hotaks444
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --1
गतान्क से आगे........................
किसी शायर ने क्या खूब कहा है
सोचो तो बड़ी बात है तमीज़ जिस्म की,
वरना तो ये सिर्फ़ आग बुझाने के लिए हैं ......
यही सोचती वो खामोशी से आगे बढ़ी. ये बात कितनी सच थी इस बात का अंदाज़ा उसको बहुत अच्छी तरह से हो गया था. हाथ में चाइ की ट्रे लिए वो ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ी पर ये ट्रे पर रखी चाइ तो सिर्फ़ एक बहाना थी. असल में तो वो ठाकुर को अपना जिस्म परोसने जा रही थी.
ये किस्सा ऐसी ही जाने कब्से चला आ रहा था. वो रोज़ रात को 9 बजे ठाकुर को चाइ देने के बहाने उसके कमरे में जाती. चाइ को वॉश बेसिन में गिराकर कप को खाली कर देती जिससे देखने वाले को लगे के चाइ ठाकुर ने पी ली, और फिर ठाकुर को अपना जिस्म परोसती और 15 मिनट बाद कमरे से बाहर आ जाती. यूँ तो ये चाइ का नाटक ज़रूरी नही था क्यूंकी रात के 9 बजने तक हवेली में रहने वाला हर कोई अपने कमरे में बंद हो जाता था और अगर वो यूँ भी ठाकुर के कमरे में चली जाती तो ना कोई देखता ना सवाल करता पर फिर भी वो रोज़ाना चाइ लेकर ही जाती थी. या तो इसको शरम कह लो या बस अपने दिल को बहलाने का एक बहाना, पर ट्रे में चाइ रोज़ाना होती थी.
रोज़ की तरह आज भी उसने ठाकुर के कमरे पर हल्की सी दस्तक दी और बिना जवाब का इंतेज़ार किए अंदर दाखिल हो गयी. कमरे में कोई नही था पर बाथरूम से शवर की आवाज़ आ रही थी. वो समझ गयी के ठाकुर नहा रहा था. ट्रे टेबल पर रखी और कप उठाकर रोज़ाना की तरह बाथरूम की तरफ बढ़ी.
बाथरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था. वो दरवाज़े के पास पहुँची तो अंदर ठाकुर शवर के नीचे पूरा नंगा खड़ा हुआ था. उसने ठाकुर पर एक नज़र डाली और ठाकुर की नज़र उसपर पड़ी. ठाकुर के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई और उसे देखकर अपने लंड धीरे धीरे हिलाते हुए उसको बिस्तर की तरफ जाने का इशारा किया.
हाथ में पकड़े कप से उसने चाइ वहीं वॉश बेसिन में गिराई और फिर वापिस कमरे में आ गयी. कमरे में आकर कप वापिस ट्रे पर रखा और चुप चाप वहीं बिस्तर के किनारे खड़ी हो गयी.
कुच्छ पल बाद ही ठाकुर भी बाथरूम से नंगा ही बाहर आ गया. एक पल के लिए ठाकुर ने उसको देखा और फिर उसकी टाँगो की तरफ नज़र डाली. वो इशारा समझ गयी और चुप चाप अपनी कमीज़ उपेर उठाकर सलवार का नाडा खोलने लगी.
जब तक सलवार का नाडा खुलता, ठाकुर उसके पिछे आ चुका था. सलवार ढीली होते ही पिछे से ठाकुर ने उसकी सलवार को पकड़कर हल्का सा नीचे खींच दिया और उसकी गांद को नंगा कर दिया. कमरे में चल रहे ए.सी. की ठंडी हवा और ठाकुर का गीला हाथ उसकी नंगी गांद में एक ठंडक की सिहरन दौड़ा गया. ठाकुर थोडा और नज़दीक आया तो खड़ा लंड उसकी गांद से रगड़ने लगा. आगे क्या करना है वो जानती थी और अपने हाथ बिस्तर पर रखकर झुक गयी.
पीछे से ठाकुर ने अपना लंड निशाने पर लगाया और धीरे धीरे पूरा का पूरा उसकी चूत में दाखिल कर दिया. लंड के पूरा अंदर होते ही खुद उसके मुँह से भी एक आह निकल पड़ी. भले वो कितना अपने दिल को समझाती, कितना शराफ़त के पर्दों में छुपाटी, वो ये बात अच्छी तरफ से जानती थी के खुद उसका जिस्म भी उसको दॉखा दे जाता था. और आज भी कुच्छ ऐसा हो रहा था. ठाकुर पिछे से उसकी चूत पर धक्के लगा रहा था और वो खुद भी बेहेक्ति जा रही थी.
एक नज़र उसने कमरे में फुल साइज़ मिरर पर डाली तो खुद उसका जोश दुगुना हो गया. वो बिस्तर के किनारे पर हाथ रखे झुकी खड़ी थी. सलवार ढीली हल्की सी नीचे हो रखी थी. बस इतनी ही के ठाकुर के लिए पिछे से लंड डालना मुमकिन हो सके. उसको खुद अपने जिस्म का कोई हिस्सा शीशे में नज़र नही आ रहा था पर फिर भी वो इस वक़्त एक तरह से पूरी नंगी थी.
ठाकुर की स्पीड बढ़ती चली गयी और धक्को में दुगुनी रफ़्तार आ गयी. गांद पर पड़ रहे पुर ज़ोर के धक्को के कारण उसके पावं लड़खड़ा गये और वो बिस्तर पर आगे की और हुई और उल्टी लेट गयी. अब ठाकुर उसकी गांद पर बैठा था और उसके दोनो कूल्हो को पकड़े पूरी जान से धक्के लगा रहा था. वो जानती थी के काम ख़तम होने वाला है. तेज़ी से पड़ते धक्को ने उसकी चूत में जैसे आग सी लगा दी. दोनो हाथों से उसके अपनी मुट्ठी में चादर को ज़ोर से पकड़ लिया और आँखें मूंद ली ...... और जैसी उसकी चूत से नदियाँ बह चली.
और ठीक उसी वक़्त ठाकुर के मुँह से ज़ोर की आह निकली और लंड से निकला वीर्य उसकी चूत में भरने लगा. वो खुद भी झाड़ रही थी, चूत की गर्मी पानी और वीर्य बनकर उसकी चूत से बह रही थी.
थोड़ी देर बाद हाथ में ट्रे उठाए, अपने कपड़े ठीक करती वो कमरे से बाहर निकली. उसपर एक नज़र डालते ही कोई भी कह सकता था के वो अभी अभी चुद्कर आई है पर नज़र डालने वाला था ही कौन. चुप चाप वो किचन तक पहुँची औट ट्रे वहीं छ्चोड़कर अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कमरे में जाकर उसने एक छ्होटी सी गोली पानी के साथ खाई ताकि उसको ठाकुर का बच्चा ना ठहर जाए और बिस्तर पर लेट गयी.
थोड़ी ही देर बाद पूरी हवेली एक चीख की आवाज़ से गूँज उठी.
नींद की उबासी लेती वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी. ड्रॉयिंग रूम में घड़ी पर नज़र डाली तो 9.15 बज रहे थे. यूँ तो वो अक्सर रात को देर तक जागती रहती थी पर आज सुबह से ही काम इतना ज़्यादा था के हालत खराब हो रखी थी.
अपने कमरे तक पहुँचकर वो अंदर दाखिल होने ही लगी थी के याद आया के दोपहर के सुखाए कपड़े अभी भी हवेली के पिच्छले हिस्से में अब भी सूख रहे हैं. एक पल को उसने सोचा के कपड़े सुबह जाकर ले आए पर वो जानती के बाहर आसमान पर बदल छाए हुए हैं और रात को बारिश हो सकती थी. मौसम को कोस्ती वो हवेली के पिच्छले दरवाज़े की तरफ चली.
बाहर आकर उसने एक एक करके अपने सारे कपड़े उतारे. जहाँ वो खड़ी थी वहाँ से ठाकुर के कमरे की खिड़की सॉफ नज़र आती थी. कमरे की लाइट जली हुई थी.
कपड़े लेकर वो वापिस अंदर जाने लगी तो एक नज़र ठाकुर के खिड़की पर फिर पड़ी और कमरे के अंदर उसको ठाकुर खड़े हुए दिखाई दिए. यूँ तो ये कोई ख़ास बात नही थी क्यूंकी कमरा खुद उन्ही का था पर जिस बात ने उसके पैर रोक दिए वो थे उनके चेहरे पर आते जाते हुए भाव. लग रहा था जैसे ख़ासी तकलीफ़ में है. कमरे की खिड़की ज़रा ऊँची थी इसलिए उसको सिर्फ़ उनका सर और कंधे नज़र आ रहे थे जो नंगे थे पर इस बात का अंदाज़ा उसको हो गया के ठाकुर साहब उपेर से नंगे थे. दूसरी बात जो उसको थोड़ा अजीब लगी के उनका पूरा जिस्म हिल रहा था और चेहरे के भाव बदल रहे थे.
जाने क्या सोचकर वो खिड़की के थोड़ा नज़दीक आई. क्यूंकी खिड़की उसके खुद की हाइट से ऊँची थी इसलिए जब वो खिड़की के पास आकर खड़ी हुई तो अंदर कुच्छ भी दिखाई देना बंद हो गया. पर तभी उसके कानो में एक आवाज़ पड़ी जिससे उसके दोनो कान खड़े हो गये. आवाज़ एक औरत की थी. थोड़ी देर खामोशी हुई और फिर से वही एक औरत की आवाज़ आई, और फिर आई, और फिर आई और फिर रुक रुक कर आवाज़ आती रही.
वो एक मिनट तक चुप चाप खड़ी वो आवाज़ सुनती रही. एक पल के लिए उसके कदम वापिस हवेली के दरवाज़े की ओर बढ़े और फिर ना जाने क्यूँ रुक गये.वो अच्छी तरह जानती थी के कमरे के अंदर क्या हो रहा है और एक औरत इस तरह की आवाज़ किस वक़्त निकालती है. वो समझ गयी थी के क्यूँ ठाकुर के कंधे नंगे थे और क्यूँ उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे.
"अंदर कमरे में वो औरत ठाकुर साहब से चुद रही है"
ये ख्याल दिल में आया ही था के उसके जिस्म में एक सनसनी सी दौड़ गयी. घुटने जैसे कमज़ोर पड़ने लगी और टाँगो के बीच की जगह अपने आप गीली सी होने लगी. उसको खुद को याद नही था के वो आखरी बार कब चुदी थी. अक्सर रात को चूत में एक अजीब बेचैनी सी होती और वो यूँ ही करवटें बदलती रहती थी और कभी कभी तकिया उठाकर अपनी टाँगो के बीच दबा लेती थी. उसका एक हाथ अपने आप ही उसकी चूत पर चला गया और उसने पास पड़ा एक पत्थर लुढ़का कर खिड़की के पास किया. एक पावं उसने पत्थर पर रखा और धीरे से खिड़की से झाँक कर अंदर देखा.
अंदर का माजरा देखकर उसके मुँह से आह निकलते निकलते रह गयी. एक औरत बिस्तर पर उल्टी पड़ी हुई थी और ठाकुर साहब नंगे उसके उपेर सवार थे. औरत ने अपने चेहरा बिस्तर में घुसा रखा था और ठाकुर के हर धक्के पर घुटि घुटि सी आवाज़ निकलती थी. बिस्तर पर चादर बिछि होने के कारण और उस औरत के उल्टी होने से वो चाहकर भी ये ने देख पाई के बिस्तर पर कौन चुद रही है. औरत ने कपड़े पूरे पहेन रखे थे पर जिस तरह से ठाकुर साहब ने उसकी गांद पकड़ रखी थी और धक्के लगा रहे थे वो समझ गयी के अंदर बिस्तर पर पड़ी औरत ने सलवार नीचे सरका रखी थी और ठाकुर पिछे से चूत मार रहे थे.
वहीं खड़े खड़े उसने अपना एक हाथ अपनी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया और ध्यान से ठाकुर का नंगा जिस्म देखने लगी. चौड़े कंधे, कसरती और तना हुआ शरीर, वो डैड दिए बिना ना रह सकी. धीरे धीरे उसकी नज़र ठाकुर की टाँगो के बीच पहुँची और उसके दिल में चाह उठी के एक बार ठाकुर का लंड दिखाई दे. पर वो तो उस औरत की गांद के अंदर कहीं छुपा हुआ था. वो बाहर खड़ी बेसब्री से इंतेज़ार करने लगी के चुदाई का खेल ख़तम हो और ठाकुर लंड बाहर निकले ताकि वो उसको लंड के दर्शन हो सकें. ठाकुर का शानदार जिस्म देखकर उसके दिमाग़ में सिर्फ़ ठकुराइन के लिए अफ़सोस और ठाकुर के लिए हमदर्दी आई.
इसी इंतेज़ार में वो बाहर खड़ी चूत पर हाथ चला रही थी के ठाकुर ने एक झटका पूरे ज़ोर से मारा और बिस्तर पर पड़ी औरत ने दर्द और मज़े के कारण एक पल के लिए अपना चेहरा उपेर किया. बाहर खड़े उसका हाथ फ़ौरन चूत पर चलना बंद हो गया. उसको आँखें हैरत से फेल्ती चली गयी. उसको यकीन नही हुआ के बिस्तर पर वही औरत है जो उसको एक पल के लिए लगा के है. उसको यकीन था के उसकी आँखें धोखा खा रही है. उसने फिर गौर से देखने की कोशिश में अपनी नज़र अंदर गढ़ाई पर नज़र ठाकुर की टाँगों के बीच नही, उस औरत के चेहरे की तरफ थी.
अचानक उसको अपने पिछे कुच्छ आवाज़ महसूस हुई. किसी के चलने की आवाज़ थी जो नज़दीक थी और वो समझ गयी की कोई इसी तरफ आ रहा था. जल्दी से वो खिड़की से हटी और हवेली के दरवाज़े की तरफ बढ़ी. दिमाग़ अब भी हैरत में था के क्या सच में ठाकुर के बिस्तर पर वही औरत है जो उसको लगा के है? यही सोचती वो अपने कमरे तक पहुचि.
थोड़ी ही देर बाद पूरी हवेली एक चीख की आवाज़ से गूँज उठी.
"आअहह ... और ज़ोर से"
नीचे लेटी हुई मज़े में आहें भरते हुए बोली. तेजविंदर उसके उपेर लेटा हुआ था. वो दोनो ही पूरी तरह नंगे थे. रेखा की दोनो टांगे हवा में, टाँगो के बीच तेजविंदर, दोनो छातियाँ तेजविंदर के हाथों में और लंड चूत में तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था.
रेखा की उमर 40 के पार थी, शकल सूरत भी कोई ख़ास नही पर जिस्म ऐसा था के 20 साल की लड़की को मात दे जाए और यही वजह थी के तेज हर रात उसी के पास खींचा चला आता था. यूँ तो बाज़ार में एक से बढ़के एक हसीन थी पर रेखा को चोदने के बाज़ शायद ही कभी ऐसा हुआ था के तेज किसी और रंडी के पास गया था.
"कमाल है तेरी चूत" वो पूरी जान से धक्के मारता हुआ बोला "साला लंड घुसाओ तो ऐसा लगता है जैसे किसी 15-16 साल की लड़की की चूत में लंड घुसाया हो"
"तो आपका लंड कौन सा कम है. जो आपके नीचे से निकल गयी, कसम ख़ाके कहती हूँ के किसी और के सामने अपना भोसड़ा खोलेगी नही" मुस्कुराते हुए रेखा ने जवाब दिया
"तुम तो खोलती हो" तेज ने उसको छेड़ते हुए कहा
"आप रोज़ रात आने का वादा कीजिए. कसम है मुझे अगर इस चूत की हवा भी किसी और लंड को लगे"
उसकी बात सुनकर तेज हल्का सा हसा और फिर पूरी जान से धक्के लगाने लगा
"आआहह ठाकुर साहब धीएरे ..... "रेखा की मुँह से निकला पर तेज नही रुका और अगले 5 मिनिट तक उसने रेखा का जैसे बिस्तर पर पागल बना दिया. कभी चूचियाँ दबाता, कभी चूस्ता, कभी काट लेता, कभी दोनो टांगे हवा में होती तो कभी बिस्तर पर पर धक्को की तेज़ी में कोई कमी नही आई. आख़िर 5 मिनट बाद तेज तक कर साँस लेने के लिए रुका. वो रुका तो रेखा की जान में भी जान आई.
"ठाकुर साहब" वो हाँफती हुई बोली "मेरी चूत क्या आज रात गाओं छ्चोड़कर जा रही है जो ऐसे चोद रहे हो"
तेज हस्ते हुए अपने माथे से पसीना पोंच्छने लगा
"थक गये हैं" रेखा ने प्यार से बालों में हाथ फिराते हुए कहा "मैं उपेर आ जाऊं?"
"रंडी होकर ठाकुरों के उपेर आने का सपना देख रही हो?" तेज ने कहा
ये बात जैसे रेखा के दिल में नश्तर की तरह चुध गयी. उसने तो प्यार में आकर तेज से उपेर आने को कही थी ताकि वो आराम से नीचे लेट जाए पर उसके बदले में जब तेज का का जवाब सुना तो एकदम गुस्से में किलस गयी.
क्रमशः........................................
गतान्क से आगे........................
किसी शायर ने क्या खूब कहा है
सोचो तो बड़ी बात है तमीज़ जिस्म की,
वरना तो ये सिर्फ़ आग बुझाने के लिए हैं ......
यही सोचती वो खामोशी से आगे बढ़ी. ये बात कितनी सच थी इस बात का अंदाज़ा उसको बहुत अच्छी तरह से हो गया था. हाथ में चाइ की ट्रे लिए वो ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ी पर ये ट्रे पर रखी चाइ तो सिर्फ़ एक बहाना थी. असल में तो वो ठाकुर को अपना जिस्म परोसने जा रही थी.
ये किस्सा ऐसी ही जाने कब्से चला आ रहा था. वो रोज़ रात को 9 बजे ठाकुर को चाइ देने के बहाने उसके कमरे में जाती. चाइ को वॉश बेसिन में गिराकर कप को खाली कर देती जिससे देखने वाले को लगे के चाइ ठाकुर ने पी ली, और फिर ठाकुर को अपना जिस्म परोसती और 15 मिनट बाद कमरे से बाहर आ जाती. यूँ तो ये चाइ का नाटक ज़रूरी नही था क्यूंकी रात के 9 बजने तक हवेली में रहने वाला हर कोई अपने कमरे में बंद हो जाता था और अगर वो यूँ भी ठाकुर के कमरे में चली जाती तो ना कोई देखता ना सवाल करता पर फिर भी वो रोज़ाना चाइ लेकर ही जाती थी. या तो इसको शरम कह लो या बस अपने दिल को बहलाने का एक बहाना, पर ट्रे में चाइ रोज़ाना होती थी.
रोज़ की तरह आज भी उसने ठाकुर के कमरे पर हल्की सी दस्तक दी और बिना जवाब का इंतेज़ार किए अंदर दाखिल हो गयी. कमरे में कोई नही था पर बाथरूम से शवर की आवाज़ आ रही थी. वो समझ गयी के ठाकुर नहा रहा था. ट्रे टेबल पर रखी और कप उठाकर रोज़ाना की तरह बाथरूम की तरफ बढ़ी.
बाथरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था. वो दरवाज़े के पास पहुँची तो अंदर ठाकुर शवर के नीचे पूरा नंगा खड़ा हुआ था. उसने ठाकुर पर एक नज़र डाली और ठाकुर की नज़र उसपर पड़ी. ठाकुर के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई और उसे देखकर अपने लंड धीरे धीरे हिलाते हुए उसको बिस्तर की तरफ जाने का इशारा किया.
हाथ में पकड़े कप से उसने चाइ वहीं वॉश बेसिन में गिराई और फिर वापिस कमरे में आ गयी. कमरे में आकर कप वापिस ट्रे पर रखा और चुप चाप वहीं बिस्तर के किनारे खड़ी हो गयी.
कुच्छ पल बाद ही ठाकुर भी बाथरूम से नंगा ही बाहर आ गया. एक पल के लिए ठाकुर ने उसको देखा और फिर उसकी टाँगो की तरफ नज़र डाली. वो इशारा समझ गयी और चुप चाप अपनी कमीज़ उपेर उठाकर सलवार का नाडा खोलने लगी.
जब तक सलवार का नाडा खुलता, ठाकुर उसके पिछे आ चुका था. सलवार ढीली होते ही पिछे से ठाकुर ने उसकी सलवार को पकड़कर हल्का सा नीचे खींच दिया और उसकी गांद को नंगा कर दिया. कमरे में चल रहे ए.सी. की ठंडी हवा और ठाकुर का गीला हाथ उसकी नंगी गांद में एक ठंडक की सिहरन दौड़ा गया. ठाकुर थोडा और नज़दीक आया तो खड़ा लंड उसकी गांद से रगड़ने लगा. आगे क्या करना है वो जानती थी और अपने हाथ बिस्तर पर रखकर झुक गयी.
पीछे से ठाकुर ने अपना लंड निशाने पर लगाया और धीरे धीरे पूरा का पूरा उसकी चूत में दाखिल कर दिया. लंड के पूरा अंदर होते ही खुद उसके मुँह से भी एक आह निकल पड़ी. भले वो कितना अपने दिल को समझाती, कितना शराफ़त के पर्दों में छुपाटी, वो ये बात अच्छी तरफ से जानती थी के खुद उसका जिस्म भी उसको दॉखा दे जाता था. और आज भी कुच्छ ऐसा हो रहा था. ठाकुर पिछे से उसकी चूत पर धक्के लगा रहा था और वो खुद भी बेहेक्ति जा रही थी.
एक नज़र उसने कमरे में फुल साइज़ मिरर पर डाली तो खुद उसका जोश दुगुना हो गया. वो बिस्तर के किनारे पर हाथ रखे झुकी खड़ी थी. सलवार ढीली हल्की सी नीचे हो रखी थी. बस इतनी ही के ठाकुर के लिए पिछे से लंड डालना मुमकिन हो सके. उसको खुद अपने जिस्म का कोई हिस्सा शीशे में नज़र नही आ रहा था पर फिर भी वो इस वक़्त एक तरह से पूरी नंगी थी.
ठाकुर की स्पीड बढ़ती चली गयी और धक्को में दुगुनी रफ़्तार आ गयी. गांद पर पड़ रहे पुर ज़ोर के धक्को के कारण उसके पावं लड़खड़ा गये और वो बिस्तर पर आगे की और हुई और उल्टी लेट गयी. अब ठाकुर उसकी गांद पर बैठा था और उसके दोनो कूल्हो को पकड़े पूरी जान से धक्के लगा रहा था. वो जानती थी के काम ख़तम होने वाला है. तेज़ी से पड़ते धक्को ने उसकी चूत में जैसे आग सी लगा दी. दोनो हाथों से उसके अपनी मुट्ठी में चादर को ज़ोर से पकड़ लिया और आँखें मूंद ली ...... और जैसी उसकी चूत से नदियाँ बह चली.
और ठीक उसी वक़्त ठाकुर के मुँह से ज़ोर की आह निकली और लंड से निकला वीर्य उसकी चूत में भरने लगा. वो खुद भी झाड़ रही थी, चूत की गर्मी पानी और वीर्य बनकर उसकी चूत से बह रही थी.
थोड़ी देर बाद हाथ में ट्रे उठाए, अपने कपड़े ठीक करती वो कमरे से बाहर निकली. उसपर एक नज़र डालते ही कोई भी कह सकता था के वो अभी अभी चुद्कर आई है पर नज़र डालने वाला था ही कौन. चुप चाप वो किचन तक पहुँची औट ट्रे वहीं छ्चोड़कर अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कमरे में जाकर उसने एक छ्होटी सी गोली पानी के साथ खाई ताकि उसको ठाकुर का बच्चा ना ठहर जाए और बिस्तर पर लेट गयी.
थोड़ी ही देर बाद पूरी हवेली एक चीख की आवाज़ से गूँज उठी.
नींद की उबासी लेती वो अपने कमरे की तरफ बढ़ी. ड्रॉयिंग रूम में घड़ी पर नज़र डाली तो 9.15 बज रहे थे. यूँ तो वो अक्सर रात को देर तक जागती रहती थी पर आज सुबह से ही काम इतना ज़्यादा था के हालत खराब हो रखी थी.
अपने कमरे तक पहुँचकर वो अंदर दाखिल होने ही लगी थी के याद आया के दोपहर के सुखाए कपड़े अभी भी हवेली के पिच्छले हिस्से में अब भी सूख रहे हैं. एक पल को उसने सोचा के कपड़े सुबह जाकर ले आए पर वो जानती के बाहर आसमान पर बदल छाए हुए हैं और रात को बारिश हो सकती थी. मौसम को कोस्ती वो हवेली के पिच्छले दरवाज़े की तरफ चली.
बाहर आकर उसने एक एक करके अपने सारे कपड़े उतारे. जहाँ वो खड़ी थी वहाँ से ठाकुर के कमरे की खिड़की सॉफ नज़र आती थी. कमरे की लाइट जली हुई थी.
कपड़े लेकर वो वापिस अंदर जाने लगी तो एक नज़र ठाकुर के खिड़की पर फिर पड़ी और कमरे के अंदर उसको ठाकुर खड़े हुए दिखाई दिए. यूँ तो ये कोई ख़ास बात नही थी क्यूंकी कमरा खुद उन्ही का था पर जिस बात ने उसके पैर रोक दिए वो थे उनके चेहरे पर आते जाते हुए भाव. लग रहा था जैसे ख़ासी तकलीफ़ में है. कमरे की खिड़की ज़रा ऊँची थी इसलिए उसको सिर्फ़ उनका सर और कंधे नज़र आ रहे थे जो नंगे थे पर इस बात का अंदाज़ा उसको हो गया के ठाकुर साहब उपेर से नंगे थे. दूसरी बात जो उसको थोड़ा अजीब लगी के उनका पूरा जिस्म हिल रहा था और चेहरे के भाव बदल रहे थे.
जाने क्या सोचकर वो खिड़की के थोड़ा नज़दीक आई. क्यूंकी खिड़की उसके खुद की हाइट से ऊँची थी इसलिए जब वो खिड़की के पास आकर खड़ी हुई तो अंदर कुच्छ भी दिखाई देना बंद हो गया. पर तभी उसके कानो में एक आवाज़ पड़ी जिससे उसके दोनो कान खड़े हो गये. आवाज़ एक औरत की थी. थोड़ी देर खामोशी हुई और फिर से वही एक औरत की आवाज़ आई, और फिर आई, और फिर आई और फिर रुक रुक कर आवाज़ आती रही.
वो एक मिनट तक चुप चाप खड़ी वो आवाज़ सुनती रही. एक पल के लिए उसके कदम वापिस हवेली के दरवाज़े की ओर बढ़े और फिर ना जाने क्यूँ रुक गये.वो अच्छी तरह जानती थी के कमरे के अंदर क्या हो रहा है और एक औरत इस तरह की आवाज़ किस वक़्त निकालती है. वो समझ गयी थी के क्यूँ ठाकुर के कंधे नंगे थे और क्यूँ उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे.
"अंदर कमरे में वो औरत ठाकुर साहब से चुद रही है"
ये ख्याल दिल में आया ही था के उसके जिस्म में एक सनसनी सी दौड़ गयी. घुटने जैसे कमज़ोर पड़ने लगी और टाँगो के बीच की जगह अपने आप गीली सी होने लगी. उसको खुद को याद नही था के वो आखरी बार कब चुदी थी. अक्सर रात को चूत में एक अजीब बेचैनी सी होती और वो यूँ ही करवटें बदलती रहती थी और कभी कभी तकिया उठाकर अपनी टाँगो के बीच दबा लेती थी. उसका एक हाथ अपने आप ही उसकी चूत पर चला गया और उसने पास पड़ा एक पत्थर लुढ़का कर खिड़की के पास किया. एक पावं उसने पत्थर पर रखा और धीरे से खिड़की से झाँक कर अंदर देखा.
अंदर का माजरा देखकर उसके मुँह से आह निकलते निकलते रह गयी. एक औरत बिस्तर पर उल्टी पड़ी हुई थी और ठाकुर साहब नंगे उसके उपेर सवार थे. औरत ने अपने चेहरा बिस्तर में घुसा रखा था और ठाकुर के हर धक्के पर घुटि घुटि सी आवाज़ निकलती थी. बिस्तर पर चादर बिछि होने के कारण और उस औरत के उल्टी होने से वो चाहकर भी ये ने देख पाई के बिस्तर पर कौन चुद रही है. औरत ने कपड़े पूरे पहेन रखे थे पर जिस तरह से ठाकुर साहब ने उसकी गांद पकड़ रखी थी और धक्के लगा रहे थे वो समझ गयी के अंदर बिस्तर पर पड़ी औरत ने सलवार नीचे सरका रखी थी और ठाकुर पिछे से चूत मार रहे थे.
वहीं खड़े खड़े उसने अपना एक हाथ अपनी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया और ध्यान से ठाकुर का नंगा जिस्म देखने लगी. चौड़े कंधे, कसरती और तना हुआ शरीर, वो डैड दिए बिना ना रह सकी. धीरे धीरे उसकी नज़र ठाकुर की टाँगो के बीच पहुँची और उसके दिल में चाह उठी के एक बार ठाकुर का लंड दिखाई दे. पर वो तो उस औरत की गांद के अंदर कहीं छुपा हुआ था. वो बाहर खड़ी बेसब्री से इंतेज़ार करने लगी के चुदाई का खेल ख़तम हो और ठाकुर लंड बाहर निकले ताकि वो उसको लंड के दर्शन हो सकें. ठाकुर का शानदार जिस्म देखकर उसके दिमाग़ में सिर्फ़ ठकुराइन के लिए अफ़सोस और ठाकुर के लिए हमदर्दी आई.
इसी इंतेज़ार में वो बाहर खड़ी चूत पर हाथ चला रही थी के ठाकुर ने एक झटका पूरे ज़ोर से मारा और बिस्तर पर पड़ी औरत ने दर्द और मज़े के कारण एक पल के लिए अपना चेहरा उपेर किया. बाहर खड़े उसका हाथ फ़ौरन चूत पर चलना बंद हो गया. उसको आँखें हैरत से फेल्ती चली गयी. उसको यकीन नही हुआ के बिस्तर पर वही औरत है जो उसको एक पल के लिए लगा के है. उसको यकीन था के उसकी आँखें धोखा खा रही है. उसने फिर गौर से देखने की कोशिश में अपनी नज़र अंदर गढ़ाई पर नज़र ठाकुर की टाँगों के बीच नही, उस औरत के चेहरे की तरफ थी.
अचानक उसको अपने पिछे कुच्छ आवाज़ महसूस हुई. किसी के चलने की आवाज़ थी जो नज़दीक थी और वो समझ गयी की कोई इसी तरफ आ रहा था. जल्दी से वो खिड़की से हटी और हवेली के दरवाज़े की तरफ बढ़ी. दिमाग़ अब भी हैरत में था के क्या सच में ठाकुर के बिस्तर पर वही औरत है जो उसको लगा के है? यही सोचती वो अपने कमरे तक पहुचि.
थोड़ी ही देर बाद पूरी हवेली एक चीख की आवाज़ से गूँज उठी.
"आअहह ... और ज़ोर से"
नीचे लेटी हुई मज़े में आहें भरते हुए बोली. तेजविंदर उसके उपेर लेटा हुआ था. वो दोनो ही पूरी तरह नंगे थे. रेखा की दोनो टांगे हवा में, टाँगो के बीच तेजविंदर, दोनो छातियाँ तेजविंदर के हाथों में और लंड चूत में तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था.
रेखा की उमर 40 के पार थी, शकल सूरत भी कोई ख़ास नही पर जिस्म ऐसा था के 20 साल की लड़की को मात दे जाए और यही वजह थी के तेज हर रात उसी के पास खींचा चला आता था. यूँ तो बाज़ार में एक से बढ़के एक हसीन थी पर रेखा को चोदने के बाज़ शायद ही कभी ऐसा हुआ था के तेज किसी और रंडी के पास गया था.
"कमाल है तेरी चूत" वो पूरी जान से धक्के मारता हुआ बोला "साला लंड घुसाओ तो ऐसा लगता है जैसे किसी 15-16 साल की लड़की की चूत में लंड घुसाया हो"
"तो आपका लंड कौन सा कम है. जो आपके नीचे से निकल गयी, कसम ख़ाके कहती हूँ के किसी और के सामने अपना भोसड़ा खोलेगी नही" मुस्कुराते हुए रेखा ने जवाब दिया
"तुम तो खोलती हो" तेज ने उसको छेड़ते हुए कहा
"आप रोज़ रात आने का वादा कीजिए. कसम है मुझे अगर इस चूत की हवा भी किसी और लंड को लगे"
उसकी बात सुनकर तेज हल्का सा हसा और फिर पूरी जान से धक्के लगाने लगा
"आआहह ठाकुर साहब धीएरे ..... "रेखा की मुँह से निकला पर तेज नही रुका और अगले 5 मिनिट तक उसने रेखा का जैसे बिस्तर पर पागल बना दिया. कभी चूचियाँ दबाता, कभी चूस्ता, कभी काट लेता, कभी दोनो टांगे हवा में होती तो कभी बिस्तर पर पर धक्को की तेज़ी में कोई कमी नही आई. आख़िर 5 मिनट बाद तेज तक कर साँस लेने के लिए रुका. वो रुका तो रेखा की जान में भी जान आई.
"ठाकुर साहब" वो हाँफती हुई बोली "मेरी चूत क्या आज रात गाओं छ्चोड़कर जा रही है जो ऐसे चोद रहे हो"
तेज हस्ते हुए अपने माथे से पसीना पोंच्छने लगा
"थक गये हैं" रेखा ने प्यार से बालों में हाथ फिराते हुए कहा "मैं उपेर आ जाऊं?"
"रंडी होकर ठाकुरों के उपेर आने का सपना देख रही हो?" तेज ने कहा
ये बात जैसे रेखा के दिल में नश्तर की तरह चुध गयी. उसने तो प्यार में आकर तेज से उपेर आने को कही थी ताकि वो आराम से नीचे लेट जाए पर उसके बदले में जब तेज का का जवाब सुना तो एकदम गुस्से में किलस गयी.
क्रमशः........................................