hotaks444
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ऐसे ही बातें करते करते वो 2-4 दिन में ही काफ़ी घुल गये. लेकिन इश्स घुलने मिलने का ज़रिया बनी वाणी. अब मामा का शक भी पूरी तरह दूर हो गया था और वो बच्चों के उपर नीचे रहने से परेशन नही होते थे. उन्होने शमशेर को अपने परिवार का हिस्सा मान लिया था. सिर्फ़ शमशेर और दिशा ही एक दूसरे से घुलमिल नही पाए तहे, क्यूंकी दोनों के मॅन में पाप था..... या शायद प्यार!
शनिवार का दिन था. शमशेर लॅबोरेटरी में बैठा 10थ क्लास के प्रॅक्टिकल के लिए केमिकल्स तैयार कर रहा था. उसके दिमाग़ से दिशा निकलने का नाम नही ले रही थी. करीब 10 दिन बीत जाने पर भी उसको दिशा की तरफ से कोई ऐसा सिग्नल नही मिल सका था जिससे वा उसको अपनी बाहों में ले सके. वो तो उससे बात ही खुलकर नही करती थी. उसने सोचा था की वाणी के आगे कुम्भ्कर्न वाली आक्टिंग करने के बाद शायद दिशा उसके सोते हुए कोई ऐसी हरकत करे. जिससे वा उसके मॅन की बात जान सके. पर अभी तक ऐसा कुच्छ नही हुआ था.
अचानक लॅब के बाहर से आवाज़ आई," मे आइ कम इन सर?"
"यस,प्लीज़!" शमशेर ने अंदर बैठा बैठे ही कहा. वो लॅब में अलमारियों के पीछे कुर्सी पर बैठा था.
नेहा ने अंदर आकर पूचछा,"सर आप कहाँ हो"
"अरे भाई यहाँ हूँ." शमशेर के हाथों में रंग लगा हुआ था.
नेहा उसके पास जाकर खड़ी हो गयी,"सर, अभी से होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं. अभी तो 5 दिन बाकी हैं" नेहा ने चुटकी ली. लड़कियाँ उससे काफ़ी घुल मिल गयी थी.
शमशेर ने रंग उसके गालों पर लगा दिया ओरबोला" लो खेल भी ली".
नेहा ने नज़रें झुका ली. बाकी लड़कियों की तरह उसके मंन में भी अपने सर के लिए कुच्छ ज़्यादा ही लगाव था. अल्हड़ मस्त उमर में ऐसे छबिले को देखकर ऐसा होना स्वाभिवीक ही था.
"बोलो! क्या बात है नेहा"
नेहा: सर, प्लीज़ गुस्सा मत होना! मुझे दिशा ने भेजा है.
शमशेर की आँखें चमक उठी," बोलो!"
नेहा," सर वो कह रही थी की.... की आप उससे अभी तक नाराज़ हो क्या?"
शमशेर: नाराज़!.... क्यों?
नेहा: सर... वो तो पता नही!
शमशेर ने साबुन से हाथ धोए और जाने उसके मॅन में क्या सूझी उसने नेहा के कमीज़ से अपने हाथ पोच्च दिए.
नेहा की सिसकी निकल गयी. सर के हाथ उसकी गॅंड के उभारों पर लगे थे. ये स्पर्श उसको इतना मधुर लगा की उसकी आँखे बंद हो गयी," सर ये आप क्या कर रहे हो?"
उसने आँखें बंद किए किए ही पूचछा.
शमशेर: होली खेल रहा हूँ. दिखता नही क्या. वो हँसने लगा. नेहा की तो जैसे सिटी बज गयी. हालाँकि दिशा के सामने वो यौवन और सुंदरती में वो फीकी लगती थी पर उसको हज़ारों में एक तो कहा ही जा सकता था.
नेहा. ना हिली ना बोली. बस जड़ सी खड़ी रही. उसका एक यार था गाँव में. केयी बार मौका मिलने पर उसकी चुचियाँ मसल चुका था, पर सर के हाथों की बात ही कुच्छ और थी.
शमशेर ने फिर उसके चूतदों पर थपकी दी, ये थपकी थोड़ी कड़क थी, नेहा सिहर गयी और उसके मुँह से निकला,"आ सस्स..इर्ररर!"
शमशेर: क्या मेडम? उसको पता था हौले हौले जवानी को तडपा तडपा कर उसका रस पीने का मज़ा ही अलग है.
नेहा: सर.. कुच्छ नही. उसका दिल कर रहा था जैसे सर उसके सारे शरीर में ऐसे ही सूइयां सी चुभोते रहे.थे
शमशेर: कुच्छ नही तो जाओ फिर!
नेहा कुच्छ ना बोली, एक बार तरसती निगाहों से शमशेर को देखा और वही खड़ी रही.
शमशेर समझ रहा था की अब इसका पानी निकलने ही वाला है. वो चाहता तो वहाँ कुच्छ भी कर सकता था, पर उसको डर था की ये दिशा की सहेली है, उसको बता दिया तो उसकी मदमस्त जवानी हाथ से निकल सकती थी.
शमशेर ने कहा," दिशा से कह देना, हां में उससे नाराज़ हूँ!
नेहा का जाने का मॅन तो नही था पर इश्स बार वा नही रुकी...
नेहा शमशेर की आँखों में वासना देख चुकी थी. कुच्छ भी हो उससे कुच्छ भी बुरा नही लगा था. लॅब से निकलते हुए उसकी आँखो की खुमारी को सॉफ सॉफ पढ़ा जा सकता था. उसकी चुचियाँ कसमसा रहा थी बुरी तरह. उनका हाल ऐसा हो रहा था जैसे बरसों से पिंजरे में क़ैद कबूतर आज़ाद होने के लिए फड्फाडा रहे हों. वह बाथरूम में गयी और अपनी चूत को कुरेदने लगी. वो बुरी तरह लाल हो रही थी. नेहा ने अपनी उंगली चूत में घुसा दी."आ...आह" उसकी आग और भड़क उठी. वह दिशा को सिर की कामुक छेड़छाड़ के बारे में बताना चाहती थी. पर उसको पता था दिशा को ये बातें बहुत गंदी लगती थी. कहीं उसकी सहेली उससे नाराज़ ना हो जाए. यही सोचकर उसने दिशा को कुच्छ भी ना बताने का फ़ैसला कर लिया. चूत में घुसी उंगली की स्पीड तेज होती चली गयी और आनंद की चरम सीमा पर पहुच कर वो दीवार से सत्कार हाँफने लगी.
क्लास में गयी तो उसका बुउरा हाल था. नेहा को बदहवास सी देखकर दिशा के मॅन में जाने क्या आया," कहाँ थी इतनी देर?"
नेहा: बाथरूम में गयी थी
दिशा: इतनी देर?
नेहा: अरे यार, फ्रेश होकर आई हूँ, सुबह नही जा पाई थी.
दिशा: सर के पास गयी थी?
नेहा: हां, पर वहाँ से तो 1 मिनट में ही आ गयी थी. नेहा ने झहूठ बोला!
दिशा: क...क्या सर.... क्या बोले सर जी
नेहा: हां वो नाराज़ हैं!
दिशा: पर क्यूँ?
नेहा: मुझे क्या पता, ये या तो तू जाने या तेरे प्यारे सर जी! नेहा ने आखरी शब्दों पर ज़्यादा ही ज़ोर डाला.
दिशा: एक बात बता, तेरा फॅवुरेट टीचर कौन है?
नेहा: क्यूँ?
दिशा: बता ना... प्लीज़
नेहा: वही जो तेरे हैं... सबके हैं... सभी की ज़ुबान पर एक ही तो नाम है आजकल!
दिशा जल सी गयी," क्यूँ मैने कब कहा! मेरा फॅवुरेट तो कोई नही है.
नेहा: फिर मुझसे क्यूँ पूचछा.
चल छोड़ छुट्टी होने वाली है.
छुट्टी के बाद दिशा ने देखा वाणी सर की गाड़ी के पास खड़ी है. दिशा ने उसको चलने को कहा.
वाणी: मैं तो गाड़ी में आउन्गि सर के साथ!
दिशा: चल पागल! तुझे शरम नही आती.
वाणी: मुझे क्यूँ शरम आएगी. अपनी....
तभी शमशेर गाड़ी के पास पहुँच गया.
वाणी: सर दीदी कह रही है तुझे सर की गाड़ी में बैठते हुए शरम नही आती. इतनी अच्च्ची गाड़ी तो है....
शमशेर: जिसको शरम आती है वो ना बैठें! गाड़ी को अनलॉक करते हुए उसने कहा.
वाणी खुश होकर अगली सीट पर बैठ गयी.
शमशेर ने गाड़ी स्टार्ट की और दिशा की और देखा. वा मुँह बना कर गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठ गयी. नेहा भी उसके साथ जा बैठी. और वो घर जा पहुँचे.
घर आकर नेहा ने सर से कहा," सिर मुझे कुच्छ मेथ के सवाल समझने हैं. मेडम ने वो छुडा दिए. आप समझा सकते हैं क्या?
शमशेर: क्यूँ नही, कभी भी!
नेहा: सर, अभी आ जाउ!
शमशेर:उपर आ जाओ!
दिशा को सर के लिए चाय बनानी थी. पर नेहा को अपने सर के पास अकेले जाने देना ठीक नही लगा. वो वाणी से बोली," वाणी तू चाय बना देगी क्या? मैं भी समझ लूँगी सवाल!
हां दीदी क्यूँ नही!
बॅग से अपना मेथ और रिजिस्टर निकाल कर दोनों सीधी उपर गयी. ये क्या? सर ने तो कमरे को बिल्कुल शहरी स्टाइल का बनवा दिया था. कमरे में ए.सी. लगवा दिया था.
दिशा के मुँह से निकला,"ये कब हुआ?"
शमशेर ने उसकी तरफ ना देखते हुए कहा," घबराओ मत बिजली का बिल मैं पे करूँगा!" मैने अंकल से बात कर ली है.
दिशा ने अपनी बात का ग़लत मतलब निकलते देख मुँह बना लिया और सर के सामने बेड पर बैठ गयी.
नेहा पर तो दिन वाली मस्ती च्छाई हुई थी. वा सर के बाजू में इश्स तरह बैठी की उसकी जाँघ सर के पंजों पर रखी हुई थी. दिशा को ये देख इतना गुस्सा आया की वो नीचे जाकर 2 कुर्सियाँ उठा लाई. और खुद कुर्सी पर बैठकर बोली," नेहा यहाँ आ जाओ! यहाँ से सही दिखेगा."
नेहा को उससे बड़ा डर लगता था. वा समझ गयी की उसने जाँघ को सिर के पंजे के उपर देख लिया है. वा चुप चाप उठी और कुर्सी पर जाकर बैठ गयी.
शमशेर ने अजीब नज़रों से दिशा को देखा और उन्हे सवाल समझने लगा.
टू बी कंटिन्यूड....
शनिवार का दिन था. शमशेर लॅबोरेटरी में बैठा 10थ क्लास के प्रॅक्टिकल के लिए केमिकल्स तैयार कर रहा था. उसके दिमाग़ से दिशा निकलने का नाम नही ले रही थी. करीब 10 दिन बीत जाने पर भी उसको दिशा की तरफ से कोई ऐसा सिग्नल नही मिल सका था जिससे वा उसको अपनी बाहों में ले सके. वो तो उससे बात ही खुलकर नही करती थी. उसने सोचा था की वाणी के आगे कुम्भ्कर्न वाली आक्टिंग करने के बाद शायद दिशा उसके सोते हुए कोई ऐसी हरकत करे. जिससे वा उसके मॅन की बात जान सके. पर अभी तक ऐसा कुच्छ नही हुआ था.
अचानक लॅब के बाहर से आवाज़ आई," मे आइ कम इन सर?"
"यस,प्लीज़!" शमशेर ने अंदर बैठा बैठे ही कहा. वो लॅब में अलमारियों के पीछे कुर्सी पर बैठा था.
नेहा ने अंदर आकर पूचछा,"सर आप कहाँ हो"
"अरे भाई यहाँ हूँ." शमशेर के हाथों में रंग लगा हुआ था.
नेहा उसके पास जाकर खड़ी हो गयी,"सर, अभी से होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं. अभी तो 5 दिन बाकी हैं" नेहा ने चुटकी ली. लड़कियाँ उससे काफ़ी घुल मिल गयी थी.
शमशेर ने रंग उसके गालों पर लगा दिया ओरबोला" लो खेल भी ली".
नेहा ने नज़रें झुका ली. बाकी लड़कियों की तरह उसके मंन में भी अपने सर के लिए कुच्छ ज़्यादा ही लगाव था. अल्हड़ मस्त उमर में ऐसे छबिले को देखकर ऐसा होना स्वाभिवीक ही था.
"बोलो! क्या बात है नेहा"
नेहा: सर, प्लीज़ गुस्सा मत होना! मुझे दिशा ने भेजा है.
शमशेर की आँखें चमक उठी," बोलो!"
नेहा," सर वो कह रही थी की.... की आप उससे अभी तक नाराज़ हो क्या?"
शमशेर: नाराज़!.... क्यों?
नेहा: सर... वो तो पता नही!
शमशेर ने साबुन से हाथ धोए और जाने उसके मॅन में क्या सूझी उसने नेहा के कमीज़ से अपने हाथ पोच्च दिए.
नेहा की सिसकी निकल गयी. सर के हाथ उसकी गॅंड के उभारों पर लगे थे. ये स्पर्श उसको इतना मधुर लगा की उसकी आँखे बंद हो गयी," सर ये आप क्या कर रहे हो?"
उसने आँखें बंद किए किए ही पूचछा.
शमशेर: होली खेल रहा हूँ. दिखता नही क्या. वो हँसने लगा. नेहा की तो जैसे सिटी बज गयी. हालाँकि दिशा के सामने वो यौवन और सुंदरती में वो फीकी लगती थी पर उसको हज़ारों में एक तो कहा ही जा सकता था.
नेहा. ना हिली ना बोली. बस जड़ सी खड़ी रही. उसका एक यार था गाँव में. केयी बार मौका मिलने पर उसकी चुचियाँ मसल चुका था, पर सर के हाथों की बात ही कुच्छ और थी.
शमशेर ने फिर उसके चूतदों पर थपकी दी, ये थपकी थोड़ी कड़क थी, नेहा सिहर गयी और उसके मुँह से निकला,"आ सस्स..इर्ररर!"
शमशेर: क्या मेडम? उसको पता था हौले हौले जवानी को तडपा तडपा कर उसका रस पीने का मज़ा ही अलग है.
नेहा: सर.. कुच्छ नही. उसका दिल कर रहा था जैसे सर उसके सारे शरीर में ऐसे ही सूइयां सी चुभोते रहे.थे
शमशेर: कुच्छ नही तो जाओ फिर!
नेहा कुच्छ ना बोली, एक बार तरसती निगाहों से शमशेर को देखा और वही खड़ी रही.
शमशेर समझ रहा था की अब इसका पानी निकलने ही वाला है. वो चाहता तो वहाँ कुच्छ भी कर सकता था, पर उसको डर था की ये दिशा की सहेली है, उसको बता दिया तो उसकी मदमस्त जवानी हाथ से निकल सकती थी.
शमशेर ने कहा," दिशा से कह देना, हां में उससे नाराज़ हूँ!
नेहा का जाने का मॅन तो नही था पर इश्स बार वा नही रुकी...
नेहा शमशेर की आँखों में वासना देख चुकी थी. कुच्छ भी हो उससे कुच्छ भी बुरा नही लगा था. लॅब से निकलते हुए उसकी आँखो की खुमारी को सॉफ सॉफ पढ़ा जा सकता था. उसकी चुचियाँ कसमसा रहा थी बुरी तरह. उनका हाल ऐसा हो रहा था जैसे बरसों से पिंजरे में क़ैद कबूतर आज़ाद होने के लिए फड्फाडा रहे हों. वह बाथरूम में गयी और अपनी चूत को कुरेदने लगी. वो बुरी तरह लाल हो रही थी. नेहा ने अपनी उंगली चूत में घुसा दी."आ...आह" उसकी आग और भड़क उठी. वह दिशा को सिर की कामुक छेड़छाड़ के बारे में बताना चाहती थी. पर उसको पता था दिशा को ये बातें बहुत गंदी लगती थी. कहीं उसकी सहेली उससे नाराज़ ना हो जाए. यही सोचकर उसने दिशा को कुच्छ भी ना बताने का फ़ैसला कर लिया. चूत में घुसी उंगली की स्पीड तेज होती चली गयी और आनंद की चरम सीमा पर पहुच कर वो दीवार से सत्कार हाँफने लगी.
क्लास में गयी तो उसका बुउरा हाल था. नेहा को बदहवास सी देखकर दिशा के मॅन में जाने क्या आया," कहाँ थी इतनी देर?"
नेहा: बाथरूम में गयी थी
दिशा: इतनी देर?
नेहा: अरे यार, फ्रेश होकर आई हूँ, सुबह नही जा पाई थी.
दिशा: सर के पास गयी थी?
नेहा: हां, पर वहाँ से तो 1 मिनट में ही आ गयी थी. नेहा ने झहूठ बोला!
दिशा: क...क्या सर.... क्या बोले सर जी
नेहा: हां वो नाराज़ हैं!
दिशा: पर क्यूँ?
नेहा: मुझे क्या पता, ये या तो तू जाने या तेरे प्यारे सर जी! नेहा ने आखरी शब्दों पर ज़्यादा ही ज़ोर डाला.
दिशा: एक बात बता, तेरा फॅवुरेट टीचर कौन है?
नेहा: क्यूँ?
दिशा: बता ना... प्लीज़
नेहा: वही जो तेरे हैं... सबके हैं... सभी की ज़ुबान पर एक ही तो नाम है आजकल!
दिशा जल सी गयी," क्यूँ मैने कब कहा! मेरा फॅवुरेट तो कोई नही है.
नेहा: फिर मुझसे क्यूँ पूचछा.
चल छोड़ छुट्टी होने वाली है.
छुट्टी के बाद दिशा ने देखा वाणी सर की गाड़ी के पास खड़ी है. दिशा ने उसको चलने को कहा.
वाणी: मैं तो गाड़ी में आउन्गि सर के साथ!
दिशा: चल पागल! तुझे शरम नही आती.
वाणी: मुझे क्यूँ शरम आएगी. अपनी....
तभी शमशेर गाड़ी के पास पहुँच गया.
वाणी: सर दीदी कह रही है तुझे सर की गाड़ी में बैठते हुए शरम नही आती. इतनी अच्च्ची गाड़ी तो है....
शमशेर: जिसको शरम आती है वो ना बैठें! गाड़ी को अनलॉक करते हुए उसने कहा.
वाणी खुश होकर अगली सीट पर बैठ गयी.
शमशेर ने गाड़ी स्टार्ट की और दिशा की और देखा. वा मुँह बना कर गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठ गयी. नेहा भी उसके साथ जा बैठी. और वो घर जा पहुँचे.
घर आकर नेहा ने सर से कहा," सिर मुझे कुच्छ मेथ के सवाल समझने हैं. मेडम ने वो छुडा दिए. आप समझा सकते हैं क्या?
शमशेर: क्यूँ नही, कभी भी!
नेहा: सर, अभी आ जाउ!
शमशेर:उपर आ जाओ!
दिशा को सर के लिए चाय बनानी थी. पर नेहा को अपने सर के पास अकेले जाने देना ठीक नही लगा. वो वाणी से बोली," वाणी तू चाय बना देगी क्या? मैं भी समझ लूँगी सवाल!
हां दीदी क्यूँ नही!
बॅग से अपना मेथ और रिजिस्टर निकाल कर दोनों सीधी उपर गयी. ये क्या? सर ने तो कमरे को बिल्कुल शहरी स्टाइल का बनवा दिया था. कमरे में ए.सी. लगवा दिया था.
दिशा के मुँह से निकला,"ये कब हुआ?"
शमशेर ने उसकी तरफ ना देखते हुए कहा," घबराओ मत बिजली का बिल मैं पे करूँगा!" मैने अंकल से बात कर ली है.
दिशा ने अपनी बात का ग़लत मतलब निकलते देख मुँह बना लिया और सर के सामने बेड पर बैठ गयी.
नेहा पर तो दिन वाली मस्ती च्छाई हुई थी. वा सर के बाजू में इश्स तरह बैठी की उसकी जाँघ सर के पंजों पर रखी हुई थी. दिशा को ये देख इतना गुस्सा आया की वो नीचे जाकर 2 कुर्सियाँ उठा लाई. और खुद कुर्सी पर बैठकर बोली," नेहा यहाँ आ जाओ! यहाँ से सही दिखेगा."
नेहा को उससे बड़ा डर लगता था. वा समझ गयी की उसने जाँघ को सिर के पंजे के उपर देख लिया है. वा चुप चाप उठी और कुर्सी पर जाकर बैठ गयी.
शमशेर ने अजीब नज़रों से दिशा को देखा और उन्हे सवाल समझने लगा.
टू बी कंटिन्यूड....