hotaks444
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"उः.. हाई, कॅन यू प्लीज़ टेक मी टू दा नियरेस्ट ट्रेन स्टेशन.." मैं जब बाहर आया तो कुछ खाली टॅक्सीस भी खड़ी थी
"शुवर, दट विल बी 15 पाउंड्स, इफ़ यूआर ओके वित इट..." टॅक्सी ड्राइवर ने अख़बार से अपनी आँख बाहर निकाली और सिगार से धुआँ छोड़ कर कहा
"बहनचोद, शाम को कौन अख़बार पढ़ता है, साला मैं तो सुबह को भी नहीं पढ़ता.. उपर से बेन्चोद सिगार ऐसी स्टाइल में.." मैं उसे देख सोचने लगा
"यू वाना कम ऑर नोट.." उसने फिर अपनी तेज़ आवाज़ में कहा
"ओह यस प्लीज़..." मैने उससे कहा और अपना बॅग लेके पीछे बैठ गया.. ठंड तो बहुत थी बाहर लेकिन टॅक्सी के अंदर उसका हीटर ऑन था जिससे थोड़ी सी राहत मिली..
गाड़ी के शीसे पे जमा हुए माय्स्चर को देख पता लग रहा था कि ठंड में सर्वाइव करना आसान नहीं होगा मेरे लिए.. टर्मिनल 4 से लेके लोकल स्टेशन सिर्फ़ 3 माइल्स की दूरी पे था, रास्ते पे ज़्यादा ट्रॅफिक नहीं थी, बस एरपोर्ट की तरफ आती हुई और जाती हुई गाड़ियाँ.. ज़्यादातर लोगों ने खुद को लोंग कोट्स और गम बूट्स से ढका हुआ था.. इतनी भीड़ और उपर से बाहर का देश देख मेरी आँखें बस चमकती ही जा रही थी और अंदर ही अंदर काफ़ी मुस्कुरा रहा था
"देयर यू आर.." टॅक्सी वाले ने रोक के कहा
"वी आर हियर.. इट'स ऑलमोस्ट 3 मिल्स आइ गेस, आंड यू चार्ज 15 पाउंड्स फॉर दट" मैने शॉक में आके कहा.. 3 मील के लिए बेन्चोद 1200 रुपीज़..
"आइ आस्क्ड यू किड, इफ़ यू ओके.. आंड डॉन'ट रेज़ युवर वाय्स ओके.. नाउ गेट आउट आंड पे मी.." टॅक्सी वाले ने अपने दांतो में रख सिगार चबा के कहा
"ले ले बेन्चोद.. तू भी गान्ड मरा साले..." मैने गर्दन को हिल्ला के चिल्ला के कहा
"हे वॉट डू यू से"
"जा ने लवदे, " मैने फिर उसे देख कहा और उसके हाथ में पैसे देके स्टेशन के अंदर चला गया.. मॅप में देखा तो ओल्ड ट्रॅफर्ड की ट्रेन गेट नंबर 10 के पास थी, और उसे छूटने में अभी 15 मिनट थे... मैने डाइरेक्षन्स को फॉलो किया और टिकेट लेके ट्रेन का वेट करने लगा.. बचे हुए 279 पाउंड्स में से ट्रेन की पास 10 पाउंड्स की मिली.. साला ऑलमोस्ट 300 मील का सफ़र और टिकेट 20 पाउंड्स.. और 3 मील का सफ़र साला 15 पाउंड्स... चूतिया बना गया रे आते ही यार.." मैं ट्रेन का वेट करते करते सोचने लगा.. यहाँ के स्टेशन्स या सबवे भी कहते हैं लोग, वो काफ़ी सॉफ सुथरे थे और लोग भी ध्यान रख रहे थे कि किसी प्रॉपर्टी को डॅमेज ना करें, कंप्यूटर्स, बेंचस देख ऐसा लग रहा था मानो इससे अच्छी जगह हो ही नहीं सकती यहाँ.. और ठंड की वजह से जगह जगह हीटर्स भी ऑन थे..
"मम, दा ट्यूब ईज़ हियर...." एक लड़के ने चिल्ला के कहा तब मैने सामने आती हुई ट्रेन को देखा... ट्रेन को देख समझ आया कि इसे ट्यूब क्यूँ कहते हैं.. सबवे में आस पास देखा तो भीड़ नहीं थी इतनी, मैने सोचा चलो अच्छा है, शांति से मॅच देखने जाएँगे, टाइम तो काफ़ी था, मॅच रात के 10 बजे थी तो आइ थॉट ओके, इसलिए ट्रेन के रुकने का इंतेज़ार किया.. ट्रेन के रुकते ही लोगों की भीड़, नहीं , सूनामी कह सकते हैं वैसे लोग बाहर निकले...
"अरे.. हेलो, एक्सक्यूस.... एक्सक्यूस मी..... माइ ट्रेन विल.. एक्षकुसई मी...." मैं कभी अपने बॅग को संभालता तो कभी सामने ट्रेन को देखता जो फिलहाल खड़ी ही थी, अब से मुंबई लोकल ट्रेन्स को गालियाँ देना बंद, अब से मैं इस ट्यूब ट्रेन को गालियाँ दूँगा.. मैं खुद से कहने लगा और धक्का मुक्की करके ट्रेन के दरवाज़े के पास पहुँच गया...
"सालों इंडियन तो मैं भी हूँ... भीड़ में तो हम भी आगे निकल जाते हैं, आदत जो है बचपन से..." मैने खुद से कहा और मुस्कुराने लगा क्यूँ कि मेरे आने के कुछ सेकेंड्स बाद ही ट्रेन का दरवाज़ा बंद हुआ..
"फीव....." मैने अपना चेहरा सॉफ किया और नज़र आस पास दौड़ाई तो जितनी भीड़ उतरी थी, उतनी ही वापस अंदर भी चढ़ चुकी थी.. साला सबवे तो खाली था,
लेकिन इतने लोग आए कहाँ से.. मैने सोचा और आस पास खड़े लोगों को देखने लगा... भीड़ में थोड़ी सी दूरी पे कुछ गोरे दिखे जो मफ्क की टी पहने हुए थे.. मैने उन्हे देखा तो उनकी तरफ ही देखता रहा.. नहीं, मैं गे नहीं हूँ, पर स्पोर्ट्स के लिए इतना पॅशन, और वो भी फुटबॉल के लिए मैने पहली बार देखा था, हां मैं युरोप के देश में ही हूँ, जहाँ क्रिकेट के अलावा भी काफ़ी गेम्स खेले जाते हैं, खैर, भीड़ से लड़के मैं उनके पास पहुँचा और उनसे कोशिश की कि फुटबॉल या मफ्क की बातें करके थोड़ी पहचान बढ़ाई जाए, लेकिन सालों ने बात तो दूर, जवाब भी नहीं दिया
"स्पोर्ट्स युनाइट्स दा पीपल... घंटा, सब साला पेपर की बातें हैं, कोई किसी को यूनाइट नहीं करता और अपनी बेज़्ज़ती करवा कर फिर उनसे दूर हो गया.. करीब 300 मील का सफ़र ट्रेन ने ढाई घंटे में तय किया.. स्टेशन से उतर के 5 मिनिट की दूरी पे था एमयू सिटी का होम ग्राउंड... दा ओल्ड ट्रॅफर्ड स्टेडियम.. डोर से देखा तो भीड़ बिल्कुल नहीं थी, शायद वीकडे की वजह से खाली है, अच्छा है... मैने खुद से कहा और टिकेट काउंटर पे चला गया
"वी आर फुल सर..." टिकेट काउंटर पे बैठे बंदे ने कहा और मूह पे क्लोस्ड का बोर्ड दे मारा
"हे, यू वॉंट आ टिकेट.." टिकेट काउंटर से थोड़ी दूरी पे खड़े बंदे ने कहा
"अब इतना दूर आया हूँ भाई तो मॅच देखना ही है... टिकेट तो चाहिए ना.... ओह यस, यू हॅव एक्सट्रा.." मैने उस बंदे को जवाब दिया
"यस, यूआर आ मूक फॅन.." उसने हाथ मिला के कहा
"ओह यस, बिग टाइम..." एमयू सिटी का नाम सुनते ही खून तो साला जैसे रेस के घोड़े की तरह दौड़ने लगता है, रोंगटे ऐसे खड़े होते हैं जैसे यह दुनिया का आखरी फुटबॉल मॅच हो और एमयू सिटी का जीतना गॅरेंटीड हैं.."
"ओह मी टू.. आइ हॅव आ टिकेट एक्सक्लूसिव्ली वित एमयू सिटी फॅन क्लब, पर्चेस आंड एंजाय.."
"हाउ मच.." मैने खुशी के मारे इतना पूछा.. एमयू सिटी का होम ग्राउंड, उपर से मफ्क के साथ बैठना, इससे अच्छी बात तो हो ही नहीं सकती.. आज आर्सेनल की गान्ड फटेगी साला..
"नोट मच, जस्ट 100 पाउंड्स..." उसने टिकेट देके कहा
"269 पाउंड्स में से 100 की टिकेट, वॉटरलू स्टेशन, मेरे कॉलेज वाला, उसकी टिकेट 10 पाउंड्स.. फिर भी 159 बचेंगे.. ओके, आइ विल टेक इट.. थॅंक्स..." मैने झट से उसे पैसे दिए और टिकेट लेके जाने लगा
"ईस्ट स्टॅंड... लेफ्ट कॉर्नर Z4..." मेरी सीट का नंबर देख कुछ समझ नहीं आया, ईस्ट स्टॅंड क्यूँ, मेरे हिसाब से मफ्क तो सेंटर में बैठते हैं..
"ओह बेन्चोद..." मैने टिकेट पे प्रिंटेड प्राइस को देख कहा
"20 पौंड की टिकेट , 100 पाउंड्स..." पैसे देख मैं खुद को ही गालियाँ देने लगा.. साला दूसरी बार चूतिया बना हूँ, इस बार 80 पाउंड्स में... दुखी होके वहीं खड़ा रहा और ईस्ट स्टॅंड के गेट पे जाने लगा..
"शुवर, दट विल बी 15 पाउंड्स, इफ़ यूआर ओके वित इट..." टॅक्सी ड्राइवर ने अख़बार से अपनी आँख बाहर निकाली और सिगार से धुआँ छोड़ कर कहा
"बहनचोद, शाम को कौन अख़बार पढ़ता है, साला मैं तो सुबह को भी नहीं पढ़ता.. उपर से बेन्चोद सिगार ऐसी स्टाइल में.." मैं उसे देख सोचने लगा
"यू वाना कम ऑर नोट.." उसने फिर अपनी तेज़ आवाज़ में कहा
"ओह यस प्लीज़..." मैने उससे कहा और अपना बॅग लेके पीछे बैठ गया.. ठंड तो बहुत थी बाहर लेकिन टॅक्सी के अंदर उसका हीटर ऑन था जिससे थोड़ी सी राहत मिली..
गाड़ी के शीसे पे जमा हुए माय्स्चर को देख पता लग रहा था कि ठंड में सर्वाइव करना आसान नहीं होगा मेरे लिए.. टर्मिनल 4 से लेके लोकल स्टेशन सिर्फ़ 3 माइल्स की दूरी पे था, रास्ते पे ज़्यादा ट्रॅफिक नहीं थी, बस एरपोर्ट की तरफ आती हुई और जाती हुई गाड़ियाँ.. ज़्यादातर लोगों ने खुद को लोंग कोट्स और गम बूट्स से ढका हुआ था.. इतनी भीड़ और उपर से बाहर का देश देख मेरी आँखें बस चमकती ही जा रही थी और अंदर ही अंदर काफ़ी मुस्कुरा रहा था
"देयर यू आर.." टॅक्सी वाले ने रोक के कहा
"वी आर हियर.. इट'स ऑलमोस्ट 3 मिल्स आइ गेस, आंड यू चार्ज 15 पाउंड्स फॉर दट" मैने शॉक में आके कहा.. 3 मील के लिए बेन्चोद 1200 रुपीज़..
"आइ आस्क्ड यू किड, इफ़ यू ओके.. आंड डॉन'ट रेज़ युवर वाय्स ओके.. नाउ गेट आउट आंड पे मी.." टॅक्सी वाले ने अपने दांतो में रख सिगार चबा के कहा
"ले ले बेन्चोद.. तू भी गान्ड मरा साले..." मैने गर्दन को हिल्ला के चिल्ला के कहा
"हे वॉट डू यू से"
"जा ने लवदे, " मैने फिर उसे देख कहा और उसके हाथ में पैसे देके स्टेशन के अंदर चला गया.. मॅप में देखा तो ओल्ड ट्रॅफर्ड की ट्रेन गेट नंबर 10 के पास थी, और उसे छूटने में अभी 15 मिनट थे... मैने डाइरेक्षन्स को फॉलो किया और टिकेट लेके ट्रेन का वेट करने लगा.. बचे हुए 279 पाउंड्स में से ट्रेन की पास 10 पाउंड्स की मिली.. साला ऑलमोस्ट 300 मील का सफ़र और टिकेट 20 पाउंड्स.. और 3 मील का सफ़र साला 15 पाउंड्स... चूतिया बना गया रे आते ही यार.." मैं ट्रेन का वेट करते करते सोचने लगा.. यहाँ के स्टेशन्स या सबवे भी कहते हैं लोग, वो काफ़ी सॉफ सुथरे थे और लोग भी ध्यान रख रहे थे कि किसी प्रॉपर्टी को डॅमेज ना करें, कंप्यूटर्स, बेंचस देख ऐसा लग रहा था मानो इससे अच्छी जगह हो ही नहीं सकती यहाँ.. और ठंड की वजह से जगह जगह हीटर्स भी ऑन थे..
"मम, दा ट्यूब ईज़ हियर...." एक लड़के ने चिल्ला के कहा तब मैने सामने आती हुई ट्रेन को देखा... ट्रेन को देख समझ आया कि इसे ट्यूब क्यूँ कहते हैं.. सबवे में आस पास देखा तो भीड़ नहीं थी इतनी, मैने सोचा चलो अच्छा है, शांति से मॅच देखने जाएँगे, टाइम तो काफ़ी था, मॅच रात के 10 बजे थी तो आइ थॉट ओके, इसलिए ट्रेन के रुकने का इंतेज़ार किया.. ट्रेन के रुकते ही लोगों की भीड़, नहीं , सूनामी कह सकते हैं वैसे लोग बाहर निकले...
"अरे.. हेलो, एक्सक्यूस.... एक्सक्यूस मी..... माइ ट्रेन विल.. एक्षकुसई मी...." मैं कभी अपने बॅग को संभालता तो कभी सामने ट्रेन को देखता जो फिलहाल खड़ी ही थी, अब से मुंबई लोकल ट्रेन्स को गालियाँ देना बंद, अब से मैं इस ट्यूब ट्रेन को गालियाँ दूँगा.. मैं खुद से कहने लगा और धक्का मुक्की करके ट्रेन के दरवाज़े के पास पहुँच गया...
"सालों इंडियन तो मैं भी हूँ... भीड़ में तो हम भी आगे निकल जाते हैं, आदत जो है बचपन से..." मैने खुद से कहा और मुस्कुराने लगा क्यूँ कि मेरे आने के कुछ सेकेंड्स बाद ही ट्रेन का दरवाज़ा बंद हुआ..
"फीव....." मैने अपना चेहरा सॉफ किया और नज़र आस पास दौड़ाई तो जितनी भीड़ उतरी थी, उतनी ही वापस अंदर भी चढ़ चुकी थी.. साला सबवे तो खाली था,
लेकिन इतने लोग आए कहाँ से.. मैने सोचा और आस पास खड़े लोगों को देखने लगा... भीड़ में थोड़ी सी दूरी पे कुछ गोरे दिखे जो मफ्क की टी पहने हुए थे.. मैने उन्हे देखा तो उनकी तरफ ही देखता रहा.. नहीं, मैं गे नहीं हूँ, पर स्पोर्ट्स के लिए इतना पॅशन, और वो भी फुटबॉल के लिए मैने पहली बार देखा था, हां मैं युरोप के देश में ही हूँ, जहाँ क्रिकेट के अलावा भी काफ़ी गेम्स खेले जाते हैं, खैर, भीड़ से लड़के मैं उनके पास पहुँचा और उनसे कोशिश की कि फुटबॉल या मफ्क की बातें करके थोड़ी पहचान बढ़ाई जाए, लेकिन सालों ने बात तो दूर, जवाब भी नहीं दिया
"स्पोर्ट्स युनाइट्स दा पीपल... घंटा, सब साला पेपर की बातें हैं, कोई किसी को यूनाइट नहीं करता और अपनी बेज़्ज़ती करवा कर फिर उनसे दूर हो गया.. करीब 300 मील का सफ़र ट्रेन ने ढाई घंटे में तय किया.. स्टेशन से उतर के 5 मिनिट की दूरी पे था एमयू सिटी का होम ग्राउंड... दा ओल्ड ट्रॅफर्ड स्टेडियम.. डोर से देखा तो भीड़ बिल्कुल नहीं थी, शायद वीकडे की वजह से खाली है, अच्छा है... मैने खुद से कहा और टिकेट काउंटर पे चला गया
"वी आर फुल सर..." टिकेट काउंटर पे बैठे बंदे ने कहा और मूह पे क्लोस्ड का बोर्ड दे मारा
"हे, यू वॉंट आ टिकेट.." टिकेट काउंटर से थोड़ी दूरी पे खड़े बंदे ने कहा
"अब इतना दूर आया हूँ भाई तो मॅच देखना ही है... टिकेट तो चाहिए ना.... ओह यस, यू हॅव एक्सट्रा.." मैने उस बंदे को जवाब दिया
"यस, यूआर आ मूक फॅन.." उसने हाथ मिला के कहा
"ओह यस, बिग टाइम..." एमयू सिटी का नाम सुनते ही खून तो साला जैसे रेस के घोड़े की तरह दौड़ने लगता है, रोंगटे ऐसे खड़े होते हैं जैसे यह दुनिया का आखरी फुटबॉल मॅच हो और एमयू सिटी का जीतना गॅरेंटीड हैं.."
"ओह मी टू.. आइ हॅव आ टिकेट एक्सक्लूसिव्ली वित एमयू सिटी फॅन क्लब, पर्चेस आंड एंजाय.."
"हाउ मच.." मैने खुशी के मारे इतना पूछा.. एमयू सिटी का होम ग्राउंड, उपर से मफ्क के साथ बैठना, इससे अच्छी बात तो हो ही नहीं सकती.. आज आर्सेनल की गान्ड फटेगी साला..
"नोट मच, जस्ट 100 पाउंड्स..." उसने टिकेट देके कहा
"269 पाउंड्स में से 100 की टिकेट, वॉटरलू स्टेशन, मेरे कॉलेज वाला, उसकी टिकेट 10 पाउंड्स.. फिर भी 159 बचेंगे.. ओके, आइ विल टेक इट.. थॅंक्स..." मैने झट से उसे पैसे दिए और टिकेट लेके जाने लगा
"ईस्ट स्टॅंड... लेफ्ट कॉर्नर Z4..." मेरी सीट का नंबर देख कुछ समझ नहीं आया, ईस्ट स्टॅंड क्यूँ, मेरे हिसाब से मफ्क तो सेंटर में बैठते हैं..
"ओह बेन्चोद..." मैने टिकेट पे प्रिंटेड प्राइस को देख कहा
"20 पौंड की टिकेट , 100 पाउंड्स..." पैसे देख मैं खुद को ही गालियाँ देने लगा.. साला दूसरी बार चूतिया बना हूँ, इस बार 80 पाउंड्स में... दुखी होके वहीं खड़ा रहा और ईस्ट स्टॅंड के गेट पे जाने लगा..