hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
कुँवारियों का शिकार--1
मैं राज शर्मा (राज ) 38 साल का होने वाला हूँ और अपना स्कूल चलाता हूँ जो देल्ही शहर के पॉश एरिया में है और इसकी गिनती शहर के सबसे अच्छे स्कूल्स में होती है. ईससी मेरे दादाजी ने शुरू किया था और उनके बाद मेरे पिताजी इससे चलाते रहे और उनके बाद करीब 14 साल पहले मेने इसकी कमान संभाली.
मेरे माता-पिताजी, मेरा छ्होटा भाई, सिम्ला से लौट रहे थे, मेरी पत्नी अपने मायके चंडीगढ़ गयी हुई थी और वो भी उनके साथ ही आ रही थी. रास्ते में अंबाला से तोड़ा आगे उनकी कार का आक्सिडेंट हो गया. रॉंग साइड पर आ रहे एक ट्रक ने उन्हे सामने से टक्कर मारी थी. ड्राइवर समेत सभी लोग वहीं मौके पर ही ख़तम हो गये, कार पूरी तरह से टूट-फूट गयी. में अकेला रह गया अपने बेटे और बेटी के साथ. लोगों ने बहुत ज़ोर डाला पर मेने दूसरी शादी नही की.
दोनो बच्चो की शादी करके मैं बिल्कुल अकेला लेकिन पूरी तरह आज़ाद हो गया. बेटी अपने पति के साथ गुड़गाँवा में रहती है और अभी कुछ महीने पहले उससने एक बेटे को जन्म दिया है. मेरा दामाद विजय अपने मा बाप की इकलौती संतान है और अपना खुद का मीडियम साइज़ कॉल सेंटर चलाता है. उसके पिता 2 महीने पहले ही रिटाइर हुए है. आइएएस क्लियर करने के बाद एजुकेशन मिनिस्ट्री में ही रहे और वहीं मेरी उनसे पहचान हुई और फिर ये पहचान रिश्तेदारी में बदल गयी. उनकी करक ईमानदारी की मिसालें दी जाती थीं, और यही हमारी दोस्ती की वजह भी बनी थी. कुल मिलाकर बेटी और उसका परिवार बहुत सुखी परिवार है और में उस तरफ से बिल्कुल निश्चिंत हूँ.
मेरा बेटा माइक्रोसॉफ्ट में सीनियर.सॉफ्टवेर इंजिनियर है और अपनी पत्नी एवं बेटे के साथ यूएसए में रहता है. 6 साल मे वो तीन बार इंडिया आया है जिसमें पहली बार आया था शादी करवाने के लिए. यानी एक साल वो आ जाता है और एक साल में च्छुतटियों में उनके पास चला जाता हूँ.
इंट्रोडक्षन तो हो गया अब शुरू करता हूँ अपनी काम यात्रा. मेरी सेक्षुयल अवेकेनिंग तो तब शुरू हुई थी जब मैं 10थ क्लास में था पर मेरा पहला सेक्षुयल एनकाउंटर हुआ था जब मैं 12थ में था. वो सब बातें में यहाँ पर लिख नही सकता एडिट हो जाएँगी और हो सकता है के बॅन भी लग जाए. उसके बाद मेरी ज़िंदगी में बहुत कुछ हुआ और वो सब मैं आपको बीच-बीच में जैसे-जैसे याद आएगा बताता रहूँगा.
पिताजी की अक्समात मृत्यु के बाद मेरे ऊपेर स्कूल की पूरी ज़िम्मेदारी आ गयी और मैं उसे पूरा करने का प्रयत्न जी-जान से करने लगा और सफल भी रहा. लेकिन मेरा स्वाभाव थोड़ा रूखा हो गया और मैं लापरवाह भी हो गया. साथ ही साथ थोड़ा चीर्चिड़ापन और सख्ती भी आ गयी. सारे टीचर्स और स्टाफ की मेरे साथ पूरी सहानुभूति तो थी ही जिसकी वजह से स्कूल की फंक्षनिंग में कोई गड़बड़ या रुकावट नहीं हुई परंतु मुझे भी महसूस होने लगा के मैं कुछ बदल सा गया हूँ.
मैने स्कूल के कामों में और दोनो बच्चों की तरफ ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और अपने आप को ज़्यादा से ज़्यादा बिज़ी रखने की कोशिश करने लगा और यह तरकीब काम भी कर गयी. धीरे-धीरे मैं नॉर्मल होने लगा पर मेरे व्यवहार की तल्खी कम नही हुई. इसका एक फ़ायदा भी हुआ. स्कूल चलाने के लिए स्ट्रिक्ट तो होना ही पड़ता है, इसलिए टीचर्स और स्टाफ ने भी मेरे साथ अड्जस्ट कर लिया और स्कूल में डिसिप्लिन अच्छे से कायम हो गया और दिन ठीक से बीतने लगे.
मेरी आदत थी स्कूल का राउंड लेने की और कोई फिक्स टाइम नहीं था इसके लिए. कभी-कभी मैं राउंड स्किप भी कर देता था और कभी दिन में 2 राउंड भी लगा देता था. इसका फ़ायदा यह था के स्कूल के टीचर्स और स्टाफ हर समय अलर्ट रहते के पता नही मैं कब आ जाउ राउंड पर. उन्ही दिनों की बात है कि एक दिन ऐसे ही राउंड पर मैने देखा के बाय्स लॅवेटरी में से एक लड़का निकला और मुझे देख कर कुछ ज़्यादा ही चौंक गया. यह मेरे ही स्कूल के मेद्स के सीनियर टीचर पांडेजी का बेटा दीपक था. मेरे पास पहुँचते उसने काँपते हाथों से टाय्लेट पास जेब से निकाल लिया और धीरे से गुड मॉर्निंग सर कहता हुआ निकल गया और मुझे क्रॉस करते ही तेज़ी से दूसरे मूड कर अपनी क्लास की तरफ चला गया. बाय्स लॅवेटरी अभी भी मेरे से 15-20 कदम आगे थी.
अभी मैं 2-3 कदम ही बढ़ा था के मेरे चौंकने की बारी थी. एक लड़की का सर बाय्स लॅवेटरी के दरवाज़े से बाहर निकला और उसने दोनो तरफ झाँका. जैसे ही वो सर मेरी तरफ मुड़ा वो लड़की एकदम से पीछे हट गयी. मैं तेज़ी से आगे बढ़ा और अंदर दाखिल हो गया. अंदर कोई भी नज़र नही आया. मैने दरवाज़े के पीछे झाँका तो देखा कि वो लड़की आँखे बंद किए हुए खड़ी थी और उसका चेहरा डर के मारे बिल्कुल सफेद पड़ गया था. मैने गुस्से से उससे पूछा, के वो यहाँ क्या कर रही है. उसकी घिग्घी बँध गयी और मुँह से कोई बोल ना फूटा. मैने उससे कॅड्क आवाज़ में कहा के मेरे ऑफीस में जाकर मेरा इंतेज़ार करे.
यह 12थ की स्टूडेंट प्रिया थी. बहुत ही सुंदर. गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श और फिगर ऐसी के जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो. मेरे ऐसा कहते ही वो डरती हुई काँपते कदमों से मेरे ऑफीस की तरफ चल दी.
मैं कोई 10 मिनट के बाद ऑफीस में पहुँचा और देखा कि वो बाहर वेटिंग रूम में सर झुकाए सहमी सी बैठी थी. अपनी कुर्सी पर बैठते ही मैने अपने कंप्यूटर में उसका नाम और क्लास डाली. मेरे सामने तीन चेहरे कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़र आए, उनमें एक चेहरा यह भी था. मैने उस पर क्लिक किया तो उसकी सारी डीटेल्स मेरे सामने खुलती चली गयीं.
यह था कमाल मेरे बेटे के बनाए हुए सॉफ्टवेर का जो उसका बनाया हुआ पहला सॉफ्टवेर था और उसने बड़ी मेहनत और लगन से बनाया था. इसमें स्कूल का पूरा रेकॉर्ड था, स्टूडेंट्स का, अकाउंट्स का, टीचर्स और स्टाफ का. रोज़ इसमें नयी डीटेल्स फीड की जाती और रोज़ ही पूरा अपडेट होता था.
मैं राज शर्मा (राज ) 38 साल का होने वाला हूँ और अपना स्कूल चलाता हूँ जो देल्ही शहर के पॉश एरिया में है और इसकी गिनती शहर के सबसे अच्छे स्कूल्स में होती है. ईससी मेरे दादाजी ने शुरू किया था और उनके बाद मेरे पिताजी इससे चलाते रहे और उनके बाद करीब 14 साल पहले मेने इसकी कमान संभाली.
मेरे माता-पिताजी, मेरा छ्होटा भाई, सिम्ला से लौट रहे थे, मेरी पत्नी अपने मायके चंडीगढ़ गयी हुई थी और वो भी उनके साथ ही आ रही थी. रास्ते में अंबाला से तोड़ा आगे उनकी कार का आक्सिडेंट हो गया. रॉंग साइड पर आ रहे एक ट्रक ने उन्हे सामने से टक्कर मारी थी. ड्राइवर समेत सभी लोग वहीं मौके पर ही ख़तम हो गये, कार पूरी तरह से टूट-फूट गयी. में अकेला रह गया अपने बेटे और बेटी के साथ. लोगों ने बहुत ज़ोर डाला पर मेने दूसरी शादी नही की.
दोनो बच्चो की शादी करके मैं बिल्कुल अकेला लेकिन पूरी तरह आज़ाद हो गया. बेटी अपने पति के साथ गुड़गाँवा में रहती है और अभी कुछ महीने पहले उससने एक बेटे को जन्म दिया है. मेरा दामाद विजय अपने मा बाप की इकलौती संतान है और अपना खुद का मीडियम साइज़ कॉल सेंटर चलाता है. उसके पिता 2 महीने पहले ही रिटाइर हुए है. आइएएस क्लियर करने के बाद एजुकेशन मिनिस्ट्री में ही रहे और वहीं मेरी उनसे पहचान हुई और फिर ये पहचान रिश्तेदारी में बदल गयी. उनकी करक ईमानदारी की मिसालें दी जाती थीं, और यही हमारी दोस्ती की वजह भी बनी थी. कुल मिलाकर बेटी और उसका परिवार बहुत सुखी परिवार है और में उस तरफ से बिल्कुल निश्चिंत हूँ.
मेरा बेटा माइक्रोसॉफ्ट में सीनियर.सॉफ्टवेर इंजिनियर है और अपनी पत्नी एवं बेटे के साथ यूएसए में रहता है. 6 साल मे वो तीन बार इंडिया आया है जिसमें पहली बार आया था शादी करवाने के लिए. यानी एक साल वो आ जाता है और एक साल में च्छुतटियों में उनके पास चला जाता हूँ.
इंट्रोडक्षन तो हो गया अब शुरू करता हूँ अपनी काम यात्रा. मेरी सेक्षुयल अवेकेनिंग तो तब शुरू हुई थी जब मैं 10थ क्लास में था पर मेरा पहला सेक्षुयल एनकाउंटर हुआ था जब मैं 12थ में था. वो सब बातें में यहाँ पर लिख नही सकता एडिट हो जाएँगी और हो सकता है के बॅन भी लग जाए. उसके बाद मेरी ज़िंदगी में बहुत कुछ हुआ और वो सब मैं आपको बीच-बीच में जैसे-जैसे याद आएगा बताता रहूँगा.
पिताजी की अक्समात मृत्यु के बाद मेरे ऊपेर स्कूल की पूरी ज़िम्मेदारी आ गयी और मैं उसे पूरा करने का प्रयत्न जी-जान से करने लगा और सफल भी रहा. लेकिन मेरा स्वाभाव थोड़ा रूखा हो गया और मैं लापरवाह भी हो गया. साथ ही साथ थोड़ा चीर्चिड़ापन और सख्ती भी आ गयी. सारे टीचर्स और स्टाफ की मेरे साथ पूरी सहानुभूति तो थी ही जिसकी वजह से स्कूल की फंक्षनिंग में कोई गड़बड़ या रुकावट नहीं हुई परंतु मुझे भी महसूस होने लगा के मैं कुछ बदल सा गया हूँ.
मैने स्कूल के कामों में और दोनो बच्चों की तरफ ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और अपने आप को ज़्यादा से ज़्यादा बिज़ी रखने की कोशिश करने लगा और यह तरकीब काम भी कर गयी. धीरे-धीरे मैं नॉर्मल होने लगा पर मेरे व्यवहार की तल्खी कम नही हुई. इसका एक फ़ायदा भी हुआ. स्कूल चलाने के लिए स्ट्रिक्ट तो होना ही पड़ता है, इसलिए टीचर्स और स्टाफ ने भी मेरे साथ अड्जस्ट कर लिया और स्कूल में डिसिप्लिन अच्छे से कायम हो गया और दिन ठीक से बीतने लगे.
मेरी आदत थी स्कूल का राउंड लेने की और कोई फिक्स टाइम नहीं था इसके लिए. कभी-कभी मैं राउंड स्किप भी कर देता था और कभी दिन में 2 राउंड भी लगा देता था. इसका फ़ायदा यह था के स्कूल के टीचर्स और स्टाफ हर समय अलर्ट रहते के पता नही मैं कब आ जाउ राउंड पर. उन्ही दिनों की बात है कि एक दिन ऐसे ही राउंड पर मैने देखा के बाय्स लॅवेटरी में से एक लड़का निकला और मुझे देख कर कुछ ज़्यादा ही चौंक गया. यह मेरे ही स्कूल के मेद्स के सीनियर टीचर पांडेजी का बेटा दीपक था. मेरे पास पहुँचते उसने काँपते हाथों से टाय्लेट पास जेब से निकाल लिया और धीरे से गुड मॉर्निंग सर कहता हुआ निकल गया और मुझे क्रॉस करते ही तेज़ी से दूसरे मूड कर अपनी क्लास की तरफ चला गया. बाय्स लॅवेटरी अभी भी मेरे से 15-20 कदम आगे थी.
अभी मैं 2-3 कदम ही बढ़ा था के मेरे चौंकने की बारी थी. एक लड़की का सर बाय्स लॅवेटरी के दरवाज़े से बाहर निकला और उसने दोनो तरफ झाँका. जैसे ही वो सर मेरी तरफ मुड़ा वो लड़की एकदम से पीछे हट गयी. मैं तेज़ी से आगे बढ़ा और अंदर दाखिल हो गया. अंदर कोई भी नज़र नही आया. मैने दरवाज़े के पीछे झाँका तो देखा कि वो लड़की आँखे बंद किए हुए खड़ी थी और उसका चेहरा डर के मारे बिल्कुल सफेद पड़ गया था. मैने गुस्से से उससे पूछा, के वो यहाँ क्या कर रही है. उसकी घिग्घी बँध गयी और मुँह से कोई बोल ना फूटा. मैने उससे कॅड्क आवाज़ में कहा के मेरे ऑफीस में जाकर मेरा इंतेज़ार करे.
यह 12थ की स्टूडेंट प्रिया थी. बहुत ही सुंदर. गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श और फिगर ऐसी के जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो. मेरे ऐसा कहते ही वो डरती हुई काँपते कदमों से मेरे ऑफीस की तरफ चल दी.
मैं कोई 10 मिनट के बाद ऑफीस में पहुँचा और देखा कि वो बाहर वेटिंग रूम में सर झुकाए सहमी सी बैठी थी. अपनी कुर्सी पर बैठते ही मैने अपने कंप्यूटर में उसका नाम और क्लास डाली. मेरे सामने तीन चेहरे कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़र आए, उनमें एक चेहरा यह भी था. मैने उस पर क्लिक किया तो उसकी सारी डीटेल्स मेरे सामने खुलती चली गयीं.
यह था कमाल मेरे बेटे के बनाए हुए सॉफ्टवेर का जो उसका बनाया हुआ पहला सॉफ्टवेर था और उसने बड़ी मेहनत और लगन से बनाया था. इसमें स्कूल का पूरा रेकॉर्ड था, स्टूडेंट्स का, अकाउंट्स का, टीचर्स और स्टाफ का. रोज़ इसमें नयी डीटेल्स फीड की जाती और रोज़ ही पूरा अपडेट होता था.