Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस - SexBaba
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Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस

hotaks444

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Nov 15, 2016
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दोस्तों, 
मैंने एक कहानी बहुत पहले नेेट पर पीडीएफ में पढ़ी थी, जो मुझे बहुत अच्छी लगी। 
लेख़क का नाम मुझे नहीं मालूम।
इस कहानी को ही मैं मस्ती एक्सप्रेस के नाम से प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसका श्रेय मूल लेख़क को।
तो चलिये कहानी शुरू करते हैं:
 
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मस्ती एक्सप्रेस_Masti Express

सुनीता


मैं सुनीता हूँ। कद-काठी से अच्छी हूँ। सही जगह पर सही मांश है। बहुतों से सुना है कि मेरे बदन में बहुत आकर्षण है। चाल ढाल में ग्रेस है। कई लोगों की निगाहें अपनी और उठती हुई देखती हूँ। उम्र है जब सेक्स की तरफ खुलापन आ जाता है और झुकान बढ़ जाता है। अच्छे घर से हूँ और अच्छे घर में व्याही गई हूँ। पति राकेश का अच्छा कारबार है। एक जानी मानी कालोनी में दूसरे माले के अपने फ्लैट में रहती हूँ। पहनने ओढ़ने का शौक है। मेरा विश्वास है कि हर स्त्री को सज सवंर के रहना चाहिये। मैं सेक्स से संतुष्ट हूँ। पति हफ्ते में कम से कम दो बार चुदाई करते हैं। कभी मेरी तबीयत होती है तो पहल करके चुदवाती हूँ। 

सामने ही गली के उस पार मिस्टर और मिसेज़ मलहोत्रा का दुमंजिला घर है। सयाने बच्चे होने के बावजूद भी मिसेज़ मलहोत्रा कितनी सजी धजी रहती है। साथ वाले फ्लैट की मिसेज़ अग्रवाल की उम्र भी कम नहीं है, एक बड़ा लड़का है लेकिन अब भी छरहरी और चुस्त हैं। मेरे नीचे फ्लैट में मेरी जेठानी रहती हैं, उम्र ज्यादा नहीं है पर कैसी ढीली ढाली है न बनाव की और ध्यान न कपड़ों की परवाह। 

करीब एक महीने से ऊपर की खाली मंजिल में मलहोत्रा लोगों ने एक किरायेदार रख लिया है। बेटी की शादी हो गई है और बेटा पढ़ाई के लिये बाहर चला गया है। किरायेदार दो ही जने हैं। सामने के फ्लैट में होने से उनकी जोर से कही बातें साफ सुनाई देती हैं। पति का नाम शिशिर है। लंबा और सुदर्शन है। सुना है एम॰बी॰ए॰ है किसी प्राइवेट कम्पनी में बड़ा आफिसर है। पत्नी का नाम कुमुद है। वह भी लंबी और सुंदर है, बैंक में काम करती है। 

इधर कुछ दिनों से मैं देख रही हूँ कि शिशिर मुझे घूरता रहता है। 

रात में जब भी मेरी चुदाई होती है तो राकेश अंदर ही झड़ जाता है। मैं अपनी चड्ढी से ही उसका वीर्य पोंछ लेती हूँ। सुबह जब उठती हूँ तो बिना चड्ढी के ही पेटीकोट पहना होता है। कभी-कभी तो ब्रा भी नहीं डाली होती है। जल्दी-जल्दी ब्लाउज़ डाला होता है जिसमें से मेरी चूचियां दिखाई पड़ती हैं। सुबह राकेश को जाने की जल्दी होती है तो उसी हालत में मैं उसका नाश्ता बनाती हूँ, फिर तैयार होती हूँ। 

शिशिर जब उसके बेडरूम से लगी छत पर आकर खड़ा होता है तो सामने ही मेरा किचेन पड़ता है। उसका इस तरह मुझे अधनंगी हालत में देखना बहुत खराब लगता है। कई बार सोचा कि मिसेज़ मलहोत्रा से शिकायत करूं लेकिन थोड़ी शर्म खाकर रह जाती हूँ। 

उस दिन रात में पहल करके मैंने चुदाई कराई थी लेकिन राकेश बहुत ही जल्दी झड़ गया। सुबह उठी तो तबीयत शांत नहीं हुई थी, बदन में शुरूर था। 

सामने देखा तो शिशिर एकटक घूर रहा था। उस समय उसका इस तरह देखना बुरा नहीं लगा। सोचा मेरी बला से देखने दो। मैं भी ठीक उसके सामने बगैर चड्ढी और ब्रा के पेटीकोट और ब्लाउज़ में वैसे ही खड़ी रही। देखती क्या हूँ कि उसने अपने गाउन के बटन खोलकर दोनों हाथों से सामने से गाउन खोल दिया। उसने कुछ भी नहीं पहना था। सामने उसका लण्ड तन्ना के खड़ा था। बदन उसका बहुत सुडौल था। पेट बिल्कुल भी नहीं निकला था। उसका लण्ड राकेश से काफी बड़ा और मोटा था। गर्म तो मैं थी ही आदतन मेरा हाथ मेरी चूत पर चला गया और मैं पेटीकोट के ऊपर से सहलाने लगी। 

अचानक होश वापिस आ गया तो बड़ी ग्लानि हुई। खीझकर अंदर भाग गई। मेरी सांसें बड़े जोरों से चल रही थीं। तबीयत फिर भी न मानी। उसके लण्ड को फिर देखने के सम्मोहन को न रोक सकी। बेडरूम की खिड़की से छुपके देखा तो मेरे अचानक भाग जाने से उसका मुँह खुला का खुला रह गया था। नीचे से कुछ आवाज आई और वह गाउन बंद कर नीचे चला गया।
 
उस घटना के बाद मैं शिशिर के सामने नहीं गई। मन में चोर होने से किसी से कहने की हिम्मत नहीं हुई। मेरी झिझक भी खत्म हो गई। पेटीकोट में घूमती रहती, कभी-कभी तो जानबूझ कर और उघाड़ लेती। कभी ऐसा पोज बनाती कि चूचियां, चूतड़ या यहां तक कि चूत उभर के सामने आ जाये। छुप-छुप करके देखती कि वह नंगा तो नहीं हो गया है। इस तरह के खेल में मुझे मजा आने लगा था। इऩ दिनों मैं राकेश से चुदवाती भी बहुत थी। 

एक सुबह शिशिर ने छत पर खड़े-खड़े ऊँची आवाज में कहा- “आज रात दस बजे तमाशा होगा खिड़की खोल के रखना…” बात जानबूझ के कही गई थी। 

मैंने निश्चय कर लिया कि खिड़की नहीं खोलूंगी, राकेश के सामने कुछ ऐसी वैसी बात हो गई तो? राकेश साढ़े दस के करीब खर्राटे लेने लगा। मुझसे नहीं रहा गया। मैंने शिशिर के बेडरूम के सामने की खिड़की खोल दी। ठीक सामने उसकी खिड़की खुली थी। खिड़की के सामने पलंग पड़ा हुआ था जिसका सिरहाना खिड़की की ओर था। पलंग पर नंगी कुमुद लेटी थी। वह खिड़की की तरफ नहीं देख सकती थी। उसकी चूचियां साफ नजर आ रही थीं, छोटी-छोटी सख्त बादामी फूले हुये चूचुक। उसने अपनी टांगें चौड़ी कर रक्खी थीं। टांगों के बीच में पूरा नंगा लण्ड ताने शिशिर बैठा था और उसकी निगाहें खिड़की पर जमी हुई थीं। 

मैं खिड़की खोलकर पलंग पर लेट गई। उसकी खिड़की मेरी आँखों के सामने थी। उसने सीधा मेरी आँखों में देखा और हाथ से लण्ड पकड़कर कुमुद की चूत में पेल दिया। कुमुद ने अपनी चूत उठाकर पूरा ले लिया। शिशिर सीधा मेरी आँखों में देख रहा था और कस-कस के कुमुद की चूत में पेल रहा था। चोद कुमुद को रहा था लेकिन मुझे लग ऐसा रहा था जैसे चोटें मेरी चूत में पड़ रही हों। 

कुमुद भी हर चोट पर अपनी चूत आगे कर देती थी। 

पता नहीं मेरा हाथ कब मेरी चूत पर पहुँच गया। बगल में मेरा पति लेटा था और मैं साड़ी उठाये चड्ढी एक तरफ किये अपनी चूत में उंगलियां अंदर बाहर कर रही थी। जैसे शिशिर की रफ्तार बढ़ने लगी तो मैं इस बुरी तरह से अपने को ही चोदने में लीन हो गई कि शिशिर के झड़ने के पहले ही मैं खलास हो गई। उस रात जब मैं सोई तो ऐसा लगा जैसे शिशिर के द्वारा चोदी गई हूँ।


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पता नहीं मेरा हाथ कब मेरी चूत पर पहुँच गया। बगल में मेरा पति लेटा था और मैं साड़ी उठाये चड्ढी एक तरफ किये अपनी चूत में उंगलियां अंदर बाहर कर रही थी। जैसे शिशिर की रफ्तार बढ़ने लगी तो मैं इस बुरी तरह से अपने को ही चोदने में लीन हो गई कि शिशिर के झड़ने के पहले ही मैं खलास हो गई। उस रात जब मैं सोई तो ऐसा लगा जैसे शिशिर के द्वारा चोदी गई हूँ। 

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कल रात की बात पर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ। ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि मैंने अपना हाथ चूत पर रखा हो… जरूरत ही नहीं पड़ी थी। लेकिन शिशिर पर नाराजी नहीं थी। उसके बाद तो तबीयत होती कि वह सब फिर देखने को मिले। रात में खिड़की बार-बार खोल-खोल के देखती लेकिन उसकी खिड़की बंद होती। 

शायद उसने यह सब करते देख लिया था। एक सुबह फिर ऊँची आवाज में जैसे अपने से ही बात कर रहा हो बोला- “पहले तमाशा दिखाओ फिर देखने को मिलेगा…” 

मैंने सोचा मियां बड़े ऊँचे उड़ रहे हैं। भूल जाओ कि मैं यह सब करूंगी और मैं अपने रूटीन में लग गई। शिशिर अब इतना घूर घूर के नहीं देखता था। अच्छा लगने कि जगह कुछ सूना सा लगता था। जब अपने अंदर डलवाती थी तो शिशिर की बात को सोचकर लाल हो जाती थी और बड़ी, रोमांचित भी। 

उस दिन राकेश का जनमदिन था। सुबह से ही मन प्रसन्न था। शाम को सज सवंर के हम बाहर खाना खाने जाते थे और रात में राकेश तबीयत से हमें चोदता था। शिशिर को छत पर देखा तो मन ने जोर मारा और उसको देखकर मैंने खिड़की खोल दी जैसे रात का संकेत दे दिया। सोचा आज देखो हमारा मजा।

हम लोग रात को देर से लौटे। मेरी खिड़की और सामने शिशिर की खिड़की खुली हुई थी। शिशिर अपनी तरफ का लैंप जलाकर कुछ पढ़ रहा था। कुमुद शायद सो गई थी। अंदर आते ही राकेश ने मुझे बांहों में ले लिया और मेरे होंठों पर कस के अपने होंठ रख दिये। 

सामने मैंने देखा तो शिशिर उठकर खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपनी लाइट आफ कर दी। 

मुझे जोश आ गया। मैं राकेश को साथ लिये पलंग पर आ गिरी। राकेश ने ब्लाउज़ के ऊपर ही मेरे दांयें स्तन पर अपना मुँह रख दिया और बांयें स्तन को मुट्ठी में जकड़ लिया। मैंने पैंट के ऊपर से ही उसके लण्ड पर हाथ रखा और सहलाने लगी। उसको जैसे करेंट लग गया हो। उसने जल्दी से मेरे ब्लाउज़ के बटन और ब्रा के हुक खोल डाले। मेरी भरपूर गोलाइयां बाहर निकल आईं, जिन पर मुझे बड़ा नाज़ था। इसके पहले कि वह एक चूची को मुँह में लेता मैंने कहा- “इतनी अच्छी साड़ी पहनी है इसको तो उतार दो…”

राकेश के ऊपर बहसीपन सवार था बोला- “साड़ी में इतनी खूबसूरत लग रही हो आज साड़ी में ही करूंगा…” इसके साथ ही उसने मेरी साड़ी और पेटीकोट को पूरा उलट दिया। 

इसके पहले कि वो मेरी पैंटी उतारता मैंने उसके पैंट के बटन खोल डाले और एक झटके में अंडरवेर समेत पैंट उतार फेंका। उसका एकदम तना हुआ लण्ड स्प्रिंग जैसा बाहर निकल आया। कमीज फेंक कर वह मेरे ऊपर आ गया। मुँह में एक चूची ले ली और चूचुक चूसने लगा। मैं पूरी तरह पिघल चुकी थी। यह जानकर कि शिशिर यह सब कुछ देख रहा है मैं बहुत ही उत्तेजित हो गई थी। मेरी चूत बुरी तरह रिसने लग गई थी। मैंने कस के उसका सिर अपनी चूची पर और दबा लिया और नीचे हाथ डालकर लण्ड पकड़ लिया। 

कस के मुट्ठी लण्ड पर फेरते हुये बोली- “अब डालो भी न…”

ऊपर उठकर राकेश ने मेरी पैंटी उतार फेंकी। मैंने टांगें चौड़ी कर ली। चिकनी सुडौल टांगों के बीच अब मेरी चूत मुँह खोले इंतेजार कर रही थी, एकदम चिकनी। मैं पूरी तरह साफ करके रखती हूँ। जब राकेश ने लण्ड का अगला सिरा चूत के मुँह पर रखा तो मेरी आँखों के सामने शिशिर का चेहरा आ गया कि कैसे मुँह बाये वह सब कुछ देख रहा होगा। चूत में फुरेरी हो आई। राकेश ने मेरी दोनों गोलाइयों को दोनों हथेलियों में कस के जकड़ लिया और लण्ड को अंदर पेला। मेरी चूत एकदम गीली थी। उसका पूरा का पूरा लण्ड एकदम घुस गया। पहले तो अंदर जाने में थोड़ा समय लगता था। मेरे मुँह से 'सी' निकल गई। मैंने उसकी छाती के दोनों ओर हाथ डालकर उसको कस के जकड़ लिया। 

पूरा बाहर करके राकेश ने लण्ड फिर पेल दिया। 

मैं कह उठी- “आह्ह…”

अब की बार वह लण्ड चूत के बाहर दूर तक ले गया और एकदम जोर लगा के घुसा दिया। चूत के ऊपर लण्ड की जड़ धप्प से पड़ी। मैं 'आआह्ह' कह उठी। उसने दो तीन बार ऐसा ही किया। मेरा मजा बढ़ रहा था 'आह्ह' ऊँची होती जा रही थी। 

अचानक वह बोला- “मैं झड़ रहा हूँ…” और वो मेरे ऊपर ढेर हो गया, ढेर सारा गाढ़ा पदार्थ चूत मेरी में भर दिया। कभी-कभी राकेश के साथ ऐसा हो जाता था। मुझे यह सोचकर झेंप सी हो रही की कि शिशिर क्या सोचता होगा।
 
अगले दिन शनिवार को मिसेज़ मलहोत्रा ने एक पार्टी रखी थी। पास पड़ेस के आठ दस लोगों को बुलाया था। शिशिर से मेरा और राकेश का परिचय मिसेज़ मलहोत्रा ने कराया। कितनी अजीब बात थी की हम लोगों को एक दूसरे के अंदर का सब कुछ मालूम था और हम एक दूसरे को जानते तक न थे। शिशिर की आँखों में शरारत झांक रही थी। मैं दबंग होने के बावजूद भी झिझक रही थी। मिलते ही राकेश और शिशिर एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। ऐसे घुल मिल के बातें कर रहे थे जैसे अरसे से एक दूसरे को जानते हों। 

शिशिर और कुमुद का स्वभाव सरल था। आसानी से सबसे घुल मिल गये। थोड़ी ही देर में एक ग्रुप सा बन गया जिसमें राकेश, मैं, शिशिर, कुमुद, मिसेज़ अग्रवाल और मिसेज़ मलहोत्रा शामिल थे। मिस्टर अग्रवाल अभी आये नहीं थे। पार्टी में आना जाना उनका ऐसा ही होता था, हर समय धंधे की धुन सवार रहती थी। मिस्टर मलहोत्रा मेजबानी में सबसे मिलने में ही व्यस्त थे। ग्रुप में खूब हँसी मजाक चल रहा था। जोकस सुनाये जा रहे थे जिनमें सेक्स का पुट था। मिसेज़ अग्रवाल बढ़ चढ़ के भाग ले रही थीं। 

मिसेज़ अग्रवाल कुछ-कुछ भारी बदन की गदराई जवानी की प्रौढ़ औरत थीं। पीलापन लिये गोरा रंग, फैले हुये चूतड़, जो चलते समय बड़े मादक तरीके से हिलते थे, और भरी हुई खरबूजे सी छातियां। सेक्स की बात करती थीं तो नथुने फड़कने लगते थे, छातियां और फैल जाती थीं। सब एक दूसरे को सहज तरीके से संबोधित कर रहे थे। राकेश कुमुद को भाभी कह रहा था। केवल मैं और शिशिर एक दूसरे को सीधा संबोधित नहीं कर रहे थे। शिशिर अकेले मौके की तलाश में था जो नहीं मिल पा रहा था और न ही मिल पाया। पार्टी से जाते समय उसने मेरी आँखों में झांका तो उसके चेहरे पर निराशा थी। जाते-जाते उन लोगों को राकेश ने दूसरे दिन अपने यहां निमंत्रित कर लिया। 

जिस मौके की उसे तलाश थी दूसरे दिन उसको मिल गया। अकेले पाते ही वह मेरे से चिपट गया। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। घबड़ा के मैं पीछे हट गई, मेरा चेहरा पीला पड़ गया। मेरा चेहरा देखकर उसने एकदम से मेरा हाथ छोड़ दिया। बोला- “सारी, मैंने सोचा तुम मेरा लेना चाहती हो…” 

उसके बाद उसका वर्ताव एकदम शालीन हो गया और सहजता से उस शाम से वह मुझे भाभी कहकर बुलाने लगा। दोनों घरों में बहुत निकटता हो गई। अक्सर मिलना-जुलना होने लगा। लेकिन मैं अभी तक उसे ठीक से संबोधित नहीं कर पा रही थी। 

ग्रुप भी आये दिन मिलने लगा। कभी मलहोत्रा के यहां, कभी अग्रवाल के यहां, कभी शिशिर के यहां, तो कभी मेरे यहां। अब खुलकर सेक्स की बातें होने लगी थीं। मिसेज़ मलहोत्रा जितनी छुपा-छुपा के कहती थीं, मिसेज़ अग्रवाल उतनी ही साफ-साफ जबान में जिनमें हाव भाव और चेष्टायें भी सामिल होती थीं। राकेश और शिशिर अब बेधड़क बोलने लग गये थे, जिसमें मजाक भी करने लग गये थे। कुमुद अनसुनी सी करती थी, लेकिन मैं बड़े ध्यान से सुनती थी। मुझे बड़ा ही आनंद आता था। 

शिशिर सचमुच में मेरा और अपनी बीवी का बड़ा ख्याल रखता था। दोनों परिवार साथ जाते तो मेरे उठने बैठने चाय पानी और जरूरतों के लिये तैयार रहता। वो मुझे भाभी-भाभी कहता और उसी तरह मानने लगा था। एक बार हम ग्रुप में बैठे थे। 

किसी बात पर मेरा ध्यान बटाने के लिये वो पुकार उठा- “भाभी भाभी…” 

मेरे मुँह से अचानक निकल पड़ा- “हाँ बोलिये देवर जी…”

सबने तालियां बजाई- “अब सही माने में देवर भाभी हुये…” 

उसके बाद मैं उस देवर कहकर ही बुलाने लगी। पहली बार की हाथ पकड़ने की घटना के बाद उसने फिर कोई चेष्टा नहीं की। 

लेकिन अब मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे वह अनजाना शिशिर ही भा रहा था। मैं उसका लण्ड देखने को तरस रही थी। उसके द्वारा कुमुद की चुदाई देखना चाहती थी। जब भी वह सेक्स की बात करता था तो मैं गरम हो जाती थी। 

आखिर मेरे से न रहा गया और एक दिन दबी जबान से कह दिया- “देवरजी तमाशा दिखाओ न…”

वह चौंक गया। देर तक मेरी तरफ देखता रहा लेकिन बोला कुछ नहीं। 

उस रात उसकी खिड़की के पट खुले हुये थे। देर रात कमरे की बत्ती जली तो शिशिर पलंग के किनारे नंगा खड़ा था। मोटा लंबा लण्ड मुँह बाये सामने तन्नाया हुआ था और सामने टांगें चौड़ी किये हुये कुमुद पलंग के किनारे पड़ी हुई थी। उसकी चूत का मुँह खुला हुआ था। शिशिर ने झुक कर लण्ड उसकी चूत में लगा के जैसे ही पेला, मैं धक्क से रह गई। उधर शिशिर पेले जा रहा था और कुमुद चूत उठा-उठा करके उसको झेल रही थी और मैं छटपटा रही थी। फिर राकेश को जगा करके मैं अपनी चूत खोल करके उसके ऊपर सवार हो गई और उससे कस-कस कर झटके लगाने को कहा। झड़ जाने के बाद भी मैं पूरी तरह शांत नहीं हुई थी। 

उसके बाद मैं शिशिर की तरफ झुकान दिखाने लगी। जानबूझ कर आंचल गिरा देती और अपना ब्लाउज़ ठीक करने लगती, कामुक पोज बना देती, उसके सेक्स के जोक पर मुँह बना देती और आये दिन ‘तमाशा’ दिखाने की मांग करती।


महफिल
मिसेज़ अग्रवाल के यहां ग्रुप की महफिल जमी हुई थी। आदत के अनुसार मिस्टर अग्रवाल आकर के काम धंधे पर चले गये थे। मिसेज़ मलहोत्रा का जोक चल रहा था-
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मिसेज़ अग्रवाल के यहां ग्रुप की महफिल जमी हुई थी। आदत के अनुसार मिस्टर अग्रवाल आकर के काम धंधे पर चले गये थे। मिसेज़ मलहोत्रा का जोक चल रहा था-

एक दिन अकबर बादशाह ने पूछा- बीरबल मिसेज़ अग्रवाल जैसी गोरी औरत की अंदर की चीज़ क्यों काली है?

राकेश बोल उठा- “मिसेज़ मलहोत्रा तुम्हें कैसे पता कि काली है?” 

शिशिर ने तुरंत जोड़ा- “हाँ भाई यह तो केवल मिस्टर अग्रवाल या फिर राकेश को पता है…”

मिसेज़ मलहोत्रा भी पीछे रहने वाली नहीं थीं- “हाथ कंगन को आरसी क्या? मिसेज़ अग्रवाल दिखा दें अपनी…”

मेरे को सब्र नहीं था बोली- “अब जोक भी कहो न…”

मिसेज़ मलहोत्रा ने आगे कहा- “अकबर बादशाह ने एक हफ्ते का समय दिया और कहा कि अगर न बताया तो देश निकाला…” 

बीरबल बड़े परेशान। उन्हें जवाब ही नहीं सूझता था। 

उनकी पत्नी ने यह हालत देखी तो पूछा- “आप इतने परेशान क्यों हैं?”

ज्यादा जोर देने पर बीरबल ने बादशाह का प्रश्न दोहराया। 

प्रश्न सुनकर पत्नी हँसने लगी और बोली- “बस इतनी सी बात है? आप बादशाह से कहिये मेरी पत्नी इसका जवाब देगी…” 

दूसरे दिन मिसेज़ बीरबल अकबर के दरबार में पहुँची। बादशाह के जवाब मांगने पर उन्होंने एक जोर का चांटा अकबर के गाल पर लगाया। अकबर का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। सब लोग सन्नाटे में आ गये। 

मिसेज़ बीरबल बोलीं- “जहांपनाह एक चोट से ही आपका चेहरा काला पड़ गया। हमारी इसको तो कितनी चोटें खानी पड़ती हैं…” 


शिशिर बोला- “कितनी इश्तेमाल हुई है, जानने का अच्छा तरीका पता चल गया…”
 
मिसेज़ अग्रवाल भी जोक में कहां पीछे रहने वालीं थीं, कहने लगीं- “बात उस समय की है जब मिसेज़ मलहोत्रा जनरल स्टोर्स को संभालती थीं। ग्राहक को खुश रखने का उन्हें काफी जोश था। एक बार एक ग्राहक आया। उसे निजी चीजें खरीदनी थीं। सबसे पहले उसने अच्छी ब्रेजियर मांगी…”

मिसेज़ मलहोत्रा ने पूछा- “क्या साइज़ है?”

ग्राहक ने कुछ देर सोचा फिर चटखारे लेकर हाथ की एक-एक उंगली चूसने लगा फिर अंगूठे को दिखा के बोला इस साइज़ की। 

मिसेज़ मलहोत्रा- “नहीं भाई, कप साइज़ क्या है?”

ग्राहक की समझ में नहीं आया। 

मिसेज़ मलहोत्रा ने कहा- “देखो इधर…” फिर अपना आंचल गिरा के अपने उभार सामने करती हुई बोलीं- “इतने बड़े हैं या इनसे छोटे?”

ग्राहक- “इस तरह खड़े नहीं होते…”


मिसेज़ अग्रवाल आगे कुछ कहतीं उसके पहले ही मिसेज़ मलहोत्रा बोल पड़ीं- “हाँ याद पड़ता है मिस्टर अग्रवाल आये थे। उन्होंने सबसे बड़ी साइज़ की ब्रेजियर ली थी। लेकिन दूसरे दिन वापिस ले आये थे कि यह तो बहुत छोटी है…”
 
मिसेज़ अग्रवाल आगे कुछ कहतीं उसके पहले ही मिसेज़ मलहोत्रा बोल पड़ीं- “हाँ याद पड़ता है मिस्टर अग्रवाल आये थे। उन्होंने सबसे बड़ी साइज़ की ब्रेजियर ली थी। लेकिन दूसरे दिन वापिस ले आये थे कि यह तो बहुत छोटी है…” 

लेकिन मिसेज़ अग्रवाल चुप रहने वाली नहीं थीं- “सुनो-सुनो फिर ग्राहक ने कंडोम मांगा जिसमें अपनी मिसेज़ मलहोत्रा एक्सपर्ट हैं…” 

मिसेज़ मलहोत्रा ने फिर पूछा- “क्या साइज़ है?”

ग्राहक के मुँह पर हवाइयां उड़ने लगीं। 

मिसेज़ मलहोत्रा ने सुझाया “स्टोर के पीछे जाओ। वहां एक जंगला है। उसमें तीन छेद हैं। उनमें बारी-बारी से अपना डालकर देखो किसमें फिट होता है?”

जैसे ही ग्राहक जंगले की तरफ गया मिसेज़ मलहोत्रा अंदर के रास्ते से जंगले के पीछे पहुँच गईं और नाप लेने के लिये साड़ी उठाकर उन्होंने अपनी रसभरी जंगले के पीछे बारी-बारी से हर छेद से सटा दी। 

ग्राहक के लौटने के पहले ही वह वापिस स्टोर पहुँच गईं और उसके लिये कंडोम निकाल ही रही थीं कि ग्राहक बोला- “कंडोम छोड़िये मेरे को 15 फिट जंगला दे दीजिये…”


इस पर खूब हंगामा मचा।
 
मिसेज़ अग्रवाल ने चालू रखा- “एक बार एक ग्राहक का मन मिसेज़ मलहोत्रा की ‘खास चीज़’ पर ही आ गया। उसकी चाह पूरी करने के लिये वह उसे अंदर के कमरे में ले गईं। उसको खुश करने में या खुद खुश होने में उन्हें समय का ध्यान ही न रहा। देखा तो मिस्टर मलहोत्रा के आने का समय हो गया था। जल्दबाजी में भागीं तो पैंटी पहनना ही भूल गईं। एक टैक्सी रोकी और निढाल होकर पड़ रही। होश संभाला तो देखा कि बगैर पैंटी के अंदर का सारा नजारा रियरब्यू मिरर में दिख रहा था और टैक्सी ड्राइवर घूरे जा रहा था। 

बात बनाने के लिये ड्राइवर बोला- “मैडम पेमेंट कैसे करेंगीं?” 

मिसेज़ मलहोत्रा अभी भी मस्ती में थीं, शरारत से अंदर की चीज़ और दिखाते हुये कहा- “इससे कैसा रहेगा?”

ड्राइवर ने जवाब दिया- “और छोटी साइज़ का नोट नहीं है?” 

मिसेज़ अग्रवाल ने ट्रम्प कार्ड छोड़ दिया था। वह इसी तरह उलझती रहती थीं। कभी मेरा और कुमुद का नाम ले आतीं थीं। 
[size=large]अब शिशिर की बारी थी। 
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शिशिर ने कहा- राजू राजी पति पत्नी थे। राजी की बहन की शादी थी। काफी पहले से दोनों को वहां जाना पड़ा। राजी का भरा पूरा परिवार था। नजदीक के मेहमान भी आ गये थे। घर में अच्छी खासी रौनक हो गई थी। ऐसे में सब औरतों को एक कमरे में और मर्दों को दूसरे कमरों में सोना पड़ता था। राजू राजी मजा नहीं ले पा रहे थे। उन्होंने एक तरीका निकाला। 

राजी ने कहा- “मैं हीरे की अंगूठी पहनकर सोया करूंगी। अंगूठी रात के अंधेरे में चमकेगी। जब तुम्हारी तबीयत हो तब देर रात में आ जाया करो और बगैर आवाज किये मेरी खोलकर अपनी प्यास बुझा लिया करो। लेकिन ध्यान रहे चुपचाप करना क्योंकी अगल बगल में और औरतें सोई होंगी…” 

राजू ने कहा- “काम बन गया…” आये दिन जाता और तबीयत से मज़े उड़ाता। 

राजी उसकी बेजा हरकत पर आवाज भी नहीं उठा सकती थी। उन्होंने अपने इस प्लान का कोडनाम रखा था ‘परांठे खाना’, राजी या राजू एक दूसरे से शरारत करने के लिये कहते ‘रात को दो परांठे खाये’। 

एक सुबह राजू खुश था। राजी को देखा तो बोला- “पहले तो तुमने कल रात बड़ी आना-कानी की फिर बड़े मज़े लेकर दो परांठे खाये…”

राजी बोली- “नहीं तो… मेरी तो कल से अंगूठी ही नहीं मिल रही है…”

सामने से इठलाती हुई मोहिनी भाभी आकर बोलीं- “बीवी जी अपनी यह अंगूठी लो, कल बाथरूम में रखी छोड़ आईं थीं…” फिर बोलीं- “मेरी अंगीठी गरम थी तो सोचा कि दो परांठे मैं भी सेंक लूं…”

फिर मक्कारी से राजू की तरफ देखती हुईं- “क्यों लाला जी परांठे ठीक सिके थे?”


[size=large]शिशिर का जोक सुनकर सब की नजरें बचाकर मदभरी आँखों से मुँह बिचकाकर मैंने अपनी आशक्ति जता दी। शिशिर से सेक्स की बातें सुनती थी तो ‘तमाशे’ याद आ जाते थे और मेरी चूत में खुजली होने लगती थी, और उसकी मेरी तरफ वह आत्मियता। उसे मैं अपना समझने लगी थी। मैं पके आम की तरह उसकी झोली में गिरने को तैयार थी। लेकिन शिशिर था कि दूरी ही बनाये हुये था। आज तो मौका देखकर हँसी के बहाने दो बार मैं उसके ऊपर गिर चुकी थी। 

इस बार मेरी हरकत का उसके ऊपर असर हुआ। 

उसी दिन अकेला पाकर जोक का माध्यम इश्तेमाल करता हुआ शिशिर बोला- “ओ भाभी अपनी अंगीठी पर मुझे भी परांठे खिलाओ न…”

मनचाही बात सुनकर मैं शोख अदा से बोली- “मैंने कब मना किया है जब चाहे खालो…”

शिशिर- “लेकिन मैं जूठा नहीं खाता…”

मैं- “जूठी तो हो ही गई हूँ देवर जी…”

शिशिर- “मेरा मतलब वह नहीं है भाभी… 24 घंटे तक कम से कम जुठराई नहीं होनी चाहिये…”

मैं- “आजकल यह मुश्किल है। होली का समय है राकेश छोड़ते ही नहीं। अच्छा देखती हूँ…”

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होली के रंग

फाग का दिन… सेक्स भरा माहौल, पूरी मस्ती वाला दिन। सुबह से दोपहर तक रंग गुलाल से होली चहेतियों के साथ। मौका मिलते ही चहेती पर जितना हाथ साफ कर सके किया। फिर नहा-धो कर घर-घर जाकर गुझिया पपड़ियां। शाम को एक जगह जमावड़ा जहां भांग की तरंग में खुलकर तानाकसी, छेड़-छाड़, खुले आम सेक्स की बातें। रात तक पति पत्नी दोनों ही आनंद में होते और जम कर मस्त-मस्त चुदाई करते। यह है होली का मदभरा त्योहार। 

कालोनी में औरतें अपना ग्रुप बना लेतीं थीं और आदमी लोग अलग इकट्ठे हो जाते थे। फिर बेझिझक दोनों अलग से होली खेलते रहते थे, फागें और अश्लील गाने गाते रहते थे और मनमानी हरकतें करते रहते थे। मालूम पड़ा था कि औरतें ऐसे गाने गातीं थीं और ऐसी-ऐसी हरकतें करतीं थीं कि आदमी भी दांतों तले उंगली दबा लें। औरतों की लीडर एक मिसेज़ वर्मा थीं, बिहार की। मिस्टर वर्मा थुलथुल थे और अपनी इंजीनियरी के रोबदाब में रहते थे। मिसेज़ वर्मा चुस्त थीं, बिहार का सांवला रंग और प्रौढ़ अवस्था में भी छरहरी देह, आगे को उभरे हुये जोबन और पीछे को उभरे हुये कूल्हे। सब मिला के बड़ी सेक्सी फीगर और उतनी ही सेक्सी उनकी बातें। उनको देखे बिना अंदाजा भी नहीं हो सकता कि औरत में कितना सेक्स भरा हो सकता है और उसको वह कितने खुलेआम प्रदर्शित कर सकती है। 

औरतों और आदमियों के अलग इकट्ठे होने के पहले मिसेज़ मलहोत्रा ने अपने पिछवाड़े आपस में होली खेलने का प्रोग्राम बनाया। उनके यहां एक पूरानी नाद थी जिसमें उन लोगों ने पानी भरकर रंग मिला दिया। जैसे-जैसे लोग आते गये उनको रंग से सराबोर कर दिया गया और गुलाल से चेहरा मला दिया गया। लिहाज़ का पर्दा उठ गया था। आदमी लोग भाभियों को यानि कि दूसरों की बीवियों को पकड़-पकड़कर रंग मल रहे थे। 

कुमुद अपने को बचाये हुये दूर खड़ी थी। उसने नई धानी साड़ी पहन रखी थी जो शिशिर के कहने पर नहीं बदली थी। काफी खूबसूरत लग रही थी। राकेश का मन उसके ऊपर था। वह गुलाल लेकर उसकी ओर बढ़ा। कुमुद भागी, राकेश उसके पीछे भागा। 

दीवाल के पास राकेश ने उसे पकड़ लिया। गुलाल से बचने के लिये कुमुद मुँह यहां वहां कर रही थी। राकेश ने कस के उसको चिपका लिया, यहां तक कि उसकी चूचियों का दबाव वह महसूस कर रहा था। रानों से रानें चिपक गई थीं। उसने तबीयत से कुमुद के गालों पर मुँह से मुँह रगड़कर अपना गुलाल छुड़ाया। मुट्ठी का गुलाल उसके दोनों उभारों पर मला और नीचे हाथ डालकर टांगों के बीच गुलाल का हाथ रगड़ दिया। गुलाल की लाली में उसकी शर्म की लाली छुप गई। दूर से लोगों ने सब कुछ नहीं देखा। न जाने क्यों कुमुद को राकेश पर गुस्सा नहीं आ रहा था बल्की इस सब से उसके मन में मिठास भर गई थी। 

सुनीता ने बहैसियत भाभी के शिशिर को खूब गुलाल मला लेकिन सबसे घाटे में वही रही। क्योंकी उसके और शिशिर के मन में जो था, सबके देखते कुछ न कर पाये। मिसेज़ अग्रवाल वापिस जाने लगीं क्योंकी गाँव से उनकी भौजी आई हुई थीं, जिनको वह घर में छोड़कर आई थीं। 

सबने कहा कि भौजी को यहीं ले आओ। मिसेज़ मलहोत्रा मिसेज़ अग्रवाल को पकड़कर ले गईं और वह लपक कर भौजी को खींच लाये। भौजी अच्छी जवान थीं, गदराया शरीर था, चेहरे पर लुनाई थी, मांसल थीं लेकिन मोटापा नहीं था, मेहनती देह थी, हाथों पैरों में बल था, सीने पर भी अच्छा मांस था। भौजी ने अग्रवाल जी को देखा तो घूँघट खींच लिया और उनकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गईं। 

मलहोत्रा ने अग्रवाल को उकसाया- “पलट दो घूँघट… अपनी सलहज के संग होली नहीं खेलोगे?” 

भौजी सिर हिलाती रही पर अग्रवाल ने उनका घूँघट उघाड़ दिया और यह कहते हुये- “भौजी हमसे होली नहीं खेलोगी?” और उनके दोनों गालों पर ढेर सा गुलाल मल दिया। मलहोत्रा ने उन्हें रंग से भिगो दिया। 

भौजी बोलीं- “बस हो गई होली?” 

वह उस क्षेत्र की थीं जहां औरतें कोड़ामार होली खेलतीं हैं। पानी में भिगो-भिगोकर आदमियों पर कोड़े मारती है। भौजी ने अग्रवाल को उठा लिया और सीधा ले जाकर नांद में गिराती हुई बोलीं- “लाला जी होली का मजा तो लो…” 

सब लोगों में खुशी भर गई।

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