hotaks444
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"हमें सब याद है वतन, हम कुछ नहीं भूला करते ।" टॉर्च की रोशनी से दीबार के जर्रें जर्रें को चेक करता हुआ अलफांसे बोला-----'' भूल तुमसे हो रही है । अपनी सुरक्षा पर जरूरत से ज्यादा यकीन 'गुमान' होता है और मेरी राय तो यही होगी कि तुम गुमान न करो । यह बात अच्छी तरह से समझ लो कि विश्व के जासूसों से तुम्हारा टकराव है, उन्हें अगर यह जिद हो जाये कि पत्थर बोलना चाहिये तो हकीकत यह है कि पत्थर को बोलना ही पडे़गा । मुझे अपना काम करने दो--तुम् अपना करो ।" _
" मैं तो नहीं समझता चचा, कि कोई अादमी इस दीवार पर कैसे चढ़ सकता है ?"
"न तो तो तुम समझ सकोगे वतन, और न ही मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं' अलफांसे ने कहा----"हां, इतना तुम समझ लो कि जल्दी ही यहाँ कोई वड़ा घपला होने बाला है ।" "कैसा घपला है"
"जैसा कि मनजीत का विचार है कि इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने में कम-से-कम दो आदमियों का हाथ है ।" अलफांसे ने कहा---"बेशक उसका यह अनुमान ठीक है । निस्सन्देह कोई भी अकेला आदमी इतने कम अन्तराल में चारों सर्चलाइटों पर फायर नहीं कर सकता क्योंकि तुम्हारी यह प्रयोगशाला इतनी बड़ीं है कि कोई भी अकेला आदमी एक ही स्थान पर खड़ा होकर चारों को नहीं तोड़ सकता । मेरे ख्याल से तो इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने वाले चार ही आदमी होने चाहीए । किन्तु कम-से कम दो तो हैं ही ताकि एक आदमी इमारत की एक साइड पर खडा होकर दो सर्चलाइटों को कवर कर सके । खैर, मतलब इस बात से नहीं कि उनकी सख्या कितनी रही होगी । सोचना यह है कि सर्चलाइटों को तोड़कर वे एकदम खामोश क्यों हो गये हैं । इस खामोशी के पीछे कोई बहुत बड़ा रहस्य है ।"
" कुंछ भी रहस्य नहीं है, चचा--मुझसे पूछो ।" वतन ने कहा…"असल बात यह है कि जितना वे कर सकते थे, उन्होंने कर दिया । उनका मुख्य काम प्रयोगशाला में दाखिल होना है और यह वे सोच नहीं पा रहे हैं कि प्रयोगशाला में वे दाखिल केसे हों ?"
" हर आदमी के सोचने का अपना एक अलग तरीका होता है । वतन बेटे ।" अलफांसे ने कहा…"फिलहाल की घटनाओं से सोचने का जो तरीका मेरे सामने आया है, उससे मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि तुमने अपने गुरु से उसकी कमियां भी सीख ली हैं । दुश्मन का सर्चलाइट फोड़कर चुपचाप बैठ जाना, खामोशी साध इस बात का प्रमाण है कि दुश्मन वेहद चालाक है । वह मूर्ख नहीं कि सर्चलाइट तोड़कर यह प्रदर्शित करे कि वह वह यहां आ चुका है सर्चलाइर्टे तोड़ने का उसका मकसद--मेदान में अंधेरा करना और मैं दावे से कह सकता हूं कि वह किसी-न-किसी ढंग से इस अंधेरे का लाभ अवश्य उठा रहा है ।"
…'"आपके ख्याल से वह क्या लाभ उठा सकता है ?"
"यही पता होता तो अभी तक वह पकढ़ में आ चुका होता ।"
" आपके ख्याल से वह क्या इस अंधेरे का लाऊ उठाकर प्रयोगशाला के अन्दरा जा सकता है ?”
" कोशिश तो उसकी यही होगी ।"
" और मैं जानता हूं कि इस कोशिश मैं वह नाकाम हो जायेगा ।" वतन ने बेहद दृढता के साथ कहा ।
"'वतन ।" अलफांसे ने कहा-"तुम्हारी इस वक्त की बातों में वैसा ही आत्मविश्वास झलक रहा है जेसा कि बचपन में उस वक्त होता था जब यह कहा करते थे के-मैं चमंन का राजा बनूंगा ।' मगर याद रखो बेंटे ! जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास गरूर का रूप धारण कर लेता है, और तुम जानते हो कि गुरूर रावण का भी नहीं रहा ।"
'"मेरा आत्मविश्वास उस वक्त तक नहीं टूटेगा, चचा, जव तक तुम मुझे कोई ऐसी तरकीब न बता दो जिससे कोई आदमी अन्दर पहुच सके ।" वतन ने कहा---" मेरे कहने का मतलब यह है कि मैं यहां खड़ा हूं । एक मिनट के लिये यह सोचिये कि आपको प्रयोगशाला के अन्दर जाना है, मैदान में अंधेरा है, इस अंधेरे का
लाभ उठाकर अाप, जाइये अंदर---या--या-मुझे बता दीजिये कि कैसे जायेगे ?"
"मेरे द्विमाग में तो फिलहाल ऐसी कोई तरकीब है नहीं ।"
…-"बस, यहीं तो कारण है मेरे आत्मविश्वास का ।" वतन ने झट से कहाृ-"आप अन्तर्राष्टीय मुजरिम हैं, -- बड़े बड़े किलों की सुरक्षा भंग करके आपने अपने काम किये है । मैं जानता हूँ कि दुनिया का अगर कोई भी जासूस किसी काम को कर सकता है तो अाप उससे पहले उसे कर सकते हैं ! जब अभी तक अाप ही के दिमाग में प्रयोगशाला के अन्दर पहुचने की तरकीब नहीं अाई तो यह बात पक्की है कि अन्य किसी के दिमाग में भी नहीं आ सकती । और----मेरे आत्मविश्वास, निश्चिन्तता का सबसे बड़ा की कारण यहीं है ।"
"तुम्हरि सोचने के सारे आसार ही गलत हैं वतन !"
वतन मुस्कराया, बोला ----" यह कोई ऐसा वाक्य नही है चचा, जिसे मैं पहली बार सुन रहा हूं। मेरे सोचने का तरीका मेरे गुरू महान सिपाही को भी कभी पसन्द नहीं अाया । वे हमेशा यही वाक्य बोलते रहे जो अभी-अभी आपने कहा है ।"
" सही कहते थे वे ।"
"‘लेकिन मजबूरी यह है`चचा, कि जब तक कोई मुझे अपने तर्क से सन्तुष्ट न कर दे, तब तक मैं अपनी धारणाएं वहीं बदला करता ।" वतन कं लहजे में वही दृदता थी जो आज से बारह साल पहले उसकी विशेषता थी---------------आप जानते हैं कि बचपन में सब मुझसे कहा करते थे कि मैं राजा नहीं-वन सकता, लेकिन मेरे इस प्रश्न का जवाब कोई नहीं देता था कि क्यों नहीं बन सकता --न ही अभी मुझे इस सवाल का जवाब मिला और न ही इस बात को मैं कभी अपने दिलो--दिमाग से निकाल सका ।"
"खैर...तुम यहां आराम से खड़े होकर मुस्कराते रहो, मैं अपना काम करता हूँ ।" कहने के बाद अलंफासे उसका कोई भी जवाब सुने बिना मैदान के अंधेरे में गुम होगया । हा, वतन को, उसके हाथ रोशन टॉर्च अवश्य चमक रहीँ थी ।
बहुत-से सैनिक अपने हाथ में दबी टॉर्चों से मेदान मैं प्रकाश करने का प्रयास करते हुए दुश्मनों को इस तरह तलाशं कर रहे थे, जैसे कोई सूई तलाश कर रहे हों । कुछ देर पश्चात् वतन के लिये यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि हाथ में रोशन टॉर्च लिये इतने व्यक्तियों में से अलफांसे कौन-सा है । उसने अपने अास-पास देखा--धनुषटंकार भी गायब था । हाँ-----अपोलौ जरूर उसके करीब खड़ा था ।
और अलफांसे?
वह जान-बूझकर उन सैनिकों में धुल-मिल गया था जिनके हाथों में रोशन टॉर्चे थी । उनमें मिलकर कुछ देर बाद उसने टॉर्च बुझा दी और स्वयं अंधेरें छुपता हुआ एक तरफ को बढा ।
शीघ्र ही बह खाई के किनारे पहुचां ।।
खाई के किनारे पर पेट के बल लेट गया वह और फिर किनारे-किनारे तेजी के साथ रेंगने लगा । ऐसा लगता था, जैसे खाई के किनारे पर कुछ तलाश करने की कोशिश का रहा हो ।
एकाएक उसकी इच्छित वस्तु उसके हाथ की उंगलियों में फंस गई ।
और कुछ नहीं वह एक पतली किन्तु मज़बूत रेशम की डोरी थी ।।।
उसका ज्यादातर भाग खाई में लटका हुआ था और जो ऊपर था, उसे टटोलकर उसने वह भाग दूंढ़ लिया, जहां रेशम की यह डोरी मैदान के बीच जमीन में गड़ी एक छोटी-सी कील में बंधी थी
" खाई में कूदकर क्या करना किसी को ?” एक अन्य ने कहा ।
किन्तु खाई के पानी पर अनेक टॉर्चों का प्रकाशं नृत्य करने लगा ।
……"इससें कोई कूदा जरूर है ।" किसी ने कहा-वह देखो, पानी में बुलबुले उठ रहे हैं ।"
" मगर वह होगा कौन----- अरे !" कहते-कहते एकदम किसी के चौकने का स्वर-----" ये तो वाकई कोई है । वह देखो मगरमच्छ ने किंसी आदमी को मुंह में दबा रखा है।। यह देखो, उसे निगलता जा रहा है ।।।
"अरे !" एक अन्य अवाज-"ये तो हमारा ही कोई साथी है----- देखो उसकी वर्दी ।"
मैदान की उस दिशा में मौजूद ज्यादातर सैनिक उसी जगह एकत्रित हो गए अलफांसे चुपचाप अपनी टॉर्च बुझाकर उनके बीच से खिसक लिया ।
खिसकता भी क्यों नहीँ? वह जानता
था की अगली हरकत करने के लिए उसे इससे उचित अवसर न मिलेगा ।
इधर वतन भी उसी जगह पहुच गया था, पहुचते ही बोला---क्या बात है साथियों "
"महाराज....." एक सैनिक ने सम्मान के साथ कहा--"इस खाई में कोई कूदा है ।"
" हमारा कोई साथी ।" दूसरे ने कहा----“उसकं जिस्म पर वर्दी थी ।"
तीसरी अवाज----"उसे मगर खा गया । "
"हमारां कोई भी साथी इस खाई में कूदने की वेवकुफी नही करेगा ।" वतन का संयत स्वर--"या तो वह हमारे साथी की वर्दी में कोई दुश्मन था और नहीं तो धोखे में हमारा ही कोई साथी इसमें गिर गया है ।"
अभी वतन की बात पूरी हुई नही थी कि…छपाक ! उस स्थान से थोडी दूर हटकर पुनः किसी के पानी में गिरने की आवाज । झट से कई टॉर्चों की रोशनी अबाज पर जा ठहरी । एक पल के लिए उन्होंने अपनी ही जैसी वर्दी पहने एक जाने को देखा और अगले ही पल वह खाई में भरे पानी की गहराई में डूब गया ।
अब वतन चौंका ।
उसके किसी दूसरे सेनिक का खाई में गिर जाना महज इत्तफाक नहीं हो सकता । वतन के दिमाग में यहीं तेजी से विचार कौंधा…'क्या उसके सिपाहियों के लिबास में कोई दुश्मन हैं अगर है-तो-तो । सोचकर वतन के होंठों पर मुस्कान दौड़ गई ।
व्यर्थ ही दुश्मन मौत के कुएं में कूद रहे हैं ।
उसे पूर्ण विश्वास था कि खाई में मौजूद खतरनाक जानवर उसे छोड़ेंगें नहीं ।।
किंन्तु ----दुश्मन इस खाई में कूदे किस मकसद से होंगे ? प्रयोगशाला के अन्दर पहुंचने के लालच से उसके विवेक ने जबाव दिया ।
" नहीं ! भला वे इसमें क्यों कुदेंगे ?" 'वतन ने सोचा…यह रास्ता प्रगोगशाला के अन्दर नहीं, मौत के मुंह में जाता है ।'
"लेकिन...लेकिन.…दुश् मनों को इस खाईं के भेद का क्या पता ?"
अभी वह अपने दिमाग में इन विरोधी विचारों का तर्क-वितर्क कर ही रहा था कि पुनः-छपाक ।
वैसी ही तीसरी आवाज़ ।
अन्य सब तो पहले ही चिन्तित थे, लेकिन अब वतन भी बिना चिन्तित हुए न रह सका । उसके सैनिक 'जान-बूझकर तो खाई में कूद नहीं सकते और इतने सैनिकों के साथ खाई में गिरने का संयोग हो नहीं सकता । तो-----फिर यह हो क्या रहा है ?
उसके सैनिकों के कपड़े पहनकर दुश्मन खाई में कूद रहे हैं ? "
हां----शायद यही एक बात हो सकती है । बह भी तव जबकि कि दुश्मनों क्रो पता न हो कि यह खाई मौत का मुह है । अभी वह सोच ही रहा था कि चौथी बार किसी के खाई में कूदने की आवाज । अब तो वतन से रहा नहीं गया ।
अंधेरे का कलेजा चीरकर उसकी आवाज मैदान में गूंज उठी-"साथियो दुश्मनों की तलाश जोर-शोर से करो ।"
अजीब वातावरण था ।
इतने सैनिकों के वावजूद उन्हें मिल नहीं रहे थे । वतन के अादेशनुसार पुनः सभी सैनिकों ने तलाश जारी कर दी वतन मैदान के अंधेरे में खड़ा कुछ सोच ही रहा था कि हाथ में रोशन टॉर्च दबाए एक साये को इसने अपनी तरफ बढते देखा ।
"'कहो वतन बेटे 1" अलफांसे की आवाज-"क्या अब 'भी तुम्हारा ख्याल है कि दुश्मन यहा सक्रिय नहीं है ।"
-“यह मैंने कब कहा चचा ?" वतन ने कहा-“ज़ब सर्चलाइटें फूटी हैं तो निश्चित रूप से -दुश्मन सक्रिय है ही । इस बात का विरोध करता रहा हूँ और अब भी करता हूं कि मेरी सुरक्षाओं क्रो तोडकर दुश्मन प्रयोगशाला के अन्दर नहीं पहुंच सकता ।"
"जानते हो कि सैनिकों द्वारा इतनी देर की -खोज के बावजूद भी दुश्मन क्यों नहीं मिले ?"
" इसलिए कि वे भी हमारे ही सैनिक बने हुए थे ।"
" थे नहीं वतन, बेटे, हैं, कहो ।" अलफासे ने कहा ---" मेरा दावा है कि इन सेनिकों में अब भी दुश्मन छुपे हुऐ है ।"
" छुपकर करेंगे क्या वतन का अजीब-सा स्वर उभरा --"प्रेयोगशाला के अन्दर तो जा नहीं सकेंगे वे ।"
"खाई में कूदने वाले चार सैनिकों के बारे में तुम्हारा किया ख्याल ?"
" इन सैनिकों के रूप में वे दुश्मन थे ।" वतन ने बतायाा-“ओर प्रयोगशाला के अॉदर जाने के लिए है खाई में कूदे ।"
"क्यों, क्या दिमाग खराब था उनका ?" अलफांसे ने कहा…"जो जान-बूझकर मौत के मुंह में छलांग लगाएंगे ?"
" मैं तो नहीं समझता चचा, कि कोई अादमी इस दीवार पर कैसे चढ़ सकता है ?"
"न तो तो तुम समझ सकोगे वतन, और न ही मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं' अलफांसे ने कहा----"हां, इतना तुम समझ लो कि जल्दी ही यहाँ कोई वड़ा घपला होने बाला है ।" "कैसा घपला है"
"जैसा कि मनजीत का विचार है कि इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने में कम-से-कम दो आदमियों का हाथ है ।" अलफांसे ने कहा---"बेशक उसका यह अनुमान ठीक है । निस्सन्देह कोई भी अकेला आदमी इतने कम अन्तराल में चारों सर्चलाइटों पर फायर नहीं कर सकता क्योंकि तुम्हारी यह प्रयोगशाला इतनी बड़ीं है कि कोई भी अकेला आदमी एक ही स्थान पर खड़ा होकर चारों को नहीं तोड़ सकता । मेरे ख्याल से तो इन चार सर्चलाइटों को तोड़ने वाले चार ही आदमी होने चाहीए । किन्तु कम-से कम दो तो हैं ही ताकि एक आदमी इमारत की एक साइड पर खडा होकर दो सर्चलाइटों को कवर कर सके । खैर, मतलब इस बात से नहीं कि उनकी सख्या कितनी रही होगी । सोचना यह है कि सर्चलाइटों को तोड़कर वे एकदम खामोश क्यों हो गये हैं । इस खामोशी के पीछे कोई बहुत बड़ा रहस्य है ।"
" कुंछ भी रहस्य नहीं है, चचा--मुझसे पूछो ।" वतन ने कहा…"असल बात यह है कि जितना वे कर सकते थे, उन्होंने कर दिया । उनका मुख्य काम प्रयोगशाला में दाखिल होना है और यह वे सोच नहीं पा रहे हैं कि प्रयोगशाला में वे दाखिल केसे हों ?"
" हर आदमी के सोचने का अपना एक अलग तरीका होता है । वतन बेटे ।" अलफांसे ने कहा…"फिलहाल की घटनाओं से सोचने का जो तरीका मेरे सामने आया है, उससे मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि तुमने अपने गुरु से उसकी कमियां भी सीख ली हैं । दुश्मन का सर्चलाइट फोड़कर चुपचाप बैठ जाना, खामोशी साध इस बात का प्रमाण है कि दुश्मन वेहद चालाक है । वह मूर्ख नहीं कि सर्चलाइट तोड़कर यह प्रदर्शित करे कि वह वह यहां आ चुका है सर्चलाइर्टे तोड़ने का उसका मकसद--मेदान में अंधेरा करना और मैं दावे से कह सकता हूं कि वह किसी-न-किसी ढंग से इस अंधेरे का लाभ अवश्य उठा रहा है ।"
…'"आपके ख्याल से वह क्या लाभ उठा सकता है ?"
"यही पता होता तो अभी तक वह पकढ़ में आ चुका होता ।"
" आपके ख्याल से वह क्या इस अंधेरे का लाऊ उठाकर प्रयोगशाला के अन्दरा जा सकता है ?”
" कोशिश तो उसकी यही होगी ।"
" और मैं जानता हूं कि इस कोशिश मैं वह नाकाम हो जायेगा ।" वतन ने बेहद दृढता के साथ कहा ।
"'वतन ।" अलफांसे ने कहा-"तुम्हारी इस वक्त की बातों में वैसा ही आत्मविश्वास झलक रहा है जेसा कि बचपन में उस वक्त होता था जब यह कहा करते थे के-मैं चमंन का राजा बनूंगा ।' मगर याद रखो बेंटे ! जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास गरूर का रूप धारण कर लेता है, और तुम जानते हो कि गुरूर रावण का भी नहीं रहा ।"
'"मेरा आत्मविश्वास उस वक्त तक नहीं टूटेगा, चचा, जव तक तुम मुझे कोई ऐसी तरकीब न बता दो जिससे कोई आदमी अन्दर पहुच सके ।" वतन ने कहा---" मेरे कहने का मतलब यह है कि मैं यहां खड़ा हूं । एक मिनट के लिये यह सोचिये कि आपको प्रयोगशाला के अन्दर जाना है, मैदान में अंधेरा है, इस अंधेरे का
लाभ उठाकर अाप, जाइये अंदर---या--या-मुझे बता दीजिये कि कैसे जायेगे ?"
"मेरे द्विमाग में तो फिलहाल ऐसी कोई तरकीब है नहीं ।"
…-"बस, यहीं तो कारण है मेरे आत्मविश्वास का ।" वतन ने झट से कहाृ-"आप अन्तर्राष्टीय मुजरिम हैं, -- बड़े बड़े किलों की सुरक्षा भंग करके आपने अपने काम किये है । मैं जानता हूँ कि दुनिया का अगर कोई भी जासूस किसी काम को कर सकता है तो अाप उससे पहले उसे कर सकते हैं ! जब अभी तक अाप ही के दिमाग में प्रयोगशाला के अन्दर पहुचने की तरकीब नहीं अाई तो यह बात पक्की है कि अन्य किसी के दिमाग में भी नहीं आ सकती । और----मेरे आत्मविश्वास, निश्चिन्तता का सबसे बड़ा की कारण यहीं है ।"
"तुम्हरि सोचने के सारे आसार ही गलत हैं वतन !"
वतन मुस्कराया, बोला ----" यह कोई ऐसा वाक्य नही है चचा, जिसे मैं पहली बार सुन रहा हूं। मेरे सोचने का तरीका मेरे गुरू महान सिपाही को भी कभी पसन्द नहीं अाया । वे हमेशा यही वाक्य बोलते रहे जो अभी-अभी आपने कहा है ।"
" सही कहते थे वे ।"
"‘लेकिन मजबूरी यह है`चचा, कि जब तक कोई मुझे अपने तर्क से सन्तुष्ट न कर दे, तब तक मैं अपनी धारणाएं वहीं बदला करता ।" वतन कं लहजे में वही दृदता थी जो आज से बारह साल पहले उसकी विशेषता थी---------------आप जानते हैं कि बचपन में सब मुझसे कहा करते थे कि मैं राजा नहीं-वन सकता, लेकिन मेरे इस प्रश्न का जवाब कोई नहीं देता था कि क्यों नहीं बन सकता --न ही अभी मुझे इस सवाल का जवाब मिला और न ही इस बात को मैं कभी अपने दिलो--दिमाग से निकाल सका ।"
"खैर...तुम यहां आराम से खड़े होकर मुस्कराते रहो, मैं अपना काम करता हूँ ।" कहने के बाद अलंफासे उसका कोई भी जवाब सुने बिना मैदान के अंधेरे में गुम होगया । हा, वतन को, उसके हाथ रोशन टॉर्च अवश्य चमक रहीँ थी ।
बहुत-से सैनिक अपने हाथ में दबी टॉर्चों से मेदान मैं प्रकाश करने का प्रयास करते हुए दुश्मनों को इस तरह तलाशं कर रहे थे, जैसे कोई सूई तलाश कर रहे हों । कुछ देर पश्चात् वतन के लिये यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि हाथ में रोशन टॉर्च लिये इतने व्यक्तियों में से अलफांसे कौन-सा है । उसने अपने अास-पास देखा--धनुषटंकार भी गायब था । हाँ-----अपोलौ जरूर उसके करीब खड़ा था ।
और अलफांसे?
वह जान-बूझकर उन सैनिकों में धुल-मिल गया था जिनके हाथों में रोशन टॉर्चे थी । उनमें मिलकर कुछ देर बाद उसने टॉर्च बुझा दी और स्वयं अंधेरें छुपता हुआ एक तरफ को बढा ।
शीघ्र ही बह खाई के किनारे पहुचां ।।
खाई के किनारे पर पेट के बल लेट गया वह और फिर किनारे-किनारे तेजी के साथ रेंगने लगा । ऐसा लगता था, जैसे खाई के किनारे पर कुछ तलाश करने की कोशिश का रहा हो ।
एकाएक उसकी इच्छित वस्तु उसके हाथ की उंगलियों में फंस गई ।
और कुछ नहीं वह एक पतली किन्तु मज़बूत रेशम की डोरी थी ।।।
उसका ज्यादातर भाग खाई में लटका हुआ था और जो ऊपर था, उसे टटोलकर उसने वह भाग दूंढ़ लिया, जहां रेशम की यह डोरी मैदान के बीच जमीन में गड़ी एक छोटी-सी कील में बंधी थी
" खाई में कूदकर क्या करना किसी को ?” एक अन्य ने कहा ।
किन्तु खाई के पानी पर अनेक टॉर्चों का प्रकाशं नृत्य करने लगा ।
……"इससें कोई कूदा जरूर है ।" किसी ने कहा-वह देखो, पानी में बुलबुले उठ रहे हैं ।"
" मगर वह होगा कौन----- अरे !" कहते-कहते एकदम किसी के चौकने का स्वर-----" ये तो वाकई कोई है । वह देखो मगरमच्छ ने किंसी आदमी को मुंह में दबा रखा है।। यह देखो, उसे निगलता जा रहा है ।।।
"अरे !" एक अन्य अवाज-"ये तो हमारा ही कोई साथी है----- देखो उसकी वर्दी ।"
मैदान की उस दिशा में मौजूद ज्यादातर सैनिक उसी जगह एकत्रित हो गए अलफांसे चुपचाप अपनी टॉर्च बुझाकर उनके बीच से खिसक लिया ।
खिसकता भी क्यों नहीँ? वह जानता
था की अगली हरकत करने के लिए उसे इससे उचित अवसर न मिलेगा ।
इधर वतन भी उसी जगह पहुच गया था, पहुचते ही बोला---क्या बात है साथियों "
"महाराज....." एक सैनिक ने सम्मान के साथ कहा--"इस खाई में कोई कूदा है ।"
" हमारा कोई साथी ।" दूसरे ने कहा----“उसकं जिस्म पर वर्दी थी ।"
तीसरी अवाज----"उसे मगर खा गया । "
"हमारां कोई भी साथी इस खाई में कूदने की वेवकुफी नही करेगा ।" वतन का संयत स्वर--"या तो वह हमारे साथी की वर्दी में कोई दुश्मन था और नहीं तो धोखे में हमारा ही कोई साथी इसमें गिर गया है ।"
अभी वतन की बात पूरी हुई नही थी कि…छपाक ! उस स्थान से थोडी दूर हटकर पुनः किसी के पानी में गिरने की आवाज । झट से कई टॉर्चों की रोशनी अबाज पर जा ठहरी । एक पल के लिए उन्होंने अपनी ही जैसी वर्दी पहने एक जाने को देखा और अगले ही पल वह खाई में भरे पानी की गहराई में डूब गया ।
अब वतन चौंका ।
उसके किसी दूसरे सेनिक का खाई में गिर जाना महज इत्तफाक नहीं हो सकता । वतन के दिमाग में यहीं तेजी से विचार कौंधा…'क्या उसके सिपाहियों के लिबास में कोई दुश्मन हैं अगर है-तो-तो । सोचकर वतन के होंठों पर मुस्कान दौड़ गई ।
व्यर्थ ही दुश्मन मौत के कुएं में कूद रहे हैं ।
उसे पूर्ण विश्वास था कि खाई में मौजूद खतरनाक जानवर उसे छोड़ेंगें नहीं ।।
किंन्तु ----दुश्मन इस खाई में कूदे किस मकसद से होंगे ? प्रयोगशाला के अन्दर पहुंचने के लालच से उसके विवेक ने जबाव दिया ।
" नहीं ! भला वे इसमें क्यों कुदेंगे ?" 'वतन ने सोचा…यह रास्ता प्रगोगशाला के अन्दर नहीं, मौत के मुंह में जाता है ।'
"लेकिन...लेकिन.…दुश् मनों को इस खाईं के भेद का क्या पता ?"
अभी वह अपने दिमाग में इन विरोधी विचारों का तर्क-वितर्क कर ही रहा था कि पुनः-छपाक ।
वैसी ही तीसरी आवाज़ ।
अन्य सब तो पहले ही चिन्तित थे, लेकिन अब वतन भी बिना चिन्तित हुए न रह सका । उसके सैनिक 'जान-बूझकर तो खाई में कूद नहीं सकते और इतने सैनिकों के साथ खाई में गिरने का संयोग हो नहीं सकता । तो-----फिर यह हो क्या रहा है ?
उसके सैनिकों के कपड़े पहनकर दुश्मन खाई में कूद रहे हैं ? "
हां----शायद यही एक बात हो सकती है । बह भी तव जबकि कि दुश्मनों क्रो पता न हो कि यह खाई मौत का मुह है । अभी वह सोच ही रहा था कि चौथी बार किसी के खाई में कूदने की आवाज । अब तो वतन से रहा नहीं गया ।
अंधेरे का कलेजा चीरकर उसकी आवाज मैदान में गूंज उठी-"साथियो दुश्मनों की तलाश जोर-शोर से करो ।"
अजीब वातावरण था ।
इतने सैनिकों के वावजूद उन्हें मिल नहीं रहे थे । वतन के अादेशनुसार पुनः सभी सैनिकों ने तलाश जारी कर दी वतन मैदान के अंधेरे में खड़ा कुछ सोच ही रहा था कि हाथ में रोशन टॉर्च दबाए एक साये को इसने अपनी तरफ बढते देखा ।
"'कहो वतन बेटे 1" अलफांसे की आवाज-"क्या अब 'भी तुम्हारा ख्याल है कि दुश्मन यहा सक्रिय नहीं है ।"
-“यह मैंने कब कहा चचा ?" वतन ने कहा-“ज़ब सर्चलाइटें फूटी हैं तो निश्चित रूप से -दुश्मन सक्रिय है ही । इस बात का विरोध करता रहा हूँ और अब भी करता हूं कि मेरी सुरक्षाओं क्रो तोडकर दुश्मन प्रयोगशाला के अन्दर नहीं पहुंच सकता ।"
"जानते हो कि सैनिकों द्वारा इतनी देर की -खोज के बावजूद भी दुश्मन क्यों नहीं मिले ?"
" इसलिए कि वे भी हमारे ही सैनिक बने हुए थे ।"
" थे नहीं वतन, बेटे, हैं, कहो ।" अलफासे ने कहा ---" मेरा दावा है कि इन सेनिकों में अब भी दुश्मन छुपे हुऐ है ।"
" छुपकर करेंगे क्या वतन का अजीब-सा स्वर उभरा --"प्रेयोगशाला के अन्दर तो जा नहीं सकेंगे वे ।"
"खाई में कूदने वाले चार सैनिकों के बारे में तुम्हारा किया ख्याल ?"
" इन सैनिकों के रूप में वे दुश्मन थे ।" वतन ने बतायाा-“ओर प्रयोगशाला के अॉदर जाने के लिए है खाई में कूदे ।"
"क्यों, क्या दिमाग खराब था उनका ?" अलफांसे ने कहा…"जो जान-बूझकर मौत के मुंह में छलांग लगाएंगे ?"