Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 12 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“What happened? Don’t be afraid of me. I kicked the sardar out of my office, when I came to know about the whole story of that night. I don’t like to exploit the helpless person. I regret for that incident) ” (क्या हुआ? मुझसे डरो मत। जब मुझे सरदार से उस रात की बात पता चली तो उसे नौकरी से निकाल दिया। मुझे किसी की मजबूरी का फायदा उठाना पसंद नहीं। मुझे उस दिन की घटना पर खेद है)

मैं थोड़ी आश्वस्त हुई। उनके चेहरे पर खेद और अपराधबोध का भाव था। “No need to feel sorry for that incident sir. I had already taught him the lesson for his act” (उस घटना के लिए दुखी होने की आवश्यकता नहीं है स्रीमान। मैं ने उसी वक्त उसके कुकृत्य के लिए उसे सबक सिखा दिया था) मैं बोली।

फिर उन्होंने मेरे चेहरे को गौर से देखते हुए मुझ से कहा, “You look a bit worried. What’s the matter? It would be my pleasure if I could help you.” (तुम कुछ चिंतित नजर आ रही हो। क्या बात है? अगर मैं किसी तरह तुम्हारी सहायता कर सकूं तो मुझे खुशी होगी।)

मैं ने जवाब दिया, “Sir, I’m desperately searching a job to lead independent life.” (श्रीमान मैं स्वावलंबी होने के लिए बड़ी शिद्दत से एक नौकरी की तलाश में हूं।)

“What a coincidence, I also need an office assistant. It will be my pleasure to give you that post.” (क्या संयोग है, मुझे भी एक ऑफिस असिस्टेंट की जरूरत है। यह पद तुम्हें देकर मुझे खुशी होगी)
 
इस तरह एक सुखद संयोग ही था जिससे मुझे एक अच्छी नौकरी भी मिल गई। मैं ऑफिस असिस्टेंट से तरक्की करते करते उपप्रबंधक के पद तक पहुंच गई। इसमें मेरी काबीलियत के साथ साथ मेरी कमनीय काया और मेरी कामुकता का भी बड़ा योगदान था। वह हब्शी रिचर्ड ऐग्न्यू तो मुझ पर खासा मेहरबान था, हालांकि मेरी काबीलियत पर उसे जरा भी संदेह नहीं था, जिसका प्रमाण मैंने कई मौकों पर दिया। मैं कई बार उनकी हमबिस्तर बनी और खुशी खुशी बनी, पूरी रजामंदी से। उन्होंने कभी भी मुझसे जबर्दस्ती नहीं की। वे मुझसे आग्रह करते और मैं खुशी खुशी उनकी आगोश में चली जाती थी और पूरे समर्पण के साथ उनकी और खुद की हवस की आग बुझाती थी। कई बार तो हमने उनके ऑफिस में ही वासना का खेल खेला। वे अपनी घूमने वाली कुर्सी पर बैठे रहते थे, वे मुझे अपनी गोद में बैठा कर चूमते थे। मेरी टॉप के बटन खोल कर मेरी चुचियों को सहलाते थे। अपने मुंह में भर कर मेरी तनी हुई चूचियों को चूसते थे। मैं उनके पैंट की जिप खोल कर अपने हाथ से उनके गधे सरीखे लिंग को पकड़ कर सहलाती थी और खेलती थी। जब कमाग्नि दोनों तरफ बराबर भड़क चुकी होती थी तो मेरी स्कर्ट को धीरे धीरे से ऊपर उठा लेते थे और मेरी पैंटी को नीचे खिसका कर पनिया चुकी योनी में अपने विशाल लिंग को प्रवेश कराने के पश्चात मुझे किसी गुड़िया की तरह कमर से पकड़ कर बैठा लेते थे। तब तक का सबसे विशाल खौफनाक लिंग, जिससे उन्होंने पहली बार उस कमीने सरदार की ब्लैकमेलिंग के माध्यम से परिचित कराया था, पहली बार जो भारतीय स्त्री देख ले वही खौफजदा हो जाए, (हब्शी लिंग से उस दर्दनाक प्रथम संभोग, जिसके स्मरण मात्र से कई दिनों तक मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ जाती थी) ऐसे लंबे और मोटे लिंग को अपनी योनी में पूर्णतयः समा लेती थी और उसी कुर्सी पर संभोग में लीन हो जाती थी। पीछे से मेरे उरोजों को सहलाते हुए, दबाते हुए, वे मेरी कमनीय काया का भोग लगाते थे। मैं इन सबमें पूरे दिल और मन से उनका सहयोग करती हुई संभोग के अखंड आनंद में डूब जाती थी। मैं उसके विशाल शरीर और विकराल दस इंच लंबे और गधे जैसे मोटे लिंग से मैथुन की अभ्यस्त हो चुकी थी।
ऐसा नहीं था कि मेरे आकर्षक व्यक्तित्व और हमारे अनैतिक संबंधों की वजह से ही मुझे आज इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन होने का अवसर मिला, बल्कि मेरी कुशाग्र बुद्धि और कुशल प्रबंधन का लोहा भी मैं मनवा चुकी थी। इन्हीं कारणों से वे हमेशा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग अटेंड करने के लिए वह मुझे ही लेकर जाते थे। होटलों में एक ही कमरे में हम ठहरते और पूरी स्वतंत्रता के साथ, दिल खोल कर, विभिन्न तरीकों से वासना की प्यास बुझाया करते थे। हमारे बीच एक ऐसा संबंध था जो व्यवसायिकता के साथ भावनात्मक भी था। हम दोनों एक दूसरे की भावनाओं का आदर करते थे।

इसके बाद की कथा अगली कड़ी में।
 
अबतक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह कामिनी एक प्रतिष्ठित संस्थान में उपप्रबंधक के पद तक पहुंची। उसने परित्यक्त और असहाय वृद्धों के लिए स्वर्गीय नानाजी के नाम पर “स्व.माधव सिंह वृद्धाश्रम” खोल लिया था जहां रहने वाले वृद्धों की सुख सुविधा का पूरा ख्याल रखा जाता था। उन्हें बिल्कुल भी इस बात का अहसास नहीं होने दिया जाता था कि वे परित्यक्त और असहाय हैं। उनमें से तीन लोग तो विकलांग भी हैं। एक का दाहिना पैर बचपन से लकवा ग्रस्त था जिस कारण, वह पैर छोटा रह गया था और नकारा हो गया था। एक का बांये हाथ की कलाई कोढ़ के कारण गल चुकी थी। इलाज के बाद कोढ़ तो ठीक हो गया मगर बांयें हाथ में ठूंठ केवल रह गया। एक का एक आंख नहीं था। बीस साल पहले चेचक के कारण उसे एक आंख से हाथ धोना पड़ा था। एक मानसिक रोगी था, जिसे मनोरोग चिकित्सालय से चिकित्सा के उपरांत इसी आश्रम में रख लिया गया था क्योंंकि उसके रिश्तेदारों का अता पता ही नहीं था। बाकी ऐसे वृद्ध थे, या तो उनका कोई ठौर ठिकाना नहीं था, या परित्यक्त थे। एक वृद्ध को उनके घर से मार पीट कर घर से निकाल दिया गया था, जिनके बारे में मैं ने सुना था कि वे अपनी बहु पर गंदी नजर रखते थे। क्या सच था क्या गलत यह तो उस वक्त पता नहीं था किंतु उनकी दयनीय स्थिति देख कर उन्हें वृद्धाश्रम मेंं रख लिया गया था। इसी तरह सबकी अपनी अपनी कहानी थी। सभी बेसहारा थे। उनमें स्वावलंबन की भावना बनी रहे इस बात का भी पूरा ध्यान दिया जाता था। वे किसी न किसी कार्य में अपनी उपयोगिता साबित भी करते थे। बागवानी से लेकर गृह उद्योग तक में उनकी भागीदारी थी, जैसे फूलों के पौधों की देखरेख, सब्जियों की खेती, पापड़ बनाना इत्यादि। मैं जब वहां जाती तो सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगता था। उनके बीच आपसी प्रेम और सहयोग देखते ही बनती थी। उनमें हिन्दू, मुस्लिम सिख, इसाई, सभी धर्म के लोग थे, जिनके बीच सौहार्दपूर्ण मधुर संबंध स्थापित हो चुका था। उनके लिए धर्म से ज्यादा आपसी प्रेम का महत्व सबसे ज्यादा था। वृद्धाश्रम की सारी व्यवस्था की देख रेख के लिए हरिया और करीम तो थे ही, उनकी सहायता के लिए और चार लोगों को नियुक्त कर रखा था, दो ससुराल से प्रताड़ित और उपेक्षित विधवा स्त्रियां करीब पैंतीस चालीस की उम्र के और एक युवक राजेश करीब तीस साल का, जो अविवाहित था और विवाह संबंध में उसकी कोई रुचि भी नहीं थी, सारा हिसाब किताब देखता था और एक आदमी रफीक, जो मुस्लिम था, संतान विहीन विधुर, करीब पैंतालीस साल का, मार्केटिंग देखता था। साफ सफाई मेंं, खाना बनाने में और भी अन्य कार्यों में सभी एक दूसरे का हाथ बंटाते थे और वे दो स्त्रियां, पानमती और कुनीबाई इन सब कार्यों में उनकी मदद किया करती थीं। इन चारों को काम पर रखने की भी अलग अलग रोचक घटनाएं थीं, जिनके बारे में मैं आगे बताऊंगी। ये चारों यहां के माहौल में रम गये थे, घुलमिल गये थे और यहां जितने भी लोग थे उनके आपसी संबंधों के बारे में जानकर, (खुले आपसी यौन संबंधों के बारे में भी) इन्हीं में से एक हो गए थे। ये भी बुजुर्गों से यौनाचार में बराबर शरीक हुआ करते थे। इन चारों को वृद्धाश्रम में काम पर रखने के पीछे की कहानियां भी कुछ कम रोचक नहीं हैं।

उन कहानियों से पहले मैं यह बता दूं कि कामिनी को वृद्धाश्रम खोलने की बात उसके दिमाग में कहां से आई। आईए हम इसके बारे मेंं जानने के लिए कामिनी की पिछली जिंदगी के पन्ने पलटते हैं और उसी के संस्मरण के रुप में सुनते हैं।—–
 
…..नौकरी ज्वॉईन करने के बाद मैं कुछ अधिक व्यस्त हो गई। मैं सवेरे नौ बजे ऑफिस के लिए रवाना हो जाती थी और पांच बजे के बाद घर लौटती थी और कभी कभी काम की अधीकता के कारण नौ दस बजे भी। दरअसल यह एक विदेशी कंपनी थी जो छोटे बड़े उद्योगपतियों के सलाहकार के रुप में कार्य करती थी। इसके देश विदेश में करीब एक सौ शाखाएं थीं जिसमें से बीस शाखाएं भारत में थीं। उनमें से एक शाखा रांची में था। क्लाईंट्स को सलाह देना, योजना का प्रारूप देना ओर मार्गदर्शन करना हमारी कंपनी का मुख्य कार्य था। कंपनी के कार्य के अंतर्गत क्लाईंट्स से मीटिंग्स निश्चित करना और उन बैठकियों में आवश्यकता अनुसार शिरकत करना भी मेरी जिम्मेदारी थी। मेरी वाक्पटुता, व्यवहारकुशलता और मेरा आकर्षक व्यक्तित्व क्लाईंट्स को हाथ से निकलने नहीं देता था। कभी कभी जब क्लाईंट्स हाथ से फिसलने वाले होते थे तो यदा कदा क्लाईंट्स को हाथ में रखने के लिए मैं उन्हें “खुश” करने मेंं भी पीछे नहीं रहती थी। मैं इन मामलों में महारत हासिल कर चुकी थी। मेरी अदम्य कामुकता इन सबमें काफी सहायक सिद्ध होती थी। अलग अलग तरह के अलग अलग रुचि रखने वाले लोगों से मेरा पाला पड़ चुका था। आरंभ में मुझे तनिक असहज महसूस होता था, किंतु अब मैं इन सबकी अभ्यस्त हो चुकी हूं।

यूं तो सामान्यत: क्लाईंट्स के साथ सारे डील हमारी कुशल और प्रभावी प्रस्तुति से ही हो जाया करते थे, तथापि कुछ कुछ शौकीन मिजाज हवस के पुजारी क्लाईंट्स की कामलोलुप नजरें मेरी कमनीय देह पर चिपकी रहतीं थीं और डील को अंतिम रुप देने में बहाने बाजी करते थे। कारण स्पष्ट नहीं बता कर टाल मटोल करते थे। ऐसे किस्म के क्लाईंट्स अक्सर रस्मी तौर पर व्यवसायिक मीटिंग के पश्चात फाईनल एग्रीमेंट से पहले मुझसे व्यक्तिगत तौर से मिलने की ख्वाहिश जाहिर करते और जब मैं अकेले में उनसे बातचीत करती तो एग्रीमेंट की शर्त के तौर पर मेरे सामने हमबिस्तर होने का खुला प्रस्ताव रखते थे।

पहली बार जब एक ऐसे ही क्लाईंट से मेरा पाला पड़ा तो मुझे स्पष्ट तौर पर कुछ समझ नहीं आया, हालांकि उनकी नजरों में अपने लिए हवस की भूख अच्छी तरह देख सकती थी। शुरुआत सीधे तौर पर न हो कर मेरी अनभिज्ञता मेंं हुआ।

उनके साथ शुरूआती बातचीत कुछ इस प्रकार थी।

उन्होंने मेरे बॉस रिचर्ड साहब से कहा, “मैं इस डील पर ऊपरी तौर पर सहमत हूँ लेकिन इस पर हस्ताक्षर करने के पहले मैं इस प्रोजेक्ट का बारीकी से अध्ययन करना चाहता हूं और मैं चाहता हूं कि आप अपने असिस्टेंट के हाथों में शाम को होटल अशोका भेज दीजिए। मैं वहीं कमरा नं 10 में ठहरा हूं।”

“Do you have time in the evening Kamini? (कामिनी, क्या तुम्हारे पास समय है शाम को?)” बॉस ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखते हुए पूछा।

“Yes boss, I will manage to spare time for this. (जी हां सर, मैं इसके लिए समय निकाल लूंगी)” मैं तनिक झिझकते हुए बोली।

“OK, done Mr. Mehta, you will get the file in the evening today itself as your wish. (ठीक है मि. मेहता, आपको आज ही शाम आपकी इच्छा अनुसार फाईल मिल जाएगी।” बॉस ने कहा। सिर्फ मैं ओर मेहता जी ही

शाम को ठीक छ: बजे, जैसा कि तय हुआ था, मैं प्रोजेक्ट की फाईल लेकर होटल अशोका पहुंच गई। मैं ने गहरे नीले रंग की खूबसूरत शिफॉन की साड़ी पहन रखी थी और उसी से मैच करती हुई लो कट ब्लाऊज। मैं दिल ही दिल में सशंकित भी थी। तनिक घबराहट भी थी, पहली बार मुझे किसी क्लाईंट से इस तरह अकेले कमरे में व्यवसायिक अनुबंध के लिए मिलना हो रहा था। वैसे भी मेहता जी की नजरों से और उनके हाव भाव से उनके के बारे में मेरे दिल में कोई अच्छी राय नहीं थी, किंतु मेरे लिए अनुबंध पर मेहता जी का हस्ताक्षर ज्यादा महत्वपूर्ण था, अतः मैं ने अपने मन से झिझक और घबराहट को झटक दिया और कमरा नं. 10 के दरवाजे पर दस्तक दी। कुछ ही पलों में दरवाजा खुला, मगर दरवाजा खोलने वाला मेहता जी के बदले कोई विशाल डील डौल शख्शियत वाला छ: फुटा, अर्द्धगंजा, कंजी आंखों और तोते जैसी नाक वाला, होंठों पर बड़ी ही भद्दी मुस्कुराहट लिए कोई अजनबी अधेड़ था। मैं असमंजस में थी, तभी पीछे से मेहता जी की आवाज आई, “अंदर आ जाईए कामिनी जी, ये राधेश्याम जी हैं, हमारे बिजनेस पार्टनर। इन्हें भी हमारे प्रोजेक्ट की डिटेल देखने के लिए मैंने बुलाया है।”
 
“ओह” मैं ने सिर्फ इतना ही कहा और अंदर आ गई। पीछे से उस व्यक्ति ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। अंदर मैं ने देखा बड़े से कमरे के एक तरफ लंबे सोफे पर मेहता जी बैठे हुए थे। उनके होठों पर भी कामुकता भरी मुस्कुराहट खेल रही थी। मैं तनिक असहज महसूस करने लगी।

मेरी झिझक को ताड़ कर मेहता जी ने कहा, “आप घबराईए मत, यहां आ कर सोफे पर रिलैक्स हो कर बैठ जाईए और अपनी फाईल सामने सेंटर टेबल पर रख कर हमें प्रोजेक्ट की बारीकियों को विस्तार से समझाईए। राधेश्याम जी आप भी आ जाईए।” कहकर उन्होंने मुझसे अपने दाहिने बगल में बैठने के लिए बुलाया। मैं झिझकते हुए उनके बगल में उसी सोफे पर थोड़ी सिमट कर बैठ गयी। इधर राधेश्याम जी भी उसी सोफे पर मेरी दाहिनी ओर आ कर बैठ गए। मैं और तनिक सिमट गई। अब मैं ने ज्यों ही फाईल खोला, राधेश्याम जी और मेहता जी मुझ से और सट कर बैठ गए, फाईल को ध्यान से देखने के बहाने। अभी मैं ने फाईल खोल कर बताना शुरू ही किया था कि राधेश्याम जी ने अपना बांया हाथ मेरी दांयी जांघ पर रख दिया।

मैं घबरा कर बोली, “राधेश्याम जी, यह आप क्या कर रहे हैं। अपना हाथ हटाइए यहां से।” मैं ने उनका हाथ हटाने की कोशिश की, किंतु उन्होंने हाथ हटाने की बजाय मेरी जांघ को सहलाना शुरू कर दिया।

“अरे उस फाईल को मारो गोली, हम तो पहले इस ‘फाईल’ को खोल कर ‘पढ़ेंगे’ फिर अपनी ‘कलम’ से ‘साईन’ करेंगे।” अपनी भोंड़ी आवाज में राधेश्याम जी ने कहा।

मैं हड़बड़ा कर उठने को हुई, तभी मेहता जी ने मेरी कमर पर हाथ डाल दिया और वासना से ओतप्रोत आवाज में बोले, “जाती कहाँ हो मेरी जान, हम दोनों पार्टनर जबतक अच्छी तरह से ‘इस खूबसूरत फाईल’ को नहीं पढ़ लेते, तब तक उस फाईल में हस्ताक्षर नहीं करेंगे। जब से तुझे देखा है, यह मेरा लंड है कि सो ही नहीं रहा है।” अब उन्होंने अपनी मंशा खुल कर जाहिर कर दी।

“देखिए मैं उस तरह की औरत नहीं हूं। प्लीज मेरे साथ ऐसा मत कीजिए।” मैं ने रुआंसी आवाज में विरोध जताया।

“तू किस तरह की औरत है उससे हमें कुछ लेना देना नहीं है। हमें तो सिर्फ इतना पता है कि तू एक खूबसूरत सेक्सी औरत है, जो खुद चल कर हमारे पास आई है और हम ठहरे खूबसूरत औरतों के रसिया, हम तुम्हें ऐसे ही कैसे जाने दें।” बोलते हुए राधेश्याम जी अपने थूूूथन से मेेेरे गालोंं पर चुुंबनों की बौछार करने लगे। इसी दौरान उन्होंने जबरदस्ती मेरी साड़ी को घुटनों से ऊपर उठा दिया और मेरी योनी पर पैंटी के ऊपर से ही हाथ रख दिया। मैं चिहुंक उठी। मैं दोनों हवस के पुजारियों के बीच सैंडविच बनी कसमसाती रह गई।

“प्लीज मुझ पर रहम खाईए। मुझे छोड़ दीजिए ना।” मैं मरी सी आवाज में बोली। अब अंदर से मेरा विरोध कमजोर होता जा रहा था लेकिन बाहरी तौर पर विरोध जारी था। “मैं शरीफ घर की एक शरीफ औरत हूं, मुझे बरबाद मत कीजिए प्लीज।”

“अरे बावली, हम तुझे कहां बरबाद कर रहे हैं। खुद मजे ले और हमें भी मजे लेने दे। तेरी जैसी खूबसूरत औरत तो हम मर्दों को मजे देने और खुद मजे लेने के लिए बनी है।” कहते हुए मेहता जी नें मेरी साड़ी का पल्लू गिरा कर मेरे ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरे कसे हुए उन्नत उरोजों को बेदर्दी से मसलना शुरू कर दिया। धीरे धीरे वे मुझ पर छाते जा रहे थे। उनकी कामुक हरकतों से अब मैं भी उत्तेजित होने लगी थी किंतु दिखावे के लिए मैं छटपटाती रही, कसमसाती रही, विरोध का नाटक करती रही।

“मैं चिल्लाऊंगी, छोड़िए मुझे प्लीज।” मैं परकटी पंछी की तरह असहाय उन वहशियों के चंगुल से निकलने की व्यर्थ कोशिश करती हुई बोली।

“चिल्लाओगी, चिल्लाओ साली हरामजादी,” कहते हुए दानव राधेश्याम जी ने मुझे सोफे पर ही पटक दिया और मेरे ऊपर सवार हो गया।
“इस साऊंड प्रूफ कमरे से बाहर तुम्हारी आवाज किसी को सुनाई भी नहीं पड़ेगी। चुपचाप हमारा साथ दे।” मेहता जी गुर्राए। मेरे शरीर से खिलवाड़ करते हुए वे भी एक एक करके अपने वस्त्रों से मुक्त होते गए। उन दोनों ने मेरे विरोध की परवाह किए बगैर मेरी साड़ी उतार दी, मेरे पेटीकोट का नाड़ा, जो कि खुल नहीं रहा था, राधेश्याम जी ने एक ही झटके में तोड़ डाला और पेटीकोट को एक तरफ उतार फेंका। उसी तरह आनन फानन में मेहता जी ने मुझे ब्लाऊज से मुक्त कर दिया। अब मैं सिर्फ पैंटी ओर ब्रा में थी। उस अवस्था में मेरी संगमरमरी काया को देख कर उनकी आंखें फटी की फटी रह गयीं।

आगे की घटना अगली कड़ी में।

तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
 
पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि अपने ऑफिस में अपने कम के सिलसिले में मुझे कई ऐसे क्लाइंट्स से पाला पड़ता था जिन्हें मेरी खूबसूरती मोह लेती थी और वे मेरे साथ हमबिस्तर होने की ख्वहिश रखते थे। अपने पेशे में सफलतापूर्वक आगे बढ़ने के लिए मैंने कई ऐसे क्लाईंट्स की मनोकामना को पूर्ण भी किया। इसकी शुरुआत एक क्लाईंट मेहता जी से हुई। उनके प्रोजेक्ट पर विचार विमर्श के लिए उन्हीं के होटल में मैं अकेली गई और नतीजा यह हुआ कि अब मैं नग्न अवस्था में उनके बिस्तर पर थी। अब आगे:-

“वाह मेहता जी क्या माल है। तेरी पसंद की दाद देता हूँ। कसम से मजा आएगा आज।” कहते हुए राधेश्याम जी ने मेरी पैंटी भी खींच ली। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था लेकिन मैं ने बनावटी लज्जा से अपनी जांघें सटा लीं। राधेश्याम जी ने जबर्दस्ती मेरी जांघों को अलग किया और मेरी चिकनी फकफकाती और पनिया उठी योनी को देख कर मुस्कुरा उठा। “अहा, मेहता जी, इसकी चूत तो चुदने के लिए पहले से पानी छोड़ने लगी है। साली रंडी, झूठ मूठ के नखरे कर रही थी मां की लौड़ी।” राधेश्याम जी लार टपकाती आवाज में बोले। मेरी हालत बहुत बुरी थी। अपनी उत्तेजना को छिपाने की सारी कोशिशें बेकार हो गयी थीं। मेरी गीली योनी मेरी दशा की चुगली कर रही थी। इधर मेरे उन्नत उरोजों को भी अब तक मेहता जी ब्रा के बंधन से मुक्त कर चुके थे। अब मैं पूर्णतया नग्न हो चुकी थी। इधर ये दोनों कामुक भेड़िये भी अपने वस्त्रों से मुक्त हो चुके थे। गजब का नजारा था। जहां ठिंगने कद के मोटे ताजे, गोरे चिट्टे मेहता जी की जुबान से लार टपक रही थी वहीं उनका छ: इंच लंबा किंतु तीन इंच मोटा लिंग फनफना कर मेरी योनी में तहलका मचाने को बेताब लार टपका रहा था। उधर राधेश्याम जी तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई कई दिनों का भूखा काला भुजंग दानव अपने स्वादिष्ट भोजन को अपने सम्मुख पा कर नोच डालने को बेताब हो। उनका काला मोटा ताजा किसी सुमो पहलवान की तरह विशाल तोंद वाला भयावह शरीर और सामने झूलते अपने 10″ लंबे और चार इंच मोटे टनटन करते लिंग का दर्शन करके मेरी तो घिग्घी बंध गई थी। बहुत बुरी फंसी थी मैं। हालांकि मैं इससे पहले मैं कई अलग अलग लोगों के साथ अकेले या सामुहिक रुप से संभोग का लुत्फ ले चुकी थी लेकिन इस समय इस तरह की परिस्थिति में मैं खुद को पहली बार पा रही थी जब अपने व्यवसाय से सम्बंधित मुलाकात में क्लाईंट्स की कुत्सित इच्छा की पूर्ति के लिए मुझे मजबूर होकर यह करना पड़ रहा था। अब जब बात यहां तक बढ़ चुकी थी तो खैर उन्हें तो अपनी मनमानी करनी ही थी, मैं तनिक आतंकित होते हुए भी खुद को अंदर ही अंदर तैयार कर रही थी, अपने साथ होने वाले इस वासनात्मक खेल के लिए। सशंकित भी थी कि पता नहीं वे किस तरह से मेरे शरीर का उपभोग करेंगे।

मेरी नग्न देह की छटा को वे कुछ पलों के लिए अपलक देखते रह गए। “वाह क्या माल है मेहता जी, इसकी चूची तो देखिए, कितनी बड़ी बड़ी, चिकनी और सख्त” अपने विशाल पंजों से मेरे उरोजों को दबाते हुए राधेश्याम जी बोले। “ठीक कहा, राधे, इसकी गांड़ जरा देखिए, इसके शरीर के अनुपात में इतनी मस्त चिकनी, बड़ी बड़ी और गोल गोल गांड़, वाह, सच में आज तो हमारी किस्मत खुल गई है। मैं तो इसकी गांड़ मारूंगा।” मेरे नितंब पर चपत लगाते हुए मेहता जी बोले।
 
“हाय राम, आपलोग मुझे कहीं की नहीं छोड़िएगा। मैं कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी। प्लीज मुझे खराब मत कीजिए।” यह प्रात्यक्षतः एक प्रकार से अंतिम आर्त निवेदन था। मैं भी कम ड्रामेबाज नहीं थी। मैं ने रोना शुरू कर दिया और मेरी आंखों से झर झर आंसुओं की धार बहने लगी। आंतरिक रूप से तो अब तक मैं चुदने के लिए पूर्ण तैयार हो चुकी थी।

“नखरे मत कर साली हरामजादी। देख तेरी चूत, इतनी बड़ी और फूली हुई। पता नहीं कितने लोगों से चुद चुकी है बुरचोदी। हम तुम्हें क्या खराब करेंगे। तेरी चूत तो चुदने के लिए पहले ही गीली हो चुकी है” राधेश्याम जी खौफनाक लहजे में बोल पड़े। इतना कह कर उन्होंने मेरे पैरों को फैला दिया और अपना लपलपाता लिंग मेरी योनी द्वार पर टिका दिया। अब विरोध का नाटक व्यर्थ था। मैं गनगना उठी। “ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में, हुम्म्म।” कह कर एक करारा जल्लादी प्रहार कर दिया।

“हाय मर गई मां, उफ्फ्फ” मेरी हाय निकल गई। उनका पूरा लिंग एक ही धक्के में पूरा का पूरा मेरी योनी में ठुंक गया। मुझे उसी अवस्था में किसी खिलौने की तरह उठा कर खड़ा हो गया और तभी पीछे से मेहता जी मेरी गुदा पर हमला बोल बैठे। पहले उन्होंने मेरी गुदा का द्वार अपनी जीभ से जी भर कर चप चप चाटा।

“छि:, यह क्या कर रहे हैं मेहता जी” मैं राधेश्याम जी की बांहों में छटपटाती हुई बोली।

अभी मैं ने इतना ही कहा था कि “अब ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में साली रंडी, हुम्म्म आह्ह्ह्ह्ह,” दन से मेहता जी ने अपना लिंग मेरी लसलसाई गुदा में उतार दिया।

“आह्ह्ह्ह्ह” मेरी आह निकल पड़ी। मेहता जी अपने पैरों के नीचे दो कुशन को रख कर खड़े थे। बस अब शुरू हो गया मेेेरे शरीर के साथ उनकी मनमानी। पीछे से मेहता जी मेरी गुदा के मैथुन में लीन हो गए और अपने हाथों से मेरी चूचियों को बुरी तरह नोच खसोट रहे थे, दबा रहे थे और मेरी गर्दन और कंधों को चूम रहे थे।

“उफ्फ्फ साली की गांड़ कितनी मस्त है राधे, ओह्ह्ह्ह बहुत मजा आ रहा है भाई” कहते हुए धकाधक चोदने लगे।

“अरे यार मेहता जी, इसकी इतनी बड़ी चूत भी सिर्फ देखने में बड़ी है, साली कुतिया की चूत है बड़ी टाईट। ओह्ह्ह्ह ऐसा लग रहा है जैसे इसकी चूत मेरा लौड़ा चूस रही है।” कहते हुए राधेश्याम जी भी अपनी पूरी शक्ति से जकड़े मुझे हवा में उठाए हुए ही फचाफच चोदने लगे। करीब पांच ही मिनट में मैं एक लंबी आह के साथ झड़ गई। मेरे ढीले पड़ते शरीर को अपनी पकड़ से ढीला नहीं होने दिया कमीनों ने। लगे रहे भूखे भेड़ियों की तरह नोचने खसोटने। करीब उसके दस मिनट बाद मैं फिर भयानक थरथराहट के साथ झड़ने लगी। मेरी स्थति से अनभिज्ञ नहीं थे वे माहिर चुदक्कड़। लगे रहे। करीब पच्चीस मिनट बाद जाकर पहले मेहता जी फचफचा कर अपना वीर्य मेरी गुदा में भरने लगे और खलास होते ही सोफे पर धम से गिर कर लंबी लंबी सांसे लेने लगे। मेहता जी के अलग होते ही राधेश्याम जी मुझे लिए दिए बिस्तर पर चले गए और पूरे जोश खरोश और पूरी निर्ममतापूर्वक मेरे नग्न देह का मर्दन करने लगे। मैं अपनी पूरी क्षमता से उनके मोटे कमर के ईर्दगिर्द अपने पैरों को लपेटे उनकी कामक्षुधा को शांत करने का भरपूर प्रयास करती रही।ठाप का जवाब ठाप से देने लगी। मस्ती में मैं भी सराबोर हो चुकी थी अब। पागलपन मुझपर भी सवार हो चुका था।
 
“हाय ओह्ह्ह्ह राजा, उफ्फ्फ मेरी मां, आह आह,” बरबस मेरे मुह से आनंदमयी सिसकारियां निकल रही थीं।

“हुम्म्म्म्मा्ह्ह्ह्ह आह, देखा साली रंडी, आ रहा है न मजा, बोल रही थी खराब मत कीजिए, बुरचोदी, अब बता, छोड़ दें तुझे अभी।” कमीना बोला।

तड़प कर मैं पूरी बेशर्मी के साथ बोली, “हाय नहीं, अभी नहीं मादरचोद, अभी नहीं, प्लीज चोदिए राजा ओह्ह्ह्ह मेरे चोदूजी, मेरे लंडराजा आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह।”

चोद चोद कर निढाल थका मांदा मेहता भी हमारी बात सुनकर ठठाकर हंसने लगा। इसके कुछ ही पलों के बाद, यानी कुल मिला कर आधे घंटे तक धुआंधार चुदाई के पश्चात राधेश्याम जी ने मुझे कस कर अपने राक्षसी शरीर से चिपका लिया और फचफचा कर करीब डेढ़ मिनट तक स्खलित होते रहे। “आह्ह्ह्ह्ह मेरी रानी, ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह” उसी दौरान मैं भी तीसरी बार झड़ने लगी, “आह उऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ मा्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह” अद्भूत, अनिर्वचनीय।

जो भी हुआ, जैसा भी हुआ, उन्होंने मेरे तन से जी भर के आनंद उठाया और मुझे भी खूब आनंदित किया। दो घंटे में दो बार दोनों ने संभोग किया। वीर्य से लिथड़े लिंग को मेेेरे मुह से साफ करवाया। मैं ने भी बड़े प्यार से चाट चाट कर उनके लिंग को साफ किया। उसी नंग धडंग अवस्था में मुझे अपनी गोद में बिठाकर उन्होंने अनुबंध पर हस्ताक्षर किया। वे मेरी कमनीय काया का भोग लगा कर पूरी तरह संतुष्ट हुए और मेरा तो कहना ही क्या। उन्होंने मुझे अपनी कामपिपासा शांत करने का एक और रास्ता दिखा दिया। नौकरी का नौकरी और मजा का मजा। उस चुदाई क्रिया से निवृत्त हो कर हमने अपनी हुलिया दुरुस्त की, फिर मुझसे फिर मिलते रहने का वादा ले कर मुझे विदा किया। उस समय रात का नौ बज रहा था।

 
उस दिन होटल अशोका में हरीश मेहता और राधेश्याम जी से जो डील फाईनल करके मैं आई थी वह पच्चीस लाख का था। वह डील उनके ट्रांसपोर्ट बिजनेस को बढ़ाने के संबंध में था। हमने उसकी पूरी रूपरेखा, आर्थिक सहायता के लिए ऋण उपलब्ध कराने एवं कार्य में किसी प्रकार की कानूनी अड़चनों से महफूज रखने संबंधी सारा प्रवधान शामिल किया था। उस डील से उन्हें जो लाभ होना था वह अलग बात थी, इधर जो तत्कालिक ‘लाभ’ मेहता जी और राधेश्याम जी हासिल किया, उससे ही वे बेहद खुश थे। मैं भी अपनी सफलता पर बेहद खुश थी। डील हासिल करने की खुशी के साथ साथ अपनी वासना की भूख मिटाने का नया मार्ग पाने की खुशी और इस तरीक़े से अपने कार्य के नये मनोरंजक ढंग से सफलतापूर्वक अंजाम देने की अपनी क्षमता पर गर्व भी था। इससे मेरे आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई।

दूसरे दिन जब मैं ऑफिस गई तो मेरी सफलता पर बॉस बेहद खुश हुए कि मैं ने कुशलता पूर्वक क्लाईंट्स को हमारे प्लान पर सहमत किया और यह अनुबंध हासिल किया। “Congratulations baby. You deserve a treat for this success. (बधाई हो बेबी। इस सफलता के लिए तुम्हें एक पार्टी बनती है)” उन्होंने मुझे बधाई दी और अपनी ओर से होटल सनशाइन में डिनर पार्टी का आयोजन किया, जिसमें ऑफिस का मेरा एक सहयोगी कमलेश और एक मैनेजर शेखर सिन्हा जी शामिल थे। उन्हें क्या पता था कि इस सफलता के लिए मैं ने क्या कीमत अदा की। खैर यह और बात है कि जो भी कीमत मैं ने अदा की उसका मुझे तनिक भी मलाल नहीं था बल्कि इसके उलट मैं ने खुद भी इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सुखद अनुभव और आनंद प्राप्त किया। यह तो शुरुआत थी। इसके बाद फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कई डील मैं ने इस तरह सम्पन्न करने में अपना योगदान दिया। मेरी मुलाकात अक्सर मेहता जी एवं राधेश्याम जैसे क्लाईंट्स से होती थी। मैं आज तक कई क्लाईंट्स के साथ हमबिस्तर हुई और डील फाईनल करने में सफल रही। मैं हमेशा इस बात का ख्याल रखती थी कि क्लाईंट्स को यह अहसास न हो कि मैं सस्ती किस्म की औरत हूं। प्रथम भेंट में मैं ने हमेशा यही जाहिर किया कि मैं एक शरीफ औरत हूं और सिर्फ क्लाईंट्स की खुशी के लिए मजबूरी में उनकी अंकशायिनी बनने को विवश हूं। अपने व्यवसायिक कार्य के सिलसिले में क्लाईंट्स की हवस पूर्ति हेतु अब अपने को समर्पित करने में मुझे अंदर से कोई झिझक नहीं होती थी। इसी तरह दिन प्रतिदिन सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गई। हां, किंतु प्राथमिकता मैं व्यसायिक लाभ को ही देती थी, क्लाईंट्स की कुत्सित कामक्षुधा शांत करते हुए अपनी देह की भूख मिटा लेना मेरे लिए अतिरिक्त लाभ था। मैं धीरे धीरे इस फन में माहिर होती जा रही थी। जो क्लाईंट्स रूप के रसिया थे, उनमें विभिन्न प्रकार के लोग थे। रूप रंग, शारीरिक बनावट और रुचि में भी भिन्न। कुछ तो विकृत सेक्स पसंद करने वाले भी थे। ऐसे लोगों से भी निपटना मैं सीख गई थी।

ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ जब पहली बार हुआ तो मैं तनिक घबरा गई थी। उस मेहता जी वाले एपिसोड के बाद कुछ ऐसे ही क्लाईंट्स से मेरा सामना हुआ जिन्हें सामान्य रतिक्रिया पसंद था। लेकिन उस मेहता वाले एपिसोड के करीब तीन महीने पश्चात एक डील होने वाला था जो एक करोड़ का था। उस दिन किसी आवश्यक कार्य से बॉस ऑफिस देर से आने वाले थे, अतः उस डील के संबंध में मुझे अकेले ही क्लाईंट के साथ मीटिंग करना था। वह क्लाईंट था टाटानगर का एक उद्योगपति। नाम था उसका रूपचंद, नाम के विपरीत कुरूप, सांवला किंतु पूरा चेहरा चेचक के दाग धब्बों से भरा हुआ, करीब पचास साल का मोटा तोंदू, ठिंगना सा करीब साढ़े चार फुट का। वह अपने एक सहयोगी के साथ आया हुआ था। उसका सहयोगी अपेक्षाकृत स्मार्ट, लंबा कद, करीब छः फुट का छरहरे शरीर वाला और देखने में शालीन था। उम्र लगभग तीस पैंतीस के बीच रही होगी। हमारे ऑफिस में जैसे ही रूपचंद जी की नजर मुझ पर पड़ी, वे मुझे अपलक देखते ही रह गए। उस घटिया इंसान की आंखों में किसी भूखे भेड़िये की कामलोलुप चमक और उनके काले काले मोटे होंठों पर वासनापूर्ण मुस्कुराहट देख कर मेरा मन एक बार तो वितृष्णा से भर उठा, लेकिन वे ठहरे एक उद्योगपति क्लाईंट, सो प्रत्यक्षतः मैं ने अपने चेहरे पर व्यसायिक मुस्कुराहट चिपका कर पूछा, “गुड मॉर्निंग सर, कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं?”

मेरी आवाज सुनकर जैसे उनका ध्यान भंग हुआ और उसी तरह मुस्कुराते हुए घरघराती आवाज मेंं बोले, “गुडमॉर्निंग मैडम। मेरा नाम रूपचंद है।”

यह सुनते ही मैं समझ गयी कि ये ही वे क्लाईंट हैं जिनके साथ मुझे मीटिंग करनी है। तपाक से मैं उठ खड़ी हुई और विनम्रता से बोली, “ओह आईए, यहां आपका स्वागत है।”

वे बोले, “मैं अपने इंडस्ट्री के एक्सपैंशन के सिलसिले में आपकी सेवा लेना चाहता हूं। सुना है आप का ऑर्गानाईजेशन इस मामले में काफी एक्सपर्ट है।”

 
मैं अब थोड़ी सामान्य हो गई और उनकी कामलोलुप नजरों और घटिया मुस्कान को नजरअंदाज कर पूरे पेशेवर अंदाज में बोली, “आपने बिल्कुल सही सुना है। हमारी संस्था इस प्रकार के मामलों में हर संभव मदद करती है और हमारा रेकॉर्ड है कि हमारे किसी भी क्लाईंट को आज तक हमसे कोई निराशा नहीं हुई। आईए बैठिए।” मैं ने अपने सामने की कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। मेरी टेबल के दूसरी ओर तीन कुर्सियां खाली थीं, जिसमें से दो पर रूपचंद जी और उनके सहयोगी आसीन हो गए।

“हां तो अब अपने एक्सपैंशन प्लान के बारे में बताईये। प्रोडक्ट, कस्टमर्स, डिमांड बढ़ने की संभावनाओं के बारे में विस्तार से। जरूरत पड़ी तो हम साईट विजिट भी करेंगे।” मैं ने कहा।

इसपर उन्होंने अपने सहयोगी की ओर मुखातिब हो कर कहा, “ऋतेश, मैडम को हमारी कंपनी के बारे मेंं बताओ।” ऋतेश भी मेरे व्यक्तित्व के आकर्षण से अछूता नहीं था। इतनी ही देर में मैं ने महसूस किया कि उसकी तीक्ष्ण दृष्टि मेरे अंग प्रत्यंग को मेरे कपड़ों के ऊपर से ही भेदती हुई मुआयना कर रही है। उसकी दृष्टि की ताब न ला सकी मैं और तनिक संकोच का अनुभव करने लगी। उसने जब बोलना आरंभ किया तो उसकी धीर गंभीर आवाज ने मुझे सम्मोहित कर लिया। एक तो उसका आकर्षक व्यक्तित्व, उसपर उसकी ठहरी हुई गंभीर आवाज और बोलने का अंदाज मुझे प्रभावित कर गया। उसकी आवाज में गजब का आकर्षण था। बोलते वक्त उसकी नजरें मेरे चेहरे पर ही टिकी हुई थीं। ऐसा लग रहा था मैं भीतर ही भीतर पिघल रही हूं। उसकी नजरों में पता नहीं ऐसा क्या था या ऐसी अपील थी कि मेरे शरीर में रक्त संचार की गति बढ़ने लगी। वही आदमजात शरीर की प्राकृतिक भूख, पुरुष संसर्ग की, मेरे अंदर जागने लगी। मैं उस दिन स्कर्ट ब्लाऊज में थी। मेरे उरोज लो कट बिना बांहों के ब्लाऊज में सख्त होने लगे, चुचुक खड़े हो गए। ऐसा लग रहा था मानो दो कबूतरियां कसे हुए ब्रा और ब्लाऊज के पिंजरे से तड़प कर बाहर निकल पड़ने को बेताब हों। मैं ने अपनी दोनों जांघों को कस कर सटा लिया लेकिन कुछ ही मिनट बाद मैं अपनी कुर्सी पर ही कसमसा कर जांघ पर जांघ चढ़ा कर बैठने को मजबूर हो गई। मेरी योनी पैंटी के अंदर फकफक करती हुई लसलसा पानी छोड़ने लगी, नतीजतन मेरी पैंटी के सामने का हिस्सा भीग गया। मेरी स्थिति से धूर्त रूपचंद और ऋतेश अनभिज्ञ नहीं थे। रूपचंद जी के हाव भाव से ऐसा लग रहा था मानो अगर उनका वश चलता तो वहीं पटक कर मुझे भोगने लग जाते। ऋतेश काफी धैर्यवान लग रहा था, सबकुछ समझते हुए भी सिर्फ हौले हौले मुस्कुराते हुए अपनी बात रखता जा रहा था। बीच बीच में मैं रोक कर कुछ सवालों द्वारा जानकारी लेती जा रही थी लेकिन मेरी आवाज मेंं मेरी जुबान की हल्की लड़खड़ाहट मेरी स्थिति की चुगली कर रही थी। जब ऋतेश अपनी बात पूरी करने ही वाला था कि उसी वक्त मेरे बॉस आ गये।

“Sorry Mr. Roopchand, I’m joining late in this meeting (माफ कीजिएगा रूपचंद जी, मैं इस मीटिंग में देर से शामिल हो रहा हूँ)” उन्होंने कहा।

“It’s OK. We are about to finish describing about our expansion plan. If you wish, I can explain again, (कोई बात नहीं। हम अपने औद्योगिक विस्तारीकरण योजना के बारे में बताना समाप्त करने ही वाले थे। अगर आप चाहें तो मैं दुबारा बता सकता हूँ।)” ऋतेश ने कहा।

“No need to repeat again. Kamini is competent enough to handle any project. Anyway if I feel necessary, I can get details from Kamini. You carry on. (दुहराने की कोई आवश्यकता नहीं। कामिनी किसी भी प्रोजेक्ट को संभालने के लिए सक्षम है। फिर भी अगर मुझे आवश्यक लगा तो मैं कामिनी से जानकारी ले लूंगा। आप जारी रखिए।)” उन्होंने कहा।

पूरी बातें तो करीब करीब हो ही चुकी थीं और बॉस के आ जाने के बाद माहौल भी तनिक बदल गया था अतः मैं भी सहजता पूर्वक बोली, “रूपचंद जी, वैसे तो मैं आपके उद्योग के बारे मेंं काफी अच्छी तरह जान चुकी हूं और उसे किस तरह से आगे बढ़ाना है इसके बारे में मैं बॉस और हमारी टीम की एक मीटिंग करना चाहती हूं ताकि एक्सपैंशन के सम्बंध में हम एक अच्छी योजना तैयार कर सकें।” कहकर मैं ने बॉस की ओर समर्थन के लिए देखा।”

“Yes Kamini, you are right. Fix a meeting at 3:00 O’clock evening. We will discuss and finalize the plan. Mr. Roopchand, we will let you know about our plan today evening itself. If you like it then we will work on it and our final lay out of the plan will be ready by the end of this week. (हां कामिनी, तुम सही हो। आज शाम तीन बजे एक मीटिंग बुलाओ। हम उस पर विचार विमर्श करके योजना को अंतिम रूप देंगे। मि. रूपचन्द जी, हम आज ही शाम तक आपको योजना के बारे में जानकारी दे देंगे। अगर आपको हमारी योजना पसंद आई तो हम उसपर काम करेंगे और योजना की अंतिम रूपरेखा इसी सप्ताह के अंत तक तैयार हो जाएगा)”
 
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