Antarvasna Sex चमत्कारी - Page 10 - SexBaba
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Antarvasna Sex चमत्कारी

अजीत—क्या तुम हमे उस आदमी…ख़तरा का पता बता सकते हो….?

गणपत राई—उसका पता तो मुझे भी नही मालूम….लेकिन उसने कहा था कि वो मेरी बेटी की शादी मे ज़रूर आएगा.

मेघा—तब तो तुम्हे ये भी पता होगा कि आदी अब इस दुनिया मे नही रहा.

गणपत—हाँ, मैने सुना है मेडम, लेकिन मुझे इस बात पर यकीन नही है…क्यों कि वो तो लंडन मे थे जबकि ये हादसा यहाँ इंडिया मे हुआ था…ये कैसे संभव है…? एक आदमी दो दो जगह कैसे हो सकता है जब की दूरी इतनी ज़्यादा हो….?

अजीत—तुम्हारी बात मे दम है.

गणपत—अच्छा साहब मैं अब चलता हूँ....ये कुछ पैसे हैं रख लीजिए...बाकी के भी मैं कैसे भी करके चुका दूँगा....और हो सके तो मेरी बेटी को आशीर्वाद ज़रूर आईएगा.

आनंद—ये पैसे मेरी तरफ से अपनी बेटी को दे देना....अगर कोई भी और ज़रूरत पड़े तो बेहिचक माँग लेना...मैं ज़रूर आउन्गा शादी मे.

गणपत—बहुत बहुत शुक्रिया साहब.

गणपत वहाँ से चला गया लेकिन उसने सब के दिल मे एक नयी ऊर्जा और विश्वास का संचार कर दिया था….सब को एक बार फिर से आदी के जीवित होने की उम्मीद लगने लगी थी.

मेघा—भगवान करे कि हमारा आदी सही सलामत हो.

अजीत—भाई साहब..मुझे लगता है कि हमे एक बार फिर नये सिरे से तहक़ीक़त शुरू करनी चाहिए.

आनंद—शायद तुम ठीक कहते हो……मैं आज ही लंडन बात कर के किसी डीटेक्टिव एजेन्सी को हाइयर करता हूँ इस काम के लिए.
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वही दूसरी तरफ आदी घपा घप माधवी की चूत को पेल पेल कर उसका योनि छिद्र चौड़ा कर रहा था…आख़िर कार हर शुरुआत का एक
अंत भी निश्चित होता है….ज़ोर ज़ोर धक्के लगाते हुए वो लंबी लंबी पिचकारिया माधवी की चूत मे छोड़ने लगा.

उसी समय मुनीश अपने महल मे प्रवेश किया….आदी ने माधवी को पूरी तरह से एक नये अनिवर्चनिय आनंदमयी संभोग सुख की अनुभूति
करवा दी थी…माधवी भी आदी के साथ ही एक बार पुनः स्खलित हो गयी.

तभी दोनो के कानो मे किसी के आने की पद्चाप सुनाई पड़ी….दोनो तुरंत एक दूसरे के जिस्म से अलग होकर अपने अपने वस्त्र शीघ्रता से पहनने लगे.

आदी ने माधवी के कक्ष से बाहर निकलने के लिए तेज़ी से जैसे दरवाजे के बाहर कदम बढ़ाया वैसे ही उधर से आ रहे मुनीश से टकरा गया.

आदी को इतनी रात मे अपने कक्ष मे देख कर मुनीश चौंक गया…..आदी और माधवी का पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था…..लेकिन
उसके मंन मे किसी भी प्रकार का संदेहास्पद विचार नही आया.

मुनीश (मज़ाक मे)—वाह दोस्त….हमारे आते ही भाग रहे हो…क्या कर रहे थे अंदर हमारी धरम पत्नी के साथ…?

आदी (मन मे)—कहीं इस चूतिए ने सब देख तो नही लिया….? नही…नही…उसने अगर देखा होता तो ऐसे बात नही करता, फिर भी सावधानी ज़रूरी है.

आदी—बस दोस्त तुमसे ही मिलने आया था…तुम मिले नही तो भाभी जी से ही थोड़ी बाते करने लगा.

मुनीश—ऐसी क्या बात हो गयी कि हमारी याद इतनी रात को आ गयी मेरे यार को…..? और मेरे आते ही भाग रहे हो, क्या माजरा है भाई…?

आदी—कुछ नही तुम्हारा इंतज़ार करते करते थक गया था…इसलिए अब सोने जा रहा था.

मुनीश—इतना पसीना क्यो आ रहा है तुम दोनो को…? वो भी देव लोक मे….? बड़े विश्मय की बात है.

आदी—दरअसल मैने बुरा ख्वाब देखा था जिसकी वजह से पसीना आ गया और फिर वही ख्वाब भाभी को सुनाया तो उनको भी पसीना आने लगा.

मुनीश—खैर छोड़ो…आओ बैठो, बाते करते हैं.

आदी—अब सुबह बाते करेंगे…रात ज़्यादा हो गयी है, मुझे जोरो की भी नीद आ रही है….

मुनीश—ठीक है भाई…शुभ रात्रि

आदी वहाँ से जल्दी से निकल कर अपने कक्ष मे आ कर राहत की साँस ली.......वही मुनीश माधवी से बाते करने मे लग गया.

मुनीश—क्या बात है, देवर भाभी मे बड़ी गहरी दोस्ती हो गयी है…..?

माधवी—क्यो आपको जलन होने लगी है….?

मुनीश—मुझे क्यो जलन होगी भला….ये तो अच्छी बात है, आदी का भी मन लग जाएगा यहाँ…उसको यहाँ कुछ दिन तक रोकना आसान हो जाएगा.

माधवी—हाँ ये तो है….चलो अब विश्राम करते हैं.

मुनीश—अभी विश्राम कहाँ, मेरी जान….अभी तो कुछ और करने का दिल हो रहा है.

माधवी—आज मेरी इच्छा बिल्कुल भी नही है….जो भी करना है कल कर लेना.

लेकिन माधवी के लाख मना करने के बाद भी मुनीश नही माना और लगातार मिन्नतें करता रहा…आख़िर मजबूर हो कर माधवी ने भी हाँ कर दी.

दोनो पूर्ण रूप से निर्वस्त्र हो कर काम क्रीड़ा मे लिप्त हो गये…किंतु मुनीश को आज संभोग करने मे बिल्कुल भी आनंद नही आ रहा
था….उसे कल की तुलना मे माधवी की चूत आज बहुत ज़्यादा ढीली लग रही थी.

मुनीश (सोचते हुए)—माधवी की चूत आज इतनी ज़्यादा ढीली क्यो लग रही है….? रोज तो ज़ोर से ताक़त लगाने पर मेरा लंड अंदर जाता था उसकी चूत मे, जबकि आज चूत मे लंड रखते ही कब घुस गया पता ही नही चला बिना कोई मेहनत किए ही….ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं
किसी बहुत बड़े खोखले बेलन मे अपना हथियार अंदर बाहर कर रहा हूँ….एक ही दिन मे माधवी की चूत इतनी चौड़ी कैसे हो गयी…..?
कहीं ऐसा तो नही की मेरे आने से पहले…………………….
 
अपडेट-82

लेकिन माधवी के लाख मना करने के बाद भी मुनीश नही माना और लगातार मिन्नतें करता रहा…आख़िर मजबूर हो कर माधवी ने भी हाँ कर दी.

दोनो पूर्ण रूप से निर्वस्त्र हो कर काम क्रीड़ा मे लिप्त हो गये…किंतु मुनीश को आज संभोग करने मे बिल्कुल भी आनंद नही आ रहा
था….उसे कल की तुलना मे माधवी की चूत आज बहुत ज़्यादा ढीली लग रही थी.

मुनीश (सोचते हुए)—माधवी की चूत आज इतनी ज़्यादा ढीली क्यो लग रही है….? रोज तो ज़ोर से ताक़त लगाने पर मेरा लंड अंदर जाता था उसकी चूत मे, जबकि आज चूत मे लंड रखते ही कब घुस गया पता ही नही चला बिना कोई मेहनत किए ही….ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं
किसी बहुत बड़े तालाब मे तैर रहा हूँ….एक ही दिन मे माधवी की चूत इतनी चौड़ी कैसे हो गयी…..? कहीं ऐसा तो नही कि मेरे आने से पहले…………………….

अब आगे……….

मुनीश (मन मे)—नही…नही..मैं भी ना क्या क्या बिना मतलब की बाते सोचने लगा…..ऐसा कुछ भी नही होगा, ये सिर्फ़ मेरा वहम है, ऐसा सोचना भी पाप है…….लेकिन जब आदी का मानसिक संतुलन पूरी तरह से कंट्रोल मे नही होता तब वो ऐसी ही हरकते करता है और पहले
भी कर चुका है, जब मैने उसको शक्तिया दी थी….ऐसा अगर सच मे कहीं फिर हो गया तो मेरा क्या होगा…..?

मुनीश (मन मे)—नही आदी ऐसा बिल्कुल नही करेगा….वो मेरा दोस्त है…..माधवी उसकी भाबी है और भाभी तो माँ समान होती है……लेकिन धरती लोक मे तो देवर भाभी मे अक्सर ऐसे संबंध बनते रहते हैं….मैं सच मे पागल हो जाउन्गा लगता है…..मुझे आदी को हर पल
अपने साथ रखना होगा….जिससे वो कुछ कर ही नही पाएगा मेरे होते हुए……हाँ, ये ही ठीक रहेगा.

मुनीश यही सब मन मे सोचते हुए माधवी के बगल मे लेट कर सो गया…..माधवी तो कब की मीठी नीद मे जा चुकी थी.

अगले दिन मुनीश सुबह थोड़ा लेट उठा…लेकिन माधवी को अपने साथ ना देख कर जल्दी से आदी के कमरे की तरफ भागा लेकिन आदी को ध्यान मे बैठे देख कर खुश हो गया.

मुनीश (मन मे)—मैं भी ना कितना पागल हूँ….ये भी भूल गया कि दिन मे उसको सिर्फ़ ऋषि की यादे ही रहती हैं अब से मैं रात मे ध्यान दूँगा.

मुनीश डेली दिन मे सो जाता और रात मे आदी को लेकर घूमने निकल जाता या फिर अपने रूम मे जागता रहता जिसकी वजह से आदी और माधवी के बीच कुछ नही हो सका….इस दौरान ऋषि दिन मे ध्यान मे मग्न रहता और अपनी शक्तियो को नियंत्रित करने की कोशिश करता पर कुण्डलिनी को जागृत करने से पहले ही उसका ध्यान टूट जाता था.

ऐसे ही एक दिन मुनीश जब दिन के समय थोड़ा बाहर चला गया किसी काम से पर जब वापिस लौटा तो अपने कक्ष मे माधवी और ऋषि दोनो को पसीने से लथपथ देखा तो चौंक गया.

मुनीश—क्या बात है ऋषि भाई…..? आज तुम्हे इतना पसीना क्यो निकल रहा है….?

ऋषि—ऋषि…..? कौन ऋषि….? दोस्त मेरा नाम आदी है….क्या मेरा नाम भी भूल गये….? और जहाँ तक पसीने का सवाल है तो मैं मेहनत का काम कर रहा था इसलिए आया होगा.

ये सुन कर मुनीश के होश उड़ गये…..वो कभी माधवी को तो कभी आदी को देखता लेकिन उसको कुछ समझ मे नही आ रहा था.

मुनीश—माधवी तुम्हे पसीना क्यो आ रहा है…?

माधवी—वो मैं आदी की मदद कर रही थी.

मुनीश (मन मे)—ये आदी कैसे बन गया…? अभी तो इसको ऋषि होना चाहिए था……लगता है कि धरती लोक की तरह इसको भी एक हफ्ते मे शिफ्ट चेंज करने की आदत है….ऐसे मे तो मैं बर्बाद हो जाउन्गा….ये तो स्वर्ग लोक मे भी मुझे नरक के दर्शन करवा रहा है….इसको
इतना बड़ा संभोग अस्त्र और सम्मोहन शक्ति देकर मैने खुद अपने ही पैर मे कुल्हाड़ी मार ली है…..अब मैं हमेशा दिन रात इसके साथ रहूँगा.

वही दूसरी तरफ परी लोक का हाल बहाल हो चुका था.....हर तरफ अंधकार ही अंधकार फैला हुआ था…..ऐसा लग रहा था जैसे कि यहाँ के लोगो ने सदियो से सूर्योदय के दर्शन ही ना किए हो…सभी इस बात से अंजन थे की एक बहुत बड़ा ख़तरा तेज़ी से उनके द्वार तक आ पहुचा है.

एक लाश परी लोक मे उस आलीशान महल के बाहर खड़ी होकर अपनी आग्नेय नेत्रो से उसकी बुलंदियो को घूर रही थी..उसने दाँत किट
किटाये, अपनी नर कंकाल जैसी टाँग की ठोकर परी लोक के प्रवेश द्वार पर मारी.
 
एक जोरदार आवाज़ के साथ दरवाजा केवल खुला ही नही बल्कि टूट कर दूर जा गिरा….खटर पटर करती हुई वो लाश महल के मध्य बने गर्दन से होते हुए राज महल के मुख्य द्वार तक आ गयी….पुनः दाँत किट किटाकर जोरदार ठोकर मारी परिणाम स्वरूप महल का बेहद
मजबूत मुख्य दरवाजा टूट कर अंदर जा गिरा.

लाश महल के सभा ग्रह मे पहुच गयी वाहा से गुजर कर वो एक कक्ष मे आ गयी…चारो तरफ घना अंधेरा फैला हुआ था…..

“ककककक…कौन है” एक भयाक्रांत आवाज़ गूँजी—“क्क्क…कौन है वहाँ”

“प्रकाश चालू कर के देखो ” नर कंकाल के जबड़े हीले—“मैं आया हूँ……..अंधेरा कायम रहे”

“क्क्क…कौन है” इस एक मात्र शब्द के साथ कट्ट की आवाज़ हुई और पूरा सभा ग्रह मशाल की रोशनी से भर गया और फिर.

“आआआआआआआहह…..नाआहहिईीईईईई’’ एक जोरदार चीख गूँज उठी…..ये चीख महारानी की थी….सामने एक बिस्तर पर उनकी पुत्री
और परी लोक की राजकुमारी सोनालिका मरणासन्न अवस्था मे लेटी हुई थी.

लाश ने अपना डरावना चेहरा उठा कर उपर देखा…..महारानी की चीख सुन कर महाराज और सैनिक दौड़ते हुए कमरे की ओर भागे..किंतु
वहाँ का दृश्य देख कर वही ठिठक कर खड़े हो गये.

किसी मे भी आगे बढ़ने की हिम्मत नही हो रही थी…..सब के सब एक जगह खड़े थे….खड़े क्या थे अगर ये लिखा जाए कि खड़े खड़े थर थर काँप रहे तो ज़्यादा मुनासिब होगा.

लाश को देख कर सब के साथ साथ महाराज की भी घिग्घी बँधी हुई थी…..आँखे इस तरह फटी पड़ी थी जैसे कि पलको से निकल कर ज़मीन पर कूद पड़ने वाली हो.

“पहचाना मुझे’’ लाश ने उन्हे घूरते हुए पूछा.

महाराज (हकलाते हुए)—कककक…..कील्विष्ह…..नही..नही..तुम जिंदा नही हो सकते.

लाश—मैने कब कहा कि मैं जिंदा हूँ…..?

महाराज—प्प्प्प्प…फिरररर…..?

लाश—कब्र मे अकेला पड़ा पड़ा बोर हो रहा था….सोचा क्यो ना परी लोक की राजकुमारी को ले आऊ

महाराज (चीखते हुए)—तुम ज़रूर कोई बहुरुपीए हो….मैने तुम्हे नही मरवाया था.

लाश—मेरी हत्या और तेरी वजह से….? भला तू मुझे क्यो मरवाएगा….? मगर तेरी इस बेटी ने ज़रूर मेरे साथ धोखा किया था….कोई स्वप्न मे
भी ये नही सोच सकता था कि एक लड़की मुझे मरवाएगी….कील्विष् को…?

महारानी (चीखते हुए)—मेरी बेटी निर्दोष है……तुम यहाँ क्यो आए हो….? कौन हो तुम….?

कील्विष्—कमाल करते हो तुम सब भी……बताया तो अभी अभी की काबरा मे पड़ा बोर हो रहा था.

कील्विष् धीरे धीरे सोनालिका की तरफ बढ़ने लगा…जिससे सभी के मन मे ख़ौफ़ पैदा हो गया….महाराज ने जल्दी से एक सैनिक के हाथ से
तलवार छीन ली.

महाराज ( ज़ोर से)—तू इस तरह से नही मानेगा...हरामजादे......मैं तेरी गर्दन काट दूँगा.....बोल कौन है तुऊउ.. ?

जवाब मे सिर उपर उठाए वो लाश (कील्विष्) ज़ोर ज़ोर से खिल खिला कर हँस पड़ी…..महल मे ऐसी आवाज़ गूँजी जैसे की कोई खूनी भेड़िया अपनी थूथनी उठाए ज़ोर ज़ोर से रो रहा हो.

भयाक्रांत हो कर महाराज उस लाश पर तलवार से लगातार जल्दी जल्दी वार करने लगे….मगर आश्चर्य उनकी तलवार का एक भी वार कील्विष् को कोई नुकसान नही पहुचा पाया.

कील्विष् (हँसते हुए)—हाहहहहाहा……अंधेरा कायम रहे.

उसकी इस भयानक खौफनाक हँसी ने सभी के हृदय मे दहशत पैदा कर दी……कील्विष् सोनालिका के पास पहुच कर झटके से उसे बाल पकड़ के घसीट कर बिस्तर से नीचे गिरा दिया.

कील्विष्—हाहहहाहा…..मैने कहा था नाअ कििई मैंन्न वापिस्सस आउन्गा……मैं तो तुझसे मोहब्बत करता था किंतु तूने मुझे ठुकरा कर उस आदिरीशि से विवाह कर लिया…इतना ही नही तूने मुझे आदिरीशि के हाथो छल से मरवाया……अब देख जो काम मैं पहले नही कर सक वो अब करूँगाअ….हाहहाहा

सोनालिका की आँखो से पानी बह रहा था….कमज़ोरी के कारण दर्द मे चीख भी नही पा रही थी..किंतु उसके होठ धीरे धीरे हिल रहे थे
…शायद वो आदी…आदी चिल्लाने की कोशिश का रही थी.

महारानी (हाथ जोड़ते हुए)—छोड़ दो मेरी बेटी को….? वो निर्दोष है…मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ…चाहे तो मेरी जान ले लो.

कील्विष्—हाहहाहा……अंधेरा कायम रहे…….हाहहहाहा

कील्विष् सोनालिका को बालो से पकड़ कर घसीटते हुए अचानक सोनालिका को लेकर चिर अंधकार मे कहीं गायब हो गया…सारे महल मे दहशत का माहौल व्याप्त हो गया.

महारानी (रोते हुए)—महाराज…कुछ करिए…..मेरी पुत्री को वापिस लाने का कोई अति शीघ्र उपाय कीजिए…वो पहले से ही अस्वस्थ है.
 
महाराज—हम समझते हैं महारानी….वो हमारी भी तो पुत्री है….पता नही ये कील्विष् जिंदा कैसे हो गया…? अब तो गुरु जी ही कुछ मार्ग बता सकते हैं.

महारानी—लेकिन वो तो तपस्या मे बैठे हैं.

महाराज—जो भी हो अब वही हमारा मार्ग दर्शन कर सकते हैं.

महारानी—तो फिर विलंब मत करिए…चलिए जल्दी से.

दोनो तुरंत वहाँ से गुरु देव के पास जाने के लिए निकल पड़े महल से.....उनके आगे और पीछे काई सैनिक मशाल लेकर चल रहे थे जिससे दोनो को चलने मे कोई दिक्कत ना हो.

तब तक अकाल और बकाल भी परिलोक की सीमा तक पहुच चुके थे.

वही अजगर के सैनिक लगातार गाओं मे अत्याचार किए जा रहे थे….लोगो को घर से जबरन निकाल निकाल कर उनका खून चूस रहे थे और उनका माँस भक्षण कर रहे थे.

औरतो और लड़कियो के साथ ज़बरदस्ती संभोग किया जा रहा था…..ऐसी बर्बरता पूर्ण अत्याचार करने का मुख्य उद्देश्य राजनंदिनी को उसके
घर से बाहर निकालना था.

किंतु राजनंदिनी अगर घर मे होती तो बाहर निकलती ना वो तो एक जंगल मे अकेले भटक रही थी…जहाँ उसकी अपने प्रियतम से प्रथम मुलाक़ात हुई थी.

इधर धरती मे चारो दोस्त बराबर श्री के घर पर बाहर से ही निगाह जमाए हुए थे…किंतु उससे बात करने का कोई भी सू-अवसर उनको प्राप्त नही हो रहा था.

आनंद ने इंग्लेंड मे आदी की खोज बीन के लिए करीब दस डीटेक्टिव एजेन्सीस को हाइयर कर दिया था साथ ही ये एलान भी कर दिया कि जो भी आदी के विषय मे जानकारी देगा उसको मूह मागा इनाम दिया जाएगा.

आज गणपत राई की लड़की की शादी है जिसके लिए सभी बड़ी उत्सुकता से रेडी हो कर उसमे सम्मिलित होने जा रहे हैं लेकिन सब का वास्तविक मकसद तो ख़तरा से मिलना है.

वहाँ जाने के लिए श्री भी बेहद उतावली थी…अगर ये कहा जाए कि सबसे अधिक उतावली और अधीर वही थी तो इसमे कोई अतिसंयोक्ति नही होगी.

चारो दोस्त घर के बाहर ही डेरा जमाए हुए बैठे थे….सभी लोग शादी मे जाने के लिए जैसे ही बाहर निकले तो श्री को देख कर चारो की आँखे चमक उठी.

गंगू—श्री बाहर आ रही है…जल्दी से जाकर उससे बात करो…ये सुनहरा मौका हमारे हाथ से नही जाना चाहिए.

पंगु—तुम सही कहते हो…हम अपने दोस्त की क़ुर्बानी को यो ही जाया नही जाने देंगे…मैं अभी जाता हूँ.

चुतड—तुम यही बैठो…मैं बात करूँगा श्री से.

नॅंगू—ठीक है जल्दी जाओ…इससे पहले कि वो लोग कहीं निकल जाए.

चुतड—ठीक है.

चुतड जल्दी से उठ कर श्री के पास अपने तेज़ कदमो से बढ़ने लगा…..किंतु जैसे ही वो उसके समीप पहुचने वाला था कि किसी ने उसको उठा कर नीचे पटक दिया.

चुतड—आआहह…मर गया…..किसने पटका मुझे…? लेकिन मेरे पास तो कोई भी नही है…शायद जल्दबाज़ी मे मैं किसी पत्थर से टकरा कर गिरा होऊँगा.

उसने दुबारा उठ कर आगे बढ़ना चाहा लेकिन इस बार भी किसी ने उसको उठा कर ज़मीन मे पटक दिया….तब तक श्री गाड़ी मे बैठ कर बाकी सब के साथ निकल गयी.

उसके निकलते ही तीनो दोस्त भाग कर चुतड के पास आ गये और उसको भला बुरा कहने लगे…..उनके हाथ से श्री से बात करने और ऋषि के बारे कुछ जानने का खूबसूरत मौका जो निकल गया था.

नॅंगू—इससे एक काम भी ठीक से नही होता.

गंगू—सब किए कराए पर पानी फेर दिया.

चुतड—इसमे मेरी कोई ग़लती नही है….मैं श्री के पास तक पहुच ही गया था…उसको आवाज़ देने ही वाला था कि उससे पहले ही किसी ने मुझे उठा कर ज़ोर से पटक दिया.

पंगु—ये झूठ बोल रहा है….जब तेरे पास कोई था ही नही तो तुझे पटकेगा कौन….?

चुतड—मैं झूठ नही बोल रहा हूँ…ऋषि की कसम….ऐसा लगा कि किसी ने मुझे उठा कर पटका है…एक बार नही बल्कि दो दो बार.

नांगु—हमे समय गवाने से बेहतर है की उनका पीछा किया जाए…कहीं ना कहीं एकांत मे बात करने का मौका मिल भी सकता है.

तीनो—हां…सही है…जल्दी चलो.

क्या होगा गणपत राई की बेटी की शादी मे…..?
क्या चारो दोस्तो की श्री से बात होगी.... ?
श्री का ऱियेक्शन क्या होगा…..?
राजनंदिनी को जब हो रहे अत्याचार का पता चलेगा तो क्या होगा….?
क्या होगा सोनालिका का….?
आदी स्वर्ग लोक मे क्या नया हंगामा करेगा….?

वेट टिल नेक्स्ट अपडेट……..
 
अपडेट—83

राजनंदिनी एक पेड़ के नीचे बैठ कर उस पेड़ को बड़े ध्यान से देखे जा रही थी….ये पेड़ ऋषि और राजनंदिनी के प्रथम मिलन का यादगार
था, जहाँ दोनो अक्सर घंटो एक दूसरे की बाहों मे समाए हुए बाते करते रहते थे.

उनका दोनो का अधिकतर समय इस पेड़ की पनाह मे ही गुजर जाता था….उस पेड़ पर दोनो ने एक दूसरे का नाम लिख रखा था…आज भी राजनंदिनी उस पेड़ मे ऋषि के हाथो से लिखा हुआ अपना नाम देख कर उसकी याद मे तड़प उठती थी….यहाँ आने के बाद उसके दिल को बहुत सुकून मिलता था.

कुछ पल के लिए ही सही वो अपने सभी दुख दर्द भूलकर ऋषि की यादो मे खो जाती थी…आज भी वो इस समय ऋषि के ही ख्यालो मे पूरी तरह से समर्पित हो चुकी थी.

राजनंदिनी (पेड़ मे लिखे ऋषि के नाम को चूमते हुए)—ऋषि आख़िर तुम कब आओगे….? ये जुदाई अब मुझसे सहन नही होती है….कैसे समझोउ इस पागल दिल को, तुम ही आ कर इसको कुछ समझाओ ना…..? ये दिल मेरी कोई भी बात नही मानता है…..इसको आज भी
अपने उसी ऋषि का इंतज़ार है जिसकी आगोश मे इसे तीनो लोको का सुख मिलता था.

फिर उसकी याद, फिर उसकी आस, फिर उसकी बातें,
आए दिल लगता है तुझे तड़पने का बहुत शौक है

तुझे भूलने की कोशिशें कभी कामयाब ना हो सकी,
तेरी याद शाख-ए-गुलाब है, जो हवा चली तो महक गयी.

राजनंदिनी की आँखो मे कब नमी उतर आई उसको खुद भी इसका आभास नही हुआ….वो तो बस अपने ऋषि की बाहों मे यादो के ज़रिए समाई हुई उससे बाते किए जा रही थी.

अगर वहाँ से गुजरने वाला कोई राहगीर उसको इस अवस्था मे देख लेता तो निश्चित ही उससे पागल समझ लेता जो ऐसे वीरान जगह मे खुद से ही बाते किए जा रही है.

तभी वहाँ से आकाश मार्ग से देवर्षी नारद गुज़रते हुए उनकी नज़र राजनंदिनी पर चली गयी…वो कौतूहल वश कुछ देर वही रुक कर उसका प्रेमलाप देखने लगे.

अंततः उनसे जब रहा नही गया तो वो राजनंदिनी के पास पहुच गये…किंतु उसको पता नही चला…वो तो अपने प्रियतम के प्रेम धुन मे
बावरी होकर यू ही बड़बड़ाये जा रही थी.

नारद—नारायण….नारायण..! क्या हुआ पुत्री, किस की यादो मे खोई हुई हो….?

राजनंदिनी (चौंक कर)—ह्म्‍म्म्म…ककककक…कौन…..? प्रणाम महत्मन.

नारद—कल्यणमस्तु..! इस सुनसान जगह पर क्या कर रही हो पुत्री…?

राजनंदिनी—आप तो महात्मा हैं..आप सब जानते हैं कि मेरा दुख क्या है…?

नारद (कुछ देर आँखे बंद कर के देखने के बाद)—हमम्म….इस समय तुम्हारे गाओं को तुम्हारी नितांत आवश्यकता है…तुम्हे यथा शीघ्र वहाँ जाना चाहिए…..

राजनंदिनी—मुनिवर…मेरा ऋषि कब मिलेगा मुझे….?

नारद—सभी लोको का भ्रमण करो .मुसीबत मे फँसे .लोगो की सहयता करो….शायद कहीं तुम्हारी मुलाक़ात हो जाए

राजनंदिनी—आपका कोटि कोटि धन्यवाद मुनिवर..प्रणाम

नारद—तुम्हारा कल्याण हो..‼

राजनंदिनी देवर्षी नारद के वहाँ से जाते ही तुरंत एक बार फिर से उस पेड़ पर ऋषि के नाम के उपर अपने होंठो की मोहर लगा कर गाओं के लिए निकल गयी.

गाओं मे इस समय हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था….अजगर के खूनी दरिंदे आज मुखिया की एकलौती लड़की को जबरन घसीट कर ले जा रहे थे.

मुखिया—मेरी लड़की को छोड़ दो…भगवान से डरो…अरे पापीओ उस मासूम ने तुम लोगो का क्या बिगाड़ा है.

एक पिशाच—हाहहाहा…..हमारा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता….यहाँ का भगवान अजगर है…शैतान ज़िंदाबाद

2न्ड पिशाच—इसकी लड़की को भी नग्न कर के रात मे नाथ दो…तब पता चलेगा अजगर से बग़ावत का अंज़ाम

वो अभी मुखिया की लड़की के कपने फाड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाए ही थे कि वहाँ अचानक तेज़ हवाएँ चलने लगी और इन हवाओं ने कुछ ही पल मे भयानक चक्रवात का रूप धारण कर लिया जिसने अजगर के आधे से अधिक पिशाच सैनिको को अपने तूफ़ानी भंवर जाल मे लपेट लिया…..,किसी को भी कुछ देखने समझने का मौका ही नही मिला.

ये सब इतना आकस्मात हुआ कि सब हैरान रह गये…किंतु मुखिया और बाकी गाओं वालो के चेहरो मे जैसे रौनक लौट आई थी.

एक पिशाच—कककक…कौन है…? किसे अपने प्राणो का भय नही है….?

राजनंदिनी का नाम सुन कर बचे कुचे सैनिक उस तरफ देखने लगे…..सामने राजनंदिनी बेहद क्रोध मे आँखे किसी डूबते सूरज के जैसी एकदम लाल किए खड़ी थी…उसके मुख के अंदर से निकल रही फुफ्कार की वजह से वहाँ चक्रवात का निर्माण हो रहा था…उसके खुले हुए केश और गुस्से से भरा हुआ ये रूप देख कर सभी को वो बिल्कुल रणचंडी लग रही थी.

“राआज्जजज्ज…नंदिनिईीईई” सभी गाओं वाले एक स्वर मे खुशी से चिल्ला उठे.
 
2न्ड पिशाच—ओह्ह…राजनंदिनीई…आख़िर तू बिल मे से बाहर निकल ही आई…हाहहाहा…जाओ पकड़ लो ईससीए

सभी खूनी पिशाच तेज़ी से राजनंदिनी को पकड़ने के लिए दौड़े..किंतु जैसे ही उसके नज़दीक पहुचे…राजनंदिनी ने ज़ोर से क्रोधावेश मे अपने खुले हुए केशो को झटक दिया.

और अगले ही क्षण उसके इन खुले केशो ने असंख्य अत्यंत विषधर नागो का रूप ले लिया…और उसके शरीर से नीचे उतर कर उन सैनिको
की तरफ टेडी मेडी चाल से तेज़ी से चलने लगे….

कुछ ही समय मे वहाँ पर साँपों की जैसे बाढ़ सी आ गयी…सभी सैनिक चारो तरफ से नागो से घिर गये.. राजनंदिनी का ऐसा विकराल रूप देख कर सभी बुरी तरह से भयभीत होकर इधर उधर भागने की कोशिश करने लगे…किंतु जिस तरफ भी मुड़ते साँपों का झुंड उनके उपर टूट पड़ता.

चारो तरफ अजगर के उन पिशाच सैनिको की दर्दनाक चीखे हवाओं मे गूंजने लगी….

उधर स्वर्ग लोक मे एक नयी सुबह के साथ आदी ने जैसे ही आँखे खोली तो अपने सामने मुनीश को बैठे हुए पाया जिसने अर्ध मिश्रित मुश्कान के साथ आदि का स्वागत किया.

मुनीश—नयी सुबह मुबारक हो दोस्त.

अदिई—तुम्हे भी दोस्त…लेकिन इतनी सुबह तुम यहाँ कैसे…?

मुनीश (मन मे)—अपनी ही करनी का फल भोग रहा हूँ….ना तुझे वरदान देता ना मेरी ऐसी हालत होती…पत्नी के होते हुए भी उसको छोड़
कर सारी रात तेरी निगरानी करनी पड़ रही है….आज इसको दिन मे ही किसी अप्सरा के पास ले जाता हूँ..उसके साथ संभोग कर लेगा तो रात मे चिंता नही रहेगी मुझे.

अदिई—किन ख़यालो मे खो गये दोस्त….?

मुनीश—तुम जल्दी से तैय्यार हो जाओ..फिर मैं तुम्हे असली सुख के दर्शन कराता हूँ आज स्वर्ग मे.

अदिई (जमहाई लेते हुए)—आज नही फिर कभी..आज मैं आराम करना चाहता हूँ..तुम घूम आओ थोड़ी देर.

मुनीश (मन मे)—हाँ बेटा…मैं यहाँ घूमने जाउ और तू इधर मेरा कल्याण कर दे...ऐसी ग़लती हरगिज़ नही करूँगा मैं अब

मुनीश—नही..आलस्य करना अच्छी बात नही है…तुम्हे आज चलना ही होगा..अगर मुझे अपना दोस्त मानते हो तो

आदी—ठीक है भाई….तेरी दोस्ती के लिए ये भी सही

आदी के स्नान ध्यान के पश्चात दोनो तैय्यार हो गये बाहर जाने के लिए…लेकिन आदी की आँखे बार बार माधवी को तलाश कर रही थी जो
अभी तक नज़र नही आई थी…आदी के मन की ये हालत मुनीश समझ गया.

मुनीश (मन मे)—अच्छा हुआ कि मैने आज सुबह ही माधवी को अपनी माँ से मिलने भेज दिया…लगता है उसको कुछ दिन वही रुकने को
बोल दूं और माँ को यहाँ बुला लेता हूँ…आदी जब माधवी को नही देखेगा तो शायद सुधर जाए.

आदी—माधवी भाभी नही दिख रही हैं…मैं उन्हे बता कर आता हूँ…नही तो वो बेवजह परेशान होंगी

मुनीश—मैने उसको बता दिया है…चलो अब जल्दी यहाँ से

आदी (बेमन से)—अच्छा....ठीकककक है...फिर

मुनीश उसको लेकर एक अप्सरा के पास चला गया...जो बेहद खूबसूरत थी....उसकी सुंदरता को देखते ही आदी की काम शक्ति भी जागृत हो गयी.

मुनीश—तुम मेरे दोस्त को आज पूरी तरह से खुश कर दो.

अप्सरा—आप चिंता ना करे…हमे इस काम मे महारत हासिल है.

मुनीश—कहो दोस्त पसंद आई…निविया (अप्सरा) मेरे दोस्त को अंदर ले जाओ.

आदी—भाई माल तो एक दम टंच है…तुम्हारे तो मज़े हैं.

अप्सरा—आओ अंदर चले

अप्सरा ने अपने वस्त्र उतार दिए अंदर आते ही..शायद उसको एक इंसान से संभोग करने मे कोई खास दिलचस्पी नही लग रही थी.

अप्सरा—चलो तुम भी अपनी मूँग फली बाहर निकालो.

अदिई—तुम खुद अपने हाथो से उतार दो…मुझे शरम आती है

अप्सरा—ठीक है.

अप्सरा धीरे धीरे आदी के वस्त्र उतारने लगी बिना मन से…..पर जैसे ही उसने सभी वस्त्र उतारने के बाद उसकी नज़र आदी के हथियार पर
गयी तो वो उछल कर दूर हो गयी, जैसे कि कोई महा भयानक चीज़ देख ली हो.

अप्सरा (मन मे)—ओह्ह्ह..ये क्या है…इतना बड़ा तो मैने आज तक नही देखा….नहिी…नही….मैने इसके साथ संभोग नही करूँगी….देवराज को तुरंत मेरी इतनी चौड़ी योनि देखते ही संदेह हो जाएगा.

आदी—क्या हुआ…? तुम इतनी दूर क्यो खड़ी हो…?

अप्सरा—नही मैं तुमसे संभोग नही करूँगी.

आदी—क्यो..? अभी तो तुम तैय्यर थी….अब क्या हुआ…?

अप्सरा—नही मैं इतना बड़ा नही ले सकती....बहुत ज़्यादा दर्द होगा मुझे और मेरी बहुत ज़्यादा चौड़ी भी हो जाएगी.

आदी उसको मनाता रहा और वो मना करती रही...बड़ी मुश्किल से समझाने के बाद आख़िर मे वो संभोग के लिए मान गयी लेकिन एक शर्त पर.

अप्सरा—ठीक है...लेकिन पहले वादा करो कि तुम केवल आधा ही अंदर डालोगे

अदिई—ठीक है..मंज़ूर है

अप्सरा—नही...मुझे इस बात की गॅरेंटी चाहिए.

अदिई—अब मैं गॅरेंटी कहाँ से लाउ…?

“मैं लेती हूँ गॅरेंटी” किसी को आदी की हालत पर तरस आ गया तो उसने कहा…लेकिन जब आदी ने अपने चारो तरफ देखा तो उसको कोई
नही दिखा वहाँ.

आदी (हैरान)—कौन है, यहाँ..? कोई दिखता क्यो नही…?

“नीचे देखो, अपने पैर के पास” उसने जवाब दिया.

आदी ने झुक कर नीचे देखा तो हैरान रह गया….एक बित्ते भर की लड़की को देख कर….उसने उसे उठा कर अपने हाथ मे ले लिया.

अप्सरा—ये मेरी सेविका श्रेया है…ये यहाँ के एक लोक लिलिपुट की रहने वाली है.

श्रेया—मैं तुम्हारे आधे लंड पर निशान लगा दूँगी, उससे आगे नही जाना चाहिए……जब भी आगे जाने लगेगा तो मैं सीटी बजा दूँगी तो तुम
बाहर निकाल लेना.

आदी—ठीक है…मुझे मंज़ूर है.
 
श्रेया आदी के लंड पर निशान लगा देती है…..आदी जैसे ही थोड़ा सा अंदर करता वो सीटी बजा देती, बेचारा बाहर निकाल लेता….हर बार यही होता थोड़ा भी अंदर जाता तो निविया चिल्लाने लगती तभी श्रेया सीटी बजा देती…आख़िर जब आदी का दिमाग़ खराब हो गया तो उसने एक ज़ोर का धक्का मार दिया.

आदी (मन मे)—साली ने दिमाग़ खराब कर दिया…ये सेक्स कर रही है या मज़ाक कर रही है मेरे साथ…अब मैं इसका कल्याण करता हूँ.

निविया (चिल्लाते हुए)—आआहह….मररर गाइिईई……चचोद्दद्ड दो…मुझीईई…आआआआआअ

निविया ज़ोर से चिल्ला उठी..श्रेया ने सीटी बजानी शुरू कर दी लेकिन अदिई अब कहा रुकने वाला था…उससे अब सीटी की आवाज़ सुनाई ही नही दे रही थी….निविया इश्स धक्के से बेहोश हो गयी.

ये देख कर श्रेया खुद ही जाकर उसके लंड पर उचक कर बैठ गयी और सीटी बजाने लगी….आदी ने आँखे बंद कर के एक जोरदार फाइनल शॉट मारा वैसे ही लंड के साथ ही श्रेया भी निविया की चूत मे घुस गयी.

ये सब करामात वहाँ कमरे मे पिंजरे मे क़ैद एक मैना देख रही थी….उसने जैसे ही श्रेया को निविया की चूत मे घुसते देखा तो वो ज़ोर ज़ोर से हँसने और चिल्लाने लगी.

“हाहहहाहा….गॅरेंटी लेने वाली ही घुस गयी गान्ड में…..गॅरेंटी गयी गान्ड में….गयी गॅरेंटी गान्ड में….हाहहहाहा”

मैना की आवाज़ से आदी होश मे आया…जब उसने निविया को अचेत देखा तो तुरंत अपना हथियार उसकी योनि से बाहर खीच लिया…साथ मे उसके लंड से लिपटी श्रेया भी बाहर आ गयी.

श्रेया (खाँसते हुए)—अब मैं तुम्हारी गॅरेंटी नही ले सकती….मुझे माफ़ करो…ज़य राम जी की.

आदी (मैना से)—तुम तो बिल्कुल मेरी तरह बोलती हो.

मैना—हम गरुड़ लोक के पक्षी हैं…हमे सभी भाषा आती हैं….मैं तो बहुत कम बात करती हूँ…मेरा भाई मुझसे भी ज़्यादा…ज़्यादा क्या,
बल्कि बहुत ज़्यादा बाते करता है…क्या तुम मेरे भाई को ढूँढने मे मेरी मदद करोगे….?

आदी (शॉक)—तुम्हारा भाई भी है…..? क्या हुआ उससे…? क्या वो किसी की क़ैद मे है….?

मैना (उदास)—पता नही….लेकिन उसको उँचाई मे उड़ने का बड़ा शौक था..एक बार हम दोनो आकाश की सैर करने निकले थे लेकिन वो मेरे मना करने के बाद भी उड़ते उड़ते वो सूर्य के काफ़ी नज़दीक चला गया जिससे उसके पंख जल गये और वो किसी ग्रह पर जा गिरा…तब से उसका कुछ पता नही चला..उससे खोजते हुए मैं यहाँ आ गयी और इसने मुझे पकड़ के पिंजरे मे बंद कर दिया.

आदी—ठीक है चलो..मैं तुम्हे आज़ाद कर देता हूँ…तुम्हारा भाई ज़रूर मिलेगा एक दिन…मैं तुम्हारी मदद करूँगा ..ये मेरा वादा है…वैसे तुम दोनो का कोई नाम भी है या यू ही…?

मैना—हैं ना..‼ मेरा नाम मैनाक और मेरे भाई का नाम मुरूगन है.

आदी वहाँ से निकलने से पहले निविया के उपर पानी छिड़क दिया जिससे वो होश मे आने लगी..आदि वहाँ से मैना को लेकर निकल गया.

मुनीश उस समय उसको नही दिखा तो वो घूमने लगा और वहाँ के देव उद्यान मे पहुच गया….जहा सिर्फ़ देवताओ या उनके पुत्रो के अलावा किसी का भी प्रवेश करना वर्जित था.

मैना—यहाँ किसी मानव का आना मना है.

आदी—अरे कोई ना…चल आ जा.

मैं और मैना दोनो उस सुंदर उपवन मे विचरण करने लगे....तरह तरह से सुगंधित फूलो से सुसज्जित ये उद्यान बेहद रमणीक था....तभी हमारी तरफ एक देव पुत्र तेज़ी से भागता आया.

एक देव पुत्र—ये मानव तू यहाँ कैसे आ गया…? क्या तुम्हे ग्यात नही कि ये सिर्फ़ देवताओ के विहार करने की जगह है..? बाहर निकलो यहाँ से तुरंत.

आदी—पेड़ पौधे किसी के बाप की जागीर नही हैं…वो सबके लिए हैं.

देव पुत्र—एक तुत्छ मानव होकर हम देवताओ की बराबरी करता है तू…? लगता है तेरी मौत तुझे यहाँ खिच लाई है.

आदी—जिस मानव को तुम छोटा कह रहे हो..इतिहास गवाह है जब जब देवताओ पर संकट आया है इसी तुत्छ मानव ने उनकी मदद की
है…यहाँ तक की खुद भगवान भी इसी मानव रूप मे अवतार ले चुके हैं.

2न्ड देव पुत्र—दोस्त लगता है कि ये गंदी नाली का कीड़ा ऐसे नही मानेगा …मैं अभी इसको सबक सिखाता हूँ… तददडक़्ककककक…आअहह ….. मररर गायययाअ…चहूऊद्द्दद्ड मुझीए

1स्ट देव पुत्र—ये छोड़ मेरे मित्र को…तेरी इतनी हिम्मत कि तूने मेरे दोस्त पर हाथ उठाया….टदाअक्ककक

जैसे ही दूसरे देव पुत्र ने मुझे गाली दी तो मेरा दिमाग़ खिसक गया…मैने पहले दोनो को एक एक थप्पड़ लगाकर उनकी गर्दन दबोच ली
जिससे दोनो मिमियाने लगे.

आदी (दोनो की गर्दन दबाते हुए)—मुझे बदतमीज़ी करने वाले बिल्कुल पसंद नही हैं.

मुनीश (वहाँ आते हुए)—आदिइई….ये क्या कर रहे हो….? उनको छोड़ो…ये देव पुत्र हैं.

आदी (गुस्से मे)—सालो का टेटुवा दबा के दोनो को निपोर दूँगा तो अभी यहीं इनका कल्याण हो जाएगा.

मुनीश (छुड़ाते हुए)—नही..छोड़ो…इनको…

मुनीश के बार कहने पर मैने दोनो को छोड़ दिया…दोनो दूर जाकर गिरे…अपनी अपनी गर्दन सहलाने लगे..मुनीश मुझे बाहर ले जाने लगा.

आदी (दोनो को उंगली दिखाते हुए)—एक बात का ध्यान रखना…मुझे एक ही बात दुबारा बोलने की आदत नही है.

1स्ट देव पुत्र—तुझे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी…अब देख मैं तेरे साथ क्या क्या करूँगा…?

आदी—साले तेरी तो…

मैं उनको मारने के लिए आगे बढ़ा ही था कि मुनीश ने मुझे पकड़ लिया और उस उद्यान के बाहर ले आया…हम बिना कोई आपस मे बात किए लौट चले.

जब मैं अप्सरा के पास था उस दौरान मुनीश ने टेलीपेथि के ज़रिए माधवी को कुछ दिन वही रुकने का बोल दिया था….तब तक मुनीश ने
अपनी माँ को यहाँ आने को कह दिया.

दिन भर घूम फिर कर दोनो शाम होने से पहले ही लौट आए…मुनीश आदी को घर पहुचा कर बाहर चला गया..आदी जैसे ही अंदर आया तो
उसे माधवी के कमरे मे किसी के सभी वस्त्र पड़े हुए थे साथ ही बाथरूम मे किसी के नहाने की आवाज़ आ रही थी.

आदी (मन मे)—लगता है माधवी भाभी अंदर नहा रही हैं…बढ़िया मौका है ये चूतिया भी नही है.

ये सोच कर उसने फटाफट अपने कपड़े उतारे और घुस गया बाथरूम के अंदर…..

इधर धरती मे सभी गणपत राय की पार्टी मे शरीक होने के लिए निकल पड़े थे..मगर श्री इस समय गाड़ी मे बैठे बैठे कहीं खोई हुई थी…

श्री (मन मे)—आदी ने भी मुझे ख़तरा के बारे मे बताया था…. मुझे आदी पर विश्वास करना चाहिए था.. कम से कम आज इतना तड़पना तो
नही पड़ता…हे भगवान आदी जिंदा हो..मेरी विनती सुन लो…फिर आप से कभी कुछ नही मागुंगी….

रात के अंधेरे में सारा जहाँ सोता है
लेकिन किसी की याद में ये दिल रोता है
खुदा करे की किसी पर कोई फिदा ना हो
अगर हो तो मौत से पहले ज़ुदा ना हो

वहाँ पहुचते ही गणपत राय ने सभी का बहुत स्वागत किया...लेकिन सभी की निगाहे तो ख़तरा को तलाश कर रही थी.... इनके पीछे पीछे
चारो दोस्त भी वहाँ पहुच गये और बाहर से ही श्री पर निगरानी रखने लगे.

गंगू—हमे अंदर चलना चाहिए....इतनी भीड़ मे कोई चिंता की बात नही है

नॅंगू—हाँ चलो

जैसे ही चारो अंदर जाने को हुए कि किसी ने बारी बारी से चारो को उठा कर पटक दिया...अब सभी घबरा गये..लेकिन कोई था जिसने किसी को इन्न चारो को पटकते हुए देख लिया था.
 
अपडेट-84

वहाँ पहुचते ही गणपत राय ने सभी का बहुत स्वागत किया...लेकिन सभी की निगाहे तो ख़तरा को तलाश कर रही थी.... इनके पीछे पीछे
चारो दोस्त भी वहाँ पहुच गये और बाहर से ही श्री पर निगरानी रखने लगे.

गंगू—हमे अंदर चलना चाहिए....इतनी भीड़ मे कोई चिंता की बात नही है

नांगु—हाँ चलो

जैसे ही चारो अंदर जाने को हुए कि किसी ने बारी बारी से चारो को उठा कर पटक दिया...अब सभी घबरा गये..लेकिन कोई था जिसने किसी को इन्न चारो को पटकते हुए देख लिया था.


अब आगे.........

इन चारो को पटकनी खाते हुए देखने वाला शख्स कोई और नही बल्कि ख़तरा ही था जो इस समय एक इंसान के रूप मे था और अभी अभी
गणपत राई के यहा पहुचा ही था......चारो को पतकनी खाते देखते ही उसके मूह से आकस्मात ही ये शब्द आश्चर्य से निकल गये.....

ख़तरा (शॉक्ड)—चितराआआअ.......इतने वरसो बाद और यहाँ...... ?

नांगु—अरे यार…ये क्या हो रहा है…आअहह….मार डाला रे….उईईयईिी माआ…

चूतड़—यार…ये कौन मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गया है…..आआआअ

पंगु—मुझे तो लगता है…..अजगर ने ही कोई अपना पिशाच हमारे पीछे लगा दिया होगा…..आआआअ

गंगू—कही ये कोई श्री की शक्ति तो नही……जो हमे उसके पास नही जाने देना चाहती…आआआअ….हमे छोड़ दो.. हम श्री के दुश्मन नही हैं…आआआअ

चारो को बार चित्रा उठा उठा कर पटकने लगी….चारो तुरंत वहाँ से अपनी जान बचाने के लिए बाहर की तरफ भागे….उन्हे भागते देख चित्रा
भी उनके पीछे जाने लगी और चूतड़ का पैर पकड़ लिया.

चूतड़ बेचारा छ्ट पटाने लगा…वो बार बार आगे बढ़ने की कोशिश करता लेकिन एक कदम भी बढ़ नही पा रहा था, वही ज़मीन मे लेटे लेटे ही हाथ पटक रहा था.

चूतड़ (चिल्लाते हुए)—अरे कमिनो….मुझे भी अपने साथ ले चलो…कोई मेरे पैर पकड़ के खिच रहा है… मुझे छोड़ दे मेरे माई बाप.

वहाँ से आने जाने वाले लोग चूतड़ को ऐसे छ्ट पटाते देख हँसते हुए जा रहे थे….ख़तरा चित्रा को रोकने के लिए मन ही मन उससे बात करने लगा.

ख़तरा (टेलिपती के ज़रिए)—चितराआ रुक जाओ.

चित्रा (चौंक कर देखते हुए)—ख़तराआा तूमम्म….‼ यहााआ

ख़तरा—हाा….लेकिन तुम यहाँ कैसे….? और इतने सालो तक तुम कहाँ थी…..? तुम अभी तक मुक्त नही हुई…?

चित्रा—जब मुझे मुक्त करने वाला ही छोड़ गया तो कैसे मुक्त होती…? मैं तो कहीं गयी ही नही थी…..मैं हमेशा आदी के ही साथ
थी….आदी ने जब घर छोड़ दिया तो मैं वहाँ क्या करती….? इसलिए मैने बिना आदी के सामने आए ही उसका पीछा करती रही.

ख़तरा—तब तो तुम्हे ज़रूर पता होगा कि वो कहाँ हैं…? कृपया मुझे बताओ कि मेरे मालिक कहाँ हैं…? क्या हुआ था उनके साथ….? मैने तो सुना है कि वो अब इश्स दुनिया मे नही रहे…लेकिन मेरा दिल ये नही मानता….जिसके पास भगवान शिव का त्रिलोक विनाशक पशुपात अस्त्र हो…उसको भला कोई कैसे मार सकता है…?

चित्रा—वो उस समय बहुत दुखी थे….जिस समय उनके उपर धोखे से हमला किया गया तब वो अपने परिवार और उनके साथ हमने जो किया उसके दुख सागर मे डूबे हुए थे…तभी उनकी पीठ मे किसी ने तलवार से प्रहार किए जिसके कारण वो गंगा मे जा गिरे…मैने उन्हे खोजने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रही.

ख़तरा—तुमने उन्हे बचाने की कोशिश क्यो नही की सामने आकर…?

चित्रा—मैने कोशिश की थी…लेकिन मेरी शक्ति उन लोगो के सामने ना के बराबर थी…मैं किस मूह से उनके सामने जाती..मैं भी तो उनकी
इस दर्द भरी कहानी मे बराबर की मुजरिम हूँ.

ख़तरा—ये कोई ज़रूरी तो नही कि वो मृत्यु को ही प्राप्त हुए हो…ये भी तो हो सकता है कि उन्हे किसी ने गंगा मैया की गोद से जीवित
निकाल लिया हो…

चित्रा—मैने नदी किनारे सभी जगह देख लिया है….हर जगह जंगल ही जंगल है….और जहाँ लोगो की आबादी है वो जगह उस दुर्घटना वाली
जगह से बहुत दूर है….वहाँ तक पहुचने मे उनका बचना मुमकिन नही है.

ख़तरा (नम आँखो से)—नही ऐसा नही हो सकता….मुझे उन्होने अपनी कसम दे रखी थी वरना मैं उन्हे कुछ नही होने देता…..

चित्रा—किंतु एक जगह मुझे बड़ी अजीब लगी इस दौरान उन्हे खोजते हुए…

ख़तरा—कैसी अजीब जगह…जल्दी बताओ

चित्रा—नदी किनारे जंगल मे एक जगह एक आश्रम है…जहाँ कुछ साधु महात्मा रहते हैं..मैने ये सोच कर कि शायद इनमे से किसी की नज़र उनके उपर गयी हो और इन लोगो ने उन्हे बचा लिया हो, इस उम्मीद मे उस आश्रम मे जाने का विचार किया लेकिन मैं वहाँ प्रवेश नही कर
सकी उनके सुरक्षा कवच के कारण…तो मैने दूर से ही उन पर नज़र रखनी शुरू कर दी..एक दिन नदी मे स्नान करते समय उनको मैने किसी बीमार आदमी के बारे मे बाते करते सुना जिसको उन्होने गंगा जी मे से डूबने से बचाया था परंतु वो सभी बेहद हैरान लग रहे थे.

ख़तरा—अवश्य ही वो मेरे मालिक ही होंगे…मुझे वहाँ ले चलो

चित्रा—वहाँ मैं या तुम दोनो मे से कोई भी प्रवेश नही कर सकता...वो सात्विक जगह है..उन ऋषि मुनियो का तपो स्थल है वो....लेकिन श्री जा
सकती है, इसलिए ही मैं आज यहाँ आई हूँ.
 
ख़तरा—तुमने सही कहा...हमे श्री की मदद लेनी होगी.

चित्रा—वो यहाँ तुमसे ही मिलने आई है शायद

ख़तरा—क्या तुम मुझे उस शख्स का कुछ पता बता सकती हो जिसने उनके उपर हमला किया था….?

चित्रा—शैतानो का शैतान….महा शैतान अजगर…यही नाम तो सुना था मैने उन लोगो के मूह से

ख़तरा—क्य्ाआअ…अजगर…? तब तो श्री की जान को भी ख़तरा हो सकता है…हमे सावधान रहना होगा.

चित्रा—ये चारो श्री का पीछा कर रहे थे…इसलिए तो मैं इन्हे पटक रही थी..देखो ये सब फिर से कही भाग गये…तुमसे बात करने के चक्कर मे मौका मिल गया उन्हे भागने का.

ख़तरा—लेकिन मुझे लगता है कि उस आश्रम मे जाने के लिए श्री की बजाए अग्नि की मदद लेना अधिक उप्युक्त होगा, एक तो वो खुद भी इस समय साध्वी बन कर तपस्या मे लीन हैं उन्हे आश्रम मे जाने से कोई नही रोकेगा दूसरा श्री ने भी तो वही किया जो तुम सबने मालिक के साथ
किया था…और ये भी तो हो सकता है कि श्री को वहाँ के साधु सही और पूरी जानकारी ना दे..जबकि अग्नि को इन सब मे कोई दिक्कत नही होगी.

चित्रा—ठीक है…तुम अग्नि के पास जाओ और मैं यहाँ श्री की सुरक्षा करती हूँ…अगर ज़रूरत पड़ी तो हम श्री की भी मदद ले सकते हैं.

ख़तरा—ठीक है…मैं आज ही अग्नि के पास जाउन्गा…लेकिन पहले मालिक से किया हुआ वादा तो पूरा कर लूँ…गणपत राई की बेटी की शादी मे शामिल होने के बाद.

चित्रा—ठीक है चलो अंदर

दोनो वहाँ से बाते करते हुए अंदर चले हुए….चित्रा ने भी एक सुंदर लड़की का रूप ले लिया था…अंदर श्री के साथ साथ बाकी सब की निगाहे भी ख़तरा को तलाश कर रही थी.

तभी उनके पास गणपत राई तेज़ी से आया और धीरे से कुछ कहा जिसे सुन कर सभी तुरंत उसके साथ चल दिए.

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जबकि उधर देव लोक मे आदी को मुनीश ने बाहर छोड़ कर कही निकल गया तो जैसे ही आदी अंदर आया उसने माधवी के कमरे का
दरवाजा खुला देख वहाँ चला गया.

माधवी के कमरे मे किसी के अंतर्वस्त्र बिखरे पड़े हुए थे और स्नान घर से किसी के नहाने की आवाज़ आ रही थी ये देख आदी खुश हो गया.

आदी—मैना तुम कुछ देर रूको मैं अभी नहा कर आता हूँ…..(मन मे)—लगता है कि माधवी भाभी अकेली हैं अंदर…बढ़िया मौका है, वो मुनीश चूतिया भी नही है…मैं भी भाभी के साथ लगे हाथ नहा लेता हू.

ये सोच कर उसने आनन फानन मे अपने कपड़े उतारे और निर्वस्त्र हो कर अंदर स्नान घर मे घुस गया जबकि मैना उसको अंदर जाने से
मना करती गयी लेकिन उसने सुना ही नही.

आदी जैसे ही अंदर गया ….जहाँ मुनीश की माँ शोभना पूरी तरह से नग्न अवस्था मे स्नान कर रही थी…दरवाजा खुलने की आहट से वो तुरंत पलट गयी और अपने सामने किसी अंजान शख्स को इश्स हालत मे देख कर चिल्लाने ही वाली थी कि उनकी नज़र आदी के हथियार पर चली गयी.

आदी के हथियार पर नज़र पड़ते ही उनकी ज़ुबान हलक मे ही अटक गयी…उनकी चिल्लाने की आवाज़ गले मे ही दब कर रह गयी…वो
बस आँखे फाडे आश्चर्य से आदी के हथियार को ही देखती रह गयी.

जबकि आदी ने जैसे ही उनका चेहरा देखा तो वो भी शॉक्ड रह गया..वो खड़े खड़े कभी शोभना के सुडौल स्तनों को देखता तो कभी हरित
क्रांति से फलीभूत चूत को.

आदी (मंन मे)—ये कौन है..? मुझे क्या…एक बार ट्राइ करने मे क्या हर्ज़ है…इसका ही कल्याण कर देता हूँ.

ये सोच कर आदी जैसे ही शोभना के नज़दीक पहुचा जो कि किसी सदमे की हालत मे थी…ठीक उसी समय आदी की याद दस्त चली
गयी….अब चौंकने की बारी ऋषि की थी.

ऋषि (मन मे)—ये क्याअ…मैं यहाँ कैसे…? मेरे कपड़े किसने उतार दिए…मुझे नंगा किसने कर दिया…..? और ये नंगी पुँगी कौन मेरे सामने बेशर्मो की तरह खड़ी है…? मैं इतना नीचे कैसे गिर सकता हूँ….राजनंदिनी को क्या जवाब दूँगा मैं…उसको पता चला तो वो मुझे कच्चा ही खा जाएगी.

ये सोच कर ऋषि तुरंत वहाँ से बाहर भाग आया और सीधे अपने कमरे मे जाकर कपड़े पहन लिए…उसके पीछे पीछे मैना भी आ गयी.

मैना—मैने मना किया था तुम्हे ऐसा मत करो..मगर तुमने सुना ही नही.

ऋषि (चौक कर)—तुउंम्म कौन हो.... ? और तुम हमारी ज़ुबान कैसे बोलती हो…?

मैना (शॉक्ड होकर मन मे)—अरे इसको क्या हुआ अब…? ऐसे क्यो बात कर रहा है…कुछ तो लोचा है…मुझे पता करना पड़ेगा.

ऋषि—तुमने बताया नही.

मैना ने ऋषि को भी वही सब बता दिया जो आदी को बताया था…जिसे सुन कर ऋषि को दुख हुआ…उसने उसकी मदद करने का वचन दे दिया.

जबकि शोभना अभी भी कही खोई हुई थी….मुनीश के आने के दोनो का आपस मे परिचय हुआ…लेकिन दोनो मे से किसी ने भी नज़रें नही मिलाई पर हैरान दोनो हुए.

मुनीश (खुश होते हुए मन मे)—आज मैं मस्त नीद सोउँगा…..अब रात भर ऋषि रहेगा…और अगर ना भी रहता तब भी कोई दिक्कत नही
थी…क्यों की माधवी तो है ही नही घर मे…हाहहाहा…जा आदी बेटा तेरा तो कल्याण हो गया..मेरी माधवी बच गयी…हिहिहीही

शोभना की नीद गायब हो चुकी थी…..ना जाने उसको क्या हो गया था….बहुत सोच विचार के बाद उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और अपने कक्ष से निकल कर एक कमरे की तरफ बढ़ गयी.

सुबह जब मुनीश की नीद खुली तो एक बार फिर से उसके चेहरे का रंग उड़ गया …
 
अपडेट-85

जबकि शोभना अभी भी कहीं खोई हुई थी….मुनीश के आने के बाद दोनो का आपस मे परिचय हुआ…लेकिन दोनो मे से किसी ने भी नज़रें नही मिलाई पर हैरान दोनो हुए.

मुनीश (खुश होते हुए मन मे)—आज मैं मस्त नीद सोउंगा…..अब रात भर ऋषि रहेगा…और अगर ना भी रहता तब भी कोई दिक्कत नही
थी…क्यों की माधवी तो है ही नही घर मे…हाहहाहा…जा आदी बेटा तेरा तो कल्याण हो गया..मेरी माधवी बच गयी…हिहिहीही

शोभना की नीद गायब हो चुकी थी…..ना जाने उसको क्या हो गया था….बहुत सोच विचार के बाद उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और अपने कक्ष से निकल कर एक कमरे की तरफ बढ़ गयी.

सुबह जब मुनीश की नीद खुली तो एक बार फिर से उसके चेहरे का रंग उड़ गया ….

अब आगे……..

ऋषि अपने कमरे मे आने के बाद बहुत चिंतित हो गया….उसको कुछ समझ ही नही आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है.

ऋषि (मंन मे)—मैं नंगा कैसे हो गया…किसने किया….मुझे कुछ याद क्यो नही है…..मैं ऐसा तो कभी नही था….मैने राजनंदिनी के अलावा किसी की तरफ आज तक नज़र उठा कर भी नही देखा…..और मेरा वो अंग इतना बड़ा कैसे हो गया है जबकि ये पहले तो इतना नही था….लगता है मेरे उपर देवलोक का कोई असर हो रहा है….मुझे ध्यान लगा कर गुरु जी से बात करनी होगी.

ऋषि ध्यान मे बैठ गया और उसमे लीन होते ही उसका संपर्क वास्तविक दुनिया दे कट हो गया…उसी समय खाली पिंजरा देख आदी उसमे आ गया.

इधर शोभना की नीद हराम हो चुकी थी….घूम फिर कर उसकी आँखो के सामने स्नान गृह का वही दृश्य आ जाता था….जब लाख कोशिश करने के बाद भी खुद को नही समझा पाई तो उसने मॅन ही मॅन कुछ निर्णय लेकर ऋषि के कक्ष मे पहुच गयी.

ऋषि तो उस समय ध्यान की दुनिया मे था…उसका संपर्क स्थूल शरीर से इस समय नही था..उसमे आदी आ चुका था….शोभना ने कक्ष मे
पहुच कर आदी की ओर एक याचना भरी दृष्टि से देखने लगी.

आदी (मन मे)—ये कौन है….? लगता है मुनीश ने मेरे रात के लिए कोई अप्सरा का प्रबंध किया है….चलो अच्छा है…रात बढ़िया गुजर जाएगी.

आदी ने उठ कर शोभना को अपनी बाहों मे समेट लिया और उसको बिस्तर मे ले जाके अपनी रात्रि क्रीड़ा मे लीन हो गया जबकि दूसरी तरफ मुनीश आज माधवी के यहाँ ना होने से खुशी मे चैन की नीद सो गया था.

संभोग क्रिया के पश्चात आदी और सोभना वही सो गये….आदी के सोते ही ऋषि वापिस आ गया….लेकिन जैसे ही खुद को मुनीश की माँ के साथ नग्न पाया तो चौंक गया.

ऋषि (शॉक्ड)—मैं फिर से नग्न कैसे हो गया…? मैने तो पूरे कपड़े पहने थे फिर ये सब…? ओह्ह्ह ये मेरे साथ क्या हो रहा है…? मैं
राजनंदिनी को क्या मूह दिखाउंगा.

ऋषि बिस्तर से नीचे उतर गया और घर से बाहर जाकर गार्डन मे सो गया….उसके सोते ही आदी फिर आ गया और खुद को यहाँ देख हैरान रह गया.

वो फिर से अंदर चला गया और शोभना को देख कर पुनः काम क्रीड़ा मे लिप्त हो गया…..सुबह जब मुनीश की नीद खुली तो उसने शोभना को ऋषि के कमरे से निकलते देखा. तो वो भी ऋषि के पास चला गया.

मुनीश—और कैसे हो ऋषि भाई…? रात कैसी गुज़री…?

आदी—क्या भाई, आप बार बार मेरा नाम क्यो भूल जाते हो…मैं ऋषि नही आदी हूँ…आदी.

मुनीश (शॉक्ड)—तुम आदी कब हो गये…..? और तुम कब आए…? तुम्हे तो सुबह आना चाहिए था…तुमने अचानक शिफ्ट कैसे बदल ली…? ये तो एक हफ्ते चलनी थी ना.

आदी—वो क्या है ना भाई…हमारे देश मे कभी कभी डबल ड्यूटी भी करनी पड़ती है…..वैसे आपका बहुत बहुत शुक्रिया….रात आपने मस्त माल भेजा था…रगड़ने मे मज़ा आ गया.

ये सुन कर तो मुनीश के चेहरे का रंग ही उड़ गया……उसके चेरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी….उसने आगे बिना कुछ कहे शोभना को लेकर
वहाँ से दूसरे घर चला गया.

मुनीश (मन मे)—आदी ये तूने कर दिया…अब मैं तुझे अपने यहाँ नही रखूँगा…मैने उसे ऐसा वरदान ही क्यो दिया…? मैं बर्बाद हो गया.

शोभना—तू मुझे इतना जल्दी वापिस क्यो लेकर जा रहा है…मुझे अभी और रुकना है यहाँ

मुनीश—नही..नही…बस अब और नही…आप और माधवी कुछ दिन एक साथ ही रहोगी.

शोभना ने कयि बार वापिस भेजने का कारण पूछा लेकिन उसने कुछ नही बताया…शोभना को माधवी के पास छोड़ने के बाद लौटने टाइम उसको देव गुरु ब्रहस्पति मिल गये.

देव गुरु—क्या बात है पुत्र…बहुत चिंतन मे लग रहे हो.

मुनीश—प्रणाम गुरु देव.

देव गुरु—तुम्हारा कल्याण हो वत्स.

मुनीश—नही..नही गुरु देव…ये आशीर्वाद मत दीजिए….

वही दूसरी तरफ राजनंदिनी के इस विकराल रूप को देख कर अजगर के पिशाच योद्धा वहाँ से भागने लगे लेकिन राजनंदिनी ने उन्हे भी
यमलोक पहुचा दिया केवल एक को जिंदा छोड़ दिया.
 
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