desiaks
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अपडेट. 117
रानी भी बहुत गर्म हो गई थी, सही मायने में उसको आज ही गाण्ड मरवाने में सही मजा आया था.
फिर अपने ससुर की चुदाई कहानी सुनकर तो उसको और भी मजा आया होगा.
मैं लण्ड से पानी की एक एक बूंद निकाल वहीं लेट गया जिसको रानी ने पकड़ सलोनी की तरह ही अपनी जीभ और मुँह में लेकर साफ़ कर दिया.
उधर सलोनी अपनी कहानी बताने लगी जिसको सुनने के लिए रानी और उसके पति से ज्यादा, मैं लालयित था.
अतः मैंने फिर से अपनी आँखें और कान वहाँ लगा दिए… पता नहीं क्या राज अब खुलने वाला था?
सलोनी ने मामाजी की ओर करवट लेकर अपना एक पैर उनकी कमर पर रख लिया, इससे उसका पेटीकोट घुटनों से भी ऊपर हो गया.
मामाजी ने सलोनी की बाहर झांकती नंगी गोरी जांघ पर हाथ रखा और सहलाते हुए पेटीकोट के अन्दर चूतड़ों तक ले गए.
सलोनी ने बोलना शुरू कर दिया था तो मैं हाथ पर ध्यान ना दे उसकी बात को सुनने लगा.
सलोनी- आज से पहले केवल एक बार और मुझसे गलती हुई थी, बहुत पहले… पर उसके जिम्मेदार साहिल ही थे. वैसे तो ये बहुत अच्छे हैं पर….!मैंने अपने मन में सोचा ‘केवल एक बार? यह क्या बोल रही है सलोनी? सच नारी को कोई नहीं समझ सकता.’
सलोनी- जी वो कभी-कभी मुझे ऐसी हालत में छोड़ जाते हैं कि पता ही नहीं चलता और ऐसा हो जाता है. अब आज ही देख लीजिए, ये मुझको छोड़कर चले गए और आपने इस मौके का फ़ायदा उठा लिया… सच मुझे तो तब पता चला जब आप पूरे ऊपर आ गए और मैं खुद को रोक ही नहीं पाई.
मामाजी- अरे क्याआ बेटा… यह कोई गलती थोड़े ना है, यह सब तो मन बहलाने और सुकून के लिए किया जाता है. तुझे नहीं पता कि आज एक प्यासे की मदद करके तूने कितना पुण्य का काम किया है.
सलोनी- हा हा हा…!
उसने फिर से मामाजी का लण्ड पकड़ लिया- ओह, तो इसकी बदमाश की प्यास बुझ गई? जो सोती हुई आपकी बहू को भी नहीं छोड़ता.
मामाजी- अभी कुछ समय के लिए तो बुझ ही गई… देखो कितना शान्त है और सॉरी यार.. इसी के कारण तो यह सब हुआ. जब तुम साहिल का लण्ड चूस रही थी, तभी इसने तुम्हारे ये फूले हुए चूतड़ और चिकनी चूत को देख लिया था. फिर तो इसने बवाल ही खड़ा कर दिया और इसकी मर्जी के आगे मुझे झुकना ही पड़ा.
सलोनी- ओह भगवान… अपने वो सब देख लिया था… अब देखा ना आपने? वो तो ठण्डे होकर चले गए और मैं यहाँ… सच में मैं हल्की नींद में थी और तो यही समझी कि वो ही हैं मेरे पास…
मामाजी- अरे यार, कुछ गलत नहीं हुआ… तुम वो बताओ, जो बता रही थी.
सलोनी- वही तो बता रही हूँ… तब भी ऐसा ही हुआ था, हमारी शादी के कुछ दिनों बाद की बात है, हम जयपुर गए थे, मई का महीना था, बहुत गर्मी थी वहाँ पर… इनको कम्पनी की ओर से होटल का कमरा मिला था, पर ये अपने एक दोस्त के यहाँ रुके थे. सतीश नाम था उनका, साहिल के बहुत पक्के दोस्त हैं.
सलोनी के मुख से यह बात सुन मुझे सतीश और वो पूरी घटना याद आ गई. वह बिल्कुल सच बोल रही थी… पर सतीश… क्या वह भी? यह जानकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ.
मैं ध्यान से आगे सुनने लगा…
सलोनी- मैं तो देखकर डर ही गई थी, वो सतीश भाई बहुत लम्बे-चौड़े थे! पहले पहल तो देख कर ही डर लगा पर बाद में अच्छा लगने लगा. उनका स्वाभाव बहुत ही अच्छा था, बहुत ही मजाकिया थे तो बहुत जल्दी हम दोस्त बन गए.बस एक ही परेशानी थी, मई महीने के आखिरी दिन थे, बहुत गर्मी थी, उनका घर एक ही कमरे का सेट था… मेरे पास भी बहुत ही हल्के कपड़े थे, शॉर्ट्स, स्कर्ट और हल्के छोटे टॉप वगैरा…वैसे भी मुझे और साहिल को मॉडर्न ड्रेसेज़ ही पसन्द हैं. फिर अब तो हम टूर पर थे तो मैंने वैसे कपड़े ही पहन रखे थे, नाइटी भी पारदर्शी और जांघों तक की ही थी. बस सफर के लिए ही मैंने कैप्री और शर्ट पहनी थी, उस में भी बहुत गर्मी लग रही थी.
15 दिन का टूर था, समझ नहीं आ रहा था कि क्या पहनूँ?
मगर सच साहिल इस मामले में बहुत सुलझे हुए हैं, उन्होंने कहा- अरे यार क्यों तकल्लुफ करती हो? यह समझो हम बाहर ही हैं और कौन तुम्हें देख रहा है. यह सतीश तो वैसे भी खुद को भगवान के हवाले कर चुका है, इसीलिए इसने शादी तक नहीं की, इसको तुम से कोई मतलब नहीं…मेरे मन से सभी शंका दूर हो गई और मैंने एक शार्ट और टॉप पहन लिया.साहिल को तो सब नॉर्मल ही लगा पर औरत तो गैर मर्द की आँखें एकदम समझ जाती है.सतीश मुझे चोर निगाहों से बार बार देख रहे थे, मुझे उनकी इस अदा पर हंसी ही आ रही थी तो मैंने इसको ज्यादा तूल नहीं दिया.
दो दिन तक तो सब ठीक रहा, सतीश हम दोनों से और भी ज्यादा खुल गए, हम एक साथ घूमने जाते, साथ साथ खेलते खाते.