desiaks
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Thriller stori नाइट क्लब
काल -कोठरी का दरवाजा चरमराता हुआ खुला और सेण्ट्रल जेल के जेलर ने अन्दर कदम रखा।
“मुझे हैरानी हो रही है।”
“कैसी हैरानी?”
वह एक खूबसूरत—सी लड़की थी।
बहुत खूबसूरत।
उम्र भी ज्यादा नहीं। मुश्किल से पच्चीस—छब्बीस साल।
वही उस काल—कोठरी के अन्दर कैद थी।
“यही सोचकर हैरानी हो रही है।” जेलर बोला—”कि तुमने अपनी अंतिम इच्छा के तौर पर मांगा भी तो क्या मांगा? सिर्फ कुछ पैन और कागज के कुछ दस्ते। आखिर तुम उनका क्या करोगी?”
लड़की ने गहरी सांस छोड़ी।
उसके चेहरे पर एक साथ कई रंग आकर गुजर गये।
“मैं एक कहानी लिखना चाहती हूं जेलर साहब!”
“कहानी!”
“हां, अपनी कहानी। अपनी जिन्दगी की कहानी।”
“ओह! यानि तुम आत्मकथा लिखना चाहती हो।”
“हां।”
“लेकिन उससे होगा क्या?”
“शायद कुछ हो। शायद मेरे साथ जो कुछ गुजरा है, वो एक दास्तान बनकर सारे जमाने को मालूम हो जाये।”
“मेरे तो तुम्हारी कोई बात समझ नहीं आ रही है।”
लड़की हंसी।
मगर उसकी हंसी में भी दर्द था।
तड़प थी।
“आप एक पुलिस ऑफिसर हैं, आप मेरी बात इतनी आसानी से समझ भी नहीं सकते। मेरी बात समझने के लिये दिमाग नहीं, बल्कि सीने में एक दर्द भरा दिल चाहिये।”
“लेकिन तुम भूल रही हो लड़की!” जेलर बोला—”कि तुम्हें फांसी होने में सिर्फ तीन दिन बाकी है।”
“मैं कुछ भी नहीं भूली।”
“इतने कम समय में तुम अपनी जिन्दगी की कहानी कैसे लिख पाओगी?”
“शायद लिख पाऊं। कोशिश करके तो देखा ही जा सकता है।”
“काफी जिद्दी हो।”
जेलर को उस लड़की से हमदर्दी थी।
कहीं—न—कहीं उसके दिल में उसके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर था।
“जिद नहीं- यह मेरी अंतिम इच्छा है जेलर साहब!” लड़की टूटे—टूटे, बिखरे—बिखरे स्वर में बोली—” आपने ही तो मेरी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा था। लेकिन मेरी इच्छा को पूरी करने में अगर आपको कोई मुश्किल पेश आ रही है, तो फिर रहने दीजिए।”
“नहीं- कोई मुश्किल नहीं है।” जेलर तुरन्त बोला—” मैं अभी तुम्हारे लिये पेन और कागज के कुछ दस्ते भिजवाता हूं।”
“थैंक्यू जेलर साहब! अपनी जिन्दगी और अपने इरादों से पूरी तरह हिम्मत हार चुकी यह बेबस लड़की आपके इस अहसान को कभी नहीं भुला पायेगी।”
जेलर वहां से चला गया।
थोड़ी ही देर में कुछ पैन और कागज के चार दस्ते जेल की उस काल—कोठरी में पहुंच गये थे।
काल -कोठरी का दरवाजा चरमराता हुआ खुला और सेण्ट्रल जेल के जेलर ने अन्दर कदम रखा।
“मुझे हैरानी हो रही है।”
“कैसी हैरानी?”
वह एक खूबसूरत—सी लड़की थी।
बहुत खूबसूरत।
उम्र भी ज्यादा नहीं। मुश्किल से पच्चीस—छब्बीस साल।
वही उस काल—कोठरी के अन्दर कैद थी।
“यही सोचकर हैरानी हो रही है।” जेलर बोला—”कि तुमने अपनी अंतिम इच्छा के तौर पर मांगा भी तो क्या मांगा? सिर्फ कुछ पैन और कागज के कुछ दस्ते। आखिर तुम उनका क्या करोगी?”
लड़की ने गहरी सांस छोड़ी।
उसके चेहरे पर एक साथ कई रंग आकर गुजर गये।
“मैं एक कहानी लिखना चाहती हूं जेलर साहब!”
“कहानी!”
“हां, अपनी कहानी। अपनी जिन्दगी की कहानी।”
“ओह! यानि तुम आत्मकथा लिखना चाहती हो।”
“हां।”
“लेकिन उससे होगा क्या?”
“शायद कुछ हो। शायद मेरे साथ जो कुछ गुजरा है, वो एक दास्तान बनकर सारे जमाने को मालूम हो जाये।”
“मेरे तो तुम्हारी कोई बात समझ नहीं आ रही है।”
लड़की हंसी।
मगर उसकी हंसी में भी दर्द था।
तड़प थी।
“आप एक पुलिस ऑफिसर हैं, आप मेरी बात इतनी आसानी से समझ भी नहीं सकते। मेरी बात समझने के लिये दिमाग नहीं, बल्कि सीने में एक दर्द भरा दिल चाहिये।”
“लेकिन तुम भूल रही हो लड़की!” जेलर बोला—”कि तुम्हें फांसी होने में सिर्फ तीन दिन बाकी है।”
“मैं कुछ भी नहीं भूली।”
“इतने कम समय में तुम अपनी जिन्दगी की कहानी कैसे लिख पाओगी?”
“शायद लिख पाऊं। कोशिश करके तो देखा ही जा सकता है।”
“काफी जिद्दी हो।”
जेलर को उस लड़की से हमदर्दी थी।
कहीं—न—कहीं उसके दिल में उसके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर था।
“जिद नहीं- यह मेरी अंतिम इच्छा है जेलर साहब!” लड़की टूटे—टूटे, बिखरे—बिखरे स्वर में बोली—” आपने ही तो मेरी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा था। लेकिन मेरी इच्छा को पूरी करने में अगर आपको कोई मुश्किल पेश आ रही है, तो फिर रहने दीजिए।”
“नहीं- कोई मुश्किल नहीं है।” जेलर तुरन्त बोला—” मैं अभी तुम्हारे लिये पेन और कागज के कुछ दस्ते भिजवाता हूं।”
“थैंक्यू जेलर साहब! अपनी जिन्दगी और अपने इरादों से पूरी तरह हिम्मत हार चुकी यह बेबस लड़की आपके इस अहसान को कभी नहीं भुला पायेगी।”
जेलर वहां से चला गया।
थोड़ी ही देर में कुछ पैन और कागज के चार दस्ते जेल की उस काल—कोठरी में पहुंच गये थे।