hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
मैने निशा के हाथ मे चाय का कप दिया और बोला- कल सुबह जल्दी उठ जाना
निशा- क्यो
मैं- खुद जान लेना .
निशा- चलो ठीक है पर अभी खाने मे क्या खाओगे, बता दो मैं जल्दी से बना देती हूँ.
मैं- अभी तो बस मेगि ही बना दो , पर सुबह मेरे लिए राबड़ी बना देना बहुत दिन हुए मैने राबड़ी नही पी है और हाँ दो रात की रोटी भी रख देना,
निशा- जो हुकम सरकार.
जब तक निशा बिज़ी थी मैं अनिता भाभी से मिलने चला गया पर हमेशा की तरह मेरी शक्की ताई की वजह से मैं भाभी से कुछ बात नही कर पाया , सो डिन्नर किया और अपना बिस्तर छत पर लगा दिया रात के करीब 11 बजे , मेरा रेडियो बज रहा था हमेशा की तरह 90’स के शानदार गाने स्लो आवाज़ मे उस ठंडी सी हवा के साथ मेरे दिल को धड़का रहे थे. और ना जाने कब मेरी बगल मे निशा आकर लेट गयी.
मैं- जानती हो मुझे बहुत दुख हुआ था जब पापा ने हमारे पुराने मकान को तुडवा कर ये कोठी बनवा दी, मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता इसमे रहना , मुझे बस मेरा पुराना मकान चाहिए.
निशा- पर टाइम के साथ हमे बदलना तो पड़ता है.
मैं- जानती हो जहा हम लेटे है पहले वहाँ एक कमरा था जिसमे मैं पढ़ता था, वो भी क्या दिन थे घर के साइड मे एक छप्पर था , और बाहर चबूतरे के पास एक पत्थर जिसपे बैठ के मैं कपड़े धोता था नहाता था.
निशा- मनीष, कुछ चीज़ो पर हमारा बस नही चलता है .
मैने निशा को अपने सीने से चिपका लिया और बोला- पर हम कोशिश तो कर सकते है ना.
मैं- बिल्कुल. याद है कैसे जब तुम पहली बार मुझे मिली थी.
निशा- कैसे भूल सकती हूँ मैं , कैसे थे तुम उस टाइम, और कपड़े पहन ने का बिल्कुल सलीका नही था तुम्हे पर बालो का वो अजय देवगन वाला स्टाइल मस्त लगता था तुम पर.
मैं- और तुम हाथो मे जो वो धागा बाँधती थी , और तुम्हारी चोटी जो आज भी आगे को रहती है .
निशा- तुम आज भी नोटीस करते हो.
मैं- तुम्हारा वो रूप मेरी आँखो मे बसा है निशा.
निशा- तुम मुझे किस रूप मे देखना चाहते हो.
मैं- कढ़ाई का सूट, घेर की सलवार और पाँवो मे लंबी जूतियाँ, हाथो मे हरी चूड़िया और चोटी मे लाल रिब्बन.
निशा- मनीष, तुम एक पल भी नही भूले हो ना.
मैं- कैसे भूल सकता हूँ, उस दिन तुम्हारा जनमदिन था और तुमने बरफी खिलाई थी मुझे.
निशा- जानते हो जब मैं तन्हा थी , अकेली थी बस ये लम्हे ही थे जिन्हे याद करके मेरे होंठो पर हँसी आ जाती थी. कितनी ही रातें उस खामोश चाँद को देख कर गुजर जाती थी मेरी. और एक टाइम तो लगने लगा था कि बस ऐसे ही अकेली पड़ जाउन्गी पर तभी जैसे जादू हो गया किसी ताज़ा हवा के झोंके की तरह तुम फिर से मुझे गुलज़ार करने आ गये.
मैं- पता है कितना तलाश किया मैने तुम्हे और शुक्र है किस्मत का जिसने तुम्हे फिर से मिलने मे मदद की. जानती हो फ़ौज़ कभी भी मेरी ज़िंदगी नही थी, पता नही कैसे शायद ये भी किस्मत का ही करिश्मा था कोई जो मुझे यहा ले गयी. मैं तो इसी गाँव मे रहना चाहता था पर आज देखो गाँव भी शहर ही बन गया है.
शुरू मे बहुत अच्छा लगता था इस गाँव का पहला लड़का जो सेना मे अफ़सर बना पर अब जैसे वर्दी बोझ लगती है.
निशा- नौकरी छोड़ नही सकते क्या.
मैं- नही यार. माना कि लाख परेशानिया है पर जब सरहद बुलाती है तो पैर अपने आप दौड़ पड़ते है, बेशक वहाँ पर एक सूनापन है पर फिर भी एक ज़िंदगी वहाँ पर भी है. फ़ौज़ ने मजबूरियों के साथ बहुत कुछ दिया भी है, अगर फ़ौज़ मे ना होता तो तुम्हे कभी नही ढूँढ पाता. मितलेश के बाद अगर मुझे किसी का भी ख्याल रहता तो बस तुम्हारा, जब भी मैं छुट्टी आता तो मेरी हर शाम उन ठिकानो पर गुजरती जहाँ तुम और मैं अक्सर मिलते थे. आज जमाने के साथ वो जगह बदल गयी हो पर मेरी यादो मे वो ज़िंदा है और रहेंगी, निशा मेरे लिए तुम क्या हो ये बस मैं जानता हूँ. हमेशा मेरी परछाई बन कर मेरे साथ चली हो तुम. जब कभी थक कर चूर हो जाता था बस तुम्हारी ही यादे थी जो मुझे हौंसला देती थी, कश्मीर की सर्द फ़िज़ा मे तुम्हारी ही यादो की गर्मी थी मेरे पास.
निशा- मनीष तुम सच मे पागल हो , कुछ भी बोलते रहते हो . तुम्हारी बस ये ही बात मुझे तब भी पसंद थी और आज भी पसंद है, जानते हो मैं जब भी गाँव के इन नये लड़के लड़कियो को देखती हूँ तो उनकी आँखो मे अपने लिए एक अलग ही तरह की रेस्पेक्ट देखती हूँ, उनकी आँखो मे मैं वो ही कशिश देखती हूँ जो हम मे थी, वो ही जैसे कोई परिंदा पिंज़रा तोड़ कर इस आसमान मे उड़ जाना चाहता हो. पर मनीष हम ने इस साथ की कीमत भी तो चुकाई है,
मैं- अब उस से कुछ फरक नही पड़ता है . किसी मे इतनी हिम्मत नही जो आज तुम्हारी तरफ आँख उठा कर देख सके, मैं जानता हूँ तुम अपने परिवार की तरफ से थोड़ी परेशान हो पर मेरा यकीन करो वो दौर अब बीत चुका है .
निशा- जानती हूँ . अब ये बाते छोड़ो और बताओ क्या प्लान है
मैं- प्लान तो कुछ खास नही पर इतनी गुज़ारिश है कि मैं तुम्हे कल साड़ी मे देखना चाहता हूँ .
निशा- मुझे मालूम था तुम्हारी यही फरमाइश होगी, चलो जाओ अब मैं कुछ देर सोना चाहती हूँ.
निशा- क्यो
मैं- खुद जान लेना .
निशा- चलो ठीक है पर अभी खाने मे क्या खाओगे, बता दो मैं जल्दी से बना देती हूँ.
मैं- अभी तो बस मेगि ही बना दो , पर सुबह मेरे लिए राबड़ी बना देना बहुत दिन हुए मैने राबड़ी नही पी है और हाँ दो रात की रोटी भी रख देना,
निशा- जो हुकम सरकार.
जब तक निशा बिज़ी थी मैं अनिता भाभी से मिलने चला गया पर हमेशा की तरह मेरी शक्की ताई की वजह से मैं भाभी से कुछ बात नही कर पाया , सो डिन्नर किया और अपना बिस्तर छत पर लगा दिया रात के करीब 11 बजे , मेरा रेडियो बज रहा था हमेशा की तरह 90’स के शानदार गाने स्लो आवाज़ मे उस ठंडी सी हवा के साथ मेरे दिल को धड़का रहे थे. और ना जाने कब मेरी बगल मे निशा आकर लेट गयी.
मैं- जानती हो मुझे बहुत दुख हुआ था जब पापा ने हमारे पुराने मकान को तुडवा कर ये कोठी बनवा दी, मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता इसमे रहना , मुझे बस मेरा पुराना मकान चाहिए.
निशा- पर टाइम के साथ हमे बदलना तो पड़ता है.
मैं- जानती हो जहा हम लेटे है पहले वहाँ एक कमरा था जिसमे मैं पढ़ता था, वो भी क्या दिन थे घर के साइड मे एक छप्पर था , और बाहर चबूतरे के पास एक पत्थर जिसपे बैठ के मैं कपड़े धोता था नहाता था.
निशा- मनीष, कुछ चीज़ो पर हमारा बस नही चलता है .
मैने निशा को अपने सीने से चिपका लिया और बोला- पर हम कोशिश तो कर सकते है ना.
मैं- बिल्कुल. याद है कैसे जब तुम पहली बार मुझे मिली थी.
निशा- कैसे भूल सकती हूँ मैं , कैसे थे तुम उस टाइम, और कपड़े पहन ने का बिल्कुल सलीका नही था तुम्हे पर बालो का वो अजय देवगन वाला स्टाइल मस्त लगता था तुम पर.
मैं- और तुम हाथो मे जो वो धागा बाँधती थी , और तुम्हारी चोटी जो आज भी आगे को रहती है .
निशा- तुम आज भी नोटीस करते हो.
मैं- तुम्हारा वो रूप मेरी आँखो मे बसा है निशा.
निशा- तुम मुझे किस रूप मे देखना चाहते हो.
मैं- कढ़ाई का सूट, घेर की सलवार और पाँवो मे लंबी जूतियाँ, हाथो मे हरी चूड़िया और चोटी मे लाल रिब्बन.
निशा- मनीष, तुम एक पल भी नही भूले हो ना.
मैं- कैसे भूल सकता हूँ, उस दिन तुम्हारा जनमदिन था और तुमने बरफी खिलाई थी मुझे.
निशा- जानते हो जब मैं तन्हा थी , अकेली थी बस ये लम्हे ही थे जिन्हे याद करके मेरे होंठो पर हँसी आ जाती थी. कितनी ही रातें उस खामोश चाँद को देख कर गुजर जाती थी मेरी. और एक टाइम तो लगने लगा था कि बस ऐसे ही अकेली पड़ जाउन्गी पर तभी जैसे जादू हो गया किसी ताज़ा हवा के झोंके की तरह तुम फिर से मुझे गुलज़ार करने आ गये.
मैं- पता है कितना तलाश किया मैने तुम्हे और शुक्र है किस्मत का जिसने तुम्हे फिर से मिलने मे मदद की. जानती हो फ़ौज़ कभी भी मेरी ज़िंदगी नही थी, पता नही कैसे शायद ये भी किस्मत का ही करिश्मा था कोई जो मुझे यहा ले गयी. मैं तो इसी गाँव मे रहना चाहता था पर आज देखो गाँव भी शहर ही बन गया है.
शुरू मे बहुत अच्छा लगता था इस गाँव का पहला लड़का जो सेना मे अफ़सर बना पर अब जैसे वर्दी बोझ लगती है.
निशा- नौकरी छोड़ नही सकते क्या.
मैं- नही यार. माना कि लाख परेशानिया है पर जब सरहद बुलाती है तो पैर अपने आप दौड़ पड़ते है, बेशक वहाँ पर एक सूनापन है पर फिर भी एक ज़िंदगी वहाँ पर भी है. फ़ौज़ ने मजबूरियों के साथ बहुत कुछ दिया भी है, अगर फ़ौज़ मे ना होता तो तुम्हे कभी नही ढूँढ पाता. मितलेश के बाद अगर मुझे किसी का भी ख्याल रहता तो बस तुम्हारा, जब भी मैं छुट्टी आता तो मेरी हर शाम उन ठिकानो पर गुजरती जहाँ तुम और मैं अक्सर मिलते थे. आज जमाने के साथ वो जगह बदल गयी हो पर मेरी यादो मे वो ज़िंदा है और रहेंगी, निशा मेरे लिए तुम क्या हो ये बस मैं जानता हूँ. हमेशा मेरी परछाई बन कर मेरे साथ चली हो तुम. जब कभी थक कर चूर हो जाता था बस तुम्हारी ही यादे थी जो मुझे हौंसला देती थी, कश्मीर की सर्द फ़िज़ा मे तुम्हारी ही यादो की गर्मी थी मेरे पास.
निशा- मनीष तुम सच मे पागल हो , कुछ भी बोलते रहते हो . तुम्हारी बस ये ही बात मुझे तब भी पसंद थी और आज भी पसंद है, जानते हो मैं जब भी गाँव के इन नये लड़के लड़कियो को देखती हूँ तो उनकी आँखो मे अपने लिए एक अलग ही तरह की रेस्पेक्ट देखती हूँ, उनकी आँखो मे मैं वो ही कशिश देखती हूँ जो हम मे थी, वो ही जैसे कोई परिंदा पिंज़रा तोड़ कर इस आसमान मे उड़ जाना चाहता हो. पर मनीष हम ने इस साथ की कीमत भी तो चुकाई है,
मैं- अब उस से कुछ फरक नही पड़ता है . किसी मे इतनी हिम्मत नही जो आज तुम्हारी तरफ आँख उठा कर देख सके, मैं जानता हूँ तुम अपने परिवार की तरफ से थोड़ी परेशान हो पर मेरा यकीन करो वो दौर अब बीत चुका है .
निशा- जानती हूँ . अब ये बाते छोड़ो और बताओ क्या प्लान है
मैं- प्लान तो कुछ खास नही पर इतनी गुज़ारिश है कि मैं तुम्हे कल साड़ी मे देखना चाहता हूँ .
निशा- मुझे मालूम था तुम्हारी यही फरमाइश होगी, चलो जाओ अब मैं कुछ देर सोना चाहती हूँ.