था। 

बारिश की बूंदो की आवाज , पेड़ों से , घर की खपड़ैल से पानी के टपकने की आवाज एक अजब संगीत पैदा कर रहा था। 

उसके आने के बाद हम दोनों को पहली बार , बाहर का अहसास हुआ। 


अजय ने हलके से मुझे चूमा और पलंग से उठ के अँधेरे में सीधे ताखे के पास , और बुझी हुयी ढिबरी जला दी.

और उस हलकी मखमली रोशनी में मैंने पहली बार खुद को देखा और शरमा गयी। 

मेरे जवानी के फूलों पे नाखूनों की गहरी खरोंचे , दांत के निशान ,टूटी हुयी चूड़ियाँ , और थकी फैली जाँघों के बीच धीमे धीमे फैल कर बिखरता , अजय का , सफेद गाढ़ा ,… 

क्या क्या छिपाती , क्या ढकती। 

मैंने अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे ही मूँद ली। और चादर ओढ़ ली 

लेकिन तबतक अजय एक बार फिर मेरे पास , चारपाई पर ,

और जिसने मुझे मुझसे ही चुरा लिया था वो कबतक मेरी शरम की चादर मुझे ओढ़े रहने देता। 

और उस जालिम के तरकश में सिर्फ एक दो तीर थोड़े ही थे , पहले तो वो मेरी चादर में घुस गया , फिर कभी गुदगुदी लगा के ( ये बात जरूर उसे भाभी ने बतायी होगी की गुदगुदी से झट हार जाती हूँ ,आखिर हर बार होली में वो इसी का तो सहारा लेती थीं। ) तो कभी हलकी हलकी चिकोटी काट के तो कभी मीठे मीठे झूठे बहाने बना के और जब कुछ न चला तो अपनी कसम धरा के , 

और उसकी कसम के आगे मेरी क्या चलती। 

पल भर के लिए मैने आँखे खोली, तो फिर उसकी अगली शर्त , बस जरा सा चद्दर खोल दूँ , वो एक बार जरा बस ,एक मिनट के लिए उन उभारों को देख ले जिन्होंने सारे गाँव में आग लगा रखी है , बहाना बनाना और झूठी तारीफें करना तो कोई अजय से सीखे। 
 
उस दिन अमराई में भी अँधेरा था और आज तो एकदम घुप्प अँधेरा , बस थोड़ी देर , बस चादर हटाउ और झट से फिर बंद कर लूँ ,

मैं भी बेवकूफ , उसकी बातों में आ गयी। 

हलकी सी चादर खोलते ही उसने कांख में वो गुदगुदी लगाई की मैं खिलखिला पड़ी , और फिर तो 

" देखूं कहाँ कहाँ दाँतो के निशान है , अरे ये तो बहुत गहरा है ,उफ़ नाख़ून की भी खरोंच , अरे ये निपल तेरे एकदम खड़े , " 

मुझे पता भी न चला की कब पल भर पांच मिनट में बदल गए और कब खरोंच देखते देखते वो एक बार फिर हलके से उरोज मेरे सहलाने लगा। 

चादर हम दोनों की कमर तक था , और नया बहाना ये था की हे तू बोलेगी की मैंने तुम्हे अपना दिखा दिया , तू भी तो अपना दिखाओ। 

और मैंने झटके से बुद्धू की तरह हाँ बोल दिया , और चादर जब नीचे सरक गयी तो मुझे समझ में आया , की जनाब अपना दिखाने से ज्यादा चक्कर में थे देख लें ,

और चादर सिर्फ नीचे ही नहीं उतरी , पलंग से सरक कर नीचे भी चली गयी.

और अपना हाथ डाल कर , कुछ गुदगुदी कुछ चिकोटियां , मेरी जांघे उस बदमाश ने पूरी खोल के ही दम लिया और ऊपर से उसकी कसम , मैं अपनी आँखे भी नहीं बंद कर सकती थी। 


मैंने वही किया जो कर सकती थी , बदला। 

और एक बेशर्म इंसान को दिल देने का नतीजा यही होना था ,मैं भी उसके रंग में रंग गयी। 

मैंने वही किया जो अजय कर रहा था। 

सावन से भादों दुबर,

अजय ने गुदगुदी लगा के मुझे जांघे फैलाने पे मजबूर कर दिया और जब तक मैं सम्हलती,सम्हलती उसकी हथेली सीधे मेरी बुलबुल पे। 

चारा खाने के बाद बुलबुल का मुंह थोड़ा खुला था इसलिए मौके का फायदा उठाने में एक्सपर्ट अजय ने गचाक से ,

एक झटके में दो पोर तक उसकी तर्जनी अंदर थी और हाथ की गदोरी से भी वो रगड़ मसल रहा था। 

मैं गनगना रही थी लेकिन फिर मैंने भी काउंटर अटैक किया। 

मेरे मेहंदी लगे हाथ उसके जाँघों के बीच ,

और उसका थोड़ा सोया ,ज्यादा जागा खूंटा मेरी कोमल कोमल मुट्ठी में।

" अब बताती हूँ तुझे बहुत तंग किया था न मुझे " बुदबुदा के बोली मैं। 

क्या हुआ जो इस खेल में मैं नौसिखिया थी , लेकिन थी तो अपनी भाभी की पक्की ननद और यहाँ आके तो और ,
चंपा भाभी और बसंती की पटु शिष्या,

मैंने हलके हलके मुठियाना शुरू किया। 

लेकिन थोड़ी ही देर में शेर ने अंगड़ाई ली , गुर्राना शुरू किया और मेरे मेहंदी लगे हाथों छुअन ,

कहाँ से मिलता ऐसे कोमल कोमल हाथों का सपर्श ,

फूल के 'वो ' कुप्पा हो गया , 


कम से कम दो ढाई इंच तो मोटा रहा ही होगा , और मेरी मुट्ठी की पकड़ से बाहर होने की कोशिश करने लगा। 

माना मेरे छोटे छोटे हाथों की मुट्ठी की कैद में उसे दबोचना मुश्किल था , लेकिन मेरे पास तरीकों की कमी नहीं थी। 

अंगूठे और तरजनी से पकड़ के ,उसके बेस को मैंने जोर से दबाया ,भींचा और फिर ऊपर नीचे ,ऊपर नीचे और 

एक झटके में जो उसका चमड़ा खींचा तो जैसे दुल्हन का घूंघट हटे, 

खूब मोटा ,गुस्सैल ,भूखा बड़ा सा धूसर सुपाड़ा बाहर आ गया। 

ढिबरी की रौशनी में वो और भयानक,भीषण लग रहा था। 

और ढिबरी की बगल में कडुवे ( सरसों के ) तेल की बोतल चंपा भाभी रख गयीं थीं , वो भी दिख गयी। 

चंपा भाभी और भाभी की माँ की बातें मेरे मन में कौंध गयी और शरारत , ( आखिर शरारतों पे सिर्फ अजय का हक़ थोड़े ही था ) भी 

मुठियाने का मजा अजय चुपचाप लेट के ले रहा था। 


अब बात मानने की बारी उसकी थी और टू बी आन सेफ साइड ,मैंने कसम धरा दी उसे ,

झुक के उसके दोनों हाथ पकड़ के उसके सर के नीचे दबा दिया और उसके कान में बोला ,

" हे अब अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप लेटे रहना , जो करुँगी मैं करुँगी। " 
मेरी बारी 










झुक के उसके दोनों हाथ पकड़ के उसके सर के नीचे दबा दिया और उसके कान में बोला ,

" हे अब अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप लेटे रहना , जो करुँगी मैं करुँगी। "


उसने एकदम अच्छे बच्चे की तरह बाएं से दायें सर हिलाया और मैं बिस्तर से उठ के सीधे ताखे के पास ,कड़वे तेल की बोतल से १०-१२ बूँद अपनी दोनों हथेली में रख के मला और क्या पता और जरूरत पड़े , तो कडुवा तेल की बोतल के साथ बिस्तर पे ,

तेल की शीशी वहीँ पास रखे स्टूल के पास छोड़ के सीधे अजय की दोनों टांगों के बीच ,

बांस एकदम कड़ा ,तना और खड़ा.
कम से कम मेरी कलाई इतना मोटा रहा होगा ,

लेकिन अब उसका मोटा होना ,डराता नहीं था बल्कि प्यार आता था और एक फख्र भी होता था की ,मेरा वाला इतना जबरदस्त… 

दोनों हथेलियों में मैंने अच्छी तरह से कडुवा तेल मल लिया था , और फिर जैसे कोई नयी नवेली ग्वालन , मथानी पकड़े , मैंने दोनों तेल लगे हथेलियों के बीच उस मुस्टंडे को पकड़ लिया और जोर जोर से , दोनों हथेलियाँ,

कुछ ही मिनट में वो सिसक रहा था , चूतड़ पटक रहा था। 

मेरी निगाह उसके भूखे प्यासे सुपाड़े ( भूखा जरूर ,अभी तो जम के मेरी सहेली को छका था उसने ,लेकिन उस भुख्खड़ को मुझे देख के हरदम भूख लग जाती थी। )

और उस मोटे सुपाड़े के बीच उसकी एकलौती आँख ( पी होल ,पेशाब का छेद ) पे मेरी आँख पद गयी और मैं मुस्करा पड़ी। 
अब बताती हूँ तुझे , मैंने बुदबुदाया और अंगूठे और तरजनी से जोर से अजय सुपाड़े को दबा दिया। 

जैसे कोई गौरेया चोंच खोले , उस बिचारे ने मुंह चियार दिया। 

मेरी रसीली मखमली जीभ की नुकीली नोक ,सीधे ,सुपाड़े के छेद ,अजय के पी होल ( पेशाब के छेद में) और जोर जोर से सुरसुरी करने लगी। 

मैं कुछ सोच के मुस्करा उठी ( चंदा की बात , चंदा ने बताया था न की वो एक दिन 'कर' के उठी थी तो रवि ने उसके लाख मना करने पर भी उसे चाटना चूसना शुरू कर दिया। जब बाद में चंदा ने पूछा की कैसा लगा तो मुस्करा के बोला , बहुत अच्छा ,एक नया स्वाद, थोड़ा खारा खारा। मुझे भी अब 'नए स्वाद' से डर नहीं लग रहा था.)

अजय की हालत ख़राब हो रही थी , बिचारा सिसक रहा था , लेकिन हालत ख़राब पे करने कोई लड़कों की मोनोपोली थोड़े ही है। 

मेरे कडुवा तेल लगे दोनों हाथों ने अजय की मोटी मथानी को मथने की रफ़्तार तेज कर दी। साथ में जो चूड़ियाँ अजय की हरकतों से अभी तक बची थीं ,वो भी खनखना रही थीं, चुरुर मुरुर कर रही थीं। 

मुझे बसंती की सिखाई एक बात याद आ गयी , आखिर मेरे जोबन पे वो इतना आशिक था तो कुछ उसका भी मजा तो दे दूँ बिचारे को। 


और अब मेरे हाथ की जगह मेरी गदराई कड़ी कड़ी उभरती हुयी चूंचियां , और उनके बीच अजय का लंड। 

दोनों हाथो से चूंचियों को पकड़ के मेरे हाथ उनसे ,अजय के लंड को रगड़ मसल रहे थे। 

जीभ भी अब पेशाब के छेद से बाहर निकल के पूरे सुपाड़े पे , जैसे गाँव में शादी ब्याह के समय पहले पतुरिया नाचती थी , उसी तरह नाच रही थी। 

लपड़ सपड ,लपड़ सपड़ जोर जोर से मैं सुपाड़ा चाट रही थी , और साथ में मेरी दोनों टेनिस बाल साइज की चूंचियां ,अजय के लंड पे ऊपर नीचे, ऊपर नीचे,

तब तक मेरी कजरारी आँखों ने अजय की चोरी पकड़ ली , उसने आँखे खोल दी थीं और टुकुर टुकुर देख रहा था ,

मेरी आँखों ने जोर से उसे डपटा , और बिचारे ने आँख बंद कर ली। 


मस्ती से अजय की हालत ख़राब थी , लेकिन उससे ज्यादा हालत उसके लंड की खराब थी , मारे जोश के पगलाया हुआ था। 

उस बिचारे को क्या मालूम अभी तो उसे और कड़ी सजा मिलनी है। 


मेरे कोमल कोमल हाथों , गदराये उरोजों ने उसे आजाद कर दिया , लेकिन अब मैं अजय के ऊपर थी और मेरी गीली गुलाबी सहेली सीधे उसके सुपाड़े के ऊपर ,पहले हलके से छुआया फिर बहुत धीमे धीमे रगड़ना शुरू कर दिया।

अजय की हालत खराब थी लेकिन उससे ज्यादा हालत मेरी खराब थी ,
मन तो कर रहा था की झट से घोंट लूँ , लेकिन , … 

सुन तो बहुत चुकी थी , पूरबी ने पूरा हाल खुलासा बताया था , की रोज ,दूसरा राउंड तो वही उपर चढ़ती है ,पहले राउंड की हचक के चुदाई के बाद जब मर्द थोड़ा थका अलसाया हो , तो , … और फिर उसके मर्द को मजा भी आता है. बसंती ने भी बोला था , असली चुदक्कड़ वही लौंडिया है जो खुद ऊपर चढ़ के मर्द को चोद दे , कोई जरुरी है हर बार मरद ही चोदे , … आखिर चुदवाने का मजा दोनों को बराबर आता है। 

और देखा भी था , चंदा को सुनील के ऊपर चढ़े हुए , जैसे कोई नटिनी की बेटी बांस पे चढ जाए बस उसी तरह, सुनील का कौन सा कम है लेकिन ४-५ मिनट के अंदर मेरी सहेली पूरा घोंट गयी.

दोनों पैर मैंने अजय के दोनों ओर रखे थे,घुटने मुड़े , लेकिन अजय का सुपाड़ा इतना मोटा था और मेरी सहेली का मुंह इतना छोटा ,

झुक के दोनों हाथों से मैंने अपनी गुलाबी मखमली पुत्तियों को फैलाया , और अब जो थोड़ा सा छेद खुला उस पे सटा के , दोनों हाथ से अजय की कमर पकड़ के ,… पूरी ताकत से मैंने अपने की नीचे की ओर दबाया। जब रगड़ते हुए अंदर घुसा तो दर्द के मारे जान निकल गयी लेकिन सब कुछ भूल के पूरी ताकत से मैं अपने को नीचे की ओर प्रेस किया , आँखे मैंने मूँद रखी थी.
सिर्फ अंदर घुसते , फैलाते फाड़ते ,उस मोटे सुपाड़े का अहसास था। 

लेकिन आधा सुपाड़ा अंदर जाके अटक गया और मैं अब लाख कोशिश करूँ कितना भी जोर लगाउ वो एक सूत सरक नहीं रहा था। 



मेरी मुसीबत में और कौन मेरा साथ देता। 

मैं पसीने पसीने हो रही थी , अजय ने अपने दोनों ताकतवर हाथों से मेरी पतली कमर कस के पकड़ ली और पूरी ताकत से अपनी ओर खींचा ,साथ में अपने नितम्बो को उचका के पूरे जोर से अपना , मेरे अंदर ठेला। 

मैंने भी सांस रोक के ,अपनी पूरी ताकत लगा के , एक हाथ से अजय के कंधे को दूसरे से उसकी कमर को पकड़ के , अपने को खूब जोर से पुश किया। 

मिनट दो मिनट के लिए मेरी जान निकल गयी , लेकिन जब सटाक से सुपाड़ा अंदर घुस गया तो जो मजा आया मैं बता नहीं सकती।
फिर मैंने वो किया जो न मैंने पूरबी से सुना था न चंदा को करते देखा था , ओरिजिनल , गुड्डी स्पेशल। 

अपनी कसी चूत में मैंने धंसे ,घुसे ,फंसे अजय के मोटे सुपाड़े हलके से भींच दिया। 

और जैसे ही मेरी चूत सिकुड़ कर उसे दबाया , मेरी निगाहें अजय के चेहरे चिपकी थीं , जिस तरह से उसने सिसकी भरी ,उसके चेहरे पे ख़ुशी छायी,बस फिर क्या था , मेरी चूत बार बार सिकुड़ रही थी , उसे भींच रही थी ,

और जैसे ही मेरे बालम ने थोड़ी देर पहलेतिहरा हमला किया था वही मैंने भी किया , मेरे हाथ और होंठ एक साथ ,

एक हाथ से मैं कभी उसके निप्स फ्लिक करती तो कभी गाढ़े लाल रंग के नेलपालिश लगे नाखूनों से अजय के निप्स स्क्रैच करती।

और मेरी जीभ भी कभी हलके से लिक कर लेती तो कभी दांत से हलके से बाइट ,

ये गुर मुझे बसंती ने सिखाया था की लड़कों के निपल भी उतने ही सेंसिटिव होते हैं जितने लड़कियों के। 

और साथ में अपनी नयी आई चूंचियां मैं कभी हलके से तो कभी जोर से अजय के सीने पे रगड़ देती।


नतीजा वही हुआ जो , होना था। 
 
मेरी पतली कमर अभी भी अजय के हाथों में थी ,उसने पूरी ताकत से उसने मुझे अपने लंड पर खींचा और नीचे से साथ साथ पूरी ताकत से उचका के धक्का मारा। 

और अब मैंने भी साथ साथ नीचे की ओर पुश करना जारी करना रखा ,बस थोड़े ही देर में करीब करीब तीन चौथाई, छ इंच खूंटा अंदर था। 
और अब अजय ने मेरी कमर को पकड़ के ऊपर की ओर ,


बस थोड़ी ही देर में हम दोनों , 

मैं कभी ऊपर की ओर खींच लेती तो कभी धक्का देके अंदर तक , मुझसे ज्यादा मेरी ही धुन ताल पे अजय भी कभी मुझे ऊपर की ओर ठेलता तो कभी नीचे की ओर ,

सटासट गपागप , सटासट गपागप , 

अजय को मोटा सख्त लंड मेरी कच्ची चूत को फाड़ता दरेरता ,

लेकिन असली करामात थी , कडुवा तेल की जो कम से कम दो अंजुरी मैंने लंड पे चुपड़ा लगाया था , और इसी लिए सटाक सटाक अंदर बाहर हो रहा था,

दस बारह मिनट तक इसी तरह 

मैं आज चोद रही थी मेरा साजन चुद रहा था 

मैंने अपनी लम्बी लम्बी टाँगे फैला के कस कस के अजय की कमर के दोनों ओर बाँध ली और मेरे हाथ भी जोर से उसके पीठ को दबोचे हुए थे। 

मेरे कड़े कड़े उभार जिसके पीछे सारे गाँव के लोग लट्टू थे , अजय के चौड़े सीने में दबे हुए थे। 

ये कहने की बात नहीं की मेरे साजन का ८ इंच का मोटा खूंटा जड़ तक मेरी सहेली में धंसा था ,

अब न मुझमे शरम बची थी और न अजय में कोई झिझक और हिचक। 

मुझे मालूम था की मेरे साजन को क्या अच्छा लगता है और उसे भी मेरी देह के एक एक अंग का रहस्य , पता चल गया था। 

जैसे बाहर बारिश की रफ्तार हलकी पड़ गयी थी , उसी तरह उस के धक्के की रफ्तार और तेजी भी , द्रुत से वह विलम्बित में आ गया था। 

हम दोनों अब एक दूसरे की गति ,ताल, लय से परिचित हो गए थे ,और उसके धक्के की गति से मेरी कमर भी बराबर का जवाब दे रही थी। 

पायल की रुनझुन ,चूड़ी की चुरमुर की ताल पर जिस तरह से वो हचक हचक कर ,

और साथ में अजय की बदमाशियां , कभी मेरे निपल को कचाक से काट लेता तो कभी अपने अंगूठे से मेरा क्लिट रगड़ देता ,

एकबार मैं फिर झड़ने के कगार पे आ गयी और मुझसे पहले मेरे उसे ये मालूम हो गया ,

अगले ही पल उसने मुझे फिर दुहरा कर दिया था ,

उसके हर धक्के की थाप , सीधे मेरी बच्चेदानी पे पड़ती थी और लंड का बेस मेरे क्लिट को जोर से रगड़ देता। 

मैंने लाख कोशिश की लेकिन , मैं थोड़ी देर में ,

उसने अपनी स्पीड वही रखी , 


दो बार , दूसरी बार वो मेरे साथ ,

लग रहा था था कोई बाँध टूट गया ,

कोई ज्वाला मुखी फूट गया , 

न जाने कितने दोनों का संचित पानी , लावा 

और जब हम दोनों की देह थिर हुयी , एक साथ सम पर पहुंची ,हम दोनों थक कर चूर हो गए थे। 

बहुत देर तक जैसे बारिश के बाद , ओरी से ,पेड़ों की पत्तियों से बारिश की बूँद टप टप गिरती रहती है ,वो मेरे अंदर रिसता रहा , चूता रहा। 

और मैं रोपती रही ,भीगती रही ,सोखती रही उसकी बूँद बूँद। 


पता नहीं हम कितनी देर
लेकिन अजय ने नीचे से मुझे उठा लिया और थोड़ी देर में मैं उसके गोद में मैंने अपनी लम्बी लम्बी टाँगे फैला के कस कस के अजय की कमर के दोनों ओर बाँध ली और मेरे हाथ भी जोर से उसके पीठ को दबोचे हुए थे। 

मेरे कड़े कड़े उभार जिसके पीछे सारे गाँव के लोग लट्टू थे , अजय के चौड़े सीने में दबे हुए थे। 

ये कहने की बात नहीं की मेरे साजन का ८ इंच का मोटा खूंटा जड़ तक मेरी सहेली में धंसा था ,

अब न मुझमे शरम बची थी और न अजय में कोई झिझक और हिचक। 

मुझे मालूम था की मेरे साजन को क्या अच्छा लगता है और उसे भी मेरी देह के एक एक अंग का रहस्य , पता चल गया था। 

जैसे बाहर बारिश की रफ्तार हलकी पड़ गयी थी , उसी तरह उस के धक्के की रफ्तार और तेजी भी , द्रुत से वह विलम्बित में आ गया था। 

हम दोनों अब एक दूसरे की गति ,ताल, लय से परिचित हो गए थे ,और उसके धक्के की गति से मेरी कमर भी बराबर का जवाब दे रही थी। 

पायल की रुनझुन ,चूड़ी की चुरमुर की ताल पर जिस तरह से वो हचक हचक कर ,

और साथ में अजय की बदमाशियां , कभी मेरे निपल को कचाक से काट लेता तो कभी अपने अंगूठे से मेरा क्लिट रगड़ देता ,

एकबार मैं फिर झड़ने के कगार पे आ गयी और मुझसे पहले मेरे उसे ये मालूम हो गया ,

अगले ही पल उसने मुझे फिर दुहरा कर दिया था ,

उसके हर धक्के की थाप , सीधे मेरी बच्चेदानी पे पड़ती थी और लंड का बेस मेरे क्लिट को जोर से रगड़ देता। 

मैंने लाख कोशिश की लेकिन , मैं थोड़ी देर में ,

उसने अपनी स्पीड वही रखी , 


दो बार , दूसरी बार वो मेरे साथ ,

लग रहा था था कोई बाँध टूट गया ,

कोई ज्वाला मुखी फूट गया , 

न जाने कितने दोनों का संचित पानी , लावा 

और जब हम दोनों की देह थिर हुयी , एक साथ सम पर पहुंची ,हम दोनों थक कर चूर हो गए थे। 

बहुत देर तक जैसे बारिश के बाद , ओरी से ,पेड़ों की पत्तियों से बारिश की बूँद टप टप गिरती रहती है ,वो मेरे अंदर रिसता रहा , चूता रहा। 

और मैं रोपती रही ,भीगती रही ,सोखती रही उसकी बूँद बूँद। 
बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे लिपटे रहे। 

न उसका हटने का मन कर रहा था न मेरा। 

बाहर तूफान कब का बंद हो चुका था ,लेकिन सावन की धीमी धीमी रस बुंदियाँ टिप टिप अभी भी पड़ रही थीं , हवा की भी हलकी हलकी आवाज आ रही थी। 
 
पूरबी बोली- “धत्त… हां… यहां आने के एक दिन पहले… घर में कोई नहीं था, बादल खूब जोर से बरस रहे, और मैं, उनकी गोद में बैठी झूला झूल रही थी कि उन्होंने मेरी पहले तो चोली खोलकर जोबन दबाने शुरू किये और फिर साड़ी उठाकर करने लगे…” 

“अरे मैं तेरी साड़ी उठाकर अपना हाथ तेरी चूत के अंदर कलाई तक कर दूंगी। साफ-साफ बता… डिटेल में…” कामिनी भाभी बोलीं। 

अब पूरबी के पास कोई चारा नहीं बचा था, वह सुनाने लगी- 


“मेरी चूची दबाते-दबाते, और मेरे चूतड़ों के रगड़ से उनका लण्ड एकदम खड़ा हो गया था, उन्होंने मुझसे जरा सा उठने को कहा और मेरी साड़ी साया उठाकर कमर तक कर दिया और अपना पाजामा भी नीचे कर लिया। मेरी चूत फैलाकर मेरे चूत को सेंटर करके उन्होंने धक्का लगाया और पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया, फिर वह मेरी चूचियां पकड़ के धक्का लगाते और मैं झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती, खूब खच्चाखच्च अंदर जा रहा था। 



वो मेरा कभी गाल काटते, कभी चूम लेते। काफी देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उठकर झूले पे उनकी गोद में आ जाऊँ। 

मैं उनको फेस करते हुये, उनकी गोद में बैठ गयी, उन्होंने सुपाड़े को मेरी चूत में घुसाके मेरी पीठ पकड़के कसके मुझे अपनी ओर खींचा और अबकी बार तो पूरा लण्ड जड़ तक अंदर तक घुस गया था, मेरी चूचियां उनकी छाती से दब पिस रहीं थीं, अब तक बारिश भी खूब तेज हो गयी थी और तेज हवा के चलते बौछार भी एकदम अंदर आ रही थी।

हम दोनों अच्छी तरह से भीग रहे थे, पर चुदाई के मजे में कौन रुकता। वो एक हाथ से मेरी पीठ पकड़ के धक्के लगाते और दूसरी से मेरी चूचियां, क्लिट मसलते और मैं दोनों हाथों से झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती… झड़ने के बाद भी हम लोग वैसे ही झूलते रहे…” 
 
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